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क्या घर के मुख्य दरवाज़े पर गणेश-लक्ष्मी को स्थान देना चाहिए? (Hindi & English)

क्या घर के मुख्य दरवाज़े पर गणेश-लक्ष्मी को स्थान देना चाहिए? (Hindi & English)

हमारे घरों में प्रायः अनेकों ऊर्जाओं का आना जाना लगा रहता है। जिनमें अच्छी और बुरी दोनों ऊर्जाएं शामिल रहती है। हम सभी यही चाहते हैं कि हमारे घरों में केवल सकारात्मक ऊर्जाएं ही आनी चाहिएं। इसके लिए हम पूर्ण रूप से हमारे घर के मुख्य दरवाज़े पर निर्भर बने रहते हैं क्योंकि मुख्य प्रवेश द्वार एक प्रकार से हमारा रक्षक होता है। इसलिए हम हमेशा ऐसे उपायों को प्रयोग में लाते हैं जिससे हमारे मुख्य दरवाज़े को अत्यधिक मजबूती प्राप्त हो पाए।

मुख्य लकड़ी वाले दरवाज़े की मजबूती के संदर्भ में चोखट का एक अहम योगदान रहता है। चोखट में इतनी अधिक ताकत होती है कि परिवार का कोई भी सदस्य जब उसे लांघता है तो नकरात्मक ऊर्जा बाहर ही रह जाती है। लेकिन यह पहले के घरों में अधिक देखने को मिलती थी। आज के वर्तमान निर्माण को देखा जाए तो घरों में चोखट लगभग गायब हो चुकी है। अब चोखट के नाम पर केवल तिखट रह गई है। अब इसके स्थान पर लोगों ने चांदी की तार लगानी शुरू कर दी है। यह ठीक भी है क्योंकि चांदी धातु की प्रकृति ऐसी है कि कोई भी नकरात्मक ऊर्जा को वह तुरंत ही काट देती है।

अब वर्तमान युग में लोग अपने घर के मुख्य दरवाज़े के बाहर गणेश-लक्ष्मी को स्थान देते हैं। उनकी भावना बहुत ही पवित्र होती है लेकिन हमें यहां यह भी समझना होगा कि अगर मुख्य दरवाज़े के बाहर आपने किन्हीं भी देवी-देवता को स्थान दिया है तो आपको यह अच्छे से पता होना चाहिए कि उन अमुक देवी-देवता का द्वारपाल होना अति आवश्यक है। अब ना तो लक्ष्मीजी द्वारपाल हैं और ना ही गणेशजी। गणेशजी का सिर कटने से पूर्व वें अवश्य द्वारपाल थें परंतु जब शिवकृपा से उनको नया सिर प्राप्त हुआ तो उनका यह रूप कहीं पर भी द्वारपाल नही बना। आइए कुछ प्रश्नों के माध्यम से इस विषय को और भी अधिक गहराई से समझने का प्रयास करते हैं।

01. क्या घर के मुख्य दरवाजे पर गणेश-लक्ष्मी लगाने चाहिएं?

भगवान श्रीगणेश और माता महालक्ष्मी जी को मुख्य द्वार जो बाहर की तरफ खुलता हो वहां पर स्थान कभी भी नहीं देना चाहिए।

02. क्या भगवान श्रीगणेश और माता महालक्ष्मी जी को घर के अंदर स्थान दे सकते हैं?

जी हां आप भगवान श्रीगणेश और माता महालक्ष्मी जी को मुख्य द्वार जो अंदर की तरफ खुलता हो वहां पर स्थान दे सकते हैं।

03. क्या भगवान श्रीगणेश और माता महालक्ष्मी जी के साथ किसी विशिष्ट दिशा का कोई महत्व है?

भगवान कभी भी किसी भी दिशा से बंधे हुए नहीं होते हैं। बस आप हमेशा यही ध्यान रखें कि भगवान श्रीगणेश आपके साम भाग में ही होने चाहिएं और माता महालक्ष्मी जी आपके वाम भाग में ही होनी चाहिएं।

04. घर के मुख्य दरवाजे पर किन्हें स्थान देना उचित और उत्तम रहता है?

घर के मुख्य दरवाजे जोकि बाहर की तरफ खुलता है उसकी उपरी दीवार पर आप अपनी श्रद्धा अनुसार बैठी हुई अवस्था में पंचमुखी हनुमानजी या पंचमुखी गणेशजी को ही स्थान दीजिए।

05. घर के मुख्य दरवाजे पर कैसा रंग होना चाहिए और मुख्य दरवाजे और अंदर की दीवारों की ऊंचाई कितनी होनी चाहिए?

घर के मुख्य दरवाजे पर सफेद या कोई भी हल्का रंग होना ही उत्तम रहता है। घर के मुख्य दरवाजे की ऊंचाई कम से कम 7 फुट और अंदर की दीवारों की ऊंचाई कम से कम 11 फुट तक होनी ही चाहिए।

06. अपने घर को अनावश्यक नेगेटिव ऊर्जा या बुरी नजरों से कैसे बचाएं?

अपने घर के मुख्य दरवाजे जोकि बाहर की तरफ खुलता है उस पर एक मध्यम आकार का चौकोर दर्पण आप लगा लीजिए और अशोक वृक्ष के पत्तों का तोरण भी आप लगाकर रखिए।

– गुरु सत्यराम

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Should Ganesha and Lakshmi be placed on the main door of the house? (Hindi & English)

Many energies keep coming and going in our homes. These include both good and bad energies. We all want that only positive energies should enter our homes. For this, we completely depend on the main door of our house because the main entrance is our protector in a way. That is why we always use such measures which can make our main door very strong.

Door frames play an important role in strengthening the main wooden door. Door frames have so much strength that when any member of the family crosses it, the negative energy remains outside. But this was seen more in earlier houses. If we look at today’s construction, door frames have almost disappeared from the houses. Now only door frames are left in the name of door frames. Now people have started using silver wire in its place. This is also correct because the nature of silver metal is such that it cuts off any negative energy immediately.

Now in the present era, people give place to Ganesh-Lakshmi outside the main door of their house. Their sentiments are very pure but we also have to understand here that if you have given place to any deity outside the main door, then you should know very well that it is very important for that particular deity to be the doorkeeper. Now neither Lakshmiji is the doorkeeper nor Ganeshji. Before Ganeshji’s head was cut off, he was definitely a gatekeeper, but when he got a new head by the grace of Shiva, this form of his did not become a gatekeeper anywhere. Let us try to understand this topic more deeply through some questions.

01. Should Ganesha-Lakshmi be placed on the main door of the house?

Lord Ganesha and Goddess Mahalakshmi should never be placed on the main door which opens outside.

02. Can Lord Ganesha and Goddess Mahalakshmi be placed inside the house?

Yes, you can place Lord Ganesha and Goddess Mahalakshmi on the main door which opens inside.

03. Is there any significance of any specific direction with Lord Ganesha and Goddess Mahalakshmi?

Gods are never tied to any direction. Just keep in mind that Lord Ganesha should be on your right side and Goddess Mahalakshmi should be on your left side.

04. Whom is it appropriate and best to place on the main door of the house?

On the upper wall of the main door of the house which opens towards outside, place Panchmukhi Hanumanji or Panchmukhi Ganeshji in a sitting position according to your faith.

05. What color should be on the main door of the house and what should be the height of the main door and the inner walls?

It is best to have white or any light color on the main door of the house. The height of the main door of the house should be at least 7 feet and the height of the inner walls should be at least 11 feet.

06. How to protect your house from unnecessary negative energy or evil eyes?

Put a medium-sized square mirror on the main door of your house which opens towards outside and also keep a garland of Ashoka tree leaves.

