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सर्वपितृ अमावस्या 2024(Hindi & English)

सर्वपितृ अमावस्या 2024(Hindi & English)

Om-Shiva
हमारे हिन्दू पंचांग में भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से आश्विन माह की अमावस्या तिथि तक 16 दिनों के पक्ष को हम पितृपक्ष कहते हैं। इन 16 दिनों में हम अपने पूर्वजों और पितरों के सम्मान में विभिन्न कर्म यथा- तर्पण, श्राद्ध, पिंडदान इत्यादि करते हैं। जिन लोगों को अपने गुजरे हुए माता, पिता, दादी, बाबा अथवा भाई बहनों की मृत्यु की तिथि ज्ञात होती है, वें तिथि के दिन पितृ कर्म करते हैं। जिन लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती, उनके लिए पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध आदि कर्म के लिए अमावस्या तिथि का विधान रखा गया है। इस अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या इसीलिए कहा जाता है कि जिनमे सभी सोलह दिनों तक पितृकर्म करने का सामर्थ्य नहीं है, वें एक अमावस्या वाले दिन ही पितृकर्म कर सकते हैं।

इसके अतिरिक्त जिन्हें अपने मृत परिजनों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं है वें भी सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों के निमित्त श्राद्ध, दान, और तर्पण कर सकते हैं। वस्तुतः सर्वपितृ अमावस्या पितरों की विदाई का दिन है। उनका विसर्जन कर उन्हें वापस उनके लोक भेजने का दिन है। अतः इस तिथि का महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है। इस दिन को महालय भी कहते हैं। पितरों की विदाई के बाद माँ भगवती दुर्गा के धरती पर आगमन का उत्सव शुरू हो जाता है।

01. कैसे करें पितृ विसर्जन?

अमावस्या वाले दिन प्रातःकाल उठकर दैनिक कार्यो से निवृत्त होकर घर की सफाई करें। फिर घर की दहलीज पर गंगाजल से छिड़काव कर सुगन्ध मिश्रित चंदन का लेप करें। घर की महिलाएं स्नान के बाद रसोई में आपके घर मे पसन्द किये जाने वाले पकवान बनाएं। पकवानों में खीर और पूड़ी अवश्य शामिल करें। फिर योग्य ब्राह्मण को घर पर आमंत्रित करके पितरों के निमित्त हवन, पूजन, पिंड, तर्पण इत्यादि करवाएं। उसके बाद पंच बलि निकालें। गाय, कुत्ता, कौवा, चींटी और देव के लिए निकाला गया भोज्य प्रसाद पंचबलि कहलाता है। उसके बाद आपके पूर्वजो की तस्वीरों के सामने धूपबत्ती, पुष्प, दीपक आदि रखकर थोड़ा सा भोज्य प्रसाद रख दें। हाँथ जोड़कर उनकी सदगति और ईश्वर के शरण में जाने की प्रार्थना करें। फिर ब्राह्मण को भोजन कराकर वस्त्र, अनाज, दक्षिणा आदि दान देकर विदा करें।

संध्या काल में पितरों के लिए पंच दीपों का दान करें। घर के पूजा स्थल, तुलसी के पास, रसोई के जल स्थान के पास, घर की दक्षिण दिशा और पश्चिम दिशा पर एक घी या तेल का दीपक रखें। शिवालय जाकर शिवलिंग पर काले तिल मिश्रित जल से अभिषेक करें। संध्याकाल में यदि मन्दिर के पास पीपल वृक्ष हो तो वहां भी एक दीपक जलाएं। पितरों की सदगति, मुक्ति और ऊर्ध्वगति के लिए प्रार्थना करें। इस प्रकार सर्वपितृ अमावस्या पर श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण करने से पितरों का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।

02. वर्ष 2024 में कब है सर्वपितृ अमावस्या?

हमारे पंचांगों के अनुसार अश्विन मास की अमावस्या तिथि दिनांक 01 अक्टूबर 2024 को रात 09 बजकर 39 मिनट पर प्रारम्भ होगी, जो 03 अक्टूबर 2024 को सुबह 12 बजकर 18 मिनट पर समाप्त होगी। इस कारण उदयातिथि के अनुसार अमावस्या का कर्म दिनांक 02 अक्टूबर 2024 को होगा।

03. पूजन का मुहूर्त कब है?

कुतुप मुहूर्त- 11:45 प्रातः से दोपहर 12:24 मिनट तक।
रौहिण मुहूर्त- 12:34 दोपहर से 01:34 दोपहर तक।
अपराह्न काल- 01:21 दोपहर से 03:43 दोपहर तक।

अमावस्या और सूर्यग्रहण का संबंध

इस वर्ष पितृ अमावस्या पर सूर्यग्रहण का साया मंडरा रहा है। सूर्य ग्रहण 01 अक्टूबर को रात में 09:40 से 02 अक्टूबर की मध्य रात्रि 03:17 मिनट तक रहेगा। हालांकि यह सूर्य ग्रहण रात में लगेगा इसलिए भारत में यह दिखाई नहीं देगा। अतः सूतक आदि मान्य नहीं होगा। ऐसे में सर्व पितृ अमावस्या पर सूर्य ग्रहण के कारण तर्पण और श्राद्ध कर्म में कोई निषेध नहीं होगा।

आशा करती हूँ कि पाठकों को जानकारी उपयोगी लगी होगी। कृपया कमेंट के ज़रिए अपनी महत्वपूर्ण राय दें।

धन्यवाद और आभार।

-ऐस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव

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Sarvapitri Amavasya 2024 (Hindi & English)

In our Hindu calendar, the period of 16 days from the full moon date of Bhadrapada month to the new moon date of Ashwin month is called Pitru Paksha. In these 16 days, we perform various rituals such as Tarpan, Shradh, Pinddaan etc. in honor of our ancestors and forefathers. Those who know the date of death of their deceased mother, father, grandmother, grandfather or siblings, perform Pitru Karma on that day. For those who do not know the date of death of their relatives, the Amavasya date has been prescribed for Pinddaan, Tarpan, Shradh etc. This Amavasya is called Sarvapitri Amavasya because those who do not have the ability to perform Pitru Karma for all sixteen days, can perform Pitru Karma only on one Amavasya day.

