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करोड़पति कैसे बना जाए?(Hindi & English)

करोड़पति कैसे बना जाए?(Hindi & English)

मेरे निजी अनुभव में धन एक ऐसा विषय है जिसे जितना अधिक पढ़ा जायेगा उतना ही अधिक आपका अनुभव बढ़ता जायेगा। धन प्राप्ति का सीधा मार्ग उत्तम कर्म करते रहना है, लेकिन उत्तम कर्म करते रहने के पश्चात भी अनेकों जन ऐसे भी हैं जिनकी शिकायत बनी रहती है कि उन्हें उत्तम कर्मों का फल नहीं मिल पाता है। वह इसलिए होता है कि हमारे द्वारा अनजाने में कुछ ऐसी गलतियां हो जाती हैं कि हमारे पास आने वाली धन ऊर्जा का क्षय होना प्रारंभ हो जाता है। बस हमें अपनी नित्य दिनचर्या में कुछ सरल बातों का ध्यान बनाकर रखना है। उसके पश्चात शनै शनै हम ईश्वरीय कृपा से धनवान बनना शुरू हो जाएंगे।

करोड़पति बनने के लिए 9 बातों का ध्यान रखिए

1. घर के मंदिर में कभी भी खड़े होकर पूजा नहीं करें।

2. घर का मंदिर हमेशा आपके आज्ञा चक्र के समानांतर या उससे ऊपर ही होना चाहिए।

3. नित्य की पूजा का आसन कुशासन ही होना चाहिए जिस पर लाल ऊन से बना हुआ कोई भी कपड़ा बिछा हुआ हो।

4. मंगलवार और शनिवार को हमेशा सुबह तथा शाम को झाड़ू लगनी ही चाहिए। झाड़ू हमेशा आपने लाल कपड़े से ढक कर और दूसरों की नजरों से छिपा कर ही रखनी है।

 

5. 108 दिन में एक बार पूरे घर की विशेषतः घर के मंदिर (ईशान कोण) की सफाई अवश्य करें और भगवान के वस्त्र और पूजन सामग्री इत्यादि भी नयी प्रयोग करें।

6. महीने में एक बार किसी भी शुभ दिन सामान्य शुद्धि हवन अवश्य करवाएं या हफ्ते में किसी भी एक दिन या फिर नित्य शाम की संध्या के समय देसी गौमाता के गोबर धन के कंडो की धूनी को “श्रीं” मंत्रजाप के साथ पूरे घर में दिखाएं।

7. हर महीने अपने घर की मुख्य पानी की टंकी की सफाई अवश्य करवाएं और उसमें थोड़ा सा गंगाजल अवश्य मिलाएं।

8. अपने फटे या उधड़े हुए वस्त्र किसी को भी नहीं दिया करें अपितु साफ व उत्तम सिले हुए कपड़े ही जरूरतमंदो को दिया करें।

9. अपने जन्मदिन पर रुद्राभिषेक अवश्य करवाया करें और इस शुभ अवसर पर थोड़ा अन्नदान भी अवश्य करा करें।

Guru SatyaRam
Guru SatyaRam

– गुरु सत्यराम

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How to become a millionaire? (Hindi & English)

In my personal experience, wealth is such a subject that the more you study, the more your experience will increase. The direct way to get wealth is to keep doing good deeds, but even after doing good deeds, there are many people who keep complaining that they do not get the fruits of good deeds. This happens because we inadvertently make some mistakes due to which the money energy coming to us starts getting depleted. We just have to keep some simple things in mind in our daily routine. After that, gradually we will start becoming rich by the grace of God.

Keep these 9 things in mind to become a millionaire

1. Never stand and worship in the temple at home.

2. The temple at home should always be parallel to or above your Agya Chakra.

3. The seat for daily worship should be a Kushasan on which any cloth made of red wool is spread.

4. Sweeping should always be done on Tuesdays and Saturdays in the morning and evening. The broom should always be covered with a red cloth and kept hidden from the eyes of others.

 

5. Clean the entire house once in 108 days, especially the temple (east corner) of the house and use new clothes and worship material etc. for the God.

6. Perform general purification havan once a month on any auspicious day or on any one day of the week or every day in the evening, show the incense of cow dung cakes of desi cow mother in the entire house with the chanting of “Shri” mantra.

