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कार्तिक पूर्णिमा 2024 (Hindi & English)

कार्तिक पूर्णिमा 2024 (Hindi & English)

कार्तिक पूर्णिमा का महात्म्य

Om-Shiva
साल में कुल 12 पूर्णिमाएं होती हैं। जिसमे कार्तिक पूर्णिमा को श्रेष्ठ माना गया है। भविष्य पुराण के अनुसार मासों में कार्तिक माह, और पूर्णिमाओं में कार्तिक पूर्णिमा को सर्वोत्तम माना जाता है। क्योंकि ये पूरा माह भगवान विष्णु को समर्पित है। कहा जाता है कि इस दिन पवित्र नदियों और कुंडों में स्नान करके भगवान श्रीहरि का जप, तप, ध्यान, दान, पूजन आदि किया जाता है तो अन्य तिथियों से अधिक पुण्यफलों की प्राप्ति होती है। इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से सभी पापों का क्षय होकर, अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन गंगा स्नान करने से ग्रह दोषों की भी शांति होती है। इस दिन सिक्खों के प्रथम गुरु, गुरुनानकदेव जी का अवतरण दिवस भी मनाया जाता है। गुरूद्वारों में दिनभर शब्द-कीर्तन और लंगर-भंडारे चलते हैं।

क्यों मनाते हैं कार्तिक पूर्णिमा और देव दीपावली?

उत्तर भारत मे कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव-दीपावली मनाई जाती है। क्योंकि इसी दिन भगवान शिव ने अत्याचारी त्रिपुरासुर का वध करके तीनों लोकों को भयमुक्त किया था। तब भगवान विष्णु ने भगवान शिव को “त्रिपुरारी” नाम दिया था। और देवताओं ने प्रसन्न होकर स्वर्ग में दीपावली मनाई थी। तब से पृथ्वी पर भी देव दीपावली मनाने की प्रथा शुरू हुई। इस दिन नदियों में घी के दिये जलाकर प्रवाहित करना सर्वथा शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि इससे पार्वती और शिव पुत्र कुमार कार्तिकेय की देखभाल करने वाली छः कृत्तिकाएं प्रसन्न होती हैं और दुर्भाग्य दूर करती हैं।

इसके अतिरिक्त कहा जाता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने प्रथम अवतार मत्स्य अवतार लिया था। पुराणों के अनुसार इसी दिन गंगा-गण्डकी के संगम पर हाथी और मगरमच्छ में युद्ध हुआ था, तब विष्णुभक्त गज यानि हाथी की करुण पुकार सुनकर मगरमच्छ का वध करके भगवान विष्णु ने गज के जीवन की रक्षा की थी। इस दिन पितरों की शांति के लिए पूजा-उपासना भी शुभ होती है। महाभारत युध्द के पश्चात पांडवों ने मारे गए योद्धाओं की आत्माओं की शांति के लिए पूजन किया था।

कार्तिक पूर्णिमा तिथि

इस बार कार्तिक पूर्णिमा का व्रत, पूजन, स्नान और दान आदि 15 नवम्बर, दिन शुक्रवार को होगा। स्नान-दान का शुभ मुहूर्त प्रातः 05:00 बजे से 06:02 मिनट तक रहेगा।

सत्यनारायण पूजन मुहूर्त

प्रातः 06:45 से प्रातः 10:45 तक होगा। देव दीपावली और दीपदान सायंकाल 04:45 से 06:05 मिनट तक रहेगा।

पूजन विधि-विधान

कार्तिक पूर्णिमा के दिन सुबह गंगाजल डालकर स्नान करें। फिर भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र के आगे शुध्द घी का दीपक जलाएं। कलश में गंगाजल रखें। पीले फूल, पीले फल, पीली मिठाई, पीला चन्दन और तुलसी दल चढ़ाएं। विधिवत पूजन करें।“ॐ नमो नारायणा” मंत्र का यथा शक्ति जाप करें। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। सत्यनारायण भगवान की कथा का आयोजन करें। नवग्रहों और पितरों सहित सभी देवी-देवताओं का ध्यान करें। विधिवत पूजन के बाद श्रीविष्णु, श्रीराम या श्रीकृष्ण मंदिर के वृद्ध ब्राह्मण को दान दें। शाम को भगवान शिव का कच्चे दूध से अभिषेक कर पूजन-अर्चन करें। शाम को नदी या तालाब में देशी घी का दिया प्रवाहित करें। घर और मन्दिर को दीप मालाओं से सजाएं। चंद्रोदय के बाद चन्द्रमा को अर्घ्य दें और खीर का भोग लगाकर पूजा करें । इस प्रकार पूजन-अर्चन करने से कुंडली के सूर्य तथा चन्द्र बलवान होते हैं। राहु-केतु जनित दोषों का शमन होता है और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। अतः यह पूर्णिमा अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।

कार्तिक पूर्णिमा का पौराणिक संदर्भ

पुराणों में मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा की तिथि पर शिवजी ने त्रिपुरा नामक एक भयंकर राक्षस को मारा था। एक बार त्रिपुरा नामक राक्षस ने प्रयागराज में एक लाख वर्ष तक घोर तप किया। इस तपस्या के प्रभाव से सभी चराचर और देवतागण भयभीत हो उठे। सभी देवताओं ने विभिन्न अप्सराओं को भेजकर उसका तप भंग करने का प्रयास किया लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिल सकी। यह देखकर ब्रह्माजी स्वयं उसके पास गए और वर मांगने के लिए कहा। तब त्रिपुर ने अंतरिक्ष में तीन अलग-अलग नगर बसाए और वह अति शक्तिशाली होकर देवताओं और मनुष्यों को प्रताड़ित करने लगा। सभी देवताओं ने मिलकर भगवान शिव से त्रिपुरा और उसके नगरों का नाश करने की प्रार्थना की। जब कार्तिक पूर्णिमा के दिन अभिजीत मुहूर्त में त्रिपुरा और उसके तीनों नगर परिक्रमा करते हुए एक सीध में आए तब भगवान शिव ने अपने दिव्य अस्त्रों से त्रिपुरा सहित उसके तीनों नगरों का सर्वनाश कर दिया। त्रिपुरा के वध के पश्चात सभी देवता अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने भगवान शिव को त्रिपुरारि और त्रिपुरान्तक का नाम दिया। उस दिन देवताओं ने तीनों लोकों में दीप जलाकर दीपावली मनाई। तब से इस दिन का महत्व बहुत बढ़ गया। और इसे देव दीपोत्सव के रूप में भी मनाए जाने लगा। पूर्णिमा तिथि सभी पापों का नाश करके अक्षय पुण्य प्रदान करने की एक अत्यंत महत्वपूर्ण तिथि है। इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव सहित सभी ग्रह नक्षत्र और देवी-देवताओं के पूजन का विशिष्ट फल मिलता है।

उपर्युक्त आलेख में मैंने कार्तिक पूर्णिमा के बारे में कुछ विशेष जानकारी देने का प्रयास किया है। आशा करती हूं कि आप सुधी पाठकों को मेरा यह प्रयास पसंद आया होगा। कृपया कमेंट के जरिए अपनी राय अवश्य दें।

धन्यवाद और आभार।

एस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव(ज्योतिष केसरी)

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Kartik Purnima 2024 (Hindi & English)

Significance of Kartik Purnima

Om-Shiva

There are a total of 12 full moons in a year. In which Kartik Purnima is considered the best. According to Bhavishya Purana, Kartik month is considered the best among the months and Kartik Purnima is considered the best among the full moons. Because this whole month is dedicated to Lord Vishnu. It is said that on this day, if one takes a bath in holy rivers and ponds and chants, meditates, donates, worships Lord Shri Hari, then one gets more virtuous results than on other dates. Ganga bath has special significance on this day. It is believed that by taking a bath in the Ganga on this day, all sins are destroyed and one attains Akshaya Punya. Taking a bath in the Ganga on this day also brings peace from planetary defects. On this day, the incarnation day of the first Guru of the Sikhs, Guru Nanak Dev Ji is also celebrated. Shabad-Kirtan and Langar-Bhandaras go on in the gurudwaras throughout the day.

Why do we celebrate Kartik Purnima and Dev Deepawali?

In North India, Dev-Deepawali is celebrated on the day of Kartik Purnima. Because on this day Lord Shiva freed the three worlds from fear by killing the tyrant Tripurasur. Then Lord Vishnu named Lord Shiva as “Tripurari”. And the Gods were happy and celebrated Deepawali in heaven. Since then, the practice of celebrating Dev Deepawali started on earth as well. On this day, lighting ghee lamps and floating them in the rivers is considered auspicious. It is said that this pleases the six Krittikas who take care of Parvati and Shiva’s son Kumar Kartikeya and removes misfortune.

Apart from this, it is said that on this day Lord Vishnu took the first incarnation Matsya Avatar. According to the Puranas, on this day, there was a war between an elephant and a crocodile at the confluence of Ganga-Gandaki, then on hearing the pathetic cry of Vishnu devotee Gaj i.e. elephant, Lord Vishnu killed the crocodile and saved the life of Gaj. On this day, worship is also auspicious for the peace of ancestors. After the Mahabharata war, the Pandavas performed Puja for the peace of the souls of the slain warriors.

Kartik Purnima Tithi

This time the fast, Puja, bath and donation of Kartik Purnima will be on 15 November, Friday. The auspicious time for bath and donation will be from 05:00 am to 06:02 am.

Satyanarayan Pujan Muhurta

Will be from 06:45 am to 10:45 am. Dev Deepawali and Deepdaan will be from 04:45 to 06:05 pm.

Worship Method

On the day of Kartik Purnima, take a bath by adding Gangajal in the morning. Then light a lamp of pure ghee in front of the idol or picture of Lord Vishnu. Keep Gangajal in the Kalash. Offer yellow flowers, yellow fruits, yellow sweets, yellow sandalwood and Tulsi leaves. Perform worship as per the rituals. Chant the mantra “Om Namo Narayana” as per your capacity. Recite Vishnu Sahasranama. Organise the story of Lord Satyanarayan. Meditate on all the deities including the nine planets and ancestors. After proper worship, donate to an old Brahmin of Shri Vishnu, Shri Ram or Shri Krishna temple. In the evening, worship Lord Shiva by anointing him with raw milk. In the evening, float a lamp of pure ghee in a river or pond. Decorate the house and temple with garlands of lamps. After moonrise, offer water to the moon and worship it by offering kheer. By worshipping in this way, the Sun and Moon in the horoscope become strong. The defects caused by Rahu-Ketu are mitigated and the blessings of ancestors are received. Therefore, this Purnima is considered very important.

Mythological reference of Kartik Purnima

It is believed in the Puranas that on the date of Kartik Purnima, Lord Shiva killed a fierce demon named Tripura. Once a demon named Tripura performed severe penance for one lakh years in Prayagraj. Due to the effect of this penance, all living beings and gods became afraid. All the gods tried to break his penance by sending various Apsaras but they could not succeed. Seeing this, Brahma himself went to him and asked him to ask for a boon. Then Tripura established three different cities in the space and he became very powerful and started torturing the gods and humans. All the gods together prayed to Lord Shiva to destroy Tripura and its cities. When Tripura and its three cities came in a straight line while doing Parikrama in Abhijit Muhurta on the day of Kartik Purnima, then Lord Shiva destroyed Tripura and its three cities with his divine weapons. After the killing of Tripura, all the gods were very happy and they named Lord Shiva as Tripurari and Tripurantak. On that day, the gods celebrated Diwali by lighting lamps in all the three worlds. Since then the importance of this day has increased a lot. And it also started being celebrated as Dev Deepotsav. Purnima Tithi is a very important date for destroying all sins and providing Akshay Punya. On this day, worshiping all the planets, stars and gods and goddesses including Lord Vishnu and Lord Shiva gives special results.

In the above article, I have tried to give some special information about Kartik Purnima. I hope you, the wise readers, liked my effort. Please give your opinion through comments.

Thanks and gratitude.

