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Tag: ज्योतिषाचार्य ऋचा श्रीवास्तव

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पितृपक्ष 2024(Hindi & English)

पितृपक्ष 2024(Hindi & English)

हमारे सनातन धर्म में पितरों की मुक्ति, उनकी प्रसन्नता हेतु किये जाने वाले कर्मों का एक बहुत ही लंबा विधान है। हमारे भारतीय वांग्मय में पितरों के प्रति सम्मान, उनकी मुक्ति और उनकी प्रसन्नता के लिए किए जाने वाले कार्य हमारे दैनिक जीवन की दिनचर्या में शामिल रहते हैं।

हमारे सभी संस्कारों में पितरों हेतु किये गए सभी विधानों को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। हमारी भारतीय संस्कृति में पितरों को देवताओं के ही समकक्ष रखा गया है। लगभग सभी पुराणों, विशेषकर गरुण पुराण में पितरों की महिमा का वर्णन है, पूरा पुराण उन्हें ही समर्पित है। सूक्ष्म जगत में एक पूरा लोक यानी पितृलोक ही उनके लिए मौजूद है।

हम सभी मनुष्यों पर अपने पितरों का ऋण होता है, उससे मुक्ति के लिए प्रत्येक मनुष्य का पितरों का श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण करना बहुत आवश्यक होता है। पितरों के आशीर्वाद के अभाव में इहलोक में हमें सुख-सम्पन्नता और शांति नहीं प्राप्त हो सकती है। यहां तक कि स्वयं भगवान श्रीहरि विष्णुजी के अवतारों में भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण तक नें अपने पूर्वजों और पितरों के लिए पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध आदि किये हैं। इसके महात्म्य को देखते हुए हमारे मनीषियों ने वर्ष के 15 दिनो के पक्ष को पितरों के निमित्त समर्पित कर दिया।

वर्ष 2024 में कब है पितृपक्ष?

हिन्दू पञ्चाङ्ग के अनुसार इस वर्ष पितृपक्ष बुधवार, दिनांक 18 सितंबर, पूर्णिमा तिथि से प्रारम्भ हो रहा है, जोकि दिनांक 02 अक्टूबर, दिन सोमवार, अमावस्या तिथि तक चलेगा। कुछ विद्वान ज्योतिषियों के अनुसार चूंकि पूर्णिमा तिथि का प्रारम्भ 17 सितंबर, दोपहर से हो रहा है, और सूर्य की कन्या राशि में संक्रांति भी 17 सितम्बर को हो रही है तो पितृपक्ष की शुरुआत 17 सितंबर को ही मानी जायेगी। लेकिन उदया तिथि के अनुसार 18 सितंबर को ही पितृ पक्ष की शुरुआत सर्वमान्य है। हालांकि जिनके परिजन पूर्णिमा तिथि को स्वर्गलोक सिधारे, वे 17 और 18 दोनों दिन पिंडदान, तर्पण, विसर्जन कर सकते हैं।

क्या होता है पितृपक्ष?

श्रीमदभागवत पुराण, ब्रह्मपुराण और गरुड़ पुराण के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि से लेकर अमावस्या तिथि तक जो 16 दिनों का पक्ष होता है उसे पितृपक्ष या श्राद्धपक्ष बोला जाता है।

शास्त्रों के अनुसार इस समय सूर्य कन्या राशि में होते हैं इसलिए इस समय को कनागत भी बोला जाता है। कहा जाता है कि इन दिनों में मृत परिजन अपने सूक्ष्म रूप में मृत्यु लोक में अपने वंशजों से मिलने के लिए आते हैं। और जब उनके वंशज उनके निमित्त कोई दान, पुण्य, पूजन और तर्पण करते हैं तो वह बहुत प्रसन्न हो जाते हैं और उनको आशीर्वाद देकर अमावस्या के दिन वापस अपने लोक को लौट जाते हैं।

क्या होता है तर्पण?

जल जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है, चाहे वह स्थूल जगत हो या सूक्ष्म जगत, जल से ही मुक्ति का मार्ग खुलता है। ऐसे में पितृपक्ष में प्रतिदिन पितरों को काला तिल मिश्रित जल अर्पित किया जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जल से पितरों को तृप्ति मिलती है। जल अर्पण की भी एक विशेष विधि होती है।

श्राद्ध क्या होता है?

