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दीपोत्सव का पर्व दीपावली 2024 (Hindi & English)

दीपोत्सव का पर्व दीपावली 2024 (Hindi & English)

Om-Shiva

दीपावली हिंदू सनातन धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह त्यौहार प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्ण की अमावस्या तिथि को पूरे हर्षोल्लास के साथ न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी मनाया जाता है। यह त्यौहार मुख्यतः भगवती लक्ष्मी देवी को समर्पित है। किंतु इस दिन भगवान गणेश, माँ सरस्वती और और देवी महाकाली की भी पूजा की जाती है।

01. कैसे मनाते हैं दीपावली?

संपूर्ण दीपावली पर्व असल में पांच दिवसीय त्यौहार है। इसमें प्रथम दिन धनतेरस मनाया जाता है जिसमें देवों के वैद्य भगवान धनवंतरी जी की पूजा की जाती है। दूसरे दिन रूप चतुर्दशी अथवा नरक चतुर्दशी मनाई जाती है जिसमें यम देवता और धन के देवता कुबेर की पूजा की जाती है। तीसरे दिन मुख्य त्योहार दीपावली मनाई जाती है। इस दिन घर को बिजली के सुंदर बल्ब की लड़ियों, मोमबत्तियों, और मिट्टी के दीपक जलाकर घर को प्रकाशित किया जाता है। इसके अलावा, सुंदर रंगोली, रंग बिरंगे तोरण, तथा सुंदर पुष्प मालाओं से घर को सजाया जाता है और लक्ष्मी जी के स्वागत की तैयारी की जाती है। संध्याकाल में लक्ष्मी पूजन के उपरांत मिठाई एवम पकवान बांटे जाते हैं और खाये जाते हैं। रात्रिकाल में पटाखे छोड़े जाते हैं और रात्रि जागरण करके लक्ष्मीजी का पूजन करते हैं। इस दिन लक्ष्मीजी के साथ गणेशजी और ज्ञान की देवी भगवती सरस्वतीजी के भी पूजन की परंपरा है।

क्योंकि ऐसा माना जाता है लक्ष्मी यानी कि धन के साथ बुद्धि, विवेक और ज्ञान यानि कि गणेशजी और सरस्वतीजी की भी आवश्यकता होती है। दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा की जाती है। इसमें गोवर्धन पर्वत के साथ भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। फिर धनतेरस के पांचवें दिन भैया दूज बनाने की प्रथा है, जिसमें बहनें अपने भाई की लंबी आयु और उत्तम स्वास्थ्य के लिए व्रत रखती हैं और पूजन करती हैं। इस दिन देश विदेश के असंख्य लोग विशेषतः कायस्थ समाज के लोग धर्मराज चित्रगुप्त जी की पूजा करते हैं। जिसे कलम दवात की पूजा भी करी जाती है। पूर्वोत्तर हिस्सों में विशेष तौर पर बंगाली समाज के लोग अमावस्या के दिन महा निशाकाल में भगवती महाकाली की पूजा और आराधना करते हैं। इसके अलावा अमावस्या को पितरों की तिथि भी कहा जाता है। अतः इस दिन पितरों का पूजन भी करते हैं। उनके निमित्त दान पुण्य भी किया जाता है। सायंकाल और रात्रिकाल में आकाश में आकाशदीप भी छोड़े जाते हैं। ऐसा माना जाता है रोशनी से भरें यह आकाशदीप हमारे पितरों को विष्णुलोक का मार्ग दिखाते हैं।

02. क्यों मनाते हैं दीपावली

दीपावली का त्योहार मनाने की पीछे कुछ पौराणिक संदर्भ हैं। कहा जाता है कि इस दिन भगवान श्रीराम लंका विजय करके अयोध्या वापस लौटे थे। उनके स्वागत में अयोध्या वासियों ने पूरी अयोध्या को दीप मालाओं से सजाया था। तब से प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्ण अमावस्या को दीपावली मनाने का प्रचलन प्रारंभ हुआ। इसके अलावा कार्तिक कृष्ण की चतुर्दशी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध करके उसके चंगुल से 16,100 युवतियों को छुड़ाया था। उनकी याद में इस दिन नरक चतुर्दशी मनाई जाती है और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। दीपावली की अमावस्या का अपना विशेष महत्व है। इस दिन व्यापारी वर्ग अपने नए बही-खातों का शुभारंभ करते हैं। वहीं अर्द्धरात्रि का मुहूर्त तांत्रिकों और साधकों के लिए विशेष महत्व रखता है।

