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क्या स्त्रियां भी श्रीहनुमान चालीसा का पाठ कर सकती हैं?(Hindi & English)

क्या स्त्रियां भी श्रीहनुमान चालीसा का पाठ कर सकती हैं?(Hindi & English)

श्री हनुमान चालीसा: एक संक्षेप विवरण

श्री हनुमान चालीसा अवधी भाषा में लिखी गई एक विशिष्ट काव्यात्मक कृति है। इस भक्ति रस से पूर्ण कृति में भगवान श्री रामचन्द्रजी के परम एवम महान भक्त श्रीहनुमान जी के गुणों, कार्यों एवम सेवा भाव का चालीस चौपाइयों के द्वारा वर्णन किया गया है। इसके रचयिता भगवान श्रीरामचन्द्रजी महाराज के अनन्य भक्त श्रीगोस्वामी तुलसीदास जी हैं।

श्री गोस्वामी तुलसीदासजी: जीवन परिचय

हर वर्ष उत्तम सावन मास के शुभ शुक्ल पक्ष की श्रेष्ठ सातवीं तिथि पर श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी की जयंती हम सभी भक्तजन मनाते हैं। श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी का जन्म संवत् 1554 में उत्तर प्रदेश के पवित्र चित्रकूट जिले के राजापुर गांव में हुआ था। इसी गांव में ही श्रीरामचरित मानस मंदिर है, जहां श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी ने यह ग्रंथ मात्र 966 दिनों में लिखा था। श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी संवत्‌ 1680 में इस मानव देह को त्यागते हुए प्रभु श्रीरामचंद्रजी महाराज के पावन चरणों की सेवा में विलीन हो गए थे।

श्री गोस्वामी तुलसीदासजी: एक विशिष्ट पूजनीय भक्त

यह भी कहा जाता है कि अपने जन्म के तुरंत बाद भी श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी रोए नहीं थे अपितु स्वाभाविक रोने के स्थान पर उनके श्रीमुख से भगवान श्रीसांब सदाशिव का परम प्रिय शब्द ‘राम’ निकला था। इस ईश्वरीय लीला के कारण ही बचपन में श्रीगोस्वामी तुलसीदासज़ी का नाम रामबोला था। ऐसा भी भक्तों के द्वारा कहा जाता है कि जन्म से ही श्रीगोस्वामी तुलसीदास जी के बत्तीस दांत थे।

श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी का जीवन

श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी के जन्म के कुछ समय पश्चात ही इनकी माताश्री हुलसी देवी का निधन हो गया था। इनके पिताश्री का नाम श्रीआत्माराम था। अपने बचपन से ही श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी(बालक रामबोला) संतों एवम विद्वानों की शरण में रहने लग गए थे। कुछ समय पश्चात ही बाबा श्री नरहरी जी ने इन्हें तुलसीदास नाम दिया था। बाबा।श्री नरहरी जी को श्री गोस्वामी तुलसीदासजी का गुरु माना जाता है। तुलसीदासजी की शादी देवी रत्नावली से हुई थी। विवाह के कुछ समय बाद ही वे अपनी धर्मपत्नी पत्नी से दूर हो गए थे और प्रभु श्रीरामजी की भक्ति में लीन हो गए।

श्री गोस्वामी तुलसीदासजी ने अपने 111 वर्ष के जीवन में कई अनुपम ग्रंथों की रचना की थी। इनमें श्रीरामचरित मानसजी सर्वाधिक प्रसिद्ध है। इस अलौकिक श्रीग्रंथ के सुंदरकांड का पाठ कई भक्तों की नियमित दिनचर्या है। विनय पत्रिका और श्रीहनुमान चालीसा की रचना भी श्रीगोस्वामी तुलसीदास ने की थी।

श्री हनुमान चालीसा को लिखने हेतु प्रेरणा स्रोत

भगवान श्री महादेवजी के कहने पर लिखा गया था श्रीरामचरित मानस। ऐसा माना जाता है कि श्री गोस्वामी तुलसीदासजी को स्वपन के माध्यम में भगवान शिव ने आदेश दिया था कि आप अपनी मातृ भाषा में काव्य रचना करो। मेरे श्री आशीष से आपकी रचना तृत्य वेद श्रीसामवेद की तरह ही फलवती होगी। ये स्वपन देखने के पश्चात तुलसीदाजी जाग गए। इसके कुछ समय पश्चात संवत् 1631 को श्रीरामनवमी के शुभ दिन वैसा ही योग बना जैसा त्रेतायुग में प्रभु श्रीरामचंद्रजी के शुभ अवतरण के समय था। उस दिन प्रातः समय तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस जी को लिखना प्रारंभ किया था।

श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी ने मात्र 966 दिन में लिखा था