– Guru Satyaram

ऐसा करेंगे तो बुध ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

ऐसा करेंगे तो बुध ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हमारे नवग्रहों में सबसे छोटे ग्रह बुध हैं। ज्योतिष शास्त्र में बुध ग्रह को ग्रहों का राजकुमार माना गया है। बुध ग्रह सूर्य ग्रह के सर्वाधिक निकट हैं, इसलिए यह आधा गर्म और आधा ठंडा बने रहते हैं। इसी बीच के तापमान के कारण यहां जीवन संभव नहीं है। जो भी वस्तु बीच में अर्थात केंद्र में होगी वह बुध ग्रह को दर्शाती है। बुध ग्रह को बुद्धि का देवता भी कहा गया है। यह द्विस्वभाव वाला ग्रह है। काल पुरुष की कुंडली में चंद्र राशि मिथुन(3) एवम चंद्र राशि कन्या(6) पर बुध ग्रह का स्वामित्व होता है। बुध ग्रह कन्या राशि में उच्च स्वभाव को धारण करते हैं तथा मीन राशि(12) में नीच स्वभाव को धारण करते हैं। बुध ग्रह उत्तर दिशा के स्वामी माने जाते हैं। सूर्य ग्रह तथा शुक्र ग्रह इनके परम मित्र माने जाते हैं। मंगल ग्रह और चंद्रमा ग्रह से बुध ग्रह परम शत्रुता रखते हैं। बृहस्पति ग्रह और शनि ग्रह ना मित्रों की गणना में आते हैं और ना ही शत्रुओं की गणना में आते हैं। अर्थात यह दोनों ग्रह बुध ग्रह के लिए सम ग्रह आते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बुध ग्रह की महादशा 17 वर्षों तक चलायमान रहती है। यह हरित ऊर्जा से जन्मी खुशहाली के भी कारक बने रहते हैं। बुध ग्रह के ऊर्जा गुणों से प्रभावित जातक हर बात पर हंसना, सम्मुख जातक से स्वयं से ही बोलना तथा हर बात पर मजाक करते रहना दिल से पसंद करते हैं। हमारे शरीर में समस्त नसों के कारक भी बुध ग्रह ही होते हैं। बुध ग्रह व्यापार को भी दर्शाते हैं इसलिए यह एक सफल व्यापारी बनने की क्षमता भी प्रदान करते हैं। बुध ग्रह हमारे शरीर में त्वचा का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। बुध ग्रह जितने अच्छे होंगे उतना ही जातक में ज्ञान ग्रहण करने की क्षमता प्रबल होगी। बुध ग्रह एकमात्र ऐसे ग्रह हैं जो जातक को किसी भी परिस्थिति में ढलने की कला एवम क्षमता को प्रदान करते हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जातक का उत्तम व्यापार, उसकी छोटी और बड़ी बहनें, उसके परिवार में बुआ, उसके व्यापार से संबंधित अकाउंट, उसके जीवन में गणित विद्या की जानकारी, तथा ज्योतिष विद्या में गहरी गणनाएं बुध ग्रह की शक्ति में ही निहित होती हैं। ज्योतिष विद्या में बुध ग्रह अपने इन विशिष्ट गुणों के साथ में जिस भी ग्रह के साथ कुंडली में बैठता है तो उसके भी फल प्रदान करता रहता है। यह ग्रह तो छोटा सा ही है लेकिन इसका स्वभाव अति तेज और तर्रार है। ज्योतिष विद्या में 27 नक्षत्रों में से बुध ग्रह को आश्लेषा नक्षत्र, ज्येष्ठा नक्षत्र तथा रेवती नक्षत्र का स्वामि पद प्राप्त है। ऐसे जातक जिनका बुध ग्रह बली होता है वें संवाद तथा संचार के क्षेत्रों में निश्चित सफलता प्राप्त करते जाते हैं। बुध ग्रह से प्रभावित जातक हास्य और विनोद के वातावरण में अधिक अच्छा महसूस करते हैं। ऐसे जातक तीव्र बुद्धि के स्वामी, कूटनीतिज्ञ और राजनीति के क्षेत्रों में कुशल व्यवहार के स्वामी होते हैं। जातक के शरीर में नसों का दिखाई देना भी बुध ग्रह का ही प्रभाव है। बुध ग्रह की सौम्यता जातक को शिल्प कला के क्षेत्रों का हुनर भी प्रदान करती है। तथा आगे चलकर इन्हीं क्षेत्रों का पारखी भी बनाती है। आइए अब हम जानते हैं कि ऐसी कौन सी गलतियां हैं जिनके कारण से हमारा बुध ग्रह हमें अच्छे और शुभ प्रभाव नहीं देता है।

07 गलतियां जो आपके बुध ग्रह को हमेशा के लिए खराब कर देंगी

01. रसोई में मिट्टी के मटके को खाली रखना और 1 वर्ष पुराने मटके को पुनः प्रयोग में लाना।
02. अपनी पुत्री को केवल दूसरे घर की अमानत समझकर उसका लालन-पोषण करना।
03. बिना अर्थ के लगातार हमेशा झूठ बोलना और गूंगे दिव्यांग या जिनकी जुबान थथलाती हो और जो हकलाकर बोलते हों उनका मजाक बनाना।
04. भाई सामान मित्र से व्यर्थ का झगड़ा करना या उससे बुरी भावना रखते हुए पैसे मांगना और सामर्थ्य होते हुए भी उसके पैसे नहीं लौटाना।
05. बुधवार के दिन बिना जांच पड़ताल किए पैसे उधार देना और अकारण अधिक रात्रि के समय सिर धोना या सिर में तेल से मालिश करना।
06. किसी भी रूप में छोटी कन्याओं या किन्नर समाज को बहुत बुरे ढंग से अपशब्द कहना।
07. घर में तिज़ोरी या गुल्लक का ना होना। स्वयं की छोटी बहन पर हाथ उठाना या लात मारना।
– गुरु सत्यराम
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If you do this, mercury can be bad for your whole life (Hindi & English)

According to Jyotish Shastra, Mercury is the smallest planet among our nine planets. In Jyotish Shastra, Mercury is considered the prince of planets. Mercury is the closest to the Sun, so it remains half hot and half cold. Life is not possible here due to the temperature in between. Whatever object is in the middle, that is, in the center, represents Mercury. Mercury is also called the god of wisdom. It is a planet with dual nature. In the horoscope of Kaal Purush, Mercury owns the Moon sign Gemini (3) and the Moon sign Virgo (6). Mercury has a high nature in Virgo and a low nature in Pisces (12). Mercury is considered the lord of the north direction. Sun and Venus are considered its best friends. Mercury has extreme enmity with Mars and Moon. Jupiter and Saturn are neither counted as friends nor as enemies. That is, both these planets are equal planets for Mercury. According to astrology, the Mahadasha of Mercury lasts for 17 years. It also remains the factor of happiness born from green energy. The people influenced by the energy qualities of Mercury like to laugh at everything, talk to themselves and keep joking about everything. Mercury is also the factor of all the nerves in our body. Mercury also represents business, hence it also provides the ability to become a successful businessman. Mercury also represents the skin in our body. The better the Mercury is, the stronger will be the ability of the person to acquire knowledge. Mercury is the only planet that provides the person with the art and ability to adapt to any situation.
According to astrology, the native’s good business, his younger and elder sisters, his aunt in the family, accounts related to his business, his knowledge of mathematics in his life, and deep calculations in astrology are all inherent in the power of Mercury. In astrology, Mercury gives the results of the planet with which it sits in the horoscope with these special qualities. This planet is small but its nature is very sharp and agile. In astrology, out of the 27 constellations, Mercury is the lord of Ashlesha constellation, Jyeshtha constellation and Revati constellation. Such natives whose Mercury is strong, achieve definite success in the fields of dialogue and communication. Natives influenced by Mercury feel better in an environment of humor and humour. Such natives are the owners of sharp intellect, diplomats and are skilled in politics. The presence of veins in the body of the native is also the effect of Mercury. The gentleness of Mercury also provides the native with the skill of craftsmanship. And later on, it also makes him an expert in these fields. Let us now know what are the mistakes due to which our planet Mercury does not give us good and auspicious effects.

07 Mistakes that will spoil your Mercury forever

01. Keeping an empty earthen pot in the kitchen and reusing a 1 year old pot.
02. Raising your daughter as if she is a trust of another house.
03. Constantly lying without any reason and making fun of dumb disabled people or those whose tongue trembles and who speak with a stammer.
04. Fighting with a friend who is like a brother for no reason or asking for money from him with bad intentions and not returning the money despite having the ability.
05. Lending money on Wednesday without any investigation and washing your head or massaging your head with oil late at night without any reason.
06. Using very bad words against small girls or transgender community in any form.
07. Not having a safe or a piggy bank in the house. Raising hands or kicking your own younger sister.
– Guru Satyaram

आपकी रसोई में छिपा है लक्ष्मी का खजाना (Hindi & English)

आपकी रसोई में छिपा है लक्ष्मी का खजाना (Hindi & English)

आज के वर्तमान युग में हमारी रसोई बहुत ही ज्यादा मॉर्डन होती जा रही है। हम हमारी रसोई को आधुनिक गैजेट्स से परिपूर्ण बनाकर रखते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा की रसोई भी हमारे लाइफस्टाइल का एक अहम हिस्सा बन चुकी है। रसोई पूर्णतः राहुग्रह को संकेत करती है। पहले के घरों में रसोई इतनी बड़ी होती थी कि घर का प्रत्येक सदस्य वहीं बैठकर गर्मागर्म भोजन का आनंद लिया करता था। परंतु आज की वर्तमान परिस्थितियों में हमारी प्यारी रसोई पहले की अपेक्षा काफी छोटी होती जा रही है। ऐसा कहा जाता है कि रसोई में बैठकर भोजन करने से हमारा राहुग्रह अच्छा रहता है। और राहुग्रह इस कलयुग का राजा ग्रह माना जाता है जो जातक को बहुत ही तीव्र गति से धन प्रदान करने की क्षमता रखता है। अर्थात अगर आप आगे बताई गई बातों का ध्यान अपनी रसोई में बनाकर रखते हैं तो आपके ऊपर लक्ष्मीजी की कृपा स्थाई रूप से बनी रहेगी।

किचन में इन 09 बातों का ध्यान रखकर आप भी धनवान बन पाएंगे

1. नमक, हल्दी, दूध, आंटा, चावल, सरसों का तेल कभी भी पुर्णरूप से खत्म नहीं होने चाहिएं तथा जब भी इन्हें लाएं तो हमेशा दुगनी मात्र में ही लेकर आएं।

2. अपनी गृहस्थी के शुरुआती समय के तवे को कभी भी किचन से बाहर नहीं करें। अगर संभव हो तो समयानुसार उसको प्रयोग में लाते रहें।

