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ऐसा करेंगे तो केतू ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

ऐसा करेंगे तो केतू ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

भारतीय वैदिक सनातन ज्योतिष में केतुग्रह को एक अशुभ ग्रह माना जाता है। लेकिन ऐसा भी कहना सही नहीं है कि केतुदेव के द्वारा जातक को हमेशा ही बुरे फल प्राप्त होते हैं। केतुग्रह के द्वारा जातक को अत्यधिक शुभ फल भी प्राप्त होते हैं। यह एकमात्र ग्रह आध्यात्म मार्ग, वैराग्य प्रणाली, मोक्ष निष्ठा, सात्विक तांत्रिक क्रियाओं आदि का कारक होता है। ज्योतिष विद्या में केतुग्रह को किसी भी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है। लेकिन धनु(9) राशि केतुदेव की उच्च राशि होती है, जबकि मिथनु(3) राशि में यह ग्रह नीच भाव को प्राप्त होता है। वहीं 27 नक्षत्रों में केतुग्रह अश्विनी नक्षत्र, मघा नक्षत्र और मूल नक्षत्र के स्वामी होते हैं। राहुग्रह की भांति यह भी एक छाया ग्रह है। वैदिक शास्त्रों के अनुसार केतुग्रह स्वरभानु राक्षस का धड़ है। जबकि इसके सिर वाले भाग को राहु कहा जाता है।

सनातन ज्योतिष विद्या के अनुसार केतुग्रह व्यक्ति के जीवन क्षेत्र तथा समस्त सृष्टि को भी प्रभावित करता है। राहुदेव और केतुदेव दोनों लग्न जन्म कुण्डली में कालसर्प नामक दोष का निर्माण करते हैं। वहीं आकाश मंडल में केतुदेव का प्रभाव वायव्य कोण नामक दिशा में माना गया है। कुछ अनुभवी ज्योतिष विद्वानों का ऐसा मानना है कि केतुग्रह की कुछ विशेष परिस्थितियों के कारण जातक अपने जीवन में यश के शिखर तक अवश्य पहुँच सकता है। राहुदेव और केतुदेव के कारण सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण होता है।

जैसा की स्पष्ट है कि जब केतुग्रह की कोई निश्चित राशि नहीं होती इसलिए केतुग्रह जिस भी राशि में बैठता है वह उसी के अनुरूप फल देता है। इसलिए केतुग्रह का प्रथम भाव अथवा लग्न में फल को वहाँ स्थित राशि पूर्णतः प्रभावित करती है। कुछ ज्योतिष विद्वानों का ऐसा भी मानना है कि कुंडली में प्रथम भाव का केतुग्रह जातक को साधू बना देता है। यह जातकों को कलयुग के समस्त भौतिक सुखों से बहुत दूर ले जाता है। इसके विषम प्रभाव से जातक केवल अकेले रहना ही पसंद करता है। वहीं दूसरी तरफ यदि लग्न(प्रथम) भाव में वृश्चिक(8) राशि हो तो जातक को इसके सम और सकारात्मक प्रभाव एवम परिणाम भी देखने को मिलते हैं।

केतुग्रह के अत्यधिक पीड़ित होने से जातक को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जातक के सामने अचानक कोई न कोई बाधा अवश्य आ ही जाती है। जातक किसी भी कार्य के लिए जो निर्णय लेता है तो उसमें उसे अपने स्वयं के निर्णयों के प्रति ही असफलता का सामना करना पड़ता है। केतुग्रह के कमज़ोर होने पर जातकों के पैरों में कमज़ोरी अवश्य आती है। पीड़ित केतुग्रह के कारण जातक को अपने नाना और मामा का प्यार नहीं मिल पाता है अर्थात, या तो मनमुटाव हो जाते हैं या शारीरिक दूरियां बढ़ जाती हैं। आइए अब जानते हैं वह 07 गलतियां जो आपके केतुग्रह को हमेशा के लिए खराब कर देंगी।

07 गलतियां जो आपके केतू ग्रह को हमेशा के लिए खराब कर देंगी

01. बहुत लंबे समय तक व्यर्थ में किसी भी व्यक्ति को लेकर उनके पीठ पीछे उनकी बुराई करते रहना।

02. आचार, खट्टी – मीठी नमकीन या किसी भी तरह के खट्टे खाद्य पदार्थों को उपहार रूप में भेंट करना।

03. बहुत लंबे समय तक छाती के बल रात्रि शयन करना या रात्रि शयन से पूर्व व्यर्थ में विलाप करना।

04. घर में या घर से बाहर कुत्तों को कष्ट देना। घर के पालतू कुत्ते का स्थान घर की छत पर बना देना।

05. उत्तम गुरु के मार्गदर्शन के अभाव में अपनी इच्छा से किसी भी मंत्र को जपना शुरू कर देना, हवन करना या नवग्रहों के उपाय करना।

06. गुरु मार्गदर्शन के अभाव में या बगैर ग्रहों की जांच करवाए निः संतान व्यक्ति की जमीन खरीदना, मकान खरीदना या किसी भी प्रकार की प्रॉपर्टी का लेन देन करना।

07. बहुत लंबे समय तक घर की खाट को उल्टा खड़ा करना। गौमाता को झूठा, बासी, बचा हुआ या उतारे की सामग्री खिलाते रहना।

-गुरु सत्यराम

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If you do this, Ketu Graha can be bad for life (Hindi & English)

In Indian Vedic Sanatan Astrology, Ketu Graha is considered an inauspicious planet. But it is not right to say that the native always gets bad results from Ketu Dev. The native also gets extremely auspicious results from Ketu Graha. This is the only planet that is a factor of spiritual path, asceticism system, Moksha devotion, Satvik Tantric activities etc. In astrology, Ketu Graha does not have ownership of any zodiac sign. But Sagittarius (9) is the high zodiac sign of Ketu Dev, while this planet gets the low house in Gemini (3) zodiac. At the same time, among the 27 constellations, Ketu Graha is the lord of Ashwini constellation, Magha constellation and Mool constellation. Like Rahu Graha, it is also a shadow planet. According to Vedic scriptures, Ketu Graha is the torso of Swarbhanu demon. While its head part is called Rahu.

According to Sanatan Jyotish Vidya, Ketu Graha affects the life sphere of a person and the entire universe. Both Rahu and Ketu create a defect called Kalsarp in the Lagna Janam Kundali. Whereas in the sky, the effect of Ketu is considered to be in the direction called Vayavya Kon. Some experienced astrology scholars believe that due to some special circumstances of Ketu Graha, the native can definitely reach the peak of fame in his life. Solar eclipse and lunar eclipse occur due to Rahu and Ketu.

As it is clear that when Ketu Graha does not have any fixed zodiac sign, so whatever zodiac Ketu Graha sits in, it gives results according to that. Therefore, the results of Ketu Graha in the first house or Lagna are completely affected by the zodiac sign present there. Some astrology scholars also believe that Ketu Graha in the first house in the horoscope makes the native a sadhu. It takes the natives far away from all the material pleasures of Kaliyug. Due to its adverse effect, the native only likes to stay alone. On the other hand, if Scorpio (8) is in the Lagna (1st) Bhav, then the native gets to see its equal and positive effects and results.

Due to the extreme affliction of Ketu Graha, the native has to face many types of problems. Suddenly some obstacle definitely comes in front of the native. Whatever decision the native takes for any work, he has to face failure in his own decisions. When Ketu Graha is weak, the native definitely gets weakness in his legs. Due to the afflicted Ketu Graha, the native does not get the love of his maternal grandfather and maternal uncle, that is, either there are differences or physical distances increase. Let us now know those 07 mistakes which will spoil your Ketu Graha forever.

07 Mistakes which will spoil your Ketu Graha forever

01. Talking ill about any person behind their back for a very long time in vain.

02. Presenting pickles, sweet-sour namkeen or any sour food items as gifts.

03. Sleeping on the chest for a very long time at night or lamenting in vain before going to sleep at night.

04. Hurting dogs inside or outside the house. Make the place of the pet dog on the roof of the house.

05. In the absence of the guidance of a good Guru, starting to chant any mantra of your own will, performing havan or doing remedies for the nine planets.

06. Buying land, buying a house or any kind of property transaction of a childless person in the absence of Guru’s guidance or without getting the planets checked.

07. Standing the cot of the house upside down for a very long time. Feeding leftover, stale, leftover or udara material to the cow.

-Guru Satyaram

ऐसा करेंगे तो राहु ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

ऐसा करेंगे तो राहु ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

वैदिक सनातन ज्योतिष में राहुग्रह को एक पापी ग्रह जाना जाता है। वैदिक ज्योतिष में राहुग्रह को कारक के आधार पर अत्यंत कठोर वाणी, सट्टा/जुआ, निरर्थक यात्राएँ, चोरी की दुषभावना, पापकर्म/दुष्टकर्म, गंभीर त्वचा के रोग, लंबी धार्मिक यात्राएँ आदि का सीधा कारक समझा जाता है। जिस भी जातक की लग्न कुंडली में राहुग्रह अशुभ स्थान पर बैठे हुए हों, या किसी भी अवस्था में पीड़ित हो गए हों तो जातक को इस कारण से अपने पूर्ण जीवन में राहुग्रह के नकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं। ज्योतिष विद्या के अनुसार राहुग्रह को किसी भी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है। लेकिन गोचर और लग्न कुंडली में मिथुन राशि(3) में यह उच्च प्रभावी हो जाता है और धनु राशि(9) में यह नीच प्रभावी हो जाता है।

27 नक्षत्रों में राहुदेव आद्रा नक्षत्र, स्वाति नक्षत्र और शतभिषा नक्षत्रों के स्वामी जाने जाते हैं। ज्योतिष विद्या के अनुसार राहुग्रह को एक छाया ग्रह कहा जाता है क्योंकि यह एक छलावा है। ऐसा इसलिए क्योंकि जब सूर्यदेव और पृथ्वी के बीच जब चंद्रदेव आ जाते हैं और चंद्रदेव का मुख सूर्यदेवकी तरफ होता है तो पृथ्वी पर पड़ने वाली चंद्रमा की छाया राहुग्रह का प्रतिनिधित्व करती है। अर्थात चंद्रमा के कारण ही राहुग्रह को अस्तित्व प्राप्त है लेकिन केवल छाया के रूप में।