हमारे पूर्वज किसी भी महीने की जिस तिथि को मृत्यु को प्राप्त होते हैं, उसी तिथि को पितृपक्ष में अपनी श्रद्धानुसार उनके निमित्त दान पुण्य और हवन किये जाते हैं, और खास रूप में उन पूर्वजो के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान किया जाता है। श्राद्ध का उद्देश्य पितरों को उनके प्रति अपनी श्रद्धा और सम्मान प्रकट करके, उनसे आशीर्वाद प्राप्त करना है।

क्या हैं पितृ पक्ष के सरल उपाय?

पत्रिकाओं और सोशल मिडिया में पढ़ने में आता है कि लोग अपने जीते जागते अपने माता पिता का, घर के बड़े बुजुर्गों का अनादर और तिरस्कार करते हैं, मगर उनके मरणोपरांत पूरे आडम्बर से पितृ पूजन और भोज आदि आयोजित करवाते हैं। सच पूछा जाए तो कुछ हद तक बात सही भी है। मगर दूसरा पक्ष ये भी है श्राद्ध और तर्पण को क्यों न हम एक प्रायश्चित समझकर करें, हमारे उन पूर्वजों के प्रति, जिनका हम ऋण चुकता ना कर सके और जाने अनजाने में हमने उनकी उपेक्षा और तिरस्कार किया। एक तरह से यह हमारा आभार प्रकटी करण भी है, हमारे उन पूर्वजों के प्रति, जिनके आज हम वंशज हैं। देखा जाय तो श्राद्ध शब्द श्रद्धा से उपजा है, अतः हम अधिक आडम्बर न करते हुए, श्रद्धा स्वरुप पितरों का ध्यान करते हुए सामर्थ्य अनुसार जो कुछ भी दान-भोज तर्पण करें तो उसका भी पूर्ण फल प्राप्त होगा।

क्या है उत्तम विधि?

01. प्रतिदिन किसी साफ़ लोटे से, दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके जल में काले तिल डालकर अपने पितरों का ध्यान करते हुए, सिर के ऊपर तक लोटा उठाते हुए अर्घ्य दें।

02. प्रतिदिन अपने भोजन की थाली में से खाने से पूर्व प्रत्येक पदार्थ का थोडा सा हिस्सा अलग प्लेट में निकाल लें। और छत या बारजे पर रख दें।

03. यदि घर के एक पीढ़ी पूर्व के मृतक की मृत्यु की तारीख याद है तो कैलेण्डर से उस दिन की हिन्दू तिथि ज्ञात कर लें फिर पितृपक्ष में उक्त तिथि किस दिनांक को पड़ रही है यह ज्ञात कर लें। फिर पितरों को जल अर्घ्य देने के बाद गाय, कुत्ता व कौवा के लिए रोटी, बिस्कुट या ब्रेड रख लें। उस दिन थोडा कष्ट उठाते हुए उन्हें ढूंढ कर खिलाएं। कौवा के लिए खाना छत या बारजे पर रख दें। कोई आवश्यक नहीं कि कौआ ही खाद्य सामग्री ग्रहण करे, कौवे के स्थान पर कोई भी पक्षी हो सकता है। यदि आपको तिथि ज्ञात नहीं है तो यह उपाय सर्व पितृ अमावस्या के दिन करें।

04. पुण्य तिथि या अमावस्या वाले दिन किसी एक गरीब, ज़रूरत मंद व्यक्ति को यथाशक्ति भोजन या भोजन सामग्री ज़रूर प्रदान करें। साथ में पानी की एक बोतल देना अनिवार्य है। गरीब मजदूर, या भिखारी को भी दान, भोजन आदि दिया जा सकता है।

05. श्रीमद्भागवत गीताजी का 07वां अध्याय पूरी तरह से पितरों की मुक्ति, उनकी प्रसन्नता से सम्बंध रखता है। जो लोग पूरी व्यवस्था से श्राद्ध आदि नहीं कर सकते हैं, वह कम से कम 16 दिनों तक गीताजी के सातवें अध्याय का पाठन संकल्प के साथ करें।

क्या है ज्योतिषीय उपचार?

