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शारदीय नवरात्रि उत्सव 2024 (Hindi & English)

शारदीय नवरात्रि उत्सव 2024 (Hindi & English)

Om-Shiva
नवरात्रि पर्व आद्या शक्ति भगवती माँ दुर्गा के प्रति आस्था और विश्वास प्रकट करने वाला पर्व है। नवरात्रि यूँ तो वर्ष में चार बार आती है, लेकिन चैत्र और शारदीय नवरात्रि का अपना विशेष ही महत्व है। शारदीय नवरात्रि अश्विन शुक्ल प्रतिपदा से प्रारम्भ होती है। शारदीय नवरात्रि को मुख्यतः मां दुर्गा द्वारा महिषासुर के वध और श्रीराम द्वारा रावण के वध से जोड़कर देखा जाता है। नवरात्रि के बाद दसवें दिन विजयादशमी का पर्व पूरे भारतवर्ष में धूमधाम से मनाया जाता है।

वर्ष 2024 में कब है शारदीय नवरात्रि?

इस वर्ष नवरात्रि का शुभारंभ दिनांक 03 अक्टूबर 2024 को हो रहा है। और नवरात्रि का समापन शनिवार 12 अक्टूबर को होगा।

शारदीय नवरात्रि घट स्थापना मुहूर्त कब है?

नवरात्रि में कलश या घट स्थापना का विशेष महत्व है। यह मंगलकलश नकारात्मकता दूर करके सकारात्मक ऊर्जा और शुभता लाता है। इस बार घट स्थापना का मुहूर्त गुरुवार 03 अक्टूबर को प्रातः 06:17 मिनट से प्रातः 07:24 मिनट तक रहेगा। वैसे कई लोग अभिजीत मुहूर्त में भी घट स्थापना कर सकते हैं, जिसका मुहूर्त सुबह 11 बजकर 46 मिनट से लेकर दोपहर 12:33 मिनट तक रहेगा।

भगवती देवी का आगमन और वाहन

देवी भागवत, मार्कण्डेय पुराण और भागवत पुराण में उल्लेख है कि, महालया के दिन जब पितृगण वापस अपने लोक चले जाते हैं तब माँ दुर्गा अपने परिवार और गणों के साथ पृथ्वी लोक पर आतीं हैं। प्रत्येक वर्ष जिस दिन नवरात्रि प्रारम्भ होती है, उस दिन के अनुसार हर बार माता अलग-अलग वाहनों पर आतीं हैं। माता का वाहन पूरे वर्ष के भविष्य की शुभता या अशुभता बताता है। इस वर्ष माता का वाहन डोली या पालकी है। इसे इतना शुभ नहीं माना जाता है। इससे देश दुनियां में अव्यवस्था, मन्दी, हिंसा, और महामारी के संकेत मिलते हैं।

माँ दुर्गा के नौ रूप और नवग्रहों का जुड़ाव

नवरात्रि में 09 अलग-अलग तिथियों में माँ के 09 अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि किसी भी पूजन अनुष्ठान में रंगों और नवग्रहों का विशेष महत्व होता है। देवी भागवत में उल्लेख है कि सम्पूर्ण सृष्टि की जननी, और पूरे ब्रह्मांड में संचारित ऊर्जा के केंद्र में यही माँ आद्या शक्ति ही हैं। और हमारे नवग्रह भी इन्ही शक्ति के 09 रूपों से संचालित होते हैं। आइये, हम जानते हैं कि देवी के विभिन्न रूपों की पूजा किस रंग के वस्त्र पहनकर की जाती है? और देवी के कौन से रूप के पूजन से किस ग्रह को अनुकूल बनाया जा सकता है?

01. शैलपुत्री- पर्वत राज हिमावन की पुत्री माँ पार्वती का यह मूल स्वरूप है। माँ के दाएं हांथ में त्रिशूल और बाएं हांथ में कमल पुष्प है। इनकी सवारी सिंह है। माँ शैलपुत्री की पूजा पीले रंग के वस्त्रों को पहनकर की जानी चाहिए। इनकी पूजा से मन के कारक चन्द्रमा को मजबूती मिलती है व चन्द्र जनित दोषों से मुक्ति मिलती है।

02. ब्रह्मचारिणी- माँ का द्वितीय स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। माँ के दाएं हांथ में माला और बाएं हाँथ में कमण्डल है। इनका पूजन हरे रंग के वस्त्र पहनकर करना चाहिए। ग्रहों के सेनापति मंगल पर इनका शासन होता है। अतः माता मंगल जनित दोषों का शमन करती हैं।

03. चन्द्रघण्टा- अति कांतिमय माँ चन्द्रघण्टा के गले मे घण्टे के आकार का चन्द्रमा सुशोभित होता है। इनकी ग्रे रंग के कपड़े पहनकर पूजा करनी चाहिए। माँ के पूजन से शुक्र सम्बन्धी दोष समाप्त होते हैं और परिवार में प्रेम, ऐश्वर्य, सुख-शान्ति वास करती है।

04. कूष्मांडा- माँ कूष्माण्डा को समस्त ब्रह्मांड की अधिष्ठात्री देवी कहा गया है। माँ की आठ भुजाओं में अस्त्र, शस्त्र, अमृत कलश और कमल सुशोभित होता है। नारंगी रंग के कपड़े धारण करके पूजा करने से माँ प्रसन्न होती हैं और ग्रहों के राजा सूर्य को बल प्रदान करती हैं, समाज मे मान, प्रतिष्ठा प्रदान करती हैं।

05. स्कंदमाता- शिव और पार्वती पुत्र स्कंद या भगवान कार्तिकेय की माता के रूप में इनका पूजन होता है। माँ की पूजा सफेद रंग के वस्त्र पहनकर की जानी चाहिए। स्कंदमाता के पूजन से ज्ञान और विवेक के ग्रह बुध को बल मिलता है।

06. कात्यायनी- महिषासुर का वध करने हेतु माँ दुर्गा ने ऋषि कात्यायन के घर कात्यायनी के रूप में जन्म लिया था। अष्ट भुजाओं वाली यें माता महिषासुरमर्दिनी कहलाती हैं। इनकी पूजा लाल रंग के वस्त्र पहनकर करनी चाहिए। अमृत स्वरूप गुरू ग्रह माँ के पूजन से प्रसन्न और शांत होते हैं।

07. कालरात्रि- माँ कालरात्रि का घोररूप सभी दुष्टों का सर्वनाश करने वाला है। इनके स्मरण मात्र से मनुष्य भयमुक्त होकर अभय और मोक्ष प्राप्त करता है। देवी का पूजन नीले रंग के वस्त्र पहनकर करना चाहिए। माँ कालरात्रि शनिग्रह की अधिष्ठात्री देवी हैं। इनके पूजन से शनिग्रह प्रसन्न होकर अपनी पीड़ा से मुक्त करते हैं।

08. महागौरी- कपूर के समान उज्ज्वल रंग वाली महागौरी का सुंदर एवम शांत रूप मनुष्यो के समस्त कष्टों को हरने वाला है। गुलाबी रंग के वस्त्र धारण करके गुलाबी पुष्पों से पूजन करने पर माँ प्रसन्न होती हैं। इनकी पूजा से राहुग्रह शांत होकर जीवन में उन्नति प्रदान करते हैं।

09. सिद्धिदात्री- समस्त सिद्धियो की अधिष्ठात्री देवी माँ सिद्धिदात्री हैं। 04 भुजाओं वाली माँ कमल के आसन पर विराजती हैं। इन देवी का पूजन बैंगनी रंग के वस्त्र पहनकर करना चाहिए। अध्यात्म और मोक्ष प्रदान करने वाले केतुग्रह माँ सिद्धिदात्री की पूजन से प्रसन्न होते हैं।

उपर्युक्त आलेख में मैंने विशेष तौर पर नवग्रह और उनसे सम्बन्धित रंगों को देवी के नौ रूपों से जोड़कर विवेचन किया है। आशा करती हूँ आपको यह आलेख पसन्द आया होगा। कृपया कमेंट के ज़रिए अपनी राय अवश्य दें।

हार्दिक धन्यवाद और आभार। जय माता दी।

-एस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव

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Sharadiya Navratri Festival 2024 (Hindi & English)

Om-Shiva
Navratri festival is a festival expressing faith and belief in Aadya Shakti Bhagwati Maa Durga. Although Navratri comes four times a year, Chaitra and Sharadiya Navratri have their own special significance. Sharadiya Navratri starts from Ashwin Shukla Pratipada. Sharadiya Navratri is mainly associated with the killing of Mahishasura by Maa Durga and the killing of Ravana by Shri Ram. The festival of Vijayadashami is celebrated with great pomp all over India on the tenth day after Navratri.

When is Sharadiya Navratri in the year 2024?

This year Navratri is starting on 03 October 2024. And Navratri will end on Saturday 12 October.

When is Sharadiya Navratri Ghat Sthapana Muhurta?

Kalash or Ghat Sthapana has special significance in Navratri. This Mangalkalasha removes negativity and brings positive energy and auspiciousness. This time the auspicious time for Ghat establishment will be from 06:17 am to 07:24 am on Thursday, 03 October. However, many people can also do Ghat establishment in Abhijeet Muhurta, whose auspicious time will be from 11:46 am to 12:33 pm.