Astro Richa Srivastava (Jyotish Kesari)

श्री तुलसी विवाह 2024 (Hindi & English)

श्री तुलसी विवाह 2024 (Hindi & English)

Om-Shiva

परिचय

तुलसी विवाह सनातन धर्म में विशेष महत्व रखता है। इसे देव उठानी एकादशी भी कहा जाता है। यह प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन माता तुलसी और शालिग्राम रूपी भगवान विष्णु का विवाह कराया जाता है। इस दिन सभी लोग तुलसी को सौभाग्यदायिनी मानकर उनकी पूजा और व्रत अनुष्ठान करते हैं। तुलसी विवाह का उत्सव यूं तो सारे भारतवर्ष में प्रचलित है, लेकिन उत्तर भारत में इसे विशेष तौर पर मनाया जाता है।

माता तुलसी के दर्शन, स्पर्श, ध्यान, पूजन, आरोपण और सिंचन से अनेक युगों के पाप नष्ट हो जाते हैं। माता तुलसी को गंगा के समान ही पवित्र, पाप नाशिनी, सौभाग्य दायिनी, और आधि-व्याधि को मिटाने का वरदान प्राप्त है।

तुलसी विवाह का महत्व

मान्यता है कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के एकादशी तिथि के दिन भगवान विष्णु अपनी चार महीने की योग निद्रा से जागते हैं। इसलिए इसे देवउठनी एकादशी अथवा प्रबोधिनी एकादशी के रूप में जाना जाता है। इस एकादशी का वर्ष की सभी एकादशियों में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। क्योंकि हिंदू शास्त्रों के अनुसार, वर्षा के चातुर्मास में किसी भी प्रकार का शुभ और मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है। अतः इस दिन तुलसी विवाह से ही समस्त मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है। ऐसी मान्यता है कि जो अपने घर में तुलसी विवाह एवं पूजा का आयोजन करता है, उसके घर से क्लेश और विपत्तियां दूर हो जाती हैं। धन संपदा और समृद्धि बढ़ती है, और माता लक्ष्मी का स्थाई निवास हो जाता है।

तुलसी विवाह पूजन का समय एवम विधि विधान

वर्ष 2024 में तुलसी विवाह दिनांक 12 नवम्बर 2024, मंगलवार को सांय प्रदोष काल में संपन्न कराया जायेगा। तुलसी विवाह में उपवास रखने का नियम है जिसमें अन्न का सेवन नहीं करके केवल फलाहार किया जाता है। आमतौर पर वैष्णो संप्रदाय के लोग तुलसी तथा शालिग्राम का विवाह करते हैं। नए कपड़े, श्रृंगार की वस्तुएं, जनेऊ, आभूषण आदि तुलसी के गमले और शालिग्राम पर चढ़ाया जाता है।

भगवान विष्णु की प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा करके उसे वस्त्र और आभूषण से सजाकर, पूरे सम्मान और श्रद्धा से गाजे-बाजे के साथ तुलसीजी के चौबारे पर लेकर जाया जाता है। फिर उस स्थान पर विधिपूर्वक पूजन करने के बाद विवाह रचाया जाता है। इस अवसर पर स्त्रियां विवाह के मंगल गीत गाती हैं। पूजन और आरती आदि करती हैं। उसके बाद भोग लगाकर व्रत की समाप्ति करती हैं। अनेक लोग तुलसीजी और शालिग्रामजी की 108 परिक्रमाएं भी करते हैं। ऐसा माना जाता है की दोनों का विवाह रचा करके अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।

व्रत पूजन की कथा

प्राचीन काल में भगवान शिव के तेज से उत्पन्न जालंधर नाम का एक अत्यंत पराक्रमी असुर था। उसकी पत्नी वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त थी और अखंड पतिव्रता थी। उसके पातिव्रत के तेज से जालंधर अजय हो गया था और अत्यंत अभिमानी हो गया था। उसने अपने अहंकार और अत्याचार से तीनों लोकों को त्रस्त कर रखा था तथा स्त्रियों और कन्याओं को परेशान करता था। दुःखी होकर सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में गए और जालंधर के आतंक को समाप्त करने की प्रार्थना करने लगे। भगवान विष्णु ने माया से जालंधर का रूप धारण कर लिया और छल से वृंदा के पातिव्रत धर्म को नष्ट कर दिया। इससे जालंधर की शक्ति क्षीण हो गई और वह युद्ध में मारा गया।

जब वृंदा को भगवान विष्णु के छल का पता चला, तो उसने अत्यंत क्रोधित होकर भगवान विष्णु को पत्थर का बन जाने और पत्नी वियोग से पीड़ित हो जाने का श्राप दे दिया। देवताओं की प्रार्थना पर वृंदा ने अपना श्राप वापस ले लिया, लेकिन भगवान विष्णु वृंदा के साथ किए हुए छल पर लज्जित थे, अतः वृंदा के शाप को जीवित रखने के लिए भगवान विष्णु ने अपना एक रूप पत्थर में प्रकट किया जो की शालिग्राम कहलाया।

भगवान विष्णु को दिए श्राप को वापस लेने के बाद वृंदा जालंधर के साथ सती हो गई। वृंदा के मृत शरीर की राख से तुलसी का पौधा निकला। फिर वृंदा की मर्यादा और पवित्रता को बनाए रखने के लिए देवताओं ने भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप का विवाह तुलसी से कराया। और तुलसी को वरदान दिया कि भगवान विष्णु और उनके अवतारों के पूजन भोग में तुलसी दल अनिवार्य रहेगी। और तुलसी की पवित्रता गंगा के समान पुण्यदायी मानी जायेगी। इसी दिन की याद में प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि को तुलसी का विवाह शालिग्राम के साथ कराया जाता है।

उपर्युक्त आलेख में मैंने तुलसी विवाह एकादशी के बारे में एक संक्षिप्त जानकारी देने का प्रयास किया है। आशा करती हूं कि आपको मेरा प्रयास पसंद आया होगा। कृपया कमेंट के जरिए अपनी राय मुझे अवश्य दें।

धन्यवाद और आभार।

– एस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव (ज्योतिष केसरी)

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Shri Tulsi Vivah 2024 (Hindi & English)

Om-Shiva

Introduction

Tulsi Vivah holds special significance in Sanatan Dharma. It is also called Dev Uthani Ekadashi. It is celebrated every year on the Ekadashi date of Shukla Paksha of Kartik month. On this day, the marriage of Mother Tulsi and Lord Vishnu in the form of Shaligram is performed. On this day, all the people consider Tulsi as a giver of good fortune and worship her and perform fasting rituals. The festival of Tulsi Vivah is prevalent all over India, but it is especially celebrated in North India.

The sins of many ages are destroyed by the sight, touch, meditation, worship, application and irrigation of Mother Tulsi. Mother Tulsi is blessed with the blessings of being as pure as the Ganges, destroyer of sins, giver of good fortune, and eradicating diseases.

Importance of Tulsi Vivah

It is believed that on the Ekadashi date of Shukla Paksha of Kartik month, Lord Vishnu wakes up from his four-month yogic sleep. Therefore, it is known as Devuthani Ekadashi or Prabodhini Ekadashi. This Ekadashi has a very important place among all the Ekadashis of the year. Because according to Hindu scriptures, no auspicious or mangal work is done during the Chaturmas of the rainy season. Therefore, all the mangal works start with Tulsi Vivah on this day. It is believed that whoever organizes Tulsi Vivah and worship in his house, all the troubles and troubles go away from his house. Wealth and prosperity increase, and Mother Lakshmi becomes a permanent abode.

Time and method of Tulsi marriage worship

In the year 2024, Tulsi marriage will be solemnized on 12th November 2024, Tuesday, during the evening Pradosh period. There is a rule of fasting in Tulsi Vivah, in which food is not consumed and only fruits are eaten. Usually, people of Vaishno sect perform the marriage of Tulsi and Shaligram. New clothes, makeup items, sacred thread, jewelry etc. are offered to Tulsi pot and Shaligram.

After consecration of the idol of Lord Vishnu, it is decorated with clothes and jewellery and taken to the Tulsi Chaubara with full respect and reverence with music and dance. Then after worshipping the place in a proper manner, the marriage is solemnized. On this occasion, women sing auspicious songs of marriage. They do puja and aarti etc. After that, they end the fast by offering food. Many people also do 108 parikramas of Tulsi and Shaligram. It is believed that by marrying both, one gets eternal virtue.

Story of fast worship

In ancient times, there was a very powerful demon named Jalandhar born from the radiance of Lord Shiva. His wife Vrinda was an ardent devotee of Lord Vishnu and was a devoted wife. Jalandhar had become invincible and very arrogant due to the radiance of her devotion to her husband. He had troubled the three worlds with his arrogance and atrocities and used to harass women and girls. Saddened, all the gods went to Lord Vishnu and prayed to end Jalandhar’s terror. Lord Vishnu took the form of Jalandhar through Maya and destroyed Vrinda’s chastity. This weakened Jalandhar’s power and he was killed in the war.

When Vrinda came to know about Lord Vishnu’s deceit, she became very angry and cursed Lord Vishnu to turn into stone and suffer from the separation from his wife. On the prayers of the gods, Vrinda took back her curse, but Lord Vishnu was ashamed of the deceit done with Vrinda, so to keep Vrinda’s curse alive, Lord Vishnu manifested one of his forms in stone which was called Shaligram.

After taking back the curse given to Lord Vishnu, Vrinda became Sati with Jalandhar. Tulsi plant emerged from the ashes of Vrinda’s dead body. Then to maintain the dignity and purity of Vrinda, the gods got Lord Vishnu’s Shaligram form married to Tulsi. And gave a boon to Tulsi that Tulsi leaves will be mandatory in the worship of Lord Vishnu and his incarnations. And the purity of Tulsi will be considered as virtuous as Ganga. In memory of this day, every year on Kartik Shukla Ekadashi, Tulsi is married to Shaligram.

In the above article, I have tried to give a brief information about Tulsi Vivah Ekadashi. I hope you liked my effort. Please give me your opinion through comments.

Thanks and gratitude.

– Astro Richa Srivastava (Jyotish Kesari)

सूर्य उपासना का महापर्व छठ पूजन (Hindi & English)

सूर्य उपासना का महापर्व छठ पूजन (Hindi & English)

Om-Shiva
हमारे हिंदू धर्म में हर त्यौहार का अपना विशेष महत्व है। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण त्यौहार छठ पूजा है, जिसे प्रत्येक वर्ष बहुत धूमधाम से ना केवल भारत में बल्कि विदेशों में बसे भारतीय, विशेष तौर पर बिहार मूल के भारतीय बड़े हर्ष और उल्लास से मनाते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की छठी तिथि से छठ के महापर्व की शुरुआत होती है। इसे “सूर्य षष्ठी” के नाम से भी जाना जाता है। छठ पूजा में चार दिनों तक सूर्यदेव की विशेष पूजा और अर्चना करने का विधान है। यह व्रत चार दिनों तक चलने वाला अत्यंत कठिन अनुष्ठान है। इसमें स्वच्छता और शुचिता का कठोरता से पालन किया जाता है। व्रत करने वाला व्यक्ति मुख्य पूजन के 05 दिन पूर्व से ही सात्विक भोजन ग्रहण करता है। लहसुन और प्याज आदि का 07 दिनों तक के लिए त्याग कर देते हैं। भूमि पर शयन और दो दिनों तक निर्जला व्रत इस अनुष्ठान की कठोरता में वृद्धि करता है।

01. क्या होता है छठ पर्व?

भारत पर छठ सूर्य उपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है। मुख्य रूप से सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा जाता है। ऐसे तो यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को चैती छठ कहते हैं। और कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ अथवा डाला छठ कहते हैं। इस पर्व में बांस, कुश और सरकंडे से बने डलिया या टोकरी का ही प्रयोग पूजन, अर्ध्य और भोग प्रदान करने में किया जाता है। इसलिए कार्तिक शुक्लपक्ष के छठ को डाला छठ कहते हैं।

यह पर्व मुख्यतः बिहार का राजकीय और प्रमुख लोक सांस्कृतिक त्यौहार है। इस पर्व में सामाजिक समरसता परिलक्षित होती है, क्योंकि बिना किसी जाति-पाति अथवा अमीर-गरीब के भेदभाव के सभी स्त्री-पुरुष नदी अथवा तालाब के घाट पर एकत्रित होकर पूर्ण श्रद्धा और आस्था के साथ सूर्य और षष्ठी माता का पूजन, उपासना, दीपदान, अर्घ्य आदि से पूजन करते हैं।

02. सूर्य पूजन के साथ षष्ठी देवी का पूजन क्यों होता है?

छठ में भले ही सूर्य देवता की पूजा होती हो, लेकिन छठ पर्व को मैया कहकर संबोधित किया जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि लोकभाषा में छठी मैया वस्तुत ऋषि कश्यप और माता अदिति की मानस पुत्री हैं। इन्हें देवसेना के नाम से भी जाना जाता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार कात्यायन ऋषि की पुत्री कात्यायनी देवी को ही छठी मैया कहा जाता है। क्योंकि नवरात्रों में छठे दिन में कात्यायनी देवी की पूजा की जाती है। छठी मैया अथवा माँ देवसेना भगवान सूर्य की बहन तथा भगवान कार्तिकेय की पत्नी हैं। पौराणिक मान्यता है कि शिशु के जन्म से लेकर अगले 06 दिनों तक देवी कात्यायनी और माँ देवसेना नवजात शिशु की रक्षा करती हैं। इसलिए भी भारतीय सनातन पद्धति में शिशुओं के जन्म के बाद छठे दिन षष्ठी पूजन का विशेष आयोजन किया जाता है।

03. छठ पूजा का पौराणिक महत्व

वैदिककाल में पहले एकमात्र व्रत पयोव्रत का विवरण मिलता है। यह व्रत ऋषि कश्यप के कहने पर माता अदिति ने किया था और केवल दूध का सेवन किया था। इस व्रत के उपरांत ही माता अदिति के गर्भ से वामन भगवान ने अवतार लिया था। छठ पर्व का उल्लेख श्रीमद्भागवत पुराण और स्कंदपुराण में भी मिलता है। स्कंदपुराण में तो छठी मैया की महिमा का वर्णन एक कथा के रूप में विस्तार से किया गया है। इस पूजन का संबंध संतान के दीर्घायु और उत्तम स्वास्थ्य की कामना से है। अनेक लोग संतान प्राप्ति की कामना से भी इस व्रत को रखते हैं।

04. छठ पर्व के व्रत की कथा

छठ पर्व को लेकर कई पौराणिक कथाएं हैं। इसमें से प्रमुख कथा है सूर्यवंशी राजा परिवार और उनकी पत्नी मालिनी की। प्राचीन समय में सूर्यवंशी राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी मालिनी ने संतान प्राप्ति के लिए अनेक धार्मिक अनुष्ठान किया, लेकिन उन्हें कोई संतान प्राप्त नहीं हुई। इस कारण राजा बहुत दुखी रहने लगे थे। संतान प्राप्ति हेतु ऋषि कश्यप के आदेश के अनुसार उन्होंने एक यज्ञ का आयोजन किया। इसके परिणाम स्वरूप रानी मालिनी गर्भवती हुई लेकिन उन्हें मृत संतान पैदा हुई। इससे राजा और रानी को अत्यंत दुःख हुआ और वह शोकाकुल होकर आत्महत्या करने के लिए चल पड़े। उनके विलाप को सुनकर सिंहासन पर सवार एक देवी उनके पास आईं। और उनके आशीर्वाद से मृत शिशु जीवित हो उठा। इस पर राजा प्रियव्रत ने दोनों हाथ जोड़कर देवी की आराधना करी और पूछा कि आप कौन हैं? तब उत्तर में उन देवी ने कहा मैं छठ माता हूं, मैं निःसंतान दंपति को संतान होने का आशीर्वाद देती हूँ। और जिनके संतान हैं उनकी रक्षा करती हूं। इस प्रकार से छठ पूजन प्रारंभ हुआ।

इसके अलावा महाभारत काल में भी छठ पूजन का उल्लेख आता है। कहा जाता है कि माता कुंती और द्रौपदी अपने वनवास काल के दौरान प्रत्येक वर्ष षष्ठी पूजन पूरी आस्था और भक्ति से करती थी। जिसके परिणाम स्वरूप उन्हें खोया हुआ राजपाट वापस मिला। इसी प्रकार से कहा जाता है कि महाभारत के योद्धा कर्ण प्रतिदिन घंटों तक जल में खड़े होकर सूर्यदेव की पूजा और उपासना करते थे। वह सूर्यदेव के परम भक्त थे। सूर्यदेव की कृपा से ही वह महान योद्धा बने और उन्हें अत्यधिक शक्तिशाली कवच और कुंडल प्राप्त हुआ और महान पराक्रमी बने। कहते हैं कि कर्ण ने ही सूर्यदेव की आराधना के रूप में छठ पूजन की शुरुआत की थी।

05. वर्ष 2024 में कब है छठ पर्व?