वैदिक ज्योतिष के अनुसार जिस भी जातक की लग्न जन्म कुंडली में प्रथम(लग्न) भाव में राहु बैठा होता है तो प्रभाव अनुसार वह जातक सुंदर छवि और आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी होता है। ऐसा जातक कभी भी साहसिक कार्यों से पीछे नहीं हटता है लेकिन कभी कभार अत्यंत डरपोक भी बन जाता है। अगर सामने मजबूत लग्न और लग्न में ही तकतवार मंगल बैठा हुआ हो तो फिर राहु वाला जातक उससे भय भी रखता है। लग्न का राहु व्यक्ति को समाज में प्रभावशाली तो बनाता है लेकिन, सीधे मार्गों से धन कम ही दिलवाता है। हालाँकि इसके प्रभाव बहुत हद तक लग्न में स्थित राशि पर भी निर्भर करते हैं। हालाँकि ज्योतिष परंपरा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि लग्न का राहु व्यक्ति के वैवाहिक जीवन के लिए बिलकुल भी अच्छा नहीं होता है क्योंकि उसकी सीधी दृष्टि सीधे तौर पर सातवें भाव को प्रभावित करती रहती है।

किसी भी जातक की जन्म कुंडली अगर राहुग्रह के द्वारा पीड़ित बनी हुई हो तो जातक को इसके भयंकर नकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं। यह ग्रह जातक के अंदर बुरी एवम पापी भावनाओं और आदतों को पैदा करता है। पापी राहुग्रह के प्रभाव से जातक केवल अपने बारे में ही सोचता है, वह किसी का भी सगा नही होता और सभी के साथ छल, कपट और धोखा करता है और स्वयं को भगवान समझने लग जाता है। ऐसा जातक बेशर्म होकर सभी से पैसे और वस्तुएं मांगता है और धन वापिस करने के समय सभी को केवल परेशानी ही वापिस करता है।

ऐसा व्यक्ति मांस, शराब तथा अन्य मादक पदार्थों का भी सेवन करता है और चरित्रहीन होकर घर से बाहर कई अवैध संबंध भी रखता है। राहुग्रह द्वारा पीड़ित जातक अपनी संगत में आने वाले सभी मित्रजनों को भी अधर्मी बनाने का प्रयास करता रहता है। लेकिन जब कोई सच्चा जातक ऐसे अधर्मी के द्वारा पीड़ित होकर अपने इष्ट के सम्मुख जाकर रो देता है तो फिर इस राहु वाले जातक को अपने पूर्ण जीवन में केवल दरिद्रता ही भोगनी पड़ती है। आइए अब जानते हैं वह 07 गलतियां जो आपके राहु ग्रह को हमेशा के लिए खराब कर देंगी।

07 गलतियां जो आपके राहु ग्रह को हमेशा के लिए खराब कर देंगी।

01. समाज में मौजूद अति गरीब वर्ग के अधिकारों को अपने अहंकार के कदमों तले दबाते रहना। इसमें भी मुख्य विषय रोटी, कपड़ा, मकान ही है।

02. सामर्थ्य होने के बाद भी हमेशा उधार में सभी सामान लेते रहना तथा झूठ का सहारा लेते हुए गरीब मजदूर वर्ग के पैसों को दबाए रखना।

03. हमेशा भोजन जल्दबाजी में ही ग्रहण करते रहना। बहुत अधिक गर्म भोजन को पानी के सहारे से निगलकर ही खाते रहना।

04. बहुत ही छोटी उम्र में अपनी पुत्री का विवाह कर देना तथा केवल व्यर्थ में बोझ मानते हुए बगैर जांच पड़ताल करे पुत्री का विवाह कर देना।

05. केवल आनंद के लिए गर्भपात करवाना। अपनी सामर्थ्य होने के पश्चात भी अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु ससुराल पक्ष में ही रहना या उन पर निर्भर बने रहना।

06. आवश्यकता से अधिक मात्रा में या अधिक लंबे समय तक नींद आने के लिए, सिरदर्द के लिए, पीठ दर्द के लिए, सर्दगर्म के लिए या किसी भी तरह की पेन किलर दवाइयों का सेवन करते रहना।

07. नित्य सूर्य अस्त के पश्चात घर में बहुत अधिक धुआं करना घर की रसोई में अधिक मात्रा में तले हुए भोजन को पकाना।

-गुरु सत्यराम

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If you do this, Rahu can be bad for your whole life (Hindi & English)

In Vedic Sanatan Jyotish, Rahu is known as a sinful planet. In Vedic astrology, Rahu is considered to be a direct factor of harsh speech, speculation/gambling, useless travels, ill intentions of theft, sinful acts/evil deeds, serious skin diseases, long religious journeys etc. on the basis of factors. In the Lagna Kundli of any person, Rahu is sitting in an inauspicious place, or is afflicted in any condition, then due to this reason, the person gets negative results of Rahu in his entire life. According to Jyotish Vidya, Rahu does not have ownership of any zodiac sign. But in the transit and Lagna Kundli, it becomes highly influential in Gemini (3) and lowly influential in Sagittarius (9).

Out of the 27 nakshatras, Rahu is known to be the lord of Adra, Swati and Shatabhisha nakshatras. According to astrology, Rahu is called a shadow planet because it is an illusion. This is because when Chandradev comes between the Sun and the Earth and Chandradev faces the Sun, then the shadow of the Moon falling on the Earth represents Rahu. That is, Rahu exists because of the Moon but only in the form of a shadow.

According to Vedic astrology, the native whose Lagna (ascendant) horoscope has Rahu in the first (ascendant) house, then according to the effect, that native has a beautiful image and an attractive personality. Such a native never backs away from adventurous activities but sometimes becomes very timid. If there is a strong Lagna in front and the powerful Mars is sitting in the Lagna itself, then the native with Rahu is also afraid of it. Rahu in the Ascendant makes a person influential in the society but, it rarely brings wealth through direct means. However, its effects depend to a great extent on the zodiac sign in the Ascendant. However, according to the astrological tradition, it is believed that Rahu in the Ascendant is not good at all for the married life of a person because its direct sight directly affects the seventh house.

If the birth chart of any native is afflicted by Rahu, then the native gets terrible negative results. This planet creates bad and sinful feelings and habits in the native. Due to the influence of sinful Rahu, the native thinks only about himself, he is not related to anyone and cheats, deceives and deceives everyone and starts considering himself as God. Such a native shamelessly asks for money and goods from everyone and at the time of returning the money, he returns only troubles to everyone.

Such a person also consumes meat, alcohol and other intoxicants and being characterless, also has many illegal relationships outside the house. A person suffering from Rahu keeps trying to make all his friends unrighteous. But when a true person gets afflicted by such unrighteous and cries in front of his deity, then this person with Rahu has to suffer only poverty in his entire life. Now let us know those 07 mistakes which will spoil your Rahu planet forever.

07 mistakes which will spoil your Rahu planet forever.

01. Keep suppressing the rights of the very poor class in the society under the feet of your ego. The main topic in this is also roti, kapda, makaan.

02. Always taking all the things on credit despite having the capability and suppressing the money of the poor working class by taking the help of lies.

03. Always eating food in a hurry. Keep eating very hot food by swallowing it with the help of water.

04. Marrying your daughter at a very young age and marrying her off without any investigation, considering it a burden.

05. Getting an abortion done just for pleasure. Living with the in-laws or being dependent on them for fulfilling your daily needs even when you are capable.

06. Consuming medicines in excess or for a longer duration than required for sleep, headache, backache, cold and any kind of painkiller.

07. Making a lot of smoke in the house after sunset every day and cooking fried food in large quantities in the kitchen.

-Guru Satyaram

ऐसा करेंगे तो शनि ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

ऐसा करेंगे तो शनि ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

न्याय के स्वामी कहे जाने वाले शनिदेव जातक की लग्न कुंडली में मौजूद बारह भावों पर बहुत ही सटीक लेकिन काफी धीमा प्रभाव डालते हैं। शनिदेव कुंडली में जहां बैठते हैं और जहां पर अपनी सीधी दृष्टि डालते हैं उसका बहुत ही सटीक प्रभाव हमारे प्रत्यक्ष जीवन पर अवश्य पड़ता है। वैदिक ज्योतिष में शनि ग्रह को एक क्रूर ग्रह के तौर पर देखा जाता है। यदि जातक की लग्न कुंडली में शनि ग्रह की स्तिथि मजबूत होती है तो जातक को इसके काफी अच्छे और सुखद प्रभाव स्थिरता के साथ में देखने को मिलते हैं। और दूसरी तरफ अगर का जातक की लग्न कुंडली में शनिदेव थोड़े भी टेढ़े होकर बैठ जायेंगे तो जातक अपनी पूर्ण जिंदगी में संघर्ष भी देखता है तथा भाग्य भी उसका साथ नहीं देता है। इसलिए हर प्रकार से शनिदेव का विराजना और दृष्टि सभी जातकों के जीवन पर अपना गहरा प्रभाव बनाकर रखती है।