Arrival and vehicle of Bhagwati Devi

It is mentioned in Devi Bhagwat, Markandeya Purana and Bhagwat Purana that, on the day of Mahalaya, when the ancestors go back to their world, then Mother Durga comes to Earth with her family and Ganas. Every year, according to the day on which Navratri starts, Mother comes on different vehicles every time. Mother’s vehicle tells the auspiciousness or inauspiciousness of the future of the whole year. This year the vehicle of the Mother is Doli or Palki. It is not considered so auspicious. This indicates chaos, recession, violence, and epidemic in the country and the world.

Nine forms of Maa Durga and connection with Navgrahas

In Navratri, 9 different forms of Maa are worshipped on 9 different dates. It is said that colors and Navgrahas have special importance in any worship ritual. It is mentioned in Devi Bhagwat that this Maa Aadya Shakti is the mother of the whole creation, and the center of energy transmitted in the entire universe. And our Navgrahas are also operated by these 9 forms of Shakti. Come, let us know which color clothes are worn while worshipping different forms of the Goddess? And which planet can be made favorable by worshipping which form of the Goddess?

01. Shailputri- This is the original form of Maa Parvati, daughter of mountain king Himavan. Maa has a trident in her right hand and a lotus flower in her left hand. She rides a lion. Maa Shailputri should be worshipped wearing yellow clothes. Worshipping her strengthens the moon, the factor of mind, and liberates one from the defects caused by the moon.

02. Brahmacharini- The second form of the mother is Brahmacharini. The mother has a rosary in her right hand and a kamandalu in her left hand. She should be worshipped wearing green clothes. She rules over Mars, the commander of the planets. Hence, the mother removes the defects caused by Mars.

03. Chandraghanta- The bell-shaped moon adorns the neck of the extremely radiant mother Chandraghanta. She should be worshipped wearing grey clothes. Worshipping the mother ends the defects related to Venus and love, prosperity, happiness and peace reside in the family.

04. Kushmanda- Mother Kushmanda is said to be the presiding goddess of the entire universe. The eight arms of the mother are adorned with weapons, arms, Amrit Kalash and lotus. Wearing orange clothes pleases the Goddess and she gives strength to the Sun, the king of planets, and gives respect and prestige in the society.

05. Skandamata- She is worshipped as the mother of Shiva and Parvati’s son Skanda or Lord Kartikeya. The Goddess should be worshipped wearing white clothes. Worshipping Skandamata strengthens Mercury, the planet of knowledge and wisdom.

06. Katyayani- To kill Mahishasura, Goddess Durga was born as Katyayani in the house of sage Katyayan. She has eight arms and is known as Mahishasuramardini. She should be worshipped wearing red clothes. The planet Guru, which is the form of Amrit, becomes happy and calm by worshipping the Goddess.

07. Kaalratri- The fierce form of Goddess Kaalratri destroys all evildoers. Just by remembering her, a person becomes free from fear and attains abhay (fearlessness) and moksha (salvation). The Goddess should be worshipped wearing blue clothes. Maa Kalratri is the presiding goddess of Saturn. Saturn is pleased by worshipping her and relieves the person from his pain.

08. Mahagauri- The beautiful and calm form of Mahagauri, whose colour is as bright as camphor, removes all the troubles of human beings. The mother is pleased by wearing pink coloured clothes and worshipping with pink flowers. By worshipping her, Rahu becomes calm and gives progress in life.

09. Siddhidatri- The presiding goddess of all Siddhis is Maa Siddhidatri. The four-armed mother sits on a lotus seat. This goddess should be worshipped wearing purple coloured clothes. Ketu, which provides spirituality and salvation, is pleased by worshipping Maa Siddhidatri.

In the above article, I have specially discussed the nine planets and their related colours by connecting them with the nine forms of the goddess. I hope you liked this article. Please give your opinion through comments.

Heartfelt thanks and gratitude. Jai Mata Di.

-Astro Richa Shrivastava

सर्वपितृ अमावस्या 2024(Hindi & English)

सर्वपितृ अमावस्या 2024(Hindi & English)

Om-Shiva
हमारे हिन्दू पंचांग में भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से आश्विन माह की अमावस्या तिथि तक 16 दिनों के पक्ष को हम पितृपक्ष कहते हैं। इन 16 दिनों में हम अपने पूर्वजों और पितरों के सम्मान में विभिन्न कर्म यथा- तर्पण, श्राद्ध, पिंडदान इत्यादि करते हैं। जिन लोगों को अपने गुजरे हुए माता, पिता, दादी, बाबा अथवा भाई बहनों की मृत्यु की तिथि ज्ञात होती है, वें तिथि के दिन पितृ कर्म करते हैं। जिन लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती, उनके लिए पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध आदि कर्म के लिए अमावस्या तिथि का विधान रखा गया है। इस अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या इसीलिए कहा जाता है कि जिनमे सभी सोलह दिनों तक पितृकर्म करने का सामर्थ्य नहीं है, वें एक अमावस्या वाले दिन ही पितृकर्म कर सकते हैं।

इसके अतिरिक्त जिन्हें अपने मृत परिजनों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं है वें भी सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों के निमित्त श्राद्ध, दान, और तर्पण कर सकते हैं। वस्तुतः सर्वपितृ अमावस्या पितरों की विदाई का दिन है। उनका विसर्जन कर उन्हें वापस उनके लोक भेजने का दिन है। अतः इस तिथि का महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है। इस दिन को महालय भी कहते हैं। पितरों की विदाई के बाद माँ भगवती दुर्गा के धरती पर आगमन का उत्सव शुरू हो जाता है।

01. कैसे करें पितृ विसर्जन?

अमावस्या वाले दिन प्रातःकाल उठकर दैनिक कार्यो से निवृत्त होकर घर की सफाई करें। फिर घर की दहलीज पर गंगाजल से छिड़काव कर सुगन्ध मिश्रित चंदन का लेप करें। घर की महिलाएं स्नान के बाद रसोई में आपके घर मे पसन्द किये जाने वाले पकवान बनाएं। पकवानों में खीर और पूड़ी अवश्य शामिल करें। फिर योग्य ब्राह्मण को घर पर आमंत्रित करके पितरों के निमित्त हवन, पूजन, पिंड, तर्पण इत्यादि करवाएं। उसके बाद पंच बलि निकालें। गाय, कुत्ता, कौवा, चींटी और देव के लिए निकाला गया भोज्य प्रसाद पंचबलि कहलाता है। उसके बाद आपके पूर्वजो की तस्वीरों के सामने धूपबत्ती, पुष्प, दीपक आदि रखकर थोड़ा सा भोज्य प्रसाद रख दें। हाँथ जोड़कर उनकी सदगति और ईश्वर के शरण में जाने की प्रार्थना करें। फिर ब्राह्मण को भोजन कराकर वस्त्र, अनाज, दक्षिणा आदि दान देकर विदा करें।

संध्या काल में पितरों के लिए पंच दीपों का दान करें। घर के पूजा स्थल, तुलसी के पास, रसोई के जल स्थान के पास, घर की दक्षिण दिशा और पश्चिम दिशा पर एक घी या तेल का दीपक रखें। शिवालय जाकर शिवलिंग पर काले तिल मिश्रित जल से अभिषेक करें। संध्याकाल में यदि मन्दिर के पास पीपल वृक्ष हो तो वहां भी एक दीपक जलाएं। पितरों की सदगति, मुक्ति और ऊर्ध्वगति के लिए प्रार्थना करें। इस प्रकार सर्वपितृ अमावस्या पर श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण करने से पितरों का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।

02. वर्ष 2024 में कब है सर्वपितृ अमावस्या?

हमारे पंचांगों के अनुसार अश्विन मास की अमावस्या तिथि दिनांक 01 अक्टूबर 2024 को रात 09 बजकर 39 मिनट पर प्रारम्भ होगी, जो 03 अक्टूबर 2024 को सुबह 12 बजकर 18 मिनट पर समाप्त होगी। इस कारण उदयातिथि के अनुसार अमावस्या का कर्म दिनांक 02 अक्टूबर 2024 को होगा।

03. पूजन का मुहूर्त कब है?

कुतुप मुहूर्त- 11:45 प्रातः से दोपहर 12:24 मिनट तक।
रौहिण मुहूर्त- 12:34 दोपहर से 01:34 दोपहर तक।
अपराह्न काल- 01:21 दोपहर से 03:43 दोपहर तक।

अमावस्या और सूर्यग्रहण का संबंध

इस वर्ष पितृ अमावस्या पर सूर्यग्रहण का साया मंडरा रहा है। सूर्य ग्रहण 01 अक्टूबर को रात में 09:40 से 02 अक्टूबर की मध्य रात्रि 03:17 मिनट तक रहेगा। हालांकि यह सूर्य ग्रहण रात में लगेगा इसलिए भारत में यह दिखाई नहीं देगा। अतः सूतक आदि मान्य नहीं होगा। ऐसे में सर्व पितृ अमावस्या पर सूर्य ग्रहण के कारण तर्पण और श्राद्ध कर्म में कोई निषेध नहीं होगा।

आशा करती हूँ कि पाठकों को जानकारी उपयोगी लगी होगी। कृपया कमेंट के ज़रिए अपनी महत्वपूर्ण राय दें।

धन्यवाद और आभार।

-ऐस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव

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Sarvapitri Amavasya 2024 (Hindi & English)

In our Hindu calendar, the period of 16 days from the full moon date of Bhadrapada month to the new moon date of Ashwin month is called Pitru Paksha. In these 16 days, we perform various rituals such as Tarpan, Shradh, Pinddaan etc. in honor of our ancestors and forefathers. Those who know the date of death of their deceased mother, father, grandmother, grandfather or siblings, perform Pitru Karma on that day. For those who do not know the date of death of their relatives, the Amavasya date has been prescribed for Pinddaan, Tarpan, Shradh etc. This Amavasya is called Sarvapitri Amavasya because those who do not have the ability to perform Pitru Karma for all sixteen days, can perform Pitru Karma only on one Amavasya day.