आपकी लग्न कुंडली में शनि अथवा राहू-केतु भाव अनुसार पितृदोष उत्पन्न करते हैं। कौआ, कुत्ता, गरीब मजदूरों और भिखारी के ये तीनों ग्रह कारक या प्रतिनिधि ग्रह हैं। अतः पितृपक्ष में इन उपायों को करने से पितृदोष की शान्ति होती है। (दोष दूर नहीं होते) यहाँ एक आवश्यक बात भी बताना चाहूंगी कि अक्सर लोग सोचते हैं कि यदि हमारे माता-पिता जीवित हैं तो हम पितृपक्ष क्यों मनाएं?? जबकि यह एक भ्रान्ति है। दूसरी भ्रान्ति यह है कि लडकियाँ श्राद्ध नहीं कर सकतीं हैं। मेरे नज़रिए से सभी श्राद्ध कर सकते हैं क्योंकि यह तो हमारा अपने पूर्वजों के लिए श्रद्धा का एक विषय है।

जिनके माता-पिता जीवित हों, वह ददिहाल पक्ष और ननिहाल पक्ष के पूर्वजों के लिए श्राद्ध सम्बन्धी उपर्युक्त उपाय करें। अविवाहित लडकियाँ अपने पिता के पूर्वजों के लिए उपर्युक्त उपाय करें। जबकि विवाहिताएं अपने श्वसुर कुल और मायके दोनों पक्ष के पूर्वजों के लिए कर सकतीं हैं।

ज्योतिषीय दृष्टिकोण से देखा जाए तो, गेहूं की रोटी सूर्य ग्रह कारक, पीली दाल, हल्दी, कढ़ी गुरु ग्रह कारक, हरी सब्जी बुध ग्रह कारक, मिठाई मंगल ग्रह कारक, खीर और दही शुक्र ग्रह कारक, उड़द के बड़े शनि ग्रह कारक, जल चन्द्रमा ग्रह के कारक हैं। इन सबका उत्तम दान सभी नवग्रहों का भी आशीष दिलवाता है। अतः आप सभी इन सरल उपायों को अपनाएँ और अपने पितरों का आशीष प्राप्त करके अपने जीवन को सुखी बनाएं।

– ज्योतिषाचार्य ऋचा श्रीवास्तव

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Pitru Paksha 2024 (Hindi & English)

In our Sanatan Dharma, there is a very long law of the deeds done for the liberation of ancestors, their happiness. In our Indian literature, respect for ancestors, their liberation and the deeds done for their happiness are included in the routine of our daily life.

In all our rituals, all the rules done for ancestors have been considered very important. In our Indian culture, ancestors have been kept at par with gods. The glory of ancestors is described in almost all the Puranas, especially Garun Purana, the entire Purana is dedicated to them. In the subtle world, a whole world i.e. Pitralok exists for them.

All of us humans have a debt to our ancestors, for liberation from that, it is very important for every human being to perform Shradh, Pinddaan and Tarpan of ancestors. In the absence of the blessings of ancestors, we cannot get happiness, prosperity and peace in this world. Even Lord Shri Ram and Shri Krishna, the incarnations of Lord Vishnu, have performed Pinddaan, Tarpan, Shradh etc. for their forefathers and forefathers. Keeping in view its significance, our sages have dedicated 15 days of the year to the ancestors.

When is Pitru Paksha in the year 2024?

According to the Hindu calendar, this year Pitru Paksha is starting from Wednesday, September 18, Purnima Tithi, which will continue till October 02, Monday, Amavasya Tithi. According to some learned astrologers, since the Purnima Tithi is starting from September 17, afternoon, and the Sun’s Sankranti in Virgo is also happening on September 17, so the beginning of Pitru Paksha will be considered on September 17 itself. But according to Udaya Tithi, the beginning of Pitru Paksha on September 18 is universally accepted.

However, those whose relatives went to heaven on Purnima Tithi, they can do Pinddaan, Tarpan, Visarjan on both 17 and 18 days.

What is Pitru Paksha?

According to Shrimad Bhagwat Purana, Brahma Purana and Garuda Purana, the 16-day period from the full moon date of Ashwin month to the new moon date is called Pitru Paksha or Shradh Paksha.

According to the scriptures, at this time the Sun is in Virgo, so this time is also called Kanagat. It is said that during these days the dead relatives come in their subtle form to meet their descendants in the mortal world. And when their descendants do any charity, good deeds, worship and tarpan on their behalf, they become very happy and after blessing them, they return to their world on the day of Amavasya.

What is Tarpan?

Water is very important for life, whether it is the gross world or the subtle world, the path to salvation opens with water. In such a situation, water mixed with black sesame is offered to the ancestors every day in Pitru Paksha, because it is believed that the ancestors get satisfaction from water. There is a special method of offering water.

