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ऐसा करेंगे तो केतू ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

ऐसा करेंगे तो केतू ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

भारतीय वैदिक सनातन ज्योतिष में केतुग्रह को एक अशुभ ग्रह माना जाता है। लेकिन ऐसा भी कहना सही नहीं है कि केतुदेव के द्वारा जातक को हमेशा ही बुरे फल प्राप्त होते हैं। केतुग्रह के द्वारा जातक को अत्यधिक शुभ फल भी प्राप्त होते हैं। यह एकमात्र ग्रह आध्यात्म मार्ग, वैराग्य प्रणाली, मोक्ष निष्ठा, सात्विक तांत्रिक क्रियाओं आदि का कारक होता है। ज्योतिष विद्या में केतुग्रह को किसी भी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है। लेकिन धनु(9) राशि केतुदेव की उच्च राशि होती है, जबकि मिथनु(3) राशि में यह ग्रह नीच भाव को प्राप्त होता है। वहीं 27 नक्षत्रों में केतुग्रह अश्विनी नक्षत्र, मघा नक्षत्र और मूल नक्षत्र के स्वामी होते हैं। राहुग्रह की भांति यह भी एक छाया ग्रह है। वैदिक शास्त्रों के अनुसार केतुग्रह स्वरभानु राक्षस का धड़ है। जबकि इसके सिर वाले भाग को राहु कहा जाता है।

सनातन ज्योतिष विद्या के अनुसार केतुग्रह व्यक्ति के जीवन क्षेत्र तथा समस्त सृष्टि को भी प्रभावित करता है। राहुदेव और केतुदेव दोनों लग्न जन्म कुण्डली में कालसर्प नामक दोष का निर्माण करते हैं। वहीं आकाश मंडल में केतुदेव का प्रभाव वायव्य कोण नामक दिशा में माना गया है। कुछ अनुभवी ज्योतिष विद्वानों का ऐसा मानना है कि केतुग्रह की कुछ विशेष परिस्थितियों के कारण जातक अपने जीवन में यश के शिखर तक अवश्य पहुँच सकता है। राहुदेव और केतुदेव के कारण सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण होता है।

जैसा की स्पष्ट है कि जब केतुग्रह की कोई निश्चित राशि नहीं होती इसलिए केतुग्रह जिस भी राशि में बैठता है वह उसी के अनुरूप फल देता है। इसलिए केतुग्रह का प्रथम भाव अथवा लग्न में फल को वहाँ स्थित राशि पूर्णतः प्रभावित करती है। कुछ ज्योतिष विद्वानों का ऐसा भी मानना है कि कुंडली में प्रथम भाव का केतुग्रह जातक को साधू बना देता है। यह जातकों को कलयुग के समस्त भौतिक सुखों से बहुत दूर ले जाता है। इसके विषम प्रभाव से जातक केवल अकेले रहना ही पसंद करता है। वहीं दूसरी तरफ यदि लग्न(प्रथम) भाव में वृश्चिक(8) राशि हो तो जातक को इसके सम और सकारात्मक प्रभाव एवम परिणाम भी देखने को मिलते हैं।

केतुग्रह के अत्यधिक पीड़ित होने से जातक को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जातक के सामने अचानक कोई न कोई बाधा अवश्य आ ही जाती है। जातक किसी भी कार्य के लिए जो निर्णय लेता है तो उसमें उसे अपने स्वयं के निर्णयों के प्रति ही असफलता का सामना करना पड़ता है। केतुग्रह के कमज़ोर होने पर जातकों के पैरों में कमज़ोरी अवश्य आती है। पीड़ित केतुग्रह के कारण जातक को अपने नाना और मामा का प्यार नहीं मिल पाता है अर्थात, या तो मनमुटाव हो जाते हैं या शारीरिक दूरियां बढ़ जाती हैं। आइए अब जानते हैं वह 07 गलतियां जो आपके केतुग्रह को हमेशा के लिए खराब कर देंगी।

07 गलतियां जो आपके केतू ग्रह को हमेशा के लिए खराब कर देंगी

01. बहुत लंबे समय तक व्यर्थ में किसी भी व्यक्ति को लेकर उनके पीठ पीछे उनकी बुराई करते रहना।

02. आचार, खट्टी – मीठी नमकीन या किसी भी तरह के खट्टे खाद्य पदार्थों को उपहार रूप में भेंट करना।

03. बहुत लंबे समय तक छाती के बल रात्रि शयन करना या रात्रि शयन से पूर्व व्यर्थ में विलाप करना।

04. घर में या घर से बाहर कुत्तों को कष्ट देना। घर के पालतू कुत्ते का स्थान घर की छत पर बना देना।

05. उत्तम गुरु के मार्गदर्शन के अभाव में अपनी इच्छा से किसी भी मंत्र को जपना शुरू कर देना, हवन करना या नवग्रहों के उपाय करना।

06. गुरु मार्गदर्शन के अभाव में या बगैर ग्रहों की जांच करवाए निः संतान व्यक्ति की जमीन खरीदना, मकान खरीदना या किसी भी प्रकार की प्रॉपर्टी का लेन देन करना।

07. बहुत लंबे समय तक घर की खाट को उल्टा खड़ा करना। गौमाता को झूठा, बासी, बचा हुआ या उतारे की सामग्री खिलाते रहना।

-गुरु सत्यराम

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If you do this, Ketu Graha can be bad for life (Hindi & English)

In Indian Vedic Sanatan Astrology, Ketu Graha is considered an inauspicious planet. But it is not right to say that the native always gets bad results from Ketu Dev. The native also gets extremely auspicious results from Ketu Graha. This is the only planet that is a factor of spiritual path, asceticism system, Moksha devotion, Satvik Tantric activities etc. In astrology, Ketu Graha does not have ownership of any zodiac sign. But Sagittarius (9) is the high zodiac sign of Ketu Dev, while this planet gets the low house in Gemini (3) zodiac. At the same time, among the 27 constellations, Ketu Graha is the lord of Ashwini constellation, Magha constellation and Mool constellation. Like Rahu Graha, it is also a shadow planet. According to Vedic scriptures, Ketu Graha is the torso of Swarbhanu demon. While its head part is called Rahu.

According to Sanatan Jyotish Vidya, Ketu Graha affects the life sphere of a person and the entire universe. Both Rahu and Ketu create a defect called Kalsarp in the Lagna Janam Kundali. Whereas in the sky, the effect of Ketu is considered to be in the direction called Vayavya Kon. Some experienced astrology scholars believe that due to some special circumstances of Ketu Graha, the native can definitely reach the peak of fame in his life. Solar eclipse and lunar eclipse occur due to Rahu and Ketu.

As it is clear that when Ketu Graha does not have any fixed zodiac sign, so whatever zodiac Ketu Graha sits in, it gives results according to that. Therefore, the results of Ketu Graha in the first house or Lagna are completely affected by the zodiac sign present there. Some astrology scholars also believe that Ketu Graha in the first house in the horoscope makes the native a sadhu. It takes the natives far away from all the material pleasures of Kaliyug. Due to its adverse effect, the native only likes to stay alone. On the other hand, if Scorpio (8) is in the Lagna (1st) Bhav, then the native gets to see its equal and positive effects and results.

Due to the extreme affliction of Ketu Graha, the native has to face many types of problems. Suddenly some obstacle definitely comes in front of the native. Whatever decision the native takes for any work, he has to face failure in his own decisions. When Ketu Graha is weak, the native definitely gets weakness in his legs. Due to the afflicted Ketu Graha, the native does not get the love of his maternal grandfather and maternal uncle, that is, either there are differences or physical distances increase. Let us now know those 07 mistakes which will spoil your Ketu Graha forever.

07 Mistakes which will spoil your Ketu Graha forever

01. Talking ill about any person behind their back for a very long time in vain.

02. Presenting pickles, sweet-sour namkeen or any sour food items as gifts.

03. Sleeping on the chest for a very long time at night or lamenting in vain before going to sleep at night.

04. Hurting dogs inside or outside the house. Make the place of the pet dog on the roof of the house.

05. In the absence of the guidance of a good Guru, starting to chant any mantra of your own will, performing havan or doing remedies for the nine planets.

06. Buying land, buying a house or any kind of property transaction of a childless person in the absence of Guru’s guidance or without getting the planets checked.

07. Standing the cot of the house upside down for a very long time. Feeding leftover, stale, leftover or udara material to the cow.

-Guru Satyaram

ऐसा करेंगे तो राहु ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

ऐसा करेंगे तो राहु ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

वैदिक सनातन ज्योतिष में राहुग्रह को एक पापी ग्रह जाना जाता है। वैदिक ज्योतिष में राहुग्रह को कारक के आधार पर अत्यंत कठोर वाणी, सट्टा/जुआ, निरर्थक यात्राएँ, चोरी की दुषभावना, पापकर्म/दुष्टकर्म, गंभीर त्वचा के रोग, लंबी धार्मिक यात्राएँ आदि का सीधा कारक समझा जाता है। जिस भी जातक की लग्न कुंडली में राहुग्रह अशुभ स्थान पर बैठे हुए हों, या किसी भी अवस्था में पीड़ित हो गए हों तो जातक को इस कारण से अपने पूर्ण जीवन में राहुग्रह के नकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं। ज्योतिष विद्या के अनुसार राहुग्रह को किसी भी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है। लेकिन गोचर और लग्न कुंडली में मिथुन राशि(3) में यह उच्च प्रभावी हो जाता है और धनु राशि(9) में यह नीच प्रभावी हो जाता है।

27 नक्षत्रों में राहुदेव आद्रा नक्षत्र, स्वाति नक्षत्र और शतभिषा नक्षत्रों के स्वामी जाने जाते हैं। ज्योतिष विद्या के अनुसार राहुग्रह को एक छाया ग्रह कहा जाता है क्योंकि यह एक छलावा है। ऐसा इसलिए क्योंकि जब सूर्यदेव और पृथ्वी के बीच जब चंद्रदेव आ जाते हैं और चंद्रदेव का मुख सूर्यदेवकी तरफ होता है तो पृथ्वी पर पड़ने वाली चंद्रमा की छाया राहुग्रह का प्रतिनिधित्व करती है। अर्थात चंद्रमा के कारण ही राहुग्रह को अस्तित्व प्राप्त है लेकिन केवल छाया के रूप में।