Apart from this, those who do not know the date of death of their dead relatives can also perform Shradh, donation and tarpan for their ancestors on the day of Sarvapitre Amavasya. In fact, Sarvapitre Amavasya is the day of farewell of ancestors. It is the day of immersing them and sending them back to their world. Therefore, the importance of this date increases a lot. This day is also called Mahalaya. After the farewell of ancestors, the celebration of the arrival of Mother Bhagwati Durga on earth begins.

01. How to do Pitru Visarjan?

On the day of Amavasya, wake up early in the morning, finish your daily chores and clean the house. Then sprinkle Gangajal on the threshold of the house and apply a paste of sandalwood mixed with fragrance. After bathing, the women of the house should prepare the dishes liked in your house in the kitchen. Include kheer and puri in the dishes. Then invite a qualified Brahmin to the house and get havan, pujan, pind, tarpan etc. done for the ancestors. After that, take out Panch Bali. The food prasad offered to cow, dog, crow, ant and god is called Panch Bali. After that, keep incense sticks, flowers, lamps etc. in front of the pictures of your ancestors and keep some food prasad. With folded hands, pray for their salvation and going to the shelter of God. Then feed the Brahmin and send him off by donating clothes, grains, dakshina etc.

In the evening, donate Panch Deeps for the ancestors. Place a ghee or oil lamp at the place of worship in the house, near Tulsi, near the water place in the kitchen, in the south and west direction of the house. Go to the Shiva temple and perform Abhisheka on the Shivling with water mixed with black sesame seeds. In the evening, if there is a Peepal tree near the temple, then light a lamp there as well. Pray for the salvation, liberation and upward movement of the ancestors. In this way, by performing Shradh, Pinddaan and Tarpan on Sarvapitri Amavasya, one gets the special blessings of the ancestors.

02. When is Sarvapitri Amavasya in the year 2024?

According to our Panchangs, the Amavasya date of Ashwin month will start on 01 October 2024 at 09:39 pm, which will end on 03 October 2024 at 12:18 am. Therefore, according to Udayatithi, the Amavasya ritual will be performed on 02 October 2024.

03. When is the auspicious time for worship?

Kutup Muhurta- 11:45 am to 12:24 pm.
Rohin Muhurta- 12:34 pm to 01:34 pm.
Afternoon Kaal- 01:21 pm to 03:43 pm.

 

Relation between Amavasya and Solar Eclipse

This year, the shadow of solar eclipse is looming on Pitru Amavasya. The solar eclipse will last from 09:40 pm on October 01 to 03:17 midnight on October 02. Although this solar eclipse will occur at night, it will not be visible in India. Therefore, Sutak etc. will not be valid. In such a situation, there will be no prohibition in Tarpan and Shradh rituals due to solar eclipse on Sarva Pitru Amavasya.

I hope the readers found the information useful. Please give your important opinion through comments.

Thanks and gratitude.

-Astro Richa Srivastava

हमारे पितर कौन हैं? एक परिचय (Hindi & English)

हमारे पितर कौन हैं? एक परिचय (Hindi & English)

Om-Shiva

परिभाषा-

अक्सर हम अपने पूर्वजों या घर-परिवार के गुजर गए लोगों को “पितर” मान लेते हैं। लेकिन “पितरों” का परिचय एक विस्तृत विषय है। वस्तुतः पितर समस्त लोकों की चौरासी लाख योनियों में से एक योनि है। पितर विभिन्न लोकों में रहने वाली वें दिव्य आत्माएं और सामान्य जीवात्माएं हैं, जिनसे देवता और मनुष्य की उतपत्ति हुई है। पितर देवताओं की तरह ही शक्तिशाली और पुण्यफलदायी होते हैं। संतुष्ट और प्रसन्न होने पर अपने कुल को सुख, समृद्धि, सन्तति, धन और यश प्रदान करते हैं। जबकि अप्रसन्न होने पर सभी प्रकार के सुख छीन भी लेते हैं। इनकी प्रसन्नता के बिना हमें देवताओं और नवग्रहों का भी आशीर्वाद नहीं प्राप्त हो सकता। एक सम्पूर्ण लोक ही पितरों के लिए समर्पित किया गया है।

परिचय-

मनुस्मृति में पितरों के सम्बंध में कहा गया है कि पितर ब्रह्मा जी के पुत्र मनु हैं और मनु के जो अत्रि, मरीचि, पुलत्स्य आदि ऋषि पुत्र हैं, उनके सभी संतानें ही पितृगण कहे गए हैं।

मनुस्मृति में श्लोक है कि-

“ऋषिभ्यः पितरो जाता: पितृभे देवमानवा:।
देवेभ्यस्तु जगत्सर्वे चरं स्थाण्वनुपूर्वश:।।”

अर्थात् , ऋषियों से पितर उत्पन्न हुए हैं। पितरों से देवता और मनुष्य उत्तपन्न हुए हैं। देवताओं से ये सम्पूर्ण जगत निर्मित हुआ है।

पितरों के प्रकार-

मनुस्मृति, पद्मपुराण, मत्स्यपुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण आदि में पितरों की कई श्रेणियां बताई गई हैं। पर मूलतः हम पितरों को दो श्रेणियों में विभक्त कर सकते हैं।