सनातन वैदिक ज्योतिष में शनि ग्रह का बहुत ही बड़ा महत्व है। ज्योतिष विद्या में शनि ग्रह को लंबी आयु, स्थाई दुःख, लंबी चलने वाली बीमारियां, मानसिक पीड़ाएं, सूक्ष्म विज्ञान, तकनीकी मस्तिष्क, लोहा धातु, कच्चा खनिज तेल, हर प्रकार के कर्मचारी, हर प्रकार की सेवा देने वाले सेवक, जेल यात्रा आदि का स्थाई कारक माना जाता है। शनिदेव को मकर राशि(10) और कुंभ राशि(11) का स्वामित्व प्राप्त है। शुक्रदेव की तुला राशि(7) शनिदेव की उच्च राशि है तथा मंगलदेव की मेष राशि(1) में जाते ही यह नीच प्रभावी हो जाते हैं। क्योंकि शनिदेव की चाल सभी ग्रहों में सर्वाधिक धीमी है इसलिए शनि ग्रह का गोचर किसी भी राशि में ढ़ाई वर्ष तक बना रहता है। ज्योतिष विद्या में शनिदेव की ढाई वर्ष की ढैया और साढ़े सात वर्ष की साढ़ेसाती बहुत चर्चित है। शनिदेव की टेढ़ी दृष्टि और ढैया एवम साढ़ेसाती का भय अधिकांश जातकों में अक्सर देखा जाता है। जबकि ज्ञान आधार पर शनिदेव सर्वाधिक कल्याण करने वाले ग्रह हैं। वह तो बस का कर्मों का सीधा फल प्रदान करते हैं।

नक्षत्रों में शनिदेव पुष्य नक्षत्र, अनुराधा नक्षत्र और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के स्वामी होते हैं। शनिदेव जब भी साढ़ेसाती के रूप में किसी जातक के जीवन में प्रवेश करते हैं तो आने वाली तिथि से 06 माह पूर्व ही अपना प्रभाव दिखाना प्रारंभ कर देते हैं। तथा जाने वाली तिथि के 06 माह पश्चात ही अपना पूर्ण प्रभाव उस स्थान से छोड़ते हैं। शनिदेव को समझना हैं और उनकी कृपा का रसपान करते रहना है तो केवल अपने कर्मों पर ध्यान देना शुरू कर दो। जहां तुम्हारें अंदर अहंकार ने बीजारोपण किया तो तुरंत ही शनिदेव की न्याय प्रक्रिया तुम पर लागू होनी शुरू हो जाएगी। यह बात अच्छे से समझ लीजिए कि शनिदेव केवल कर्मों का फल प्रदान करने वाले ग्रह हैं। अर्थात जैसे कर्मों का जमावड़ा रहेगा वैसे फलों का आना भी अटल है। आइए अब जानते हैं कि वो कौन सी गलतियां हैं जिसके कारण आपके शनि ग्रह हमेशा के लिए खराब भी हो सकते हैं।

7 गलतियां जो आपके शनि ग्रह को हमेशा के लिए खराब कर देंगी

01. शयन करने वाले कमरे में और सोने वाले बिस्तर पर बैठकर बहुत लंबे समय तक अन्न ग्रहण करते रहना।

02. अगर विवाह अग्नि को साक्षी मानकर किया गया है और इसको ध्यान में रखते हुए परस्त्री से संबंध रखना।

03. बहुत अधिक बाल झड़ने पर तथा बहुत अधिक आंखो की दृष्टि कमजोर होने पर लगातार खड़े होकर स्नान करते रहना।

04. स्वयं का मकान बनवाते समय अपने ही मजदूरों पर हाथ उठाना और अपशब्द कहना और उनकी मजदूरी समय पर नहीं देना।

05. किसी भी शुभ तिथि या भगवान के जन्मोत्सव पर या किसी भी तीज-त्यौहार के समय पति-पत्नी द्वारा पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य की पालना नहीं करना।

06. चोरी करना, ईमानदारी का अभाव, दूसरों के विपरीत समय का मजाक उड़ाना, ईश्वर के धन स्थान, समाज के धन स्थान का प्रयोग अपने निजी स्वार्थ के लिए करना।

07. अपनी धर्म पत्नी, संतान, माता-पिता की सेवा और संतुष्टि के अभाव में हमेशा घर से बाहर व्यर्थ में लोगों की दिखावटी सेवा में लगे रहना।

-गुरु सत्यराम

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If you do this, Saturn can be bad for your entire life (Hindi & English)

Shani Dev, who is called the lord of justice, has a very precise but very slow effect on the twelve houses present in the native’s Lagna Kundali. Wherever Shani Dev sits in the Kundali and wherever he casts his direct gaze, it definitely has a very precise effect on our direct life. In Vedic astrology, Saturn is seen as a cruel planet. If the position of Saturn is strong in the native’s Lagna Kundali, then the native gets to see its very good and pleasant effects with stability. And on the other hand, if Shani Dev sits even slightly crookedly in the native’s Lagna Kundali, then the native sees struggle in his entire life and luck also does not support him. Therefore, in every way, the sitting and sight of Shani Dev keeps its deep effect on the life of all the natives.

Saturn has a very big importance in Sanatan Vedic astrology. In astrology, Saturn is considered to be the permanent factor of long life, permanent sorrow, long lasting diseases, mental pains, subtle science, technical brain, iron metal, crude mineral oil, all types of employees, servants providing all types of services, jail visits etc. Shani Dev has ownership of Capricorn (10) and Aquarius (11). Venus’s Libra sign (7) is Shani Dev’s exalted sign and as soon as Mars goes to Aries sign (1), it becomes lowly influential. Because Shani Dev’s speed is the slowest among all planets, therefore, Saturn’s transit remains in any sign for two and a half years. In astrology, Shani Dev’s two and a half years of Dhaiya and seven and a half years of Sadesati are very famous. Shani Dev’s crooked vision and fear of Dhaiya and Sadesati is often seen in most of the people. Whereas on the basis of knowledge, Shani Dev is the most beneficial planet. He simply provides direct results of deeds.

Among the nakshatras, Shanidev is the lord of Pushya nakshatra, Anuradha nakshatra and Uttarabhadrapada nakshatra. Whenever Shanidev enters the life of a person in the form of Sadhesati, he starts showing his effect 6 months before the coming date. And he leaves his full effect from that place only 6 months after the leaving date. If you want to understand Shanidev and keep enjoying his blessings, then start focusing on your deeds. Wherever ego sows seeds inside you, the justice process of Shanidev will immediately start getting applied on you. Understand this thing well that Shanidev is only the planet that gives the fruits of deeds. That is, as the deeds keep piling up, the fruits are also inevitable. Let us now know what are those mistakes due to which your Saturn can get spoiled forever.

7 mistakes that will spoil your Saturn forever

01. Eating food for a long time while sitting in the bedroom and on the bed.

02. If the marriage has been done with fire as a witness, then keeping this in mind, having relations with another woman.

03. If there is excessive hair fall and eyesight is very weak, then continuously taking bath while standing.

04. While building one’s own house, raising hands on one’s own workers and using abusive language and not paying their wages on time.

05. Husband and wife not observing celibacy completely on any auspicious date or on the birthday of God or on any festival.

06. Stealing, lack of honesty, making fun of others’ adverse times, using God’s wealth place, society’s wealth place for personal gain.

07. Always being engaged in useless service to people outside the home in a superficial manner due to lack of service and satisfaction to one’s wife, children, parents.

-Guru Satyaram

ऐसा करेंगे तो शुक्र ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

ऐसा करेंगे तो शुक्र ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

Om-Shiva

हमारे वैदिक ज्योतिष विज्ञान के अनुसार शुक्र ग्रह को एक शुभ ग्रह माना गया है। इसकी शुभता के प्रभाव से जातक को भौतिक, शारीरिक और वैवाहिक सुख की प्राप्ति होती है। इसलिए ज्योतिष विद्या में शुक्र ग्रह को भौतिक सुख, वैवाहिक सुख, भोग-विलास के सुख, समाज में शौहरत, कला में निपुणता, प्रतिभावान, सौन्दर्य से परिपूर्ण, रोमांस में रुचि, काम-वासना और फैशन-डिजाइनिंग जैसे क्षेत्रों का कारक माना जाता है। शुक्र वृषभ राशि(2) और तुला राशि(7) का स्वामी होते हैं, और मीन राशि(12) इनकी उच्च राशि है, जबकि कन्या राशि(6)इसकी नीच राशि कही गई है। शुक्र ग्रह को 27 नक्षत्रों में से भरणी नक्षत्र, पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र और पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र का स्वामित्व प्राप्त है। नवग्रहों में बुध ग्रह और शनि ग्रह शुक्र ग्रह के परम मित्र ग्रह माने जाते हैं तथा सूर्य ग्रह और चंद्रमा ग्रह शुक्र ग्रह के परम शत्रु ग्रह माने जाते हैं। शुक्र ग्रह का गोचर 23 दिन की अवधि का होता है। अर्थात शुक्र ग्रह एक राशि में क़रीब 23 दिन तक विराजमान बने रहते हैं।

आइए अब सबसे पहले बात करते हैं कि, शुक्र ग्रह का एक सामान्य मानव शरीर की संरचना पर क्या प्रभाव पड़ता है? ज्योतिष विद्या के विज्ञान अनुसार शुक्र ग्रह जिस किसी जातक की कुंडली में लग्न भाव(प्रथम) में विराजमान होते हैं वह जातक रूप-रंग से बेहद सुंदर व आकर्षक दिखता है। जातक का व्यक्तित्व कुछ ऐसा बना रहता है कि वह विपरीत लिंग के जातकों को अपनी तरफ आकर्षित करता रहता है। अच्छी बात यह रहती है कि जातक का स्वभाव मृदुभाषी बना रहता है। कुंडली के लग्न स्थान पर शुक्रदेव का विराजना अर्थात जातक का मन कला के क्षेत्र के प्रति रूचिवान बना रहता है।

 

वैदिक ज्योतिष विद्या के अनुसार यदि शुक्र ग्रह लग्न कुंडली में प्रभावी एवम मजबूत स्थिति में बना हुआ है तो जातक का वैवाहिक जीवन प्रेम से पूर्ण एवम सुखमयी बना रहता है। यदि आपकी कुंडली में शुक्र ग्रह मजबूत हैं तो आपको भी यह अनुभव अवश्य हुआ होगा कि आपका भी प्रेमपक्ष काफी उत्तम बना रहता है। शुक्र ग्रह पति और पत्नी के बीच प्रेम की भावना को बढ़ाता है तथा प्रेम करने वाले जातकों के जीवन में रोमांस की ऊर्जा में वृद्धि करता है। जातक भौतिक जीवन में उच्च की रूचि रखता है तथा उच्च के भोगों का सुख भी प्राप्त करता है।

