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ऐसा करेंगे तो शुक्र ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

ऐसा करेंगे तो शुक्र ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

Om-Shiva

हमारे वैदिक ज्योतिष विज्ञान के अनुसार शुक्र ग्रह को एक शुभ ग्रह माना गया है। इसकी शुभता के प्रभाव से जातक को भौतिक, शारीरिक और वैवाहिक सुख की प्राप्ति होती है। इसलिए ज्योतिष विद्या में शुक्र ग्रह को भौतिक सुख, वैवाहिक सुख, भोग-विलास के सुख, समाज में शौहरत, कला में निपुणता, प्रतिभावान, सौन्दर्य से परिपूर्ण, रोमांस में रुचि, काम-वासना और फैशन-डिजाइनिंग जैसे क्षेत्रों का कारक माना जाता है। शुक्र वृषभ राशि(2) और तुला राशि(7) का स्वामी होते हैं, और मीन राशि(12) इनकी उच्च राशि है, जबकि कन्या राशि(6)इसकी नीच राशि कही गई है। शुक्र ग्रह को 27 नक्षत्रों में से भरणी नक्षत्र, पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र और पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र का स्वामित्व प्राप्त है। नवग्रहों में बुध ग्रह और शनि ग्रह शुक्र ग्रह के परम मित्र ग्रह माने जाते हैं तथा सूर्य ग्रह और चंद्रमा ग्रह शुक्र ग्रह के परम शत्रु ग्रह माने जाते हैं। शुक्र ग्रह का गोचर 23 दिन की अवधि का होता है। अर्थात शुक्र ग्रह एक राशि में क़रीब 23 दिन तक विराजमान बने रहते हैं।

आइए अब सबसे पहले बात करते हैं कि, शुक्र ग्रह का एक सामान्य मानव शरीर की संरचना पर क्या प्रभाव पड़ता है? ज्योतिष विद्या के विज्ञान अनुसार शुक्र ग्रह जिस किसी जातक की कुंडली में लग्न भाव(प्रथम) में विराजमान होते हैं वह जातक रूप-रंग से बेहद सुंदर व आकर्षक दिखता है। जातक का व्यक्तित्व कुछ ऐसा बना रहता है कि वह विपरीत लिंग के जातकों को अपनी तरफ आकर्षित करता रहता है। अच्छी बात यह रहती है कि जातक का स्वभाव मृदुभाषी बना रहता है। कुंडली के लग्न स्थान पर शुक्रदेव का विराजना अर्थात जातक का मन कला के क्षेत्र के प्रति रूचिवान बना रहता है।

 

वैदिक ज्योतिष विद्या के अनुसार यदि शुक्र ग्रह लग्न कुंडली में प्रभावी एवम मजबूत स्थिति में बना हुआ है तो जातक का वैवाहिक जीवन प्रेम से पूर्ण एवम सुखमयी बना रहता है। यदि आपकी कुंडली में शुक्र ग्रह मजबूत हैं तो आपको भी यह अनुभव अवश्य हुआ होगा कि आपका भी प्रेमपक्ष काफी उत्तम बना रहता है। शुक्र ग्रह पति और पत्नी के बीच प्रेम की भावना को बढ़ाता है तथा प्रेम करने वाले जातकों के जीवन में रोमांस की ऊर्जा में वृद्धि करता है। जातक भौतिक जीवन में उच्च की रूचि रखता है तथा उच्च के भोगों का सुख भी प्राप्त करता है।

यदि जातक की कुंडली में शुक्र ग्रह बलहीन स्थिति में हो या किसी क्रूर ग्रह के साथ प्रतिकूल स्थिति में बैठा हो या किसी पाप ग्रह की सीधी दृष्टि शुक्र ग्रह पर पड़ रही हो या शुक्र ग्रह नीच प्रभावी हो गए हों तो ऐसी स्तिथि में जातक को परिवार व प्रेम के क्षेत्र में काफी सारी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। शुक्र ग्रह के अति कमजोर होने पर जातक बहुत ज्यादा प्रैक्टिकल और काफी कम रोमांटिक हो सकता है। इसके साथ ही जातक प्रेम और वैवाहिक जीवन में भी काफी ज्यादा उतार-चढ़ाव से गुजरता है तथा इसी के चलते पति और पत्नी के मध्य मतभेद होते ही रहते हैं। अकारण ही विवाद उत्पन्न होना या कुछ भी ऐसा होना जिसके कारण जातक का वैवाहिक सुख भी क्षीण बना रहता है तथा जातक इतना अधिक परेशान बना रहता है कि वह भौतिक सुखों को भी भोग नहीं पाता है। आइए अब जानते हैं कि वो कौन सी गलतियां हैं जिसके कारण आपके शुक्र ग्रह आजीवन हेतु खराब भी हो सकते हैं।

7 गलतियां जो आपके शुक्र ग्रह को हमेशा के लिए खराब कर देंगी

01. पूर्ण ब्रह्मचर्य की पालना के अभाव में लक्ष्मीजी से संबंधित संकल्पित भक्ति मार्ग में आगे बढ़ना।

02. स्त्रीवर्ग का उचित सम्मान नहीं करना। व्यर्थ में घर की स्त्रियों को कोसना तथा अपशब्द कहते रहना और धर्म पत्नी पर हाथ उठाना।

03. घर की स्त्रियों का हमेशा कर्कश वाणी में ही बात करना। सांझ की संध्या पश्चात या रात्रि के समय घर की स्त्री का निरर्थक शिकायतें करना या कलह करते ही रहना।

04. माता-पिता की आत्मा दुखाकर विवाह करना या विवाह पश्चात किसी भी रूप में माता-पिता की अवहेलना करना।

05. घर की स्त्री का बहुत लंबे समय तक जमीन पर नंगे पांव चलते रहना और पूर्ण एवम् उत्तम श्रृंगार नहीं करना।

06. गृहस्थी में रहते हुए धर्म से संबंधित कार्यों में धर्मपत्नी का हाथ नहीं लगवाना और जीवन के महत्वपूर्ण निर्णयों में धर्मपत्नी की सलाह नहीं लेना।

07. नवविवाहित जोड़े के कमरे में मंदिर का होना, भगवान और गुरुदेव का कोई भी चित्र या पेंटिंग का होना और जिस भी कमरे में गुरुदेव या भगवान का चित्र हो वहां पर स्त्रियों का कपड़े बदलना।

-Guru SatyaRam

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If you do this, Venus can be bad for your whole life (Hindi & English)

Om-Shiva

According to our Vedic astrology, Venus is considered an auspicious planet. Due to its auspiciousness, the native gets material, physical and marital happiness. Therefore, in astrology, Venus is considered to be the factor of material happiness, marital happiness, pleasure of pleasure, fame in society, proficiency in art, talent, beauty, interest in romance, lust and fashion designing. Venus is the lord of Taurus (2) and Libra (7), and Pisces (12) is its exalted sign, while Virgo (6) is said to be its debilitated sign. Out of the 27 constellations, Venus owns Bharani constellation, Purva Phaguni constellation and Purvashada constellation. Among the nine planets, Mercury and Saturn are considered to be the best friends of Venus, while the Sun and Moon are considered to be the worst enemies of Venus. The transit of Venus lasts for a period of 23 days. That is, Venus remains in one zodiac sign for about 23 days.

Now let us first talk about what effect Venus has on the structure of a normal human body? According to the science of astrology, the person in whose horoscope Venus is situated in the ascendant house (first) looks very beautiful and attractive in appearance. The personality of the person remains such that he keeps attracting people of the opposite sex. The good thing is that the nature of the person remains soft-spoken. The presence of Shukradev in the ascendant place of the horoscope means that the mind of the person remains interested in the field of art.

According to Vedic astrology, if Venus is in an effective and strong position in the ascendant horoscope, then the married life of the person remains full of love and happiness. If Venus is strong in your horoscope, then you must have also experienced that your love side also remains very good. Venus increases the feeling of love between husband and wife and increases the energy of romance in the life of the natives in love. The native has a high interest in material life and also enjoys the pleasures of high pleasures.

If Venus is weak in the native’s horoscope or is sitting in an unfavorable position with a cruel planet or a sinful planet is directly looking at Venus or Venus has become lowly influential, then in such a situation the native may have to face many problems in the field of family and love. If Venus is very weak, the native may be very practical and very less romantic. Along with this, the native also goes through a lot of ups and downs in love and married life and due to this, differences keep occurring between husband and wife. Disputes arising without any reason or anything due to which the marital happiness of the native also remains weak and the native remains so troubled that he is not able to enjoy even material pleasures. Let us now know what are those mistakes due to which your Venus can get spoiled for life.

7 mistakes that will spoil your Venus forever

01. Moving forward on the path of devotion related to Lakshmiji without following complete celibacy.

02. Not giving proper respect to women. Cursing and using foul language against the women of the house for no reason and raising hand on the wife.

03. The women of the house always talking in a harsh voice. The woman of the house making useless complaints or quarreling after dusk or at night.

04. Getting married by hurting the spirit of the parents or ignoring the parents in any form after marriage.

05. The woman of the house walking barefoot on the ground for a very long time and not doing complete and perfect makeup.

06. While living in the household, the wife should not be involved in religious activities and the wife should not be consulted in important decisions of life.

07. There should not be a temple in the room of the newly married couple, any picture or painting of God and Gurudev and women should change clothes in the room where there is a picture of Gurudev or God.

-Guru SatyaRam

व्यापार क्षेत्र की मजबूती कैसे करें? (Hindi & English)

व्यापार क्षेत्र की मजबूती कैसे करें? (Hindi & English)

आपकी जन्म कुंडली में व्यापार या नौकरी अर्थात कर्मक्षेत्र को दसवें स्थान से देखा जाता है। दशम भाव के स्वामी को दशमेश या कर्मेश या कार्येश कहा जाता है। दसवें भाव से यह देखा जाता है कि, जातक सरकारी नौकरी करेगा या प्राइवेट? अगर व्यापार करेगा तो कौन सा व्यापार उसे फलित होगा? और उसे आने वाले भविष्य में किस कर्मक्षेत्र में अधिक सफलता मिल पाएगी? कुंडली का सातवां स्थान आपसी भागीदारी का होता है। इस भाव में अगर मित्र ग्रह विराजमान हों तो पार्टनरशिप से लाभ मिलना अटल रहता है। और अगर शत्रु ग्रह विराजे हुए हैं तो आपसी साझेदारी अधिकांश नुकसान ही देती है। स्वाभाविक मित्र ग्रह सूर्य, चंद्र, बुध, गुरु होते हैं। शनि, मंगल, राहु, केतु यह चारों ग्रह भी आपस में मित्र स्वभाव धारण करते हैं। सूर्य, बुध, गुरु और शनि दशम भाव के कारक ग्रह हैं। अर्थात कुंडली में दशम स्थान की गणना से पूर्व इनकी पक्की जांच भी अति आवश्यक हो जाती है।