Apart from this, those who do not know the date of death of their dead relatives can also perform Shradh, donation and tarpan for their ancestors on the day of Sarvapitre Amavasya. In fact, Sarvapitre Amavasya is the day of farewell of ancestors. It is the day of immersing them and sending them back to their world. Therefore, the importance of this date increases a lot. This day is also called Mahalaya. After the farewell of ancestors, the celebration of the arrival of Mother Bhagwati Durga on earth begins.

01. How to do Pitru Visarjan?

On the day of Amavasya, wake up early in the morning, finish your daily chores and clean the house. Then sprinkle Gangajal on the threshold of the house and apply a paste of sandalwood mixed with fragrance. After bathing, the women of the house should prepare the dishes liked in your house in the kitchen. Include kheer and puri in the dishes. Then invite a qualified Brahmin to the house and get havan, pujan, pind, tarpan etc. done for the ancestors. After that, take out Panch Bali. The food prasad offered to cow, dog, crow, ant and god is called Panch Bali. After that, keep incense sticks, flowers, lamps etc. in front of the pictures of your ancestors and keep some food prasad. With folded hands, pray for their salvation and going to the shelter of God. Then feed the Brahmin and send him off by donating clothes, grains, dakshina etc.

In the evening, donate Panch Deeps for the ancestors. Place a ghee or oil lamp at the place of worship in the house, near Tulsi, near the water place in the kitchen, in the south and west direction of the house. Go to the Shiva temple and perform Abhisheka on the Shivling with water mixed with black sesame seeds. In the evening, if there is a Peepal tree near the temple, then light a lamp there as well. Pray for the salvation, liberation and upward movement of the ancestors. In this way, by performing Shradh, Pinddaan and Tarpan on Sarvapitri Amavasya, one gets the special blessings of the ancestors.

02. When is Sarvapitri Amavasya in the year 2024?

According to our Panchangs, the Amavasya date of Ashwin month will start on 01 October 2024 at 09:39 pm, which will end on 03 October 2024 at 12:18 am. Therefore, according to Udayatithi, the Amavasya ritual will be performed on 02 October 2024.

03. When is the auspicious time for worship?

Kutup Muhurta- 11:45 am to 12:24 pm.
Rohin Muhurta- 12:34 pm to 01:34 pm.
Afternoon Kaal- 01:21 pm to 03:43 pm.

 

Relation between Amavasya and Solar Eclipse

This year, the shadow of solar eclipse is looming on Pitru Amavasya. The solar eclipse will last from 09:40 pm on October 01 to 03:17 midnight on October 02. Although this solar eclipse will occur at night, it will not be visible in India. Therefore, Sutak etc. will not be valid. In such a situation, there will be no prohibition in Tarpan and Shradh rituals due to solar eclipse on Sarva Pitru Amavasya.

I hope the readers found the information useful. Please give your important opinion through comments.

Thanks and gratitude.

-Astro Richa Srivastava

पितृपक्ष 2024(Hindi & English)

पितृपक्ष 2024(Hindi & English)

हमारे सनातन धर्म में पितरों की मुक्ति, उनकी प्रसन्नता हेतु किये जाने वाले कर्मों का एक बहुत ही लंबा विधान है। हमारे भारतीय वांग्मय में पितरों के प्रति सम्मान, उनकी मुक्ति और उनकी प्रसन्नता के लिए किए जाने वाले कार्य हमारे दैनिक जीवन की दिनचर्या में शामिल रहते हैं।

हमारे सभी संस्कारों में पितरों हेतु किये गए सभी विधानों को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। हमारी भारतीय संस्कृति में पितरों को देवताओं के ही समकक्ष रखा गया है। लगभग सभी पुराणों, विशेषकर गरुण पुराण में पितरों की महिमा का वर्णन है, पूरा पुराण उन्हें ही समर्पित है। सूक्ष्म जगत में एक पूरा लोक यानी पितृलोक ही उनके लिए मौजूद है।

हम सभी मनुष्यों पर अपने पितरों का ऋण होता है, उससे मुक्ति के लिए प्रत्येक मनुष्य का पितरों का श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण करना बहुत आवश्यक होता है। पितरों के आशीर्वाद के अभाव में इहलोक में हमें सुख-सम्पन्नता और शांति नहीं प्राप्त हो सकती है। यहां तक कि स्वयं भगवान श्रीहरि विष्णुजी के अवतारों में भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण तक नें अपने पूर्वजों और पितरों के लिए पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध आदि किये हैं। इसके महात्म्य को देखते हुए हमारे मनीषियों ने वर्ष के 15 दिनो के पक्ष को पितरों के निमित्त समर्पित कर दिया।

वर्ष 2024 में कब है पितृपक्ष?

हिन्दू पञ्चाङ्ग के अनुसार इस वर्ष पितृपक्ष बुधवार, दिनांक 18 सितंबर, पूर्णिमा तिथि से प्रारम्भ हो रहा है, जोकि दिनांक 02 अक्टूबर, दिन सोमवार, अमावस्या तिथि तक चलेगा। कुछ विद्वान ज्योतिषियों के अनुसार चूंकि पूर्णिमा तिथि का प्रारम्भ 17 सितंबर, दोपहर से हो रहा है, और सूर्य की कन्या राशि में संक्रांति भी 17 सितम्बर को हो रही है तो पितृपक्ष की शुरुआत 17 सितंबर को ही मानी जायेगी। लेकिन उदया तिथि के अनुसार 18 सितंबर को ही पितृ पक्ष की शुरुआत सर्वमान्य है। हालांकि जिनके परिजन पूर्णिमा तिथि को स्वर्गलोक सिधारे, वे 17 और 18 दोनों दिन पिंडदान, तर्पण, विसर्जन कर सकते हैं।

क्या होता है पितृपक्ष?

श्रीमदभागवत पुराण, ब्रह्मपुराण और गरुड़ पुराण के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि से लेकर अमावस्या तिथि तक जो 16 दिनों का पक्ष होता है उसे पितृपक्ष या श्राद्धपक्ष बोला जाता है।

शास्त्रों के अनुसार इस समय सूर्य कन्या राशि में होते हैं इसलिए इस समय को कनागत भी बोला जाता है। कहा जाता है कि इन दिनों में मृत परिजन अपने सूक्ष्म रूप में मृत्यु लोक में अपने वंशजों से मिलने के लिए आते हैं। और जब उनके वंशज उनके निमित्त कोई दान, पुण्य, पूजन और तर्पण करते हैं तो वह बहुत प्रसन्न हो जाते हैं और उनको आशीर्वाद देकर अमावस्या के दिन वापस अपने लोक को लौट जाते हैं।

क्या होता है तर्पण?

जल जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है, चाहे वह स्थूल जगत हो या सूक्ष्म जगत, जल से ही मुक्ति का मार्ग खुलता है। ऐसे में पितृपक्ष में प्रतिदिन पितरों को काला तिल मिश्रित जल अर्पित किया जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जल से पितरों को तृप्ति मिलती है। जल अर्पण की भी एक विशेष विधि होती है।

श्राद्ध क्या होता है?

हमारे पूर्वज किसी भी महीने की जिस तिथि को मृत्यु को प्राप्त होते हैं, उसी तिथि को पितृपक्ष में अपनी श्रद्धानुसार उनके निमित्त दान पुण्य और हवन किये जाते हैं, और खास रूप में उन पूर्वजो के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान किया जाता है। श्राद्ध का उद्देश्य पितरों को उनके प्रति अपनी श्रद्धा और सम्मान प्रकट करके, उनसे आशीर्वाद प्राप्त करना है।

क्या हैं पितृ पक्ष के सरल उपाय?

पत्रिकाओं और सोशल मिडिया में पढ़ने में आता है कि लोग अपने जीते जागते अपने माता पिता का, घर के बड़े बुजुर्गों का अनादर और तिरस्कार करते हैं, मगर उनके मरणोपरांत पूरे आडम्बर से पितृ पूजन और भोज आदि आयोजित करवाते हैं। सच पूछा जाए तो कुछ हद तक बात सही भी है। मगर दूसरा पक्ष ये भी है श्राद्ध और तर्पण को क्यों न हम एक प्रायश्चित समझकर करें, हमारे उन पूर्वजों के प्रति, जिनका हम ऋण चुकता ना कर सके और जाने अनजाने में हमने उनकी उपेक्षा और तिरस्कार किया। एक तरह से यह हमारा आभार प्रकटी करण भी है, हमारे उन पूर्वजों के प्रति, जिनके आज हम वंशज हैं। देखा जाय तो श्राद्ध शब्द श्रद्धा से उपजा है, अतः हम अधिक आडम्बर न करते हुए, श्रद्धा स्वरुप पितरों का ध्यान करते हुए सामर्थ्य अनुसार जो कुछ भी दान-भोज तर्पण करें तो उसका भी पूर्ण फल प्राप्त होगा।

क्या है उत्तम विधि?