श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी ने संवत् 1631 में श्रीरामचरित मानसजी लिखनी आरंभ की थी। संवत् 1633 के अगहन महीने के शुक्लपक्ष की शुभ पंचमी तिथि पर यह पवित्र ग्रंथ पूरा हो गया था। अर्थात इसे पूर्ण करने में पूरे 2 वर्ष, 7 माह और 26 दिनों का समय लगा था। यह भी कहा जाता है कि रचना पूर्ण होते ही श्रीतुलसीदासजी ने सबसे पहले ये ग्रंथ शिवजी को अर्पित किया था। फिर इसे लेकर श्रीतुलसीदासजी काशी गए और यह पवित्र ग्रंथ भगवान श्री विश्वनाथजी के मंदिर में रख दिया था। यह भी माना जाता है कि अगले दिन प्रातः समय उस पवित्र ग्रंथ पर “सत्यं शिवं सुंदरम” लिखा हुआ था।

मान्यता: श्रीराम और हनुमानजी ने दिए थे तुलसीदासजी को दर्शन

ऐसी मान्यता है कि श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी को भगवान श्रीराम और उनके परम भक्त श्रीहनुमानजी ने दर्शन दिए थे। जब श्रीगोस्वामी तुलसीदास जी तीर्थ यात्रा पर काशी गए तो लगातार राम नाम जप करते ही रहे। इसके बाद श्रीहनुमानजी ने उन्हें दर्शन दिए थे। इसके बाद उन्होंने श्रीहनुमानजी से भगवान श्रीजी के शुभ दर्शनों हेतु प्रार्थना करी थी। श्रीहनुमानजी ने तुलसीदाजी के बताया था कि आपको चित्रकूट में श्रीराम के दर्शन प्राप्त होंगे। इसके बाद मौनी अमावस्या पर्व पर श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी को चित्रकूट में भगवान श्रीरामचंद्र जी के दर्शन हुए थे।

श्री हनुमान चालीसा से संबंधित कुछ विशिष्ट प्रश्न एवम उत्तर।

1. हनुमान चालीसा का पाठ हमें कितनी बार करना चाहिए?

श्रीहनुमान चालीसा के पाठ का सर्वोत्तम फल प्राप्त करने के लिए दैनिक शुद्धि पश्चात केवल तांब्र पात्र के जल को ग्रहण करके लगातार 108 पाठ करें।

2. श्रीहनुमान चालीसा के संकल्पित पाठ का उद्यापन कैसे करना चाहिए?

11 बार श्रीहनुमान चालीसा का सूक्ष्म हवन करने के पश्चात मीठे का हनुमान मंदिर में भोग लगाएं और छोटे बच्चों, बंदरों, लंगूरों या किन्हीं भी पशु-पक्षिओं में बांटें।

3. संकल्पित पाठ पश्चात क्या नित्य भी हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए?

संकल्पित पाठ पश्चात नित्य 1/3/5/7/9/11 पाठ लगातार 108 दिन अवश्य करना चाहिए। इसके समापन पर किसी भी उद्यापन की आवश्यकता नहीं हैं।

4. संकल्पित श्रीहनुमान चालीसा का पाठ किस दिन से प्रारंभ करना शुभ रहेगा?

संकल्पित श्रीहनुमान चालीसा का पाठ सुबह की संध्या के समय मंगलवार, गुरुवार, शनिवार के दिन ही प्रारंभ करना अति शुभ और लाभकारी रहेगा।

5. क्या स्त्रियां भी संकल्पित या सामान्य रूप में श्रीहनुमान चालीसा का पाठ कर सकती हैं?

संकल्पित या सामान्य रूप में अपने सामान्य दिनों में स्त्रियां श्री हनुमान जी को परमेश्वर ब्रह्म रूप में या सदगुरु रूप में मानते हुए श्रीहनुमान चालीसा का पाठ अवश्य कर सकती हैं।

Guru SatyaRam
Guru SatyaRam

– गुरु सत्यराम

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Can women also recite Shri Hanuman Chalisa?(Hindi & English)

Shri Hanuman Chalisa: A Brief Description

Shri Hanuman Chalisa is a unique poetic work written in Awadhi language. In this devotional work, the qualities, works and service of Shri Hanuman, the supreme and great devotee of Lord Shri Ramchandraji, have been described through forty quatrains. Its author is Shri Goswami Tulsidas ji, an ardent devotee of Lord Shri Ramchandraji Maharaj.

Shri Goswami Tulsidasji: Biography

Every year, all of us devotees celebrate the birth anniversary of Shri Goswami Tulsidasji on the seventh day of the auspicious Shukla Paksha of the auspicious month of Sawan. Shri Goswami Tulsidasji was born in the year 1554 in Rajapur village of the holy Chitrakoot district of Uttar Pradesh. In this village itself is the Shri Ramcharit Manas temple, where Shri Goswami Tulsidasji wrote this book in just 966 days. Shri Goswami Tulsidasji left this human body in Samvat 1680 and merged in the service of the holy feet of Lord Shri Ramchandraji Maharaj.