03. दीपावली का मुख्य पौराणिक संदर्भ

एक बार सनत कुमार ने शौनकादि ऋषि-मुनियों से पूछा कि, दीपावली के त्योहार पर लक्ष्मीजी के अलावा अन्य देवी-देवताओं का पूजन क्यों किया जाता है? तब ऋषियों ने बताया की लक्ष्मी ऐश्वर्या और भोग की अधिष्ठात्री देवी हैं। जहां पर इनका वास होता है वहां सुख-समृद्धि एवं आनंद मिलता है। इसकी कथा यह है कि, एक बार दैत्य राज बलि ने अपने बाहुबल से अनेक देवी-देवताओं सहित लक्ष्मीजी को बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया था। तब कार्तिक की अमावस्या को श्रीहरि भगवान विष्णुजी ने वामन का अवतार लेकर राजा बलि से आकाश और पाताल सब वापस ले लिया था। और लक्ष्मीजी सहित सभी देवी-देवताओं को राजा बलि के कारागार से मुक्त कराया था। उसके बाद विष्णुजी लक्ष्मीजी के साथ शयन के लिए क्षीरसागर में चले गए। इसलिए अन्य देवी-देवताओं के साथ लक्ष्मीजी के पूजन का विधान बनाया गया है। जो भी व्यक्ति उनका स्वागत उत्साहपूर्वक करके स्वच्छ कमल शय्या प्रदान करता है, पूजन करता है, उनके घर में लक्ष्मीजी का स्थाई वास हो जाता है।

04. दीपावली 2024 के पूजन की तिथि और मुहूर्त

इस वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर को 03:52 से शुरू होगी। और तिथि का समापन 01 नवंबर की शाम 06:16 पर होगा। शास्त्रों के अनुसार अमावस्या पर रात्रि पूजन का विधान है। यानी 31 अक्टूबर को पूरी रात अमावस्या तिथि रहेगी, लेकिन 01 नवंबर की रात से पहले वह समाप्त हो जाएगी। 01 नवंबर की रात्रि को प्रतिपदा तिथि होगी । इसलिए रात्रि व्यापिनी अमावस्या 31 अक्टूबर को ही होगी और दीपावली लक्ष्मी पूजन 31 अक्टूबर को ही होगा।

पूजन का मुहूर्त

31 अक्टूबर का पहला मुहूर्त प्रदोष काल पूजन मुहूर्त में शाम 05:36 से रात्रि 08:15 तक रहेगा। लक्ष्मी पूजन सदैव स्थिर लग्न में किया जाता है इसलिए वृषभ लग्न में लक्ष्मी पूजन होगा। इस दौरान स्थिर लग्न वृषभ रहेगा। लक्ष्मी पूजन का महा निशीथ मुहूर्त 31 अक्टूबर को रात 11:39 मिनट से लेकर देर रात 12:31 तक है। इस समय महाकाली, महासरस्वती और महालक्ष्मी पूजन किया जाएगा।

उपर्युक्त आलेख में मैंने दीपावली संबंधित अधिकांश जानकारी देने का प्रयास किया है। आशा करती हूं कि सभी पाठकों को मेरा प्रयास पसंद आएगा।

धन्यवाद और आभार।

-एस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव (ज्योतिष केसरी)

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Diwali 2024 the festival of lights (Hindi & English)

Om-Shiva

Diwali is one of the major festivals of Hindu Sanatan Dharma. This festival is celebrated every year on the new moon day of Kartik Krishna with great enthusiasm not only in the country but also abroad. This festival is mainly dedicated to Goddess Lakshmi. But on this day Lord Ganesha, Mother Saraswati and Goddess Mahakali are also worshiped.