यदि जातक की कुंडली में शुक्र ग्रह बलहीन स्थिति में हो या किसी क्रूर ग्रह के साथ प्रतिकूल स्थिति में बैठा हो या किसी पाप ग्रह की सीधी दृष्टि शुक्र ग्रह पर पड़ रही हो या शुक्र ग्रह नीच प्रभावी हो गए हों तो ऐसी स्तिथि में जातक को परिवार व प्रेम के क्षेत्र में काफी सारी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। शुक्र ग्रह के अति कमजोर होने पर जातक बहुत ज्यादा प्रैक्टिकल और काफी कम रोमांटिक हो सकता है। इसके साथ ही जातक प्रेम और वैवाहिक जीवन में भी काफी ज्यादा उतार-चढ़ाव से गुजरता है तथा इसी के चलते पति और पत्नी के मध्य मतभेद होते ही रहते हैं। अकारण ही विवाद उत्पन्न होना या कुछ भी ऐसा होना जिसके कारण जातक का वैवाहिक सुख भी क्षीण बना रहता है तथा जातक इतना अधिक परेशान बना रहता है कि वह भौतिक सुखों को भी भोग नहीं पाता है। आइए अब जानते हैं कि वो कौन सी गलतियां हैं जिसके कारण आपके शुक्र ग्रह आजीवन हेतु खराब भी हो सकते हैं।

7 गलतियां जो आपके शुक्र ग्रह को हमेशा के लिए खराब कर देंगी

01. पूर्ण ब्रह्मचर्य की पालना के अभाव में लक्ष्मीजी से संबंधित संकल्पित भक्ति मार्ग में आगे बढ़ना।

02. स्त्रीवर्ग का उचित सम्मान नहीं करना। व्यर्थ में घर की स्त्रियों को कोसना तथा अपशब्द कहते रहना और धर्म पत्नी पर हाथ उठाना।

03. घर की स्त्रियों का हमेशा कर्कश वाणी में ही बात करना। सांझ की संध्या पश्चात या रात्रि के समय घर की स्त्री का निरर्थक शिकायतें करना या कलह करते ही रहना।

04. माता-पिता की आत्मा दुखाकर विवाह करना या विवाह पश्चात किसी भी रूप में माता-पिता की अवहेलना करना।

05. घर की स्त्री का बहुत लंबे समय तक जमीन पर नंगे पांव चलते रहना और पूर्ण एवम् उत्तम श्रृंगार नहीं करना।

06. गृहस्थी में रहते हुए धर्म से संबंधित कार्यों में धर्मपत्नी का हाथ नहीं लगवाना और जीवन के महत्वपूर्ण निर्णयों में धर्मपत्नी की सलाह नहीं लेना।

07. नवविवाहित जोड़े के कमरे में मंदिर का होना, भगवान और गुरुदेव का कोई भी चित्र या पेंटिंग का होना और जिस भी कमरे में गुरुदेव या भगवान का चित्र हो वहां पर स्त्रियों का कपड़े बदलना।

-Guru SatyaRam

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If you do this, Venus can be bad for your whole life (Hindi & English)

Om-Shiva

According to our Vedic astrology, Venus is considered an auspicious planet. Due to its auspiciousness, the native gets material, physical and marital happiness. Therefore, in astrology, Venus is considered to be the factor of material happiness, marital happiness, pleasure of pleasure, fame in society, proficiency in art, talent, beauty, interest in romance, lust and fashion designing. Venus is the lord of Taurus (2) and Libra (7), and Pisces (12) is its exalted sign, while Virgo (6) is said to be its debilitated sign. Out of the 27 constellations, Venus owns Bharani constellation, Purva Phaguni constellation and Purvashada constellation. Among the nine planets, Mercury and Saturn are considered to be the best friends of Venus, while the Sun and Moon are considered to be the worst enemies of Venus. The transit of Venus lasts for a period of 23 days. That is, Venus remains in one zodiac sign for about 23 days.

Now let us first talk about what effect Venus has on the structure of a normal human body? According to the science of astrology, the person in whose horoscope Venus is situated in the ascendant house (first) looks very beautiful and attractive in appearance. The personality of the person remains such that he keeps attracting people of the opposite sex. The good thing is that the nature of the person remains soft-spoken. The presence of Shukradev in the ascendant place of the horoscope means that the mind of the person remains interested in the field of art.

According to Vedic astrology, if Venus is in an effective and strong position in the ascendant horoscope, then the married life of the person remains full of love and happiness. If Venus is strong in your horoscope, then you must have also experienced that your love side also remains very good. Venus increases the feeling of love between husband and wife and increases the energy of romance in the life of the natives in love. The native has a high interest in material life and also enjoys the pleasures of high pleasures.

If Venus is weak in the native’s horoscope or is sitting in an unfavorable position with a cruel planet or a sinful planet is directly looking at Venus or Venus has become lowly influential, then in such a situation the native may have to face many problems in the field of family and love. If Venus is very weak, the native may be very practical and very less romantic. Along with this, the native also goes through a lot of ups and downs in love and married life and due to this, differences keep occurring between husband and wife. Disputes arising without any reason or anything due to which the marital happiness of the native also remains weak and the native remains so troubled that he is not able to enjoy even material pleasures. Let us now know what are those mistakes due to which your Venus can get spoiled for life.

7 mistakes that will spoil your Venus forever

01. Moving forward on the path of devotion related to Lakshmiji without following complete celibacy.

02. Not giving proper respect to women. Cursing and using foul language against the women of the house for no reason and raising hand on the wife.

03. The women of the house always talking in a harsh voice. The woman of the house making useless complaints or quarreling after dusk or at night.

04. Getting married by hurting the spirit of the parents or ignoring the parents in any form after marriage.

05. The woman of the house walking barefoot on the ground for a very long time and not doing complete and perfect makeup.

06. While living in the household, the wife should not be involved in religious activities and the wife should not be consulted in important decisions of life.

07. There should not be a temple in the room of the newly married couple, any picture or painting of God and Gurudev and women should change clothes in the room where there is a picture of Gurudev or God.

-Guru SatyaRam

ऐसा करेंगे तो बृहस्पति ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

ऐसा करेंगे तो बृहस्पति ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

जन्मकुंडली में देव गुरु बृहस्पति गुरुदेव के रूप में हमारा प्रतिनिधित्व करते हैं। बृहस्पति ग्रह के शुभ प्रभाव अनुसार जातक दयालु, धार्मिक, धैर्यवान, बुद्धिमान और चंचल स्वभाव को धारण किए ही रहता है। इन्हीं विशिष्ट सद्गुणों के चलते बृहस्पति ग्रह को आंतरिक बल प्राप्त होता है तथा ग्रह से आने वाली रश्मियां कुंडली के शुभ प्रभावों में और भी अधिक वृद्धि करते हुए जातक के जीवन को सुखमय बना देती है। बृहस्पति ग्रह, जिसे हम गुरू ग्रह भी कहते हैं, यह शुभ ग्रह हमारे नवग्रहों में अति महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। ज्योतिष शास्त्र में भी बृहस्पति ग्रह को देवगुरू, ज्ञान का कारक और समृद्धि का कारक कहकर परिभाषित एवम शोभित किया गया है।

जातक की लग्न कुण्डली में बृहस्पति ग्रह बलवान होने की स्तिथि में जातक ज्ञानवान एवं सद्गुणों से सम्पन्न बना ही रहता है। क्योंकि हमारे सभी नवग्रहों में केवल बृहस्पति ग्रह ही सर्वाधिक शुभ ग्रह आते हुए। अगर किसी कन्या जातक की लग्न कुण्डली में बृहस्पति ग्रह कमजोर अवस्था में हो, वक्री अवस्था में हो, पाप ग्रह द्वारा पीड़ित अवस्था में हो या फिर नीच गति को प्राप्त हों तो उसके विवाह में अति विलम्ब देखने को मिलता है। ज्योतिषीय उपायों के माध्यम से बृहस्पति ग्रह को बलवान करने मात्र से ही कन्या जातक को सुहाग एवं सन्तान का सुख सहज ही प्राप्त होना संभव जाता है। बृहस्पति ग्रह संतान का भी कारक होता है। अगर आप सरल माध्यम से गुरू ग्रह को बल देना चाहते हैं तो आप पुखराज रत्न को स्वर्ण धातु की अंगूठी में जड़वाकर गुरूवार के दिन राहुकाल का ध्यान रखते हुए, सूर्यदेव का प्रकाश रहते हुए अपनी तर्जनी (प्रथम) उंगली में धारण करना चाहिए।

अगर आपको पुखराज रत्न थोड़ा सा महंगा लगता है तो आप इसके स्थान पर गुरु ग्रह का उपरत्न सुनहला भी धारण कर सकते हैं। बृहस्पति ग्रह के सर्वाधिक शुभ ग्रह होने के कारण ही इनकी सीधी दृष्टि अति शुभ एवम कल्याणकारी मानी जाती है। वैदिक ज्योतिष के नियमों अनुसार भी अगर किसी भी जातक की लग्न कुण्डली में केन्द्र स्थान पर बृहस्पति ग्रह बैठे हुए हैं तो अन्य ग्रहों से उत्पन्न दोषों की शून्यता स्वतः ही होनी प्रारंभ हो जाती है। कुंडली में केन्द्र स्थान पर विराजमान बृहस्पति ग्रह की प्रशंसा करते हुए ऋषि-महर्षियों का कथन है कि जिसके केन्द्र स्थान पर में बृहस्पति ग्रह विराजे हुए हैं तो कुंडली के अन्य ग्रह अगर एकसाथ होकर भी जातक का विरोध करें तो भी जातक का कुछ नहीं बिगड़ सकता है। आइए अब हम समझते हैं कि उन 07 गलतियों के बारे में जिनके कारण हमारा बृहस्पति ग्रह हमेशा के लिए खराब हो सकता है।