इस वर्ष छठ महापर्व की शुरुआत 05 नवंबर 2024 को दिन मंगलवार से नहाए-खाए की क्रिया के साथ 08 नवंबर 2024 के दिन शुक्रवार को उगते हुए सूर्यदेव को अर्घ्य देने के साथ समाप्त होगा।

06. सूर्य को अर्घ्य देने का समय

07 नवंबर- संध्या अर्घ्य- सूर्यास्त का समय- शाम 05:31 पर।
08 नवंबर- उषा अर्घ्य- सूर्योदय का समय- सुबह 06:38 पर। उसके उपरांत पारण।

07. छठ पर्व का विधि विधान?

छठ पूजा में बहुत ही कठिन और पवित्र नियमों का पालन किया जाता है क्योंकि इसमें शुद्धता, संयम और अनुशासन का विशेष महत्व है। इस पर भोजन में सात्विकता रहती है, केले के पत्तों, मिट्टी के चूल्हों, पत्तलों, और मिट्टी के पात्रों का उपयोग भोजन निर्माण और सेवन में किया जाता है। पहले दिन नहाए खाए , फिर दूसरे दिन खरना प्रसाद के बाद तीसरे दिन संध्याकाल में व्रतधारी कमर तक जल में खड़े होकर, सूप में फल, फूल, मिष्ठान और दीपक रखकर, मिट्टी, पीतल अथवा तांबे के पात्र से कच्चे दूध और गंगाजल से डूबते सूर्यदेव को अर्घ्य देते हैं। नदी किनारे सभी लोग एकत्र होकर ईख या गन्ने के डंडों से मंडप बनाते हैं। उसके नीचे गोबर का लेपन करके, अल्पना आदि बनाकर, कलश स्थापित करते हैं और दीप मालाएं लगाते हैं। सूर्यदेव को अर्घ्य देने के उपरांत लोग घर वापस आते हैं, रात्रि जागरण करते हैं और छठी मैया के गीत गाते हैं। दूसरे दिन प्रातःकाल इसी प्रकार से उगते सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है, और व्रत का पारण किया जाता है।

छठ पूजन में बांस की टोकरी यानी सूप या डलिया, गुड और आटे से बना विशेष प्रसाद ठेकुआ, प्रत्येक प्रकार के मौसमी
फल, गंगाजल, कच्चा नारियल, हल्दी, सिंदूर, मिट्टी के दीपक, घी, धूप, अगरबत्ती आदि विशेष सामग्री का प्रयोग किया जाता है। इस व्रत का पालन पूरा परिवार एक साथ मिलकर करता है। यह व्रत परिवार और समाज के बीच आपसी लगाव और सद्भाव को बढ़ाता है। सब लोग मिलजुलकर इस पर्व को मनाते हैं जिससे लोगों में स्नेह, प्रेम और सहयोग की भावना प्रबल होती है।

उपर्युक्त आलेख में मैंने महापर्व छठ के बारे में कुछ जानकारी देने का प्रयास किया है। आशा करती हूं सभी पाठकों को मेरा यह प्रयास पसंद आया होगा। कृपया कमेंट के जरिए अपना परामर्श दें।

धन्यवाद और आभार।

– एस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव (ज्योतिष केसरी)

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Chhath Puja, the great festival of Surya Upasana (Hindi & English)

Om-Shiva

Every festival has its own special significance in our Hindu religion. One of these important festivals is Chhath Puja, which is celebrated every year with great pomp and show not only in India but also by Indians living abroad, especially Indians of Bihar origin, with great joy and enthusiasm. According to the Hindu calendar, the great festival of Chhath begins from the sixth day of the Shukla Paksha of the month of Kartik. It is also known as “Surya Shashthi”. In Chhath Puja, there is a ritual of special worship and prayer of Sun God for four days. This fast is a very difficult ritual that lasts for four days. Cleanliness and purity are strictly followed in this. The person observing the fast consumes satvik food from 05 days before the main worship. Garlic and onion etc. are given up for 07 days. Sleeping on the ground and fasting without water for two days increases the rigor of this ritual.

01. What is Chhath festival?

Chhath is a famous festival of sun worship in India. It is called Chhath mainly because it is a Surya Shashthi fast. This festival is celebrated twice a year. The festival celebrated on Chaitra Shukla Paksha Shashthi is called Chaiti Chhath. And the festival celebrated on Kartik Shukla Paksha Shashthi is called Kartiki Chhath or Daala Chhath. In this festival, baskets or baskets made of bamboo, kush and reeds are used for worship, offering and prasad. Therefore, Chhath of Kartik Shukla Paksha is called Daala Chhath.

This festival is mainly a state and major folk cultural festival of Bihar. Social harmony is reflected in this festival, because without any discrimination of caste or rich-poor, all men and women gather at the river or pond bank and worship the Sun and Shashthi Mata with full devotion and faith, by worshipping, lighting lamps, offering arghya etc.

02. Why is Shashthi Devi worshipped along with Surya Puja?

Even though Sun God is worshipped in Chhath, Chhath festival is addressed as Maiya. This is because in the local language Chhathi Maiya is actually the Manas Putri of Sage Kashyap and Mother Aditi. She is also known as Devsena. According to Brahmavaivart Purana, Katyayani Devi, daughter of Sage Katyayan, is called Chhathi Maiya. Because Katyayani Devi is worshipped on the sixth day of Navratri. Chhathi Maiya or Maa Devsena is the sister of Lord Sun and wife of Lord Kartikeya. There is a mythological belief that from the birth of the child till the next 06 days, Goddess Katyayani and Mother Devsena protect the newborn child. That is why in the Indian Sanatan system, a special event of Shashthi Puja is organized on the sixth day after the birth of the child.

03. Mythological importance of Chhath Puja

In the Vedic period, the description of the only fast is found, Payovrat. This fast was observed by Mother Aditi on the advice of sage Kashyap and she consumed only milk. It was after this fast that Lord Vamana took incarnation from the womb of Mother Aditi. Chhath festival is also mentioned in Shrimad Bhagwat Purana and Skanda Purana. In Skanda Purana, the glory of Chhathi Maiya has been described in detail in the form of a story. This worship is related to the wish for the long life and good health of the child. Many people also observe this fast with the wish to have children.

04. The story of the fast of Chhath festival

There are many mythological stories about Chhath festival. The main story among these is of the Suryavanshi king family and his wife Malini. In ancient times, Suryavanshi King Priyavrat and his wife Malini performed many religious rituals to have children, but they did not get any children. Due to this, the king started being very sad. As per the order of Sage Kashyap, they organized a Yagya to get a child. As a result, Queen Malini became pregnant but she gave birth to a dead child. This made the king and queen very sad and they were grief-stricken and decided to commit suicide. Hearing their wailing, a goddess riding on the throne came to them. And with her blessings, the dead child came alive. On this, King Priyavrat prayed to the goddess with folded hands and asked who are you? Then in response, the goddess said I am Chhath Mata, I bless childless couples to have children. And I protect those who have children. In this way, Chhath Puja started.

Apart from this, Chhath Puja is also mentioned in the Mahabharata period. It is said that Mother Kunti and Draupadi used to perform Shashthi Puja every year with full faith and devotion during their exile period. As a result of which they got back their lost kingdom. Similarly, it is said that Mahabharata warrior Karna used to stand in water for hours every day and worship Sun God. He was an ardent devotee of Sun God. It was by the grace of Sun God that he became a great warrior and he got extremely powerful armor and earrings and became very valiant. It is said that Karna started Chhath Puja as a form of worship of Sun God.

05. When is Chhath festival in the year 2024?

This year Chhath Mahaparva will start on 05 November 2024, Tuesday with the ritual of Nahaye-Khaye and will end on 08 November 2024, Friday with offering Arghya to the rising Sun God.

06. Time to offer Arghya to the Sun

07 November- Sandhya Arghya- Sunset time- at 05:31 pm.

08 November- Usha Arghya- Sunrise time- 06:38 am. After that Parana.

07. Rituals of Chhath festival?

Very difficult and sacred rules are followed in Chhath Puja because purity, restraint and discipline have special importance in it. The food on this is sattvik, banana leaves, earthen stoves, leaves and earthen pots are used for food preparation and consumption. On the first day, people bathe and eat, then on the second day after Kharna Prasad, on the third day in the evening, the fasting people stand waist deep in water, put fruits, flowers, sweets and lamps in a bowl, and offer arghya to the setting Sun God with raw milk and Ganga water in an earthen, brass or copper pot. All the people gather on the river bank and make a pavilion with reed or sugarcane sticks. They apply cow dung on its bottom, make alpana etc., install the urn and put lamps in garlands. After offering arghya to the Sun God, people return home, do night vigil and sing songs of Chhathi Maiya. On the second day, in the morning, in the same way, arghya is offered to the rising Sun God, and the fast is broken.

In Chhath Puja, bamboo basket i.e. soup or Daliya, special Prasad Thekua made of jaggery and flour, every type of seasonal fruit, Gangajal, raw coconut, turmeric, vermilion, earthen lamps, ghee, incense, agarbatti etc. are used. This fast is observed by the whole family together. This fast increases mutual attachment and harmony between the family and the society. Everyone celebrates this festival together, due to which the feeling of affection, love and cooperation is strengthened among the people.

In the above article, I have tried to give some information about the great festival Chhath. I hope all the readers would have liked my effort. Please give your advice through comments.

Thanks and gratitude.

– Astro Richa Srivastava (Jyotish Kesari)

गोवर्धन पूजन पर्व 2024 (Hindi & English)

गोवर्धन पूजन पर्व 2024 (Hindi & English)

Om-Shiva

अन्नकूट अथवा गोवर्धन पूजन पर्व हमारी लोक संस्कृति का प्रमुख हिस्सा है। इस पर्व को मनाने का उद्देश्य गऊ यानि पृथ्वी और गऊ यानि गाय वंश की उन्नति और उनके संवर्धन से जुड़ा हुआ है। अन्नकूट का महोत्सव और गोवर्धन पूजा दोनों ही कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को मनाए जाते हैं। बृजवासियों के लिए यह मुख्य त्यौहार है। अन्नकूट या गोवर्धन पूजा का पर्व यूं तो अति प्राचीन काल से मनाया जाता रहा है। लेकिन आज जो विधान मौजूद है वह भगवान श्रीकृष्ण के इस धरा पर अवतरित होने के बाद द्वापरयुग से आरंभ हुआ है।

क्यों मनाते हैं अन्नकूट और गोवर्धन पर्व?