What is Shradh?

On the date of our ancestors in any month, on the same date in Pitru Paksha, charity and havan are performed for them according to our faith, and especially charity is done by feeding Brahmins for those ancestors. The purpose of Shradh is to express our faith and respect towards the ancestors and to get their blessings.

What are the simple remedies for Pitru Paksha?

It is read in magazines and social media that people disrespect and despise their parents and elders of the house while they are alive, but after their death they organize Pitru Poojan and feast etc. with great pomp. If truth be told, this is true to some extent. But the other side is also that why don’t we consider Shradh and Tarpan as a penance for those ancestors whose debt we could not repay and knowingly or unknowingly we ignored and despised them. In a way, this is also our expression of gratitude towards our ancestors, whose descendants we are today. If we see, the word Shraddha has originated from Shraddha, so without much pomp, if we meditate on our ancestors with devotion and offer whatever donations, food and tarpan as per our capacity, we will get the full benefit of that too.

What is the best method?

01. Every day, facing south, put black sesame seeds in water from a clean pot and meditate on your ancestors, lifting the pot up to your head and offer water.

02. Every day, before eating, take out a little portion of each item from your plate of food in a separate plate. And keep it on the roof or balcony.

03. If you remember the date of death of a person who died a generation ago, then find out the Hindu date of that day from the calendar, then find out on which date the said date is falling in Pitru Paksha. Then after offering water to the ancestors, keep roti, biscuit or bread for cow, dog and crow. On that day, take some trouble and find them and feed them. Keep food for the crow on the roof or balcony. It is not necessary that only the crow should eat the food, any bird can be in place of the crow. If you do not know the date, then do this remedy on the day of Sarva Pitru Amavasya.

04. On Punya Tithi or Amavasya day, provide food or food material to a poor, needy person as per your capability. It is mandatory to give a bottle of water along with it. Donation, food etc. can also be given to a poor labourer or a beggar.

05. The 7th chapter of Shrimadbhagwat Geeta is completely related to the salvation of ancestors and their happiness. Those who cannot perform Shraadh etc. with complete rituals, should read the 7th chapter of Geeta for at least 16 days with determination.

What is the astrological remedy?

In your Lagna Kundali, Saturn or Rahu-Ketu creates Pitra Dosh according to the house. These three planets are the causative or representative planets of crow, dog, poor labourers and beggars. Hence, by doing these remedies in Pitra Paksha, Pitra Dosh is pacified. (Doshas are not removed) Here I would like to tell one important thing that often people think that if our parents are alive then why should we celebrate Pitra Paksha?? Whereas this is a misconception. The second misconception is that girls cannot perform Shradh. From my point of view, everyone can perform Shradh because it is a matter of our reverence for our ancestors.

Those whose parents are alive, should perform the above remedies related to Shradh for the ancestors of Dadihal side and Nanihal side. Unmarried girls should perform the above remedies for their father’s ancestors. Whereas married women can do it for the ancestors of both their father-in-law’s family and maternal side.

If seen from the astrological point of view, wheat roti is a factor of Sun, yellow dal, turmeric, curry is a factor of Jupiter, green vegetables are a factor of Mercury, sweets are a factor of Mars, kheer and curd are a factor of Venus, urad dal is a factor of Saturn, water is a factor of Moon. The good donation of all these gets you the blessings of all the Navgrahas as well. So all of you should adopt these simple remedies and make your life happy by getting the blessings of your ancestors.

– Astrologer Richa Shrivastava

अनन्त चतुर्दशी का व्रत और महात्म्य(Hindi & English)

अनन्त चतुर्दशी का व्रत और महात्म्य(Hindi & English)

हमारे देश में विशेष तौर पर उत्तर भारत में अनन्त चतुर्दशी का त्यौहार पूरी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह त्यौहार मूलतः भगवान श्रीहरि विष्णुजी को समर्पित है। इस दिन लोग सुख, सौभाग्य और स्वास्थ्य की रक्षा और जीवन में शान्ति के लिए भगवान अनन्त यानि श्रीहरि विष्णुजी का व्रत और पूजन करते हैं। इस दिन प्रातः काल के समय ही व्रत का संकल्प लिया जाता है। फिर इस पर्व का पूजन दोपहर में किया जाता है। इसमें भगवान श्री हरी विष्णुजी की पीले फूल, फल, मिठाई, पीले अक्षत, धूप-दीप और नैवेद्य द्वारा पंचोपचार पूजन करके, उनके समक्ष 14 ग्रंथि युक्त अनन्त सूत्र जो कि बाजार में पीले धागे या चांदी के रूप में मिलता है, वह रखा जाता है। फिर भगवान से सुख, समृद्धि और शान्ति की कामना की जाती है। लोग पूजन के बाद कथा का श्रवण करते हैं और अनन्त सूत्र को अपनी बाँह में बांधते हैं। फिर ब्राह्मणदेव को उत्तम दान-दक्षिणा देकर स्वयं बिना नमक का भोजन करते हैं।

01. कब मनाई जाती है अनन्त चतुर्दशी?