(अ) दिव्य पितर
(ब) पूर्वज पितर

(अ) दिव्य पितर-

दिव्य पितर वें पितर हैं जिनसे देवताओं और मनुष्यों की उत्पत्ति हुई है। ये सभी बहुत तेजस्वी और देवताओं के समान ही शक्तिशाली होते हैं। देवता भी इनका पूजन करते हैं। ये योगियों के योग को बढ़ाते है और आध्यात्मिक उन्नति देते हैं। इनके लिए विशेष रूप से श्राद्ध कर्म किया जाता है।

दिव्य पितरों के भी सात प्रकार कहे गए हैं-

01. अग्निष्वात- इनकी उत्पत्ति मनु के पुत्र महर्षि मरीचि से हुई है। ये अत्यंत दिव्य और पूज्य हैं। ये देवताओं के पितर माने जाते हैं।

02. बहिर्षद- इनकी उत्पत्ति महर्षि अत्रि से हुई है। ये देव, दानव, यक्ष, गन्धर्व, किन्नरों, सर्प, राक्षस, गरुड़ आदि के पितर हैं।

03. सोमसद- सोमसद महर्षि विराट के वंशज हैं। ये साधुओं और साधकों के पितर माने जाते हैं।

04. सोमपा- ये पितर महर्षि भृगु से उत्तपन्न हुए हैं। ये ब्राह्मणों के पितर माने जाते हैं।

05. हविष्मान- ये महर्षि अंगिरा के पुत्र हैं। इन्हें हविर्भुज भी कहते हैं। इन्हें क्षत्रियों का पितर कहा जाता है।

06. आज्यपा- यह महर्षि पुलत्स्य से उत्तपन्न हुए हैं। इन्हे वैश्यों का पितर कहा जाता है।

07. सुकालि- सुकालि महर्षि वसिष्ठ के पुत्र कहे गए हैं। यह शूद्रों के पितर कहे गए हैं।

उपर्युक्त सात प्रमुख दिव्य पितरों के अतिरिक्त और भी दिव्य पितर हैं। उदाहरण के लिए- “अग्निदग्ध”, “अनाग्निदग्ध”, “काव्य”, “सौम्य” इत्यादि।

(ब) पूर्वज पितर

इस श्रेणी में वें पितर शामिल होते हैं जो किसी परिवार या कुल के पूर्वज हैं, जिनसे कुल या कोई वंश उत्तपन्न हुआ हो। इन्हीं का एकोदिष्ट श्राद्ध, पिंड या तर्पण इत्यादि होता है।

इनकी भी मुख्यतः 2 श्रेणियां हैं।

01. सपिंड पितर
02. लेपभाग भोजी पितर

01. सपिंड पितर-

मृत पिता, दादा, परदादा ये तीन पीढ़ी तक के पूर्वज सपिण्ड पितर कहलाते हैं। ये पितर पिण्डभागी होते हैं।

02. लेपभाग भोजी पितर-

ये सपिण्ड पितरों से ऊपर तीन पीढ़ी तक के पितर होते हैं। जिनका निवास चंद्रलोक से ऊपर पितृलोक में होता है।

उपर्युक्त वर्गीकरण के अलावा “संतुष्ट और असंतुष्ट”, “उग्र और सौम्य पितर”, “ऊर्ध्वगति और अधोगति” वाले पितरों की श्रेणियां भी होती हैं।

उपर्युक्त आलेख में मैनें अपने ज्ञान अनुसार पितरों के बारे में जानकारी दी है। अन्य विद्वानों की राय की भी अपेक्षा है। कृपया कमेंट के ज़रिए अपना दृष्टिकोण अवश्य दें।

धन्यवाद और आभार!

-ऐस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव

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Who are our ancestors? An introduction (Hindi & English)

Om-Shiva

Definition-

Often we consider our ancestors or the deceased members of our family as “ancestors”. But the introduction of “ancestors” is a vast subject. Actually, ancestors are one of the 84 lakh species of all the worlds. The ancestors are those divine souls and ordinary living souls living in different worlds, from which gods and humans have originated. The ancestors are as powerful and virtuous as the gods. When satisfied and happy, they provide happiness, prosperity, progeny, wealth and fame to their clan. Whereas when unhappy, they snatch away all kinds of happiness. Without their happiness, we cannot get the blessings of the gods and the nine planets. An entire world has been dedicated to the ancestors.

Introduction-

In Manusmriti, it is said about Pitras that Manu is the son of Brahma and all the children of Manu like Atri, Marichi, Pulatsya etc. are called Pitragan.

Manusmriti has a verse that-

“Rishibhyah Pitaro Jaata: Pitrbhe Devamanava:|

Devebhyastu Jagatsarve Charam Sthaanvanu Purvasha:||”

That is, Pitras are born from Rishis. Gods and humans are born from Pitras.

This entire world is created from Gods.

Types of Pitras-

Many categories of Pitras have been mentioned in Manusmriti, Padmapuran, Matsyapuran, Brahmavaivart Purana etc. But basically we can divide Pitras into two categories.

(A) Divine Pitras

(B) Ancestor Pitras

(A) Divine Pitras-

Divya Pitras are those Pitras from whom Gods and Humans originated. All of them are very radiant and powerful like Gods. Gods also worship them. They increase the yoga of Yogis and give spiritual progress. Shraddha Karma is specially performed for them.

There are seven types of Divine Pitras-

01. Agnishwat- They originated from Maharishi Marichi, son of Manu. They are extremely divine and worshipable. They are considered to be the Pitras of Gods.

02. Bahishad- They originated from Maharishi Atri. These are the ancestors of Devas, Danavas, Yakshas, ​​Gandharvas, Kinnars, snakes, demons, Garuda etc.