7. Get the main water tank of your house cleaned every month and add a little Gangajal to it.

8. Do not give your torn or worn out clothes to anyone, instead give clean and well stitched clothes to the needy.

9. Get Rudrabhishek done on your birthday and also donate some food on this auspicious occasion.

Guru SatyaRam
Guru SatyaRam

– Guru Satyaram

 

स्वयं का मकान होना – कलयुग में एक स्वर्णिम सुख(Hindi & English)

स्वयं का मकान होना – कलयुग में एक स्वर्णिम सुख(Hindi & English)

Om-Shiva

अगर आज से 50 वर्ष पीछा जाएं तो स्वयं का मकान बनाना काफी सरल विषय माना जाता था। वह इसलिए भी क्योंकि महंगाई की इतनी अधिक मार नहीं थी और जनसंख्या भी काफी सीमित सी प्रतीत होती थी। परंतु वर्तमान समय में इतनी अधिक महंगाई हो चुकी है कि स्वयं का मकान होना पर्वत पर चढ़ाई करने के समान ही है। अपनी छत होना एक ऐसा सुख है जिसका स्वर्णिम लाभ आने वाली पीढ़ियों को भी प्राप्त होता है। मैं यहां आपको 09 सरल उपाय दे रहा हूं, जिनकी पालना करने से आपको मकान का सुख अवश्य प्राप्त होगा।

अपना मकान बनाने के लिए 9 सरल उपाय

स्वयं का मकान बनाने के लिए किन प्रमुख ग्रहों का मजबूत होना आवश्यक है?
शनि – मंगल – चन्द्रमा – बृहस्पति

1. मंगलवार या शनिवार या गुरुवार को एक चिड़िया का घोंसला लेकर आएं और ऐसे स्थान पर उसे रख दें जहां पर कोई भी चिडिय़ा आकर उसमे अपना घर बना ले।

2. मंगलवार या शनिवार या गुरुवार को एक चिड़िया का घोंसला लेकर आएं जिसमे चिड़िया और उसके बच्चे भी हों। अब उसे घर में दक्षिण या पश्चिम दिशा की तरफ लटका दीजिए और 21 मंगलवार और शनिवार उस पर हल्दी का छीटां दें और दीपक दिखाएं।

3. एक लाल कपड़े में बंदर के पैरों की मिट्टी डालकर पोटली बना लें और 108 हनुमान चालीसा का पाठ कर उसे किसी भी पवित्र स्थान पर रख दें।

4. एक काले कपड़े में कौवे के पैरों की मिट्टी और 100 ग्राम साबुत काली उड़द डालकर एक पोटली बना लें और 108 बार “ॐ छाया माता नमो नमः” का जाप करें फिर उसे किसी भी पवित्र स्थान पर रख दें।

5. किसी भी बुजुर्ग विधवा स्त्री को माता रूप में कुछ भी पहनने वाले वस्त्र उनकी पसंद अनुसार भेंट करें और लगातार उनका आशीर्वाद प्राप्त करते रहें।

6. अपनी श्रद्धा अनुसार मजदूर वर्ग के बच्चों को 11 मंगलवार और शनिवार को देसी घी में बनी हुई उड़द डाल की पीली खिचड़ी खिलाएं। किसी भी रूप में बेसन की बनी हुई कोई भी मिठाई भी बच्चों में जरूर बांटें।

7. लंगूर के बच्चों को मीठे दूध में भीगी हुई रोटी अवश्य दें और गुड़+चना अपने हाथ से खिलाएं।

8. एक पीले रंग के कपड़े में 100 ग्राम चावल + 100 ग्राम साबुत काली उड़द + 100 ग्राम लाल मसूर डालकर उसकी पोटली बना लें। अब इस पोटली को अपने शयन करने वाले कमरे में रख दें या अपने सिरहाने के नीचे रख लें।

9. 11 पूर्णिमा लगातार शुद्ध केसर मिश्रित खीर बनाकर दुर्गाजी को भोग लगाएं और प्रसाद रूप में 9 वर्ष तक की कन्याओं को खिलाएं और खुशखबरी मिलने के पश्चात छोटी कन्याओं में कुछ चमकीले वस्त्र बांटें।

Guru SatyaRam
Guru SatyaRam

– गुरु सत्यराम

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Owning a house – a golden pleasure in Kaliyug.

Om-Shiva

If we go back 50 years from today, building one’s own house was considered a very simple matter. That too because inflation was not so much and the population also seemed to be quite limited. But in the present time, inflation has become so high that owning a house is like climbing a mountain. Having one’s own roof is such a pleasure whose golden benefits are also received by the coming generations. Here I am giving you 09 simple remedies, by following which you will definitely get the happiness of a house.