वैदिक ज्योतिष के अनुसार जिस भी जातक की लग्न जन्म कुंडली में प्रथम(लग्न) भाव में राहु बैठा होता है तो प्रभाव अनुसार वह जातक सुंदर छवि और आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी होता है। ऐसा जातक कभी भी साहसिक कार्यों से पीछे नहीं हटता है लेकिन कभी कभार अत्यंत डरपोक भी बन जाता है। अगर सामने मजबूत लग्न और लग्न में ही तकतवार मंगल बैठा हुआ हो तो फिर राहु वाला जातक उससे भय भी रखता है। लग्न का राहु व्यक्ति को समाज में प्रभावशाली तो बनाता है लेकिन, सीधे मार्गों से धन कम ही दिलवाता है। हालाँकि इसके प्रभाव बहुत हद तक लग्न में स्थित राशि पर भी निर्भर करते हैं। हालाँकि ज्योतिष परंपरा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि लग्न का राहु व्यक्ति के वैवाहिक जीवन के लिए बिलकुल भी अच्छा नहीं होता है क्योंकि उसकी सीधी दृष्टि सीधे तौर पर सातवें भाव को प्रभावित करती रहती है।

किसी भी जातक की जन्म कुंडली अगर राहुग्रह के द्वारा पीड़ित बनी हुई हो तो जातक को इसके भयंकर नकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं। यह ग्रह जातक के अंदर बुरी एवम पापी भावनाओं और आदतों को पैदा करता है। पापी राहुग्रह के प्रभाव से जातक केवल अपने बारे में ही सोचता है, वह किसी का भी सगा नही होता और सभी के साथ छल, कपट और धोखा करता है और स्वयं को भगवान समझने लग जाता है। ऐसा जातक बेशर्म होकर सभी से पैसे और वस्तुएं मांगता है और धन वापिस करने के समय सभी को केवल परेशानी ही वापिस करता है।

ऐसा व्यक्ति मांस, शराब तथा अन्य मादक पदार्थों का भी सेवन करता है और चरित्रहीन होकर घर से बाहर कई अवैध संबंध भी रखता है। राहुग्रह द्वारा पीड़ित जातक अपनी संगत में आने वाले सभी मित्रजनों को भी अधर्मी बनाने का प्रयास करता रहता है। लेकिन जब कोई सच्चा जातक ऐसे अधर्मी के द्वारा पीड़ित होकर अपने इष्ट के सम्मुख जाकर रो देता है तो फिर इस राहु वाले जातक को अपने पूर्ण जीवन में केवल दरिद्रता ही भोगनी पड़ती है। आइए अब जानते हैं वह 07 गलतियां जो आपके राहु ग्रह को हमेशा के लिए खराब कर देंगी।

07 गलतियां जो आपके राहु ग्रह को हमेशा के लिए खराब कर देंगी।

01. समाज में मौजूद अति गरीब वर्ग के अधिकारों को अपने अहंकार के कदमों तले दबाते रहना। इसमें भी मुख्य विषय रोटी, कपड़ा, मकान ही है।

02. सामर्थ्य होने के बाद भी हमेशा उधार में सभी सामान लेते रहना तथा झूठ का सहारा लेते हुए गरीब मजदूर वर्ग के पैसों को दबाए रखना।

03. हमेशा भोजन जल्दबाजी में ही ग्रहण करते रहना। बहुत अधिक गर्म भोजन को पानी के सहारे से निगलकर ही खाते रहना।

04. बहुत ही छोटी उम्र में अपनी पुत्री का विवाह कर देना तथा केवल व्यर्थ में बोझ मानते हुए बगैर जांच पड़ताल करे पुत्री का विवाह कर देना।

05. केवल आनंद के लिए गर्भपात करवाना। अपनी सामर्थ्य होने के पश्चात भी अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु ससुराल पक्ष में ही रहना या उन पर निर्भर बने रहना।

06. आवश्यकता से अधिक मात्रा में या अधिक लंबे समय तक नींद आने के लिए, सिरदर्द के लिए, पीठ दर्द के लिए, सर्दगर्म के लिए या किसी भी तरह की पेन किलर दवाइयों का सेवन करते रहना।

07. नित्य सूर्य अस्त के पश्चात घर में बहुत अधिक धुआं करना घर की रसोई में अधिक मात्रा में तले हुए भोजन को पकाना।

-गुरु सत्यराम

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If you do this, Rahu can be bad for your whole life (Hindi & English)

In Vedic Sanatan Jyotish, Rahu is known as a sinful planet. In Vedic astrology, Rahu is considered to be a direct factor of harsh speech, speculation/gambling, useless travels, ill intentions of theft, sinful acts/evil deeds, serious skin diseases, long religious journeys etc. on the basis of factors. In the Lagna Kundli of any person, Rahu is sitting in an inauspicious place, or is afflicted in any condition, then due to this reason, the person gets negative results of Rahu in his entire life. According to Jyotish Vidya, Rahu does not have ownership of any zodiac sign. But in the transit and Lagna Kundli, it becomes highly influential in Gemini (3) and lowly influential in Sagittarius (9).

Out of the 27 nakshatras, Rahu is known to be the lord of Adra, Swati and Shatabhisha nakshatras. According to astrology, Rahu is called a shadow planet because it is an illusion. This is because when Chandradev comes between the Sun and the Earth and Chandradev faces the Sun, then the shadow of the Moon falling on the Earth represents Rahu. That is, Rahu exists because of the Moon but only in the form of a shadow.

According to Vedic astrology, the native whose Lagna (ascendant) horoscope has Rahu in the first (ascendant) house, then according to the effect, that native has a beautiful image and an attractive personality. Such a native never backs away from adventurous activities but sometimes becomes very timid. If there is a strong Lagna in front and the powerful Mars is sitting in the Lagna itself, then the native with Rahu is also afraid of it. Rahu in the Ascendant makes a person influential in the society but, it rarely brings wealth through direct means. However, its effects depend to a great extent on the zodiac sign in the Ascendant. However, according to the astrological tradition, it is believed that Rahu in the Ascendant is not good at all for the married life of a person because its direct sight directly affects the seventh house.

If the birth chart of any native is afflicted by Rahu, then the native gets terrible negative results. This planet creates bad and sinful feelings and habits in the native. Due to the influence of sinful Rahu, the native thinks only about himself, he is not related to anyone and cheats, deceives and deceives everyone and starts considering himself as God. Such a native shamelessly asks for money and goods from everyone and at the time of returning the money, he returns only troubles to everyone.

Such a person also consumes meat, alcohol and other intoxicants and being characterless, also has many illegal relationships outside the house. A person suffering from Rahu keeps trying to make all his friends unrighteous. But when a true person gets afflicted by such unrighteous and cries in front of his deity, then this person with Rahu has to suffer only poverty in his entire life. Now let us know those 07 mistakes which will spoil your Rahu planet forever.

07 mistakes which will spoil your Rahu planet forever.

01. Keep suppressing the rights of the very poor class in the society under the feet of your ego. The main topic in this is also roti, kapda, makaan.

02. Always taking all the things on credit despite having the capability and suppressing the money of the poor working class by taking the help of lies.

03. Always eating food in a hurry. Keep eating very hot food by swallowing it with the help of water.

04. Marrying your daughter at a very young age and marrying her off without any investigation, considering it a burden.

05. Getting an abortion done just for pleasure. Living with the in-laws or being dependent on them for fulfilling your daily needs even when you are capable.

06. Consuming medicines in excess or for a longer duration than required for sleep, headache, backache, cold and any kind of painkiller.

07. Making a lot of smoke in the house after sunset every day and cooking fried food in large quantities in the kitchen.

-Guru Satyaram

करवा चौथ पर्व 2024 (Hindi & English)

करवा चौथ पर्व 2024 (Hindi & English)

करवा चौथ का पर्व पतिदेव के सुख और अखंड सौभाग्य हेतु सभी सुहागिन स्त्रियां बड़ी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाती हैं। इस दिन सभी विवाहित स्त्रियां निराहार रहकर अपने पति के दीर्घायु और समृद्धिशाली होने की कामना करते हुए उपवास करतीं हैं और शिव परिवार सहित चन्द्रदेव की पूजा करती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से पतिसुख, सन्तान सुख, धन-धान्य और सौभाग्य में वृद्धि होती है।

01. कब मनाया जाता है करवा चौथ?

करवा चौथ कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन मिट्टी के करवों में गेहूं, दूध, शक्कर, जल, तांबे या चांदी का सिक्का डालते हैं और भगवान का पूजन करते हैं, इसलिए इसे करवा चौथ कहते हैं। वर्ष 2024 में करवा चौथ का व्रत दिन रविवार, 20 अक्टूबर को है। चंद्रोदय मुहूर्त सांय लगभग 07 बजकर 40 मिनट पर होगा।

02. करवा चौथ की धार्मिक मान्यता

नारद पुराण में वर्णन है कि कार्तिक कृष्णपक्ष की चतुर्थी को “करका चतुर्थी” व्रत करने का विधान है। यहां “करका” का अर्थ मिट्टी का एक छोटा पात्र होता है। यह सात्विक व्रत केवल स्त्रियों के लिए है। इसमें स्त्री को स्नानादि के बाद सुंदर वस्त्र और आभूषणों से सुसज्जित होकर भगवान गणेश, शिव और गौरी की पूजा करने का निर्देश दिया गया है।

कहा जाता है कि देवों और असुरों के बीच हुए युद्ध के समय अपने अपने पतियों की रक्षा के लिए सभी देवियों नें ब्रह्माजी से इस व्रत का उपदेश लिया था। वैसे, इस व्रत की परंपरा माता पार्वती ने प्रारंभ की थी। इसके अतिरिक्त महाभारत काल में माता कुंती ने इस व्रत अनुष्ठान को द्रौपदी को सौंपा था। अतः इस व्रत में सुहागिन महिलाएं अपनी सास का आशीर्वाद ज़रूर लेती हैं।

03. पूजन का विधि-विधान

व्रत रखने वाली स्त्री प्रातः काल नित्यकर्मों से निवृत्त होकर, स्नान आदि करके आचमन के बाद व्रत का संकल्प लेती हैं। यह व्रत निराहार ही नहीं बल्कि निर्जला के रूप में करना अधिक फलप्रद माना जाता है। कई स्थानों पर प्रातः व्रत से पहले भोर में सरगी करने का प्रचलन है। यह सरगी सास अपनी बहू को देतीं हैं।। सरगी में फलाहारी खाद्यान्न दिया जाता है।