ऐसा भी कहा जाता है कि मन और अवचेतन मन के स्वामी चंद्रमां ग्रह जिस भी राशि में बैठे हुए हों, उस अमुक राशि के स्वामी ग्रह की प्रकृति के आधार पर या चंद्रमां से उसकी युति अथवा दृष्टि संबंध के आधार पर ही कोई भी जातक अपनी आजीविका या कर्मक्षेत्र के कार्य का चयन करता है। शक्तिशाली चंद्रमां से दशम भाव में अगर बृहस्पति ग्रह विराजे हुए हों तो गजकेसरी/राजकेसरी नामक राजयोग का निर्माण होता है। परंतु ऐसा भी माना जाता है कि अगर बृहस्पति उच्च प्रभावी हों या फिर स्वगगृही होकर बैठे हुए हों तो ही अधिक लाभ प्राप्ति संभव बनी रहती है। ऐसा जातक जन्म से यशस्वी, परोपकारी स्वभाव, प्रकृति से धर्मात्मा, अध्ययन में मेधावी, अति गुणवान और भाग्य से राजपूज्य होता है। यदि जन्म लग्न, सूर्यग्रह और दसवां स्थान बलवान हों तथा पाप ग्रहों के प्रभाव में नहीं आते हैं तो जातक शाहीकार्यों से धन कमाता है और आजीवन सर्वसुख एवम सर्वलाभ अवश्य प्राप्त करता है।

अगर लग्न कुंडली के दसवें स्थान में केवल शुभ ग्रह बैठे हुए हों तो अमल कीर्ति नामक शुभ योग निर्मित होता है। परंतु उसके अशुभ भावेश नहीं होने तथा अपनी नीच राशि में नहीं विराजने की स्थिति में ही इस योग का पूर्ण लाभ मिल पाता है। दसवें स्थान के स्वामी ग्रह के शक्तिशाली होने से जीविका की वृद्धि होती है और निर्बल हो जाने की स्तिथि में लगातार हानि पर हानि होती रहती है। लग्न से द्वितीय और एकादश भाव में बली एवं शुभ ग्रह हों तो जातक केवल व्यापार से ही अधिक धन कमा पाता है। धन भाव के स्वामी और लाभ भाव के स्वामी का आपसी परस्पर संबंध कुंडली में धनयोग का निर्माण कर देता है। दसवें स्थान का कारक ग्रह यदि उसी भाव में ही स्थित हो जाए या दसवें स्थान को सीधी दृष्टि से देख रहा हो तो जातक कभी भी खाली नहीं बैठ सकता है। जातक को कोई ना कोई रोजगार की प्राप्ति अवश्यमेव होती है।

आपके व्यापार को 10 गुना बढ़ाने के लिए 5 सरल उपाय

01. बृहस्पतिवार को सवा किलो साबुत उड़द को एक काले कपड़े में डालकर एक पोटली बना लें। अब पोटली को सीधे हाथ में लेकर 1008 बार “शनि” बोलें और पोटली को ऑफिस में ही पवित्र स्थान पर रख दें या लटका दें।

02. शनिवार को सवा किलो चावल लें अब उसमे से थोड़ा चावल सीधी मुट्ठी में लेकर 108 बार गायत्री मंत्र का जाप करें। अब मुट्ठी वाले चावल को बाकी चावलों के साथ मिलाकर किसी भी पीपल वृक्ष पर अर्पण कर आएं।

03. बुधवार के दिन पंचमुखी भगवान श्रीगणेशजी की बैठी हुई तस्वीर को अपने कार्यस्थल के अंदर स्थान दीजिए और 1 कपूर और 1 लौंग के जोड़े से उन्हें दीप दान कीजिए।

04. मंगलवार के दिन लाल बैल के पैरों की मिट्टी, 4 हल्दी की गांठे, एक मुट्ठी खुशबूदार चावल, एक मुट्ठी सेंधा नमक को एक पीले कपडे में डालकर उसकी पोटली बनाकर अपने ऑफिस में ही पवित्र स्थान पर रख दें या लटका दें।

05. लाल बछड़ी के पैरों की मिट्टी को एक लाल कपड़े में डालकर उसकी पोटली बना लें। अब उस पोटली को ऑफिस के मंदिर में चावल के आसान पर रख लें और नित्य लक्ष्मीजी की स्तुति करा करें।

– गुरु सत्यराम

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How to strengthen business sector? (Hindi & English)

In your birth chart, business or job, i.e., the field of work is seen from the tenth house. The lord of the tenth house is called Dashmesh or Karmesh or Karyesh. It is seen from the tenth house whether the person will do a government job or a private job? If he does business, then which business will be fruitful for him? And in which field of work will he get more success in the future? The seventh house of the horoscope is of mutual partnership. If friendly planets are present in this house, then getting profit from partnership is certain. And if enemy planets are present, then mutual partnership mostly gives losses. Natural friendly planets are Sun, Moon, Mercury, Jupiter. Saturn, Mars, Rahu, Ketu, these four planets also have a friendly nature among themselves. Sun, Mercury, Jupiter and Saturn are the causative planets of the tenth house. That is, before calculating the tenth house in the horoscope, their thorough investigation also becomes very important.

It is also said that the person chooses his livelihood or work field based on the nature of the planet lord of the zodiac sign in which the Moon, the lord of the mind and subconscious mind, is placed or based on its conjunction or aspect with the Moon. If Jupiter is placed in the tenth house from the powerful Moon, then a Rajyoga named Gajkesari/Rajkesari is formed. But it is also believed that if Jupiter is highly influential or is placed in heaven, then only more benefits are possible. Such a person is famous by birth, charitable by nature, religious by nature, brilliant in studies, highly talented and revered by the king by luck. If the birth ascendant, Sun and the tenth house are strong and do not come under the influence of evil planets, then the person earns money from royal works and definitely gets all the happiness and benefits throughout life.

If only auspicious planets are placed in the tenth house of the ascendant horoscope, then an auspicious yoga named Amal Kirti is formed. But the full benefit of this yoga is obtained only when it is not an inauspicious Bhavesh and is not situated in its low zodiac sign. If the lord of the tenth house is strong, the livelihood increases and if it becomes weak, there is continuous loss after loss. If there are strong and auspicious planets in the second and eleventh house from the lagna, then the person is able to earn more money only from business. The mutual relationship between the lord of the wealth house and the lord of the profit house creates Dhanyoga in the horoscope. If the planet responsible for the tenth house is situated in the same house or is looking at the tenth house directly, then the person can never sit idle. The person definitely gets some kind of employment.

5 simple ways to increase your business 10 times

01. On Thursday, put 1.25 kg of whole urad in a black cloth and make a bundle. Now take the bundle in the right hand and say “Shani” 1008 times and keep or hang the bundle in a sacred place in the office itself.

02. Take 1.25 kg rice on Saturday. Now take some rice in your right fist and chant Gayatri Mantra 108 times. Now mix the rice in the fist with the rest of the rice and offer it to any Peepal tree.

03. On Wednesday, place a sitting picture of Panchmukhi Lord Shri Ganeshji in your workplace and donate a lamp to him with 1 camphor and a pair of cloves.

04. On Tuesday, put the soil from the feet of a red bull, 4 turmeric knots, a handful of fragrant rice, a handful of rock salt in a yellow cloth and make a bundle of it and keep it in a sacred place in your office or hang it.

05. Put the soil from the feet of a red calf in a red cloth and make a bundle of it. Now keep that bundle on a seat of rice in the temple of the office and offer prayers to Goddess Lakshmi daily.

– Guru Satyaram

ऐसा करेंगे तो बृहस्पति ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

ऐसा करेंगे तो बृहस्पति ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

जन्मकुंडली में देव गुरु बृहस्पति गुरुदेव के रूप में हमारा प्रतिनिधित्व करते हैं। बृहस्पति ग्रह के शुभ प्रभाव अनुसार जातक दयालु, धार्मिक, धैर्यवान, बुद्धिमान और चंचल स्वभाव को धारण किए ही रहता है। इन्हीं विशिष्ट सद्गुणों के चलते बृहस्पति ग्रह को आंतरिक बल प्राप्त होता है तथा ग्रह से आने वाली रश्मियां कुंडली के शुभ प्रभावों में और भी अधिक वृद्धि करते हुए जातक के जीवन को सुखमय बना देती है। बृहस्पति ग्रह, जिसे हम गुरू ग्रह भी कहते हैं, यह शुभ ग्रह हमारे नवग्रहों में अति महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। ज्योतिष शास्त्र में भी बृहस्पति ग्रह को देवगुरू, ज्ञान का कारक और समृद्धि का कारक कहकर परिभाषित एवम शोभित किया गया है।

जातक की लग्न कुण्डली में बृहस्पति ग्रह बलवान होने की स्तिथि में जातक ज्ञानवान एवं सद्गुणों से सम्पन्न बना ही रहता है। क्योंकि हमारे सभी नवग्रहों में केवल बृहस्पति ग्रह ही सर्वाधिक शुभ ग्रह आते हुए। अगर किसी कन्या जातक की लग्न कुण्डली में बृहस्पति ग्रह कमजोर अवस्था में हो, वक्री अवस्था में हो, पाप ग्रह द्वारा पीड़ित अवस्था में हो या फिर नीच गति को प्राप्त हों तो उसके विवाह में अति विलम्ब देखने को मिलता है। ज्योतिषीय उपायों के माध्यम से बृहस्पति ग्रह को बलवान करने मात्र से ही कन्या जातक को सुहाग एवं सन्तान का सुख सहज ही प्राप्त होना संभव जाता है। बृहस्पति ग्रह संतान का भी कारक होता है। अगर आप सरल माध्यम से गुरू ग्रह को बल देना चाहते हैं तो आप पुखराज रत्न को स्वर्ण धातु की अंगूठी में जड़वाकर गुरूवार के दिन राहुकाल का ध्यान रखते हुए, सूर्यदेव का प्रकाश रहते हुए अपनी तर्जनी (प्रथम) उंगली में धारण करना चाहिए।

अगर आपको पुखराज रत्न थोड़ा सा महंगा लगता है तो आप इसके स्थान पर गुरु ग्रह का उपरत्न सुनहला भी धारण कर सकते हैं। बृहस्पति ग्रह के सर्वाधिक शुभ ग्रह होने के कारण ही इनकी सीधी दृष्टि अति शुभ एवम कल्याणकारी मानी जाती है। वैदिक ज्योतिष के नियमों अनुसार भी अगर किसी भी जातक की लग्न कुण्डली में केन्द्र स्थान पर बृहस्पति ग्रह बैठे हुए हैं तो अन्य ग्रहों से उत्पन्न दोषों की शून्यता स्वतः ही होनी प्रारंभ हो जाती है। कुंडली में केन्द्र स्थान पर विराजमान बृहस्पति ग्रह की प्रशंसा करते हुए ऋषि-महर्षियों का कथन है कि जिसके केन्द्र स्थान पर में बृहस्पति ग्रह विराजे हुए हैं तो कुंडली के अन्य ग्रह अगर एकसाथ होकर भी जातक का विरोध करें तो भी जातक का कुछ नहीं बिगड़ सकता है। आइए अब हम समझते हैं कि उन 07 गलतियों के बारे में जिनके कारण हमारा बृहस्पति ग्रह हमेशा के लिए खराब हो सकता है।

