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गुरुतत्व और गुरु शरीर में क्या अंतर होता है?(Hindi & English)

गुरुतत्व और गुरु शरीर में क्या अंतर होता है?(Hindi & English)

 

01. गुरुतत्व का मूल अर्थ क्या है?
02. गुरु शरीर के माध्यम से गुरुतत्व की कृपा कैसे प्राप्त करें?
03. घर पर रहकर ही गुरुतत्व से कैसे जुडें?
04. गुरुतत्व से जुड़कर मन्त्र दीक्षा कैसे प्राप्त करें?
05. गुरु का शरीर समाधि धारण कर लें तो आगे शिष्य का क्या धर्म है?

01. गुरुतत्व का मूल अर्थ क्या है?

इस सम्पूर्ण सृष्टि में जो ईश्वरीय तत्व व्याप्त है जब वही परम तत्व हमें किसी शरीर, भावना, घटना, स्मृति या शरीर के माध्यम से हमें कुछ भी सिखाने का प्रयास करता है तो वहां पर गुरुतत्व का ही भाव किया जाता है। अर्थात आप जो कुछ भी सीख रहें हैं उसको सिखाना वाला गुरु का शरीर कहलायेगा और जो उस शरीर के माध्यम से आपको ज्ञान दे रहा है वह गुरुतत्व कहलायेगा।

02. गुरु शरीर के माध्यम से गुरुतत्व की कृपा कैसे प्राप्त करें?

एक सामान्य जातक के लिए ज्ञान के अभाव में केवल गुरु का शरीर ही सबकुछ होता है। लेकिन जब गुरुतत्व की कृपा से साधक इस ब्रह्म ज्ञान से एकाकार हो जाता हैं कि शरीर तो केवल एक माध्यम है ईश्वर के ही दूसरे रूप अर्थात गुरुतत्व से जुड़ने का। आगे बढ़ते हुए जातक को सदैव यही स्मरण रखना चाहिए कि गुरुतत्व ही मुझे सम्मुख गुरु शरीर के माध्यम से माया रुपी अज्ञानता से बाहर लाने का प्रयास कर रहें हैं। इसलिए जातक को गुरु शरीर के माध्यम से जो भी सन्देश चाहे वह मंत्र के रूप में, डांट के रूप में, प्रसाद के रूप में, प्रवचनों के रूप में, या उर्जा रूप में प्राप्त हो उसे ईश्वरीय प्रसाद मानते हुए सदैव धारण करे ही रहना चाहिए। इसी आधार पर कोई भी साधक गुरु शरीर के माध्यम से परमब्रह्म गुरुतत्व से जुड़ा रहेगा।

03. घर पर रहकर ही गुरुतत्व से कैसे जुडें?

यहाँ गुरुतत्व से जुड़ना अर्थात सीधे अर्थों में गुरु धारण करना रहेगा। इसके लिए मैं आपको अपनी साधना के अनुभव आधार पर कुछ सरल विधि बताता हूँ। आप श्रीमद्भागवत गीताजी को लेकर आइये। गीताजी को प्रणाम कीजिये, उन्हें आसन दीजिये और ईश्वर रुपी गुरु तत्व का आह्वाहन करते हुए मानसिक रूप से प्रार्थना कीजिये कि हे परम तत्व मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि श्री गीताजी शास्त्र के माध्यम से आप मुझे साधक के रूप में स्वीकार कीजिये और श्री गीताजी के वचनों के माध्यम से मेरा मार्गदर्शन कीजिये। श्री गीताजी में 18 अध्याय हैं, अगर जातक नित्य एक अध्याय को पढ़ते हुए अपने दिन की शुरुआत करेगा तो धीरे-धीरे अपने गुरुतत्व की कृपा से साधक चेतना के स्तर आधार पर ऊँचा उठाना प्रारम्भ कर देगा। मात्र ऐसा करते रहने से ही जातक उतम ब्रह्मविद्या के मूल बीज को अपने अनाहत में स्थायी रूप से ग्रहण कर लेगा।

04. गुरु तत्व से जुड़कर मन्त्र दीक्षा कैसे प्राप्त करें?

जब एक साधक अपने गुरुतत्व से जुड़ना सीख जाता है तो उसके लिए गुरुतत्व से आने वाली प्रत्येक क्रिया ही उसके लिए एक मंत्र की भांति ही मूल्यवान बनी रहती है, अर्थात जो कुछ भी गुरुतत्व की क्रिया सम्मुख आती है तो जातक उसी क्रिया को मंत्र रुपी दीक्षा मानकर ग्रहण कर लेता है। उदाहरण समझिये की साधक सम्मुख गुरु शरीर में जब गुरु तत्व से जुड़ जाता है तो जो कुछ भी गुरु मुख से निकलेगा साधक उसे ही मंत्र रूप मानकर ग्रहण कर लेगा तथा उस आदेश या वचन रुपी मंत्री की पालना ही उसके लिए दीक्षा होगी। अर्थात यहाँ गुरुतत्व वचनों की पालना ही मंत्र दीक्षा कहलाएगी।

05. गुरु का शरीर समाधि धारण करलें तो आगे शिष्य का क्या धर्म है?