03. Somasad- Somasad is the descendant of Maharishi Virat. He is considered to be the ancestors of sadhus and sadhaks.

04. Sompa- These ancestors are born from Maharishi Bhrigu. They are considered to be the ancestors of Brahmins.

05. Havisman- He is the son of Maharishi Angira. He is also called Havirbhuj. He is called the ancestor of Kshatriyas.

06. Ajyapa- He is born from Maharishi Pulatsya. He is called the ancestor of Vaishyas.

07. Sukali- Sukali is said to be the son of Maharishi Vasishtha. He is said to be the ancestor of Shudras.

Apart from the above mentioned seven major divine ancestors, there are other divine ancestors too. For example- “Agnidagdh”, “Anaagnidagdh”, “Kavya”, “Saumya” etc.

(b) Ancestor Pitras

This category includes those Pitras who are the ancestors of a family or clan, from whom a clan or a lineage has originated. It is for them that Ekodishta Shraddha, Pind or Tarpan etc. is performed.

There are mainly 2 categories of these too.

01. Sapinda Pitras

02. Lepbhag Bhoji Pitras

01. Sapinda Pitras

The ancestors up to three generations like dead father, grandfather, great grandfather are called Sapinda Pitras. These Pitras are Pindbhagi.

02. Lepbhag Bhoji Pitras

These are the ancestors up to three generations above Sapinda Pitras. Whose residence is in Pitralok above Chandralok.

Apart from the above classification, there are also categories of Pitras with “satisfied and dissatisfied”, “fierce and gentle Pitras”, “upward and downward movement”.

In the above article, I have given information about Pitras according to my knowledge. Opinion of other scholars is also expected. Please give your viewpoint through comments.

Thanks and gratitude!

-Astro Richa Srivastava

जन्मकुंडली में कालसर्प दोष (Hindi & English)

जन्मकुंडली में कालसर्प दोष (Hindi & English)

आजकल सोशल मीडिया और पत्र-पत्रिकाओं में कालसर्प दोष या योग की बहुत चर्चा है। अनेक ज्योतिषियों द्वारा इस योग की चर्चा करते और इसके विभिन्न उपायों को बताते देखा-सुना जा रहा है। आइए हम जानते हैं कि कालसर्प दोष की मूलभूत जानकारी क्या है?

क्या है कुंडली में कालसर्प दोष का अर्थ?

कालसर्प दो शब्दों से मिलकर बना है, काल और सर्प। काल अर्थात राहु और सर्प अर्थात केतु।

हमारे ग्रन्थों में कहा जाता है कि-

“राहुतः केतुमध्ये आगच्छन्ति यदा ग्रहा:।
कालसर्पस्तु योगोयं कथितम पूर्वसुरभि:।।

अर्थात – यदि किसी व्यक्ति के जन्मकाल के समय समस्त ग्रह राहु तथा केतु के मध्य आ जाते हैं तो कालसर्प योग का निर्माण होता है। इस योग को सर्वाधिक अशुभ योगों में से एक माना जाता है। जिनकी कुंडली में यह योग बनता है, उनके जीवन में काफी उतार-चढ़ाव और संघर्ष आता है। इस योग से पीड़ित जातकों के जीवन में कष्टों का आधिक्य, रोग, संघर्ष, संतानहीनता, धन की कमी, असफलता आदि अशुभ प्रभाव इस योग के फलस्वरूप देखने में आते हैं। लेकिन यदि कुंडली में कालसर्प योग के अतिरिक्त सकारात्मक ग्रह अधिक हों तो व्यक्ति उच्च पदाधिकारी भी बनता है लेकिन परिश्रम और संघर्ष के बाद। और यदि नकारात्मक ग्रह अधिक प्रभावशाली हों तो जीवन अत्यंत कठिन और संघर्षमय बन जाता है।

कालसर्प दोष के कितने प्रकार होते हैं?

कालसर्प दोष 288 प्रकार के होते हैं। क्योंकि 12 राशियों में 12 प्रकार के कालसर्प दोष (12×12=144) तथा 12 लग्नों में 12 प्रकार के कालसर्प दोष (12×12=144)। दोनों का कुल योग अर्थात 288 प्रकार के कालसर्प दोष हुए।

उपर्युक्त 288 प्रकार के कालसर्प दोषों में भी 12 प्रमुख प्रकार के दोष इस प्रकार से हैं।

01. अनन्त कालसर्प दोष

जब कुंडली के प्रथम भाव में राहु हों और सप्तम भाव में केतु हों तब इस योग का निर्माण होता है। इस योग से प्रभावित होने वाले जातक को शारीरिक और मानसिक परेशानी उठानी पड़ती है। कभी-कभी सरकारी और अदालती मामलों में भी फंसना पड़ता है। इस योग की सकारात्मक बात यह है कि इस योग वाला जातक साहसी, निडर, स्वाभिमानी और स्वतंत्र विचारों वाला होता है।

02. कुलिक कालसर्प दोष

जब कुंडली के दूसरे भाव में राहु हों और आठवें भाव में केतु हों तब कुलिक नाम का कालसर्प दोष का निर्माण होता है। इस योग से पीड़ित व्यक्ति को आर्थिक कष्ट भोगना पड़ता है। उसकी पारिवारिक स्थिति कलहपूर्ण और संघर्षपूर्ण होती है। सामाजिक तौर पर भी जातक की स्थिति इतनी अच्छी नही रहती है।

03. वासुकि कालसर्प दोष

जब तीसरे भाव में राहु हों और नवम भाव में केतु हों तब वासुकि नामक कालसर्प दोष बनता है। इस योग में पीड़ित व्यक्ति के जीवन में लगातार संघर्ष बना रहता है। प्रायः भाई बहनों से सम्बंध खराब रहते हैं और यात्राओं में भी कष्ट उठाना पड़ता है। नौकरी व्यवसाय में भी परेशानी बनी रहती है।