उल्लेखनीय है कि यह पूजन पशुधन व अन्य आदि के भंडार की वृद्धि के लिए मनाया जाता है। पुराणों में इस दिन इंद्र, वरुण, अग्नि, वायु, गणपति आदि देवताओं की पूजा करने का उल्लेख मिलता है। ऋषि मुनियों के अनुसार अन्नकूट और गोवर्धन उत्सव भगवान श्री हरि विष्णुजी की प्रसन्नता के लिए मनाना चाहिए। इस पूजन से गऊवंश का कल्याण होता है और पुत्र, पौत्रादि संततियों में वृद्धि होती है, ऐश्वर्य सुख एवम भोग की प्राप्ति होती है। कार्तिक महीने में जो कुछ भी होम, जप, पूजन-अर्चन किया जाता है, इन सब के पूर्ण फल प्राप्ति हेतु गोवर्धन पूजन अवश्य करना चाहिए। उल्लेखनीय है कि गोवर्धन पूजा के दिन भगवान विश्वकर्माजी की भी पूजा की जाती है। सभी कारखानों और उद्योगों में मशीनों और कृषि यंत्रों की भी पूजा की जाती है।

पूजन का विधि-विधान

यह पर्व दीपावली के ठीक दूसरे दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि को मनाया जाता है। इस दिन प्रातः काल शरीर पर तेल और उबटन आदि लगाकर स्नान करना चाहिए। फिर घर के द्वार पर गऊ के गोबरधन से गोवर्धन बनाना चाहिए। गोवर्धन गोबरधन से एक लेटे हुए पुरुष की आकृति के रूप में बनाए जाते हैं। नाभि के स्थान पर मिट्टी का दीपक रख दिया जाता है। इस मिट्टी के दीपक में दूध, दही, गंगाजल, शहद, बताशे आदि पूजा करते समय डाल दिए जाते हैं और बाद में प्रसाद के रूप में बांट दिए जाते हैं। पूजन करते समय धूप, दीप, नैवेद्य, जल, फल आदि चढ़ाए जाने चाहिएं।

गोवर्धन पूजा सुबह अथवा शाम को करनी चाहिए। इस दिन गाय, बैल और कृषि के काम में आने वाले पशुओं की पूजा की जाती है। पूजन के पश्चात सब में प्रसाद वितरण किया जाता है और पुरोहित को दान-दक्षिणा आदि देकर विदा किया जाता है। गोवर्धन पूजा के दिन देशभर के मंदिरों में धार्मिक आयोजन और अन्नकूट के भंडारे होते हैं। पूजन के बाद लोगों में भोजन प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। गोवर्धन पूजा के दिन गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा लगाने का बड़ा महत्व है। मान्यता है कि गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

वर्ष 2024 गोवर्धन/अन्नकूट पूजन तिथि और मुहूर्त

वर्ष 2024 में गोवर्धन पूजा 02 नवंबर दिन शनिवार को मनाया जाएगा। गोवर्धन पूजा का प्रातःकाल का मुहूर्त सुबह 06:34 से सुबह 08:46 तक होगा। गोवर्धन पूजा का सायंकाल का मुहूर्त दोपहर 02:30 से शाम 05:34 तक होगा।

गोवर्धन पूजन का पौराणिक सन्दर्भ

वैदिक काल में इंद्र सर्वश्रेष्ठ देवता थे। ऐसी मान्यता थी कि उनकी ही कृपा से वर्षा होती है जिसके कारण धरती पर अन्न पैदा होता है। द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण के समय में भी ब्रज के लोग इंद्र की पूजा करते थे। इंद्र को अपनी शक्ति पर अत्यंत अभिमान हो गया था। श्रीकृष्ण ने इंद्र को सबक सिखाने के लिए यह पूजा बंद कर दी और ब्रज में स्थित गोवर्धन पर्वत पर चले गए। वहां पर श्रीकृष्ण ने गोवर्धन का रूप धरकर पूरे बृजवासियों को विभिन्न प्रकार के अन्नों का मिश्रण बनाकर भोजन कराया और सबकी भूख मिटाकर संतुष्ट किया। इससे इंद्र बहुत रुष्ट हो गए और ब्रजमंडल में इतनी वर्षा करी की चारों तरफ पानी-पानी हो गया। तब श्रीकृष्ण ने अपनी कनिष्ठ उंगली से गोवर्धन पहाड़ को उठा लिया और उसके नीचे सभी गोपियों, गाय और बछड़ों को रखकर वर्षा से सबकी रक्षा करी। यह देखकर इंद्र का अभिमान टूट गया और उन्हें अपनी हार माननी पड़ी। वर्षा समाप्त हो जाने पर भगवान श्रीकृष्ण सबको लेकर ब्रज में लौटे तभी से अन्नकूट और गोवर्धन की यह पूजा होने लगी।

इस पर्व का नाम गोवर्धन क्यों पड़ा?

जब गोवर्धन पर्वत पर बहुत सारे गऊ और बछड़े इकट्ठे हो गए थे। तब सब जगह गोबर ही गोबर हो गया था। गोवर्धन पर्वत भी गोबर के एक बहुत बड़े पहाड़ जैसा दिखने लगा था। इसलिए इस दिन गोबर से पहाड़ की आकृति बनाकर गोवर्धन का रूप बनाया जाता है और गोधूलि के समय इसकी पूजा की जाती है और परिक्रमा करी जाती है।

उपर्युक्त आलेख में मैंने गोवर्धन पूजा अथवा अन्नकूट पूजन के विषय में कुछ जानकारी देने का प्रयास किया है। आशा करती हूं कि, मेरा यह प्रयास आप पाठकों को पसंद आएगा। कृपया कमेंट के जरिए अपनी राय अवश्य बताएं।

धन्यवाद और आभार।

एस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव (ज्योतिष केसरी)

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Govardhan Pujan Festival 2024 (Hindi & English)

Om-Shiva

Annakoot or Govardhan Pujan festival is an important part of our folk culture. The purpose of celebrating this festival is related to the progress and promotion of Gau i.e. Earth and Gau i.e. Cow clan. Both Annakoot Festival and Govardhan Puja are celebrated on Kartik Shukla Pratipada. This is the main festival for the people of Brij. The festival of Annakoot or Govardhan Puja has been celebrated since ancient times. But the law that exists today started from Dwaparyuga after Lord Krishna descended on this earth.

Why do we celebrate Annakoot and Govardhan festival?

It is noteworthy that this worship is celebrated to increase the stock of livestock and others. In the Puranas, there is a mention of worshiping gods like Indra, Varun, Agni, Vayu, Ganapati etc. on this day. According to the sages and saints, Annakoot and Govardhan festival should be celebrated for the happiness of Lord Shri Hari Vishnuji. This worship brings welfare to the cow family and increases the number of sons, grandsons, progeny, attainment of wealth, happiness and enjoyment. Whatever hom, jaap, worship and prayer is done in the month of Kartik, Govardhan Puja must be done to get the full fruits of all these. It is worth mentioning that Lord Vishwakarma is also worshipped on the day of Govardhan Puja. Machines and agricultural equipment are also worshipped in all factories and industries.

Procedure of worship

This festival is celebrated on the first day of Shukla Paksha of Kartik month, the day after Diwali. On this day, one should take a bath in the morning after applying oil and ubtan on the body. Then Govardhan should be made from cow dung at the door of the house. Govardhan is made from cow dung in the form of a lying man’s figure. An earthen lamp is placed at the place of the navel. Milk, curd, Ganga water, honey, batasha etc. are put in this earthen lamp while performing the worship and later distributed as prasad. While performing the puja, incense, lamps, offerings, water, fruits etc. should be offered.

Govardhan Puja should be performed in the morning or evening. On this day, cows, bulls and animals used in agriculture are worshipped. After the puja, prasad is distributed among all and the priest is bid farewell by giving donations etc. On the day of Govardhan Puja, religious events and Annakoot Bhandara are held in temples across the country. After the puja, food is distributed among the people as prasad. On the day of Govardhan Puja, circumambulating the Govardhan mountain has great significance. It is believed that by circumambulating the Govardhan mountain, one gets the blessings of Lord Krishna.

Year 2024 Govardhan/Annakoot Puja Date and Muhurta

In the year 2024, Govardhan Puja will be celebrated on 02 November, Saturday. The morning muhurta of Govardhan Puja will be from 06:34 am to 08:46 am. The evening muhurat of Govardhan Puja will be from 02:30 pm to 05:34 pm.

Mythological reference of Govardhan Puja

In the Vedic period, Indra was the best god. It was believed that it is due to his grace that it rains, due to which food grains are produced on earth. In Dwaparyug, even during the time of Lord Krishna, the people of Braj used to worship Indra. Indra had become very proud of his power. To teach Indra a lesson, Shri Krishna stopped this worship and went to Govardhan mountain located in Braj. There, Shri Krishna took the form of Govardhan and fed the entire Brajvasis by making a mixture of different types of grains and satisfied everyone by satiating their hunger. This made Indra very angry and he rained so much in Braj Mandal that there was water all around. Then Shri Krishna lifted the Govardhan mountain with his little finger and kept all the gopis, cows and calves under it and protected everyone from the rain. Seeing this, Indra’s pride broke and he had to accept his defeat. When the rains ended, Lord Krishna returned to Braj with everyone, since then this worship of Annakoot and Govardhan started.

Why was this festival named Govardhan?

When many cows and calves gathered on Govardhan mountain. Then there was cow dung everywhere. Govardhan mountain also started looking like a very big mountain of cow dung. Therefore, on this day, Govardhan is made by making a mountain shape with cow dung and it is worshipped at dusk and circumambulation is done.

In the above article, I have tried to give some information about Govardhan Puja or Annakoot Puja. I hope that you readers will like my effort. Please tell your opinion through comments.

Thanks and gratitude.

Astro Richa Srivastava (Jyotish Kesari)

दीपोत्सव का पर्व दीपावली 2024 (Hindi & English)

दीपोत्सव का पर्व दीपावली 2024 (Hindi & English)

Om-Shiva

दीपावली हिंदू सनातन धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह त्यौहार प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्ण की अमावस्या तिथि को पूरे हर्षोल्लास के साथ न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी मनाया जाता है। यह त्यौहार मुख्यतः भगवती लक्ष्मी देवी को समर्पित है। किंतु इस दिन भगवान गणेश, माँ सरस्वती और और देवी महाकाली की भी पूजा की जाती है।

01. कैसे मनाते हैं दीपावली?

संपूर्ण दीपावली पर्व असल में पांच दिवसीय त्यौहार है। इसमें प्रथम दिन धनतेरस मनाया जाता है जिसमें देवों के वैद्य भगवान धनवंतरी जी की पूजा की जाती है। दूसरे दिन रूप चतुर्दशी अथवा नरक चतुर्दशी मनाई जाती है जिसमें यम देवता और धन के देवता कुबेर की पूजा की जाती है। तीसरे दिन मुख्य त्योहार दीपावली मनाई जाती है। इस दिन घर को बिजली के सुंदर बल्ब की लड़ियों, मोमबत्तियों, और मिट्टी के दीपक जलाकर घर को प्रकाशित किया जाता है। इसके अलावा, सुंदर रंगोली, रंग बिरंगे तोरण, तथा सुंदर पुष्प मालाओं से घर को सजाया जाता है और लक्ष्मी जी के स्वागत की तैयारी की जाती है। संध्याकाल में लक्ष्मी पूजन के उपरांत मिठाई एवम पकवान बांटे जाते हैं और खाये जाते हैं। रात्रिकाल में पटाखे छोड़े जाते हैं और रात्रि जागरण करके लक्ष्मीजी का पूजन करते हैं। इस दिन लक्ष्मीजी के साथ गणेशजी और ज्ञान की देवी भगवती सरस्वतीजी के भी पूजन की परंपरा है।

क्योंकि ऐसा माना जाता है लक्ष्मी यानी कि धन के साथ बुद्धि, विवेक और ज्ञान यानि कि गणेशजी और सरस्वतीजी की भी आवश्यकता होती है। दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा की जाती है। इसमें गोवर्धन पर्वत के साथ भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। फिर धनतेरस के पांचवें दिन भैया दूज बनाने की प्रथा है, जिसमें बहनें अपने भाई की लंबी आयु और उत्तम स्वास्थ्य के लिए व्रत रखती हैं और पूजन करती हैं। इस दिन देश विदेश के असंख्य लोग विशेषतः कायस्थ समाज के लोग धर्मराज चित्रगुप्त जी की पूजा करते हैं। जिसे कलम दवात की पूजा भी करी जाती है। पूर्वोत्तर हिस्सों में विशेष तौर पर बंगाली समाज के लोग अमावस्या के दिन महा निशाकाल में भगवती महाकाली की पूजा और आराधना करते हैं। इसके अलावा अमावस्या को पितरों की तिथि भी कहा जाता है। अतः इस दिन पितरों का पूजन भी करते हैं। उनके निमित्त दान पुण्य भी किया जाता है। सायंकाल और रात्रिकाल में आकाश में आकाशदीप भी छोड़े जाते हैं। ऐसा माना जाता है रोशनी से भरें यह आकाशदीप हमारे पितरों को विष्णुलोक का मार्ग दिखाते हैं।

02. क्यों मनाते हैं दीपावली

दीपावली का त्योहार मनाने की पीछे कुछ पौराणिक संदर्भ हैं। कहा जाता है कि इस दिन भगवान श्रीराम लंका विजय करके अयोध्या वापस लौटे थे। उनके स्वागत में अयोध्या वासियों ने पूरी अयोध्या को दीप मालाओं से सजाया था। तब से प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्ण अमावस्या को दीपावली मनाने का प्रचलन प्रारंभ हुआ। इसके अलावा कार्तिक कृष्ण की चतुर्दशी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध करके उसके चंगुल से 16,100 युवतियों को छुड़ाया था। उनकी याद में इस दिन नरक चतुर्दशी मनाई जाती है और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। दीपावली की अमावस्या का अपना विशेष महत्व है। इस दिन व्यापारी वर्ग अपने नए बही-खातों का शुभारंभ करते हैं। वहीं अर्द्धरात्रि का मुहूर्त तांत्रिकों और साधकों के लिए विशेष महत्व रखता है।