7 गलतियां जो आपके बृहस्पति ग्रह को हमेशा के लिए खराब कर देंगी

1. किसी भी उन्नत पीपल के वृक्ष को मूल जड़ सहित अकारण कटवा देना।

2. अपनी पाठयक्रम की पुस्तकों को पैर लगाना या धर्म ग्रंथों को हमेशा बंद करके ही रखना।

3. नित्य शुद्धि कर्म के नियमों के अभाव में किसी भी पूज्य माला या रुद्राक्ष की माला को धारण करे ही रहना।

4. अपने पितरों और पूर्वजों की उचित एवम् उत्तम सेवा जैसे भोजन, वस्त्र और दक्षिणा उनके नाम से नहीं निकालना।

5. घर आने वाले अतिथि का सामर्थ्य अनुसार उचित सम्मान नहीं करना और घर पर मांगने वालों के आने पर हमेशा ही उन्हें खाली हाथ लौटाना।

6. उत्तम गृहस्थी सुख की प्राप्ति के बावजूद घर की स्त्री का सम्मान नहीं करना और परस्त्री से किसी भी प्रकार का संपर्क रखना।

7. किन्हीं भी गुरुजन, टीचर्स एवम् बुजुर्गों का अपमान करना। उन्हें अपशब्द कहना और उनका आशीर्वाद लिए बगैर कुछ भी शुभ कार्य शुरु करना।

– गुरु सत्यराम

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If you do this, Jupiter can be bad for your entire life (Hindi & English)

In the birth chart, Dev Guru Brihaspati represents us in the form of Gurudev. According to the auspicious effects of Jupiter, the native remains kind, religious, patient, intelligent and playful in nature. Due to these special virtues, Jupiter gets internal strength and the rays coming from the planet increase the auspicious effects of the horoscope even more and make the life of the native happy. Jupiter, which we also call Guru Graha, this auspicious planet holds a very important place among our nine planets. In astrology also, Jupiter has been defined and adorned by calling it Devguru, the factor of knowledge and the factor of prosperity.

In the condition of Jupiter being strong in the ascendant horoscope of the native, the native remains knowledgeable and endowed with virtues. Because among all our nine planets, only Jupiter is the most auspicious planet. If the Jupiter planet is weak in the Lagna Kundali of a girl, is in a retrograde state, is afflicted by the malefic planets or is in a low state, then a lot of delay is seen in her marriage. By merely strengthening the Jupiter planet through astrological remedies, it is possible for the girl to get the happiness of marital bliss and children easily. Jupiter is also a factor for children. If you want to strengthen the Guru planet through simple means, then you should get the Pukhraj gemstone embedded in a gold metal ring and wear it on your index (first) finger on Thursday, keeping in mind the Rahu Kaal, while the sunlight is there.

If you find the topaz gemstone a bit expensive, then you can also wear the golden sub-gemstone of Jupiter in its place. Jupiter being the most auspicious planet, its direct sight is considered to be extremely auspicious and beneficial. According to the rules of Vedic astrology, if Jupiter is placed in the center position in the Lagna Kundali of any native, then the defects caused by other planets start vanishing automatically. Praising the Jupiter placed in the center position in the Kundali, the sages and seers have said that if Jupiter is placed in the center position, then even if the other planets of the Kundali come together and oppose the native, then also nothing can go wrong for the native. Let us now understand about those 07 mistakes due to which our Jupiter can be spoiled forever.

7 mistakes that will spoil your Jupiter forever

1. Getting any grown Peepal tree cut along with its roots without any reason.

2. Touching your textbooks with your feet or always keeping religious texts closed.

3. In the absence of rules of daily purification rituals, wearing any venerated rosary or Rudraksha rosary.

4. Not providing proper and best service to your forefathers and forefathers like giving food, clothes and dakshina in their name.

5. Not giving proper respect to the guests who come to the house according to your capacity and always sending back empty handed when people come to the house to beg.

6. Despite having great domestic happiness, not respecting the woman of the house and having any kind of contact with another woman.

7. Insulting any Guru, teachers and elders. Using abusive language against them and starting any auspicious work without taking their blessings.

– Guru Satyaram

ऐसा करेंगे तो बुध ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

ऐसा करेंगे तो बुध ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हमारे नवग्रहों में सबसे छोटे ग्रह बुध हैं। ज्योतिष शास्त्र में बुध ग्रह को ग्रहों का राजकुमार माना गया है। बुध ग्रह सूर्य ग्रह के सर्वाधिक निकट हैं, इसलिए यह आधा गर्म और आधा ठंडा बने रहते हैं। इसी बीच के तापमान के कारण यहां जीवन संभव नहीं है। जो भी वस्तु बीच में अर्थात केंद्र में होगी वह बुध ग्रह को दर्शाती है। बुध ग्रह को बुद्धि का देवता भी कहा गया है। यह द्विस्वभाव वाला ग्रह है। काल पुरुष की कुंडली में चंद्र राशि मिथुन(3) एवम चंद्र राशि कन्या(6) पर बुध ग्रह का स्वामित्व होता है। बुध ग्रह कन्या राशि में उच्च स्वभाव को धारण करते हैं तथा मीन राशि(12) में नीच स्वभाव को धारण करते हैं। बुध ग्रह उत्तर दिशा के स्वामी माने जाते हैं। सूर्य ग्रह तथा शुक्र ग्रह इनके परम मित्र माने जाते हैं। मंगल ग्रह और चंद्रमा ग्रह से बुध ग्रह परम शत्रुता रखते हैं। बृहस्पति ग्रह और शनि ग्रह ना मित्रों की गणना में आते हैं और ना ही शत्रुओं की गणना में आते हैं। अर्थात यह दोनों ग्रह बुध ग्रह के लिए सम ग्रह आते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बुध ग्रह की महादशा 17 वर्षों तक चलायमान रहती है। यह हरित ऊर्जा से जन्मी खुशहाली के भी कारक बने रहते हैं। बुध ग्रह के ऊर्जा गुणों से प्रभावित जातक हर बात पर हंसना, सम्मुख जातक से स्वयं से ही बोलना तथा हर बात पर मजाक करते रहना दिल से पसंद करते हैं। हमारे शरीर में समस्त नसों के कारक भी बुध ग्रह ही होते हैं। बुध ग्रह व्यापार को भी दर्शाते हैं इसलिए यह एक सफल व्यापारी बनने की क्षमता भी प्रदान करते हैं। बुध ग्रह हमारे शरीर में त्वचा का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। बुध ग्रह जितने अच्छे होंगे उतना ही जातक में ज्ञान ग्रहण करने की क्षमता प्रबल होगी। बुध ग्रह एकमात्र ऐसे ग्रह हैं जो जातक को किसी भी परिस्थिति में ढलने की कला एवम क्षमता को प्रदान करते हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जातक का उत्तम व्यापार, उसकी छोटी और बड़ी बहनें, उसके परिवार में बुआ, उसके व्यापार से संबंधित अकाउंट, उसके जीवन में गणित विद्या की जानकारी, तथा ज्योतिष विद्या में गहरी गणनाएं बुध ग्रह की शक्ति में ही निहित होती हैं। ज्योतिष विद्या में बुध ग्रह अपने इन विशिष्ट गुणों के साथ में जिस भी ग्रह के साथ कुंडली में बैठता है तो उसके भी फल प्रदान करता रहता है। यह ग्रह तो छोटा सा ही है लेकिन इसका स्वभाव अति तेज और तर्रार है। ज्योतिष विद्या में 27 नक्षत्रों में से बुध ग्रह को आश्लेषा नक्षत्र, ज्येष्ठा नक्षत्र तथा रेवती नक्षत्र का स्वामि पद प्राप्त है। ऐसे जातक जिनका बुध ग्रह बली होता है वें संवाद तथा संचार के क्षेत्रों में निश्चित सफलता प्राप्त करते जाते हैं। बुध ग्रह से प्रभावित जातक हास्य और विनोद के वातावरण में अधिक अच्छा महसूस करते हैं। ऐसे जातक तीव्र बुद्धि के स्वामी, कूटनीतिज्ञ और राजनीति के क्षेत्रों में कुशल व्यवहार के स्वामी होते हैं। जातक के शरीर में नसों का दिखाई देना भी बुध ग्रह का ही प्रभाव है। बुध ग्रह की सौम्यता जातक को शिल्प कला के क्षेत्रों का हुनर भी प्रदान करती है। तथा आगे चलकर इन्हीं क्षेत्रों का पारखी भी बनाती है। आइए अब हम जानते हैं कि ऐसी कौन सी गलतियां हैं जिनके कारण से हमारा बुध ग्रह हमें अच्छे और शुभ प्रभाव नहीं देता है।

07 गलतियां जो आपके बुध ग्रह को हमेशा के लिए खराब कर देंगी

01. रसोई में मिट्टी के मटके को खाली रखना और 1 वर्ष पुराने मटके को पुनः प्रयोग में लाना।
02. अपनी पुत्री को केवल दूसरे घर की अमानत समझकर उसका लालन-पोषण करना।
03. बिना अर्थ के लगातार हमेशा झूठ बोलना और गूंगे दिव्यांग या जिनकी जुबान थथलाती हो और जो हकलाकर बोलते हों उनका मजाक बनाना।
04. भाई सामान मित्र से व्यर्थ का झगड़ा करना या उससे बुरी भावना रखते हुए पैसे मांगना और सामर्थ्य होते हुए भी उसके पैसे नहीं लौटाना।
05. बुधवार के दिन बिना जांच पड़ताल किए पैसे उधार देना और अकारण अधिक रात्रि के समय सिर धोना या सिर में तेल से मालिश करना।
06. किसी भी रूप में छोटी कन्याओं या किन्नर समाज को बहुत बुरे ढंग से अपशब्द कहना।
07. घर में तिज़ोरी या गुल्लक का ना होना। स्वयं की छोटी बहन पर हाथ उठाना या लात मारना।
– गुरु सत्यराम
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If you do this, mercury can be bad for your whole life (Hindi & English)