04. शंखपाल कालसर्प दोष

जब कुंडली के चतुर्थ भाव में राहु हों और दशम भाव में केतु हों तब यह शंखपाल नाम का योग बनता है। इस दोष से पीड़ित होने पर व्यक्ति को घर के सुखों में कमी होती है। व्यक्ति को आर्थिक तंगी होना, मानसिक तनाव रहना, माता के सुखों में कमी रहना तथा जमीन-जायदाद आदि मामलों में कष्ट भोगना पड़ता है।

05. पदम् कालसर्प दोष

जब कुंडली के पंचम भाव में राहु हों और एकादश भाव में केतु हों तब यह कालसर्प दोष बनता है। प्रायः इस दोष में जातक को अपयश, लाभों में कमी, शिक्षा में बाधा और सन्तान सुखों में कमी आदि की समस्या बनी रहती है। अक्सर वृद्धावस्था में सन्यास की ओर प्रवित्त होना भी इस योग के प्रभाव से देखा जा सकता है।

06. महापद्म कालसर्प दोष

जब कुंडली के छठे भाव में राहु हों और द्वादश भाव में केतु हों तब इस योग का निर्माण होता है। इस योग के कारण व्यक्ति को मामा की तरफ से कष्ट, रोग और ऋण से परेशानी, निराशा के कारण दुर्व्यसनों का शिकार हो जाना आदि समस्याएं होतीं हैं। इन्हें काफी समय तक शारीरिक कष्ट भोगना पड़ता है।

07. तक्षक कालसर्प दोष

जब कुंडली के सप्तम भाव में राहु हों और प्रथम भाव में केतु हों तो तक्षक नाम का दोष उतपन्न होता है। इस योग में वैवाहिक जीवन उथल-पुथल भरा होता है। कारोबार, व्यवसाय में साझेदारी लाभप्रद नहीं होती और यह मानसिक परेशानी देती है। ऐसे जातकों का प्रेम जीवन प्रायः असफल ही रहता है।

08. कर्कोटक कालसर्प दोष

जब कुंडली के आठवें भाव में राहु हों और दूसरे भाव में केतु हों तो इस प्रकार का योग बन जाता है। इस योग में व्यक्ति को कुटुंब सम्बंधित अनेक परेशानी उठानी पड़ती है। ऐसे कुंडली वाले लोगों का धन स्थिर नहीं रह पाता और गलत कार्यों में धन खर्च होता है।

09. शंखचूड़ कालसर्प दोष

जब कुंडली के नवम भाव में राहु हों और तृतीय भाव में केतु हों तब इस दोष का निर्माण होता है। इस योग से प्रभावित व्यक्ति को भाग्य का साथ कम मिलता है। उसे सुखों की प्राप्ति काफी कम होती है। इन्हें पिता से प्राप्त सुखों में भी बाधा आती है तथा इनकी धार्मिक प्रवृत्ति कम होती है।

10. घातक कालसर्प दोष

जब कुंडली के दशम भाव में राहु हों और चतुर्थ भाव में केतु हों तो यह घातक नामक कालसर्प दोष बनता है। प्रायः कहा जाता है कि व्यक्ति अपने पूर्व जन्म का कोई श्राप भोग रहा होता है। इस योग से परिवार और रोजगार में लगातार परेशानी बनी रहती है और व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित बना रहता है।

11. विषधर कालसर्प दोष

जब कुंडली के एकादश भाव में राहु हों और पंचम भाव में केतु हों तब इस योग का निर्माण होता है। इस योग से प्रभावित व्यक्ति को सन्तान सम्बन्धी कष्ट बना रहता है। इनकी स्मरणशक्ति अच्छी नहीं होती और विवेक की भी कमी रहती है। शिक्षा में रुकावट, मान सम्मान में कमी इस योग के प्रमुख लक्षण हैं।

12. शेषनाग कालसर्प दोष

जब कुंडली के द्वादश भाव में राहु हों और छठे भाव में केतु उपस्थित हों तो इस दोष का निर्माण होता है। इस योग में व्यक्ति के कई गुप्त शत्रु रहते हैं और उसके खिलाफ षड्यंत्र रचते रहते हैं। मुकदमें, जेलयात्रा, सरकारी दंड, अनर्गल खर्चे, मानसिक अशांति और बदनामी भी इस योग में झेलनी पड़ सकती है। लेकिन अक्सर ऐसे जातकों को मृत्यु के बाद ख्याति मिलती है।

इस प्रकार से देखा जाए तो कालसर्प दोष व्यक्ति के जीवन में भाग्य को बाधित कर देते हैं, जिसके कारण जातक के जीवन में इस जन्म के तथा पूर्व जन्म में किये गए पाप कर्मों का प्रभाव बढ़ जाता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को कालसर्प दोष निवारण साधना, मन्त्र जाप, अनुष्ठान, तर्पण, दान और पितृ मुक्ति क्रिया अवश्य करानी चाहिए।

आपको मेरा यह आलेख कैसा लगा? कृपया टिप्पणी के माध्यम से ज़रूर बताएं।

धन्यवाद और आभार।

– ऐस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव

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Kaal Sarp Dosh in Birth Chart (Hindi & English)

Nowadays there is a lot of discussion about Kaal Sarp Dosh or Yog in social media and newspapers. Many astrologers are seen discussing this Yog and giving various remedies for it. Let us know what is the basic information about Kaal Sarp Dosh?

What is the meaning of Kaal Sarp Dosh in Kundali?

Kaal Sarp is made up of two words, Kaal and Sarp. Kaal means Rahu and Sarp means Ketu.

It is said in our scriptures that-

“Rahut Ketu madhye aagchanti yada graha.