3. प्रातः समय पहली रोटी बनाने से पहले “मां अन्नपूर्णा” के मंत्र से पूर्ण गरम तवे पर दूध की छीटें मारकर ही रसोई पकाएं।

4. रसोई में प्रयोग होने वाले नमक ओर चीनी को 11 लौंग डालकर सिर्फ और सिर्फ कांच के मर्तबान में ही रखें।

5. रसोई में हमेशा स्नान उपरांत या हाथ जोड़कर ही प्रवेश करें और सर्वप्रथम चूल्हे की अग्नि को प्रज्वलित कर प्रणाम करके ही दूसरा कार्य शुरू करें।

6. किचन में प्रयोग होने वाले चकले, बेलन, परांत और तवे को कभी भी अन्य झूठे बर्तनों के साथ नहीं रखें।

7. किचन में कभी भी मंदिर नहीं होना चाहिए और रात्रि को कभी भी झूठे बर्तन नहीं छोड़ने चाहिएं।

8. तवा, चकला, बेलन, परांत और चिमटे को घर की स्त्री स्वयं साफ करें। किसी भी सफाई कर्मचारी से ये 5 चीजें ना साफ करवाएं।

9. किचन की दीवारों पर हमेशा सफेद या कोई भी हल्का रंग ही होना चाहिए तथा रात्रि को किचन के कार्यों के समापन पर एक मिट्टी के दीए में 1 कपूर और लौंग का 1 जोड़ा जलाकर हाथ जोड़ लिया करें।

– गुरु सत्यराम

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Lakshmi’s treasure is hidden in your kitchen (Hindi & English)

In today’s era, our kitchen is becoming very modern. We keep our kitchen full of modern gadgets. It would not be wrong to say that the kitchen has also become an important part of our lifestyle. The kitchen completely indicates Rahu. In earlier houses, the kitchen was so big that every member of the house used to sit there and enjoy hot food. But in today’s current circumstances, our beloved kitchen is becoming much smaller than before. It is said that eating food while sitting in the kitchen keeps our Rahu planet good. And Rahu planet is considered to be the king planet of this Kaliyug, which has the ability to provide wealth to the person at a very fast pace. That is, if you keep the things mentioned below in mind in your kitchen, then the blessings of Lakshmiji will remain on you permanently.

By keeping these 9 things in mind in the kitchen, you will also be able to become rich

1. Salt, turmeric, milk, flour, rice, mustard oil should never be finished completely and whenever you bring them, always bring double the quantity.

2. Never take out the pan from the kitchen from the beginning of your household. If possible, keep using it according to the time.

3. Before making the first roti in the morning, sprinkle milk on the hot pan and cook with the mantra of “Maa Annapurna”.

4. Add 11 cloves to the salt and sugar used in the kitchen and keep it only in a glass jar.

5. Always enter the kitchen after taking a bath or with folded hands and first of all light the fire of the stove and bow down before starting any other work.

6. Never keep the chakla, belan, paraant and tawa used in the kitchen with other dirty utensils.

7. There should never be a temple in the kitchen and dirty utensils should never be left at night.

8. The woman of the house should clean the tawa, chakla, belan, paraant and tongs herself. Do not get these 5 things cleaned by any cleaning staff.

9. The walls of the kitchen should always be white or any light colour and at the end of the kitchen work at night, light 1 camphor and 1 pair of cloves in an earthen lamp and fold your hands.

– Guru Satyaram

ऐसा करेंगे तो चंद्रमा ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं(Hindi & English)

ऐसा करेंगे तो चंद्रमा ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं(Hindi & English)

हमारे समस्त नवग्रहों में केवल चंद्रमा ग्रह ही एक ऐसेंग्रह हैं जिनकी गोचर की गति सबसे तीव्र होती है. इसी कारण से चंद्रमा ग्रह किसी भी राशि में सबसे कम समय के लिए ही गोचर करते हैं। चंद्रमा ग्रह लगभग सवा दो दिनों में ही एक राशि से दूसरी राशि में अपनी यात्रा को पूर्ण कर लेते हैं। वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मासिक, साप्ताहिक राशिफल की गणना करने के लिए अमुक जातक की चंद्र राशि को ही आधार बनाकर गणना की जाती है। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि नाम से कभी भी कोई राशि नहीं होती है।

वैदिक ज्योतिष के अनुसार चंद्रमा ग्रह को एक शुभ ग्रह माना जाता है। ज्योतिष विद्या में जहां सूर्य ग्रह को पिता का मूल कारक माना जाता है तो वहीं चंद्रमा ग्रह को माता का मूल कारक ग्रह माना जाता है। चंद्रमा ग्रह कर्क राशि के स्वामी हैं। इसके साथ में रोहिणी नक्षत्र, हस्त नक्षत्र और श्रावण नक्षत्र के स्वामी भी होते हैं। वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा ग्रह जातक के मन, उसके मनोबल, बांयी आंख और छाती के कारक ग्रह आने जाते हैं। जातक की लग्न कुंडली में चंद्रमा ग्रह अगर प्रथम भाव में होते हैं तो व्यक्ति देखने में बहुत ही रूपवान, अत्यंत कल्पनाशील, गहराई से भावुक, अत्यधिक संवेदनशील और स्थाई रूप से साहसी होता है।

जातक की कुंडली में केवल चंद्रमा ग्रह के मजबूत होने से ही जातक मानसिक रूप से अत्यंत मजबूत और स्थाई रूप से सुखी बना रहता है। ऐसा जातक अपनी माताश्री के बेहद करीब होता है। इसके स्थान पर अगर जातक की कुंडली में चंद्रमा ग्रह कमजोर होता है तो वह जातक मानसिक रूप से अत्यधिक कमजोर होता है तथा उसकी स्मरण शक्ति भी काफी क्षीण बनी रहती है। चंद्रमा ग्रह के कमजोर होने से जातक अपने मुश्किल और संघर्ष से पूर्ण समय में आत्महत्या तक करने की कोशिश भी कर सकता है। अगर किसी भी व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा ग्रह अन्य किसी भी पापी ग्रह से पीड़ित रहते हैं तो व्यक्ति के स्वास्थ्य विशेषतः उसके उदर स्थान पर नकारात्मक प्रभाव देखने को मिल सकता है।

7 गलतियां जो आपके चन्द्रमा ग्रह को हमेशा के लिए खराब कर देंगी

1. किसी भी तीर्थ के बहते हुए जल में बगैर नित्य शुद्धि कर्म किए और बगैर प्रणाम किए स्नान या स्पर्श करना।

2. किसी भी तीर्थ के बहते हुए जल में पुराने वस्त्रों को पहने हुए स्नान करना तथा पहने हुए कपड़ों को साफ करना।

3. किसी भी तीर्थ के बहते हुए जल में लघुशंका करना, स्त्री दर्शन करना और शत्रु विनाश की प्रार्थना करना।

4. किसी भी बुजुर्ग विधवा स्त्री को विशेषतः पूर्णमासी तिथि में तिथि रहते और अमावस्या तिथि में सूर्य प्रकाश रहते अपशब्द कहना।

5. दिव्यांग बच्चों विशेषतः मानसिक विकार से पीड़ित मंदबुद्धि बच्चों को कुछ भी अपशब्द सामने या पीठ पीछे भी कहना।

6. नित्य भोजन करते समय जल देवता के अभाव में बगैर भोग लगाए अन्न को ग्रहण करते रहना।

7. अपनी जन्म देने वाली माता का केवल धर्म आधार पर उनका हृदय दुखाना या भक्ति मार्ग में मां शक्ति की तपस्या करते समय उनका हृदय दुखाना।

Guru SatyaRam
Guru SatyaRam

– गुरु सत्यराम

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If you do this, the Moon can be ruined for your entire life (Hindi & English)

Among all our nine planets, the Moon is the only planet whose transit speed is the fastest. For this reason, the Moon transits in any zodiac sign for the shortest time. The Moon completes its journey from one zodiac sign to another in about two and a quarter days. According to Vedic astrology, to calculate monthly and weekly horoscopes, the Moon sign of a particular person is taken as the basis. It should also be kept in mind that there is never a zodiac sign by name.

 

According to Vedic astrology, Moon is considered an auspicious planet. In astrology, while Sun is considered the basic factor of father, Moon is considered the basic factor of mother. Moon is the Lord of Cancer zodiac. Along with this, it is also the Lord of Rohini Nakshatra, Hasta Nakshatra and Shravan Nakshatra. In Vedic astrology, Moon is considered the factor of person’s mind, morale, left eye and chest. If Moon is in the first house in the native’s Lagna Kundali, then the person is very beautiful, highly imaginative, deeply emotional, highly sensitive and permanently courageous.

Only if the Moon planet is strong in the horoscope of a person, then the person remains mentally very strong and permanently happy. Such a person is very close to his mother. Instead, if the Moon planet is weak in the horoscope of a person, then that person is mentally very weak and his memory power also remains very weak. Due to the weak Moon planet, the person can even try to commit suicide in his difficult and struggle-filled time. If the Moon planet is afflicted by any other sinful planet in the horoscope of any person, then negative effects can be seen on the health of the person, especially on his abdomen.

7 mistakes that will spoil your moon forever

1. Bathing or touching the flowing water of any pilgrimage without performing daily purification rituals and without paying obeisance.