01. प्रतिदिन किसी साफ़ लोटे से, दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके जल में काले तिल डालकर अपने पितरों का ध्यान करते हुए, सिर के ऊपर तक लोटा उठाते हुए अर्घ्य दें।

02. प्रतिदिन अपने भोजन की थाली में से खाने से पूर्व प्रत्येक पदार्थ का थोडा सा हिस्सा अलग प्लेट में निकाल लें। और छत या बारजे पर रख दें।

03. यदि घर के एक पीढ़ी पूर्व के मृतक की मृत्यु की तारीख याद है तो कैलेण्डर से उस दिन की हिन्दू तिथि ज्ञात कर लें फिर पितृपक्ष में उक्त तिथि किस दिनांक को पड़ रही है यह ज्ञात कर लें। फिर पितरों को जल अर्घ्य देने के बाद गाय, कुत्ता व कौवा के लिए रोटी, बिस्कुट या ब्रेड रख लें। उस दिन थोडा कष्ट उठाते हुए उन्हें ढूंढ कर खिलाएं। कौवा के लिए खाना छत या बारजे पर रख दें। कोई आवश्यक नहीं कि कौआ ही खाद्य सामग्री ग्रहण करे, कौवे के स्थान पर कोई भी पक्षी हो सकता है। यदि आपको तिथि ज्ञात नहीं है तो यह उपाय सर्व पितृ अमावस्या के दिन करें।

04. पुण्य तिथि या अमावस्या वाले दिन किसी एक गरीब, ज़रूरत मंद व्यक्ति को यथाशक्ति भोजन या भोजन सामग्री ज़रूर प्रदान करें। साथ में पानी की एक बोतल देना अनिवार्य है। गरीब मजदूर, या भिखारी को भी दान, भोजन आदि दिया जा सकता है।

05. श्रीमद्भागवत गीताजी का 07वां अध्याय पूरी तरह से पितरों की मुक्ति, उनकी प्रसन्नता से सम्बंध रखता है। जो लोग पूरी व्यवस्था से श्राद्ध आदि नहीं कर सकते हैं, वह कम से कम 16 दिनों तक गीताजी के सातवें अध्याय का पाठन संकल्प के साथ करें।

क्या है ज्योतिषीय उपचार?

आपकी लग्न कुंडली में शनि अथवा राहू-केतु भाव अनुसार पितृदोष उत्पन्न करते हैं। कौआ, कुत्ता, गरीब मजदूरों और भिखारी के ये तीनों ग्रह कारक या प्रतिनिधि ग्रह हैं। अतः पितृपक्ष में इन उपायों को करने से पितृदोष की शान्ति होती है। (दोष दूर नहीं होते) यहाँ एक आवश्यक बात भी बताना चाहूंगी कि अक्सर लोग सोचते हैं कि यदि हमारे माता-पिता जीवित हैं तो हम पितृपक्ष क्यों मनाएं?? जबकि यह एक भ्रान्ति है। दूसरी भ्रान्ति यह है कि लडकियाँ श्राद्ध नहीं कर सकतीं हैं। मेरे नज़रिए से सभी श्राद्ध कर सकते हैं क्योंकि यह तो हमारा अपने पूर्वजों के लिए श्रद्धा का एक विषय है।

जिनके माता-पिता जीवित हों, वह ददिहाल पक्ष और ननिहाल पक्ष के पूर्वजों के लिए श्राद्ध सम्बन्धी उपर्युक्त उपाय करें। अविवाहित लडकियाँ अपने पिता के पूर्वजों के लिए उपर्युक्त उपाय करें। जबकि विवाहिताएं अपने श्वसुर कुल और मायके दोनों पक्ष के पूर्वजों के लिए कर सकतीं हैं।

ज्योतिषीय दृष्टिकोण से देखा जाए तो, गेहूं की रोटी सूर्य ग्रह कारक, पीली दाल, हल्दी, कढ़ी गुरु ग्रह कारक, हरी सब्जी बुध ग्रह कारक, मिठाई मंगल ग्रह कारक, खीर और दही शुक्र ग्रह कारक, उड़द के बड़े शनि ग्रह कारक, जल चन्द्रमा ग्रह के कारक हैं। इन सबका उत्तम दान सभी नवग्रहों का भी आशीष दिलवाता है। अतः आप सभी इन सरल उपायों को अपनाएँ और अपने पितरों का आशीष प्राप्त करके अपने जीवन को सुखी बनाएं।

– ज्योतिषाचार्य ऋचा श्रीवास्तव

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Pitru Paksha 2024 (Hindi & English)

In our Sanatan Dharma, there is a very long law of the deeds done for the liberation of ancestors, their happiness. In our Indian literature, respect for ancestors, their liberation and the deeds done for their happiness are included in the routine of our daily life.

In all our rituals, all the rules done for ancestors have been considered very important. In our Indian culture, ancestors have been kept at par with gods. The glory of ancestors is described in almost all the Puranas, especially Garun Purana, the entire Purana is dedicated to them. In the subtle world, a whole world i.e. Pitralok exists for them.

All of us humans have a debt to our ancestors, for liberation from that, it is very important for every human being to perform Shradh, Pinddaan and Tarpan of ancestors. In the absence of the blessings of ancestors, we cannot get happiness, prosperity and peace in this world. Even Lord Shri Ram and Shri Krishna, the incarnations of Lord Vishnu, have performed Pinddaan, Tarpan, Shradh etc. for their forefathers and forefathers. Keeping in view its significance, our sages have dedicated 15 days of the year to the ancestors.

When is Pitru Paksha in the year 2024?

According to the Hindu calendar, this year Pitru Paksha is starting from Wednesday, September 18, Purnima Tithi, which will continue till October 02, Monday, Amavasya Tithi. According to some learned astrologers, since the Purnima Tithi is starting from September 17, afternoon, and the Sun’s Sankranti in Virgo is also happening on September 17, so the beginning of Pitru Paksha will be considered on September 17 itself. But according to Udaya Tithi, the beginning of Pitru Paksha on September 18 is universally accepted.

However, those whose relatives went to heaven on Purnima Tithi, they can do Pinddaan, Tarpan, Visarjan on both 17 and 18 days.

What is Pitru Paksha?

According to Shrimad Bhagwat Purana, Brahma Purana and Garuda Purana, the 16-day period from the full moon date of Ashwin month to the new moon date is called Pitru Paksha or Shradh Paksha.

According to the scriptures, at this time the Sun is in Virgo, so this time is also called Kanagat. It is said that during these days the dead relatives come in their subtle form to meet their descendants in the mortal world. And when their descendants do any charity, good deeds, worship and tarpan on their behalf, they become very happy and after blessing them, they return to their world on the day of Amavasya.

What is Tarpan?

Water is very important for life, whether it is the gross world or the subtle world, the path to salvation opens with water. In such a situation, water mixed with black sesame is offered to the ancestors every day in Pitru Paksha, because it is believed that the ancestors get satisfaction from water. There is a special method of offering water.

What is Shradh?

On the date of our ancestors in any month, on the same date in Pitru Paksha, charity and havan are performed for them according to our faith, and especially charity is done by feeding Brahmins for those ancestors. The purpose of Shradh is to express our faith and respect towards the ancestors and to get their blessings.

What are the simple remedies for Pitru Paksha?

It is read in magazines and social media that people disrespect and despise their parents and elders of the house while they are alive, but after their death they organize Pitru Poojan and feast etc. with great pomp. If truth be told, this is true to some extent. But the other side is also that why don’t we consider Shradh and Tarpan as a penance for those ancestors whose debt we could not repay and knowingly or unknowingly we ignored and despised them. In a way, this is also our expression of gratitude towards our ancestors, whose descendants we are today. If we see, the word Shraddha has originated from Shraddha, so without much pomp, if we meditate on our ancestors with devotion and offer whatever donations, food and tarpan as per our capacity, we will get the full benefit of that too.

What is the best method?

01. Every day, facing south, put black sesame seeds in water from a clean pot and meditate on your ancestors, lifting the pot up to your head and offer water.

02. Every day, before eating, take out a little portion of each item from your plate of food in a separate plate. And keep it on the roof or balcony.

03. If you remember the date of death of a person who died a generation ago, then find out the Hindu date of that day from the calendar, then find out on which date the said date is falling in Pitru Paksha. Then after offering water to the ancestors, keep roti, biscuit or bread for cow, dog and crow. On that day, take some trouble and find them and feed them. Keep food for the crow on the roof or balcony. It is not necessary that only the crow should eat the food, any bird can be in place of the crow. If you do not know the date, then do this remedy on the day of Sarva Pitru Amavasya.

04. On Punya Tithi or Amavasya day, provide food or food material to a poor, needy person as per your capability. It is mandatory to give a bottle of water along with it. Donation, food etc. can also be given to a poor labourer or a beggar.

05. The 7th chapter of Shrimadbhagwat Geeta is completely related to the salvation of ancestors and their happiness. Those who cannot perform Shraadh etc. with complete rituals, should read the 7th chapter of Geeta for at least 16 days with determination.

What is the astrological remedy?

In your Lagna Kundali, Saturn or Rahu-Ketu creates Pitra Dosh according to the house. These three planets are the causative or representative planets of crow, dog, poor labourers and beggars. Hence, by doing these remedies in Pitra Paksha, Pitra Dosh is pacified. (Doshas are not removed) Here I would like to tell one important thing that often people think that if our parents are alive then why should we celebrate Pitra Paksha?? Whereas this is a misconception. The second misconception is that girls cannot perform Shradh. From my point of view, everyone can perform Shradh because it is a matter of our reverence for our ancestors.

Those whose parents are alive, should perform the above remedies related to Shradh for the ancestors of Dadihal side and Nanihal side. Unmarried girls should perform the above remedies for their father’s ancestors. Whereas married women can do it for the ancestors of both their father-in-law’s family and maternal side.