7 गलतियां जो आपके बृहस्पति ग्रह को हमेशा के लिए खराब कर देंगी

1. किसी भी उन्नत पीपल के वृक्ष को मूल जड़ सहित अकारण कटवा देना।

2. अपनी पाठयक्रम की पुस्तकों को पैर लगाना या धर्म ग्रंथों को हमेशा बंद करके ही रखना।

3. नित्य शुद्धि कर्म के नियमों के अभाव में किसी भी पूज्य माला या रुद्राक्ष की माला को धारण करे ही रहना।

4. अपने पितरों और पूर्वजों की उचित एवम् उत्तम सेवा जैसे भोजन, वस्त्र और दक्षिणा उनके नाम से नहीं निकालना।

5. घर आने वाले अतिथि का सामर्थ्य अनुसार उचित सम्मान नहीं करना और घर पर मांगने वालों के आने पर हमेशा ही उन्हें खाली हाथ लौटाना।

6. उत्तम गृहस्थी सुख की प्राप्ति के बावजूद घर की स्त्री का सम्मान नहीं करना और परस्त्री से किसी भी प्रकार का संपर्क रखना।

7. किन्हीं भी गुरुजन, टीचर्स एवम् बुजुर्गों का अपमान करना। उन्हें अपशब्द कहना और उनका आशीर्वाद लिए बगैर कुछ भी शुभ कार्य शुरु करना।

– गुरु सत्यराम

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If you do this, Jupiter can be bad for your entire life (Hindi & English)

In the birth chart, Dev Guru Brihaspati represents us in the form of Gurudev. According to the auspicious effects of Jupiter, the native remains kind, religious, patient, intelligent and playful in nature. Due to these special virtues, Jupiter gets internal strength and the rays coming from the planet increase the auspicious effects of the horoscope even more and make the life of the native happy. Jupiter, which we also call Guru Graha, this auspicious planet holds a very important place among our nine planets. In astrology also, Jupiter has been defined and adorned by calling it Devguru, the factor of knowledge and the factor of prosperity.

In the condition of Jupiter being strong in the ascendant horoscope of the native, the native remains knowledgeable and endowed with virtues. Because among all our nine planets, only Jupiter is the most auspicious planet. If the Jupiter planet is weak in the Lagna Kundali of a girl, is in a retrograde state, is afflicted by the malefic planets or is in a low state, then a lot of delay is seen in her marriage. By merely strengthening the Jupiter planet through astrological remedies, it is possible for the girl to get the happiness of marital bliss and children easily. Jupiter is also a factor for children. If you want to strengthen the Guru planet through simple means, then you should get the Pukhraj gemstone embedded in a gold metal ring and wear it on your index (first) finger on Thursday, keeping in mind the Rahu Kaal, while the sunlight is there.

If you find the topaz gemstone a bit expensive, then you can also wear the golden sub-gemstone of Jupiter in its place. Jupiter being the most auspicious planet, its direct sight is considered to be extremely auspicious and beneficial. According to the rules of Vedic astrology, if Jupiter is placed in the center position in the Lagna Kundali of any native, then the defects caused by other planets start vanishing automatically. Praising the Jupiter placed in the center position in the Kundali, the sages and seers have said that if Jupiter is placed in the center position, then even if the other planets of the Kundali come together and oppose the native, then also nothing can go wrong for the native. Let us now understand about those 07 mistakes due to which our Jupiter can be spoiled forever.

7 mistakes that will spoil your Jupiter forever

1. Getting any grown Peepal tree cut along with its roots without any reason.

2. Touching your textbooks with your feet or always keeping religious texts closed.

3. In the absence of rules of daily purification rituals, wearing any venerated rosary or Rudraksha rosary.

4. Not providing proper and best service to your forefathers and forefathers like giving food, clothes and dakshina in their name.

5. Not giving proper respect to the guests who come to the house according to your capacity and always sending back empty handed when people come to the house to beg.

6. Despite having great domestic happiness, not respecting the woman of the house and having any kind of contact with another woman.

7. Insulting any Guru, teachers and elders. Using abusive language against them and starting any auspicious work without taking their blessings.

– Guru Satyaram

साधारण व्यक्ति को सफल राजनेता बनाने वाले ग्रह (Hindi & English)

साधारण व्यक्ति को सफल राजनेता बनाने वाले ग्रह (Hindi & English)

Om-Shiva
हममें से अनेक लोगों की राजनीति में जाने और एक सफल राजनेता बनने की प्रबल इच्छा होती है। इसके पीछे भी व्यक्ति के जन्मपत्री के ग्रह जिम्मेदार होते हैं। आइए, हम जानने की कोशिश करते हैं कि कौन से प्रमुख ग्रह व्यक्ति को राजनीति में ले जाते हैं और उसे सफल राजनेता बनाते हैं। राजनीति में जाने के लिए व्यक्ति को प्रेरित करने में यूं तो लगभग सभी ग्रह अपनी-अपनी भूमिका निभाते हैं। लेकिन मुख्य रूप से सूर्य, बुध ,शनि, राहु, गुरू और मंगल का विचार किया जाता है। साथ ही लग्नेश और भाग्येश की भी बड़ी भूमिका रहती है।

01. सूर्य- पहले के राजाओं के युग में सूर्य ग्रह को राजसत्ता का कारक या राजा यानी सर्वोच्च सत्ता का प्रतीक माना जाता था। परंतु आज के वर्तमान युग में जो स्थान राजा का होता है वही स्थान राजनेता, सरकार या सत्ता का हो गया है। अतः इसके लिए सर्वप्रथम विचार सूर्य का ही किया जाता है। राजनीति में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, पार्टी प्रमुख और सरकार में जो सर्वोच्च पद होते हैं, उनका प्रमुख कारक ग्रह सूर्य ही होता है। इस प्रकार से ग्रहों के राजा की धरती पर राज चलाने में भी प्रमुख भूमिका है।

02. शनि- सूर्य ग्रह के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण स्थान है शनिदेव का। शनि ग्रह को जनतंत्र या जनता का प्रतीक माना जाता है। वर्तमान युग में अधिकांश देशों में जनतंत्र या लोकतंत्र मौजूद है, अतः इस कारणवश शनि ग्रह की भूमिका भी बढ़ जाती है। इसके अलावा शनि पार्टी से जुड़े सेवकों, अधीनस्थ कर्मचारियों, पार्टी कार्यकर्ताओं तथा जनता में लोकप्रियता का भी कारक ग्रह होता है। यदि शनि ग्रह बलवान होकर जन्म पत्रिका में शुभ स्थिति में हो तो व्यक्ति जनता के समर्थन से चुनाव जीतकर सत्ता में आ जाता है।

03. राहु- राहु ग्रह भी राजनीति में ले जाने वाला एक प्रमुख ग्रह है। राहु व्यक्ति को दाँव-पेंच और पैंतरे सिखाता है साथ में एक अच्छा कूटनीतिज्ञ भी बनाता है। राजनीति एक ऐसा क्षेत्र है, जहाँ व्यक्ति को व्यवहारिक होने के साथ शातिर और तिकड़मी होना पड़ता है। राजनीति में साम, दाम, दण्ड और भेद सभी नीतियां काम करती हैं। जहाँ अन्य नीतियां असफल हो जातीं हैं, वहाँ भेदनीति ही कार्य करती है। राहु ग्रह गहरी भेदनीति और कूटनीति की बुद्धि प्रदान करता है।

04. मंगल- एक राजनीतिज्ञ के भीतर साहस और जोखिम लेने की क्षमता होनी चाहिए। इस क्षेत्र में कई बार ऐसे निर्णय लेने पड़ते हैं जिसमें कई ख़तरे और जोखिम छुपे होते है। मंगल ग्रह व्यक्ति में दृढ़ आत्मविश्वास और निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करता है। राजनीति में दण्ड देने और साहस से सरकार चलाने वाला कारक ग्रह मंगल ही है। अगर अन्य ग्रह साथ दें तो मंगल प्रबल होकर व्यक्ति को राजनीति के क्षेत्र में ज़रूर लेकर जाता है।

05. लग्नेश- लग्नेश या लग्न का स्वामी किसी भी कुंडली का आधारस्तम्भ होता है। अगर लग्नेश बली हों तो सभी राजयोग फलित होते हैं। यद्यपि सीधे तौर पर लग्नेश राजनीति में ले जाने वाला ग्रह नहीं है, तथापि यह राजनीति के लिए बनने वाले ग्रह योग को सफल बनाने में महत्वपूर्ण घटक होता है। जब तक लग्नेश बली नहीं होगा तबतक व्यक्ति का संकल्प भी दृढ़ नहीं होगा। वह राजनीति जैसे जोखिम भरे क्षेत्र में जाने से हिचकेगा।

06. भाग्येश- भाग्य के बिना कुछ भी नहीं फलता। यदि कुंडली में भाग्य का स्वामी कमजोर है, तो लाख ग्रह के योग बने हों, वें कभी भी फलित नहीं होंगे। जब भाग्य कमजोर हो तो व्यक्ति कितना भी प्रयास कर ले, राजनीति में नहीं जा पायेगा। और यदि गया भी तो सफलता हासिल नहीं होगी। अतः लग्नेश की तरह भाग्येश का भी मजबूत होना अति आवश्यक है।

07. गुरू बृहस्पति- गुरू ज्ञान और विवेक का कारक ग्रह है। गुरू व्यक्ति को प्रतिष्ठा, सम्मान, गरिमा और सौम्यता देता है। यह व्यक्ति को जिम्मेदार और विश्वसनीय बनाता है। राजनीति में सिर्फ सत्ता हासिल करने से कुछ नहीं होता, बल्कि सत्ता का कुशल संचालन भी उतना ही आवश्यक है। यह कार्य देवगुरू बृहस्पति के आशीर्वाद के बिना सम्भव नहीं है। अतः सफल राजनेता बनने के लिए देवगुरु बृहस्पति का भी प्रबल होना अत्यंत आवश्यक है।

08. बुध- एक सफल राजनेता के लिए बुध ग्रह का भी मजबूत होना आवश्यक है। बुध तीक्ष्ण बुध्दि, विवेक और कम्युनिकेशन का कारक ग्रह है। जब तक बुध बली नहीं होगा, व्यक्ति जनता के बीच अपनी आवाज़ नहीं पहुंचा सकेगा। अच्छा बुध एक अच्छा वक्ता भी बनाता है। राजनीति में सफल होने के लिए उचित समय पर सही निर्णय लेना, अपनी बात को जनता तक पहुंचाना, सूझबूझ और समझदारी से कठिन परिस्थितियों से लड़ने की क्षमता बुध ग्रह के अच्छा होने से ही प्राप्त होती है। अतः एक अच्छा बुध ग्रह भी राजनीति के लिए आवश्यक है।

उपर्युक्त आलेख में मैंने राजनीति के लिए विचारणीय ग्रहों का विश्लेषण किया है। अन्य विद्वान ज्योतिषियों का विमर्श मुझसे भिन्न हो सकता है। कृपया कमेंट के ज़रिए अपने सुझाव अवश्य दें।

धन्यवाद और आभार।

– ऐस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव

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Planets that make an ordinary person a successful politician (Hindi & English)

Om-Shiva
Many of us have a strong desire to go into politics and become a successful politician. The planets in the person’s birth chart are also responsible for this. Let us try to know which major planets take a person into politics and make him a successful politician. Almost all planets play their role in motivating a person to go into politics. But mainly Sun, Mercury, Saturn, Rahu, Jupiter and Mars are considered. Along with this, Lagnesh and Bhagyesh also play a big role.