03. दीपावली का मुख्य पौराणिक संदर्भ

एक बार सनत कुमार ने शौनकादि ऋषि-मुनियों से पूछा कि, दीपावली के त्योहार पर लक्ष्मीजी के अलावा अन्य देवी-देवताओं का पूजन क्यों किया जाता है? तब ऋषियों ने बताया की लक्ष्मी ऐश्वर्या और भोग की अधिष्ठात्री देवी हैं। जहां पर इनका वास होता है वहां सुख-समृद्धि एवं आनंद मिलता है। इसकी कथा यह है कि, एक बार दैत्य राज बलि ने अपने बाहुबल से अनेक देवी-देवताओं सहित लक्ष्मीजी को बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया था। तब कार्तिक की अमावस्या को श्रीहरि भगवान विष्णुजी ने वामन का अवतार लेकर राजा बलि से आकाश और पाताल सब वापस ले लिया था। और लक्ष्मीजी सहित सभी देवी-देवताओं को राजा बलि के कारागार से मुक्त कराया था। उसके बाद विष्णुजी लक्ष्मीजी के साथ शयन के लिए क्षीरसागर में चले गए। इसलिए अन्य देवी-देवताओं के साथ लक्ष्मीजी के पूजन का विधान बनाया गया है। जो भी व्यक्ति उनका स्वागत उत्साहपूर्वक करके स्वच्छ कमल शय्या प्रदान करता है, पूजन करता है, उनके घर में लक्ष्मीजी का स्थाई वास हो जाता है।

04. दीपावली 2024 के पूजन की तिथि और मुहूर्त

इस वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर को 03:52 से शुरू होगी। और तिथि का समापन 01 नवंबर की शाम 06:16 पर होगा। शास्त्रों के अनुसार अमावस्या पर रात्रि पूजन का विधान है। यानी 31 अक्टूबर को पूरी रात अमावस्या तिथि रहेगी, लेकिन 01 नवंबर की रात से पहले वह समाप्त हो जाएगी। 01 नवंबर की रात्रि को प्रतिपदा तिथि होगी । इसलिए रात्रि व्यापिनी अमावस्या 31 अक्टूबर को ही होगी और दीपावली लक्ष्मी पूजन 31 अक्टूबर को ही होगा।

पूजन का मुहूर्त

31 अक्टूबर का पहला मुहूर्त प्रदोष काल पूजन मुहूर्त में शाम 05:36 से रात्रि 08:15 तक रहेगा। लक्ष्मी पूजन सदैव स्थिर लग्न में किया जाता है इसलिए वृषभ लग्न में लक्ष्मी पूजन होगा। इस दौरान स्थिर लग्न वृषभ रहेगा। लक्ष्मी पूजन का महा निशीथ मुहूर्त 31 अक्टूबर को रात 11:39 मिनट से लेकर देर रात 12:31 तक है। इस समय महाकाली, महासरस्वती और महालक्ष्मी पूजन किया जाएगा।

उपर्युक्त आलेख में मैंने दीपावली संबंधित अधिकांश जानकारी देने का प्रयास किया है। आशा करती हूं कि सभी पाठकों को मेरा प्रयास पसंद आएगा।

धन्यवाद और आभार।

-एस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव (ज्योतिष केसरी)

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Diwali 2024 the festival of lights (Hindi & English)

Om-Shiva

Diwali is one of the major festivals of Hindu Sanatan Dharma. This festival is celebrated every year on the new moon day of Kartik Krishna with great enthusiasm not only in the country but also abroad. This festival is mainly dedicated to Goddess Lakshmi. But on this day Lord Ganesha, Mother Saraswati and Goddess Mahakali are also worshiped.

01. How is Diwali celebrated?

The entire Diwali festival is actually a five-day festival. In this, Dhanteras is celebrated on the first day in which Lord Dhanvantari, the physician of the gods, is worshiped. On the second day, Roop Chaturdashi or Narak Chaturdashi is celebrated in which Yama Devta and Kubera, the god of wealth, are worshiped. The main festival of Diwali is celebrated on the third day. On this day, the house is illuminated by lighting beautiful electric bulb strings, candles, and earthen lamps. Apart from this, the house is decorated with beautiful rangoli, colourful arches, and beautiful floral garlands and preparations are made to welcome Lakshmi ji. After Lakshmi pujan in the evening, sweets and delicacies are distributed and eaten. Crackers are burst at night and Lakshmi ji is worshipped by staying awake all night. On this day, there is a tradition of worshipping Ganesh ji and Goddess of knowledge, Bhagwati Saraswati ji, along with Lakshmi ji.

Because it is believed that along with Lakshmi i.e. wealth, intelligence, discretion and knowledge i.e. Ganesh ji and Saraswati ji are also required. Govardhan puja is performed after Diwali. In this, Lord Krishna is worshipped along with Govardhan mountain. Then on the fifth day of Dhanteras, there is a tradition of celebrating Bhaiya Dooj, in which sisters observe fast and worship for their brother’s long life and good health. On this day, countless people from the country and abroad, especially the people of Kayastha community, worship Dharmaraj Chitragupta ji. Pen and ink pot are also worshipped. In the northeastern parts, especially the Bengali community, people worship and adore Bhagwati Mahakali during the Maha Nishakal on the day of Amavasya. Apart from this, Amavasya is also called the date of ancestors. Therefore, on this day, ancestors are also worshipped. Charity is also done for them. Sky lamps are also released in the sky in the evening and night. It is believed that these sky lamps filled with light show our ancestors the path to Vishnulok.

02. Why do we celebrate Deepawali

There are some mythological references behind celebrating the festival of Deepawali. It is said that on this day Lord Shri Ram returned to Ayodhya after conquering Lanka. To welcome him, the people of Ayodhya decorated the entire Ayodhya with garlands of lamps. Since then, the practice of celebrating Deepawali on Kartik Krishna Amavasya started every year. Apart from this, on the Chaturdashi date of Kartik Krishna, Lord Krishna killed Narakasura and freed 16,100 girls from his clutches. In his memory, Narak Chaturdashi is celebrated on this day and Lord Krishna is worshipped. The new moon day of Diwali has its own importance. On this day, the business class starts their new account books. The midnight muhurta holds special importance for tantriks and sadhaks.

03. Main mythological reference of Diwali

Once Sanat Kumar asked Shaunakadi Rishis that why other gods and goddesses are worshipped apart from Lakshmi on the festival of Diwali? Then the sages told that Lakshmi is the presiding goddess of wealth and enjoyment. Wherever she lives, there is happiness, prosperity and joy. Its story is that, once the demon king Bali had imprisoned Lakshmi along with many other gods and goddesses with his strength. Then on the new moon day of Kartik, Shri Hari Lord Vishnu took the form of Vaman and took back the sky and the underworld from King Bali. And all the gods and goddesses including Lakshmi ji were freed from the prison of King Bali. After that Vishnu ji went to Kshirsagar to sleep with Lakshmi ji. Therefore, the law of worshiping Lakshmi ji along with other gods and goddesses has been made. Whoever welcomes her enthusiastically and offers a clean lotus bed, worships, Lakshmi ji resides permanently in his house.

04. Date and Muhurta of worship of Diwali 2024

This year the Amavasya date of Kartik month will start from 03:52 on October 31. And the date will end on the evening of November 01 at 06:16. According to the scriptures, there is a law of night worship on Amavasya. That is, Amavasya Tithi will remain throughout the night on October 31, but it will end before the night of November 01. Pratipada Tithi will be on the night of November 01. Therefore, Ratri Vyapini Amavasya will be on 31st October and Deepawali Lakshmi Pujan will be on 31st October only.

Pujan Muhurta

The first Muhurta of 31st October will be from 05:36 pm to 08:15 pm in Pradosh Kaal Pujan Muhurta. Lakshmi Pujan is always done in Sthir Lagna, so Lakshmi Pujan will be done in Vrishabha Lagna. During this time, Sthir Lagna will be Vrishabha. Maha Nishith Muhurta of Lakshmi Pujan is from 11:39 pm to 12:31 late night on 31st October. During this time Mahakali, Mahasaraswati and Mahalakshmi Pujan will be done.

In the above article, I have tried to give most of the information related to Deepawali. I hope that all readers will like my effort.

Thanks and gratitude.

-Astro Richa Srivastava (Jyotish Kesari)

धनतेरस 2024 (Hindi & English)

धनतेरस 2024 (Hindi & English)

Om-Shiva

01. परिचय

धनतेरस का त्यौहार दीपावली आने की पूर्व सूचना देता है। इस दिन भगवान धन्वंतरि क्षीरसागर से अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए थे। धनतेरस के दिन दीर्घायु और स्वस्थ जीवन की कामना से भगवान धन्वंतरि का पूजन पूरे हर्षोल्लास से किया जाता है। जब देवताओं के वैद्य भगवान धन्वंतरि समुद्र मंथन के पश्चात प्रकट हुए थे, तब उनके हाथ में अमृत से भरा कलश था। तब से ही धनतेरस के दिन बर्तन खरीदने की परंपरा शुरू हुई

धनतेरस के दिन बर्तनों के अलावा सोने और चांदी के गहने तथा महंगी धातुओं के समान भी खरीदे जाते हैं। धनतेरस को धन त्रयोदशी व धनवंतरी जयंती के नाम से भी जाना जाता है। इसी दिन से दीपावली के पंच दिवसीय पंचपर्व की शुरुआत होती है। माना जाता है कि इस दिन से ही माता लक्ष्मीजी और कुबेरजी का वास हमारे घरों में हो जाता है। इस दिन यमदेव की भी पूजा की जाती है और यमराज को दीपदान भी किया जाता है।

02. धनतेरस पूजन की तिथि और मुहूर्त

इस वर्ष 2024 में धनतेरस 29 अक्टूबर दिन मंगलवार को मनाया जाएगा। पूजन का मुहूर्त शाम 06:33 से रात्रि 08:45 तक है। इसी बीच खरीदारी और पूजन करना चाहिए।

03. पूजन का विधि विधान

धनतेरस के दिन प्रातः समय में हल्दी, चंदन आदि का उबटन लगाकर स्नान करना चाहिए। उसके पश्चात संध्याकाल में भगवान धन्वंतरि का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। भगवान धन्वंतरि के साथ कुबेरजी एवं माता लक्ष्मीजी का भी पूजन करना चाहिए। शाम के समय घर के मुख्यद्वार और आंगन में दीप जलाने चाहिए। संध्या के पश्चात यम देवता के निमित्त दक्षिण दिशा में दीप का दान करना चाहिए। ऐसा करने से अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है।

04. धनतेरस के दिन क्या खरीदें?

धनतेरस के दिन नए बर्तन, पीतल के कलश, सोने चांदी के आभूषण, वैभव की वस्तुएं और नए वस्त्रों को खरीदना शुभ माना जाता है। इसके अलावा इस दिन विशेष तौर पर साबुत धनिया, फूलझाड़ू खरीदना शुभ रहता है। इस दिन काले और नीले रंग की वस्तुएं, चीनी मिट्टी के सामान, अल्युमिनियम और लोहे की धातु से बनी चीजों को नहीं खरीदना चाहिए। फूलझाड़ू को भी हमेशा विषम संख्या में ही खरीदना चाहिए। ऐसा कहते हैं कि हमारे घर की झाड़ू घर की सफाई करके नकारात्मकता दूर करती है और लक्ष्मीजी का स्वागत करने में सहायता करती है। इसलिए इस दिन झाड़ू विशेष तौर पर फूलझाड़ू खरीदने का विशेष प्रावधान है।

05. यमदेव के पूजन का पौराणिक सन्दर्भ

एक बार यमराज ने अपने यमदूतों से पूछा कि क्या कभी तुम्हें प्राणियों के प्राणों का हरण करते समय किसी पर दया उमड़ी है? तो वें संकोच में पड़कर बोले, नहीं महाराज! हमें दयाभाव से क्या मतलब? हम तो बस आपकी आज्ञा का पालन करने में लगे रहते हैं। जब यमराज ने उनसे बार-बार यही प्रश्न किया तब उन्होंने संकोच छोड़कर यह बताया कि एक बार ऐसी घटना घटी थी जिससे हमारा हृदय भी कांप उठा था। हिम नामक एक राजा की पत्नी ने जब एक पुत्र को जन्म दिया तब ज्योतिषियों ने नक्षत्र की गणना करके बताया कि यह बालक जब भी विवाह करेगा उसके चार दिन के बाद ही मर जाएगा।

यह जानकर राजा ने उस बालक को स्त्रियों की छाया तक से बचाने के लिए यमुना नदी के तट पर एक गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में पालकर बड़ा किया। संयोगवश, एक दिन जब महाराज हंस की पुत्री यमुना के तट पर घूम रही थी तो उस ब्रह्मचारी राजकुमार ने उस पर मोहित होकर उससे गंधर्व विवाह कर लिया। किंतु विवाह के चार दिन पूरे होते ही राजकुमार की मृत्यु हो गई। अपने पति की मृत्यु देखकर उसकी पत्नी बिलख-बिलखकर रोने लगी। उस नव विवाहता का गरुड़ विलाप सुनकर हमारा हृदय भी कांप उठा। हमने जीवन में कभी भी ऐसी सुंदर जोड़ी नहीं देखी थी। वे दोनों साक्षात कामदेव व रति के अवतार मालूम होते थे। उस राजकुमार के प्राण हरण करते समय हमारे आंसू नहीं रुक रहे थे।

यह सुनकर यमराज ने कहा, क्या करें विधि के विधान के अनुसार उसकी मर्यादा निभाकर हमें ऐसे अप्रिय कार्य करने ही पड़ते हैं। फिर एक यमदूत ने उत्सुकतावश यमराज से पूछा, महाराज क्या अकाल मृत्यु से बचने का कोई भी उपाय नहीं है? ।यमराज बोले, हां उपाय तो है। अकाल मृत्यु से छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति को धनतेरस के दिन पूजन और दीपदान विधिपूर्वक करना चाहिए इससे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। इस कथा के पश्चात धनतेरस के दिन यम को दीपदान करने और उनका पूजन करने का प्रचलन प्रारंभ हुआ।

उपर्युक्त आलेख में मैंने धनतेरस के विषय में एक संक्षिप्त जानकारी देने का प्रयास किया है। आशा करती हूं कि मेरा यह प्रयास आप पाठकों को पसंद आएगा।

धन्यवाद और आभार!