इस व्रत में शिव दरबार और चन्द्र देव की पूजा करने का विधान है। इनका षोडशोपचार पूजन किया जाता है और मिट्टी के करवों में मिष्ठान, धान्य, दूध, शर्करा आदि भरकर सुहाग की सामग्री की पिटारी रखी जाती है। फिर दिनभर निर्जला व्रत रखकर शाम को चंद्रोदय के समय सभी व्रती महिलाएं व्रत की कथा सुनती हैं और छलनी से चन्द्र दर्शन करके चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं। फिर पूजन आरती करके पति के हाथों अपना व्रत खोलती हैं। फिर अंत में अपनी सास को भेंट देकर उनके पांव छूती है और उनसे अखंड सौभाग्य प्राप्ति का आशीर्वाद लेती हैं।

04. व्रत की कथा

एकं साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। सेठानी सहित उसकी बेटी और बहुओं नें करवा चौथ का व्रत रखा था। रात्रि को साहूकार के लड़के भोजन करने लगे तो उन्होंने अपने बहन से भोजन के करने लिए कहा। बहन ने कहा भाई अभी चांद नहीं निकला है। चांद के निकलने पर अर्घ्य देकर ही भोजन करूंगी। बहन की बात सुनकर भाइयों ने एक काम किया कि नगर से बाहर जाकर अग्नि जला दी और छलनी ले जाकर उसमें से प्रकाश दिखाते हुए उन्होंने बहन से कहा कि देखो बहन, चांद निकल आया है। अर्घ्य देकर के भोजन कर लो।

यह सुनकर उसने अपने भाभियों से कहा की आओ तुम भी चंद्रमा को अर्घ्य दे दो। भाभियों को अपने पतियों की चालाकी का पता था। वह अर्घ्य देने नहीं आई। उन्होंने अपनी ननद को बता दिया कि तेरे भाई तेरे से धोखा करके छलनी से प्रकाश दिखा रहे हैं। फिर भी बहन ने कुछ भी ध्यान ना दिया और छलनी से प्रकाश देखकर अर्घ्य दे दिया। इस प्रकार व्रत भंग करने से गणेशजी बहुत अप्रसन्न हो गए। इसके बाद उसका पति बहुत अधिक बीमार हो गया और उसकी सारी संपत्ति बीमारी में खर्च हो गई।

बाद में जब साहूकार की लड़की को अपने किए हुए दोषों का पता चला तो उसने बहुत पश्चात्ताप किया। फिर गणेशजी से प्रार्थना करते हुए पूर्ण विधि-विधान से पुनः चतुर्थी का व्रत किया और दान-दक्षिणा आदि प्रदान करी। श्रद्धाभक्ति सहित कर्म को देखकर भगवान गणेश उस पर प्रसन्न हुए और पुनः उसके पति को जीवनदान देकर उसे आरोग्य और धन संपत्ति वापस प्रदान कर दी।

प्रस्तुत आलेख में मैनें करवा चौथ के व्रत का एक संक्षिप्त विवरण देने का प्रयास किया है। आशा करती हूँ आप पाठकजनों को यह आलेख पसन्द आया होगा। कृपया कमेंट के ज़रिए अपनी राय अवश्य दें।

आभार और धन्यवाद।

-ऐस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव

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Karva Chauth Festival 2024 (Hindi & English)

All married women celebrate the festival of Karva Chauth with great devotion and faith for the happiness and unbroken good fortune of their husband. On this day, all married women fast by staying without food and wishing for the long life and prosperity of their husband and worship Chandradev along with the Shiva family. It is believed that by observing this fast, there is an increase in husband’s happiness, child happiness, wealth and good fortune.

01. When is Karva Chauth celebrated?

Karva Chauth is celebrated on the Chaturthi Tithi of Krishna Paksha of Kartik month. On this day, wheat, milk, sugar, water, copper or silver coin are put in clay pots and God is worshipped, hence it is called Karva Chauth. In the year 2024, the fasting day of Karva Chauth is on Sunday, October 20. Chandraodaya Muhurta will be at around 07:40 pm.

02. Religious belief of Karva Chauth

It is mentioned in Narada Purana that on the fourth day of Kartik Krishna Paksha, it is prescribed to observe “Karka Chaturthi” fast. Here “Karka” means a small earthen pot. This Satvik fast is only for women. In this, the woman is instructed to worship Lord Ganesha, Shiva and Gauri after bathing and then wearing beautiful clothes and ornaments.

It is said that during the war between the gods and the demons, all the goddesses took the advice of this fast from Brahmaji to protect their husbands. By the way, the tradition of this fast was started by Mother Parvati. Apart from this, during the Mahabharata period, Mother Kunti handed over this fast ritual to Draupadi. ​​Therefore, in this fast, married women definitely take the blessings of their mother-in-law.

03. Method of worship

The woman observing the fast takes a vow of fasting after finishing her daily chores in the morning, taking a bath etc. and sipping water. It is considered more fruitful to observe this fast not only without food but also without water. In many places, there is a practice of having Sargi in the morning before the fast. This Sargi is given by the mother-in-law to her daughter-in-law. Fruit food is given in Sargi.

In this fast, there is a ritual of worshipping Shiv Darbar and Chandra Dev. Their Shodashopachar worship is done and a box of Suhaag items is kept in clay pots filled with sweets, grains, milk, sugar etc. Then after observing Nirjala fast throughout the day, in the evening at the time of moonrise, all the fasting women listen to the story of the fast and after seeing the moon through a sieve, offer Arghya to the moon. Then after performing Puja Aarti, they break their fast in the hands of their husband. Then in the end, after giving gifts to their mother-in-law, they touch her feet and take blessings from her for attaining unbroken good fortune.

04. Story of the fast

A moneylender had seven sons and a daughter. The Seth’s wife, her daughter and daughter-in-laws had kept the fast of Karva Chauth. At night, when the sons of the moneylender started eating, they asked their sister to have food. The sister said, “Brother, the moon has not yet come out. I will eat only after offering Arghya to the moon.” On hearing the words of the sister, the brothers did one thing – they went out of the city and lit a fire and taking a sieve, showing the light through it, they told the sister, “Look sister, the moon has come out. Offer Arghya and have your food.”

On hearing this, she told her sisters-in-law to come and offer Arghya to the moon. The sisters-in-law knew about the cunningness of their husbands. They did not come to offer Arghya. They told their sister-in-law that your brothers are cheating you and showing light through the sieve. Still, the sister did not pay any attention and offered Arghya after seeing the light through the sieve. Ganeshji became very unhappy by breaking the fast in this way. After this, her husband became very ill and all his wealth was spent on his illness.

Later, when the moneylender’s daughter realized her mistakes, she repented a lot. Then, praying to Lord Ganesha, she again observed the Chaturthi fast with full rituals and offered donations etc. Seeing her act with devotion, Lord Ganesha was pleased with her and gave life to her husband and gave her health and wealth back.

In this article, I have tried to give a brief description of the fast of Karva Chauth. I hope you readers liked this article. Please give your opinion through comments.

Gratitude and thanks.

-Astro Richa Srivastava

पापांकुशा एकादशी एक विस्तृत परिचय (Hindi & English)

पापांकुशा एकादशी एक विस्तृत परिचय (Hindi & English)

Om-Shiva

01. क्या होती है पापांकुशा एकादशी?

वर्षभर की सभी एकादशियों में से एक पापांकुशा एकादशी बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है। जैसा की नाम से ही स्पष्ट है, यह एकादशी व्यक्ति के समस्त पाप कर्मों पर अंकुश लगाकर उन्हें पापों से मुक्त करती है। इस एकादशी का वर्णन श्रीभागवत पुराण, श्री ब्रह्मवैवर्त पुराण और पवित्र महाभारत ग्रन्थ में भी आता है। इस एकादशी में भगवान श्रीहरि विष्णुजी के पाप मोचन रूप की पूजा और उपासना की जाती है तथा उपवास भी रखा जाता है।

02. कब मनाई जाती है पापांकुशा एकादशी?

यह एकादशी आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस वर्ष 2024 में यह दिनांक 13 अक्टूबर, रविवार को मनाई जायेगी। वैष्णव सम्प्रदाय के लोग दिनांक 14 अक्टूबर को यह एकादशी मनाएंगे।

03. पापांकुशा एकादशी का महात्म्य क्या है?

इस व्रत की गाथा भगवान श्रीकृष्ण के मुख से युधिष्ठिर को सुनाई गई है। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि, हजारों वर्ष की तपस्या से भी जो पुण्य और फल नहीं मिलता वहनामष्ट पुण्यफल मात्र यह एकादशी व्रत को करने से मिल जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। पापांकुशा एकादशी का व्रत हज़ार अश्वमेघ और सौ सूर्य यज्ञों को करने के समान फल देने वाली बताई गई है। जो भी यह व्रत, उपवास, पूजन और जागरण इत्यादि करता है वह सभी पाप कर्मों से मोक्ष प्राप्त करके बैकुंठ लोक को जाता है और उसे श्रीहरि विष्णुजी अपनी शरण में ले लेते हैं। एकादशी जीवों के जीवन के परम लक्ष्य अर्थात भगवत प्राप्ति में बहुत ही सहायक होती है।

04. पापांकुशा एकादशी पूजन का विधि-विधान क्या है?

एकादशी तिथि के दिन प्रातः जल्दी उठकर, नित्य कर्मों से निवृत होकर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर रखकर कलश की स्थापना करें तथा पूजन और व्रत का संकल्प लें। फिर धूप, दीप, पुष्प, पीले अक्षत, फल, नारियल और नैवेद्य आदि से पूजन करें। भगवान की झांकी के निकट भजन, कीर्तन, रात्रि जागरण आदि करके श्रीहरि के पावन नाम का जप करें। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना भी अति शुभ फलदायी होता है। पूजन के पश्चात योग्य कर्मकांडी ब्राह्मण को सामर्थ्य अनुसार दान, दक्षिणा, भोजन, भेंट आदि अवश्य देना चाहिए। भगवान के उपवास में अन्न और नमक का प्रयोग निषेध रहता है। जो लोग पूर्ण उपवास नहीं रख सकते वें एक समय का फलाहार करके भी पूजन कर सकते हैं।

05. पापांकुशा एकादशी व्रत की कथा क्या है?