2. Bathing in the flowing water of any pilgrimage wearing old clothes and cleaning the worn clothes.

3. Urinating in the flowing water of any pilgrimage, seeing a woman and praying for the destruction of the enemy.

4. Using abusive language to any elderly widow woman, especially on the full moon day and during the sun’s light on the new moon day.

5. Using abusive language to handicapped children, especially mentally retarded children suffering from mental disorders, either in front of them or behind their back.

6. Consuming food without offering it to the water god while eating daily.

7. Hurting the heart of your mother who gave birth to you only on the basis of religion or hurting her heart while doing penance of Maa Shakti in the path of devotion.

Guru SatyaRam
Guru SatyaRam

– Guru Satyaram

सौभाग्य और लक्ष्मी की प्राप्ति कैसे करें?(Hindi & English)

सौभाग्य और लक्ष्मी की प्राप्ति कैसे करें?(Hindi & English)

हमेशा ही कर्मों से उत्तम भाग्य का निर्माण होता है और उत्तम भाग्य के आधार पर ही उत्तम लक्ष्मी अर्थात धन का आगमन आपके जीवन में होता है। नियम बहुत ही सरल है या तो पूर्व जन्मों के पुण्यों से भाग्य की प्राप्ति होगी या फिर वर्तमान जन्म में पूर्ण संकल्पित कर्मों से भाग्य जागेगा। इसके साथ में कभी ऐसा भी देखना संभव रह सकता है कि सभी कुछ उत्तम किया जाता है परंतु घर चलाना भी मुश्किल बना रहता है। अब जब बात घर और परिवार पर आ जायेगी तो हमें भीड़ से थोड़ा हटते हुए कुछ विशिष्ट उपायों की शरण में अवश्य जाना चाहिए। इन उपायों के माध्यम से बस हमें वह दिखना प्रारंभ हो जाता है जो होता तो ठीक हमारे सामने ही है लेकिन हमारे बुरे प्रारब्ध के कारण अपना प्रकाश नहीं बिखेर पाता। आपकी सुविधा हेतु मैं आपको 09 सरल उपाय अपने अनुभव के आधार पर बता रहा हूं, जिनकी पालना करते रहने से आपको सौभाग्य और श्रीलक्ष्मी की सरल प्राप्ति संभव रहेगी।

सौभाग्य और लक्ष्मी प्राप्ति के लिए 9 सरल उपाय

1. किसी भी बुधवार या शुक्रवार को किन्नरों को उनके स्थान पर जाकर 1 हरी साड़ी, 1 किलो हरी मिठाई और श्रद्धा अनुसार दक्षिणा दें और उनसे प्रार्थना करें कि आपके सिर पर हाथ रखकर आपको आशीर्वाद दें और आशीर्वाद रूप में उनसे कुछ रुपए मांगे। मिलने वाले रुपयों के बदले में आप फिर से कुछ दक्षिणा उन्हें अर्पण करें। मिले हुए रुपयों को हमेशा संभाल कर रखें।

2. अपनी बड़ी बहन को किसी भी बुधवार वाले दिन उनकी पसंद अनुसार कुछ भी वस्त्र और मीठा भेंट करें और अपने सामर्थ्य अनुसार उन्हें कुछ रुपए भेंट करें। अब उनके चरण स्पर्श करते हुए अपनी समस्या कहें और आशीर्वाद रूप में उनसे कुछ रुपए मांगे। मिले हुए रुपयों को अपने धन स्थान में रखें।

3. किसी भी शनिवार को अपनी सामर्थ्य अनुसार 9 वर्ष तक की 11 कन्याओं को उनके पसंद अनुसार कुछ भी चप्पल या जूते भेंट करें।

4. 1 वर्ष तक लगातार किसी भी गुरुवार से शुरू करते हुए प्रत्येक गुरुवार किसी भी कर्मकांडी ब्राह्मणदेव को आदरपूर्वक निमंत्रण देकर घर पर आमंत्रित करें। उनकी रुचि अनुसार उन्हें भोजन कराएं और सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा देकर और आशीर्वाद लेकर उन्हें विदा करें।

5. नित्य अपने घर में और पड़ोस एवम् समाज में मौजूद बुजुर्गों के चरण स्पर्श करा करें। उन्हें अपनी समस्याएं बताते रहा करें और उनकी भी सेवा कर आशीर्वाद प्राप्त करते रहा करें।

6. किसी भी पूर्णिमा को तिथि रहते हुए बुजुर्ग विधवा माता की अपने सामर्थ्य अनुसार उनकी सेवा करें। कुछ देर उनके पास बैठें अपनी समस्याएं उन्हें बताएं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते रहें।

7. किसी भी दिन और किसी भी समय सड़क पर रहने वाली गर्भवती कुत्तिया को मूंग की दाल का हलवा खिलाया करें।

8. किसी भी गर्भवती स्त्री की गोदभराई के शुभ अवसर पर जोड़े से उनकी पसंद अनुसार लाल साड़ी भेंट करें और उनकी प्रसन्नता का आशीर्वाद प्राप्त करें।

 

9. नित्य काली या लाल गौमाता के माथे को स्पर्श करके अपने कंठ पर लगाया करें और गौमाता की पीठ पर 11 बार हाथ फेरा करें।

Guru SatyaRam
Guru SatyaRam

– गुरु सत्यराम

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How to attain good luck and Lakshmi? (Hindi & English)

Good luck is always created by actions and on the basis of good luck, good Lakshmi i.e. wealth comes into your life. The rule is very simple, either you will get luck from the virtues of previous births or luck will awaken in the present birth with fully determined actions. Along with this, it may be possible to see sometimes that everything is done well but running the house also remains difficult. Now when it comes to home and family, we must move away from the crowd and take refuge in some special measures. Through these measures, we start seeing what is right in front of us but is not able to spread its light due to our bad destiny. For your convenience, I am telling you 09 simple measures based on my experience, by following which you will be able to easily attain good luck and Shri Lakshmi.

9 simple remedies for getting good luck and Lakshmi

1. On any Wednesday or Friday, go to the place of eunuchs and give them 1 green sari, 1 kg of green sweets and dakshina as per your faith and pray to them to bless you by placing their hand on your head and ask for some money from them as blessings. In return for the money you get, offer them some dakshina again. Always keep the money you get safely.

2. On any Wednesday, gift your elder sister some clothes and sweets as per her choice and gift her some money as per your capacity. Now touch her feet and tell her your problem and ask for some money from her as blessings. Keep the money you get in your money place.

3. On any Saturday, gift slippers or shoes as per your capacity to 11 girls up to the age of 9 as per their choice.

4. Starting from any Thursday for 1 year, every Thursday invite any ritualistic Brahmin to your home with respect. Feed him food according to his liking and send him off after giving dakshina according to your capacity and taking his blessings.

5. Every day touch the feet of the elders present in your house, neighbourhood and society. Keep telling them your problems and keep serving them and getting their blessings.

6. On any full moon day, during the tithi, serve an elderly widowed mother according to your capacity. Sit near her for some time, tell her your problems and keep getting her blessings.

7. On any day and at any time, feed moong dal halwa to a pregnant dog living on the street.

8. On the auspicious occasion of any pregnant woman’s godh bharai, gift the couple a red saree of their choice and get the blessings of their happiness.

9. Touch the forehead of a black or red cow every day and place it on your throat and stroke the back of the cow 11 times.

Guru SatyaRam
Guru SatyaRam

– Guru Satyaram

श्री गणेश चतुर्थी 2024(Hindi & English)

श्री गणेश चतुर्थी 2024(Hindi & English)

हमारे सनातन धर्म में सर्वप्रथम पूजनीय श्री गणेश जी के पूजन का विस्तृत विधान है। गणेश, गजानन या गणपति के श्रीपूजन और आह्वान के मंत्रों का वेदों में भी वर्णन है। मूलतः श्रीगणपति पंच वैदिक देवों में से एक माने जाते हैं। हमारे सनातन धर्म में किसी भी मांगलिक कार्य का शुभारंभ सर्वप्रथम श्रीगणेश पूजन से ही किया जाता है। ये सभी देवों में सर्वप्रथम पूजनीय हैं। अतः किसी शुभ कार्य के आरंभ को “श्री गणेश करना” भी कहते हैं।

भविष्य पुराण में यह कहा गया है कि जब-जब मनुष्य भारी संकट और कष्ट में हो, या निकट भविष्य में किसी बड़ी विपदा की आशंका हो तो उसे चतुर्थी के व्रत करने चाहिए। इस व्रत को करने से सभी कष्ट दूर होकर, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

क्यों मनाते हैं गणेश चतुर्थी?

कहा जाता है कि इंद्रदेव की पत्नी देवी रति द्वारा दिये गए श्राप के कारण देवी पार्वती अपने गर्भ से संतान को जन्म नहीं दे सकतीं थीं। अतः जब शिव ध्यानावस्था में कई वर्षों के लिए समाधि में चले गए तब पार्वती अपने एकांत के कारण घबरा उठीं। एक दिन वे उबटन स्नान कर रहीं थीं। तब शरीर से उतरे उबटन से उन्होंने एक बालक की आकृति बनाई और अपने योग शक्ति से उसमें प्राण डाल दिए। इस प्रकार गणेश जी का जन्मावतार हुआ। उस दिन भाद्रपद मास की चतुर्थी तिथि थी। तब से इस दिन को गणेश जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।

क्यों रखे जाते हैं 10 दिनों तक गणपति?