9 simple remedies to build your own house

Which major planets are required to be strong to build one’s own house?

Saturn – Mars – Moon – Jupiter

1. On Tuesday or Saturday or Thursday, bring a bird’s nest and keep it in such a place where any bird can come and make its home in it.

2. On Tuesday or Saturday or Thursday, bring a bird’s nest which contains the bird and its babies. Now hang it in the south or west direction of the house and sprinkle turmeric powder on it and light a lamp on 21 Tuesdays and Saturdays.

3. Put soil from the feet of a monkey in a red cloth and make a bundle. Recite Hanuman Chalisa 108 times and keep it in any holy place.

4. Put soil from the feet of a crow and 100 grams of whole black urad in a black cloth and make a bundle. Recite “Om Chaya Mata Namo Namah” 108 times and then keep it in any holy place.

5. Gift any old widowed woman any clothes of her choice which she can wear in the form of mother and keep receiving her blessings continuously.

6. According to your faith, feed the children of the working class yellow khichdi made of urad dal in desi ghee on 11 Tuesdays and Saturdays. Also distribute any sweet made of gram flour in any form among the children.

7. Give roti soaked in sweet milk to the children of Langur and feed jaggery + gram with your own hands.

8. Put 100 grams of rice + 100 grams of whole black urad + 100 grams of red lentils in a yellow cloth and make a bundle of it. Now keep this bundle in your bedroom or keep it under your pillow.

9. Make pure saffron mixed kheer for 11 consecutive full moon days and offer it to Durgaji and feed it to girls up to 9 years of age as prasad and after getting good news distribute some bright clothes among small girls.

Guru SatyaRam
Guru SatyaRam

– Guru Satyaram

क्या स्त्रियां भी श्रीहनुमान चालीसा का पाठ कर सकती हैं? 

क्या स्त्रियां भी श्रीहनुमान चालीसा का पाठ कर सकती हैं?

श्री हनुमान चालीसा: एक संक्षेप विवरण

 

 

 

श्री हनुमान चालीसा अवधी भाषा में लिखी गई एक विशिष्ट काव्यात्मक कृति है। इस भक्ति रस से पूर्ण कृति में भगवान श्री रामचन्द्रजी के परम एवम महान भक्त श्रीहनुमान जी के गुणों, कार्यों एवम सेवा भाव का चालीस चौपाइयों के द्वारा वर्णन किया गया है। इसके रचयिता भगवान श्रीरामचन्द्रजी महाराज के अनन्य भक्त श्रीगोस्वामी तुलसीदास जी हैं। 

श्री गोस्वामी तुलसीदासजी: जीवन परिचय 

 

 

हर वर्ष उत्तम सावन मास के शुभ शुक्ल पक्ष की श्रेष्ठ सातवीं तिथि पर श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी की जयंती हम सभी भक्तजन मनाते हैं। श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी का जन्म संवत् 1554 में उत्तर प्रदेश के पवित्र चित्रकूट जिले के राजापुर गांव में हुआ था। इसी गांव में ही श्रीरामचरित मानस मंदिर है, जहां श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी ने यह ग्रंथ मात्र 966 दिनों में लिखा था। श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी संवत्‌ 1680 में इस मानव देह को त्यागते हुए प्रभु श्रीरामचंद्रजी महाराज के पावन चरणों की सेवा में विलीन हो गए थे। 

श्री गोस्वामी तुलसीदासजी: एक विशिष्ट पूजनीय भक्त 

 

 

यह भी कहा जाता है कि अपने जन्म के तुरंत बाद भी श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी रोए नहीं थे अपितु स्वाभाविक रोने के स्थान पर उनके श्रीमुख से भगवान श्रीसांब सदाशिव का परम प्रिय शब्द ‘राम’ निकला था। इस ईश्वरीय लीला के कारण ही  बचपन में श्रीगोस्वामी तुलसीदासज़ी का नाम रामबोला था। ऐसा भी भक्तों के द्वारा कहा जाता है कि जन्म से ही श्रीगोस्वामी तुलसीदास जी के बत्तीस दांत थे। 

श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी का जीवन 

 

 