01. How is Diwali celebrated?

The entire Diwali festival is actually a five-day festival. In this, Dhanteras is celebrated on the first day in which Lord Dhanvantari, the physician of the gods, is worshiped. On the second day, Roop Chaturdashi or Narak Chaturdashi is celebrated in which Yama Devta and Kubera, the god of wealth, are worshiped. The main festival of Diwali is celebrated on the third day. On this day, the house is illuminated by lighting beautiful electric bulb strings, candles, and earthen lamps. Apart from this, the house is decorated with beautiful rangoli, colourful arches, and beautiful floral garlands and preparations are made to welcome Lakshmi ji. After Lakshmi pujan in the evening, sweets and delicacies are distributed and eaten. Crackers are burst at night and Lakshmi ji is worshipped by staying awake all night. On this day, there is a tradition of worshipping Ganesh ji and Goddess of knowledge, Bhagwati Saraswati ji, along with Lakshmi ji.

Because it is believed that along with Lakshmi i.e. wealth, intelligence, discretion and knowledge i.e. Ganesh ji and Saraswati ji are also required. Govardhan puja is performed after Diwali. In this, Lord Krishna is worshipped along with Govardhan mountain. Then on the fifth day of Dhanteras, there is a tradition of celebrating Bhaiya Dooj, in which sisters observe fast and worship for their brother’s long life and good health. On this day, countless people from the country and abroad, especially the people of Kayastha community, worship Dharmaraj Chitragupta ji. Pen and ink pot are also worshipped. In the northeastern parts, especially the Bengali community, people worship and adore Bhagwati Mahakali during the Maha Nishakal on the day of Amavasya. Apart from this, Amavasya is also called the date of ancestors. Therefore, on this day, ancestors are also worshipped. Charity is also done for them. Sky lamps are also released in the sky in the evening and night. It is believed that these sky lamps filled with light show our ancestors the path to Vishnulok.

02. Why do we celebrate Deepawali

There are some mythological references behind celebrating the festival of Deepawali. It is said that on this day Lord Shri Ram returned to Ayodhya after conquering Lanka. To welcome him, the people of Ayodhya decorated the entire Ayodhya with garlands of lamps. Since then, the practice of celebrating Deepawali on Kartik Krishna Amavasya started every year. Apart from this, on the Chaturdashi date of Kartik Krishna, Lord Krishna killed Narakasura and freed 16,100 girls from his clutches. In his memory, Narak Chaturdashi is celebrated on this day and Lord Krishna is worshipped. The new moon day of Diwali has its own importance. On this day, the business class starts their new account books. The midnight muhurta holds special importance for tantriks and sadhaks.

03. Main mythological reference of Diwali

Once Sanat Kumar asked Shaunakadi Rishis that why other gods and goddesses are worshipped apart from Lakshmi on the festival of Diwali? Then the sages told that Lakshmi is the presiding goddess of wealth and enjoyment. Wherever she lives, there is happiness, prosperity and joy. Its story is that, once the demon king Bali had imprisoned Lakshmi along with many other gods and goddesses with his strength. Then on the new moon day of Kartik, Shri Hari Lord Vishnu took the form of Vaman and took back the sky and the underworld from King Bali. And all the gods and goddesses including Lakshmi ji were freed from the prison of King Bali. After that Vishnu ji went to Kshirsagar to sleep with Lakshmi ji. Therefore, the law of worshiping Lakshmi ji along with other gods and goddesses has been made. Whoever welcomes her enthusiastically and offers a clean lotus bed, worships, Lakshmi ji resides permanently in his house.

04. Date and Muhurta of worship of Diwali 2024

This year the Amavasya date of Kartik month will start from 03:52 on October 31. And the date will end on the evening of November 01 at 06:16. According to the scriptures, there is a law of night worship on Amavasya. That is, Amavasya Tithi will remain throughout the night on October 31, but it will end before the night of November 01. Pratipada Tithi will be on the night of November 01. Therefore, Ratri Vyapini Amavasya will be on 31st October and Deepawali Lakshmi Pujan will be on 31st October only.

Pujan Muhurta

The first Muhurta of 31st October will be from 05:36 pm to 08:15 pm in Pradosh Kaal Pujan Muhurta. Lakshmi Pujan is always done in Sthir Lagna, so Lakshmi Pujan will be done in Vrishabha Lagna. During this time, Sthir Lagna will be Vrishabha. Maha Nishith Muhurta of Lakshmi Pujan is from 11:39 pm to 12:31 late night on 31st October. During this time Mahakali, Mahasaraswati and Mahalakshmi Pujan will be done.

In the above article, I have tried to give most of the information related to Deepawali. I hope that all readers will like my effort.

Thanks and gratitude.

-Astro Richa Srivastava (Jyotish Kesari)