If seen from the astrological point of view, wheat roti is a factor of Sun, yellow dal, turmeric, curry is a factor of Jupiter, green vegetables are a factor of Mercury, sweets are a factor of Mars, kheer and curd are a factor of Venus, urad dal is a factor of Saturn, water is a factor of Moon. The good donation of all these gets you the blessings of all the Navgrahas as well. So all of you should adopt these simple remedies and make your life happy by getting the blessings of your ancestors.

– Astrologer Richa Shrivastava

अनन्त चतुर्दशी का व्रत और महात्म्य(Hindi & English)

अनन्त चतुर्दशी का व्रत और महात्म्य(Hindi & English)

हमारे देश में विशेष तौर पर उत्तर भारत में अनन्त चतुर्दशी का त्यौहार पूरी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह त्यौहार मूलतः भगवान श्रीहरि विष्णुजी को समर्पित है। इस दिन लोग सुख, सौभाग्य और स्वास्थ्य की रक्षा और जीवन में शान्ति के लिए भगवान अनन्त यानि श्रीहरि विष्णुजी का व्रत और पूजन करते हैं। इस दिन प्रातः काल के समय ही व्रत का संकल्प लिया जाता है। फिर इस पर्व का पूजन दोपहर में किया जाता है। इसमें भगवान श्री हरी विष्णुजी की पीले फूल, फल, मिठाई, पीले अक्षत, धूप-दीप और नैवेद्य द्वारा पंचोपचार पूजन करके, उनके समक्ष 14 ग्रंथि युक्त अनन्त सूत्र जो कि बाजार में पीले धागे या चांदी के रूप में मिलता है, वह रखा जाता है। फिर भगवान से सुख, समृद्धि और शान्ति की कामना की जाती है। लोग पूजन के बाद कथा का श्रवण करते हैं और अनन्त सूत्र को अपनी बाँह में बांधते हैं। फिर ब्राह्मणदेव को उत्तम दान-दक्षिणा देकर स्वयं बिना नमक का भोजन करते हैं।

01. कब मनाई जाती है अनन्त चतुर्दशी?

प्रत्येक वर्ष के भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनन्त चतुर्दशी मनाई जाती है। इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णुजी के अनन्त रूप की पूजा की जाती है।

02. क्यों मनाई जाती है अनन्त चतुर्दशी?

अग्नि पुराण में अनन्त चतुर्दशी व्रत के महत्व का वर्णन किया गया है। इसे भगवान श्रीहरि विष्णुजी के अनन्त अवतरण के रूप में भी देखा जाता है। सृष्टि के प्रारम्भ में जब ब्रह्माजी ने पृथ्वी सहित 14 लोकों की रचना की तब उन लोकों का पालन करने के लिए विष्णु भगवान ने 14 रूपों का विस्तार लिया था, जिसके कारण उनके आदि-अंत का ज्ञान नहीं हो पा रहा था और वह अनन्त रूप में दिख रहे थे। उस दिन भाद्रपद मास की चतुर्दशी तिथि थी। इसलिए इस दिन का नाम अनन्त चतुर्दशी पड़ा।

03. अनन्त चतुर्दशी पर्व की शुरुआत हुई कब से हुई?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महाभारत काल से अनन्त चतुर्दशी व्रत करने की शुरुआत हुई। ऐसा कहा जाता है कि जब पांडव जुए में अपना सर्वस्व हारकर जंगलो और वनों में भटक रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण उनसे मिलने आये। पांडवों की दुर्दशा देखकर भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें भगवान श्रीहरी विष्णुजी के अनन्त रूप की पूजा करने की सलाह दी। तब युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा कि अनन्त भगवान कौन हैं ? तब श्रीकृष्ण ने बताया कि यह भगवान श्रीहरि विष्णुजी के ही रूप हैं। चतुर्मास में भगवान श्रीहरि विष्णुजी शेषनाग की शैय्या पर अनन्त शयन में रहते हैं। अनन्त भगवान ने ही वामन अवतार में 2 पग में 3 लोक नाप लिए थे, जिनके ना आदि का पता चलता है और ना अंत का। यह सुनकर पांडवों ने सपरिवार पूरे विधि-विधान से व्रत पूजन किया। जिसके परिणाम स्वरूप वे लोग महाभारत युद्ध में विजय को प्राप्त हुए और उन्हें उनका राजपाट वापस मिला। इसलिए यह पर्व भगवान श्रीहरि विष्णुजी को प्रसन्न करने और अनन्त फल देने वाला माना गया है। इस दिन व्रत रखकर श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करने से अनन्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। सुख, सम्पदा, धन-धान्य, सन्तान आदि में वृद्धि होती है।

04. वर्ष 2024 में कब है अनन्त चतुर्दशी का व्रत?

वर्ष 2024 में अनन्त चतुर्दशी का व्रत शुभ दिन मंगलवार, दिनांक 17 सितंबर को है। तथा पूजन मुहूर्त प्रातः 06 बजकर 07 मिनट से दिन में 11:46 मिनट तक रहेगा।

05. क्या है अनन्त चतुर्दशी व्रत की कथा?

प्राचीन काल में सुमन्तु नामक ऋषि हुए थे जिनकी अत्यंत गुणवती शीला नाम की पुत्री थी जो की परम् श्रीहरि विष्णुजी की भक्त थी। उसका विवाह भी भगवान विष्णु भक्त कौण्डिन्य मुनि से हुआ। शीला सदैव भाद्र पद की चतुर्दशी को भगवान अनन्त नारायण का पूजन कर उनके 14 रूपों के प्रतीक के रूप में पीले रंग के धागे में 14 गांठें लगाकर अपने हाथ में पहन लेती थी। इससे उसके घर में सुख सौभाग्य की वृद्धि होने लगी और उनका जीवन सुखमय हो गया। एक बार क्रोधवश ऋषि कौण्डिन्य ने अपनी धर्मपत्नी शीला के हाथ का मंगलसूत्र तोड़कर फेंक दिया था। उस दिन के बाद से उनके घर में दुःख और दुर्भाग्य ने अपना डेरा डाल लिया। एक बार अत्यंत दुःख और विपन्नावस्था में ऋषि कौण्डिन्य वन में गए और भगवान श्रीहरि विष्णुजी की तपस्या करने लगे। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान प्रकट हुए और अनन्त चतुर्दशी की व्रत उपासना का महात्म्य समझाकर पूजन पुनः शुरू करने का आदेश दिया। घर लौटकर ऋषि कौण्डिन्य ने पत्नी शीला के साथ भली भांति पूजन किया, और खोये हुए सुख सौभाग्य की प्राप्ति की। अनन्त चतुर्दशी के दिन ही गणेश मूर्ति विसर्जन किया जाता है, इसलिए भी इस पर्व का महत्व और भी बढ़ जाता है।

– ज्योतिषाचार्य ऋचा श्रीवास्तव

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Anant Chaturdashi Vrat and Significance (Hindi & English)

In our country, especially in North India, the festival of Anant Chaturdashi is celebrated with full devotion. This festival is basically dedicated to Lord Shri Hari Vishnu. On this day, people observe fast and worship Lord Anant i.e. Shri Hari Vishnu for happiness, good fortune, protection of health and peace in life. On this day, the resolution of fasting is taken in the morning itself. Then the worship of this festival is done in the afternoon. In this, Panchopchar worship of Lord Shri Hari Vishnu is done with yellow flowers, fruits, sweets, yellow rice, incense sticks and offerings, and in front of him, the Anant Sutra with 14 knots, which is available in the market in the form of yellow thread or silver, is kept. Then the Lord is prayed for happiness, prosperity and peace. After the worship, people listen to the story and tie the Anant Sutra on their arm. Then after giving excellent donations to the Brahmin, they themselves eat food without salt.

01. When is Anant Chaturdashi celebrated?

Anant Chaturdashi is celebrated on the Chaturdashi date of Shukla Paksha of Bhadrapada month every year. On this day, the Anant form of Lord Shri Hari Vishnu is worshipped.

02. Why is Anant Chaturdashi celebrated?

The importance of Anant Chaturdashi fast has been described in Agni Purana. It is also seen as the infinite incarnation of Lord Shri Hari Vishnu. In the beginning of creation, when Brahmaji created 14 worlds including the earth, then Lord Vishnu took 14 forms to look after those worlds, due to which his beginning and end could not be known and he was seen in infinite form. That day was Chaturdashi Tithi of Bhadrapada month. Therefore, this day was named Anant Chaturdashi.

03. When did the Anant Chaturdashi festival begin?

According to mythological beliefs, the Anant Chaturdashi fast started from the Mahabharata period. It is said that when the Pandavas were wandering in the jungles and forests after losing everything in gambling, Lord Krishna came to meet them. Seeing the plight of the Pandavas, Lord Krishna advised them to worship the Anant form of Lord Vishnu. Then Yudhishthira asked Lord Krishna who is Anant Bhagwan? Then Lord Krishna told that this is the form of Lord Vishnu. In Chaturmas, Lord Vishnu rests in Anant Shayyan on the bed of Sheshnag. Anant Bhagwan had measured 3 worlds in 2 steps in the Vamana avatar, whose beginning and end are not known. Hearing this, the Pandavas along with their families performed the fast and worship with full rituals. As a result, they won the Mahabharata war and got their kingdom back. Therefore, this festival is considered to please Lord Vishnu and give infinite fruits. By fasting on this day and reciting Shri Vishnu Sahasranama Stotra, infinite desires are fulfilled. There is an increase in happiness, wealth, money, children etc.