Kaalsarpastu yogayam chhattam purvasurbhi.

Meaning – If at the time of birth of a person all the planets come between Rahu and Ketu then Kaalsarpa Yog is formed. This Yog is considered to be one of the most inauspicious Yog. Those in whose kundali this Yog is formed, their life faces a lot of ups and downs and struggle. The inauspicious effects of this Yog are seen in the lives of the people suffering from this Yog like excess of sufferings, diseases, struggles, childlessness, lack of money, failure etc. But if there are more positive planets in the kundali apart from Kaalsarpa Yog then the person also becomes a high official but after hard work and struggle. And if the negative planets are more influential then life becomes extremely difficult and full of struggle.

How many types of Kalsarp Dosh are there?

There are 288 types of Kalsarp Dosh. Because there are 12 types of Kalsarp Dosh in 12 zodiac signs (12×12=144) and 12 types of Kalsarp Dosh in 12 ascendants (12×12=144). The total of both means 288 types of Kalsarp Dosh.

Among the above 288 types of Kalsarp Dosh, the 12 main types of dosh are as follows.

01. Anant Kalsarp Dosh

When Rahu is in the first house of the horoscope and Ketu is in the seventh house, then this yoga is formed. The person affected by this yoga has to face physical and mental problems. Sometimes he has to get stuck in government and court cases also. The positive thing about this yoga is that the person with this yoga is courageous, fearless, self-respecting and has independent thoughts.

02. Kulik Kaal Sarp Dosh

When Rahu is in the second house of the horoscope and Ketu is in the eighth house, then a Kaal Sarp Dosh named Kulik is formed. The person suffering from this Yog has to suffer financial difficulties. His family situation is quarrelsome and full of conflict. Socially also the person’s condition is not so good.

03. Vasuki Kaal Sarp Dosh

When Rahu is in the third house and Ketu is in the ninth house, then a Kaal Sarp Dosh named Vasuki is formed. In this Yog, there is constant struggle in the life of the affected person. Usually, relations with siblings are bad and one has to face troubles in travels. There are also problems in job and business.

04. Shankhpal Kaal Sarp Dosh

When Rahu is in the fourth house of the horoscope and Ketu is in the tenth house, then this Yog named Shankhpal is formed. When a person is suffering from this Dosh, there is a decrease in the happiness of the house. The person has to face financial crisis, mental stress, lack of happiness from the mother and has to suffer in matters related to land and property etc.

05. Padma Kaal Sarp Dosh

When Rahu is in the fifth house of the horoscope and Ketu is in the eleventh house, then this Kaal Sarp Dosh is formed. Usually, the native of this dosha faces problems like infamy, reduction in profits, hindrance in education and reduction in happiness of children etc. Often, turning towards sanyaas in old age can also be seen due to the effect of this yoga.

06. Mahapadma Kaal Sarp Dosh

When Rahu is in the sixth house of the horoscope and Ketu is in the twelfth house, then this yoga is formed. Due to this yoga, the person has to face problems like trouble from maternal uncle’s side, disease and debt, falling prey to bad habits due to despair, etc. They have to suffer physical pain for a long time.

07. Takshak Kaal Sarp Dosh

When Rahu is in the seventh house of the horoscope and Ketu is in the first house, then a dosha named Takshak arises. In this yoga, married life is full of turmoil. Partnership in business is not beneficial and it causes mental troubles. The love life of such people is often unsuccessful.

08. Karkotak Kaal Sarp Dosh

When Rahu is in the eighth house of the horoscope and Ketu is in the second house, then this type of yoga is formed. In this yoga, the person has to face many problems related to the family. The wealth of people with such horoscope does not remain stable and the money gets spent in wrong works.

09. Shankhachud Kaal Sarp Dosh

This dosh is formed when Rahu is in the ninth house of the horoscope and Ketu is in the third house. The person affected by this yoga gets less support from luck. He gets very less pleasures. They also face obstacles in the pleasures received from their father and their religious tendency is less.

10. Ghatak Kaal Sarp Dosh

When Rahu is in the tenth house of the horoscope and Ketu is in the fourth house, then this Ghatak Kaal Sarp Dosh is formed. It is often said that the person is suffering from some curse of his previous birth. Due to this yoga, there is constant trouble in family and employment and the mental health of the person also remains affected.

11. Vishdhar Kaal Sarp Dosh

This yoga is formed when Rahu is in the eleventh house of the horoscope and Ketu is in the fifth house. The person affected by this yoga has problems related to children. Their memory power is not good and there is also lack of discretion. Obstacles in education, lack of respect are the main symptoms of this yoga.

12. Sheshnag Kaal Sarp Dosh

When Rahu is present in the 12th house of the horoscope and Ketu is present in the 6th house, then this dosh is formed. In this yoga, the person has many secret enemies and they keep plotting against him. In this yoga, one may have to face lawsuits, jail, government punishment, unnecessary expenses, mental unrest and defamation. But often such people get fame after death.

In this way, Kaal Sarp Dosh obstructs the luck in a person’s life, due to which the effect of sins done in this birth and previous birth increases in the life of the person. Therefore, every person must do Kaal Sarp Dosh Nivaran Sadhna, Mantra Jaap, Anushthan, Tarpan, Daan and Pitru Mukti Kriya.

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Thanks and gratitude.

– Astro Richa Srivastava

स्त्रियाँ अपने पुरुष से क्या चाहती हैं?(Hindi & English)

स्त्रियाँ अपने पुरुष से क्या चाहती हैं?(Hindi & English)

Om-Shiva
ऐसा कहते हैं कि मानव का मन बड़ा जटिल है और उसे समझना बेहद कठिन है। उसपर से अगर किसी स्त्री के दिल की बात हो तो उसे समझना लगभग असम्भव है। क्योंकि कहा भी जाता है कि एक समुंदर की थाह तो ली जा सकती है, लेकिन एक स्त्री के मन की थाह नहीं ली जा सकती है। फिर भी स्त्री अपने पुरुष, चाहे वह पति हो या फिर उसका प्रेमी, उससे क्या अपेक्षा रखती है? इसे कुछ बिंदुओं से समझा जा सकता है।

01. क्यों स्त्री अपने प्रेम से चाहती है सराहना?