प्रत्येक वर्ष के भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनन्त चतुर्दशी मनाई जाती है। इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णुजी के अनन्त रूप की पूजा की जाती है।

02. क्यों मनाई जाती है अनन्त चतुर्दशी?

अग्नि पुराण में अनन्त चतुर्दशी व्रत के महत्व का वर्णन किया गया है। इसे भगवान श्रीहरि विष्णुजी के अनन्त अवतरण के रूप में भी देखा जाता है। सृष्टि के प्रारम्भ में जब ब्रह्माजी ने पृथ्वी सहित 14 लोकों की रचना की तब उन लोकों का पालन करने के लिए विष्णु भगवान ने 14 रूपों का विस्तार लिया था, जिसके कारण उनके आदि-अंत का ज्ञान नहीं हो पा रहा था और वह अनन्त रूप में दिख रहे थे। उस दिन भाद्रपद मास की चतुर्दशी तिथि थी। इसलिए इस दिन का नाम अनन्त चतुर्दशी पड़ा।

03. अनन्त चतुर्दशी पर्व की शुरुआत हुई कब से हुई?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महाभारत काल से अनन्त चतुर्दशी व्रत करने की शुरुआत हुई। ऐसा कहा जाता है कि जब पांडव जुए में अपना सर्वस्व हारकर जंगलो और वनों में भटक रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण उनसे मिलने आये। पांडवों की दुर्दशा देखकर भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें भगवान श्रीहरी विष्णुजी के अनन्त रूप की पूजा करने की सलाह दी। तब युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा कि अनन्त भगवान कौन हैं ? तब श्रीकृष्ण ने बताया कि यह भगवान श्रीहरि विष्णुजी के ही रूप हैं। चतुर्मास में भगवान श्रीहरि विष्णुजी शेषनाग की शैय्या पर अनन्त शयन में रहते हैं। अनन्त भगवान ने ही वामन अवतार में 2 पग में 3 लोक नाप लिए थे, जिनके ना आदि का पता चलता है और ना अंत का। यह सुनकर पांडवों ने सपरिवार पूरे विधि-विधान से व्रत पूजन किया। जिसके परिणाम स्वरूप वे लोग महाभारत युद्ध में विजय को प्राप्त हुए और उन्हें उनका राजपाट वापस मिला। इसलिए यह पर्व भगवान श्रीहरि विष्णुजी को प्रसन्न करने और अनन्त फल देने वाला माना गया है। इस दिन व्रत रखकर श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करने से अनन्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। सुख, सम्पदा, धन-धान्य, सन्तान आदि में वृद्धि होती है।

04. वर्ष 2024 में कब है अनन्त चतुर्दशी का व्रत?

वर्ष 2024 में अनन्त चतुर्दशी का व्रत शुभ दिन मंगलवार, दिनांक 17 सितंबर को है। तथा पूजन मुहूर्त प्रातः 06 बजकर 07 मिनट से दिन में 11:46 मिनट तक रहेगा।

05. क्या है अनन्त चतुर्दशी व्रत की कथा?