According to Jyotish Shastra, Mercury is the smallest planet among our nine planets. In Jyotish Shastra, Mercury is considered the prince of planets. Mercury is the closest to the Sun, so it remains half hot and half cold. Life is not possible here due to the temperature in between. Whatever object is in the middle, that is, in the center, represents Mercury. Mercury is also called the god of wisdom. It is a planet with dual nature. In the horoscope of Kaal Purush, Mercury owns the Moon sign Gemini (3) and the Moon sign Virgo (6). Mercury has a high nature in Virgo and a low nature in Pisces (12). Mercury is considered the lord of the north direction. Sun and Venus are considered its best friends. Mercury has extreme enmity with Mars and Moon. Jupiter and Saturn are neither counted as friends nor as enemies. That is, both these planets are equal planets for Mercury. According to astrology, the Mahadasha of Mercury lasts for 17 years. It also remains the factor of happiness born from green energy. The people influenced by the energy qualities of Mercury like to laugh at everything, talk to themselves and keep joking about everything. Mercury is also the factor of all the nerves in our body. Mercury also represents business, hence it also provides the ability to become a successful businessman. Mercury also represents the skin in our body. The better the Mercury is, the stronger will be the ability of the person to acquire knowledge. Mercury is the only planet that provides the person with the art and ability to adapt to any situation.
According to astrology, the native’s good business, his younger and elder sisters, his aunt in the family, accounts related to his business, his knowledge of mathematics in his life, and deep calculations in astrology are all inherent in the power of Mercury. In astrology, Mercury gives the results of the planet with which it sits in the horoscope with these special qualities. This planet is small but its nature is very sharp and agile. In astrology, out of the 27 constellations, Mercury is the lord of Ashlesha constellation, Jyeshtha constellation and Revati constellation. Such natives whose Mercury is strong, achieve definite success in the fields of dialogue and communication. Natives influenced by Mercury feel better in an environment of humor and humour. Such natives are the owners of sharp intellect, diplomats and are skilled in politics. The presence of veins in the body of the native is also the effect of Mercury. The gentleness of Mercury also provides the native with the skill of craftsmanship. And later on, it also makes him an expert in these fields. Let us now know what are the mistakes due to which our planet Mercury does not give us good and auspicious effects.

07 Mistakes that will spoil your Mercury forever

01. Keeping an empty earthen pot in the kitchen and reusing a 1 year old pot.
02. Raising your daughter as if she is a trust of another house.
03. Constantly lying without any reason and making fun of dumb disabled people or those whose tongue trembles and who speak with a stammer.
04. Fighting with a friend who is like a brother for no reason or asking for money from him with bad intentions and not returning the money despite having the ability.
05. Lending money on Wednesday without any investigation and washing your head or massaging your head with oil late at night without any reason.
06. Using very bad words against small girls or transgender community in any form.
07. Not having a safe or a piggy bank in the house. Raising hands or kicking your own younger sister.
– Guru Satyaram

आपकी रसोई में छिपा है लक्ष्मी का खजाना (Hindi & English)

आपकी रसोई में छिपा है लक्ष्मी का खजाना (Hindi & English)

आज के वर्तमान युग में हमारी रसोई बहुत ही ज्यादा मॉर्डन होती जा रही है। हम हमारी रसोई को आधुनिक गैजेट्स से परिपूर्ण बनाकर रखते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा की रसोई भी हमारे लाइफस्टाइल का एक अहम हिस्सा बन चुकी है। रसोई पूर्णतः राहुग्रह को संकेत करती है। पहले के घरों में रसोई इतनी बड़ी होती थी कि घर का प्रत्येक सदस्य वहीं बैठकर गर्मागर्म भोजन का आनंद लिया करता था। परंतु आज की वर्तमान परिस्थितियों में हमारी प्यारी रसोई पहले की अपेक्षा काफी छोटी होती जा रही है। ऐसा कहा जाता है कि रसोई में बैठकर भोजन करने से हमारा राहुग्रह अच्छा रहता है। और राहुग्रह इस कलयुग का राजा ग्रह माना जाता है जो जातक को बहुत ही तीव्र गति से धन प्रदान करने की क्षमता रखता है। अर्थात अगर आप आगे बताई गई बातों का ध्यान अपनी रसोई में बनाकर रखते हैं तो आपके ऊपर लक्ष्मीजी की कृपा स्थाई रूप से बनी रहेगी।

किचन में इन 09 बातों का ध्यान रखकर आप भी धनवान बन पाएंगे

1. नमक, हल्दी, दूध, आंटा, चावल, सरसों का तेल कभी भी पुर्णरूप से खत्म नहीं होने चाहिएं तथा जब भी इन्हें लाएं तो हमेशा दुगनी मात्र में ही लेकर आएं।

2. अपनी गृहस्थी के शुरुआती समय के तवे को कभी भी किचन से बाहर नहीं करें। अगर संभव हो तो समयानुसार उसको प्रयोग में लाते रहें।

3. प्रातः समय पहली रोटी बनाने से पहले “मां अन्नपूर्णा” के मंत्र से पूर्ण गरम तवे पर दूध की छीटें मारकर ही रसोई पकाएं।

4. रसोई में प्रयोग होने वाले नमक ओर चीनी को 11 लौंग डालकर सिर्फ और सिर्फ कांच के मर्तबान में ही रखें।

5. रसोई में हमेशा स्नान उपरांत या हाथ जोड़कर ही प्रवेश करें और सर्वप्रथम चूल्हे की अग्नि को प्रज्वलित कर प्रणाम करके ही दूसरा कार्य शुरू करें।

6. किचन में प्रयोग होने वाले चकले, बेलन, परांत और तवे को कभी भी अन्य झूठे बर्तनों के साथ नहीं रखें।

7. किचन में कभी भी मंदिर नहीं होना चाहिए और रात्रि को कभी भी झूठे बर्तन नहीं छोड़ने चाहिएं।

8. तवा, चकला, बेलन, परांत और चिमटे को घर की स्त्री स्वयं साफ करें। किसी भी सफाई कर्मचारी से ये 5 चीजें ना साफ करवाएं।

9. किचन की दीवारों पर हमेशा सफेद या कोई भी हल्का रंग ही होना चाहिए तथा रात्रि को किचन के कार्यों के समापन पर एक मिट्टी के दीए में 1 कपूर और लौंग का 1 जोड़ा जलाकर हाथ जोड़ लिया करें।

– गुरु सत्यराम

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Lakshmi’s treasure is hidden in your kitchen (Hindi & English)

In today’s era, our kitchen is becoming very modern. We keep our kitchen full of modern gadgets. It would not be wrong to say that the kitchen has also become an important part of our lifestyle. The kitchen completely indicates Rahu. In earlier houses, the kitchen was so big that every member of the house used to sit there and enjoy hot food. But in today’s current circumstances, our beloved kitchen is becoming much smaller than before. It is said that eating food while sitting in the kitchen keeps our Rahu planet good. And Rahu planet is considered to be the king planet of this Kaliyug, which has the ability to provide wealth to the person at a very fast pace. That is, if you keep the things mentioned below in mind in your kitchen, then the blessings of Lakshmiji will remain on you permanently.

By keeping these 9 things in mind in the kitchen, you will also be able to become rich

1. Salt, turmeric, milk, flour, rice, mustard oil should never be finished completely and whenever you bring them, always bring double the quantity.

2. Never take out the pan from the kitchen from the beginning of your household. If possible, keep using it according to the time.

3. Before making the first roti in the morning, sprinkle milk on the hot pan and cook with the mantra of “Maa Annapurna”.

4. Add 11 cloves to the salt and sugar used in the kitchen and keep it only in a glass jar.

5. Always enter the kitchen after taking a bath or with folded hands and first of all light the fire of the stove and bow down before starting any other work.

6. Never keep the chakla, belan, paraant and tawa used in the kitchen with other dirty utensils.

7. There should never be a temple in the kitchen and dirty utensils should never be left at night.

8. The woman of the house should clean the tawa, chakla, belan, paraant and tongs herself. Do not get these 5 things cleaned by any cleaning staff.

9. The walls of the kitchen should always be white or any light colour and at the end of the kitchen work at night, light 1 camphor and 1 pair of cloves in an earthen lamp and fold your hands.

– Guru Satyaram

क्या स्त्रियां भी श्रीहनुमान चालीसा का पाठ कर सकती हैं?(Hindi & English)

क्या स्त्रियां भी श्रीहनुमान चालीसा का पाठ कर सकती हैं?(Hindi & English)

श्री हनुमान चालीसा: एक संक्षेप विवरण

श्री हनुमान चालीसा अवधी भाषा में लिखी गई एक विशिष्ट काव्यात्मक कृति है। इस भक्ति रस से पूर्ण कृति में भगवान श्री रामचन्द्रजी के परम एवम महान भक्त श्रीहनुमान जी के गुणों, कार्यों एवम सेवा भाव का चालीस चौपाइयों के द्वारा वर्णन किया गया है। इसके रचयिता भगवान श्रीरामचन्द्रजी महाराज के अनन्य भक्त श्रीगोस्वामी तुलसीदास जी हैं।

श्री गोस्वामी तुलसीदासजी: जीवन परिचय

हर वर्ष उत्तम सावन मास के शुभ शुक्ल पक्ष की श्रेष्ठ सातवीं तिथि पर श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी की जयंती हम सभी भक्तजन मनाते हैं। श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी का जन्म संवत् 1554 में उत्तर प्रदेश के पवित्र चित्रकूट जिले के राजापुर गांव में हुआ था। इसी गांव में ही श्रीरामचरित मानस मंदिर है, जहां श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी ने यह ग्रंथ मात्र 966 दिनों में लिखा था। श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी संवत्‌ 1680 में इस मानव देह को त्यागते हुए प्रभु श्रीरामचंद्रजी महाराज के पावन चरणों की सेवा में विलीन हो गए थे।