यह कथा महर्षि वेदव्यास के महाभारत लेखन से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि भाद्रपद मास की चतुर्थी तिथि से महर्षि वेदव्यास द्वारा प्रार्थना करने पर गणेश जी नें महाभारत के श्लोकों को लिपिबद्ध करना प्रारम्भ किया था। इस कार्य में उन्हें 10 दिन लगे थे। 10 दिनों तक लगातार एक ही मुद्रा में बैठे रहने से उनके शरीर पर धूल मिट्टी जम गई थी और शरीर मे अकड़न हो गयी थी। तब वे सरस्वती नदी में में स्नान करके स्वच्छ हुए। इस कार्य में उन्हें 10 दिन लगे थे। 10 दिनों तक लगातार एक ही मुद्रा में बैठे रहने से उनके शरीर पर धूल मिट्टी जम गई थी और शरीर मे अकड़न हो गयी थी। तब वे सरस्वती नदी में में स्नान करके स्वच्छ हुए। उस दिन अनन्त चतुर्दशी थी। तब से दस दिनों तक गणपति को विराजमान करा के ग्यारहवें दिन उनके विसर्जन की परिपाटी शुरू हुई।

आज भारत के कई राज्यों में बड़े बड़े पंडाल लगाकर गणेश जी की मूर्ति स्थापित करके बहुत ही धूमधाम से दस दिनों तक यह त्यौहार मनाने की परंपरा है। वर्ष 2024 में गणेश चतुर्थी दिन शनिवार, 7 सितंबर को मनाई जायेगी।

क्या है गणेश चतुर्थी व्रत की कथा?

सतयुग में नल नामक एक बहुत पराक्रमी राजा थे, जिनकी दमयंती नामक अत्यंत रूपवती पत्नी थी और एक बहुत आज्ञाकारी पुत्र भी था। राजा अपने परिवार में सभी सुखों को भोगते हुए कुशलता पूर्वक अपने राज काज में सलंग्न रहते थे। एक बार कालचक्र की विषम परिस्थितियों के कारण राजा का महल आग में जल गया और उन्हें पत्नी पुत्र सहित जंगल में दर-दर भटकना पड़ा। इसी क्रम में सभी एक दूसरे से बिछुड़ गए। रानी दमयंती भटकती हुई और विलाप करती हुई शरभंग ऋषि के आश्रम में जा पहुंची और करुण स्वर में अपनी व्यथा ऋषि को सुनाने लगी। तब ऋषि शरभंग नें उन्हें श्रीगणेश पूजन और व्रत का महात्म्य बताया और कहा कि गणेश जी तुम्हारे सभी कष्टों और दुखों को हर लेंगे। तब रानी में निराहार और निर्जल रहकर दस दिनों तक गणेश जी की पूजा उपासना की। इससे भगवान गणेश जी ने प्रसन्न होकर राजा रानी का राज पाट और सुख सौभाग्य वापस दिलवा दिया। तब से हमारी सनातन परंपरा में गणेशोत्सव की प्रथा प्रारम्भ हुई।

क्यों होता है गणेश चतुर्थी पर चन्द्र दर्शन का निषेध?

इसकी भी एक अद्भुत कथा है। एक बार भगवान गणेश अपने वाहन मूषक पर सवार होकर कहीं जा रहे थे। तभी रास्ते में मूषक के ठोकर खाने से गणेश जी गिर पड़े। यह देखकर चंददेव जोरों से हंस पड़े और मजाक उड़ाने लगे। तब गणेश जी नें चन्द्र देव को श्राप दिया कि भादो शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि को जो भी चन्द्र दर्शन करेगा, उसे चोरी के झूठे कलंक का सामना करना पड़ेगा। कहा जाता है कि महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण पर स्यमन्तक मणि के चोरी करने का झूठा आरोप लगा था। क्योंकि उन्होंने चतुर्थी तिथि के चन्द्र का दर्शन कर लिया था।तब नारद ऋषि नें उन्हें बताया कि गणेश चतुर्थी व्रत करने से आप कलंक मुक्त हो जाएंगे। तब भगवान श्री कृष्ण ने भी गणेश चतुर्थी पूजन की प्रथा प्रारम्भ की थी।

– ज्योतिषाचार्य ऋचा श्रीवास्तव

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Shri Ganesh Chaturthi 2024 (Hindi & English)

In our Sanatan Dharma, there is a detailed ritual of worshiping Shri Ganesh ji, the most revered. The mantras of Shri Puja and invocation of Ganesh, Gajanan or Ganapati are also described in the Vedas. Basically, Shri Ganapati is considered one of the Panch Vedic Gods. In our Sanatan Dharma, any auspicious work is started first with the worship of Shri Ganesh. He is the first to be worshiped among all the gods. Therefore, the beginning of any auspicious work is also called “Shri Ganesh Karna”.

It is said in Bhavishya Purana that whenever a person is in great trouble and pain, or there is a possibility of a big disaster in the near future, then he should observe the fast of Chaturthi. By observing this fast, all the troubles are removed and Dharma, Artha, Kama and Moksha are attained.

Why do we celebrate Ganesh Chaturthi?

It is said that due to the curse given by Indradev’s wife Devi Rati, Goddess Parvati could not give birth to a child from her womb. So when Shiva went into meditation for many years, Parvati got worried due to her solitude. One day she was taking a bath with Ubtan. Then she made the shape of a child from the Ubtan that came off her body and breathed life into it with her yogic powers. Thus Ganesha was born. That day was the Chaturthi Tithi of Bhadrapad month. Since then, this day is celebrated as the birthday of Ganesha.

Why is Ganapati kept for 10 days?

This story is related to Maharishi Ved Vyas’ writing of Mahabharata. It is said that on the Chaturthi Tithi of Bhadrapad month, on Maharishi Ved Vyas’s prayers, Ganesh ji started writing the verses of Mahabharata. It took him 10 days to complete this work. Due to sitting in the same posture for 10 days, dust and dirt had accumulated on his body and his body had become stiff. Then he bathed in the Saraswati river and cleaned himself. It took him 10 days to complete this work. Due to sitting in the same posture for 10 days, dust and dirt had accumulated on his body and his body had become stiff. Then he bathed in the Saraswati river and cleaned himself. That day was Anant Chaturdashi. From then onwards, the tradition of keeping Ganapati seated for ten days and then immersing him on the eleventh day started.

Today, in many states of India, there is a tradition of celebrating this festival for ten days with great pomp by erecting large pandals and installing the idol of Ganesha. In the year 2024, Ganesh Chaturthi will be celebrated on Saturday, 7 September.

What is the story of Ganesh Chaturthi Vrat?

In Satyug, there was a very powerful king named Nala, who had a very beautiful wife named Damyanti and a very obedient son. The king used to enjoy all the comforts of his family and was skillfully engaged in his royal duties. Once due to the adverse circumstances of the time cycle, the king’s palace burned down in fire and he had to wander from door to door in the forest along with his wife and son. In this process, everyone got separated from each other. Queen Damyanti, wandering and lamenting, reached the ashram of Sharabhang Rishi and started telling her sorrow to the sage in a sad voice. Then Rishi Sharabhang told her the significance of Shri Ganesh worship and fasting and said that Ganesh ji will take away all your troubles and sorrows. Then the queen stayed without food and water and worshipped Ganesh ji for ten days. Lord Ganesh ji was pleased with this and got the king and queen back their kingdom and happiness and good fortune. Since then the tradition of Ganeshotsav started in our eternal tradition.

Why is Chandra Darshan prohibited on Ganesh Chaturthi?

There is a wonderful story behind this. Once Lord Ganesha was going somewhere on his vehicle, a mouse. Then Ganesha fell down after being hit by a mouse on the way. Seeing this, Chanddev started laughing loudly and started making fun of him. Then Ganesha cursed Chandra Dev that whoever sees Chandra on the Chaturthi Tithi of Bhado Shukla Paksha will have to face the false accusation of theft. It is said that during the Mahabharata period, Lord Krishna was falsely accused of stealing the Syamantaka Mani. Because he had seen the moon on Chaturthi Tithi. Then Sage Narad told him that by observing Ganesh Chaturthi fast, he will be free from the accusation. Then Lord Krishna also started the practice of Ganesh Chaturthi worship.

– Astrologer Richa Shrivastava

कोर्ट केस और प्रशासनिक कार्यवाही से मुक्ति पाएं(Hindi & English)

कोर्ट केस और प्रशासनिक कार्यवाही से मुक्ति पाएं(Hindi & English)

कोर्ट के चक्करों में कैसे व्यक्ति तबाह हो जाता है?

इस युग का कुछ ऐसा प्रभाव होता जा रहा है कि आमजन की परेशानियां खत्म होने का नाम ही नहीं लेती हैं। हमारे समाज में किसी भी व्यक्ति पर कोर्ट केस हो जाए या किसी भी तरह की प्रशासनिक कार्यवाही हो जाए तो समाज यह नहीं देखता है कि भला हुआ क्या है? बस अपने निर्णयों को पीड़ित व्यक्ति एवम उसके परिवार पर थोपना शुरू कर देता है। इन विषम दुखों के प्रभाव से व्यक्ति शारीरिक रूप के साथ मानसिक रूप से भी प्रताड़ित होना शुरू हो जाता है। इसलिए यह भी सत्य है कि जिस भी व्यक्ति पर कोर्ट केस या प्रशासनिक कार्यवाही आ जाती है तो वह व्यक्ति एक प्रकार से तबाह ही हो जाता है।

आखिर क्यों आते हैं जीवन में कोर्ट केस और प्रशासनिक दंड?