01. Sun – In the era of earlier kings, the Sun planet was considered to be the factor of royal power or the symbol of the king i.e. the supreme power. But in today’s current era, the place which is of the king has become the place of the politician, government or power. Therefore, the Sun is considered first for this. In politics, the main factor of the President, Prime Minister, Chief Minister, Party Chief and the highest posts in the government is the Sun. In this way the King of the planets also has a major role in ruling the Earth.

02. Saturn- After the Sun, the second most important place is of Lord Saturn. Saturn is considered to be the symbol of democracy. In the present era, democracy is present in most countries, so due to this reason the role of Saturn also increases. Apart from this, Saturn is also a factor of popularity among the servants, subordinates, party workers and the public associated with the party. If Saturn is strong and in an auspicious position in the birth chart, then the person wins the election with the support of the public and comes to power.

03. Rahu- Rahu is also a major planet that takes one to politics. Rahu teaches a person tricks and tactics and also makes him a good diplomat. Politics is a field where a person has to be cunning and cunning along with being practical. In politics, all the policies of Sam, Daam, Dand and Bhed work. Where other policies fail, only the policy of deception works. Rahu provides the wisdom of deep deception and diplomacy.

04. Mars- A politician should have the courage and ability to take risks. In this field, many times decisions have to be taken which have many dangers and risks hidden in them. Mars gives a person strong self-confidence and the ability to take decisions. In politics, Mars is the planet that punishes and runs the government with courage. If other planets support, Mars becomes strong and definitely takes the person to the field of politics.

05. Lagnesh- Lagnesh or the lord of Lagna is the pillar of any horoscope. If Lagnesh is strong, all Rajyogas are fruitful. Although Lagnesh is not a planet that directly takes one to politics, it is an important factor in making the planetary yoga formed for politics successful. Until Lagnesh is strong, the resolve of the person will not be strong. He will hesitate to go into a risky field like politics.

06. Bhagyesh- Nothing is fruitful without luck. If the lord of luck is weak in the horoscope, then no matter how much effort is made by the planets, they will never be fruitful. When luck is weak, no matter how much effort a person makes, he will not be able to go into politics. And even if he goes, he will not achieve success. Therefore, like Lagnesh, it is very important for Bhagyesh to be strong.

07. Guru Jupiter- Guru is the planet of knowledge and wisdom. Guru gives prestige, respect, dignity and gentleness to a person. It makes a person responsible and trustworthy. In politics, nothing happens just by gaining power, but efficient management of power is also equally important. This work is not possible without the blessings of Devguru Jupiter. Therefore, to become a successful politician, it is very important for Devguru Jupiter to be strong.

08. Mercury- For a successful politician, it is necessary for Mercury to be strong. Mercury is the planet of sharp intelligence, discretion and communication. Unless Mercury is strong, a person will not be able to reach his voice among the public. A good Mercury also makes a good speaker. To be successful in politics, taking the right decision at the right time, reaching your point to the public, the ability to fight difficult situations with wisdom and understanding is achieved only when Mercury is good. Therefore, a good Mercury is also necessary for politics.

In the above article, I have analyzed the planets to be considered for politics. The discussion of other learned astrologers may be different from mine. Please give your suggestions through comments.

Thanks and gratitude.

– Astro Richa Srivastava

ऐसा करेंगे तो बुध ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

ऐसा करेंगे तो बुध ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हमारे नवग्रहों में सबसे छोटे ग्रह बुध हैं। ज्योतिष शास्त्र में बुध ग्रह को ग्रहों का राजकुमार माना गया है। बुध ग्रह सूर्य ग्रह के सर्वाधिक निकट हैं, इसलिए यह आधा गर्म और आधा ठंडा बने रहते हैं। इसी बीच के तापमान के कारण यहां जीवन संभव नहीं है। जो भी वस्तु बीच में अर्थात केंद्र में होगी वह बुध ग्रह को दर्शाती है। बुध ग्रह को बुद्धि का देवता भी कहा गया है। यह द्विस्वभाव वाला ग्रह है। काल पुरुष की कुंडली में चंद्र राशि मिथुन(3) एवम चंद्र राशि कन्या(6) पर बुध ग्रह का स्वामित्व होता है। बुध ग्रह कन्या राशि में उच्च स्वभाव को धारण करते हैं तथा मीन राशि(12) में नीच स्वभाव को धारण करते हैं। बुध ग्रह उत्तर दिशा के स्वामी माने जाते हैं। सूर्य ग्रह तथा शुक्र ग्रह इनके परम मित्र माने जाते हैं। मंगल ग्रह और चंद्रमा ग्रह से बुध ग्रह परम शत्रुता रखते हैं। बृहस्पति ग्रह और शनि ग्रह ना मित्रों की गणना में आते हैं और ना ही शत्रुओं की गणना में आते हैं। अर्थात यह दोनों ग्रह बुध ग्रह के लिए सम ग्रह आते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बुध ग्रह की महादशा 17 वर्षों तक चलायमान रहती है। यह हरित ऊर्जा से जन्मी खुशहाली के भी कारक बने रहते हैं। बुध ग्रह के ऊर्जा गुणों से प्रभावित जातक हर बात पर हंसना, सम्मुख जातक से स्वयं से ही बोलना तथा हर बात पर मजाक करते रहना दिल से पसंद करते हैं। हमारे शरीर में समस्त नसों के कारक भी बुध ग्रह ही होते हैं। बुध ग्रह व्यापार को भी दर्शाते हैं इसलिए यह एक सफल व्यापारी बनने की क्षमता भी प्रदान करते हैं। बुध ग्रह हमारे शरीर में त्वचा का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। बुध ग्रह जितने अच्छे होंगे उतना ही जातक में ज्ञान ग्रहण करने की क्षमता प्रबल होगी। बुध ग्रह एकमात्र ऐसे ग्रह हैं जो जातक को किसी भी परिस्थिति में ढलने की कला एवम क्षमता को प्रदान करते हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जातक का उत्तम व्यापार, उसकी छोटी और बड़ी बहनें, उसके परिवार में बुआ, उसके व्यापार से संबंधित अकाउंट, उसके जीवन में गणित विद्या की जानकारी, तथा ज्योतिष विद्या में गहरी गणनाएं बुध ग्रह की शक्ति में ही निहित होती हैं। ज्योतिष विद्या में बुध ग्रह अपने इन विशिष्ट गुणों के साथ में जिस भी ग्रह के साथ कुंडली में बैठता है तो उसके भी फल प्रदान करता रहता है। यह ग्रह तो छोटा सा ही है लेकिन इसका स्वभाव अति तेज और तर्रार है। ज्योतिष विद्या में 27 नक्षत्रों में से बुध ग्रह को आश्लेषा नक्षत्र, ज्येष्ठा नक्षत्र तथा रेवती नक्षत्र का स्वामि पद प्राप्त है। ऐसे जातक जिनका बुध ग्रह बली होता है वें संवाद तथा संचार के क्षेत्रों में निश्चित सफलता प्राप्त करते जाते हैं। बुध ग्रह से प्रभावित जातक हास्य और विनोद के वातावरण में अधिक अच्छा महसूस करते हैं। ऐसे जातक तीव्र बुद्धि के स्वामी, कूटनीतिज्ञ और राजनीति के क्षेत्रों में कुशल व्यवहार के स्वामी होते हैं। जातक के शरीर में नसों का दिखाई देना भी बुध ग्रह का ही प्रभाव है। बुध ग्रह की सौम्यता जातक को शिल्प कला के क्षेत्रों का हुनर भी प्रदान करती है। तथा आगे चलकर इन्हीं क्षेत्रों का पारखी भी बनाती है। आइए अब हम जानते हैं कि ऐसी कौन सी गलतियां हैं जिनके कारण से हमारा बुध ग्रह हमें अच्छे और शुभ प्रभाव नहीं देता है।

07 गलतियां जो आपके बुध ग्रह को हमेशा के लिए खराब कर देंगी

01. रसोई में मिट्टी के मटके को खाली रखना और 1 वर्ष पुराने मटके को पुनः प्रयोग में लाना।
02. अपनी पुत्री को केवल दूसरे घर की अमानत समझकर उसका लालन-पोषण करना।
03. बिना अर्थ के लगातार हमेशा झूठ बोलना और गूंगे दिव्यांग या जिनकी जुबान थथलाती हो और जो हकलाकर बोलते हों उनका मजाक बनाना।
04. भाई सामान मित्र से व्यर्थ का झगड़ा करना या उससे बुरी भावना रखते हुए पैसे मांगना और सामर्थ्य होते हुए भी उसके पैसे नहीं लौटाना।
05. बुधवार के दिन बिना जांच पड़ताल किए पैसे उधार देना और अकारण अधिक रात्रि के समय सिर धोना या सिर में तेल से मालिश करना।
06. किसी भी रूप में छोटी कन्याओं या किन्नर समाज को बहुत बुरे ढंग से अपशब्द कहना।
07. घर में तिज़ोरी या गुल्लक का ना होना। स्वयं की छोटी बहन पर हाथ उठाना या लात मारना।
– गुरु सत्यराम
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If you do this, mercury can be bad for your whole life (Hindi & English)

According to Jyotish Shastra, Mercury is the smallest planet among our nine planets. In Jyotish Shastra, Mercury is considered the prince of planets. Mercury is the closest to the Sun, so it remains half hot and half cold. Life is not possible here due to the temperature in between. Whatever object is in the middle, that is, in the center, represents Mercury. Mercury is also called the god of wisdom. It is a planet with dual nature. In the horoscope of Kaal Purush, Mercury owns the Moon sign Gemini (3) and the Moon sign Virgo (6). Mercury has a high nature in Virgo and a low nature in Pisces (12). Mercury is considered the lord of the north direction. Sun and Venus are considered its best friends. Mercury has extreme enmity with Mars and Moon. Jupiter and Saturn are neither counted as friends nor as enemies. That is, both these planets are equal planets for Mercury. According to astrology, the Mahadasha of Mercury lasts for 17 years. It also remains the factor of happiness born from green energy. The people influenced by the energy qualities of Mercury like to laugh at everything, talk to themselves and keep joking about everything. Mercury is also the factor of all the nerves in our body. Mercury also represents business, hence it also provides the ability to become a successful businessman. Mercury also represents the skin in our body. The better the Mercury is, the stronger will be the ability of the person to acquire knowledge. Mercury is the only planet that provides the person with the art and ability to adapt to any situation.
According to astrology, the native’s good business, his younger and elder sisters, his aunt in the family, accounts related to his business, his knowledge of mathematics in his life, and deep calculations in astrology are all inherent in the power of Mercury. In astrology, Mercury gives the results of the planet with which it sits in the horoscope with these special qualities. This planet is small but its nature is very sharp and agile. In astrology, out of the 27 constellations, Mercury is the lord of Ashlesha constellation, Jyeshtha constellation and Revati constellation. Such natives whose Mercury is strong, achieve definite success in the fields of dialogue and communication. Natives influenced by Mercury feel better in an environment of humor and humour. Such natives are the owners of sharp intellect, diplomats and are skilled in politics. The presence of veins in the body of the native is also the effect of Mercury. The gentleness of Mercury also provides the native with the skill of craftsmanship. And later on, it also makes him an expert in these fields. Let us now know what are the mistakes due to which our planet Mercury does not give us good and auspicious effects.