प्राचीन काल में सुमन्तु नामक ऋषि हुए थे जिनकी अत्यंत गुणवती शीला नाम की पुत्री थी जो की परम् श्रीहरि विष्णुजी की भक्त थी। उसका विवाह भी भगवान विष्णु भक्त कौण्डिन्य मुनि से हुआ। शीला सदैव भाद्र पद की चतुर्दशी को भगवान अनन्त नारायण का पूजन कर उनके 14 रूपों के प्रतीक के रूप में पीले रंग के धागे में 14 गांठें लगाकर अपने हाथ में पहन लेती थी। इससे उसके घर में सुख सौभाग्य की वृद्धि होने लगी और उनका जीवन सुखमय हो गया। एक बार क्रोधवश ऋषि कौण्डिन्य ने अपनी धर्मपत्नी शीला के हाथ का मंगलसूत्र तोड़कर फेंक दिया था। उस दिन के बाद से उनके घर में दुःख और दुर्भाग्य ने अपना डेरा डाल लिया। एक बार अत्यंत दुःख और विपन्नावस्था में ऋषि कौण्डिन्य वन में गए और भगवान श्रीहरि विष्णुजी की तपस्या करने लगे। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान प्रकट हुए और अनन्त चतुर्दशी की व्रत उपासना का महात्म्य समझाकर पूजन पुनः शुरू करने का आदेश दिया। घर लौटकर ऋषि कौण्डिन्य ने पत्नी शीला के साथ भली भांति पूजन किया, और खोये हुए सुख सौभाग्य की प्राप्ति की। अनन्त चतुर्दशी के दिन ही गणेश मूर्ति विसर्जन किया जाता है, इसलिए भी इस पर्व का महत्व और भी बढ़ जाता है।

– ज्योतिषाचार्य ऋचा श्रीवास्तव

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Anant Chaturdashi Vrat and Significance (Hindi & English)

In our country, especially in North India, the festival of Anant Chaturdashi is celebrated with full devotion. This festival is basically dedicated to Lord Shri Hari Vishnu. On this day, people observe fast and worship Lord Anant i.e. Shri Hari Vishnu for happiness, good fortune, protection of health and peace in life. On this day, the resolution of fasting is taken in the morning itself. Then the worship of this festival is done in the afternoon. In this, Panchopchar worship of Lord Shri Hari Vishnu is done with yellow flowers, fruits, sweets, yellow rice, incense sticks and offerings, and in front of him, the Anant Sutra with 14 knots, which is available in the market in the form of yellow thread or silver, is kept. Then the Lord is prayed for happiness, prosperity and peace. After the worship, people listen to the story and tie the Anant Sutra on their arm. Then after giving excellent donations to the Brahmin, they themselves eat food without salt.

01. When is Anant Chaturdashi celebrated?

Anant Chaturdashi is celebrated on the Chaturdashi date of Shukla Paksha of Bhadrapada month every year. On this day, the Anant form of Lord Shri Hari Vishnu is worshipped.

02. Why is Anant Chaturdashi celebrated?

The importance of Anant Chaturdashi fast has been described in Agni Purana. It is also seen as the infinite incarnation of Lord Shri Hari Vishnu. In the beginning of creation, when Brahmaji created 14 worlds including the earth, then Lord Vishnu took 14 forms to look after those worlds, due to which his beginning and end could not be known and he was seen in infinite form. That day was Chaturdashi Tithi of Bhadrapada month. Therefore, this day was named Anant Chaturdashi.

03. When did the Anant Chaturdashi festival begin?

According to mythological beliefs, the Anant Chaturdashi fast started from the Mahabharata period. It is said that when the Pandavas were wandering in the jungles and forests after losing everything in gambling, Lord Krishna came to meet them. Seeing the plight of the Pandavas, Lord Krishna advised them to worship the Anant form of Lord Vishnu. Then Yudhishthira asked Lord Krishna who is Anant Bhagwan? Then Lord Krishna told that this is the form of Lord Vishnu. In Chaturmas, Lord Vishnu rests in Anant Shayyan on the bed of Sheshnag. Anant Bhagwan had measured 3 worlds in 2 steps in the Vamana avatar, whose beginning and end are not known. Hearing this, the Pandavas along with their families performed the fast and worship with full rituals. As a result, they won the Mahabharata war and got their kingdom back. Therefore, this festival is considered to please Lord Vishnu and give infinite fruits. By fasting on this day and reciting Shri Vishnu Sahasranama Stotra, infinite desires are fulfilled. There is an increase in happiness, wealth, money, children etc.

04. When is Anant Chaturdashi fast in the year 2024?

In the year 2024, the auspicious day for Anant Chaturdashi fast is Tuesday, 17 September. And the puja muhurta will be from 06:07 am to 11:46 pm.