सर्वप्रथम हमें यह समझना आवश्यक है कि जो कुछ भी जीवन में अच्छा या बुरा घटित होता है उसका सीधा संबंध हमारे प्रारब्ध के कर्मों से जुड़ा रहता है। जैसे कर्म रहेंगे वैसा फल मिलना भी निश्चित रहता है। कर्मों का लेन देन ही पूर्ण जीवन की गाथा बनी रहती है। हमारे कर्म और ग्रहीय व्यवस्था मिलकर हमें सम या विषम फल प्रदान करती है। अगर आपकी कुंडली में बृहस्पति और राहु एक साथ द्वादश भाव में विराजे हुए हैं, आपके वर्तमान कर्म भी विषम हैं तथा प्रारब्ध भी आकर खड़ा हो गया है तो यहां पूर्ण संभावना बनी रहेगी कि आपके ऊपर कोर्ट केस या प्रशासनिक कार्यवाही चलनी आरंभ हो जाए। मेरे अनुभव में कुछ ऐसे उपाय हैं जिनकी पालना करने से और ईश्वर की कृपा से आपको शीघ्र लाभ मिलना संभव रहेगा।

कोर्ट केस को जड़ से खत्म करने के लिए 7 सरल उपाय

1. किसी भी मंगलवार या शनिवार से शुरू करते हुए नित्य शाम 4 बजे पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर 11 पाठ बजरंग बाण के करें।

2. नित्य रात्रि भोजन के पश्चात 2 लौंग मुख में रख लें और हनुमान चालीसा का मन में पाठ करें और दक्षिण दिशा की तरफ सिर करके सो जाएं।

3. पुलिस स्टेशन या कोर्ट परिसर के अंदर लगे हुए पानी के नलकों से पानी पिया करें और दृष्टिहीन बच्चों को भोजन करवाएं।

4. किसी भी बुधवार से शुरू करते हुए 108 दिन तक लगातार शेर पर सवार मां दुर्गाजी पर 1 अनार फल अर्पण करें और वहीं बैठकर 32 नामावली की एक माला करें फिर दुर्गा सप्तशती में से सिद्ध कुंजिका स्तोत्र और क्षमा प्रार्थना करें।

5. किसी भी शनिवार से शुरू करते हुए 11 शनिवार लगातार सवा किलो कच्चा कोयला जल प्रवाह करा करें और संभव हो तो कोर्ट या जेल की कैंटीन से कुछ भी खाद्य सामग्री मंगाकर ग्रहण करा करें।

6. किसी भी बुधवार को किन्नरों के स्थान पर जाकर अपने सामर्थ्य अनुसार कुछ भी वस्त्र उन्हें भेंट करें और आशीर्वाद रूप में प्रार्थना करते हुए एक रक्षा सूत्र उनसे अपने हाथ या गले में बंधवा लें।

7. किसी भी बुधवार या शनिवार से शुरू करते हुए नित्य सांझ की संध्या या रात्रि के समय माता महाकाली के सम्मुख बैठकर शिव चालीसा पहले फिर काली चालीसा का पाठ करा करें।

Guru SatyaRam
Guru SatyaRam

– गुरु सत्यराम

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Get freedom from court cases and administrative proceedings(Hindi & English)

How does a person get destroyed in the court cases?

This era is having such an effect that the problems of the common man do not seem to end. In our society, if any person is subjected to a court case or any kind of administrative action, then the society does not see what good has happened? It just starts imposing its decisions on the victim and his family. Due to the effect of these strange sorrows, the person starts getting tortured mentally as well as physically. Therefore, it is also true that any person who is subjected to a court case or administrative action, that person gets destroyed in a way.

Why do we face court cases and administrative punishments in life?

First of all, we must understand that whatever good or bad happens in life is directly related to our destiny. The results are as per our deeds. The story of life is based on the give and take of our deeds. Our deeds and the planetary system together give us even or odd results. If Jupiter and Rahu are placed together in the 12th house in your Kundali, your current deeds are also odd and your destiny has also come and stood up, then there is a full possibility that a court case or administrative proceedings may start against you. In my experience, there are some such remedies, by following which and with the grace of God, it will be possible for you to get quick benefits.

7 simple remedies to end court cases from the root

1. Starting from any Tuesday or Saturday, sit under a Peepal tree at 4 pm every day and recite Bajrang Baan 11 times.

2. After dinner every night, keep 2 cloves in your mouth and recite Hanuman Chalisa in your mind and sleep with your head towards south.

3. Drink water from the water taps installed inside the police station or court premises and feed blind children.

4. Starting from any Wednesday, offer 1 pomegranate fruit to Maa Durgaji riding a lion for 108 days continuously and sit there and recite a rosary of 32 names, then recite Siddha Kunjika Stotra from Durga Saptashati and pray for forgiveness.

5. Starting from any Saturday, flow 1.25 kg raw coal in water for 11 Saturdays continuously and if possible, order some food items from the court or jail canteen and consume them.

6. On any Wednesday, go to the place of eunuchs and offer them some clothes according to your capacity and while praying for their blessings, get a protective thread tied on your hand or neck by them.

7. Starting from any Wednesday or Saturday, sit in front of Mata Mahakali every evening or night and recite Shiv Chalisa first and then Kali Chalisa.

Guru SatyaRam
Guru SatyaRam

– Guru Satyaram

क्या स्त्रियां भी श्रीहनुमान चालीसा का पाठ कर सकती हैं?(Hindi & English)

क्या स्त्रियां भी श्रीहनुमान चालीसा का पाठ कर सकती हैं?(Hindi & English)

श्री हनुमान चालीसा: एक संक्षेप विवरण

श्री हनुमान चालीसा अवधी भाषा में लिखी गई एक विशिष्ट काव्यात्मक कृति है। इस भक्ति रस से पूर्ण कृति में भगवान श्री रामचन्द्रजी के परम एवम महान भक्त श्रीहनुमान जी के गुणों, कार्यों एवम सेवा भाव का चालीस चौपाइयों के द्वारा वर्णन किया गया है। इसके रचयिता भगवान श्रीरामचन्द्रजी महाराज के अनन्य भक्त श्रीगोस्वामी तुलसीदास जी हैं।

श्री गोस्वामी तुलसीदासजी: जीवन परिचय

हर वर्ष उत्तम सावन मास के शुभ शुक्ल पक्ष की श्रेष्ठ सातवीं तिथि पर श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी की जयंती हम सभी भक्तजन मनाते हैं। श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी का जन्म संवत् 1554 में उत्तर प्रदेश के पवित्र चित्रकूट जिले के राजापुर गांव में हुआ था। इसी गांव में ही श्रीरामचरित मानस मंदिर है, जहां श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी ने यह ग्रंथ मात्र 966 दिनों में लिखा था। श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी संवत्‌ 1680 में इस मानव देह को त्यागते हुए प्रभु श्रीरामचंद्रजी महाराज के पावन चरणों की सेवा में विलीन हो गए थे।

श्री गोस्वामी तुलसीदासजी: एक विशिष्ट पूजनीय भक्त

यह भी कहा जाता है कि अपने जन्म के तुरंत बाद भी श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी रोए नहीं थे अपितु स्वाभाविक रोने के स्थान पर उनके श्रीमुख से भगवान श्रीसांब सदाशिव का परम प्रिय शब्द ‘राम’ निकला था। इस ईश्वरीय लीला के कारण ही बचपन में श्रीगोस्वामी तुलसीदासज़ी का नाम रामबोला था। ऐसा भी भक्तों के द्वारा कहा जाता है कि जन्म से ही श्रीगोस्वामी तुलसीदास जी के बत्तीस दांत थे।

श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी का जीवन

श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी के जन्म के कुछ समय पश्चात ही इनकी माताश्री हुलसी देवी का निधन हो गया था। इनके पिताश्री का नाम श्रीआत्माराम था। अपने बचपन से ही श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी(बालक रामबोला) संतों एवम विद्वानों की शरण में रहने लग गए थे। कुछ समय पश्चात ही बाबा श्री नरहरी जी ने इन्हें तुलसीदास नाम दिया था। बाबा।श्री नरहरी जी को श्री गोस्वामी तुलसीदासजी का गुरु माना जाता है। तुलसीदासजी की शादी देवी रत्नावली से हुई थी। विवाह के कुछ समय बाद ही वे अपनी धर्मपत्नी पत्नी से दूर हो गए थे और प्रभु श्रीरामजी की भक्ति में लीन हो गए।

श्री गोस्वामी तुलसीदासजी ने अपने 111 वर्ष के जीवन में कई अनुपम ग्रंथों की रचना की थी। इनमें श्रीरामचरित मानसजी सर्वाधिक प्रसिद्ध है। इस अलौकिक श्रीग्रंथ के सुंदरकांड का पाठ कई भक्तों की नियमित दिनचर्या है। विनय पत्रिका और श्रीहनुमान चालीसा की रचना भी श्रीगोस्वामी तुलसीदास ने की थी।

