गुरुतत्व और गुरु शरीर में क्या अंतर होता है?
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गुरुतत्व का मूल अर्थ क्या है?
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गुरु शरीर के माध्यम से गुरुतत्व की कृपा कैसे प्राप्त करें?
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घर पर रहकर ही गुरुतत्व से कैसे जुडें?
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गुरुतत्व से जुड़कर मन्त्र दीक्षा कैसे प्राप्त करें?
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गुरु का शरीर समाधि धारण कर लें तो आगे शिष्य का क्या धर्म है?
गुरुतत्व का मूल अर्थ क्या है?
इस सम्पूर्ण सृष्टि में जो ईश्वरीय तत्व व्याप्त है जब वही परम तत्व हमें किसी शरीर, भावना, घटना, स्मृति या शरीर के माध्यम से हमें कुछ भी सिखाने का प्रयास करता है तो वहां पर गुरुतत्व का ही भाव किया जाता है। अर्थात आप जो कुछ भी सीख रहें हैं उसको सिखाना वाला गुरु का शरीर कहलायेगा और जो उस शरीर के माध्यम से आपको ज्ञान दे रहा है वह गुरुतत्व कहलायेगा।
गुरु शरीर के माध्यम से गुरुतत्व की कृपा कैसे प्राप्त करें?
एक सामान्य जातक के लिए ज्ञान के अभाव में केवल गुरु का शरीर ही सबकुछ होता है। लेकिन जब गुरुतत्व की कृपा से साधक इस ब्रह्म ज्ञान से एकाकार हो जाता हैं कि शरीर तो केवल एक माध्यम है ईश्वर के ही दूसरे रूप अर्थात गुरुतत्व से जुड़ने का। आगे बढ़ते हुए जातक को सदैव यही स्मरण रखना चाहिए कि गुरुतत्व ही मुझे सम्मुख गुरु शरीर के माध्यम से माया रुपी अज्ञानता से बाहर लाने का प्रयास कर रहें हैं। इसलिए जातक को गुरु शरीर के माध्यम से जो भी सन्देश चाहे वह मंत्र के रूप में, डांट के रूप में, प्रसाद के रूप में, प्रवचनों के रूप में, या उर्जा रूप में प्राप्त हो उसे ईश्वरीय प्रसाद मानते हुए सदैव धारण करे ही रहना चाहिए। इसी आधार पर कोई भी साधक गुरु शरीर के माध्यम से परमब्रह्म गुरुतत्व से जुड़ा रहेगा।
घर पर रहकर ही गुरुतत्व से कैसे जुडें?
यहाँ गुरुतत्व से जुड़ना अर्थात सीधे अर्थों में गुरु धारण करना रहेगा। इसके लिए मैं आपको अपनी साधना के अनुभव आधार पर कुछ सरल विधि बताता हूँ। आप श्रीमद्भागवत गीताजी को लेकर आइये। गीताजी को प्रणाम कीजिये, उन्हें आसन दीजिये और ईश्वर रुपी गुरु तत्व का आह्वाहन करते हुए मानसिक रूप से प्रार्थना कीजिये कि हे परम तत्व मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि श्री गीताजी शास्त्र के माध्यम से आप मुझे साधक के रूप में स्वीकार कीजिये और श्री गीताजी के वचनों के माध्यम से मेरा मार्गदर्शन कीजिये। श्री गीताजी में 18 अध्याय हैं, अगर जातक नित्य एक अध्याय को पढ़ते हुए अपने दिन की शुरुआत करेगा तो धीरे-धीरे अपने गुरुतत्व की कृपा से साधक चेतना के स्तर आधार पर ऊँचा उठाना प्रारम्भ कर देगा। मात्र ऐसा करते रहने से ही जातक उतम ब्रह्मविद्या के मूल बीज को अपने अनाहत में स्थायी रूप से ग्रहण कर लेगा।
गुरु तत्व से जुड़कर मन्त्र दीक्षा कैसे प्राप्त करें?
जब एक साधक अपने गुरुतत्व से जुड़ना सीख जाता है तो उसके लिए गुरुतत्व से आने वाली प्रत्येक क्रिया ही उसके लिए एक मंत्र की भांति ही मूल्यवान बनी रहती है, अर्थात जो कुछ भी गुरुतत्व की क्रिया सम्मुख आती है तो जातक उसी क्रिया को मंत्र रुपी दीक्षा मानकर ग्रहण कर लेता है। उदाहरण समझिये की साधक सम्मुख गुरु शरीर में जब गुरु तत्व से जुड़ जाता है तो जो कुछ भी गुरु मुख से निकलेगा साधक उसे ही मंत्र रूप मानकर ग्रहण कर लेगा तथा उस आदेश या वचन रुपी मंत्री की पालना ही उसके लिए दीक्षा होगी। अर्थात यहाँ गुरुतत्व वचनों की पालना ही मंत्र दीक्षा कहलाएगी।
गुरु का शरीर समाधि धारण करलें तो आगे शिष्य का क्या धर्म है?
जब जातक अपने गुरुतत्व से जुड़ जाता है तो गुरु शरीर द्वारा दिखाए गए प्रकाश मार्ग पर ही अग्रसर बना रहता है। अर्थात अब ईश्वर इच्छा से गुरु का शरीर समाधि की अवस्था धारण कर लें तो अब साधक के लिए गुरुतत्व की कृपा से गुरु शरीर की नवीन अवस्था ही गुरु शरीर रहेगी, अर्थात अब गुरुतत्व गुरु शरीर से नहीं अपितु समाधि की अवस्था ही गुरु शरीर की स्मृति रूप में विद्यमान रहेगी। साधक जब अपने गुरुतत्व से जुड़ जाता है तो वह अपने गुरु से सदा के लिए एकाकार ही हो जाता है। गुरुतत्व ही परमतत्व का गुरुरूप है और तत्व सदैव विद्यमान रहता है।
-Guru SatyaRam
Richa Srivastava
August 18, 2024 at 6:35 pm
अत्यंत गूढ़ विषय को बहुत सरल शब्दों में समझाया है। बहुत बहुत आभार और धन्यवाद गुरू जी। 🙏ॐ शिवा।
Jyoti
August 19, 2024 at 10:58 am
Om namah Shivaay. Bahut hi saralta se itney complex topic ko aasan kar diya hai.. Pranaam Sir.