04. When is Anant Chaturdashi fast in the year 2024?

In the year 2024, the auspicious day for Anant Chaturdashi fast is Tuesday, 17 September. And the puja muhurta will be from 06:07 am to 11:46 pm.

05. What is the story of Anant Chaturdashi Vrat?

In ancient times, there was a sage named Sumantu who had a very talented daughter named Sheela who was a devotee of Param Shri Hari Vishnu. She was also married to Lord Vishnu devotee Koundinya Muni. Sheela always worshipped Lord Anant Narayan on the Chaturdashi of Bhadrapad and used to wear a yellow thread with 14 knots as a symbol of his 14 forms on her hand. Due to this, happiness and good fortune started increasing in her house and their life became happy. Once, in anger, Sage Koundinya broke the mangalsutra from the hand of his wife Sheela and threw it away. From that day onwards, sorrow and misfortune camped in their house. Once in great sorrow and misery, Sage Koundinya went to the forest and started doing penance of Lord Shri Hari Vishnu. Pleased with his penance, God appeared and explained the significance of fasting and worship on Anant Chaturdashi and ordered him to restart the worship. Returning home, Sage Kaundinya performed the worship properly with his wife Sheela, and regained the lost happiness and good fortune. Ganesh idol is immersed on the day of Anant Chaturdashi, hence the importance of this festival increases even more.

– Astrologer Richa Srivastava

श्री गणेश चतुर्थी 2024(Hindi & English)

श्री गणेश चतुर्थी 2024(Hindi & English)

हमारे सनातन धर्म में सर्वप्रथम पूजनीय श्री गणेश जी के पूजन का विस्तृत विधान है। गणेश, गजानन या गणपति के श्रीपूजन और आह्वान के मंत्रों का वेदों में भी वर्णन है। मूलतः श्रीगणपति पंच वैदिक देवों में से एक माने जाते हैं। हमारे सनातन धर्म में किसी भी मांगलिक कार्य का शुभारंभ सर्वप्रथम श्रीगणेश पूजन से ही किया जाता है। ये सभी देवों में सर्वप्रथम पूजनीय हैं। अतः किसी शुभ कार्य के आरंभ को “श्री गणेश करना” भी कहते हैं।

भविष्य पुराण में यह कहा गया है कि जब-जब मनुष्य भारी संकट और कष्ट में हो, या निकट भविष्य में किसी बड़ी विपदा की आशंका हो तो उसे चतुर्थी के व्रत करने चाहिए। इस व्रत को करने से सभी कष्ट दूर होकर, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

क्यों मनाते हैं गणेश चतुर्थी?

कहा जाता है कि इंद्रदेव की पत्नी देवी रति द्वारा दिये गए श्राप के कारण देवी पार्वती अपने गर्भ से संतान को जन्म नहीं दे सकतीं थीं। अतः जब शिव ध्यानावस्था में कई वर्षों के लिए समाधि में चले गए तब पार्वती अपने एकांत के कारण घबरा उठीं। एक दिन वे उबटन स्नान कर रहीं थीं। तब शरीर से उतरे उबटन से उन्होंने एक बालक की आकृति बनाई और अपने योग शक्ति से उसमें प्राण डाल दिए। इस प्रकार गणेश जी का जन्मावतार हुआ। उस दिन भाद्रपद मास की चतुर्थी तिथि थी। तब से इस दिन को गणेश जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।

क्यों रखे जाते हैं 10 दिनों तक गणपति?

यह कथा महर्षि वेदव्यास के महाभारत लेखन से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि भाद्रपद मास की चतुर्थी तिथि से महर्षि वेदव्यास द्वारा प्रार्थना करने पर गणेश जी नें महाभारत के श्लोकों को लिपिबद्ध करना प्रारम्भ किया था। इस कार्य में उन्हें 10 दिन लगे थे। 10 दिनों तक लगातार एक ही मुद्रा में बैठे रहने से उनके शरीर पर धूल मिट्टी जम गई थी और शरीर मे अकड़न हो गयी थी। तब वे सरस्वती नदी में में स्नान करके स्वच्छ हुए। इस कार्य में उन्हें 10 दिन लगे थे। 10 दिनों तक लगातार एक ही मुद्रा में बैठे रहने से उनके शरीर पर धूल मिट्टी जम गई थी और शरीर मे अकड़न हो गयी थी। तब वे सरस्वती नदी में में स्नान करके स्वच्छ हुए। उस दिन अनन्त चतुर्दशी थी। तब से दस दिनों तक गणपति को विराजमान करा के ग्यारहवें दिन उनके विसर्जन की परिपाटी शुरू हुई।

आज भारत के कई राज्यों में बड़े बड़े पंडाल लगाकर गणेश जी की मूर्ति स्थापित करके बहुत ही धूमधाम से दस दिनों तक यह त्यौहार मनाने की परंपरा है। वर्ष 2024 में गणेश चतुर्थी दिन शनिवार, 7 सितंबर को मनाई जायेगी।

क्या है गणेश चतुर्थी व्रत की कथा?

सतयुग में नल नामक एक बहुत पराक्रमी राजा थे, जिनकी दमयंती नामक अत्यंत रूपवती पत्नी थी और एक बहुत आज्ञाकारी पुत्र भी था। राजा अपने परिवार में सभी सुखों को भोगते हुए कुशलता पूर्वक अपने राज काज में सलंग्न रहते थे। एक बार कालचक्र की विषम परिस्थितियों के कारण राजा का महल आग में जल गया और उन्हें पत्नी पुत्र सहित जंगल में दर-दर भटकना पड़ा। इसी क्रम में सभी एक दूसरे से बिछुड़ गए। रानी दमयंती भटकती हुई और विलाप करती हुई शरभंग ऋषि के आश्रम में जा पहुंची और करुण स्वर में अपनी व्यथा ऋषि को सुनाने लगी। तब ऋषि शरभंग नें उन्हें श्रीगणेश पूजन और व्रत का महात्म्य बताया और कहा कि गणेश जी तुम्हारे सभी कष्टों और दुखों को हर लेंगे। तब रानी में निराहार और निर्जल रहकर दस दिनों तक गणेश जी की पूजा उपासना की। इससे भगवान गणेश जी ने प्रसन्न होकर राजा रानी का राज पाट और सुख सौभाग्य वापस दिलवा दिया। तब से हमारी सनातन परंपरा में गणेशोत्सव की प्रथा प्रारम्भ हुई।

क्यों होता है गणेश चतुर्थी पर चन्द्र दर्शन का निषेध?

इसकी भी एक अद्भुत कथा है। एक बार भगवान गणेश अपने वाहन मूषक पर सवार होकर कहीं जा रहे थे। तभी रास्ते में मूषक के ठोकर खाने से गणेश जी गिर पड़े। यह देखकर चंददेव जोरों से हंस पड़े और मजाक उड़ाने लगे। तब गणेश जी नें चन्द्र देव को श्राप दिया कि भादो शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि को जो भी चन्द्र दर्शन करेगा, उसे चोरी के झूठे कलंक का सामना करना पड़ेगा। कहा जाता है कि महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण पर स्यमन्तक मणि के चोरी करने का झूठा आरोप लगा था। क्योंकि उन्होंने चतुर्थी तिथि के चन्द्र का दर्शन कर लिया था।तब नारद ऋषि नें उन्हें बताया कि गणेश चतुर्थी व्रत करने से आप कलंक मुक्त हो जाएंगे। तब भगवान श्री कृष्ण ने भी गणेश चतुर्थी पूजन की प्रथा प्रारम्भ की थी।

– ज्योतिषाचार्य ऋचा श्रीवास्तव

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Shri Ganesh Chaturthi 2024 (Hindi & English)

In our Sanatan Dharma, there is a detailed ritual of worshiping Shri Ganesh ji, the most revered. The mantras of Shri Puja and invocation of Ganesh, Gajanan or Ganapati are also described in the Vedas. Basically, Shri Ganapati is considered one of the Panch Vedic Gods. In our Sanatan Dharma, any auspicious work is started first with the worship of Shri Ganesh. He is the first to be worshiped among all the gods. Therefore, the beginning of any auspicious work is also called “Shri Ganesh Karna”.

It is said in Bhavishya Purana that whenever a person is in great trouble and pain, or there is a possibility of a big disaster in the near future, then he should observe the fast of Chaturthi. By observing this fast, all the troubles are removed and Dharma, Artha, Kama and Moksha are attained.

Why do we celebrate Ganesh Chaturthi?

It is said that due to the curse given by Indradev’s wife Devi Rati, Goddess Parvati could not give birth to a child from her womb. So when Shiva went into meditation for many years, Parvati got worried due to her solitude. One day she was taking a bath with Ubtan. Then she made the shape of a child from the Ubtan that came off her body and breathed life into it with her yogic powers. Thus Ganesha was born. That day was the Chaturthi Tithi of Bhadrapad month. Since then, this day is celebrated as the birthday of Ganesha.

Why is Ganapati kept for 10 days?

This story is related to Maharishi Ved Vyas’ writing of Mahabharata. It is said that on the Chaturthi Tithi of Bhadrapad month, on Maharishi Ved Vyas’s prayers, Ganesh ji started writing the verses of Mahabharata. It took him 10 days to complete this work. Due to sitting in the same posture for 10 days, dust and dirt had accumulated on his body and his body had become stiff. Then he bathed in the Saraswati river and cleaned himself. It took him 10 days to complete this work. Due to sitting in the same posture for 10 days, dust and dirt had accumulated on his body and his body had become stiff. Then he bathed in the Saraswati river and cleaned himself. That day was Anant Chaturdashi. From then onwards, the tradition of keeping Ganapati seated for ten days and then immersing him on the eleventh day started.