श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी के जन्म के कुछ समय पश्चात ही  इनकी माताश्री हुलसी देवी का निधन हो गया था। इनके पिताश्री का नाम श्रीआत्माराम था। अपने बचपन से ही श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी(बालक रामबोला) संतों एवम विद्वानों की शरण में रहने लग गए थे। कुछ समय पश्चात ही बाबा श्री नरहरी जी ने इन्हें तुलसीदास नाम दिया था। बाबा।श्री नरहरी जी को श्री गोस्वामी तुलसीदासजी का गुरु माना जाता है। तुलसीदासजी की शादी देवी रत्नावली से हुई थी। विवाह के कुछ समय बाद ही वे अपनी धर्मपत्नी पत्नी से दूर हो गए थे और प्रभु श्रीरामजी की भक्ति में लीन हो गए। 
श्री गोस्वामी तुलसीदासजी ने अपने 111 वर्ष के जीवन में कई अनुपम ग्रंथों की रचना की थी। इनमें श्रीरामचरित मानसजी सर्वाधिक प्रसिद्ध है। इस अलौकिक श्रीग्रंथ के सुंदरकांड का पाठ कई भक्तों की नियमित दिनचर्या है। विनय पत्रिका और श्रीहनुमान चालीसा की रचना भी श्रीगोस्वामी तुलसीदास ने की थी। 

श्री हनुमान चालीसा को लिखने हेतु प्रेरणा स्रोत 

 

 

भगवान श्री महादेवजी के कहने पर लिखा गया था श्रीरामचरित मानस। ऐसा माना जाता है कि श्री गोस्वामी तुलसीदासजी को स्वपन के माध्यम में भगवान शिव ने आदेश दिया था कि आप अपनी मातृ भाषा में काव्य रचना करो। मेरे श्री आशीष से आपकी रचना तृत्य वेद श्रीसामवेद की तरह ही फलवती होगी। ये स्वपन देखने के पश्चात तुलसीदाजी जाग गए। इसके कुछ समय पश्चात संवत् 1631 को श्रीरामनवमी के शुभ दिन वैसा ही योग बना जैसा त्रेतायुग में प्रभु श्रीरामचंद्रजी के शुभ अवतरण  के समय था। उस दिन प्रातः समय तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस जी को लिखना प्रारंभ किया था। 

श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी ने मात्र 966 दिन में लिखा था 

 

 

श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी ने संवत् 1631 में श्रीरामचरित मानसजी लिखनी आरंभ की थी। संवत् 1633 के अगहन महीने के शुक्लपक्ष की शुभ पंचमी तिथि पर यह पवित्र ग्रंथ पूरा हो गया था। अर्थात इसे पूर्ण करने में पूरे 2 वर्ष, 7 माह और 26 दिनों का समय लगा था। यह भी कहा जाता है कि रचना पूर्ण होते ही श्रीतुलसीदासजी ने सबसे पहले ये ग्रंथ शिवजी को अर्पित किया था। फिर इसे लेकर श्रीतुलसीदासजी काशी गए और यह पवित्र ग्रंथ भगवान श्री विश्वनाथजी के मंदिर में रख दिया था। यह भी माना जाता है कि अगले दिन प्रातः समय उस पवित्र ग्रंथ पर “सत्यं शिवं सुंदरम” लिखा हुआ था। 

मान्यता: श्रीराम और हनुमानजी ने दिए थे तुलसीदासजी को दर्शन 

 

 

ऐसी मान्यता है कि श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी को भगवान श्रीराम और उनके परम भक्त श्रीहनुमानजी ने दर्शन दिए थे। जब श्रीगोस्वामी तुलसीदास जी तीर्थ यात्रा पर काशी गए तो लगातार राम नाम जप करते ही रहे। इसके बाद श्रीहनुमानजी ने उन्हें दर्शन दिए थे। इसके बाद उन्होंने श्रीहनुमानजी से भगवान श्रीजी के शुभ दर्शनों हेतु प्रार्थना करी थी। श्रीहनुमानजी ने तुलसीदाजी के बताया था कि आपको चित्रकूट में श्रीराम के दर्शन प्राप्त होंगे। इसके बाद मौनी अमावस्या पर्व पर श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी को चित्रकूट में भगवान श्रीरामचंद्र जी के दर्शन हुए थे। 

श्री हनुमान चालीसा से संबंधित कुछ विशिष्ट प्रश्न एवम उत्तर। 

 

 

1. हनुमान चालीसा का पाठ हमें कितनी बार करना चाहिए? 

 

श्रीहनुमान चालीसा के पाठ का सर्वोत्तम फल प्राप्त करने के लिए दैनिक शुद्धि पश्चात केवल तांब्र पात्र के जल को ग्रहण करके लगातार 108 पाठ करें। 

2. श्रीहनुमान चालीसा के संकल्पित पाठ का उद्यापन कैसे करना चाहिए? 