07 Mistakes that will spoil your Mercury forever

01. Keeping an empty earthen pot in the kitchen and reusing a 1 year old pot.
02. Raising your daughter as if she is a trust of another house.
03. Constantly lying without any reason and making fun of dumb disabled people or those whose tongue trembles and who speak with a stammer.
04. Fighting with a friend who is like a brother for no reason or asking for money from him with bad intentions and not returning the money despite having the ability.
05. Lending money on Wednesday without any investigation and washing your head or massaging your head with oil late at night without any reason.
06. Using very bad words against small girls or transgender community in any form.
07. Not having a safe or a piggy bank in the house. Raising hands or kicking your own younger sister.
– Guru Satyaram

जन्मकुंडली में कालसर्प दोष (Hindi & English)

जन्मकुंडली में कालसर्प दोष (Hindi & English)

आजकल सोशल मीडिया और पत्र-पत्रिकाओं में कालसर्प दोष या योग की बहुत चर्चा है। अनेक ज्योतिषियों द्वारा इस योग की चर्चा करते और इसके विभिन्न उपायों को बताते देखा-सुना जा रहा है। आइए हम जानते हैं कि कालसर्प दोष की मूलभूत जानकारी क्या है?

क्या है कुंडली में कालसर्प दोष का अर्थ?

कालसर्प दो शब्दों से मिलकर बना है, काल और सर्प। काल अर्थात राहु और सर्प अर्थात केतु।

हमारे ग्रन्थों में कहा जाता है कि-

“राहुतः केतुमध्ये आगच्छन्ति यदा ग्रहा:।
कालसर्पस्तु योगोयं कथितम पूर्वसुरभि:।।

अर्थात – यदि किसी व्यक्ति के जन्मकाल के समय समस्त ग्रह राहु तथा केतु के मध्य आ जाते हैं तो कालसर्प योग का निर्माण होता है। इस योग को सर्वाधिक अशुभ योगों में से एक माना जाता है। जिनकी कुंडली में यह योग बनता है, उनके जीवन में काफी उतार-चढ़ाव और संघर्ष आता है। इस योग से पीड़ित जातकों के जीवन में कष्टों का आधिक्य, रोग, संघर्ष, संतानहीनता, धन की कमी, असफलता आदि अशुभ प्रभाव इस योग के फलस्वरूप देखने में आते हैं। लेकिन यदि कुंडली में कालसर्प योग के अतिरिक्त सकारात्मक ग्रह अधिक हों तो व्यक्ति उच्च पदाधिकारी भी बनता है लेकिन परिश्रम और संघर्ष के बाद। और यदि नकारात्मक ग्रह अधिक प्रभावशाली हों तो जीवन अत्यंत कठिन और संघर्षमय बन जाता है।

कालसर्प दोष के कितने प्रकार होते हैं?

कालसर्प दोष 288 प्रकार के होते हैं। क्योंकि 12 राशियों में 12 प्रकार के कालसर्प दोष (12×12=144) तथा 12 लग्नों में 12 प्रकार के कालसर्प दोष (12×12=144)। दोनों का कुल योग अर्थात 288 प्रकार के कालसर्प दोष हुए।

उपर्युक्त 288 प्रकार के कालसर्प दोषों में भी 12 प्रमुख प्रकार के दोष इस प्रकार से हैं।

01. अनन्त कालसर्प दोष

जब कुंडली के प्रथम भाव में राहु हों और सप्तम भाव में केतु हों तब इस योग का निर्माण होता है। इस योग से प्रभावित होने वाले जातक को शारीरिक और मानसिक परेशानी उठानी पड़ती है। कभी-कभी सरकारी और अदालती मामलों में भी फंसना पड़ता है। इस योग की सकारात्मक बात यह है कि इस योग वाला जातक साहसी, निडर, स्वाभिमानी और स्वतंत्र विचारों वाला होता है।

02. कुलिक कालसर्प दोष

जब कुंडली के दूसरे भाव में राहु हों और आठवें भाव में केतु हों तब कुलिक नाम का कालसर्प दोष का निर्माण होता है। इस योग से पीड़ित व्यक्ति को आर्थिक कष्ट भोगना पड़ता है। उसकी पारिवारिक स्थिति कलहपूर्ण और संघर्षपूर्ण होती है। सामाजिक तौर पर भी जातक की स्थिति इतनी अच्छी नही रहती है।

03. वासुकि कालसर्प दोष

जब तीसरे भाव में राहु हों और नवम भाव में केतु हों तब वासुकि नामक कालसर्प दोष बनता है। इस योग में पीड़ित व्यक्ति के जीवन में लगातार संघर्ष बना रहता है। प्रायः भाई बहनों से सम्बंध खराब रहते हैं और यात्राओं में भी कष्ट उठाना पड़ता है। नौकरी व्यवसाय में भी परेशानी बनी रहती है।

04. शंखपाल कालसर्प दोष

जब कुंडली के चतुर्थ भाव में राहु हों और दशम भाव में केतु हों तब यह शंखपाल नाम का योग बनता है। इस दोष से पीड़ित होने पर व्यक्ति को घर के सुखों में कमी होती है। व्यक्ति को आर्थिक तंगी होना, मानसिक तनाव रहना, माता के सुखों में कमी रहना तथा जमीन-जायदाद आदि मामलों में कष्ट भोगना पड़ता है।

05. पदम् कालसर्प दोष

जब कुंडली के पंचम भाव में राहु हों और एकादश भाव में केतु हों तब यह कालसर्प दोष बनता है। प्रायः इस दोष में जातक को अपयश, लाभों में कमी, शिक्षा में बाधा और सन्तान सुखों में कमी आदि की समस्या बनी रहती है। अक्सर वृद्धावस्था में सन्यास की ओर प्रवित्त होना भी इस योग के प्रभाव से देखा जा सकता है।

06. महापद्म कालसर्प दोष

जब कुंडली के छठे भाव में राहु हों और द्वादश भाव में केतु हों तब इस योग का निर्माण होता है। इस योग के कारण व्यक्ति को मामा की तरफ से कष्ट, रोग और ऋण से परेशानी, निराशा के कारण दुर्व्यसनों का शिकार हो जाना आदि समस्याएं होतीं हैं। इन्हें काफी समय तक शारीरिक कष्ट भोगना पड़ता है।

07. तक्षक कालसर्प दोष

जब कुंडली के सप्तम भाव में राहु हों और प्रथम भाव में केतु हों तो तक्षक नाम का दोष उतपन्न होता है। इस योग में वैवाहिक जीवन उथल-पुथल भरा होता है। कारोबार, व्यवसाय में साझेदारी लाभप्रद नहीं होती और यह मानसिक परेशानी देती है। ऐसे जातकों का प्रेम जीवन प्रायः असफल ही रहता है।

08. कर्कोटक कालसर्प दोष

जब कुंडली के आठवें भाव में राहु हों और दूसरे भाव में केतु हों तो इस प्रकार का योग बन जाता है। इस योग में व्यक्ति को कुटुंब सम्बंधित अनेक परेशानी उठानी पड़ती है। ऐसे कुंडली वाले लोगों का धन स्थिर नहीं रह पाता और गलत कार्यों में धन खर्च होता है।

09. शंखचूड़ कालसर्प दोष

जब कुंडली के नवम भाव में राहु हों और तृतीय भाव में केतु हों तब इस दोष का निर्माण होता है। इस योग से प्रभावित व्यक्ति को भाग्य का साथ कम मिलता है। उसे सुखों की प्राप्ति काफी कम होती है। इन्हें पिता से प्राप्त सुखों में भी बाधा आती है तथा इनकी धार्मिक प्रवृत्ति कम होती है।

10. घातक कालसर्प दोष

जब कुंडली के दशम भाव में राहु हों और चतुर्थ भाव में केतु हों तो यह घातक नामक कालसर्प दोष बनता है। प्रायः कहा जाता है कि व्यक्ति अपने पूर्व जन्म का कोई श्राप भोग रहा होता है। इस योग से परिवार और रोजगार में लगातार परेशानी बनी रहती है और व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित बना रहता है।

11. विषधर कालसर्प दोष

जब कुंडली के एकादश भाव में राहु हों और पंचम भाव में केतु हों तब इस योग का निर्माण होता है। इस योग से प्रभावित व्यक्ति को सन्तान सम्बन्धी कष्ट बना रहता है। इनकी स्मरणशक्ति अच्छी नहीं होती और विवेक की भी कमी रहती है। शिक्षा में रुकावट, मान सम्मान में कमी इस योग के प्रमुख लक्षण हैं।

12. शेषनाग कालसर्प दोष

जब कुंडली के द्वादश भाव में राहु हों और छठे भाव में केतु उपस्थित हों तो इस दोष का निर्माण होता है। इस योग में व्यक्ति के कई गुप्त शत्रु रहते हैं और उसके खिलाफ षड्यंत्र रचते रहते हैं। मुकदमें, जेलयात्रा, सरकारी दंड, अनर्गल खर्चे, मानसिक अशांति और बदनामी भी इस योग में झेलनी पड़ सकती है। लेकिन अक्सर ऐसे जातकों को मृत्यु के बाद ख्याति मिलती है।

इस प्रकार से देखा जाए तो कालसर्प दोष व्यक्ति के जीवन में भाग्य को बाधित कर देते हैं, जिसके कारण जातक के जीवन में इस जन्म के तथा पूर्व जन्म में किये गए पाप कर्मों का प्रभाव बढ़ जाता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को कालसर्प दोष निवारण साधना, मन्त्र जाप, अनुष्ठान, तर्पण, दान और पितृ मुक्ति क्रिया अवश्य करानी चाहिए।

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धन्यवाद और आभार।

– ऐस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव

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Kaal Sarp Dosh in Birth Chart (Hindi & English)

Nowadays there is a lot of discussion about Kaal Sarp Dosh or Yog in social media and newspapers. Many astrologers are seen discussing this Yog and giving various remedies for it. Let us know what is the basic information about Kaal Sarp Dosh?

What is the meaning of Kaal Sarp Dosh in Kundali?

Kaal Sarp is made up of two words, Kaal and Sarp. Kaal means Rahu and Sarp means Ketu.

It is said in our scriptures that-

“Rahut Ketu madhye aagchanti yada graha.

Kaalsarpastu yogayam chhattam purvasurbhi.

Meaning – If at the time of birth of a person all the planets come between Rahu and Ketu then Kaalsarpa Yog is formed. This Yog is considered to be one of the most inauspicious Yog. Those in whose kundali this Yog is formed, their life faces a lot of ups and downs and struggle. The inauspicious effects of this Yog are seen in the lives of the people suffering from this Yog like excess of sufferings, diseases, struggles, childlessness, lack of money, failure etc. But if there are more positive planets in the kundali apart from Kaalsarpa Yog then the person also becomes a high official but after hard work and struggle. And if the negative planets are more influential then life becomes extremely difficult and full of struggle.