प्रत्येक औरत चाहे वह किसी भी उम्र की हो, हमेशा अपने सहचर के प्रेम भरे और तारीफ़ से पूर्ण कुछ शब्दों की लालसा रखती है। वह ये उम्मीद रखती है कि चाहे वह कुछ भी काम करे, उसका पति या प्रेमी उसके तारीफ़ में कुछ ना कुछ अवश्य कहे। वस्तुतः स्त्री चाहे घर के काम-काज करे, या सामाजिक कार्य करे, या फिर श्रृंगार ही क्यों न करे, वह यह सभी कार्य केवल अपने पार्टनर की सन्तुष्टि के लिए ही करती है। स्त्री मनोविज्ञान तो यह कहता है कि तारीफ के भारी भरकम शब्दों को छोड़िए, पार्टनर की तारीफ भरी एक नज़र ही उसे भीतर तक संतुष्ट कर देती है। सच पूछिए तो एक आम महिला अपने हर कार्य के लिए मन ही मन अपने पार्टनर का अप्रूवल चाहती है, चाहे उसे जीवन में कितनी ही स्वतंत्रता क्यों न मिली हो।

02. क्यों समर्पण और सहयोग स्त्री का मूल है?

एक औरत अपने पार्टनर के लिए खुद जितना समर्पित रहती है, उतने ही समर्पण की अभिलाषा अपने पति या प्रेमी से भी अपेक्षा रखती है। कई बार पुरूष अपने मेल ईगो के चलते अपना समर्पण प्रकट नहीं कर पाते हैं। उन्हें लगता है कि उनकी पत्नी या प्रेमिका सब खुद ही समझती होगी। लेकिन पुरुषों का समर्पण उनके बातों और व्यवहार में भी झलकना चाहिए। फिर चाहे बात पत्नी को सहयोग करने की हो या फिर शारीरिक सम्बन्धों की, है औरत यही आशा करती है कि उसका पार्टनर पूरी तरह से उसके प्रति समर्पित हो। हर स्त्री अपने पति या प्रेमी से हमेशा सहयोग भी चाहती है, चाहे शारीरिक सहयोग हो या मानसिक, यह उसके लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है। जब औरत को अपने सहचर के मजबूत सहयोग और साथ का सम्बल मिलता है तब वह दुनियां के तूफानों का डटकर सामना भी सरलता से कर लेती है।

03. क्यों सच्चा प्रेम और वफादारी एक स्त्री की नींव है?

देखा जाए तो हर औरत का दिल एक फूल की तरह बहुत ही कोमल होता है। भले ही दुनियां के लिए वह कितनी ही कठोर क्यों न हो, अपने पार्टनर के प्रेम की आंच में वह मोम की तरह से पिघल जाती है। सच पूछा जाय तो स्त्री सच्चे प्रेम की चाह में बड़े से बड़ा दुःसाहस का वो कार्य कर सकती है, जिसे पुरुष कभी भी नहीं कर सकते। स्त्री के दिल को सिर्फ सच्चे प्रेम से ही जीता जा सकता है। जब स्त्री को अपने पार्टनर की तरफ से सच्चे प्रेम की आंच महसूस होती है तो वह अपना सर्वस्व उसके उपर न्यौछावर कर देती है। यह एक कड़वी सच्चाई है कि पुरुष सिर्फ नारी के शरीर को भोगने के लिए ही प्यार को प्रकट करता है, जबकि औरत केवल अपने पुरुष का प्रेम पाने के लिए अपना शरीर समर्पित करती है। यहां सभी पुरुषों को यह समझना होगा कि स्त्री के भीतर प्रेम में छल को समझने का ईश्वर प्रदत्त गुण होता है। जब उसे लगता है कि प्रेम में उसके साथ धोखा हो रहा है, तो वह बुरी तरह से टूट जाती है। औरत खुद अपने पार्टनर के प्रति जितनी ईमानदार और वफ़ादार बनी रहती है, ठीक वही अपेक्षा और आशा वह अपने पार्टनर से भी रखती है। इसलिए जब भी कभी उसे अपने पार्टनर का पराई औरत से सम्बन्धों के बारे में पता चलता है, वह जीते जी मौत के मुंह मे चली जाती है।

04. क्यों देखभाल करने और पाने का गुण स्त्री में विद्यमान है?

औरत पूरी दुनियां से भले ही लड़ ले लेकिन उसके भीतर आजीवन एक छोटी सी बच्ची छुपी रहती है, जो अपने पार्टनर से प्रेम के साथ-साथ देखभाल की आकांक्षा भी रखती है। यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि किसी भी लड़की या बालिका के जीवन में आने वाला प्रथम पुरूष उसका पिता ही होता है। जिससे उसे लाड़, दुलार, स्नेह, सराहना, और सुरक्षा महसूस होती है। एक बालिका के लिए पूरी दुनियां में सबसे सुरक्षित जगह उसके पिता की गोद ही होती है। जहाँ वह निश्चिंत होकर सो जाती है। पिता रूपी पुरुष के इस स्नेह की छाप औरत के अवचेतन मन में सदा के लिए छप जाती है। युवावस्था में जब उसके जीवन में पति या प्रेमी के रूप में कोई पुरुष आता है तो स्त्री वही सुरक्षा, प्यार, लाड़-दुलार अपने पति या प्रेमी में भी खोजती है। वह रोज़मर्रा के जीवन में छोटे-छोटे देखभाल की लालसा रखती है। एक थकी हुई पत्नी को पति द्वारा दिया जाने वाली एक कप चाय का प्याला हो या चाहे एक गिलास पानी ही क्यों ना हो, वह उसे सभी लग्ज़री तोहफों से भी अधिक कीमती लगता है। पत्नी का जन्मदिन मनाना, सैर, पिकनिक या मूवी पे ले जाना, कभी-कभी छोटे छोटे गिफ्ट देते रहना, बीमारी में उसे दवा देना, प्यार से उसके सिर पर हाथ फेर देना, आदि ये सब छोटी-छोटी बातें हैं जो उसे ऊर्जावान और प्रसन्नचित्त बनाएं रखती हैं।