श्री हनुमान चालीसा को लिखने हेतु प्रेरणा स्रोत

भगवान श्री महादेवजी के कहने पर लिखा गया था श्रीरामचरित मानस। ऐसा माना जाता है कि श्री गोस्वामी तुलसीदासजी को स्वपन के माध्यम में भगवान शिव ने आदेश दिया था कि आप अपनी मातृ भाषा में काव्य रचना करो। मेरे श्री आशीष से आपकी रचना तृत्य वेद श्रीसामवेद की तरह ही फलवती होगी। ये स्वपन देखने के पश्चात तुलसीदाजी जाग गए। इसके कुछ समय पश्चात संवत् 1631 को श्रीरामनवमी के शुभ दिन वैसा ही योग बना जैसा त्रेतायुग में प्रभु श्रीरामचंद्रजी के शुभ अवतरण के समय था। उस दिन प्रातः समय तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस जी को लिखना प्रारंभ किया था।

श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी ने मात्र 966 दिन में लिखा था

श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी ने संवत् 1631 में श्रीरामचरित मानसजी लिखनी आरंभ की थी। संवत् 1633 के अगहन महीने के शुक्लपक्ष की शुभ पंचमी तिथि पर यह पवित्र ग्रंथ पूरा हो गया था। अर्थात इसे पूर्ण करने में पूरे 2 वर्ष, 7 माह और 26 दिनों का समय लगा था। यह भी कहा जाता है कि रचना पूर्ण होते ही श्रीतुलसीदासजी ने सबसे पहले ये ग्रंथ शिवजी को अर्पित किया था। फिर इसे लेकर श्रीतुलसीदासजी काशी गए और यह पवित्र ग्रंथ भगवान श्री विश्वनाथजी के मंदिर में रख दिया था। यह भी माना जाता है कि अगले दिन प्रातः समय उस पवित्र ग्रंथ पर “सत्यं शिवं सुंदरम” लिखा हुआ था।

मान्यता: श्रीराम और हनुमानजी ने दिए थे तुलसीदासजी को दर्शन

ऐसी मान्यता है कि श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी को भगवान श्रीराम और उनके परम भक्त श्रीहनुमानजी ने दर्शन दिए थे। जब श्रीगोस्वामी तुलसीदास जी तीर्थ यात्रा पर काशी गए तो लगातार राम नाम जप करते ही रहे। इसके बाद श्रीहनुमानजी ने उन्हें दर्शन दिए थे। इसके बाद उन्होंने श्रीहनुमानजी से भगवान श्रीजी के शुभ दर्शनों हेतु प्रार्थना करी थी। श्रीहनुमानजी ने तुलसीदाजी के बताया था कि आपको चित्रकूट में श्रीराम के दर्शन प्राप्त होंगे। इसके बाद मौनी अमावस्या पर्व पर श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी को चित्रकूट में भगवान श्रीरामचंद्र जी के दर्शन हुए थे।

श्री हनुमान चालीसा से संबंधित कुछ विशिष्ट प्रश्न एवम उत्तर।

1. हनुमान चालीसा का पाठ हमें कितनी बार करना चाहिए?

श्रीहनुमान चालीसा के पाठ का सर्वोत्तम फल प्राप्त करने के लिए दैनिक शुद्धि पश्चात केवल तांब्र पात्र के जल को ग्रहण करके लगातार 108 पाठ करें।

2. श्रीहनुमान चालीसा के संकल्पित पाठ का उद्यापन कैसे करना चाहिए?

11 बार श्रीहनुमान चालीसा का सूक्ष्म हवन करने के पश्चात मीठे का हनुमान मंदिर में भोग लगाएं और छोटे बच्चों, बंदरों, लंगूरों या किन्हीं भी पशु-पक्षिओं में बांटें।

3. संकल्पित पाठ पश्चात क्या नित्य भी हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए?

संकल्पित पाठ पश्चात नित्य 1/3/5/7/9/11 पाठ लगातार 108 दिन अवश्य करना चाहिए। इसके समापन पर किसी भी उद्यापन की आवश्यकता नहीं हैं।

4. संकल्पित श्रीहनुमान चालीसा का पाठ किस दिन से प्रारंभ करना शुभ रहेगा?

संकल्पित श्रीहनुमान चालीसा का पाठ सुबह की संध्या के समय मंगलवार, गुरुवार, शनिवार के दिन ही प्रारंभ करना अति शुभ और लाभकारी रहेगा।

5. क्या स्त्रियां भी संकल्पित या सामान्य रूप में श्रीहनुमान चालीसा का पाठ कर सकती हैं?

संकल्पित या सामान्य रूप में अपने सामान्य दिनों में स्त्रियां श्री हनुमान जी को परमेश्वर ब्रह्म रूप में या सदगुरु रूप में मानते हुए श्रीहनुमान चालीसा का पाठ अवश्य कर सकती हैं।

Guru SatyaRam
Guru SatyaRam

– गुरु सत्यराम

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Can women also recite Shri Hanuman Chalisa?(Hindi & English)

Shri Hanuman Chalisa: A Brief Description

Shri Hanuman Chalisa is a unique poetic work written in Awadhi language. In this devotional work, the qualities, works and service of Shri Hanuman, the supreme and great devotee of Lord Shri Ramchandraji, have been described through forty quatrains. Its author is Shri Goswami Tulsidas ji, an ardent devotee of Lord Shri Ramchandraji Maharaj.

Shri Goswami Tulsidasji: Biography

Every year, all of us devotees celebrate the birth anniversary of Shri Goswami Tulsidasji on the seventh day of the auspicious Shukla Paksha of the auspicious month of Sawan. Shri Goswami Tulsidasji was born in the year 1554 in Rajapur village of the holy Chitrakoot district of Uttar Pradesh. In this village itself is the Shri Ramcharit Manas temple, where Shri Goswami Tulsidasji wrote this book in just 966 days. Shri Goswami Tulsidasji left this human body in Samvat 1680 and merged in the service of the holy feet of Lord Shri Ramchandraji Maharaj.

Shri Goswami Tulsidasji: A special revered devotee

It is also said that even immediately after his birth, Shri Goswami Tulsidasji did not cry, but instead of natural crying, the most beloved word of Lord Shri Samb Sadashiv, ‘Ram’ came out of his mouth. Due to this divine play, Shri Goswami Tulsidasji’s name in childhood was Rambola. It is also said by devotees that Shri Goswami Tulsidasji had thirty-two teeth from birth.

Life of Shri Goswami Tulsidasji

Shortly after the birth of Shri Goswami Tulsidasji, his mother Hulsi Devi died. His father’s name was Shri Atmaram. From his childhood itself, Shri Goswami Tulsidasji (child Rambola) started living under the shelter of saints and scholars. After some time Baba Shri Narhari Ji gave him the name Tulsidas. Baba Shri Narhari Ji is considered to be the Guru of Shri Goswami Tulsidas Ji. Tulsidas Ji was married to Devi Ratnavali. Shortly after the marriage, he got separated from his wife and got absorbed in the devotion of Lord Shri Ram Ji.

Shri Goswami Tulsidas Ji had written many unique scriptures in his 111 years of life. Among these Shri Ramcharit Manas Ji is the most famous. Reading the Sundarkand of this divine scripture is a regular routine of many devotees. Vinay Patrika and Shri Hanuman Chalisa were also written by Shri Goswami Tulsidas.

Source of inspiration for writing Shri Hanuman Chalisa

Shri Ramcharit Manas was written at the behest of Lord Shri Mahadevji. It is believed that Lord Shiva had ordered Shri Goswami Tulsidasji through a dream to compose poetry in his mother tongue. With my blessings, your composition will be as fruitful as the Tritya Veda Shri Samveda. Tulsidasji woke up after seeing this dream. Some time later, on the auspicious day of Shri Ramnavami in Samvat 1631, the same situation was created as was there during the auspicious incarnation of Lord Shri Ramchandraji in Treta Yug. Tulsidasji started writing Shri Ramcharitmanas in the morning on that day.

Shri Goswami Tulsidasji wrote it in just 966 days

Shri Goswami Tulsidasji started writing Shri Ramcharit Manasji in Samvat 1631. This holy book was completed on the auspicious Panchami date of Shukla Paksha of the month of Aghan in Samvat 1633. That is, it took 2 years, 7 months and 26 days to complete it. It is also said that as soon as the composition was completed, Tulsidasji first offered this book to Lord Shiva. Then Tulsidasji went to Kashi with it and placed this holy book in the temple of Lord Vishwanathji. It is also believed that the next day in the morning, “Satyam Shivam Sundaram” was written on that holy book.

Belief: Shri Ram and Hanumanji had given darshan to Tulsidasji

It is believed that Lord Shri Ram and his supreme devotee Shri Hanumanji had given darshan to Shri Goswami Tulsidasji. When Shri Goswami Tulsidasji went to Kashi on pilgrimage, he kept chanting the name of Ram continuously. After this, Shri Hanumanji gave him darshan. After this, he prayed to Shri Hanumanji for the auspicious darshan of Lord Shreeji. Shri Hanumanji had told Tulsidasji that you will get the darshan of Shri Ram in Chitrakoot. After this, on the occasion of Mauni Amavasya festival, Sri Goswami Tulsidasji had the darshan of Lord Shri Ramchandra in Chitrakoot.