 

11 बार श्रीहनुमान चालीसा का सूक्ष्म हवन करने के पश्चात मीठे का हनुमान मंदिर में भोग लगाएं और छोटे बच्चों, बंदरों, लंगूरों या किन्हीं भी पशु-पक्षिओं में बांटें। 

3. संकल्पित पाठ पश्चात क्या नित्य भी हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए? 

 

संकल्पित पाठ पश्चात नित्य 1/3/5/7/9/11 पाठ लगातार 108 दिन अवश्य करना चाहिए। इसके समापन पर किसी भी उद्यापन की आवश्यकता नहीं हैं। 

4. संकल्पित श्रीहनुमान चालीसा का पाठ किस दिन से प्रारंभ करना शुभ रहेगा? 

 

संकल्पित श्रीहनुमान चालीसा का पाठ सुबह की संध्या के समय मंगलवार, गुरुवार, शनिवार के दिन ही प्रारंभ करना अति शुभ और लाभकारी रहेगा। 

5. क्या स्त्रियां भी संकल्पित या सामान्य रूप में श्रीहनुमान चालीसा का पाठ कर सकती हैं? 

 

संकल्पित या सामान्य रूप में अपने सामान्य दिनों में स्त्रियां श्री हनुमान जी को परमेश्वर ब्रह्म रूप में या सदगुरु रूप में मानते हुए श्रीहनुमान चालीसा का पाठ अवश्य कर सकती हैं।
Guru SatyaRam
Guru SatyaRam
-Guru SatyaRam

हमारे देश का नाम “भारत” ही क्यों हैं?

हमारे देश का नाम “भारत” ही क्यों हैं?

हमारे प्यारे देश के नाम भारत में,”भारत” शब्द के उद्भव के कई कारण बताये गए हैं। “भा” संस्कृत में ज्ञान का द्योतक है। जो ज्ञान में रत है वह भारत कहलाता है। हमारे देश में प्रारम्भ से ही ज्ञान की खोज और “अज्ञात” के प्रति शोध-अनुसन्धान की प्रथा रही है। वस्तुतः हमारा देश ज्ञानियों और ऋषि-मुनियों का देश है। जिनकी प्रकांड मेधा से भारत सदा से ही “विश्व” गुरू के पद पर शोभित रहा है। जिनके ज्ञान के प्रकाश से हमारी भारतीय संस्कृति जगमगाती रही है।

हमारी भारतीय संस्कृति में तीन भरत हुए हैं। पहले हुए हैं जड़ भरत जिन्होंने रहूगन को ज्ञान दिया था। वे ज्ञान के प्रतीक एवं ज्ञान योग के सूचक हैं।

दूसरे भरत हुए हैं इक्ष्वाकु वंश के सम्राट दशरथ जी के पुत्र भरत, जिन्होंने अपना सर्वस्व प्रभु श्रीराम जी की भक्ति में अर्पित कर दिया। वे भक्ति की प्रतिमूर्ति हैं अतः वे भक्ति योग के द्योतक हैं।

तीसरे भरत हुए थे देवी शकुंतला एवं श्री चन्द्रवंशी दुष्यंत के पुत्र भरत, जिन्होंने अपने पराक्रम से पूरे विश्व पर विजय पायी थी। वे कर्म पर विश्वास रखते थे इसलिए वे कर्मयोग के प्रवर्तक हैं।

हमारे इस प्यारे देश का नाम भारत तीनो के सामंजस्य से हुआ है। अर्थात हमारा देश कर्म योग, भक्ति योग एवं ज्ञान योग का मिश्रण है जो विश्व में अन्य किसी भी देश को प्राप्त नहीं है।

भारत देश की मिटटी में एक सौंधी सुगन्ध होती है, वह सुगन्ध किसी और देश में नही पाई जाती है। यह खुशबु ज्ञान की है, यह सुगन्ध हजारों वर्षों से चली आ रही हमारी गौरवशाली सांस्कृतिक विरासत की है।

हमें गर्व है कि हम भारत देश के वासी हैं। हम भारतीय हैं। इंडिया शब्द अंग्रेजों(ब्रिटिश) का दिया हुआ है जोकि पूर्णतः केवल गुलामी का ही सूचक है। हिंदुस्तान भी विदेशियों की देन है। हमें इंडिया एवं हिंदुस्तान छोड़ कर भारत को अपनाना होगा।आइए हम संकल्प करें कि हम सभी देशवासी केवल भारतीय बनें, इंडियन नहीं। जय भारत।


– एस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव

शनि का छाया-पात्र का दान क्या होता है? 