-एस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव

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Dhanteras 2024 (Hindi & English)

Om-Shiva

01. Introduction

The festival of Dhanteras gives advance information about the arrival of Diwali. On this day, Lord Dhanvantari appeared from Kshirsagar with a pot of nectar. On the day of Dhanteras, Lord Dhanvantari is worshipped with great joy with the wish of long life and healthy life. When Lord Dhanvantari, the physician of the gods, appeared after the churning of the ocean, he had a pot full of nectar in his hand. Since then the tradition of buying utensils on the day of Dhanteras started.

Apart from utensils, gold and silver jewelry and expensive metals are also purchased on the day of Dhanteras. Dhanteras is also known as Dhan Trayodashi and Dhanvantari Jayanti. From this day the five-day Panchparva of Diwali begins. It is believed that from this day onwards Mother Lakshmi and Kuberji reside in our homes. On this day, Yamdev is also worshiped and lamps are also donated to Yamraj.

02. Date and auspicious time of Dhanteras worship

This year in 2024, Dhanteras will be celebrated on Tuesday, October 29. The auspicious time for worship is from 06:33 pm to 08:45 pm. Shopping and worship should be done during this time.

03. Method of worship

On the day of Dhanteras, one should take a bath in the morning by applying a paste of turmeric, sandalwood etc. After that, Shodashopachar worship of Lord Dhanvantari should be done in the evening. Along with Lord Dhanvantari, Kuberji and Mother Lakshmi should also be worshipped. In the evening, lamps should be lit at the main entrance and courtyard of the house. After evening, a lamp should be donated in the south direction for Yam Devta. By doing this, one gets freedom from the fear of untimely death.

04. What to buy on Dhanteras?

On the day of Dhanteras, it is considered auspicious to buy new utensils, brass urns, gold and silver ornaments, luxury items and new clothes. Apart from this, it is especially auspicious to buy whole coriander and flower broom on this day. Black and blue colored items, porcelain items, aluminum and iron metal items should not be bought on this day. Flower brooms should also always be bought in odd numbers. It is said that the broom of our house cleans the house and removes negativity and helps in welcoming Goddess Lakshmi. Therefore, there is a special provision to buy brooms and especially flower brooms on this day.

05. Mythological reference of Yamdev’s worship

Once Yamraj asked his Yamdoots whether they ever felt pity for someone while taking away the lives of living beings? Then they said hesitantly, No Maharaj! What do we have to do with pity? We just keep on following your orders. When Yamraj asked him the same question again and again, he left his hesitation and told that once such an incident had happened which had made even our heart tremble. When the wife of a king named Him gave birth to a son, the astrologers calculated the stars and told that whenever this child would get married, he would die within four days.

Knowing this, the king raised that child as a brahmachari in a cave on the banks of river Yamuna to protect him from even the shadow of women. Coincidentally, one day when the daughter of Maharaj Hans was roaming on the banks of Yamuna, that celibate prince got attracted to her and married her in Gandharva style. But after four days of marriage, the prince died. Seeing her husband’s death, his wife started crying bitterly. Hearing the Garuda lamentation of that newly married woman, our heart also trembled. We had never seen such a beautiful couple in our life. Both of them looked like incarnations of Kaamdev and Rati. Our tears were not stopping while taking away the life of that prince.

Hearing this, Yamraj said, what to do, we have to do such unpleasant tasks by fulfilling the rules of the law. Then a Yamdoot asked Yamraj out of curiosity, Maharaj, is there no way to avoid untimely death? Yamraj said, yes there is a way. To get rid of untimely death, a person should worship and give lamps properly on the day of Dhanteras, this will not cause fear of untimely death. After this story, the practice of giving lamps to Yam and worshipping him on the day of Dhanteras started.

In the above article, I have tried to give a brief information about Dhanteras. I hope that you readers will like my effort.

Thanks and gratitude!

-Astro Richa Srivastava.

करवा चौथ पर्व 2024 (Hindi & English)

करवा चौथ पर्व 2024 (Hindi & English)

करवा चौथ का पर्व पतिदेव के सुख और अखंड सौभाग्य हेतु सभी सुहागिन स्त्रियां बड़ी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाती हैं। इस दिन सभी विवाहित स्त्रियां निराहार रहकर अपने पति के दीर्घायु और समृद्धिशाली होने की कामना करते हुए उपवास करतीं हैं और शिव परिवार सहित चन्द्रदेव की पूजा करती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से पतिसुख, सन्तान सुख, धन-धान्य और सौभाग्य में वृद्धि होती है।

01. कब मनाया जाता है करवा चौथ?

करवा चौथ कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन मिट्टी के करवों में गेहूं, दूध, शक्कर, जल, तांबे या चांदी का सिक्का डालते हैं और भगवान का पूजन करते हैं, इसलिए इसे करवा चौथ कहते हैं। वर्ष 2024 में करवा चौथ का व्रत दिन रविवार, 20 अक्टूबर को है। चंद्रोदय मुहूर्त सांय लगभग 07 बजकर 40 मिनट पर होगा।

02. करवा चौथ की धार्मिक मान्यता

नारद पुराण में वर्णन है कि कार्तिक कृष्णपक्ष की चतुर्थी को “करका चतुर्थी” व्रत करने का विधान है। यहां “करका” का अर्थ मिट्टी का एक छोटा पात्र होता है। यह सात्विक व्रत केवल स्त्रियों के लिए है। इसमें स्त्री को स्नानादि के बाद सुंदर वस्त्र और आभूषणों से सुसज्जित होकर भगवान गणेश, शिव और गौरी की पूजा करने का निर्देश दिया गया है।

कहा जाता है कि देवों और असुरों के बीच हुए युद्ध के समय अपने अपने पतियों की रक्षा के लिए सभी देवियों नें ब्रह्माजी से इस व्रत का उपदेश लिया था। वैसे, इस व्रत की परंपरा माता पार्वती ने प्रारंभ की थी। इसके अतिरिक्त महाभारत काल में माता कुंती ने इस व्रत अनुष्ठान को द्रौपदी को सौंपा था। अतः इस व्रत में सुहागिन महिलाएं अपनी सास का आशीर्वाद ज़रूर लेती हैं।

03. पूजन का विधि-विधान

व्रत रखने वाली स्त्री प्रातः काल नित्यकर्मों से निवृत्त होकर, स्नान आदि करके आचमन के बाद व्रत का संकल्प लेती हैं। यह व्रत निराहार ही नहीं बल्कि निर्जला के रूप में करना अधिक फलप्रद माना जाता है। कई स्थानों पर प्रातः व्रत से पहले भोर में सरगी करने का प्रचलन है। यह सरगी सास अपनी बहू को देतीं हैं।। सरगी में फलाहारी खाद्यान्न दिया जाता है।

इस व्रत में शिव दरबार और चन्द्र देव की पूजा करने का विधान है। इनका षोडशोपचार पूजन किया जाता है और मिट्टी के करवों में मिष्ठान, धान्य, दूध, शर्करा आदि भरकर सुहाग की सामग्री की पिटारी रखी जाती है। फिर दिनभर निर्जला व्रत रखकर शाम को चंद्रोदय के समय सभी व्रती महिलाएं व्रत की कथा सुनती हैं और छलनी से चन्द्र दर्शन करके चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं। फिर पूजन आरती करके पति के हाथों अपना व्रत खोलती हैं। फिर अंत में अपनी सास को भेंट देकर उनके पांव छूती है और उनसे अखंड सौभाग्य प्राप्ति का आशीर्वाद लेती हैं।

04. व्रत की कथा

एकं साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। सेठानी सहित उसकी बेटी और बहुओं नें करवा चौथ का व्रत रखा था। रात्रि को साहूकार के लड़के भोजन करने लगे तो उन्होंने अपने बहन से भोजन के करने लिए कहा। बहन ने कहा भाई अभी चांद नहीं निकला है। चांद के निकलने पर अर्घ्य देकर ही भोजन करूंगी। बहन की बात सुनकर भाइयों ने एक काम किया कि नगर से बाहर जाकर अग्नि जला दी और छलनी ले जाकर उसमें से प्रकाश दिखाते हुए उन्होंने बहन से कहा कि देखो बहन, चांद निकल आया है। अर्घ्य देकर के भोजन कर लो।

यह सुनकर उसने अपने भाभियों से कहा की आओ तुम भी चंद्रमा को अर्घ्य दे दो। भाभियों को अपने पतियों की चालाकी का पता था। वह अर्घ्य देने नहीं आई। उन्होंने अपनी ननद को बता दिया कि तेरे भाई तेरे से धोखा करके छलनी से प्रकाश दिखा रहे हैं। फिर भी बहन ने कुछ भी ध्यान ना दिया और छलनी से प्रकाश देखकर अर्घ्य दे दिया। इस प्रकार व्रत भंग करने से गणेशजी बहुत अप्रसन्न हो गए। इसके बाद उसका पति बहुत अधिक बीमार हो गया और उसकी सारी संपत्ति बीमारी में खर्च हो गई।

बाद में जब साहूकार की लड़की को अपने किए हुए दोषों का पता चला तो उसने बहुत पश्चात्ताप किया। फिर गणेशजी से प्रार्थना करते हुए पूर्ण विधि-विधान से पुनः चतुर्थी का व्रत किया और दान-दक्षिणा आदि प्रदान करी। श्रद्धाभक्ति सहित कर्म को देखकर भगवान गणेश उस पर प्रसन्न हुए और पुनः उसके पति को जीवनदान देकर उसे आरोग्य और धन संपत्ति वापस प्रदान कर दी।

प्रस्तुत आलेख में मैनें करवा चौथ के व्रत का एक संक्षिप्त विवरण देने का प्रयास किया है। आशा करती हूँ आप पाठकजनों को यह आलेख पसन्द आया होगा। कृपया कमेंट के ज़रिए अपनी राय अवश्य दें।

आभार और धन्यवाद।

-ऐस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव

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Karva Chauth Festival 2024 (Hindi & English)

All married women celebrate the festival of Karva Chauth with great devotion and faith for the happiness and unbroken good fortune of their husband. On this day, all married women fast by staying without food and wishing for the long life and prosperity of their husband and worship Chandradev along with the Shiva family. It is believed that by observing this fast, there is an increase in husband’s happiness, child happiness, wealth and good fortune.

01. When is Karva Chauth celebrated?

Karva Chauth is celebrated on the Chaturthi Tithi of Krishna Paksha of Kartik month. On this day, wheat, milk, sugar, water, copper or silver coin are put in clay pots and God is worshipped, hence it is called Karva Chauth. In the year 2024, the fasting day of Karva Chauth is on Sunday, October 20. Chandraodaya Muhurta will be at around 07:40 pm.

02. Religious belief of Karva Chauth

It is mentioned in Narada Purana that on the fourth day of Kartik Krishna Paksha, it is prescribed to observe “Karka Chaturthi” fast. Here “Karka” means a small earthen pot. This Satvik fast is only for women. In this, the woman is instructed to worship Lord Ganesha, Shiva and Gauri after bathing and then wearing beautiful clothes and ornaments.

It is said that during the war between the gods and the demons, all the goddesses took the advice of this fast from Brahmaji to protect their husbands. By the way, the tradition of this fast was started by Mother Parvati. Apart from this, during the Mahabharata period, Mother Kunti handed over this fast ritual to Draupadi. ​​Therefore, in this fast, married women definitely take the blessings of their mother-in-law.

03. Method of worship

The woman observing the fast takes a vow of fasting after finishing her daily chores in the morning, taking a bath etc. and sipping water. It is considered more fruitful to observe this fast not only without food but also without water. In many places, there is a practice of having Sargi in the morning before the fast. This Sargi is given by the mother-in-law to her daughter-in-law. Fruit food is given in Sargi.

In this fast, there is a ritual of worshipping Shiv Darbar and Chandra Dev. Their Shodashopachar worship is done and a box of Suhaag items is kept in clay pots filled with sweets, grains, milk, sugar etc. Then after observing Nirjala fast throughout the day, in the evening at the time of moonrise, all the fasting women listen to the story of the fast and after seeing the moon through a sieve, offer Arghya to the moon. Then after performing Puja Aarti, they break their fast in the hands of their husband. Then in the end, after giving gifts to their mother-in-law, they touch her feet and take blessings from her for attaining unbroken good fortune.

04. Story of the fast

A moneylender had seven sons and a daughter. The Seth’s wife, her daughter and daughter-in-laws had kept the fast of Karva Chauth. At night, when the sons of the moneylender started eating, they asked their sister to have food. The sister said, “Brother, the moon has not yet come out. I will eat only after offering Arghya to the moon.” On hearing the words of the sister, the brothers did one thing – they went out of the city and lit a fire and taking a sieve, showing the light through it, they told the sister, “Look sister, the moon has come out. Offer Arghya and have your food.”

On hearing this, she told her sisters-in-law to come and offer Arghya to the moon. The sisters-in-law knew about the cunningness of their husbands. They did not come to offer Arghya. They told their sister-in-law that your brothers are cheating you and showing light through the sieve. Still, the sister did not pay any attention and offered Arghya after seeing the light through the sieve. Ganeshji became very unhappy by breaking the fast in this way. After this, her husband became very ill and all his wealth was spent on his illness.