पौराणिक काल में विंध्य पर्वत पर क्रोधन नाम का एक महाक्रूर बहेलिया रहता था। जो बहुत निर्दयता पूर्वक पशु-पक्षियों का शिकार करता था। जब उसके जीवन का अंत समय आया तो यमराज ने यमदूतों को उसे लाने की आज्ञा दी। यमदूतों नें उसे यह बात उसकी मृत्यु से बहुत पहले ही बता दी थी। तब बहेलिए को अपने पाप कर्मों का अहसास हुआ और नर्क में जाने के भय से वह कांपने लगा। मृत्यु के डर से वह भटकते हुए अंगिरा ऋषि के आश्रम में जा पहुंचा। उसे यमलोक में नर्क नहीं भुगतना पड़े, इससे रक्षा के लिए वह अंगिरा ऋषि से प्रार्थना करने लगा। तब अंगिरा ऋषि ने उसे आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु के पूजन और उपवास का मार्ग दिया। उनके अनुसार बताए व्रत और पूजन करने से वह अपने सभी पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को चला गया।

प्रिय पाठकों, उपर्युक्त आलेख में मैंने आपको पापांकुशा एकादशी की संक्षिप्त जानकारी दी है। आशा करती हूँ कि आपको यह जानकारी पसन्द आई होगी। कृपया एक कमेंट के ज़रिए अपनी राय अवश्य दें।

आभार और धन्यवाद।

-ऐस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव

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Papankusha Ekadashi: A detailed introduction (Hindi & English)

Om-Shiva

01. What is Papankusha Ekadashi?

Among all the Ekadashis of the year, Papankusha Ekadashi is considered very important. As the name suggests, this Ekadashi curbs all the sins of a person and frees them from sins. This Ekadashi is also described in Shri Bhagwat Purana, Shri Brahmavaivarta Purana and the holy Mahabharata Granth. In this Ekadashi, the sin-free form of Lord Shri Hari Vishnu is worshiped and fasting is also observed.

02. When is Papankusha Ekadashi celebrated?

This Ekadashi is celebrated on the Ekadashi date of Shukla Paksha of Ashwin month. This year in 2024, it will be celebrated on 13 October, Sunday. People of Vaishnav sect will celebrate this Ekadashi on 14th October.

03. What is the significance of Papankusha Ekadashi?

The story of this fast has been narrated to Yudhishthira by Lord Krishna. Lord Krishna says that the virtue and fruit that cannot be obtained even by thousands of years of penance, can be obtained by merely observing this Ekadashi fast. Lord Vishnu is worshipped on this day. The fast of Papankusha Ekadashi is said to give the same fruit as performing thousand Ashvamedha and hundred Surya Yagyas. Whoever observes this fast, fasting, worship and vigil etc., attains salvation from all sinful deeds and goes to Vaikunth Lok and Shri Hari Vishnuji takes him under his shelter. Ekadashi is very helpful in attaining the ultimate goal of the life of the living beings i.e. Bhagwat.

04. What is the ritual of Papankusha Ekadashi worship?

On the day of Ekadashi, wake up early in the morning, finish your daily chores, place an idol or picture of Lord Vishnu, install a Kalash and take a pledge to worship and fast. Then worship with incense, lamp, flowers, yellow rice, fruits, coconut and offerings etc. Chant the holy name of Shri Hari by doing bhajan, kirtan, night vigil etc. near the tableau of the Lord. Reciting Vishnu Sahasranama is also very auspicious and fruitful. After worship, one must give donations, dakshina, food, gifts etc. to a capable ritualistic Brahmin according to one’s ability. The use of food and salt is prohibited in the fast of God. Those who cannot keep a complete fast can also worship by eating fruits once a day.

05. What is the story of Papankusha Ekadashi fast?

In ancient times, a very cruel hunter named Krodhan lived on Vindhya mountain. He used to hunt animals and birds very mercilessly. When the end of his life came, Yamraj ordered the messengers of Yamraj to bring him. The messengers of Yamraj had told him this much before his death. Then the hunter realized his sins and started trembling in fear of going to hell. Out of fear of death, he wandered and reached the ashram of sage Angira. He started praying to sage Angira to protect him so that he does not have to suffer hell in Yamalok. Then sage Angira gave him the way to worship and fast for Lord Vishnu on Ekadashi Tithi of Shukla Paksha of Ashwin month. By fasting and worshiping as per his instructions, he got free from all his sins and went to Vishnu Lok.

Dear readers, in the above article I have given you a brief information about Papankusha Ekadashi. I hope you liked this information. Please give your opinion by commenting.

Gratitude and thanks.

-Astro Richa Srivastava

ऐसा करेंगे तो शनि ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

ऐसा करेंगे तो शनि ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

न्याय के स्वामी कहे जाने वाले शनिदेव जातक की लग्न कुंडली में मौजूद बारह भावों पर बहुत ही सटीक लेकिन काफी धीमा प्रभाव डालते हैं। शनिदेव कुंडली में जहां बैठते हैं और जहां पर अपनी सीधी दृष्टि डालते हैं उसका बहुत ही सटीक प्रभाव हमारे प्रत्यक्ष जीवन पर अवश्य पड़ता है। वैदिक ज्योतिष में शनि ग्रह को एक क्रूर ग्रह के तौर पर देखा जाता है। यदि जातक की लग्न कुंडली में शनि ग्रह की स्तिथि मजबूत होती है तो जातक को इसके काफी अच्छे और सुखद प्रभाव स्थिरता के साथ में देखने को मिलते हैं। और दूसरी तरफ अगर का जातक की लग्न कुंडली में शनिदेव थोड़े भी टेढ़े होकर बैठ जायेंगे तो जातक अपनी पूर्ण जिंदगी में संघर्ष भी देखता है तथा भाग्य भी उसका साथ नहीं देता है। इसलिए हर प्रकार से शनिदेव का विराजना और दृष्टि सभी जातकों के जीवन पर अपना गहरा प्रभाव बनाकर रखती है।

सनातन वैदिक ज्योतिष में शनि ग्रह का बहुत ही बड़ा महत्व है। ज्योतिष विद्या में शनि ग्रह को लंबी आयु, स्थाई दुःख, लंबी चलने वाली बीमारियां, मानसिक पीड़ाएं, सूक्ष्म विज्ञान, तकनीकी मस्तिष्क, लोहा धातु, कच्चा खनिज तेल, हर प्रकार के कर्मचारी, हर प्रकार की सेवा देने वाले सेवक, जेल यात्रा आदि का स्थाई कारक माना जाता है। शनिदेव को मकर राशि(10) और कुंभ राशि(11) का स्वामित्व प्राप्त है। शुक्रदेव की तुला राशि(7) शनिदेव की उच्च राशि है तथा मंगलदेव की मेष राशि(1) में जाते ही यह नीच प्रभावी हो जाते हैं। क्योंकि शनिदेव की चाल सभी ग्रहों में सर्वाधिक धीमी है इसलिए शनि ग्रह का गोचर किसी भी राशि में ढ़ाई वर्ष तक बना रहता है। ज्योतिष विद्या में शनिदेव की ढाई वर्ष की ढैया और साढ़े सात वर्ष की साढ़ेसाती बहुत चर्चित है। शनिदेव की टेढ़ी दृष्टि और ढैया एवम साढ़ेसाती का भय अधिकांश जातकों में अक्सर देखा जाता है। जबकि ज्ञान आधार पर शनिदेव सर्वाधिक कल्याण करने वाले ग्रह हैं। वह तो बस का कर्मों का सीधा फल प्रदान करते हैं।

नक्षत्रों में शनिदेव पुष्य नक्षत्र, अनुराधा नक्षत्र और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के स्वामी होते हैं। शनिदेव जब भी साढ़ेसाती के रूप में किसी जातक के जीवन में प्रवेश करते हैं तो आने वाली तिथि से 06 माह पूर्व ही अपना प्रभाव दिखाना प्रारंभ कर देते हैं। तथा जाने वाली तिथि के 06 माह पश्चात ही अपना पूर्ण प्रभाव उस स्थान से छोड़ते हैं। शनिदेव को समझना हैं और उनकी कृपा का रसपान करते रहना है तो केवल अपने कर्मों पर ध्यान देना शुरू कर दो। जहां तुम्हारें अंदर अहंकार ने बीजारोपण किया तो तुरंत ही शनिदेव की न्याय प्रक्रिया तुम पर लागू होनी शुरू हो जाएगी। यह बात अच्छे से समझ लीजिए कि शनिदेव केवल कर्मों का फल प्रदान करने वाले ग्रह हैं। अर्थात जैसे कर्मों का जमावड़ा रहेगा वैसे फलों का आना भी अटल है। आइए अब जानते हैं कि वो कौन सी गलतियां हैं जिसके कारण आपके शनि ग्रह हमेशा के लिए खराब भी हो सकते हैं।

7 गलतियां जो आपके शनि ग्रह को हमेशा के लिए खराब कर देंगी

01. शयन करने वाले कमरे में और सोने वाले बिस्तर पर बैठकर बहुत लंबे समय तक अन्न ग्रहण करते रहना।

02. अगर विवाह अग्नि को साक्षी मानकर किया गया है और इसको ध्यान में रखते हुए परस्त्री से संबंध रखना।

03. बहुत अधिक बाल झड़ने पर तथा बहुत अधिक आंखो की दृष्टि कमजोर होने पर लगातार खड़े होकर स्नान करते रहना।

04. स्वयं का मकान बनवाते समय अपने ही मजदूरों पर हाथ उठाना और अपशब्द कहना और उनकी मजदूरी समय पर नहीं देना।

05. किसी भी शुभ तिथि या भगवान के जन्मोत्सव पर या किसी भी तीज-त्यौहार के समय पति-पत्नी द्वारा पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य की पालना नहीं करना।

06. चोरी करना, ईमानदारी का अभाव, दूसरों के विपरीत समय का मजाक उड़ाना, ईश्वर के धन स्थान, समाज के धन स्थान का प्रयोग अपने निजी स्वार्थ के लिए करना।

07. अपनी धर्म पत्नी, संतान, माता-पिता की सेवा और संतुष्टि के अभाव में हमेशा घर से बाहर व्यर्थ में लोगों की दिखावटी सेवा में लगे रहना।

-गुरु सत्यराम

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If you do this, Saturn can be bad for your entire life (Hindi & English)

Shani Dev, who is called the lord of justice, has a very precise but very slow effect on the twelve houses present in the native’s Lagna Kundali. Wherever Shani Dev sits in the Kundali and wherever he casts his direct gaze, it definitely has a very precise effect on our direct life. In Vedic astrology, Saturn is seen as a cruel planet. If the position of Saturn is strong in the native’s Lagna Kundali, then the native gets to see its very good and pleasant effects with stability. And on the other hand, if Shani Dev sits even slightly crookedly in the native’s Lagna Kundali, then the native sees struggle in his entire life and luck also does not support him. Therefore, in every way, the sitting and sight of Shani Dev keeps its deep effect on the life of all the natives.