05. What is the story of Anant Chaturdashi Vrat?

In ancient times, there was a sage named Sumantu who had a very talented daughter named Sheela who was a devotee of Param Shri Hari Vishnu. She was also married to Lord Vishnu devotee Koundinya Muni. Sheela always worshipped Lord Anant Narayan on the Chaturdashi of Bhadrapad and used to wear a yellow thread with 14 knots as a symbol of his 14 forms on her hand. Due to this, happiness and good fortune started increasing in her house and their life became happy. Once, in anger, Sage Koundinya broke the mangalsutra from the hand of his wife Sheela and threw it away. From that day onwards, sorrow and misfortune camped in their house. Once in great sorrow and misery, Sage Koundinya went to the forest and started doing penance of Lord Shri Hari Vishnu. Pleased with his penance, God appeared and explained the significance of fasting and worship on Anant Chaturdashi and ordered him to restart the worship. Returning home, Sage Kaundinya performed the worship properly with his wife Sheela, and regained the lost happiness and good fortune. Ganesh idol is immersed on the day of Anant Chaturdashi, hence the importance of this festival increases even more.

– Astrologer Richa Srivastava

क्या होते हैं स्मार्त और वैष्णव?(Hindi & English)

आइए जानते हैं क्या होते हैं स्मार्त और वैष्णव??(Hindi & English)

प्रायः आप लोगों ने पंचांग, कैलेंडरों आदि में किसी पर्व(त्योहार) के व्रत, पूजन, आदि के सम्बंध में दो तिथियां देखी होंगी। एक वैष्णव लोगों के लिए, दूसरी तिथि स्मार्त लोगों के लिए। तो आइए, जानते हैं, कौन हैं ये वैष्णव और स्मार्त ?

स्मार्त

वेद, पुराण, श्रुति- स्मृति, को मानने वाले चारों वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र), गायत्री और पंच देवों, देवियों, देवताओं को मानने वाले ये सभी आस्तिक लोग स्मार्त कहलाते हैं। साधारण शब्दो मे कहा जाए तो आम सनातनी हिन्दू जनता जो अपनी गृहस्थी में रहते हुए ही अपने धर्म का पालन करती जो। इन लोगों को स्मार्तीय तिथियों में ही व्रत, उपवास, दान, यम, नियम करना चाहिए।

वैष्णव

वे धर्मपरायण लोग, जिन्होंने किसी प्रतिष्ठित वैष्णव सम्प्रदाय के गुरु से दीक्षा ग्रहण की हो, गले में श्री गुरुदेव द्वारा दी गई कंठी धारण की हो, तथा मस्तक एवं गले पर श्रीखंड चंदन या गोपी चंदन के तिलक, त्रिपुंड आदि के चिन्ह धारण करते हों, बिना लहसुन प्याज़ के शुद्ध शाकाहारी भोजन करते हों, ऐसे भक्त जन वैष्णव कहलाते हैं।

वैष्णव जन के पर्व त्योहार की तिथि, स्मार्त जन के एक दिन बाद पड़ती है।

हमारे ग्रंथो में तिथि, मुहूर्त अनुसार ही व्रत, पूजन, उपवास, दान आदि का महत्व है। अतः दी गयी स्मार्त और वैष्णव तिथि अनुसार ही उपवास त्योंहार आदि करें तभी सुफल प्राप्त होगा।

– ज्योतिषाचार्य ऋचा श्रीवास्तव

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Let’s know what are Smarta and Vaishnava?(Hindi & English)

Usually you must have seen two dates in Panchang, calendars etc. related to fasting, worship etc. of any festival. One date is for Vaishnava people, the other date is for Smarta people. So let’s know, who are these Vaishnava and Smarta?

Smarta

All the four Varnas (Brahmin, Kshatriya, Vaishya, Shudra) who believe in Vedas, Puranas, Shruti-Smriti, all the believers who believe in Gayatri and Panch Devas, Goddesses, Gods are called Smarta. In simple words, the common Sanatani Hindu people who follow their religion while living in their household. These people should observe fasts, upvaas, daan, yama, niyam only on Smarta dates.

Vaishnav

Those religious people who have taken initiation from a Guru of a reputed Vaishnav Sect, wear the Kanthi given by Shri Gurudev around their neck, and wear the marks of Tilak, Tripund etc. of Shrikhand Chandan or Gopi Chandan on their forehead and neck, eat pure vegetarian food without garlic and onion, such devotees are called Vaishnavs.

The date of festivals of Vaishnav people falls one day after Smart people.

In our scriptures, fasting, worship, fasting, donation etc. are important according to the date and auspicious time. Therefore, observe fasts, festivals etc. according to the given Smart and Vaishnav dates. Only then will you get good results.

– Astrologer Richa Shrivastava