Today, in many states of India, there is a tradition of celebrating this festival for ten days with great pomp by erecting large pandals and installing the idol of Ganesha. In the year 2024, Ganesh Chaturthi will be celebrated on Saturday, 7 September.

What is the story of Ganesh Chaturthi Vrat?

In Satyug, there was a very powerful king named Nala, who had a very beautiful wife named Damyanti and a very obedient son. The king used to enjoy all the comforts of his family and was skillfully engaged in his royal duties. Once due to the adverse circumstances of the time cycle, the king’s palace burned down in fire and he had to wander from door to door in the forest along with his wife and son. In this process, everyone got separated from each other. Queen Damyanti, wandering and lamenting, reached the ashram of Sharabhang Rishi and started telling her sorrow to the sage in a sad voice. Then Rishi Sharabhang told her the significance of Shri Ganesh worship and fasting and said that Ganesh ji will take away all your troubles and sorrows. Then the queen stayed without food and water and worshipped Ganesh ji for ten days. Lord Ganesh ji was pleased with this and got the king and queen back their kingdom and happiness and good fortune. Since then the tradition of Ganeshotsav started in our eternal tradition.

Why is Chandra Darshan prohibited on Ganesh Chaturthi?

There is a wonderful story behind this. Once Lord Ganesha was going somewhere on his vehicle, a mouse. Then Ganesha fell down after being hit by a mouse on the way. Seeing this, Chanddev started laughing loudly and started making fun of him. Then Ganesha cursed Chandra Dev that whoever sees Chandra on the Chaturthi Tithi of Bhado Shukla Paksha will have to face the false accusation of theft. It is said that during the Mahabharata period, Lord Krishna was falsely accused of stealing the Syamantaka Mani. Because he had seen the moon on Chaturthi Tithi. Then Sage Narad told him that by observing Ganesh Chaturthi fast, he will be free from the accusation. Then Lord Krishna also started the practice of Ganesh Chaturthi worship.

– Astrologer Richa Shrivastava

हर तालिका तीज व्रत महात्म्य- (Hindi & English) 

हर तालिका तीज व्रत महात्म्य- (Hindi & English)

उत्तर भारत में विवाहिता स्त्रियों के द्वारा किये जाने वाले सभी व्रत और उपवासों में से हरतालिका तीज व्रत प्रमुख व्रतों में से एक है। हालांकि इस व्रत को अविवाहित कन्याएं भी सुयोग्य वर की प्राप्ति हेतु करती हैं। विवाहित स्त्रियां इस व्रत को अपने पति और परिवार के दीर्घायु और समृद्धि में बढ़ोतरी के लिए करती हैं।

कब और क्यों किया जाता है हरतालिका तीज व्रत?

मान्यता है कि इस व्रत को सबसे पहले माता पार्वती नें भगवान शंकर को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या के रूप में किया था। हरतालिका तीज व्रत करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को किया जाता है। इस व्रत में माँ पार्वती और भगवान शिव की पूजा-उपासना की जाती है। उनसे अपने पति और परिवार के कल्याण की कामना की जाती है।

कैसे किया जाता है ये व्रत?

अनेक स्त्रियां इस दिन निर्जला उपवास रखती हैं। व्रत के एक दिन पहले से ही भोजन में मसाले, लहसुन, प्याज का त्याग कर दिया जाता है। फिर तीज वाले दिन स्त्रियाँ प्रातः काल से ही संकल्प लेकर 24 घण्टों का निर्जला उपवास रखती हैं। और प्रातः गणपति पूजन के साथ व्रत का प्रारम्भ करती हैं। इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके नवीन वस्त्र धारण करती हैं। और माँ पार्वती और शिव के पूजन हेतु विभिन्न मिष्ठान्नों का भोग तैयार करती हैं।
हरतालिका तीज की मुख्य पूजा संध्या को प्रदोष काल में की जाती है। सूर्यास्त के बाद के 2 घण्टों के समयावधि को प्रदोष काल कहते हैं। इस समय मंडप आदि बनाकर शिव पार्वती और गणेश को स्थापित किया जाता है। फिर फल, फूल, धूप, दीप, फल, मिष्टान्न, नैवेद्य ,वस्त्र, सोलह सिंगार और दक्षिणा आदि से षोडशोपचार पूजा की जाती है। कई स्थानों में रात्रि जागरण किया जाता है और गौरा, गणेश , शिव की रात्रि भर भजन, कीर्तन और उपासना की जाती है। दूसरे दिन पूजन , आरती के बाद देवताओं की विदाई की जाती है और व्रत का पारण किया जाता है।

2024 में कब है हरतालिका तीज व्रत?

हालांकि तृतीया तिथि 5 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 21 मिनट से प्रारम्भ हो रही, लेकिन सूर्योदय व्यापिनी उदया तिथि की मान्यता के कारण यह पर्व 6 सितंबर को मनाया जाएगा। चूंकि 6 सितंबर को दोपहर 3 बजे के बाद चतुर्थी तिथि प्रारम्भ हो जाएगी, इसलिए इस बार तीज पूजन मुहूर्त प्रातः 6 बजे से 9:30 तक रहेगा। लोग यदि चाहें तो शाम के पूजन के शुभ चौघड़िया मुहूर्त शाम 5 बजे से 6:36 तक के बीच भी पूजन कर सकते हैं। किंतु तीज पूजन के समय हस्त नक्षत्र की उपस्थिति अनिवार्य है, इसलिए इस बार प्रदोष पूजन के बजाय प्रातः पूजन अधिक महत्वपूर्ण है।

क्या है हरतालिका व्रत की पौराणिक कथा?

हरतालिका तीज व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था। हिमालय पर गंगा नदी के तट पर माता पार्वती ने भूखे-प्यासे रहकर तपस्या की। माता पार्वती की यह स्थिति देखकप उनके पिता हिमालय बेहद दुखी हुए। एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वती जी के विवाह का प्रस्ताव लेकर आए लेकिन जब माता पार्वती को इस बात का पता चला तो, वे विलाप करने लगी। एक सखी के पूछने पर उन्होंने बताया कि, वे भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप कर रही हैं। इसके बाद वे अपनी सखियों के साथ पिता का घर छोड़कर वन में चली गई और भगवान शिव की आराधना में लीन हो गई। चूंकि सखियां माता पार्वती को हर करके वन में ले गईं थीं, इस लिए इस व्रत का नाम हरतालिका तीज पड़ा।
इस दौरान भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन हस्त नक्षत्र में माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की आराधना में मग्न होकर रात्रि जागरण किया। माता पार्वती के कठोर तप को देखकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और पार्वती जी की इच्छानुसार उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
तभी से अच्छे पति की कामना और पति की दीर्घायु के लिए कुंवारी कन्या और सौभाग्यवती स्त्रियां हरतालिका तीज का व्रत रखती हैं और भगवान शिव व माता पार्वती की पूजा-अर्चना कर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
-ज्योतिषाचार्य ऋचा श्रीवास्तव

Hartalika Teej Vrat Mahatmya-

Among all the fasts and rituals performed by married women in North India, Hartalika Teej Vrat is one of the main fasts. However, unmarried girls also observe this fast to get a suitable groom. Married women observe this fast to increase the longevity and prosperity of their husband and family.

When and why is Hartalika Teej Vrat observed?

It is believed that this fast was first observed by Mother Parvati as a rigorous penance to get Lord Shankar as her husband. By observing Hartalika Teej Vrat, women get unbroken good fortune. This fast is observed on the Tritiya Tithi of Shukla Paksha of Bhadrapada month. In this fast, Mother Parvati and Lord Shiva are worshipped. They are prayed for the welfare of their husband and family.

How is this fast observed?

Many women observe Nirjala fast on this day. Spices, garlic and onion are avoided in food a day before the fast. Then on the day of Teej, women take a pledge from the morning itself and keep a waterless fast for 24 hours. And start the fast with Ganpati Puja in the morning. On this day, women do sixteen adornments and wear new clothes. And prepare various sweets for the worship of Mother Parvati and Shiva.
The main worship of Hartalika Teej is done in the evening during Pradosh Kaal. The time period of 2 hours after sunset is called Pradosh Kaal. At this time, Shiva, Parvati and Ganesha are installed by making a pavilion etc. Then Shodashopachar Puja is done with fruits, flowers, incense, lamps, fruits, sweets, offerings, clothes, sixteen decorations and Dakshina etc. Ratri Jagran is done in many places and Gauri, Ganesha, Shiva are worshipped throughout the night by bhajans, kirtans and prayers. On the second day, after worship and aarti, the deities are bid farewell and the fast is observed.

When is Hartalika Teej Vrat in 2024?

Although Tritiya Tithi is starting on 5th September at 12:21 pm, but due to the belief of Sunrise Vyapini Udaya Tithi, this festival will be celebrated on 6th September. Since Chaturthi Tithi will start after 3 pm on September 6, this time the Teej Pujan Muhurta will be from 6 am to 9:30 am. If people wish, they can also worship during the auspicious Chaughadiya Muhurta of evening worship from 5 pm to 6:36 pm. But the presence of Hasta Nakshatra is mandatory at the time of Teej worship, so this time morning worship is more important than Pradosh worship.