05. क्यों केवल सम्मान के द्वारा ही स्त्री को जीता जा सकता है?

हर स्त्री अपने पुरुष से प्रेम, समर्पण और वफ़ादारी के साथ-साथ उसके है क्षण सम्मान की भी अपेक्षा रखती है। हालांकि हमारे भारतीय समाज में पुरूष प्रधान मानसिकता होने के कारण एक पुरुष अपनी पत्नी या प्रेमिका को प्रेम तो कर लेता है, लेकिन प्रायः उसका सम्मान करना भूल जाता है। अपने पार्टनर द्वारा सम्मानित औरत में एक प्रबल आत्मविश्वास आ जाता है। उसके व्यक्तित्व में अलग सा आकर्षण होता है। औरत हमेशा यही उम्मीद करती है कि उसकी भावनाओं की कद्र की जाय और उसके इमोशन को समझा जाए। हालांकि स्त्री मनोविज्ञान एक लंबे रिसर्च का विषय है, फिर भी मैंनें कुछ आधारभूत पॉइंट्स को आप सभी के सम्मुख रखने की एक छोटी सी कोशिश की है। मुझे उम्मीद है कि आपको मेरा ये आलेख पसन्द आया होगा। आभार और धन्यवाद।

– एस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव

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What do women want from their men? (Hindi & English)

Om-Shiva
It is said that the human mind is very complex and it is very difficult to understand it. On top of that, if it is a woman’s heart, then it is almost impossible to understand it. Because it is also said that the depth of an ocean can be gauged, but the depth of a woman’s mind cannot be gauged. Still, what does a woman expect from her man, whether he is her husband or her lover? This can be understood from some points.

01. Why does a woman want appreciation from her lover?

Every woman, irrespective of her age, always craves for some loving and appreciative words from her partner. She expects that no matter what she does, her husband or lover must say something in her praise. In fact, whether a woman does household chores, or social work, or even makeup, she does all these things only for the satisfaction of her partner. Women’s psychology says that forget about heavy words of praise, just a glance of the partner filled with appreciation satisfies her from within. To be honest, a common woman secretly wants her partner’s approval for every work she does, no matter how much freedom she has got in life.

02. Why dedication and cooperation are the essence of a woman?

A woman expects the same dedication from her husband or lover as she herself is dedicated to her partner. Many times men are unable to express their dedication due to their male ego. They think that their wife or girlfriend will understand everything herself. But the dedication of men should also be reflected in their words and behavior. Whether it is about supporting the wife or physical relations, a woman expects that her partner is completely dedicated to her. Every woman always wants cooperation from her husband or lover, whether it is physical cooperation or mental, it is very important for her. When a woman gets the support of strong cooperation and companionship of her partner, then she can easily face the storms of the world.

03. Why true love and loyalty are the foundation of a woman?

If seen, every woman’s heart is as soft as a flower. No matter how harsh she may be for the world, she melts like wax in the heat of her partner’s love. To be honest, a woman can do the most daring act in the desire of true love, which men can never do. A woman’s heart can only be won by true love. When a woman feels the heat of true love from her partner, she sacrifices everything for him. It is a bitter truth that a man expresses love only to enjoy a woman’s body, while a woman surrenders her body only to get the love of her man. Here all men have to understand that a woman has a God-given quality of understanding deceit in love. When she feels that she is being cheated in love, she breaks down badly. The woman herself remains honest and loyal towards her partner, the same expectation and hope she keeps from her partner as well. That is why whenever she comes to know about her partner’s relationship with another woman, she goes to the mouth of death while she is still alive.

04. Why is the quality of giving and receiving care present in a woman?

A woman may fight with the whole world, but a little girl remains hidden inside her throughout her life, who desires love and care from her partner. It is a psychological fact that the first man in the life of any girl is her father. From whom she feels pampering, affection, appreciation, and security. The safest place in the world for a girl is her father’s lap. Where she sleeps without any worries. The impression of this affection of the man in the form of a father is forever imprinted in the subconscious mind of the woman. In her youth, when a man comes into her life as a husband or lover, then the woman seeks the same security, love, pampering in her husband or lover. She craves small cares in everyday life. A cup of tea or a glass of water given by a husband to a tired wife is more precious to her than all the luxurious gifts. Celebrating wife’s birthday, taking her outing, picnic or movie, giving small gifts sometimes, giving her medicine when she is sick, caressing her head lovingly, etc. are all small things that keep her energetic and happy.

05. Why can a woman be won only through respect?

Every woman expects love, dedication and loyalty from her man as well as respect from him at every moment. However, due to male-dominated mentality in our Indian society, a man loves his wife or girlfriend, but often forgets to respect her. A woman who is respected by her partner has a strong self-confidence. There is a different kind of attraction in her personality. A woman always expects that her feelings should be respected and her emotions should be understood. Although women psychology is a subject of long research, still I have made a small effort to put some basic points in front of you all. I hope you liked my article. Gratitude and thanks.

– Astro Richa Srivastava