How many types of Kalsarp Dosh are there?

There are 288 types of Kalsarp Dosh. Because there are 12 types of Kalsarp Dosh in 12 zodiac signs (12×12=144) and 12 types of Kalsarp Dosh in 12 ascendants (12×12=144). The total of both means 288 types of Kalsarp Dosh.

Among the above 288 types of Kalsarp Dosh, the 12 main types of dosh are as follows.

01. Anant Kalsarp Dosh

When Rahu is in the first house of the horoscope and Ketu is in the seventh house, then this yoga is formed. The person affected by this yoga has to face physical and mental problems. Sometimes he has to get stuck in government and court cases also. The positive thing about this yoga is that the person with this yoga is courageous, fearless, self-respecting and has independent thoughts.

02. Kulik Kaal Sarp Dosh

When Rahu is in the second house of the horoscope and Ketu is in the eighth house, then a Kaal Sarp Dosh named Kulik is formed. The person suffering from this Yog has to suffer financial difficulties. His family situation is quarrelsome and full of conflict. Socially also the person’s condition is not so good.

03. Vasuki Kaal Sarp Dosh

When Rahu is in the third house and Ketu is in the ninth house, then a Kaal Sarp Dosh named Vasuki is formed. In this Yog, there is constant struggle in the life of the affected person. Usually, relations with siblings are bad and one has to face troubles in travels. There are also problems in job and business.

04. Shankhpal Kaal Sarp Dosh

When Rahu is in the fourth house of the horoscope and Ketu is in the tenth house, then this Yog named Shankhpal is formed. When a person is suffering from this Dosh, there is a decrease in the happiness of the house. The person has to face financial crisis, mental stress, lack of happiness from the mother and has to suffer in matters related to land and property etc.

05. Padma Kaal Sarp Dosh

When Rahu is in the fifth house of the horoscope and Ketu is in the eleventh house, then this Kaal Sarp Dosh is formed. Usually, the native of this dosha faces problems like infamy, reduction in profits, hindrance in education and reduction in happiness of children etc. Often, turning towards sanyaas in old age can also be seen due to the effect of this yoga.

06. Mahapadma Kaal Sarp Dosh

When Rahu is in the sixth house of the horoscope and Ketu is in the twelfth house, then this yoga is formed. Due to this yoga, the person has to face problems like trouble from maternal uncle’s side, disease and debt, falling prey to bad habits due to despair, etc. They have to suffer physical pain for a long time.

07. Takshak Kaal Sarp Dosh

When Rahu is in the seventh house of the horoscope and Ketu is in the first house, then a dosha named Takshak arises. In this yoga, married life is full of turmoil. Partnership in business is not beneficial and it causes mental troubles. The love life of such people is often unsuccessful.

08. Karkotak Kaal Sarp Dosh

When Rahu is in the eighth house of the horoscope and Ketu is in the second house, then this type of yoga is formed. In this yoga, the person has to face many problems related to the family. The wealth of people with such horoscope does not remain stable and the money gets spent in wrong works.

09. Shankhachud Kaal Sarp Dosh

This dosh is formed when Rahu is in the ninth house of the horoscope and Ketu is in the third house. The person affected by this yoga gets less support from luck. He gets very less pleasures. They also face obstacles in the pleasures received from their father and their religious tendency is less.

10. Ghatak Kaal Sarp Dosh

When Rahu is in the tenth house of the horoscope and Ketu is in the fourth house, then this Ghatak Kaal Sarp Dosh is formed. It is often said that the person is suffering from some curse of his previous birth. Due to this yoga, there is constant trouble in family and employment and the mental health of the person also remains affected.

11. Vishdhar Kaal Sarp Dosh

This yoga is formed when Rahu is in the eleventh house of the horoscope and Ketu is in the fifth house. The person affected by this yoga has problems related to children. Their memory power is not good and there is also lack of discretion. Obstacles in education, lack of respect are the main symptoms of this yoga.

12. Sheshnag Kaal Sarp Dosh

When Rahu is present in the 12th house of the horoscope and Ketu is present in the 6th house, then this dosh is formed. In this yoga, the person has many secret enemies and they keep plotting against him. In this yoga, one may have to face lawsuits, jail, government punishment, unnecessary expenses, mental unrest and defamation. But often such people get fame after death.

In this way, Kaal Sarp Dosh obstructs the luck in a person’s life, due to which the effect of sins done in this birth and previous birth increases in the life of the person. Therefore, every person must do Kaal Sarp Dosh Nivaran Sadhna, Mantra Jaap, Anushthan, Tarpan, Daan and Pitru Mukti Kriya.

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Thanks and gratitude.

– Astro Richa Srivastava

आपकी रसोई में छिपा है लक्ष्मी का खजाना (Hindi & English)

आपकी रसोई में छिपा है लक्ष्मी का खजाना (Hindi & English)

आज के वर्तमान युग में हमारी रसोई बहुत ही ज्यादा मॉर्डन होती जा रही है। हम हमारी रसोई को आधुनिक गैजेट्स से परिपूर्ण बनाकर रखते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा की रसोई भी हमारे लाइफस्टाइल का एक अहम हिस्सा बन चुकी है। रसोई पूर्णतः राहुग्रह को संकेत करती है। पहले के घरों में रसोई इतनी बड़ी होती थी कि घर का प्रत्येक सदस्य वहीं बैठकर गर्मागर्म भोजन का आनंद लिया करता था। परंतु आज की वर्तमान परिस्थितियों में हमारी प्यारी रसोई पहले की अपेक्षा काफी छोटी होती जा रही है। ऐसा कहा जाता है कि रसोई में बैठकर भोजन करने से हमारा राहुग्रह अच्छा रहता है। और राहुग्रह इस कलयुग का राजा ग्रह माना जाता है जो जातक को बहुत ही तीव्र गति से धन प्रदान करने की क्षमता रखता है। अर्थात अगर आप आगे बताई गई बातों का ध्यान अपनी रसोई में बनाकर रखते हैं तो आपके ऊपर लक्ष्मीजी की कृपा स्थाई रूप से बनी रहेगी।

किचन में इन 09 बातों का ध्यान रखकर आप भी धनवान बन पाएंगे

1. नमक, हल्दी, दूध, आंटा, चावल, सरसों का तेल कभी भी पुर्णरूप से खत्म नहीं होने चाहिएं तथा जब भी इन्हें लाएं तो हमेशा दुगनी मात्र में ही लेकर आएं।

2. अपनी गृहस्थी के शुरुआती समय के तवे को कभी भी किचन से बाहर नहीं करें। अगर संभव हो तो समयानुसार उसको प्रयोग में लाते रहें।

3. प्रातः समय पहली रोटी बनाने से पहले “मां अन्नपूर्णा” के मंत्र से पूर्ण गरम तवे पर दूध की छीटें मारकर ही रसोई पकाएं।

4. रसोई में प्रयोग होने वाले नमक ओर चीनी को 11 लौंग डालकर सिर्फ और सिर्फ कांच के मर्तबान में ही रखें।

5. रसोई में हमेशा स्नान उपरांत या हाथ जोड़कर ही प्रवेश करें और सर्वप्रथम चूल्हे की अग्नि को प्रज्वलित कर प्रणाम करके ही दूसरा कार्य शुरू करें।

6. किचन में प्रयोग होने वाले चकले, बेलन, परांत और तवे को कभी भी अन्य झूठे बर्तनों के साथ नहीं रखें।

7. किचन में कभी भी मंदिर नहीं होना चाहिए और रात्रि को कभी भी झूठे बर्तन नहीं छोड़ने चाहिएं।

8. तवा, चकला, बेलन, परांत और चिमटे को घर की स्त्री स्वयं साफ करें। किसी भी सफाई कर्मचारी से ये 5 चीजें ना साफ करवाएं।

9. किचन की दीवारों पर हमेशा सफेद या कोई भी हल्का रंग ही होना चाहिए तथा रात्रि को किचन के कार्यों के समापन पर एक मिट्टी के दीए में 1 कपूर और लौंग का 1 जोड़ा जलाकर हाथ जोड़ लिया करें।

– गुरु सत्यराम

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Lakshmi’s treasure is hidden in your kitchen (Hindi & English)

In today’s era, our kitchen is becoming very modern. We keep our kitchen full of modern gadgets. It would not be wrong to say that the kitchen has also become an important part of our lifestyle. The kitchen completely indicates Rahu. In earlier houses, the kitchen was so big that every member of the house used to sit there and enjoy hot food. But in today’s current circumstances, our beloved kitchen is becoming much smaller than before. It is said that eating food while sitting in the kitchen keeps our Rahu planet good. And Rahu planet is considered to be the king planet of this Kaliyug, which has the ability to provide wealth to the person at a very fast pace. That is, if you keep the things mentioned below in mind in your kitchen, then the blessings of Lakshmiji will remain on you permanently.

By keeping these 9 things in mind in the kitchen, you will also be able to become rich

1. Salt, turmeric, milk, flour, rice, mustard oil should never be finished completely and whenever you bring them, always bring double the quantity.

2. Never take out the pan from the kitchen from the beginning of your household. If possible, keep using it according to the time.

3. Before making the first roti in the morning, sprinkle milk on the hot pan and cook with the mantra of “Maa Annapurna”.

4. Add 11 cloves to the salt and sugar used in the kitchen and keep it only in a glass jar.

5. Always enter the kitchen after taking a bath or with folded hands and first of all light the fire of the stove and bow down before starting any other work.

6. Never keep the chakla, belan, paraant and tawa used in the kitchen with other dirty utensils.

7. There should never be a temple in the kitchen and dirty utensils should never be left at night.

8. The woman of the house should clean the tawa, chakla, belan, paraant and tongs herself. Do not get these 5 things cleaned by any cleaning staff.

9. The walls of the kitchen should always be white or any light colour and at the end of the kitchen work at night, light 1 camphor and 1 pair of cloves in an earthen lamp and fold your hands.

– Guru Satyaram

ऐसा करेंगे तो मंगल ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं(Hindi & English)

ऐसा करेंगे तो मंगल ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं(Hindi & English)

हमारे संतान वैदिक ज्योतिष ग्रंथों में समस्त 09 ग्रहों में से मंगल ग्रह को ही ग्रहों का सेनापति कहा जाता है। मंगल ग्रह को मेष(1) और वृश्चिक(8) चंद्र राशियों का स्वामी कहा जाता है। मंगल ग्रह व्यक्ति के शारीरिक पराक्रम, उत्तम साहस, भरपूर शक्ति एवम असीम ऊर्जा का कारक माना जाता है। किसी भी जातक व्यक्ति की लग्न कुंडली में अगर मंगल ग्रह शुभ अवस्था में होता है तो वह जातक अपने प्राकृतिक स्वभाव से निडर और साहसी होता है। ऐसा जातक किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना निडर होकर करता है। इन शुभ प्रभावों के अलावा मंगल ग्रह जातक के पूर्ण जीवन पर कई शुभाशुभ प्रभाव भीडालता है। चलिए समझते हैं कि मंगल ग्रह का क्या आंतरिक महत्व है?