श्री गोस्वामी तुलसीदासजी: एक विशिष्ट पूजनीय भक्त

यह भी कहा जाता है कि अपने जन्म के तुरंत बाद भी श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी रोए नहीं थे अपितु स्वाभाविक रोने के स्थान पर उनके श्रीमुख से भगवान श्रीसांब सदाशिव का परम प्रिय शब्द ‘राम’ निकला था। इस ईश्वरीय लीला के कारण ही बचपन में श्रीगोस्वामी तुलसीदासज़ी का नाम रामबोला था। ऐसा भी भक्तों के द्वारा कहा जाता है कि जन्म से ही श्रीगोस्वामी तुलसीदास जी के बत्तीस दांत थे।

श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी का जीवन

श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी के जन्म के कुछ समय पश्चात ही इनकी माताश्री हुलसी देवी का निधन हो गया था। इनके पिताश्री का नाम श्रीआत्माराम था। अपने बचपन से ही श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी(बालक रामबोला) संतों एवम विद्वानों की शरण में रहने लग गए थे। कुछ समय पश्चात ही बाबा श्री नरहरी जी ने इन्हें तुलसीदास नाम दिया था। बाबा।श्री नरहरी जी को श्री गोस्वामी तुलसीदासजी का गुरु माना जाता है। तुलसीदासजी की शादी देवी रत्नावली से हुई थी। विवाह के कुछ समय बाद ही वे अपनी धर्मपत्नी पत्नी से दूर हो गए थे और प्रभु श्रीरामजी की भक्ति में लीन हो गए।

श्री गोस्वामी तुलसीदासजी ने अपने 111 वर्ष के जीवन में कई अनुपम ग्रंथों की रचना की थी। इनमें श्रीरामचरित मानसजी सर्वाधिक प्रसिद्ध है। इस अलौकिक श्रीग्रंथ के सुंदरकांड का पाठ कई भक्तों की नियमित दिनचर्या है। विनय पत्रिका और श्रीहनुमान चालीसा की रचना भी श्रीगोस्वामी तुलसीदास ने की थी।

श्री हनुमान चालीसा को लिखने हेतु प्रेरणा स्रोत

भगवान श्री महादेवजी के कहने पर लिखा गया था श्रीरामचरित मानस। ऐसा माना जाता है कि श्री गोस्वामी तुलसीदासजी को स्वपन के माध्यम में भगवान शिव ने आदेश दिया था कि आप अपनी मातृ भाषा में काव्य रचना करो। मेरे श्री आशीष से आपकी रचना तृत्य वेद श्रीसामवेद की तरह ही फलवती होगी। ये स्वपन देखने के पश्चात तुलसीदाजी जाग गए। इसके कुछ समय पश्चात संवत् 1631 को श्रीरामनवमी के शुभ दिन वैसा ही योग बना जैसा त्रेतायुग में प्रभु श्रीरामचंद्रजी के शुभ अवतरण के समय था। उस दिन प्रातः समय तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस जी को लिखना प्रारंभ किया था।

श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी ने मात्र 966 दिन में लिखा था

श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी ने संवत् 1631 में श्रीरामचरित मानसजी लिखनी आरंभ की थी। संवत् 1633 के अगहन महीने के शुक्लपक्ष की शुभ पंचमी तिथि पर यह पवित्र ग्रंथ पूरा हो गया था। अर्थात इसे पूर्ण करने में पूरे 2 वर्ष, 7 माह और 26 दिनों का समय लगा था। यह भी कहा जाता है कि रचना पूर्ण होते ही श्रीतुलसीदासजी ने सबसे पहले ये ग्रंथ शिवजी को अर्पित किया था। फिर इसे लेकर श्रीतुलसीदासजी काशी गए और यह पवित्र ग्रंथ भगवान श्री विश्वनाथजी के मंदिर में रख दिया था। यह भी माना जाता है कि अगले दिन प्रातः समय उस पवित्र ग्रंथ पर “सत्यं शिवं सुंदरम” लिखा हुआ था।

मान्यता: श्रीराम और हनुमानजी ने दिए थे तुलसीदासजी को दर्शन

ऐसी मान्यता है कि श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी को भगवान श्रीराम और उनके परम भक्त श्रीहनुमानजी ने दर्शन दिए थे। जब श्रीगोस्वामी तुलसीदास जी तीर्थ यात्रा पर काशी गए तो लगातार राम नाम जप करते ही रहे। इसके बाद श्रीहनुमानजी ने उन्हें दर्शन दिए थे। इसके बाद उन्होंने श्रीहनुमानजी से भगवान श्रीजी के शुभ दर्शनों हेतु प्रार्थना करी थी। श्रीहनुमानजी ने तुलसीदाजी के बताया था कि आपको चित्रकूट में श्रीराम के दर्शन प्राप्त होंगे। इसके बाद मौनी अमावस्या पर्व पर श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी को चित्रकूट में भगवान श्रीरामचंद्र जी के दर्शन हुए थे।

श्री हनुमान चालीसा से संबंधित कुछ विशिष्ट प्रश्न एवम उत्तर।

1. हनुमान चालीसा का पाठ हमें कितनी बार करना चाहिए?

श्रीहनुमान चालीसा के पाठ का सर्वोत्तम फल प्राप्त करने के लिए दैनिक शुद्धि पश्चात केवल तांब्र पात्र के जल को ग्रहण करके लगातार 108 पाठ करें।

2. श्रीहनुमान चालीसा के संकल्पित पाठ का उद्यापन कैसे करना चाहिए?

11 बार श्रीहनुमान चालीसा का सूक्ष्म हवन करने के पश्चात मीठे का हनुमान मंदिर में भोग लगाएं और छोटे बच्चों, बंदरों, लंगूरों या किन्हीं भी पशु-पक्षिओं में बांटें।

3. संकल्पित पाठ पश्चात क्या नित्य भी हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए?

संकल्पित पाठ पश्चात नित्य 1/3/5/7/9/11 पाठ लगातार 108 दिन अवश्य करना चाहिए। इसके समापन पर किसी भी उद्यापन की आवश्यकता नहीं हैं।

4. संकल्पित श्रीहनुमान चालीसा का पाठ किस दिन से प्रारंभ करना शुभ रहेगा?

संकल्पित श्रीहनुमान चालीसा का पाठ सुबह की संध्या के समय मंगलवार, गुरुवार, शनिवार के दिन ही प्रारंभ करना अति शुभ और लाभकारी रहेगा।

5. क्या स्त्रियां भी संकल्पित या सामान्य रूप में श्रीहनुमान चालीसा का पाठ कर सकती हैं?

संकल्पित या सामान्य रूप में अपने सामान्य दिनों में स्त्रियां श्री हनुमान जी को परमेश्वर ब्रह्म रूप में या सदगुरु रूप में मानते हुए श्रीहनुमान चालीसा का पाठ अवश्य कर सकती हैं।

Guru SatyaRam
Guru SatyaRam

– गुरु सत्यराम

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Can women also recite Shri Hanuman Chalisa?(Hindi & English)

Shri Hanuman Chalisa: A Brief Description

Shri Hanuman Chalisa is a unique poetic work written in Awadhi language. In this devotional work, the qualities, works and service of Shri Hanuman, the supreme and great devotee of Lord Shri Ramchandraji, have been described through forty quatrains. Its author is Shri Goswami Tulsidas ji, an ardent devotee of Lord Shri Ramchandraji Maharaj.

Shri Goswami Tulsidasji: Biography

Every year, all of us devotees celebrate the birth anniversary of Shri Goswami Tulsidasji on the seventh day of the auspicious Shukla Paksha of the auspicious month of Sawan. Shri Goswami Tulsidasji was born in the year 1554 in Rajapur village of the holy Chitrakoot district of Uttar Pradesh. In this village itself is the Shri Ramcharit Manas temple, where Shri Goswami Tulsidasji wrote this book in just 966 days. Shri Goswami Tulsidasji left this human body in Samvat 1680 and merged in the service of the holy feet of Lord Shri Ramchandraji Maharaj.

Shri Goswami Tulsidasji: A special revered devotee

It is also said that even immediately after his birth, Shri Goswami Tulsidasji did not cry, but instead of natural crying, the most beloved word of Lord Shri Samb Sadashiv, ‘Ram’ came out of his mouth. Due to this divine play, Shri Goswami Tulsidasji’s name in childhood was Rambola. It is also said by devotees that Shri Goswami Tulsidasji had thirty-two teeth from birth.

Life of Shri Goswami Tulsidasji

Shortly after the birth of Shri Goswami Tulsidasji, his mother Hulsi Devi died. His father’s name was Shri Atmaram. From his childhood itself, Shri Goswami Tulsidasji (child Rambola) started living under the shelter of saints and scholars. After some time Baba Shri Narhari Ji gave him the name Tulsidas. Baba Shri Narhari Ji is considered to be the Guru of Shri Goswami Tulsidas Ji. Tulsidas Ji was married to Devi Ratnavali. Shortly after the marriage, he got separated from his wife and got absorbed in the devotion of Lord Shri Ram Ji.

Shri Goswami Tulsidas Ji had written many unique scriptures in his 111 years of life. Among these Shri Ramcharit Manas Ji is the most famous. Reading the Sundarkand of this divine scripture is a regular routine of many devotees. Vinay Patrika and Shri Hanuman Chalisa were also written by Shri Goswami Tulsidas.

Source of inspiration for writing Shri Hanuman Chalisa

Shri Ramcharit Manas was written at the behest of Lord Shri Mahadevji. It is believed that Lord Shiva had ordered Shri Goswami Tulsidasji through a dream to compose poetry in his mother tongue. With my blessings, your composition will be as fruitful as the Tritya Veda Shri Samveda. Tulsidasji woke up after seeing this dream. Some time later, on the auspicious day of Shri Ramnavami in Samvat 1631, the same situation was created as was there during the auspicious incarnation of Lord Shri Ramchandraji in Treta Yug. Tulsidasji started writing Shri Ramcharitmanas in the morning on that day.

Shri Goswami Tulsidasji wrote it in just 966 days

Shri Goswami Tulsidasji started writing Shri Ramcharit Manasji in Samvat 1631. This holy book was completed on the auspicious Panchami date of Shukla Paksha of the month of Aghan in Samvat 1633. That is, it took 2 years, 7 months and 26 days to complete it. It is also said that as soon as the composition was completed, Tulsidasji first offered this book to Lord Shiva. Then Tulsidasji went to Kashi with it and placed this holy book in the temple of Lord Vishwanathji. It is also believed that the next day in the morning, “Satyam Shivam Sundaram” was written on that holy book.