Some specific questions and answers related to Shri Hanuman Chalisa.

1. How many times should we recite Hanuman Chalisa?

To get the best results of reciting Shri Hanuman Chalisa, after daily purification, take only water from a copper vessel and recite it 108 times continuously.

2. How should the Udyaapan of Sankalpit Paath of Shri Hanuman Chalisa be done?

After performing subtle havan of Shri Hanuman Chalisa 11 times, offer sweets in Hanuman temple and distribute it among small children, monkeys, langurs or any animals and birds.

3. Should Hanuman Chalisa be recited daily after Sankalpit Paath?

After Sankalpit Paath, 1/3/5/7/9/11 recitations should be done daily for 108 days continuously. There is no need for any Udyaapan on its completion.

4. From which day will it be auspicious to start the recitation of Sankalpit Shri Hanuman Chalisa?

It will be very auspicious and beneficial to start the recitation of Sankalpit Shree Hanuman Chalisa in the morning and evening on Tuesday, Thursday and Saturday.

5. Can women also recite Shree Hanuman Chalisa in Sankalpit or normal form?

Women can certainly recite Shree Hanuman Chalisa in Sankalpit or normal form on their normal days by considering Shree Hanuman Ji as Parameshwar Brahma or as Sadguru.

Guru SatyaRam
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-Guru SatyaRam

शनि का छाया-पात्र का दान क्या होता है?(Hindi & English) 

शनि का छाया-पात्र का दान क्या होता है?(Hindi & English)

Om-Shiva

भगवान शनिदेव का भारतीय सनातनी ज्योतिष शास्त्र में बहुत ही विशिष्ट महत्व माना जाता है। शनिदेव को उनके इष्ट एवम गुरुदेव भगवान श्री सांब सदाशिव ने न्याय की पदवी पर विराजमान कराया है, इसलिए ही शनिदेव को उत्तम न्याय का देवता माना जाता है। न्यायधीश भगवान शनिदेव इस मृत्युलोक के सभी जातकों को उनके कर्मों के आधार पर शुभ/अशुभ फल प्रदान करते हैं। भगवान शनिदेव को जो दंडाधिकारी का पद प्राप्त है उसके चलते सभी के हृदय में शनिदेव के प्रति एक भय भी बना रहता है और महादेव की आज्ञा अनुसार शनिदेव अपने इस उत्तम धर्म की पालना हेतु कभी भी पीछे नहीं हटते हैं।

भगवान शनिदेव केवल कर्मों के अनुसार ही जातक के जीवन को उठाने हेतु न्याय करने के उपरांत उत्तम फल प्रदान करते हैं। इसलिए बुरे कर्म करने वालों को बुरा फल और अच्छे कर्म करने वालों को अच्छा फल सदा से मिलता आया है और आगे भी मिलता ही रहेगा। ऐसी स्पष्ट मान्यता है कि शनिदेव की सीधी क्रूर द्दष्टि अगर किसी पर पड़ जाए तो जातक के जीवन में संघर्ष के रूप में कई तरह के कष्ट एवम परेशानियां आना शुरू हो जाती हैं।

वहीं दूसरी तरफ अगर भगवान शनिदेव की सीधी शुभ दृष्टि अगर किसी जातक पर पड़ जाए तो जातक का रंक से राजा बनना अटल हो जाता है। प्रायः भगवान शनिदेव के स्वाभाविक गोचरीय वयवस्था अनुसार चलायमान शनि की साढ़ेसाती और शनि की ढैय्या से लगभग सभी जातक बहुत ही परेशान होकर अपने-अपने जीवन में संघर्षों को अनुभव करते हैं।

लेकिन भगवान शनिदेव की कृपा जब बरसती है तो जातक राजाओं जैसा जीवन व्यतीत करता हैं। शनिदेव का छाया पात्र का दान भी शनिदेव की कृपा प्राप्ति का अति सर्वोत्तम उपाय माना जाता है। आइए अब जानते हैं कि शनिदेव का छाया पात्र का दान क्या होता है और कैसे इस उपाय से हमारे जीवन में सुखों की बढ़ोत्तरी होती है?

01. शनि का छाया-पात्र का दान क्या होता है?

शनि ग्रह की अतिरिक्त ऊर्जा जब प्रारब्ध के आधार पर या सामान्य साढ़ेसती के आधार पर या जन्म कुंडली में शनिदेव के विराजने के आधार पर जब अधिक बढ़ जाती है तब शनिदेव के प्रभाव को कम करने के लिए, उनसे क्षमा मांगने के लिए काले तिल, सरसों का तेल और लौह पात्र का दान किया जाता है उसे ही शनि का छाया-पात्र का दान कहते हैं।

02. शनि का छाया-पात्र का दान कैसे और किस दिन किया जाता है?

किसी भी गुरुवार/शनिवार को एक लौह पात्र में थोड़े काले तिल डालकर, सरसों का तेल डालकर पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े होकर पात्र में अपना प्रतिबिंब देखने के पश्चात केवल शनिदेव के मंदिर में ही पात्र समेत दान दिया जाना चाहिए।

03. शनि का छाया-पात्र का दान किसको देना चाहिए?

शनिदेव के छाया पात्र का दान या शनिग्रह से संबंधित कोई भी दान केवल शनिदेव के मंदिर में ही दिया जाना चाहिए।

04. शनि का छाया-पात्र का दान किन जातकों को करना चाहिए?

1a. जिनको भी संतान से कष्ट हो, संतान न हो, मुकदमे चल रहे हो, पैरों में अधिक दर्द रहता हो या रीढ़ की हड्डी प्रभावित रहती हो या उनकी जन्म राशि पर साढ़ेसती चल रही हो। उन्हें छाया पात्र का दान 11 गुरुवार/शनिवार अवश्य करना चाहिए।

 

2b. जिनकी लग्न कुंडली में शनिदेव अगर 1,2,5,7,9 भाव में विराजे हुए हों तो जब आपकी जन्म राशि पर साढ़ेसती आयेगी तो ऐसे जातकों को उस दौरान प्रत्येक वर्ष 11 गुरुवार/शनिवार लगातार छाया पात्र का दान अवश्य करना चाहिए।

Guru SatyaRam
Guru SatyaRam

– गुरु सत्यराम

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What is the donation of Shani’s Chhaya-Patra?(Hindi & English)

Om-Shiva

Lord Shani Dev is considered to have a very special significance in Indian Sanatani astrology. Shani Dev has been placed on the position of justice by his Ishta and Gurudev Lord Shri Samb Sadashiv, that is why Shani Dev is considered to be the god of good justice. The judge Lord Shani Dev gives auspicious/inauspicious results to all the people of this mortal world on the basis of their deeds. Due to the position of a magistrate that Lord Shani Dev has, there is a fear of Shani Dev in everyone’s heart and as per Mahadev’s orders, Shani Dev never steps back from following this great religion of his.

Lord Shani Dev gives good results only after doing justice to uplift the life of the person according to their deeds. That is why people who do bad deeds have always got bad results and people who do good deeds have always got good results and will continue to get them in future too. There is a clear belief that if Shanidev’s direct cruel sight falls on someone, then many kinds of troubles and problems start coming in the form of struggle in the life of the person.

On the other hand, if Lord Shanidev’s direct auspicious sight falls on a person, then it becomes certain that the person becomes a king from a pauper. Usually, according to the natural transitory system of Lord Shanidev, almost all the people get very troubled by the moving Saturn’s Sadesati and Shani’s Dhaiyya and experience struggles in their lives.

But when Lord Shanidev’s blessings are showered, then the person lives a life like kings. Donation of Shanidev’s Chhaya Patra is also considered to be the best way to get Shanidev’s blessings. Let us now know what is the donation of Shanidev’s Chhaya Patra and how does this remedy increase happiness in our life?

01. What is the donation of Shani’s Chhaya Patra?

When the excess energy of Saturn increases on the basis of destiny or general sadhesati or presence of Shanidev in the birth chart, then to reduce the effect of Shanidev, to ask forgiveness from him, donation of black sesame seeds, mustard oil and iron vessel is done, this is called donation of Shani’s Chhaya-patra.

02. How and on which day is the donation of Shani’s Chhaya-patra done?

On any Thursday / Saturday, put some black sesame seeds, mustard oil in an iron vessel, stand under a peepal tree and see your reflection in the vessel, after which the donation should be done along with the vessel only in Shanidev’s temple.

03. To whom should Shani’s Chhaya-patra be donated?

Donation of Shanidev’s Chhaya-patra or any donation related to Shanigraha should be given only in Shanidev’s temple.

04. To whom should Shani’s Chhaya-patra be donated?

1a. Those who are facing problems with their children, do not have children, have ongoing court cases, have pain in their legs, their spine is affected or their birth sign is under Sadesati, they must donate Chhaya Patra on 11 Thursdays/Saturdays.

2b. If Lord Shani is placed in 1,2,5,7,9th house in their Lagna Kundali, then when Sadesati comes on your birth sign, such people must donate Chhaya Patra on 11 Thursdays/Saturdays every year during that period.

Guru SatyaRam
Guru SatyaRam

-Guru SatyaRam