मंगल ग्रह, शनिदेव की मकर(10) राशि में उच्च प्रभावी हो जाते हैं। वहीं दूसरी तरह चंद्रदेव की एकमात्र कर्क(4) राशि में मंगल ग्रह नीच प्रभावी हो जाते हैं। अगर 27नक्षत्रों की बात करी जाए तो मंगल ग्रह मृगशिरा नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र तथा धनिष्ठा नक्षत्र नक्षत्र के स्वामी होते हैं। ज्ञानियों के अनुभव अनुसार सुर्ख लाल रंग को मंगल ग्रह से सीधा जोड़कर देखा जाता रहा है। जातक जीवन में मंगल ग्रह के पूर्ण शुभ प्रभाव को बढ़ाने हेतु लाल रंग की वस्तुओं को शामिल किया जाता है।

अगर मंगल के शुभ प्रभावों की बात करें तो मंगल ग्रह के पूर्ण शुभ प्रभाव आ जाने से जातक निडर और साहसी बनता ही है तथा उसमें विशाल जनसमूह के नेतृत्व क्षमता बहुत ही तेज़ी से विकसित होनी प्रारंभ हो जाती है। एक अच्छी बात यह होती है कि ऐसा जातक सभी लोगों को अपने साथ लेकर चलने की शुद्ध भावना अपने हृदय में धारण किए रहता है। मंगल ग्रह के नकारात्मक प्रभावों की चर्चा करी जाए तो ऐसा जातक अपना पूर्ण जीवन ही एक अनावश्यक भय के साए में वयतित करता है। मंगल ग्रह के और भी अधिक अशुभ हो जाने पर जातक को हमेशा एक व्यर्थ(काल्पनिक) सा डर परेशान करना शुरू कर देता है। आगे चलकर ऐसा जातक अपना आत्मविश्वास खोने लग जाता है। उपायों के अभाव में वह कार्य तो शुरू कर लेता है परंतु उसे अपने ही कार्य के प्रति शंका उत्पन्न होने लग जाती है। मंगल ग्रह के सबसे अधिक अशुभ प्रभावों में हमेशा अंहकार बने रहना भी शामिल है। प्रभावित जातक अंहकार में अंधा सा हो जाता है तथा अपने ही परिवार में अपनी कर्कश वाणी के चलते कलह एवम अलगाव की अत्यंत दुखद स्थिति पैदा कर लेता है।

7 गलतियां जो आपके मंगल ग्रह को हमेशा के लिए खराब कर देंगी

1. दैनिक भोजन में बहुत अधिक नमकीन, बहुत अधिक मीठा और बहुत अधिक खट्टा भोजन बहुत लंबे समय तक ग्रहण करते रहना।

2. अपने ही बड़े भाई-भाभी की लिखित भूमि पर धोखे से अपना अधिकार जमाकर किसी भी प्रकार का निर्माण करना या किसी भी तरह की छेड़खानी करके उस भूमि या संपत्ति से धन लाभ कमाना।

3. बहुत लंबे समय तक बैठी हुई अवस्था में नित्य दूध के साथ सूखे मेवे जैसे बादाम, काजू, अखरोट, मखाने इत्यादि ग्रहण करते रहना।

4. पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाले पारिवारिक या आशीर्वाद रूप में प्राप्त हुए अस्र-शस्र का विधिवत वार्षिक पूजन ना करना।

5. नियमित रूप से अपने-अपने धर्म व परिवार एवम् कुल अनुसार तीज-त्यौहारों को विधि पूर्वक ना मनाना। अपने धर्म का सम्मान ना करना और अपनी परम्पराओं को हमेशा विनोद की दृष्टि से ही देखना।

6. अपने जन्मस्थान से संबंधित भूमि को अपशब्द कहना। स्वयं के देश के किसानों और जवानों का उचित सम्मान ना करना। 14 वर्ष से 32 वर्ष की आयु के मध्य अपने बल का प्रयोग बड़ों का अपमान करने में करना।

7. धरती मां का सम्मान नहीं करना। जैसे मकान निर्माण से पूर्व उत्तम भूमि पूजन नहीं करना। भाग्य और मेहनत से प्राप्त हुई भूमि को कोसना। व्यर्थ में थूकते रहना और क्षमा प्रार्थना भी नहीं करना।

Guru SatyaRam
Guru SatyaRam

– गुरु सत्यराम

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If you do this, Mars can be bad for your whole life(Hindi & English)

In our Vedic astrology texts, out of all the 9 planets, Mars is called the commander of the planets. Mars is called the lord of Aries (1) and Scorpio (8) moon signs. Mars is considered to be the factor of physical prowess, great courage, abundant power and infinite energy of a person. If Mars is in auspicious state in the ascendant horoscope of any person, then that person is fearless and courageous by his natural nature. Such a person faces any kind of trouble fearlessly. Apart from these auspicious effects, Mars also has many auspicious and inauspicious effects on the entire life of the person. Let us understand what is the internal importance of Mars?

Mars becomes highly influential in Saturn’s Capricorn (10) sign. On the other hand, Mars becomes lowly influential in Chandra’s only Cancer (4) sign. If we talk about 27 constellations, Mars is the lord of Mrigasira constellation, Chitra constellation and Dhanishta constellation. According to the experience of the wise, the scarlet red color has been directly associated with Mars. Red colored objects are included to increase the full auspicious effect of Mars in the life of the native.

If we talk about the auspicious effects of Mars, then with the full auspicious effect of Mars, the native becomes fearless and courageous and the leadership ability of a large group of people starts developing very fast in him. One good thing is that such a native keeps the pure feeling of taking everyone along with him in his heart. If we talk about the negative effects of Mars, then such a native spends his entire life under the shadow of unnecessary fear. When Mars becomes even more inauspicious, a useless (imaginary) fear always starts troubling the native. Later on, such a native starts losing his self-confidence. In the absence of solutions, he starts the work but he starts having doubts about his own work. Always being arrogant is also one of the most inauspicious effects of Mars. The affected native becomes blind in arrogance and due to his harsh speech, he creates a very sad situation of discord and separation in his own family.

7 mistakes that will spoil your Mars forever

1. Consuming too much salty, too much sweet and too much sour food for a very long time in your daily diet.

2. Fraudulently establishing your right on the written land of your elder brother or sister-in-law and making any kind of construction or any kind of tampering to earn money from that land or property.

3. Consuming dry fruits like almonds, cashews, walnuts, lotus seeds etc. with milk every day in a sitting position for a very long time.

4. Not performing the annual worship of the family weapon or weapon received as a blessing from generations.

5. Not celebrating festivals regularly according to your religion, family and clan. Not respecting your religion and always looking at your traditions with a sense of humor.

6. Using abusive language for the land related to your birthplace. Not giving due respect to the farmers and soldiers of one’s own country. Using one’s strength to insult elders between the ages of 14 and 32.

7. Not respecting Mother Earth. Like not performing Uttam Bhoomi Pujan before building a house. Cursing the land obtained by luck and hard work. Spitting in vain and not even asking for forgiveness.

Guru SatyaRam
Guru SatyaRam

– Guru Satyaram

इसे समझ लीजिए वास्तु दोष खत्म हो जाएंगे।(Hindi & English)

इसे समझ लीजिए वास्तु दोष खत्म हो जाएंगे।(Hindi & English)

01. वास्तु शब्द की उत्पत्ति कहां से हुई?

वास्तु कोई सामान्य शब्द नहीं है अपितु यह देव वाणी संस्कृत का एक अनमोल तकनीकी शब्द है जिसका सामान्य अर्थ निवास होता है। देव भाषा संस्कृत के वास्तु शब्द का अर्थ है कि हमारा आवास/निवास या हमारा स्वयं का घर। वास्तु का अर्थ है घर की आंतरिक ऊर्जा, हमारे निवास स्थल की अंदरूनी ऊर्जा, हमारी भूमि की या जिस भूमि पर हमारा आश्रय है उसके अनाहत की ऊर्जा, हमारे पूर्ण भवन या निवास स्थान की आंतरिक ऊर्जा। अर्थात हमारे निर्माण और स्थल की आंतरिक ऊर्जा वास्तु ऊर्जा कहलाएगी। यहां वास शब्द भी है जिसका अर्थ है कि जहां भी आश्रय प्राप्त करते हैं, कुछ समय के लिए ठहरते हैं या अपना पूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं। हमारे पूर्ण दैनिक जीवन में जिन भी वस्तुओं का उपयोग होता है या हमारे द्वारा जिनका प्रयोग किया जाता है, तो उन्हें रखने और स्थान देना का विज्ञान ही वास्तु कहलाता है।

02. वास्तु दोष क्या होता है?

प्राचीन सनातन वास्तु शास्त्र हमें यह सिखाता है कि हमारे आसपास पंच तत्वों, नवग्रहों, देव पदों, आंतरिक/बाह्य ऊर्जाओं का समावेश बना रहता है। अगर उसके अनुरूप नहीं चला जाता है तो हमारे दैनिक जीवन में तथा हमारे पूर्ण भाग्य पर भी व्यर्थ का संघर्ष जो हमें झेलना पड़ता है उसे ही यहां वास्तु दोष कहा गया है। अर्थात एक ऐसा अनमोल शास्त्र जिसमें यह समझाया गया कि हमें निवास स्थान का निर्माण भी ध्यान रखना है और वस्तुओं को कहां पर रखना है? अगर वस्तु या तत्व को सही स्थान दिया जायेगा तो हमारा पूर्ण जीवन संतुलित बना रहेगा।

03. क्यों आवश्यक है निर्माण में वास्तु को प्रयोग करना?