Saturn has a very big importance in Sanatan Vedic astrology. In astrology, Saturn is considered to be the permanent factor of long life, permanent sorrow, long lasting diseases, mental pains, subtle science, technical brain, iron metal, crude mineral oil, all types of employees, servants providing all types of services, jail visits etc. Shani Dev has ownership of Capricorn (10) and Aquarius (11). Venus’s Libra sign (7) is Shani Dev’s exalted sign and as soon as Mars goes to Aries sign (1), it becomes lowly influential. Because Shani Dev’s speed is the slowest among all planets, therefore, Saturn’s transit remains in any sign for two and a half years. In astrology, Shani Dev’s two and a half years of Dhaiya and seven and a half years of Sadesati are very famous. Shani Dev’s crooked vision and fear of Dhaiya and Sadesati is often seen in most of the people. Whereas on the basis of knowledge, Shani Dev is the most beneficial planet. He simply provides direct results of deeds.

Among the nakshatras, Shanidev is the lord of Pushya nakshatra, Anuradha nakshatra and Uttarabhadrapada nakshatra. Whenever Shanidev enters the life of a person in the form of Sadhesati, he starts showing his effect 6 months before the coming date. And he leaves his full effect from that place only 6 months after the leaving date. If you want to understand Shanidev and keep enjoying his blessings, then start focusing on your deeds. Wherever ego sows seeds inside you, the justice process of Shanidev will immediately start getting applied on you. Understand this thing well that Shanidev is only the planet that gives the fruits of deeds. That is, as the deeds keep piling up, the fruits are also inevitable. Let us now know what are those mistakes due to which your Saturn can get spoiled forever.

7 mistakes that will spoil your Saturn forever

01. Eating food for a long time while sitting in the bedroom and on the bed.

02. If the marriage has been done with fire as a witness, then keeping this in mind, having relations with another woman.

03. If there is excessive hair fall and eyesight is very weak, then continuously taking bath while standing.

04. While building one’s own house, raising hands on one’s own workers and using abusive language and not paying their wages on time.

05. Husband and wife not observing celibacy completely on any auspicious date or on the birthday of God or on any festival.

06. Stealing, lack of honesty, making fun of others’ adverse times, using God’s wealth place, society’s wealth place for personal gain.

07. Always being engaged in useless service to people outside the home in a superficial manner due to lack of service and satisfaction to one’s wife, children, parents.

-Guru Satyaram

घर बैठे भगवान शिव को प्रसन्न करें (Hindi & English)

घर बैठे भगवान शिव को प्रसन्न करें (Hindi & English)

Om-Shiva

देवों के देव महादेव – ईश्वरीय कृपा प्राप्ति का वह मार्ग जिस पर चलने वाला साधक सदैव प्रसन्न बना रहता है। क्योंकि जब कोई नहीं था तब भी शिव थे, और जब कोई नहीं रहेगा तब भी शिव रहेंगे। महादेव जिनका ना आदि है और ना अंत। वैसे तो महादेव को प्रसन्न करने के लिए बहुत अधिक उपायों की आवश्यकता नहीं पड़ती है, लेकिन महादेव की प्रसन्नता प्राप्ति में भक्त की शुद्ध भावना ही सब उपायों में आवश्यक एवम श्रेष्ठ मानी जाती है। शिवलिंग पर मात्र जल अर्पण करने से ही महादेव कृपा बरसाने लग जाते हैं।

अपने साधना काल के आरंभिक दौर में मैने यह जाना कि श्रीमद भगवत गीताजी के 18 अध्यायों का नित्य पाठ करना भी महादेव की कृपा प्राप्ति का एक सरल मार्ग है। और जब एक साधक महात्म्य के साथ 18 अध्यायों का अध्ययन करता है तो भक्त के बहुत सारे कष्ट महादेव काट देते हैं। मेरे निजी अनुभव में श्री गीताजी के 18 अध्यायों में से 10वें अध्याय का जो महात्म्य है उसमे एक पक्षी के द्वारा महादेव की स्तुति का बहुत ही सुंदर वर्णन किया गया है। अनुभव अनुसार इस स्तुति को जो भी भक्त अपने नित्य पूजन में शामिल कर लेता है तो वह महादेव का कृपापात्र बना रहता है। आप भी इस सरल स्तुति के द्वारा महादेव का पूजन अवश्य कीजियेगा।

घर बैठे भगवान शिव को प्रसन्न करें इस सरल प्रार्थना द्वारा

।।ॐ नमः शिवाय।।

महादेव! आपकी जय हो। आप चिदानंदमयी सुधा के सागर तथा जगत के पालक हैं। सदा सद्भावना से युक्त एवम् अनासक्ति की लहरों से उल्लसित हैं। आपके वैभव का कहीं अंत नहीं है। आपकी जय हो। अद्वैत वासना से परिपूर्ण बुद्धि के द्वारा आप त्रिविध मलों से रहित हैं। आप जितेंद्रिय भक्तों के अधीन रहते हैं तथा ध्यान में आपके स्वरूप का साक्षात्कार होता है। आप अविद्यामय उपाधि से रहित, नित्यमुक्त, निराकार, निरामय, असीम, अहंकार शून्य, आवरण रहित और निर्गुण हैं।

आपके चरणकमल शरणागत भक्तों की रक्षा करने में प्रवीण हैं। अपने भयंकर ललाट रूपी महासर्प की विष ज्वाला से आपने कामदेव को भस्म किया है। आपकी जय हो। आप प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों से दूर होते हुए भी प्रामाणय स्वरूप हैं। आपको बार-बार नमस्कार है। चैतन्य के स्वामी तथा त्रिभुवनरूपधारी आपको प्रणाम है। मैं श्रेष्ठ योगियों द्वारा चुंबित आपके उन चरण-कमलों की वंदना करता हूं, जो अपार भव-पाप के समुद्र से पार उतारने में अद्भुत शक्तिशाली हैं। महादेव! साक्षात बृहस्पति भी आपकी स्तुति करने की धृष्टता नहीं कर सकते। सहस्त्र मुखों वाले नागराज शेष में भी इतनी चातुरी नहीं है कि वे आपके गुणों का वर्णन कर सकें। फिर मेरे-जैसे छोटी बुद्धि वाले पक्षी की तो बिसात ही क्या है।

।।ॐ नमः शिवाय।।

– गुरु सत्यराम

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Make Lord Shiva happy at home (Hindi & English)

Om-Shiva

Mahadev, the God of Gods – the path of attaining divine grace on which the devotee remains happy always. Because when there was no one, Shiva was there, and when there will be no one, Shiva will remain there. Mahadev has no beginning and no end. Although, many measures are not required to please Mahadev, but the pure feelings of the devotee are considered essential and best among all measures to please Mahadev. Mahadev starts showering his blessings just by offering water on Shivling.

In the initial phase of my Sadhana period, I came to know that daily recitation of 18 chapters of Shrimad Bhagwat Geeta is also an easy way to attain the grace of Mahadev. And when a devotee studies 18 chapters along with Mahatmya, then Mahadev removes many of the troubles of the devotee. In my personal experience, the greatness of the 10th chapter out of the 18 chapters of Shri Geeta Ji, has a very beautiful description of the praise of Mahadev by a bird. According to experience, any devotee who includes this praise in his daily worship remains blessed by Mahadev. You too must worship Mahadev with this simple praise.

Please Lord Shiva at home with this simple prayer

।।Om Namah Shivaya।।

Mahadev! Victory to you. You are the ocean of nectar of bliss and the protector of the world. You are always filled with good will and are delighted with the waves of detachment. There is no end to your glory. Victory to you. With a mind full of non-dual desires, you are free from the three types of impurities. You remain under the control of the devotees who have controlled their senses and your form is realized in meditation. You are devoid of the title of ignorance, eternally free, formless, disease-free, infinite, devoid of ego, without cover and without attributes.

Your feet are expert in protecting the devotees who surrender to you. You have destroyed Kamadeva with the poisonous flame of the great serpent in the form of your fierce forehead. Victory to you. Even though you are far from direct evidence etc., you are the embodiment of authenticity. Salutations to you again and again. Salutations to you, the master of consciousness and the form of the three worlds. I worship your feet kissed by the best yogis, which are amazingly powerful in helping one cross the infinite ocean of worldly sins. Mahadev! Even Brihaspati himself cannot dare to praise you. Even the thousand-headed serpent king Shesh does not have the intelligence to describe your qualities. Then what is the status of a bird with a small intellect like me.

।।Om Namah Shivay।।

– Guru Satyaram

ऐसा करेंगे तो शुक्र ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

ऐसा करेंगे तो शुक्र ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

Om-Shiva

हमारे वैदिक ज्योतिष विज्ञान के अनुसार शुक्र ग्रह को एक शुभ ग्रह माना गया है। इसकी शुभता के प्रभाव से जातक को भौतिक, शारीरिक और वैवाहिक सुख की प्राप्ति होती है। इसलिए ज्योतिष विद्या में शुक्र ग्रह को भौतिक सुख, वैवाहिक सुख, भोग-विलास के सुख, समाज में शौहरत, कला में निपुणता, प्रतिभावान, सौन्दर्य से परिपूर्ण, रोमांस में रुचि, काम-वासना और फैशन-डिजाइनिंग जैसे क्षेत्रों का कारक माना जाता है। शुक्र वृषभ राशि(2) और तुला राशि(7) का स्वामी होते हैं, और मीन राशि(12) इनकी उच्च राशि है, जबकि कन्या राशि(6)इसकी नीच राशि कही गई है। शुक्र ग्रह को 27 नक्षत्रों में से भरणी नक्षत्र, पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र और पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र का स्वामित्व प्राप्त है। नवग्रहों में बुध ग्रह और शनि ग्रह शुक्र ग्रह के परम मित्र ग्रह माने जाते हैं तथा सूर्य ग्रह और चंद्रमा ग्रह शुक्र ग्रह के परम शत्रु ग्रह माने जाते हैं। शुक्र ग्रह का गोचर 23 दिन की अवधि का होता है। अर्थात शुक्र ग्रह एक राशि में क़रीब 23 दिन तक विराजमान बने रहते हैं।

आइए अब सबसे पहले बात करते हैं कि, शुक्र ग्रह का एक सामान्य मानव शरीर की संरचना पर क्या प्रभाव पड़ता है? ज्योतिष विद्या के विज्ञान अनुसार शुक्र ग्रह जिस किसी जातक की कुंडली में लग्न भाव(प्रथम) में विराजमान होते हैं वह जातक रूप-रंग से बेहद सुंदर व आकर्षक दिखता है। जातक का व्यक्तित्व कुछ ऐसा बना रहता है कि वह विपरीत लिंग के जातकों को अपनी तरफ आकर्षित करता रहता है। अच्छी बात यह रहती है कि जातक का स्वभाव मृदुभाषी बना रहता है। कुंडली के लग्न स्थान पर शुक्रदेव का विराजना अर्थात जातक का मन कला के क्षेत्र के प्रति रूचिवान बना रहता है।