Later, when the moneylender’s daughter realized her mistakes, she repented a lot. Then, praying to Lord Ganesha, she again observed the Chaturthi fast with full rituals and offered donations etc. Seeing her act with devotion, Lord Ganesha was pleased with her and gave life to her husband and gave her health and wealth back.

In this article, I have tried to give a brief description of the fast of Karva Chauth. I hope you readers liked this article. Please give your opinion through comments.

Gratitude and thanks.

-Astro Richa Srivastava

शरद पूर्णिमा 2024 (Hindi & English)

शरद पूर्णिमा 2024 (Hindi & English)

Om-Shiva

01. परिचय

वर्ष की सभी बारह पूर्णिमाओं में शरद पूर्णिमा का एक विशेष महत्व है। कहा जाता है कि केवल इसी दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण सोलह कलाओं से युक्त होता है और पूर्ण बलशाली भी होता है। यह पूर्णिमा वर्षा ऋतु के समापन और शरद ऋतु के प्रारम्भ का संकेत देती है। इसे रास पूर्णिमा और कोजागरी पूनम भी कहते हैं। बंगाल, असम और उड़ीसा प्रान्तों में इस दिन लक्ष्मीजी की विशेष पूजा करते हैं और रात्रि जागरण भी करते हैं।

02. कब होती है शरद पूर्णिमा?

आश्विन मास में नवदुर्गा पर्व के बाद आने वाली पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है।

03. शरद पूर्णिमा का महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन चंद्रदेव अत्यंत बलशाली होते हैं, और पूर्ण सोलह कलाओं से युक्त होते हैं। कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की चांदनी में अमृत तुल्य औषधीय गुण होता है। अतः शरद पूर्णिमा की रात्रि को चन्द्रदेव का पूजन करने के बाद, चावल की खीर को रात भर चांदनी रात में खुले आकाश के नीचे रखा जाता है, फिर दूसरे दिन उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।

ये पूर्णिमा ऐसी है, जो तन, मन और धन तीनों के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। इस पूर्णिमा में चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है, वहीं देवी महालक्ष्मी अपने भक्तों को धन-धान्य से भरपूर करती हैं। दरअसल शरद पूर्णिमा का एक नाम कोजागरी पूर्णिमा इसलिए भी है क्योंकि, इस दिन रात्रिकाल में भगवती लक्ष्मीजी(कोजागरी) अपने भाई चंद्रदेव के साथ धरती पर आती हैं और पूछती हैं कि, कौन जाग रहा है? अश्विनी महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा अश्विनी नक्षत्र में होता है। इसलिए इस महीने का नाम अश्विनी पड़ा है। अश्विनी नक्षत्र के देवता अश्विनी कुमार हैं जोकि देवताओं के वैद्य या डॉक्टर माने जातें हैं। अतः इस नक्षत्र पर भ्रमण करने पर चंद्रमा में स्वाभाविक रूप से औषधीय बल आ जाता है। अतः इस दिन चांदनी का सेवन करने से तन और मन दोनों स्वस्थ बने रहते हैं।

04. भगवान श्रीकृष्ण नें रचाया रास

भागवत पुराण के अनुसार त्रेतायुग में अनेक गोपियों नें भगवान श्रीकृष्ण को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए देवी जगदम्बा का पूजन किया था। जिसके कारण देवी ने उन्हें कृष्ण का सान्निध्य पाने का वरदान दिया। तब आश्विन मास की शरद पूर्णिमा के दिन ही भगवान श्रीकृष्ण नें गोपियों संग महारास रचाया था।

05. कुमार कार्तिकेय का जन्म

ऐसा कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन ही शिव और पार्वती के तेज से कुमार कार्तिकेय का जन्म हुआ था। अतः इस तिथि को शैव सम्प्रदाय के लोग भी बड़ी श्रध्दा से मनाते हैं। इस प्रकार से शरद पूर्णिमा के दिन शिवभक्त और विष्णुभक्त दोनों ही चंद्रमा, माता लक्ष्मी, श्रीहरि विष्णु और भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते हैं।

06. वर्ष 2024 में कब है शरद पूर्णिमा?

भारतीय पंचांग के अनुसार, आश्विन महीने के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा 16 अक्टूबर को रात 08 बजकर 45 मिनट पर शुरू होगी और 17 अक्टूबर शाम 04 बजकर 50 मिनट पर खत्म होगी। शरद पूर्णिमा का व्रत जो लोग रखते हैं वह व्रत 16 अक्‍टूबर को रखा जाएगा और रात को खीर भी 16 अक्टूबर को ही रखी जाएगी। शरद पूर्णिमा के दिन रात्रि में चंद्रदेव की पूजा का विधान है। इस दिन चंद्रोदय शाम 05 बजकर 10 मिनट पर होगा।

07. पूजन विधि-विधान

पूर्णमासी के दिन प्रातः काल में नित्य स्नानादि दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर लकड़ी के एक पाटे पर भगवान लक्ष्मी-नारायण और शिव-परिवार की तस्वीरों को स्थापित किया जाता है। एक कलश में शुद्ध जल और एक कलश में गेहूं के दाने भरकर रखा जाता है। फिर धूप-दीप, पुष्प, नैवेद्य आदि से पंचोपचार पूजन किया जाता है। फिर गेहूं के दाने हाँथ में रखकर पूर्णिमा की कथा सुनी जाती है। फिर दिन भर व्रत-उपवास रखकर रात्रिकाल में चन्द्रदेव को अर्घ्य देकर खीर का भोग लगाते हैं और पूजन करते हैं। फिर रातभर खीर को चांदनी में रखकर सुबह प्रसाद के तौर पर ग्रहण किया जाता है और व्रत का पारण किया जाता है।

08. शरद पूर्णिमा व्रत कथा

प्राचीन काल में एक साहूकार की दो पुत्रियाँ थीं। दोनों पुत्रियां शरद पूर्णिमा का व्रत और पूजन किया करती थीं। परन्तु एक पूरे विधि-विधान और निष्ठा से व्रत किया करती थी जबकि दूसरी अधूरे मन से अधूरी पूजा किया करती थी। बड़ी पुत्री के तो कई संतानें हुईं और वें फलने फूलने लगीं, जबकि छोटी पुत्री की संतानें पैदा होते ही मर जाया करती थीं। जब छोटी पुत्री ने इसका उपाय ज्योतिषियों और पंडितों से पूछा तो उन्होंने उसे पूरी निष्ठा और श्रद्धा-भक्ति के साथ शरद पूर्णिमा का व्रत करने का मार्ग बताया। उसके बाद छोटी पुत्री की संतानें भी जीवित रहने लगीं और उन्हें सुख-सौभाग्य प्राप्त हुआ।

उपर्युक्त आलेख में मैंने शरद पूर्णिमा की विस्तृत जानकारी देने का प्रयास किया है। आशा करती हूँ आपको यह आलेख अवश्य पसन्द आएगा। कृपया कमेंट के ज़रिए अपनी राय दीजिए।

आभार और धन्यवाद।

-ऐस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव

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Sharad Purnima 2024 (Hindi & English)

Om-Shiva

01. Introduction

Sharad Purnima has a special significance among all the twelve full moons of the year. It is said that only on this day the moon is in its full sixteen phases and is also very powerful. This full moon indicates the end of the rainy season and the beginning of the autumn season. It is also called Raas Purnima and Kojagari Poonam. In Bengal, Assam and Orissa provinces, special worship of Lakshmiji is done on this day and night vigil is also done.

02. When is Sharad Purnima?

The full moon that comes after Navdurga festival in the month of Ashwin is called Sharad Purnima.

03. Importance of Sharad Purnima

According to mythological beliefs, on this day Chandradev is very powerful, and is full of sixteen phases. It is said that the moonlight of Sharad Purnima has medicinal properties like nectar. So, after worshipping Chandradev on the night of Sharad Purnima, rice pudding is kept under the open sky in the moonlight for the whole night, then it is consumed as prasad the next day.

This Purnima is such that it is the best for body, mind and wealth. In this Purnima, Amrit (nectar) rains from the rays of the moon, while Goddess Mahalakshmi blesses her devotees with wealth and grains. Actually, one of the names of Sharad Purnima is Kojagari Purnima because, on this day, Goddess Lakshmi (Kojagari) comes to earth with her brother Chandradev and asks who is awake? On the full moon day of Ashwini month, the moon is in Ashwini constellation. That is why this month is named Ashwini. The deity of Ashwini constellation is Ashwini Kumar who is considered to be the Vaidya or doctor of the gods. Therefore, on roaming on this constellation, the moon naturally gets medicinal power. Therefore, by consuming moonlight on this day, both body and mind remain healthy.

04. Lord Krishna performed Raas

According to the Bhagavata Purana, in Treta Yuga, many gopis worshipped Goddess Jagadamba to get Lord Krishna as their husband. Due to which the Goddess blessed them to get the proximity of Krishna. Then on the day of Sharad Purnima in the month of Ashwin, Lord Krishna performed Maharas with the gopis.

05. Birth of Kumar Kartikeya

It is said that Kumar Kartikeya was born on the day of Sharad Purnima from the brilliance of Shiva and Parvati. Therefore, people of Shaiv ​​sect also celebrate this date with great devotion. In this way, on the day of Sharad Purnima, both Shiva devotees and Vishnu devotees worship the Moon, Mother Lakshmi, Shri Hari Vishnu and Lord Shiva.

06. When is Sharad Purnima in the year 2024?

According to the Indian calendar, the full moon of the Shukla Paksha of Ashwin month will start on October 16 at 08:45 pm and will end on October 17 at 04:50 pm. Those who keep the fast of Sharad Purnima will keep the fast on October 16 and Kheer will also be kept on October 16 at night. There is a law of worshiping Chandradev at night on the day of Sharad Purnima. On this day, the moonrise will be at 05:10 pm.

07. Worship Method

On the day of Purnima, after retiring from daily tasks like bathing etc. in the morning, the pictures of Lord Lakshmi-Narayan and Shiv-family are installed on a wooden plank. Pure water is kept in a pot and wheat grains in another pot. Then Panchopchara worship is done with incense, lamp, flowers, offerings etc. Then the story of Purnima is heard by keeping wheat grains in the hand. Then after observing fast the whole day, they offer arghya to the moon god at night and offer kheer and worship him. Then after keeping the kheer in the moonlight the whole night, it is consumed as prasad in the morning and the fast is broken.

08. Sharad Purnima Vrat Katha

In ancient times, a moneylender had two daughters. Both the daughters used to observe fast and worship on Sharad Purnima. But one used to observe the fast with complete rituals and devotion while the other used to do incomplete worship with half-heartedness. The elder daughter had many children and they started flourishing, while the children of the younger daughter used to die as soon as they were born. When the younger daughter asked the astrologers and pandits for a solution to this, they told her the way to observe the fast of Sharad Purnima with full devotion and faith. After that, the children of the younger daughter also started living and they got happiness and good fortune.

In the above article, I have tried to give detailed information about Sharad Purnima. I hope you will definitely like this article. Please give your opinion through comments.

Thanks and gratitude.

-Astro Richa Srivastava

पापांकुशा एकादशी एक विस्तृत परिचय (Hindi & English)

पापांकुशा एकादशी एक विस्तृत परिचय (Hindi & English)

Om-Shiva

01. क्या होती है पापांकुशा एकादशी?

वर्षभर की सभी एकादशियों में से एक पापांकुशा एकादशी बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है। जैसा की नाम से ही स्पष्ट है, यह एकादशी व्यक्ति के समस्त पाप कर्मों पर अंकुश लगाकर उन्हें पापों से मुक्त करती है। इस एकादशी का वर्णन श्रीभागवत पुराण, श्री ब्रह्मवैवर्त पुराण और पवित्र महाभारत ग्रन्थ में भी आता है। इस एकादशी में भगवान श्रीहरि विष्णुजी के पाप मोचन रूप की पूजा और उपासना की जाती है तथा उपवास भी रखा जाता है।

02. कब मनाई जाती है पापांकुशा एकादशी?

यह एकादशी आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस वर्ष 2024 में यह दिनांक 13 अक्टूबर, रविवार को मनाई जायेगी। वैष्णव सम्प्रदाय के लोग दिनांक 14 अक्टूबर को यह एकादशी मनाएंगे।

03. पापांकुशा एकादशी का महात्म्य क्या है?

इस व्रत की गाथा भगवान श्रीकृष्ण के मुख से युधिष्ठिर को सुनाई गई है। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि, हजारों वर्ष की तपस्या से भी जो पुण्य और फल नहीं मिलता वहनामष्ट पुण्यफल मात्र यह एकादशी व्रत को करने से मिल जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। पापांकुशा एकादशी का व्रत हज़ार अश्वमेघ और सौ सूर्य यज्ञों को करने के समान फल देने वाली बताई गई है। जो भी यह व्रत, उपवास, पूजन और जागरण इत्यादि करता है वह सभी पाप कर्मों से मोक्ष प्राप्त करके बैकुंठ लोक को जाता है और उसे श्रीहरि विष्णुजी अपनी शरण में ले लेते हैं। एकादशी जीवों के जीवन के परम लक्ष्य अर्थात भगवत प्राप्ति में बहुत ही सहायक होती है।

04. पापांकुशा एकादशी पूजन का विधि-विधान क्या है?