शनि का छाया-पात्र का दान क्या होता है?

Om-Shiva 
भगवान शनिदेव का भारतीय सनातनी ज्योतिष शास्त्र में बहुत ही विशिष्ट महत्व माना जाता है। शनिदेव को उनके इष्ट एवम गुरुदेव भगवान श्री सांब सदाशिव ने न्याय की पदवी पर विराजमान कराया है, इसलिए ही शनिदेव को उत्तम न्याय का देवता माना जाता है। न्यायधीश भगवान शनिदेव इस मृत्युलोक के सभी जातकों को उनके कर्मों के आधार पर शुभ/अशुभ फल प्रदान करते हैं। भगवान शनिदेव को जो दंडाधिकारी का पद प्राप्त है उसके चलते सभी के हृदय में शनिदेव के प्रति एक भय भी बना रहता है और महादेव की आज्ञा अनुसार शनिदेव अपने इस उत्तम धर्म की पालना हेतु कभी भी पीछे नहीं हटते हैं।  
भगवान शनिदेव केवल कर्मों के अनुसार ही जातक के जीवन को उठाने हेतु न्याय करने के उपरांत उत्तम फल प्रदान करते हैं। इसलिए बुरे कर्म करने वालों को बुरा फल और अच्छे कर्म करने वालों को अच्छा फल सदा से मिलता आया है और आगे भी मिलता ही रहेगा। ऐसी स्पष्ट मान्यता है कि शनिदेव की सीधी क्रूर द्दष्टि अगर किसी पर पड़ जाए तो जातक के जीवन में संघर्ष के रूप में कई तरह के कष्ट एवम परेशानियां आना शुरू हो जाती हैं। 
वहीं दूसरी तरफ अगर भगवान शनिदेव की सीधी शुभ दृष्टि अगर किसी जातक पर पड़ जाए तो जातक का रंक से राजा बनना अटल हो जाता है। प्रायः भगवान शनिदेव के स्वाभाविक गोचरीय वयवस्था अनुसार चलायमान शनि की साढ़ेसाती और शनि की ढैय्या से लगभग सभी जातक बहुत ही परेशान होकर अपने-अपने जीवन में संघर्षों को अनुभव करते हैं। 
लेकिन भगवान शनिदेव की कृपा जब बरसती है तो जातक राजाओं जैसा जीवन व्यतीत करता हैं। शनिदेव का छाया पात्र का दान भी शनिदेव की कृपा प्राप्ति का अति सर्वोत्तम उपाय माना जाता है। आइए अब जानते हैं कि शनिदेव का छाया पात्र का दान क्या होता है और कैसे इस उपाय से हमारे जीवन में सुखों की बढ़ोत्तरी होती है? 

01. शनि का छाया-पात्र का दान क्या होता है? 

 

शनि ग्रह की अतिरिक्त ऊर्जा जब प्रारब्ध के आधार पर या सामान्य साढ़ेसती के आधार पर या जन्म कुंडली में शनिदेव के विराजने के आधार पर जब अधिक बढ़ जाती है तब शनिदेव के प्रभाव को कम करने के लिए, उनसे क्षमा मांगने के लिए काले तिल, सरसों का तेल और लौह पात्र का दान किया जाता है उसे ही शनि का छाया-पात्र का  दान कहते हैं। 

02. शनि का छाया-पात्र का दान कैसे और किस दिन किया जाता है? 

किसी भी गुरुवार/शनिवार को एक लौह पात्र में थोड़े काले तिल डालकर, सरसों का तेल डालकर पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े होकर पात्र में अपना प्रतिबिंब देखने के पश्चात केवल शनिदेव के मंदिर में ही पात्र समेत दान दिया जाना चाहिए। 

03. शनि का छाया-पात्र का दान किसको देना चाहिए? 

 

शनिदेव के छाया पात्र का दान या शनिग्रह से संबंधित कोई भी दान केवल शनिदेव के मंदिर में ही दिया जाना चाहिए। 

04. शनि का छाया-पात्र का दान किन जातकों को करना चाहिए? 