 

वैदिक ज्योतिष विद्या के अनुसार यदि शुक्र ग्रह लग्न कुंडली में प्रभावी एवम मजबूत स्थिति में बना हुआ है तो जातक का वैवाहिक जीवन प्रेम से पूर्ण एवम सुखमयी बना रहता है। यदि आपकी कुंडली में शुक्र ग्रह मजबूत हैं तो आपको भी यह अनुभव अवश्य हुआ होगा कि आपका भी प्रेमपक्ष काफी उत्तम बना रहता है। शुक्र ग्रह पति और पत्नी के बीच प्रेम की भावना को बढ़ाता है तथा प्रेम करने वाले जातकों के जीवन में रोमांस की ऊर्जा में वृद्धि करता है। जातक भौतिक जीवन में उच्च की रूचि रखता है तथा उच्च के भोगों का सुख भी प्राप्त करता है।

यदि जातक की कुंडली में शुक्र ग्रह बलहीन स्थिति में हो या किसी क्रूर ग्रह के साथ प्रतिकूल स्थिति में बैठा हो या किसी पाप ग्रह की सीधी दृष्टि शुक्र ग्रह पर पड़ रही हो या शुक्र ग्रह नीच प्रभावी हो गए हों तो ऐसी स्तिथि में जातक को परिवार व प्रेम के क्षेत्र में काफी सारी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। शुक्र ग्रह के अति कमजोर होने पर जातक बहुत ज्यादा प्रैक्टिकल और काफी कम रोमांटिक हो सकता है। इसके साथ ही जातक प्रेम और वैवाहिक जीवन में भी काफी ज्यादा उतार-चढ़ाव से गुजरता है तथा इसी के चलते पति और पत्नी के मध्य मतभेद होते ही रहते हैं। अकारण ही विवाद उत्पन्न होना या कुछ भी ऐसा होना जिसके कारण जातक का वैवाहिक सुख भी क्षीण बना रहता है तथा जातक इतना अधिक परेशान बना रहता है कि वह भौतिक सुखों को भी भोग नहीं पाता है। आइए अब जानते हैं कि वो कौन सी गलतियां हैं जिसके कारण आपके शुक्र ग्रह आजीवन हेतु खराब भी हो सकते हैं।

7 गलतियां जो आपके शुक्र ग्रह को हमेशा के लिए खराब कर देंगी

01. पूर्ण ब्रह्मचर्य की पालना के अभाव में लक्ष्मीजी से संबंधित संकल्पित भक्ति मार्ग में आगे बढ़ना।

02. स्त्रीवर्ग का उचित सम्मान नहीं करना। व्यर्थ में घर की स्त्रियों को कोसना तथा अपशब्द कहते रहना और धर्म पत्नी पर हाथ उठाना।

03. घर की स्त्रियों का हमेशा कर्कश वाणी में ही बात करना। सांझ की संध्या पश्चात या रात्रि के समय घर की स्त्री का निरर्थक शिकायतें करना या कलह करते ही रहना।

04. माता-पिता की आत्मा दुखाकर विवाह करना या विवाह पश्चात किसी भी रूप में माता-पिता की अवहेलना करना।

05. घर की स्त्री का बहुत लंबे समय तक जमीन पर नंगे पांव चलते रहना और पूर्ण एवम् उत्तम श्रृंगार नहीं करना।

06. गृहस्थी में रहते हुए धर्म से संबंधित कार्यों में धर्मपत्नी का हाथ नहीं लगवाना और जीवन के महत्वपूर्ण निर्णयों में धर्मपत्नी की सलाह नहीं लेना।

07. नवविवाहित जोड़े के कमरे में मंदिर का होना, भगवान और गुरुदेव का कोई भी चित्र या पेंटिंग का होना और जिस भी कमरे में गुरुदेव या भगवान का चित्र हो वहां पर स्त्रियों का कपड़े बदलना।

-Guru SatyaRam

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If you do this, Venus can be bad for your whole life (Hindi & English)

Om-Shiva

According to our Vedic astrology, Venus is considered an auspicious planet. Due to its auspiciousness, the native gets material, physical and marital happiness. Therefore, in astrology, Venus is considered to be the factor of material happiness, marital happiness, pleasure of pleasure, fame in society, proficiency in art, talent, beauty, interest in romance, lust and fashion designing. Venus is the lord of Taurus (2) and Libra (7), and Pisces (12) is its exalted sign, while Virgo (6) is said to be its debilitated sign. Out of the 27 constellations, Venus owns Bharani constellation, Purva Phaguni constellation and Purvashada constellation. Among the nine planets, Mercury and Saturn are considered to be the best friends of Venus, while the Sun and Moon are considered to be the worst enemies of Venus. The transit of Venus lasts for a period of 23 days. That is, Venus remains in one zodiac sign for about 23 days.

Now let us first talk about what effect Venus has on the structure of a normal human body? According to the science of astrology, the person in whose horoscope Venus is situated in the ascendant house (first) looks very beautiful and attractive in appearance. The personality of the person remains such that he keeps attracting people of the opposite sex. The good thing is that the nature of the person remains soft-spoken. The presence of Shukradev in the ascendant place of the horoscope means that the mind of the person remains interested in the field of art.

According to Vedic astrology, if Venus is in an effective and strong position in the ascendant horoscope, then the married life of the person remains full of love and happiness. If Venus is strong in your horoscope, then you must have also experienced that your love side also remains very good. Venus increases the feeling of love between husband and wife and increases the energy of romance in the life of the natives in love. The native has a high interest in material life and also enjoys the pleasures of high pleasures.

If Venus is weak in the native’s horoscope or is sitting in an unfavorable position with a cruel planet or a sinful planet is directly looking at Venus or Venus has become lowly influential, then in such a situation the native may have to face many problems in the field of family and love. If Venus is very weak, the native may be very practical and very less romantic. Along with this, the native also goes through a lot of ups and downs in love and married life and due to this, differences keep occurring between husband and wife. Disputes arising without any reason or anything due to which the marital happiness of the native also remains weak and the native remains so troubled that he is not able to enjoy even material pleasures. Let us now know what are those mistakes due to which your Venus can get spoiled for life.

7 mistakes that will spoil your Venus forever

01. Moving forward on the path of devotion related to Lakshmiji without following complete celibacy.

02. Not giving proper respect to women. Cursing and using foul language against the women of the house for no reason and raising hand on the wife.

03. The women of the house always talking in a harsh voice. The woman of the house making useless complaints or quarreling after dusk or at night.

04. Getting married by hurting the spirit of the parents or ignoring the parents in any form after marriage.

05. The woman of the house walking barefoot on the ground for a very long time and not doing complete and perfect makeup.

06. While living in the household, the wife should not be involved in religious activities and the wife should not be consulted in important decisions of life.

07. There should not be a temple in the room of the newly married couple, any picture or painting of God and Gurudev and women should change clothes in the room where there is a picture of Gurudev or God.

-Guru SatyaRam

व्यापार क्षेत्र की मजबूती कैसे करें? (Hindi & English)

व्यापार क्षेत्र की मजबूती कैसे करें? (Hindi & English)

आपकी जन्म कुंडली में व्यापार या नौकरी अर्थात कर्मक्षेत्र को दसवें स्थान से देखा जाता है। दशम भाव के स्वामी को दशमेश या कर्मेश या कार्येश कहा जाता है। दसवें भाव से यह देखा जाता है कि, जातक सरकारी नौकरी करेगा या प्राइवेट? अगर व्यापार करेगा तो कौन सा व्यापार उसे फलित होगा? और उसे आने वाले भविष्य में किस कर्मक्षेत्र में अधिक सफलता मिल पाएगी? कुंडली का सातवां स्थान आपसी भागीदारी का होता है। इस भाव में अगर मित्र ग्रह विराजमान हों तो पार्टनरशिप से लाभ मिलना अटल रहता है। और अगर शत्रु ग्रह विराजे हुए हैं तो आपसी साझेदारी अधिकांश नुकसान ही देती है। स्वाभाविक मित्र ग्रह सूर्य, चंद्र, बुध, गुरु होते हैं। शनि, मंगल, राहु, केतु यह चारों ग्रह भी आपस में मित्र स्वभाव धारण करते हैं। सूर्य, बुध, गुरु और शनि दशम भाव के कारक ग्रह हैं। अर्थात कुंडली में दशम स्थान की गणना से पूर्व इनकी पक्की जांच भी अति आवश्यक हो जाती है।

ऐसा भी कहा जाता है कि मन और अवचेतन मन के स्वामी चंद्रमां ग्रह जिस भी राशि में बैठे हुए हों, उस अमुक राशि के स्वामी ग्रह की प्रकृति के आधार पर या चंद्रमां से उसकी युति अथवा दृष्टि संबंध के आधार पर ही कोई भी जातक अपनी आजीविका या कर्मक्षेत्र के कार्य का चयन करता है। शक्तिशाली चंद्रमां से दशम भाव में अगर बृहस्पति ग्रह विराजे हुए हों तो गजकेसरी/राजकेसरी नामक राजयोग का निर्माण होता है। परंतु ऐसा भी माना जाता है कि अगर बृहस्पति उच्च प्रभावी हों या फिर स्वगगृही होकर बैठे हुए हों तो ही अधिक लाभ प्राप्ति संभव बनी रहती है। ऐसा जातक जन्म से यशस्वी, परोपकारी स्वभाव, प्रकृति से धर्मात्मा, अध्ययन में मेधावी, अति गुणवान और भाग्य से राजपूज्य होता है। यदि जन्म लग्न, सूर्यग्रह और दसवां स्थान बलवान हों तथा पाप ग्रहों के प्रभाव में नहीं आते हैं तो जातक शाहीकार्यों से धन कमाता है और आजीवन सर्वसुख एवम सर्वलाभ अवश्य प्राप्त करता है।