एकादशी तिथि के दिन प्रातः जल्दी उठकर, नित्य कर्मों से निवृत होकर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर रखकर कलश की स्थापना करें तथा पूजन और व्रत का संकल्प लें। फिर धूप, दीप, पुष्प, पीले अक्षत, फल, नारियल और नैवेद्य आदि से पूजन करें। भगवान की झांकी के निकट भजन, कीर्तन, रात्रि जागरण आदि करके श्रीहरि के पावन नाम का जप करें। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना भी अति शुभ फलदायी होता है। पूजन के पश्चात योग्य कर्मकांडी ब्राह्मण को सामर्थ्य अनुसार दान, दक्षिणा, भोजन, भेंट आदि अवश्य देना चाहिए। भगवान के उपवास में अन्न और नमक का प्रयोग निषेध रहता है। जो लोग पूर्ण उपवास नहीं रख सकते वें एक समय का फलाहार करके भी पूजन कर सकते हैं।

05. पापांकुशा एकादशी व्रत की कथा क्या है?

पौराणिक काल में विंध्य पर्वत पर क्रोधन नाम का एक महाक्रूर बहेलिया रहता था। जो बहुत निर्दयता पूर्वक पशु-पक्षियों का शिकार करता था। जब उसके जीवन का अंत समय आया तो यमराज ने यमदूतों को उसे लाने की आज्ञा दी। यमदूतों नें उसे यह बात उसकी मृत्यु से बहुत पहले ही बता दी थी। तब बहेलिए को अपने पाप कर्मों का अहसास हुआ और नर्क में जाने के भय से वह कांपने लगा। मृत्यु के डर से वह भटकते हुए अंगिरा ऋषि के आश्रम में जा पहुंचा। उसे यमलोक में नर्क नहीं भुगतना पड़े, इससे रक्षा के लिए वह अंगिरा ऋषि से प्रार्थना करने लगा। तब अंगिरा ऋषि ने उसे आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु के पूजन और उपवास का मार्ग दिया। उनके अनुसार बताए व्रत और पूजन करने से वह अपने सभी पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को चला गया।

प्रिय पाठकों, उपर्युक्त आलेख में मैंने आपको पापांकुशा एकादशी की संक्षिप्त जानकारी दी है। आशा करती हूँ कि आपको यह जानकारी पसन्द आई होगी। कृपया एक कमेंट के ज़रिए अपनी राय अवश्य दें।

आभार और धन्यवाद।

-ऐस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव

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Papankusha Ekadashi: A detailed introduction (Hindi & English)

Om-Shiva

01. What is Papankusha Ekadashi?

Among all the Ekadashis of the year, Papankusha Ekadashi is considered very important. As the name suggests, this Ekadashi curbs all the sins of a person and frees them from sins. This Ekadashi is also described in Shri Bhagwat Purana, Shri Brahmavaivarta Purana and the holy Mahabharata Granth. In this Ekadashi, the sin-free form of Lord Shri Hari Vishnu is worshiped and fasting is also observed.

02. When is Papankusha Ekadashi celebrated?

This Ekadashi is celebrated on the Ekadashi date of Shukla Paksha of Ashwin month. This year in 2024, it will be celebrated on 13 October, Sunday. People of Vaishnav sect will celebrate this Ekadashi on 14th October.

03. What is the significance of Papankusha Ekadashi?

The story of this fast has been narrated to Yudhishthira by Lord Krishna. Lord Krishna says that the virtue and fruit that cannot be obtained even by thousands of years of penance, can be obtained by merely observing this Ekadashi fast. Lord Vishnu is worshipped on this day. The fast of Papankusha Ekadashi is said to give the same fruit as performing thousand Ashvamedha and hundred Surya Yagyas. Whoever observes this fast, fasting, worship and vigil etc., attains salvation from all sinful deeds and goes to Vaikunth Lok and Shri Hari Vishnuji takes him under his shelter. Ekadashi is very helpful in attaining the ultimate goal of the life of the living beings i.e. Bhagwat.

04. What is the ritual of Papankusha Ekadashi worship?

On the day of Ekadashi, wake up early in the morning, finish your daily chores, place an idol or picture of Lord Vishnu, install a Kalash and take a pledge to worship and fast. Then worship with incense, lamp, flowers, yellow rice, fruits, coconut and offerings etc. Chant the holy name of Shri Hari by doing bhajan, kirtan, night vigil etc. near the tableau of the Lord. Reciting Vishnu Sahasranama is also very auspicious and fruitful. After worship, one must give donations, dakshina, food, gifts etc. to a capable ritualistic Brahmin according to one’s ability. The use of food and salt is prohibited in the fast of God. Those who cannot keep a complete fast can also worship by eating fruits once a day.

05. What is the story of Papankusha Ekadashi fast?

In ancient times, a very cruel hunter named Krodhan lived on Vindhya mountain. He used to hunt animals and birds very mercilessly. When the end of his life came, Yamraj ordered the messengers of Yamraj to bring him. The messengers of Yamraj had told him this much before his death. Then the hunter realized his sins and started trembling in fear of going to hell. Out of fear of death, he wandered and reached the ashram of sage Angira. He started praying to sage Angira to protect him so that he does not have to suffer hell in Yamalok. Then sage Angira gave him the way to worship and fast for Lord Vishnu on Ekadashi Tithi of Shukla Paksha of Ashwin month. By fasting and worshiping as per his instructions, he got free from all his sins and went to Vishnu Lok.

Dear readers, in the above article I have given you a brief information about Papankusha Ekadashi. I hope you liked this information. Please give your opinion by commenting.

Gratitude and thanks.

-Astro Richa Srivastava

विजय का पर्व- विजयादशमी(दशहरा) 2024 (Hindi & English)

विजय का पर्व- विजयादशमी(दशहरा) 2024 (Hindi & English)

विजयादशमी या दशहरा का पर्व शारदीय नवरात्रि के ठीक बाद आश्विन मास की दशमी तिथि को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इसे विजयादशमी इसलिए कहते हैं क्योंकि पौराणिक काल में भगवती दुर्गाजी ने नौ दिनों तक लगातार भीषण युद्ध करके महिषासुर का वध दशमी तिथि को किया था। साथ ही त्रेतायुग में भगवान श्रीराम ने भी भीषण संग्राम के बाद महाबली रावण का वध करके लंका पर विजय प्राप्त की थी। इसलिए इस तिथि को विजयादशमी कहते हैं। वैसे मुख्यतः विजयादशमी को श्रीरामजी की विजय से ही जोड़कर देखते हैं। भगवान श्रीराम को धर्म, सत्य, ज्ञान, और देवत्व का प्रतीक माना जाता है, जबकि रावण को अधर्म, असत्य, अहंकार और दानवत्व का प्रतीक माना जाता है।

इस प्रकार यह त्यौहार ज्ञान की अहंकार पर, सत्य की असत्य पर और धर्म की अधर्म पर विजय का प्रतीक माना जाता है। अपने कार्यों में सफलता की कामना रखने वाले लोगों को इस दिन दसों दिशाओं का पूजन करना चाहिए। इससे उनके मनोवांछित कार्य पूरे होते हैं।

वर्ष 2024 में कब है विजयादशमी?

इस वर्ष 2024 में विजयादशमी का त्यौहार दिन शनिवार, 12 अक्टूबर को मनाया जाएगा।

कब है पूजन का मुहूर्त?

विजया पूजन मुहूर्त- 14:05 से 14:50 तक (दोपहर)

अपरान्ह मुहूर्त- 13:16 से 15:25 तक (दोपहर)

दशमी तिथि के दिन किनका पूजन होता है?

इस दिन भगवती अपराजिता के साथ ही भगवती जया और विजया का पूजन किया जाता है। दशमी तिथि वाले दिन जब सूर्यास्त होने लगता है और आसमान में कुछ तारे दिखने लगते हैं, तो यह अवधि विजय मुहूर्त कहलाती है। इसी मुहूर्त में भगवान श्रीराम ने विजया माता की आराधना कर दुष्ट रावण का वध किया था।

महाभारत काल में इसी मुहूर्त में अर्जुन ने शमी वृक्ष से गांडीव धनुष और अस्त्र-शस्त्र उतारकर अपने शरीर पर धारण किये थे और शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी। इस पावन दिन पर आयुध या अस्त्र-शस्त्रों के साथ ही शमी वृक्ष के पूजन का भी विधान है। शमी वृक्ष को तेजस्विता और दृढ़ता का प्रतीक भी माना गया है। भविष्य पुराण में लिखा है कि यदि दशहरे के दिन व्यक्ति गंगाजल में खड़ा होकर गंगाजी की पूजा करता है और गंगा स्तोत्र को पढ़ता है तो उसके सभी पापकर्म मिट जाते हैं।

क्या है शमी वृक्ष के पूजन की पौराणिक कथा?

एक बार माता पार्वती ने शिवजी से विजयादशमी के दिन शमी वृक्ष के पूजन के विधान का संदर्भ जानना चाहा। तब शिवजी ने बताया कि पांडवों द्वारा जुए में राजपाट हार जाने के बाद दुर्योधन ने पांडवों के साथ 12 वर्ष तक वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास की शर्त रखी थी। यदि तेरहवें वर्ष उनका पता चल जाएगा तो उन्हें पुनः 12 वर्ष का वनवास भुगतना पड़ेगा। इस कारण अर्जुन ने क्षत्रिय वेश त्यागकर अपने अस्त्र-शस्त्र शमी के पेड़ पर टांग दिए। और राजा विराट के राज्य में सेवाकार्य के लिए आ गए। जब उनके राज्य के गौवंश को हड़पने के लिए कुरु राजकुमारों नें हमला किया तो विराट नरेश के पुत्र उत्तर के साथ मिलकर उन्होंने शमी वृक्ष से गांडीव धनुष सहित अन्य अस्त्र-शस्त्र उतारकर पुनः धारण किये और युद्ध में विजयी हुए। उस दिन दशमी तिथि थी। उस एक वर्ष के अज्ञातवास के दौरान शमी के वृक्ष ने अर्जुन के अस्त्र-शस्त्रों की रक्षा की थी। तब उसे पूजनीय वृक्ष होने का वरदान मिला था। तब से दशमी के दिन शमी वृक्ष के पूजन का प्रचलन शुरू हुआ।

उपर्युक्त आलेख में मैंने विजयादशमी पर्व के विषय में एक संक्षिप्त जानकारी देने का प्रयास किया है। आशा करती हूँ आप सभी पाठको को मेरा ये प्रयास पसन्द आएगा।

धन्यवाद और आभार।

– ऐस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव

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Festival of Victory – Vijayadashami (Dussehra) 2024 (Hindi & English)

The festival of Vijayadashami or Dussehra is celebrated with great pomp on the Dashami date of the month of Ashwin, just after Sharadiya Navratri. It is called Vijayadashami because in the ancient times, Bhagwati Durgaji killed Mahishasura on the Dashami date after a fierce battle for nine days. Also, in Treta Yuga, Lord Shri Ram also conquered Lanka by killing the mighty Ravana after a fierce battle. Therefore, this date is called Vijayadashami. By the way, Vijayadashami is mainly associated with the victory of Shri Ram. Lord Shri Ram is considered a symbol of religion, truth, knowledge, and divinity, while Ravana is considered a symbol of irreligion, untruth, ego and demonism.

Thus this festival is considered a symbol of the victory of knowledge over ego, truth over untruth and religion over unrighteousness. People who wish for success in their work should worship the ten directions on this day. This fulfills their desired tasks.

When is Vijayadashami in the year 2024?

This year in 2024, the festival of Vijayadashami will be celebrated on Saturday, October 12.

When is the auspicious time for worship?

Vijaya Pujan Muhurta – 14:05 to 14:50 (afternoon)

Afternoon Muhurta – 13:16 to 15:25 (afternoon)

Who is worshipped on Dashami Tithi?

On this day, along with Bhagwati Aparajita, Bhagwati Jaya and Vijaya are worshipped. On the day of Dashami Tithi, when the sun starts setting and some stars start appearing in the sky, then this period is called Vijay Muhurta. In this Muhurta, Lord Shri Ram killed the evil Ravana by worshiping Vijaya Mata.

In the Mahabharata period, in this Muhurta, Arjuna took down the Gandiva bow and weapons from the Shami tree and wore them on his body and conquered his enemies. On this holy day, there is a ritual of worshipping the Shami tree along with the weapons. The Shami tree is also considered a symbol of brilliance and perseverance. It is written in the Bhavishya Purana that if a person stands in the Ganga water on the day of Dussehra and worships Gangaji and reads the Ganga Stotra, then all his sins are erased.

What is the mythological story of worshipping the Shami tree?

Once Mother Parvati wanted to know the context of the ritual of worshipping the Shami tree on the day of Vijayadashami from Lord Shiva. Then Lord Shiva told that after the Pandavas lost the kingdom in gambling, Duryodhan had put a condition of 12 years of exile and one year of incognito with the Pandavas. If their whereabouts are known in the thirteenth year, then they will have to undergo 12 years of exile again. For this reason, Arjuna abandoned his Kshatriya attire and hung his weapons on a Shami tree. And came to serve in the kingdom of King Virat. When the Kuru princes attacked to usurp the cattle of his kingdom, then along with the son of King Virat, Uttara, he took down the Gandiva bow and other weapons from the Shami tree and wore them again and won the war. That day was Dashami Tithi. During that one year of exile, the Shami tree had protected Arjuna’s weapons. Then it was blessed to be a revered tree. Since then, the practice of worshipping the Shami tree on Dashami day started.

In the above article, I have tried to give a brief information about the Vijayadashami festival. I hope all the readers will like my effort.

Thanks and gratitude.

– Astro Richa Srivastava