Shri Goswami Tulsidasji: A special revered devotee

It is also said that even immediately after his birth, Shri Goswami Tulsidasji did not cry, but instead of natural crying, the most beloved word of Lord Shri Samb Sadashiv, ‘Ram’ came out of his mouth. Due to this divine play, Shri Goswami Tulsidasji’s name in childhood was Rambola. It is also said by devotees that Shri Goswami Tulsidasji had thirty-two teeth from birth.

Life of Shri Goswami Tulsidasji

Shortly after the birth of Shri Goswami Tulsidasji, his mother Hulsi Devi died. His father’s name was Shri Atmaram. From his childhood itself, Shri Goswami Tulsidasji (child Rambola) started living under the shelter of saints and scholars. After some time Baba Shri Narhari Ji gave him the name Tulsidas. Baba Shri Narhari Ji is considered to be the Guru of Shri Goswami Tulsidas Ji. Tulsidas Ji was married to Devi Ratnavali. Shortly after the marriage, he got separated from his wife and got absorbed in the devotion of Lord Shri Ram Ji.

Shri Goswami Tulsidas Ji had written many unique scriptures in his 111 years of life. Among these Shri Ramcharit Manas Ji is the most famous. Reading the Sundarkand of this divine scripture is a regular routine of many devotees. Vinay Patrika and Shri Hanuman Chalisa were also written by Shri Goswami Tulsidas.

Source of inspiration for writing Shri Hanuman Chalisa

Shri Ramcharit Manas was written at the behest of Lord Shri Mahadevji. It is believed that Lord Shiva had ordered Shri Goswami Tulsidasji through a dream to compose poetry in his mother tongue. With my blessings, your composition will be as fruitful as the Tritya Veda Shri Samveda. Tulsidasji woke up after seeing this dream. Some time later, on the auspicious day of Shri Ramnavami in Samvat 1631, the same situation was created as was there during the auspicious incarnation of Lord Shri Ramchandraji in Treta Yug. Tulsidasji started writing Shri Ramcharitmanas in the morning on that day.

Shri Goswami Tulsidasji wrote it in just 966 days

Shri Goswami Tulsidasji started writing Shri Ramcharit Manasji in Samvat 1631. This holy book was completed on the auspicious Panchami date of Shukla Paksha of the month of Aghan in Samvat 1633. That is, it took 2 years, 7 months and 26 days to complete it. It is also said that as soon as the composition was completed, Tulsidasji first offered this book to Lord Shiva. Then Tulsidasji went to Kashi with it and placed this holy book in the temple of Lord Vishwanathji. It is also believed that the next day in the morning, “Satyam Shivam Sundaram” was written on that holy book.

Belief: Shri Ram and Hanumanji had given darshan to Tulsidasji

It is believed that Lord Shri Ram and his supreme devotee Shri Hanumanji had given darshan to Shri Goswami Tulsidasji. When Shri Goswami Tulsidasji went to Kashi on pilgrimage, he kept chanting the name of Ram continuously. After this, Shri Hanumanji gave him darshan. After this, he prayed to Shri Hanumanji for the auspicious darshan of Lord Shreeji. Shri Hanumanji had told Tulsidasji that you will get the darshan of Shri Ram in Chitrakoot. After this, on the occasion of Mauni Amavasya festival, Sri Goswami Tulsidasji had the darshan of Lord Shri Ramchandra in Chitrakoot.

Some specific questions and answers related to Shri Hanuman Chalisa.

1. How many times should we recite Hanuman Chalisa?

To get the best results of reciting Shri Hanuman Chalisa, after daily purification, take only water from a copper vessel and recite it 108 times continuously.

2. How should the Udyaapan of Sankalpit Paath of Shri Hanuman Chalisa be done?

After performing subtle havan of Shri Hanuman Chalisa 11 times, offer sweets in Hanuman temple and distribute it among small children, monkeys, langurs or any animals and birds.

3. Should Hanuman Chalisa be recited daily after Sankalpit Paath?

After Sankalpit Paath, 1/3/5/7/9/11 recitations should be done daily for 108 days continuously. There is no need for any Udyaapan on its completion.

4. From which day will it be auspicious to start the recitation of Sankalpit Shri Hanuman Chalisa?

It will be very auspicious and beneficial to start the recitation of Sankalpit Shree Hanuman Chalisa in the morning and evening on Tuesday, Thursday and Saturday.

5. Can women also recite Shree Hanuman Chalisa in Sankalpit or normal form?

Women can certainly recite Shree Hanuman Chalisa in Sankalpit or normal form on their normal days by considering Shree Hanuman Ji as Parameshwar Brahma or as Sadguru.

Guru SatyaRam
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-Guru SatyaRam