 

1a. जिनको भी संतान से कष्ट हो, संतान न हो, मुकदमे चल रहे हो, पैरों में अधिक दर्द रहता हो या रीढ़ की हड्डी प्रभावित रहती हो या उनकी जन्म राशि पर साढ़ेसती चल रही हो। उन्हें छाया पात्र का दान 11 गुरुवार/शनिवार अवश्य करना चाहिए। 
2b. जिनकी लग्न कुंडली में शनिदेव अगर 1,2,5,7,9 भाव में विराजे हुए हों तो जब आपकी जन्म राशि पर साढ़ेसती आयेगी तो ऐसे जातकों को उस दौरान प्रत्येक वर्ष 11 गुरुवार/शनिवार लगातार छाया पात्र का दान अवश्य करना चाहिए 
Guru SatyaRam
Guru SatyaRam
-Guru SatyaRam 

क्या होते हैं स्मार्त और वैष्णव?

आइए जानते हैं क्या होते हैं स्मार्त और वैष्णव??

प्रायः आप लोगों ने पंचांग, कैलेंडरों आदि में किसी पर्व(त्योहार) के व्रत, पूजन, आदि के सम्बंध में दो तिथियां देखी होंगी। एक वैष्णव लोगों के लिए, दूसरी तिथि स्मार्त लोगों के लिए। तो आइए, जानते हैं, कौन हैं ये वैष्णव और स्मार्त ? 

 

*स्मार्त* – वेद, पुराण, श्रुति- स्मृति, को मानने वाले चारों वर्ण    (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र), गायत्री और पंच देवों, देवियों, देवताओं को मानने वाले ये सभी आस्तिक लोग स्मार्त कहलाते हैं। साधारण शब्दो मे कहा जाए तो आम सनातनी हिन्दू जनता जो अपनी गृहस्थी में रहते हुए ही अपने धर्म का पालन करती जो। इन लोगों को स्मार्तीय तिथियों में ही व्रत, उपवास, दान, यम, नियम करना चाहिए। 
*वैष्णव* – वे धर्मपरायण लोग, जिन्होंने किसी प्रतिष्ठित वैष्णव सम्प्रदाय के गुरु से दीक्षा ग्रहण की हो, गले में श्री गुरुदेव द्वारा दी गई कंठी धारण की हो, तथा मस्तक एवं गले पर श्रीखंड चंदन या गोपी चंदन के तिलक, त्रिपुंड आदि के चिन्ह धारण करते हों, बिना लहसुन प्याज़ के शुद्ध शाकाहारी भोजन करते हों, ऐसे भक्त जन वैष्णव कहलाते हैं। 
वैष्णव जन के पर्व त्योहार की तिथि, स्मार्त जन के एक दिन बाद पड़ती है। 
हमारे ग्रंथो में तिथि, मुहूर्त अनुसार ही व्रत, पूजन, उपवास, दान आदि का महत्व है। अतः दी गयी स्मार्त और वैष्णव तिथि अनुसार ही उपवास त्योंहार आदि करें। तभी सुफल प्राप्त होगा। 
– ज्योतिषाचार्य ऋचा श्रीवास्तव

गुरुतत्व और गुरु शरीर में क्या अंतर होता है?

गुरुतत्व और गुरु शरीर में क्या अंतर होता है?

 

  1. गुरुतत्व का मूल अर्थ क्या है?

  2. गुरु शरीर के माध्यम से गुरुतत्व की कृपा कैसे प्राप्त करें?

  3. घर पर रहकर ही गुरुतत्व से कैसे जुडें?

  4. गुरुतत्व से जुड़कर मन्त्र दीक्षा कैसे प्राप्त करें?

  5. गुरु का शरीर समाधि धारण कर लें तो आगे शिष्य का क्या धर्म है?

 

गुरुतत्व का मूल अर्थ क्या है?

इस सम्पूर्ण सृष्टि में जो ईश्वरीय तत्व व्याप्त है जब वही परम तत्व हमें किसी शरीर, भावना, घटना, स्मृति या शरीर के माध्यम से हमें कुछ भी सिखाने का प्रयास करता है तो वहां पर गुरुतत्व का ही भाव किया जाता है। अर्थात आप जो कुछ भी सीख रहें हैं उसको सिखाना वाला गुरु का शरीर कहलायेगा और जो उस शरीर के माध्यम से आपको ज्ञान दे रहा है वह गुरुतत्व कहलायेगा। 

 

गुरु शरीर के माध्यम से गुरुतत्व की कृपा कैसे प्राप्त करें?