What is the mythological story of Hartalika Vrat?

Hartalika Teej Vrat is celebrated to commemorate the reunion of Lord Shiva and Mother Parvati. According to a mythological story, Mother Parvati did severe penance to get Lord Bholenath as her husband. Mother Parvati did penance by staying hungry and thirsty on the banks of river Ganga in the Himalayas. Seeing this condition of Mother Parvati, her father Himalaya became very sad. One day Maharishi Narada brought a proposal of marriage of Parvati ji from Lord Vishnu, but when Mother Parvati came to know about this, she started lamenting. When a friend asked, she told that she is doing hard penance to get Lord Shiva as her husband. After this, she left her father’s house with her friends and went to the forest and got engrossed in the worship of Lord Shiva. Since the friends had defeated Mother Parvati and taken her to the forest, this fast was named Hartalika Teej.
During this time, on the third day of Shukla Paksha in Bhadrapada, in Hasta Nakshatra, Mother Parvati made a Shivling from sand and kept awake the night, engrossed in the worship of Bholenath. Seeing the hard penance of Mother Parvati, Lord Shiva appeared before her and accepted her as his wife as per Parvati’s wish.
Since then, unmarried girls and married women keep the fast of Hartalika Teej to wish for a good husband and for the long life of the husband and get blessings by worshiping Lord Shiva and Mother Parvati.
-Astrologer Richa Srivastava

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी एक परिचय(Hindi & English)

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी एक परिचय(Hindi & English)

Om-Shiva

हर वर्ष भगवान श्री कृष्णजी का जन्म भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की शुभ अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। क्योंकि इस दिन भगवान श्री विष्णुजी के 16 कलाओं से युक्त पूर्णावतार ,भगवान श्री कृष्णजी ने धर्म की संस्थापना हेतु माता श्रीदेवकीजी के गर्भ से मथुरा नामक पावन नगरी में मानव रूप में अवतार लिया था। भगवान विष्णुजी के आठवें अवतार योगेश्वर भगवान श्री कृष्णजी का जन्म द्वापर युग के अंत में भाद्रपद मास की शुभ अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में एक भयानक राक्षस कंस के अत्याचारों से धरती माता को मुक्त कराने के लिए हुआ था। इसी उपलक्ष्य में हमारे सनातन धर्म में श्री कृष्ण जन्माष्टमी को एक प्रमुख त्योहार की दृष्टि से देखा जाता है, और सम्पूर्ण देश-दुनियां में बड़े हर्षोल्लास से इस त्यौहार को मनाया जाता है।

इस दिन समस्त मंदिरों में बड़ी मनमोहक सजावट की जाती है और लोग अपने घरों में भी झांकियां आदि सजाकर भगवान श्रीकृष्ण जी का जन्म कराते हैं और छप्पन भोग लगाकर अपनी पूजा उपासना करते हैं। तुलसी दल युक्त माखन, मिश्री, दूध दही, पंजीरी और रामदाने के लड्डू, फल इत्यादि भगवान श्री कृष्णजी के प्रिय भोग है।

इस वर्ष किस दिन है जन्माष्टमी?

वर्तमान वर्ष 2024 में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की शुभ तिथि दिनांक 26 अगस्त, दिन सोमवार को पड़ रही है। साथ में एक अत्यंत शुभ योग, जयंती योग एवं सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा। इस समय यदि भगवान श्री कृष्ण की पूजा उपासना की जायेगी तो अक्षय पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

पूजन का मुहूर्त?

इस बार 26 अगस्त को सुबह 3 बजकर 40 मिनट से अष्टमी तिथि शुरू होगी और 27 अगस्त को सुबह 02 बजकर 19 मिनट पर समाप्त होगी। दिनांक 26 अगस्त के सूर्योदय काल से ही व्रत का प्रारम्भ होगा और व्रत का पारण 27 अगस्त को सुबह 06 बजे के बाद होगा।

रात्रि पूजन मुहूर्त?

रात्रि 12:00 बजे से रात्रि 12:45 बजे तक।

अपनी जन्म चंद्र राशि अनुसार क्या भोग लगाएं?

यदि उपासक इस विशिष्ट दिन अपनी जन्म चंद्र राशि अनुसार भगवान को भोग लगाकर उनकी उपासना करते हैं तो उन्हें भगवान का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त होगा।

01. मेष राशि- मेवे और तुलसी दल सहित आटा की पंजीरी का भोग लगाएं।

02. वृष राशि- शुद्ध दूध से बनी मिठाई , खीर का तुलसी पत्र डालकर भोग लगाएं।

03. मिथुन राशि- इस राशि के जातक शुद्ध घी में बने हरे मूंग के तुलसी दल युक्त लड्डू या हलवे का भोग लगाएं।

04. कर्क राशि- कर्क राशि के जातक भोग में बेसन की पंजीरी, श्री खण्ड अर्पित करें।

05. सिंह राशि- इस राशि के जातक भगवान को अन्य द्रव्यों के साथ धनिया की पंजीरी अवश्य अर्पित करें।

06. कन्या राशि- कन्या राशि के जातक भोग में दही और बेसन के लड्डू अर्पित करें।

07. तुला राशि- इस राशि के जातक माखन, मिश्री और चावल के खीर का भोग अर्पित करें।

08. वृश्चिक राशि- वृश्चिक राशि वाले लाल पेड़े और नारियल की बर्फी अर्पित करें।

09. धनु राशि- इस राशि के जातक केसर युक्त मेवे और खोए की मिठाई का भोग अर्पित करें।

10. मकर राशि- मकर राशि के जातक भगवान को नारियल युक्त मखाने की खीर का भोग लगाएं।

11. कुम्भ राशि- इस राशि के जातक अन्य प्रसादों के साथ ताजे नारियल के लड्डू, और पँचमेवे युक्त आटे के लड्डूओ का भोग लगाएं।

12. मीन राशि- इस राशि के जातक केसर युक्त पीले बेसन के लड्डू या बेसन का हलुवा अर्पित करें।

इस प्रकार से भोग अर्पित करते हुए जातक पूजन करें और प्रभु से कल्याण की कामना करें। ध्यान रहे, प्रत्येक भोग-प्रसाद में तुलसी दल अत्यंत आवश्यक है।

– ज्योतिषाचार्य ऋचा श्रीवास्तव

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Sri Krishna Janmashtami – An Introduction(Hindi & English)

Om-Shiva

Every year, Lord Shri Krishna’s birth is celebrated on the auspicious Ashtami Tithi of Krishna Paksha of Bhadrapada month. Because on this day, Lord Shri Krishna, the complete incarnation of Lord Vishnu with 16 arts, took human form in the holy city of Mathura from the womb of Mother Shri Devki to establish religion. Lord Vishnu’s eighth incarnation, Yogeshwar Lord Shri Krishna was born at the end of Dwapar Yug on the auspicious Ashtami Tithi of Bhadrapada month in Rohini Nakshatra to free Mother Earth from the atrocities of a terrible demon Kansa. On this occasion, Shri Krishna Janmashtami is seen as a major festival in our Sanatan Dharma, and this festival is celebrated with great joy in the entire country and the world.

On this day, all the temples are decorated very attractively and people also decorate tableaux etc. in their homes to celebrate the birth of Lord Krishna and offer fifty-six offerings. Butter with Tulsi leaves, sugar candy, milk, curd, panjiri and Ramdana laddus, fruits etc. are the favorite offerings of Lord Krishna.

On which day is Janmashtami this year?

In the current year 2024, the auspicious date of Shri Krishna Janmashtami is falling on 26 August, Monday. Along with this, a very auspicious yoga, Jayanti yoga and Sarvartha Siddhi yoga are also being formed. If Lord Krishna is worshipped at this time, then one gets Akshay Punya fruit.

Muhurta of worship?

This time Ashtami Tithi will start from 3:40 am on 26 August and will end at 02:19 am on 27 August. The fast will start from sunrise on 26th August and the fast will end after 6 am on 27th August.

Night worship time?

From 12:00 pm to 12:45 pm.

What should be offered as per your birth moon sign?

If the worshipper worships God by offering him food as per his birth moon sign on this special day, then he will definitely receive the blessings of God.

01. Aries- Offer flour panjiri with dry fruits and basil leaves.

02. Taurus- Offer sweets made from pure milk, kheer with basil leaves.

03. Gemini- People of this zodiac should offer green moong laddu or halwa made in pure ghee with basil leaves.

04. Cancer- People of Cancer zodiac should offer gram flour panjiri, Shri Khand as bhog.

05. Leo- People of this zodiac sign must offer coriander panjiri to God along with other things.

06. Virgo- People of Virgo zodiac sign must offer curd and gram flour laddus as bhog.

07. Libra- People of this zodiac sign must offer butter, sugar candy and rice pudding.

08. Scorpio- People of Scorpio zodiac sign must offer red peda and coconut barfi.

09. Sagittarius- People of this zodiac sign must offer saffron-infused dry fruits and khoya sweets.

10. Capricorn- People of Capricorn zodiac sign must offer coconut-infused makhana kheer to God.

11. Aquarius- People of this zodiac sign must offer fresh coconut laddus and flour laddus with panchmewa along with other prasads.

12. Pisces- People of this zodiac sign must offer saffron-infused yellow gram flour laddus or gram flour halwa.

In this way, the person should worship by offering bhog and pray to the Lord for his welfare. Remember, Tulsi leaves are very essential in every bhog and prasad.

– Astrologer Richa Shrivastava