अगर लग्न कुंडली के दसवें स्थान में केवल शुभ ग्रह बैठे हुए हों तो अमल कीर्ति नामक शुभ योग निर्मित होता है। परंतु उसके अशुभ भावेश नहीं होने तथा अपनी नीच राशि में नहीं विराजने की स्थिति में ही इस योग का पूर्ण लाभ मिल पाता है। दसवें स्थान के स्वामी ग्रह के शक्तिशाली होने से जीविका की वृद्धि होती है और निर्बल हो जाने की स्तिथि में लगातार हानि पर हानि होती रहती है। लग्न से द्वितीय और एकादश भाव में बली एवं शुभ ग्रह हों तो जातक केवल व्यापार से ही अधिक धन कमा पाता है। धन भाव के स्वामी और लाभ भाव के स्वामी का आपसी परस्पर संबंध कुंडली में धनयोग का निर्माण कर देता है। दसवें स्थान का कारक ग्रह यदि उसी भाव में ही स्थित हो जाए या दसवें स्थान को सीधी दृष्टि से देख रहा हो तो जातक कभी भी खाली नहीं बैठ सकता है। जातक को कोई ना कोई रोजगार की प्राप्ति अवश्यमेव होती है।

आपके व्यापार को 10 गुना बढ़ाने के लिए 5 सरल उपाय

01. बृहस्पतिवार को सवा किलो साबुत उड़द को एक काले कपड़े में डालकर एक पोटली बना लें। अब पोटली को सीधे हाथ में लेकर 1008 बार “शनि” बोलें और पोटली को ऑफिस में ही पवित्र स्थान पर रख दें या लटका दें।

02. शनिवार को सवा किलो चावल लें अब उसमे से थोड़ा चावल सीधी मुट्ठी में लेकर 108 बार गायत्री मंत्र का जाप करें। अब मुट्ठी वाले चावल को बाकी चावलों के साथ मिलाकर किसी भी पीपल वृक्ष पर अर्पण कर आएं।

03. बुधवार के दिन पंचमुखी भगवान श्रीगणेशजी की बैठी हुई तस्वीर को अपने कार्यस्थल के अंदर स्थान दीजिए और 1 कपूर और 1 लौंग के जोड़े से उन्हें दीप दान कीजिए।

04. मंगलवार के दिन लाल बैल के पैरों की मिट्टी, 4 हल्दी की गांठे, एक मुट्ठी खुशबूदार चावल, एक मुट्ठी सेंधा नमक को एक पीले कपडे में डालकर उसकी पोटली बनाकर अपने ऑफिस में ही पवित्र स्थान पर रख दें या लटका दें।

05. लाल बछड़ी के पैरों की मिट्टी को एक लाल कपड़े में डालकर उसकी पोटली बना लें। अब उस पोटली को ऑफिस के मंदिर में चावल के आसान पर रख लें और नित्य लक्ष्मीजी की स्तुति करा करें।

– गुरु सत्यराम

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How to strengthen business sector? (Hindi & English)

In your birth chart, business or job, i.e., the field of work is seen from the tenth house. The lord of the tenth house is called Dashmesh or Karmesh or Karyesh. It is seen from the tenth house whether the person will do a government job or a private job? If he does business, then which business will be fruitful for him? And in which field of work will he get more success in the future? The seventh house of the horoscope is of mutual partnership. If friendly planets are present in this house, then getting profit from partnership is certain. And if enemy planets are present, then mutual partnership mostly gives losses. Natural friendly planets are Sun, Moon, Mercury, Jupiter. Saturn, Mars, Rahu, Ketu, these four planets also have a friendly nature among themselves. Sun, Mercury, Jupiter and Saturn are the causative planets of the tenth house. That is, before calculating the tenth house in the horoscope, their thorough investigation also becomes very important.

It is also said that the person chooses his livelihood or work field based on the nature of the planet lord of the zodiac sign in which the Moon, the lord of the mind and subconscious mind, is placed or based on its conjunction or aspect with the Moon. If Jupiter is placed in the tenth house from the powerful Moon, then a Rajyoga named Gajkesari/Rajkesari is formed. But it is also believed that if Jupiter is highly influential or is placed in heaven, then only more benefits are possible. Such a person is famous by birth, charitable by nature, religious by nature, brilliant in studies, highly talented and revered by the king by luck. If the birth ascendant, Sun and the tenth house are strong and do not come under the influence of evil planets, then the person earns money from royal works and definitely gets all the happiness and benefits throughout life.

If only auspicious planets are placed in the tenth house of the ascendant horoscope, then an auspicious yoga named Amal Kirti is formed. But the full benefit of this yoga is obtained only when it is not an inauspicious Bhavesh and is not situated in its low zodiac sign. If the lord of the tenth house is strong, the livelihood increases and if it becomes weak, there is continuous loss after loss. If there are strong and auspicious planets in the second and eleventh house from the lagna, then the person is able to earn more money only from business. The mutual relationship between the lord of the wealth house and the lord of the profit house creates Dhanyoga in the horoscope. If the planet responsible for the tenth house is situated in the same house or is looking at the tenth house directly, then the person can never sit idle. The person definitely gets some kind of employment.

5 simple ways to increase your business 10 times

01. On Thursday, put 1.25 kg of whole urad in a black cloth and make a bundle. Now take the bundle in the right hand and say “Shani” 1008 times and keep or hang the bundle in a sacred place in the office itself.

02. Take 1.25 kg rice on Saturday. Now take some rice in your right fist and chant Gayatri Mantra 108 times. Now mix the rice in the fist with the rest of the rice and offer it to any Peepal tree.

03. On Wednesday, place a sitting picture of Panchmukhi Lord Shri Ganeshji in your workplace and donate a lamp to him with 1 camphor and a pair of cloves.

04. On Tuesday, put the soil from the feet of a red bull, 4 turmeric knots, a handful of fragrant rice, a handful of rock salt in a yellow cloth and make a bundle of it and keep it in a sacred place in your office or hang it.

05. Put the soil from the feet of a red calf in a red cloth and make a bundle of it. Now keep that bundle on a seat of rice in the temple of the office and offer prayers to Goddess Lakshmi daily.

– Guru Satyaram

ऐसा करेंगे तो बृहस्पति ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

ऐसा करेंगे तो बृहस्पति ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

जन्मकुंडली में देव गुरु बृहस्पति गुरुदेव के रूप में हमारा प्रतिनिधित्व करते हैं। बृहस्पति ग्रह के शुभ प्रभाव अनुसार जातक दयालु, धार्मिक, धैर्यवान, बुद्धिमान और चंचल स्वभाव को धारण किए ही रहता है। इन्हीं विशिष्ट सद्गुणों के चलते बृहस्पति ग्रह को आंतरिक बल प्राप्त होता है तथा ग्रह से आने वाली रश्मियां कुंडली के शुभ प्रभावों में और भी अधिक वृद्धि करते हुए जातक के जीवन को सुखमय बना देती है। बृहस्पति ग्रह, जिसे हम गुरू ग्रह भी कहते हैं, यह शुभ ग्रह हमारे नवग्रहों में अति महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। ज्योतिष शास्त्र में भी बृहस्पति ग्रह को देवगुरू, ज्ञान का कारक और समृद्धि का कारक कहकर परिभाषित एवम शोभित किया गया है।

जातक की लग्न कुण्डली में बृहस्पति ग्रह बलवान होने की स्तिथि में जातक ज्ञानवान एवं सद्गुणों से सम्पन्न बना ही रहता है। क्योंकि हमारे सभी नवग्रहों में केवल बृहस्पति ग्रह ही सर्वाधिक शुभ ग्रह आते हुए। अगर किसी कन्या जातक की लग्न कुण्डली में बृहस्पति ग्रह कमजोर अवस्था में हो, वक्री अवस्था में हो, पाप ग्रह द्वारा पीड़ित अवस्था में हो या फिर नीच गति को प्राप्त हों तो उसके विवाह में अति विलम्ब देखने को मिलता है। ज्योतिषीय उपायों के माध्यम से बृहस्पति ग्रह को बलवान करने मात्र से ही कन्या जातक को सुहाग एवं सन्तान का सुख सहज ही प्राप्त होना संभव जाता है। बृहस्पति ग्रह संतान का भी कारक होता है। अगर आप सरल माध्यम से गुरू ग्रह को बल देना चाहते हैं तो आप पुखराज रत्न को स्वर्ण धातु की अंगूठी में जड़वाकर गुरूवार के दिन राहुकाल का ध्यान रखते हुए, सूर्यदेव का प्रकाश रहते हुए अपनी तर्जनी (प्रथम) उंगली में धारण करना चाहिए।

अगर आपको पुखराज रत्न थोड़ा सा महंगा लगता है तो आप इसके स्थान पर गुरु ग्रह का उपरत्न सुनहला भी धारण कर सकते हैं। बृहस्पति ग्रह के सर्वाधिक शुभ ग्रह होने के कारण ही इनकी सीधी दृष्टि अति शुभ एवम कल्याणकारी मानी जाती है। वैदिक ज्योतिष के नियमों अनुसार भी अगर किसी भी जातक की लग्न कुण्डली में केन्द्र स्थान पर बृहस्पति ग्रह बैठे हुए हैं तो अन्य ग्रहों से उत्पन्न दोषों की शून्यता स्वतः ही होनी प्रारंभ हो जाती है। कुंडली में केन्द्र स्थान पर विराजमान बृहस्पति ग्रह की प्रशंसा करते हुए ऋषि-महर्षियों का कथन है कि जिसके केन्द्र स्थान पर में बृहस्पति ग्रह विराजे हुए हैं तो कुंडली के अन्य ग्रह अगर एकसाथ होकर भी जातक का विरोध करें तो भी जातक का कुछ नहीं बिगड़ सकता है। आइए अब हम समझते हैं कि उन 07 गलतियों के बारे में जिनके कारण हमारा बृहस्पति ग्रह हमेशा के लिए खराब हो सकता है।

7 गलतियां जो आपके बृहस्पति ग्रह को हमेशा के लिए खराब कर देंगी

1. किसी भी उन्नत पीपल के वृक्ष को मूल जड़ सहित अकारण कटवा देना।

2. अपनी पाठयक्रम की पुस्तकों को पैर लगाना या धर्म ग्रंथों को हमेशा बंद करके ही रखना।

3. नित्य शुद्धि कर्म के नियमों के अभाव में किसी भी पूज्य माला या रुद्राक्ष की माला को धारण करे ही रहना।

4. अपने पितरों और पूर्वजों की उचित एवम् उत्तम सेवा जैसे भोजन, वस्त्र और दक्षिणा उनके नाम से नहीं निकालना।

5. घर आने वाले अतिथि का सामर्थ्य अनुसार उचित सम्मान नहीं करना और घर पर मांगने वालों के आने पर हमेशा ही उन्हें खाली हाथ लौटाना।

6. उत्तम गृहस्थी सुख की प्राप्ति के बावजूद घर की स्त्री का सम्मान नहीं करना और परस्त्री से किसी भी प्रकार का संपर्क रखना।

7. किन्हीं भी गुरुजन, टीचर्स एवम् बुजुर्गों का अपमान करना। उन्हें अपशब्द कहना और उनका आशीर्वाद लिए बगैर कुछ भी शुभ कार्य शुरु करना।

– गुरु सत्यराम

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If you do this, Jupiter can be bad for your entire life (Hindi & English)

In the birth chart, Dev Guru Brihaspati represents us in the form of Gurudev. According to the auspicious effects of Jupiter, the native remains kind, religious, patient, intelligent and playful in nature. Due to these special virtues, Jupiter gets internal strength and the rays coming from the planet increase the auspicious effects of the horoscope even more and make the life of the native happy. Jupiter, which we also call Guru Graha, this auspicious planet holds a very important place among our nine planets. In astrology also, Jupiter has been defined and adorned by calling it Devguru, the factor of knowledge and the factor of prosperity.