एक सामान्य जातक के लिए ज्ञान के अभाव में केवल गुरु का शरीर ही सबकुछ होता है। लेकिन जब गुरुतत्व की कृपा से साधक इस ब्रह्म ज्ञान से एकाकार हो जाता हैं कि शरीर तो केवल एक माध्यम है ईश्वर के ही दूसरे रूप अर्थात गुरुतत्व से जुड़ने का। आगे बढ़ते हुए जातक को सदैव यही स्मरण रखना चाहिए कि गुरुतत्व ही मुझे सम्मुख गुरु शरीर के माध्यम से माया रुपी अज्ञानता से बाहर लाने का प्रयास कर रहें हैं। इसलिए जातक को गुरु शरीर के माध्यम से जो भी सन्देश चाहे वह मंत्र के रूप में, डांट के रूप में, प्रसाद के रूप में, प्रवचनों के रूप में, या उर्जा रूप में प्राप्त हो उसे ईश्वरीय प्रसाद मानते हुए सदैव धारण करे ही रहना चाहिए। इसी आधार पर कोई भी साधक गुरु शरीर के माध्यम से परमब्रह्म गुरुतत्व से जुड़ा रहेगा।   

 

घर पर रहकर ही गुरुतत्व से कैसे जुडें?

यहाँ गुरुतत्व से जुड़ना अर्थात सीधे अर्थों में गुरु धारण करना रहेगा। इसके लिए मैं आपको अपनी साधना के अनुभव आधार पर कुछ सरल विधि बताता हूँ। आप श्रीमद्भागवत गीताजी को लेकर आइये। गीताजी को प्रणाम कीजिये, उन्हें आसन दीजिये और ईश्वर रुपी गुरु तत्व का आह्वाहन करते हुए मानसिक रूप से प्रार्थना कीजिये कि हे परम तत्व मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि श्री गीताजी शास्त्र के माध्यम से आप मुझे साधक के रूप में स्वीकार कीजिये और श्री गीताजी के वचनों के माध्यम से मेरा मार्गदर्शन कीजिये। श्री गीताजी में 18 अध्याय हैं, अगर जातक नित्य एक अध्याय को पढ़ते हुए अपने दिन की शुरुआत करेगा तो धीरे-धीरे अपने गुरुतत्व की कृपा से साधक चेतना के स्तर आधार पर ऊँचा उठाना प्रारम्भ कर देगा। मात्र ऐसा करते रहने से ही जातक उतम ब्रह्मविद्या के मूल बीज को अपने अनाहत में स्थायी रूप से ग्रहण कर लेगा।  

गुरु तत्व से जुड़कर मन्त्र दीक्षा कैसे प्राप्त करें?

जब एक साधक अपने गुरुतत्व से जुड़ना सीख जाता है तो उसके लिए गुरुतत्व से आने वाली प्रत्येक क्रिया ही उसके लिए एक मंत्र की भांति ही मूल्यवान बनी रहती है, अर्थात जो कुछ भी गुरुतत्व की क्रिया सम्मुख आती है तो जातक उसी क्रिया को मंत्र रुपी दीक्षा मानकर ग्रहण कर लेता है। उदाहरण समझिये की साधक सम्मुख गुरु शरीर में जब गुरु तत्व से जुड़ जाता है तो जो कुछ भी गुरु मुख से निकलेगा साधक उसे ही मंत्र रूप मानकर ग्रहण कर लेगा तथा उस आदेश या वचन रुपी मंत्री की पालना ही उसके लिए दीक्षा होगी। अर्थात यहाँ गुरुतत्व वचनों की पालना ही मंत्र दीक्षा कहलाएगी। 

 

गुरु का शरीर समाधि धारण करलें तो आगे शिष्य का क्या धर्म है?

जब जातक अपने गुरुतत्व से जुड़ जाता है तो गुरु शरीर द्वारा दिखाए गए प्रकाश मार्ग पर ही अग्रसर बना रहता है। अर्थात अब ईश्वर इच्छा से गुरु का शरीर समाधि की अवस्था धारण कर लें तो अब साधक के लिए गुरुतत्व की कृपा से गुरु शरीर की नवीन अवस्था ही गुरु शरीर रहेगी, अर्थात अब गुरुतत्व गुरु शरीर से नहीं अपितु समाधि की अवस्था ही गुरु शरीर की स्मृति रूप में विद्यमान रहेगी। साधक जब अपने गुरुतत्व से जुड़ जाता है तो वह अपने गुरु से सदा के लिए एकाकार ही हो जाता है। गुरुतत्व ही परमतत्व का गुरुरूप है और तत्व सदैव विद्यमान रहता है। 

 

-Guru SatyaRam