Belief: Shri Ram and Hanumanji had given darshan to Tulsidasji

It is believed that Lord Shri Ram and his supreme devotee Shri Hanumanji had given darshan to Shri Goswami Tulsidasji. When Shri Goswami Tulsidasji went to Kashi on pilgrimage, he kept chanting the name of Ram continuously. After this, Shri Hanumanji gave him darshan. After this, he prayed to Shri Hanumanji for the auspicious darshan of Lord Shreeji. Shri Hanumanji had told Tulsidasji that you will get the darshan of Shri Ram in Chitrakoot. After this, on the occasion of Mauni Amavasya festival, Sri Goswami Tulsidasji had the darshan of Lord Shri Ramchandra in Chitrakoot.

Some specific questions and answers related to Shri Hanuman Chalisa.

1. How many times should we recite Hanuman Chalisa?

To get the best results of reciting Shri Hanuman Chalisa, after daily purification, take only water from a copper vessel and recite it 108 times continuously.

2. How should the Udyaapan of Sankalpit Paath of Shri Hanuman Chalisa be done?

After performing subtle havan of Shri Hanuman Chalisa 11 times, offer sweets in Hanuman temple and distribute it among small children, monkeys, langurs or any animals and birds.

3. Should Hanuman Chalisa be recited daily after Sankalpit Paath?

After Sankalpit Paath, 1/3/5/7/9/11 recitations should be done daily for 108 days continuously. There is no need for any Udyaapan on its completion.

4. From which day will it be auspicious to start the recitation of Sankalpit Shri Hanuman Chalisa?

It will be very auspicious and beneficial to start the recitation of Sankalpit Shree Hanuman Chalisa in the morning and evening on Tuesday, Thursday and Saturday.

5. Can women also recite Shree Hanuman Chalisa in Sankalpit or normal form?

Women can certainly recite Shree Hanuman Chalisa in Sankalpit or normal form on their normal days by considering Shree Hanuman Ji as Parameshwar Brahma or as Sadguru.

Guru SatyaRam
Guru SatyaRam

-Guru SatyaRam

शनि का छाया-पात्र का दान क्या होता है?(Hindi & English) 

शनि का छाया-पात्र का दान क्या होता है?(Hindi & English)

Om-Shiva

भगवान शनिदेव का भारतीय सनातनी ज्योतिष शास्त्र में बहुत ही विशिष्ट महत्व माना जाता है। शनिदेव को उनके इष्ट एवम गुरुदेव भगवान श्री सांब सदाशिव ने न्याय की पदवी पर विराजमान कराया है, इसलिए ही शनिदेव को उत्तम न्याय का देवता माना जाता है। न्यायधीश भगवान शनिदेव इस मृत्युलोक के सभी जातकों को उनके कर्मों के आधार पर शुभ/अशुभ फल प्रदान करते हैं। भगवान शनिदेव को जो दंडाधिकारी का पद प्राप्त है उसके चलते सभी के हृदय में शनिदेव के प्रति एक भय भी बना रहता है और महादेव की आज्ञा अनुसार शनिदेव अपने इस उत्तम धर्म की पालना हेतु कभी भी पीछे नहीं हटते हैं।

भगवान शनिदेव केवल कर्मों के अनुसार ही जातक के जीवन को उठाने हेतु न्याय करने के उपरांत उत्तम फल प्रदान करते हैं। इसलिए बुरे कर्म करने वालों को बुरा फल और अच्छे कर्म करने वालों को अच्छा फल सदा से मिलता आया है और आगे भी मिलता ही रहेगा। ऐसी स्पष्ट मान्यता है कि शनिदेव की सीधी क्रूर द्दष्टि अगर किसी पर पड़ जाए तो जातक के जीवन में संघर्ष के रूप में कई तरह के कष्ट एवम परेशानियां आना शुरू हो जाती हैं।

वहीं दूसरी तरफ अगर भगवान शनिदेव की सीधी शुभ दृष्टि अगर किसी जातक पर पड़ जाए तो जातक का रंक से राजा बनना अटल हो जाता है। प्रायः भगवान शनिदेव के स्वाभाविक गोचरीय वयवस्था अनुसार चलायमान शनि की साढ़ेसाती और शनि की ढैय्या से लगभग सभी जातक बहुत ही परेशान होकर अपने-अपने जीवन में संघर्षों को अनुभव करते हैं।

लेकिन भगवान शनिदेव की कृपा जब बरसती है तो जातक राजाओं जैसा जीवन व्यतीत करता हैं। शनिदेव का छाया पात्र का दान भी शनिदेव की कृपा प्राप्ति का अति सर्वोत्तम उपाय माना जाता है। आइए अब जानते हैं कि शनिदेव का छाया पात्र का दान क्या होता है और कैसे इस उपाय से हमारे जीवन में सुखों की बढ़ोत्तरी होती है?

01. शनि का छाया-पात्र का दान क्या होता है?

शनि ग्रह की अतिरिक्त ऊर्जा जब प्रारब्ध के आधार पर या सामान्य साढ़ेसती के आधार पर या जन्म कुंडली में शनिदेव के विराजने के आधार पर जब अधिक बढ़ जाती है तब शनिदेव के प्रभाव को कम करने के लिए, उनसे क्षमा मांगने के लिए काले तिल, सरसों का तेल और लौह पात्र का दान किया जाता है उसे ही शनि का छाया-पात्र का दान कहते हैं।

02. शनि का छाया-पात्र का दान कैसे और किस दिन किया जाता है?

किसी भी गुरुवार/शनिवार को एक लौह पात्र में थोड़े काले तिल डालकर, सरसों का तेल डालकर पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े होकर पात्र में अपना प्रतिबिंब देखने के पश्चात केवल शनिदेव के मंदिर में ही पात्र समेत दान दिया जाना चाहिए।

03. शनि का छाया-पात्र का दान किसको देना चाहिए?

शनिदेव के छाया पात्र का दान या शनिग्रह से संबंधित कोई भी दान केवल शनिदेव के मंदिर में ही दिया जाना चाहिए।

04. शनि का छाया-पात्र का दान किन जातकों को करना चाहिए?

1a. जिनको भी संतान से कष्ट हो, संतान न हो, मुकदमे चल रहे हो, पैरों में अधिक दर्द रहता हो या रीढ़ की हड्डी प्रभावित रहती हो या उनकी जन्म राशि पर साढ़ेसती चल रही हो। उन्हें छाया पात्र का दान 11 गुरुवार/शनिवार अवश्य करना चाहिए।

 

2b. जिनकी लग्न कुंडली में शनिदेव अगर 1,2,5,7,9 भाव में विराजे हुए हों तो जब आपकी जन्म राशि पर साढ़ेसती आयेगी तो ऐसे जातकों को उस दौरान प्रत्येक वर्ष 11 गुरुवार/शनिवार लगातार छाया पात्र का दान अवश्य करना चाहिए।

Guru SatyaRam
Guru SatyaRam

– गुरु सत्यराम

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What is the donation of Shani’s Chhaya-Patra?(Hindi & English)

Om-Shiva

Lord Shani Dev is considered to have a very special significance in Indian Sanatani astrology. Shani Dev has been placed on the position of justice by his Ishta and Gurudev Lord Shri Samb Sadashiv, that is why Shani Dev is considered to be the god of good justice. The judge Lord Shani Dev gives auspicious/inauspicious results to all the people of this mortal world on the basis of their deeds. Due to the position of a magistrate that Lord Shani Dev has, there is a fear of Shani Dev in everyone’s heart and as per Mahadev’s orders, Shani Dev never steps back from following this great religion of his.

Lord Shani Dev gives good results only after doing justice to uplift the life of the person according to their deeds. That is why people who do bad deeds have always got bad results and people who do good deeds have always got good results and will continue to get them in future too. There is a clear belief that if Shanidev’s direct cruel sight falls on someone, then many kinds of troubles and problems start coming in the form of struggle in the life of the person.

On the other hand, if Lord Shanidev’s direct auspicious sight falls on a person, then it becomes certain that the person becomes a king from a pauper. Usually, according to the natural transitory system of Lord Shanidev, almost all the people get very troubled by the moving Saturn’s Sadesati and Shani’s Dhaiyya and experience struggles in their lives.

But when Lord Shanidev’s blessings are showered, then the person lives a life like kings. Donation of Shanidev’s Chhaya Patra is also considered to be the best way to get Shanidev’s blessings. Let us now know what is the donation of Shanidev’s Chhaya Patra and how does this remedy increase happiness in our life?

01. What is the donation of Shani’s Chhaya Patra?

When the excess energy of Saturn increases on the basis of destiny or general sadhesati or presence of Shanidev in the birth chart, then to reduce the effect of Shanidev, to ask forgiveness from him, donation of black sesame seeds, mustard oil and iron vessel is done, this is called donation of Shani’s Chhaya-patra.

02. How and on which day is the donation of Shani’s Chhaya-patra done?

On any Thursday / Saturday, put some black sesame seeds, mustard oil in an iron vessel, stand under a peepal tree and see your reflection in the vessel, after which the donation should be done along with the vessel only in Shanidev’s temple.

03. To whom should Shani’s Chhaya-patra be donated?

Donation of Shanidev’s Chhaya-patra or any donation related to Shanigraha should be given only in Shanidev’s temple.

04. To whom should Shani’s Chhaya-patra be donated?

1a. Those who are facing problems with their children, do not have children, have ongoing court cases, have pain in their legs, their spine is affected or their birth sign is under Sadesati, they must donate Chhaya Patra on 11 Thursdays/Saturdays.

2b. If Lord Shani is placed in 1,2,5,7,9th house in their Lagna Kundali, then when Sadesati comes on your birth sign, such people must donate Chhaya Patra on 11 Thursdays/Saturdays every year during that period.

Guru SatyaRam
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-Guru SatyaRam