In the condition of Jupiter being strong in the ascendant horoscope of the native, the native remains knowledgeable and endowed with virtues. Because among all our nine planets, only Jupiter is the most auspicious planet. If the Jupiter planet is weak in the Lagna Kundali of a girl, is in a retrograde state, is afflicted by the malefic planets or is in a low state, then a lot of delay is seen in her marriage. By merely strengthening the Jupiter planet through astrological remedies, it is possible for the girl to get the happiness of marital bliss and children easily. Jupiter is also a factor for children. If you want to strengthen the Guru planet through simple means, then you should get the Pukhraj gemstone embedded in a gold metal ring and wear it on your index (first) finger on Thursday, keeping in mind the Rahu Kaal, while the sunlight is there.

If you find the topaz gemstone a bit expensive, then you can also wear the golden sub-gemstone of Jupiter in its place. Jupiter being the most auspicious planet, its direct sight is considered to be extremely auspicious and beneficial. According to the rules of Vedic astrology, if Jupiter is placed in the center position in the Lagna Kundali of any native, then the defects caused by other planets start vanishing automatically. Praising the Jupiter placed in the center position in the Kundali, the sages and seers have said that if Jupiter is placed in the center position, then even if the other planets of the Kundali come together and oppose the native, then also nothing can go wrong for the native. Let us now understand about those 07 mistakes due to which our Jupiter can be spoiled forever.

7 mistakes that will spoil your Jupiter forever

1. Getting any grown Peepal tree cut along with its roots without any reason.

2. Touching your textbooks with your feet or always keeping religious texts closed.

3. In the absence of rules of daily purification rituals, wearing any venerated rosary or Rudraksha rosary.

4. Not providing proper and best service to your forefathers and forefathers like giving food, clothes and dakshina in their name.

5. Not giving proper respect to the guests who come to the house according to your capacity and always sending back empty handed when people come to the house to beg.

6. Despite having great domestic happiness, not respecting the woman of the house and having any kind of contact with another woman.

7. Insulting any Guru, teachers and elders. Using abusive language against them and starting any auspicious work without taking their blessings.

– Guru Satyaram

क्या घर के मुख्य दरवाज़े पर गणेश-लक्ष्मी को स्थान देना चाहिए? (Hindi & English)

क्या घर के मुख्य दरवाज़े पर गणेश-लक्ष्मी को स्थान देना चाहिए? (Hindi & English)

हमारे घरों में प्रायः अनेकों ऊर्जाओं का आना जाना लगा रहता है। जिनमें अच्छी और बुरी दोनों ऊर्जाएं शामिल रहती है। हम सभी यही चाहते हैं कि हमारे घरों में केवल सकारात्मक ऊर्जाएं ही आनी चाहिएं। इसके लिए हम पूर्ण रूप से हमारे घर के मुख्य दरवाज़े पर निर्भर बने रहते हैं क्योंकि मुख्य प्रवेश द्वार एक प्रकार से हमारा रक्षक होता है। इसलिए हम हमेशा ऐसे उपायों को प्रयोग में लाते हैं जिससे हमारे मुख्य दरवाज़े को अत्यधिक मजबूती प्राप्त हो पाए।

मुख्य लकड़ी वाले दरवाज़े की मजबूती के संदर्भ में चोखट का एक अहम योगदान रहता है। चोखट में इतनी अधिक ताकत होती है कि परिवार का कोई भी सदस्य जब उसे लांघता है तो नकरात्मक ऊर्जा बाहर ही रह जाती है। लेकिन यह पहले के घरों में अधिक देखने को मिलती थी। आज के वर्तमान निर्माण को देखा जाए तो घरों में चोखट लगभग गायब हो चुकी है। अब चोखट के नाम पर केवल तिखट रह गई है। अब इसके स्थान पर लोगों ने चांदी की तार लगानी शुरू कर दी है। यह ठीक भी है क्योंकि चांदी धातु की प्रकृति ऐसी है कि कोई भी नकरात्मक ऊर्जा को वह तुरंत ही काट देती है।

अब वर्तमान युग में लोग अपने घर के मुख्य दरवाज़े के बाहर गणेश-लक्ष्मी को स्थान देते हैं। उनकी भावना बहुत ही पवित्र होती है लेकिन हमें यहां यह भी समझना होगा कि अगर मुख्य दरवाज़े के बाहर आपने किन्हीं भी देवी-देवता को स्थान दिया है तो आपको यह अच्छे से पता होना चाहिए कि उन अमुक देवी-देवता का द्वारपाल होना अति आवश्यक है। अब ना तो लक्ष्मीजी द्वारपाल हैं और ना ही गणेशजी। गणेशजी का सिर कटने से पूर्व वें अवश्य द्वारपाल थें परंतु जब शिवकृपा से उनको नया सिर प्राप्त हुआ तो उनका यह रूप कहीं पर भी द्वारपाल नही बना। आइए कुछ प्रश्नों के माध्यम से इस विषय को और भी अधिक गहराई से समझने का प्रयास करते हैं।

01. क्या घर के मुख्य दरवाजे पर गणेश-लक्ष्मी लगाने चाहिएं?

भगवान श्रीगणेश और माता महालक्ष्मी जी को मुख्य द्वार जो बाहर की तरफ खुलता हो वहां पर स्थान कभी भी नहीं देना चाहिए।

02. क्या भगवान श्रीगणेश और माता महालक्ष्मी जी को घर के अंदर स्थान दे सकते हैं?

जी हां आप भगवान श्रीगणेश और माता महालक्ष्मी जी को मुख्य द्वार जो अंदर की तरफ खुलता हो वहां पर स्थान दे सकते हैं।

03. क्या भगवान श्रीगणेश और माता महालक्ष्मी जी के साथ किसी विशिष्ट दिशा का कोई महत्व है?

भगवान कभी भी किसी भी दिशा से बंधे हुए नहीं होते हैं। बस आप हमेशा यही ध्यान रखें कि भगवान श्रीगणेश आपके साम भाग में ही होने चाहिएं और माता महालक्ष्मी जी आपके वाम भाग में ही होनी चाहिएं।

04. घर के मुख्य दरवाजे पर किन्हें स्थान देना उचित और उत्तम रहता है?

घर के मुख्य दरवाजे जोकि बाहर की तरफ खुलता है उसकी उपरी दीवार पर आप अपनी श्रद्धा अनुसार बैठी हुई अवस्था में पंचमुखी हनुमानजी या पंचमुखी गणेशजी को ही स्थान दीजिए।

05. घर के मुख्य दरवाजे पर कैसा रंग होना चाहिए और मुख्य दरवाजे और अंदर की दीवारों की ऊंचाई कितनी होनी चाहिए?

घर के मुख्य दरवाजे पर सफेद या कोई भी हल्का रंग होना ही उत्तम रहता है। घर के मुख्य दरवाजे की ऊंचाई कम से कम 7 फुट और अंदर की दीवारों की ऊंचाई कम से कम 11 फुट तक होनी ही चाहिए।

06. अपने घर को अनावश्यक नेगेटिव ऊर्जा या बुरी नजरों से कैसे बचाएं?

अपने घर के मुख्य दरवाजे जोकि बाहर की तरफ खुलता है उस पर एक मध्यम आकार का चौकोर दर्पण आप लगा लीजिए और अशोक वृक्ष के पत्तों का तोरण भी आप लगाकर रखिए।

– गुरु सत्यराम

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Should Ganesha and Lakshmi be placed on the main door of the house? (Hindi & English)

Many energies keep coming and going in our homes. These include both good and bad energies. We all want that only positive energies should enter our homes. For this, we completely depend on the main door of our house because the main entrance is our protector in a way. That is why we always use such measures which can make our main door very strong.

Door frames play an important role in strengthening the main wooden door. Door frames have so much strength that when any member of the family crosses it, the negative energy remains outside. But this was seen more in earlier houses. If we look at today’s construction, door frames have almost disappeared from the houses. Now only door frames are left in the name of door frames. Now people have started using silver wire in its place. This is also correct because the nature of silver metal is such that it cuts off any negative energy immediately.

Now in the present era, people give place to Ganesh-Lakshmi outside the main door of their house. Their sentiments are very pure but we also have to understand here that if you have given place to any deity outside the main door, then you should know very well that it is very important for that particular deity to be the doorkeeper. Now neither Lakshmiji is the doorkeeper nor Ganeshji. Before Ganeshji’s head was cut off, he was definitely a gatekeeper, but when he got a new head by the grace of Shiva, this form of his did not become a gatekeeper anywhere. Let us try to understand this topic more deeply through some questions.

01. Should Ganesha-Lakshmi be placed on the main door of the house?

Lord Ganesha and Goddess Mahalakshmi should never be placed on the main door which opens outside.

02. Can Lord Ganesha and Goddess Mahalakshmi be placed inside the house?

Yes, you can place Lord Ganesha and Goddess Mahalakshmi on the main door which opens inside.

03. Is there any significance of any specific direction with Lord Ganesha and Goddess Mahalakshmi?

Gods are never tied to any direction. Just keep in mind that Lord Ganesha should be on your right side and Goddess Mahalakshmi should be on your left side.

04. Whom is it appropriate and best to place on the main door of the house?

On the upper wall of the main door of the house which opens towards outside, place Panchmukhi Hanumanji or Panchmukhi Ganeshji in a sitting position according to your faith.

05. What color should be on the main door of the house and what should be the height of the main door and the inner walls?

It is best to have white or any light color on the main door of the house. The height of the main door of the house should be at least 7 feet and the height of the inner walls should be at least 11 feet.

06. How to protect your house from unnecessary negative energy or evil eyes?

Put a medium-sized square mirror on the main door of your house which opens towards outside and also keep a garland of Ashoka tree leaves.

– Guru Satyaram