जब जातक अपने गुरुतत्व से जुड़ जाता है तो गुरु शरीर द्वारा दिखाए गए प्रकाश मार्ग पर ही अग्रसर बना रहता है। अर्थात अब ईश्वर इच्छा से गुरु का शरीर समाधि की अवस्था धारण कर लें तो अब साधक के लिए गुरुतत्व की कृपा से गुरु शरीर की नवीन अवस्था ही गुरु शरीर रहेगी, अर्थात अब गुरुतत्व गुरु शरीर से नहीं अपितु समाधि की अवस्था ही गुरु शरीर की स्मृति रूप में विद्यमान रहेगी। साधक जब अपने गुरुतत्व से जुड़ जाता है तो वह अपने गुरु से सदा के लिए एकाकार ही हो जाता है। गुरुतत्व ही परमतत्व का गुरुरूप है और तत्व सदैव विद्यमान रहता है।

Guru SatyaRam
Guru SatyaRam

-Guru SatyaRam

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What is the difference between Guru Element and Guru body?(Hindi & English)

01. What is the basic meaning of Guru Element(Guru Tattva)?

02. How to receive the grace of Guru Tattva through Guru body?

03. How to connect with Guru Tattva while staying at home?

04. How to attain Mantra initiation by connecting with Gurutattva?

05. If the Guru’s body attains Samadhi then what is the future religion of the disciple?

01. What is the basic meaning of Guru Element?

When the same supreme element which is prevalent in this entire creation tries to teach us anything through any body, emotion, event, memory or body, then the sense of gurutattva is expressed there. That is, whatever you are learning will be called the body of the Guru who is teaching you and the one who is giving you knowledge through that body will be called Gurutattva.

02. How to receive the grace of Guru Tattva through Guru body?

For an ordinary person, in the absence of knowledge, only the body of the Guru is everything. But when by the grace of Gurutattva, the seeker becomes united with this Brahma knowledge that the body is only a medium to connect with the other form of God i.e. Gurutattva. While moving forward, the person should always remember that Guru Tattva itself is trying to bring him out of the ignorance in the form of Maya through the Guru body in front of him. Therefore, whatever message the person receives through the Guru’s body in the form of mantra, in the form of scolding, in the form of prasad, in the form of discourses, or in the form of energy, he should always keep it as a divine offering, considering it as divine prasad. On this basis, any seeker will remain connected to the Supreme Brahman Guru Tattva through the Guru’s body.

03. How to connect with Guru Tattva while staying at home?

Here, connecting with Guru Tattva means adopting a Guru in the literal sense. For this, I will tell you some simple methods based on my experience of meditation. You bring Shrimad Bhagwat Geetaji. Salute Geetaji, give her seat and invoking the God-like Guru Tattva, mentally pray that O Supreme Tattva, I request you to accept me as a seeker through Shri Geetaji Shastra and receive the blessings of Shri Geetaji. Guide me through your words. There are 18 chapters in Shri Geetaji, if the person starts his day by reading one chapter daily, then gradually with the grace of his Guru Tatva, the seeker will start raising the level of consciousness.Only by doing this the person will permanently imbibe the basic seed of Uttam Brahmavidya in his Anahata.

04. How to get Mantra initiation by connecting with Guru element?

When a seeker learns to connect with his Guru Tattva, then for him every action coming from Guru Tattva remains valuable for him like a mantra, that is, whatever action of Guru Tattva comes in front of him, the person considers that action as initiation in the form of a mantra. Takes it for granted.For example, understand that when the seeker gets connected to the Guru element in his body in front of the Guru, then whatever comes out of the Guru’s mouth, the seeker will accept it as a mantra and following that order or word of the minister will be initiation for him. That is, here the observance of Gurutattva words will be called Mantra Diksha.

05. If the Guru’s body attains Samadhi then what is the future religion of the disciple?

When the person connects with his Guru Tattva, he continues to move forward on the path of light shown by the Guru body.That is, now if by God’s will the Guru’s body attains the state of Samadhi, then for the seeker, by the grace of the Guru Tattva, the new state of the Guru’s body will remain the Guru’s body, that is, now the Guru Tattva is not from the Guru’s body but the state of Samadhi itself is in the form of memory of the Guru’s body. Will exist in. When a seeker connects with his guru, he becomes one with his guru forever. Guru Tattva is the Guru form of Paramatattva and that Tattva always exists.

Guru SatyaRam
Guru SatyaRam

– Guru SatyaRam