सनातन वास्तु का ज्ञान आपके घर को ब्रह्माण्ड से आने वाली सकारात्मक एवम प्राकृतिक शक्तियों के साथ जोड़ देता है। जिसका सीधा प्रभाव आपके शरीर और घर की आंतरिक ऊर्जा पर पड़ता है और आप अपने घर तथा जीवन में असीम शांति को अनुभव कर पाते हैं। आपके निवास स्थान पर उत्तम वेंटिलेशन का बने रहना, अधिक से अधिक सूर्य की प्राकृतिक रोशनी का आते रहना और घर के प्रत्येक स्थान का निर्माण केवल आंतरिक ऊर्जा के नियम को ध्यान में रखते हुए करना ही वास्तु शास्त्र के मुख्य नियमों में से एक हैं।

उदाहरण के लिए, दक्षिण-पूर्व दिशा अर्थात आग्नेय कोण में अगर आपकी रसोई है तो लाभ के तौर पर आपको बेहतर स्वास्थ्य उत्तम पाचन की शक्ति प्राप्त होगी। अपने निवास स्थान पर निर्माण से पूर्व अगर पूर्ण वास्तु शास्त्र के नियमों का ध्यान रखा जाता है तो यही सकारात्मक ऊर्जाएं आपके जीवन में आपके रोजगार और वित्तीय स्थिरता को अत्यधिक मजबूती प्रदान करती हैं। ऐसा अनुभव रहा है कि आपके निवास स्थान या रोजगार स्थान पर उत्तर दिशा जितनी अधिक व्यवस्था से पूर्ण रहेगी उतना अधिक आप अपने जीवन में उत्तम धन ऊर्जा को आकर्षित कर पाओगे। आपके परिवार की आपसी प्रेम एवम आपसी एकता भी उत्तम वास्तु ऊर्जा का ही शुभ फल है।

सभी प्रकार के वास्तु दोषों को खत्म करने के लिए 9 सरल उपाय

 

1. नित्य सुबह और शाम की संध्या के समय घर के वास्तु भगवान के नाम से देसी घी का दीपक अपने घर के ईशान कोण में जलाएं।

2. घर के मुख्य दरवाजे की दहलीज पर एक लकड़ी के टुकड़े को पूर्ण चौखट के रूप में स्थापित कर दें। इस चौथी लकड़ी पर अपनी सामर्थ्य अनुसार चांदी या तांबा भी आप लगवा सकते हैं।

3. घर के सभी सदस्यों के साथ घर की एक फोटो को घर के अंदर उस स्थान पर लगा दीजिए जहां सभी सदस्य एक साथ बैठकर भोजन करते हों तथा सभी की नजर उस फोटो पर पड़ती हो।

4. नित्य संध्या पूजन के समय शंखनाद, ॐ नाद, बांसुरी नाद या ईश्वर के नाम का जयकारा या भगवान की आरती को तेज वैखारी मुद्रा में उच्चारण करना।

5. घर में नित्य झाड़ू लगाया करें तथा नित्य के पौंछे में थोड़ा सा गौमूत्र अर्क या सेंधा नमक मिलाकर ही लगाया करें।

6. अपने घर के मध्य में श्रीराम तुलसी जी को या दिव्य अशोक वृक्ष के पौधे को रखा करें तथा उनका दीप पूजन भी नित्य करा करें।

7. घर में 9 वर्ष तक की कन्याओं को पायल अवश्य पहनाएं तथा उन पायलों को हमेशा अपने धन स्थान या किसी भी पवित्र स्थान में संभाल कर रखें।

8. घर के मुख्य दरवाज़े के ऊपर बैठे हुए पंचमुखी श्री हनुमान भगवान जी का या पंचमुखी श्री गणेश भगवान जी चित्र फ्रेम करा कर उत्तम 9 मोरपंखों के आधार पर स्थापित करें।

9. घर की मुख्य छत पर कूड़ा बिल्कुल इकट्ठा नहीं होना चाहिए। अगर छत पर बाथरूम है तो उसे वहां से हटा दें या प्रयोग बिल्कुल शून्य कर दें। यह बात घर के ईशान कोण पर भी हमेशा मान्य रहेगी।

Guru SatyaRam
Guru SatyaRam

– गुरु सत्यराम

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Understand this and the Vastu defects will be eliminated. (Hindi & English)

01. Where did the word Vastu originate from?

Vastu is not a common word but it is a precious technical word of Dev Vaani Sanskrit, which generally means residence. The word Vastu in Dev Bhasha Sanskrit means our residence/residence or our own house. Vastu means the internal energy of the house, the internal energy of our place of residence, the energy of the Anahat of our land or the land on which we have shelter, the internal energy of our complete building or place of residence. That is, the internal energy of our construction and place will be called Vastu energy. Here there is also the word Vaas, which means wherever we take shelter, stay for some time or spend our entire life. Whatever things are used in our complete daily life or are used by us, the science of keeping and giving them a place is called Vastu.

02. What is Vastu Dosh?

The ancient Sanatan Vastu Shastra teaches us that there are Panch Tatvas, Navgrahas, Deva Padas, internal/external energies around us. If we do not follow them, then we have to face a useless struggle in our daily life and even on our complete destiny, which is called Vastu Dosh here. That is, such a precious scripture in which it is explained that we have to take care of the construction of the living place and where to keep the things? If the object or element is given the right place, then our complete life will remain balanced.

03. Why is it necessary to use Vastu in construction?

The knowledge of Sanatan Vastu connects your house with the positive and natural forces coming from the universe. Which has a direct effect on the internal energy of your body and house and you are able to experience immense peace in your home and life. Maintaining good ventilation in your residence, maximum natural sunlight and constructing every place in the house keeping in mind only the law of internal energy are some of the main rules of Vastu Shastra.

For example, if your kitchen is in the south-east direction, then as a benefit you will get better health and better digestion power. If the rules of Vastu Shastra are followed before construction of your residence, then these positive energies provide great strength to your employment and financial stability in your life. It has been experienced that the more orderly the north direction of your residence or place of employment is, the more you will be able to attract good wealth energy in your life. The mutual love and unity of your family is also the auspicious result of good Vastu energy.

9 simple remedies to eliminate all types of Vastu defects

1. Every morning and evening, light a lamp of desi ghee in the name of the Vastu God of the house in the northeast corner of your house.

2. Install a piece of wood on the threshold of the main door of the house in the form of a complete door frame. You can also get silver or copper installed on this fourth piece of wood according to your capacity.

3. Put a photo of the house with all the members of the house at a place inside the house where all the members sit together and eat and everyone’s eyes fall on that photo.

4. During daily evening worship, blow Shankhnaad, Om Naad, flute Naad or chant God’s name or recite God’s Aarti in a loud Vaikhari Mudra.

5. Sweep the house daily and mop the floor with a little cow urine extract or rock salt.

6. Keep Shri Ram Tulsi Ji or divine Ashok tree in the middle of your house and worship it with a lamp every day.

7. Girls up to 9 years of age should wear anklets in the house and always keep those anklets safely in your wealth place or any holy place.

8. Get a framed picture of Panchmukhi Shri Hanuman Ji or Panchmukhi Shri Ganesh Ji sitting above the main door of the house or place it on the base of 9 excellent peacock feathers.

9. Garbage should not accumulate on the main roof of the house at all. If there is a bathroom on the roof, then remove it from there or reduce its use to zero. This thing will always be valid even in the north-east corner of the house.

Guru SatyaRam
Guru SatyaRam

– Guru Satyaram

ऐसा करेंगे तो चंद्रमा ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं(Hindi & English)

ऐसा करेंगे तो चंद्रमा ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं(Hindi & English)

हमारे समस्त नवग्रहों में केवल चंद्रमा ग्रह ही एक ऐसेंग्रह हैं जिनकी गोचर की गति सबसे तीव्र होती है. इसी कारण से चंद्रमा ग्रह किसी भी राशि में सबसे कम समय के लिए ही गोचर करते हैं। चंद्रमा ग्रह लगभग सवा दो दिनों में ही एक राशि से दूसरी राशि में अपनी यात्रा को पूर्ण कर लेते हैं। वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मासिक, साप्ताहिक राशिफल की गणना करने के लिए अमुक जातक की चंद्र राशि को ही आधार बनाकर गणना की जाती है। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि नाम से कभी भी कोई राशि नहीं होती है।

वैदिक ज्योतिष के अनुसार चंद्रमा ग्रह को एक शुभ ग्रह माना जाता है। ज्योतिष विद्या में जहां सूर्य ग्रह को पिता का मूल कारक माना जाता है तो वहीं चंद्रमा ग्रह को माता का मूल कारक ग्रह माना जाता है। चंद्रमा ग्रह कर्क राशि के स्वामी हैं। इसके साथ में रोहिणी नक्षत्र, हस्त नक्षत्र और श्रावण नक्षत्र के स्वामी भी होते हैं। वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा ग्रह जातक के मन, उसके मनोबल, बांयी आंख और छाती के कारक ग्रह आने जाते हैं। जातक की लग्न कुंडली में चंद्रमा ग्रह अगर प्रथम भाव में होते हैं तो व्यक्ति देखने में बहुत ही रूपवान, अत्यंत कल्पनाशील, गहराई से भावुक, अत्यधिक संवेदनशील और स्थाई रूप से साहसी होता है।

जातक की कुंडली में केवल चंद्रमा ग्रह के मजबूत होने से ही जातक मानसिक रूप से अत्यंत मजबूत और स्थाई रूप से सुखी बना रहता है। ऐसा जातक अपनी माताश्री के बेहद करीब होता है। इसके स्थान पर अगर जातक की कुंडली में चंद्रमा ग्रह कमजोर होता है तो वह जातक मानसिक रूप से अत्यधिक कमजोर होता है तथा उसकी स्मरण शक्ति भी काफी क्षीण बनी रहती है। चंद्रमा ग्रह के कमजोर होने से जातक अपने मुश्किल और संघर्ष से पूर्ण समय में आत्महत्या तक करने की कोशिश भी कर सकता है। अगर किसी भी व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा ग्रह अन्य किसी भी पापी ग्रह से पीड़ित रहते हैं तो व्यक्ति के स्वास्थ्य विशेषतः उसके उदर स्थान पर नकारात्मक प्रभाव देखने को मिल सकता है।

7 गलतियां जो आपके चन्द्रमा ग्रह को हमेशा के लिए खराब कर देंगी

1. किसी भी तीर्थ के बहते हुए जल में बगैर नित्य शुद्धि कर्म किए और बगैर प्रणाम किए स्नान या स्पर्श करना।

2. किसी भी तीर्थ के बहते हुए जल में पुराने वस्त्रों को पहने हुए स्नान करना तथा पहने हुए कपड़ों को साफ करना।

3. किसी भी तीर्थ के बहते हुए जल में लघुशंका करना, स्त्री दर्शन करना और शत्रु विनाश की प्रार्थना करना।

4. किसी भी बुजुर्ग विधवा स्त्री को विशेषतः पूर्णमासी तिथि में तिथि रहते और अमावस्या तिथि में सूर्य प्रकाश रहते अपशब्द कहना।

5. दिव्यांग बच्चों विशेषतः मानसिक विकार से पीड़ित मंदबुद्धि बच्चों को कुछ भी अपशब्द सामने या पीठ पीछे भी कहना।

6. नित्य भोजन करते समय जल देवता के अभाव में बगैर भोग लगाए अन्न को ग्रहण करते रहना।

7. अपनी जन्म देने वाली माता का केवल धर्म आधार पर उनका हृदय दुखाना या भक्ति मार्ग में मां शक्ति की तपस्या करते समय उनका हृदय दुखाना।

Guru SatyaRam
Guru SatyaRam

– गुरु सत्यराम

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If you do this, the Moon can be ruined for your entire life (Hindi & English)

Among all our nine planets, the Moon is the only planet whose transit speed is the fastest. For this reason, the Moon transits in any zodiac sign for the shortest time. The Moon completes its journey from one zodiac sign to another in about two and a quarter days. According to Vedic astrology, to calculate monthly and weekly horoscopes, the Moon sign of a particular person is taken as the basis. It should also be kept in mind that there is never a zodiac sign by name.

 

According to Vedic astrology, Moon is considered an auspicious planet. In astrology, while Sun is considered the basic factor of father, Moon is considered the basic factor of mother. Moon is the Lord of Cancer zodiac. Along with this, it is also the Lord of Rohini Nakshatra, Hasta Nakshatra and Shravan Nakshatra. In Vedic astrology, Moon is considered the factor of person’s mind, morale, left eye and chest. If Moon is in the first house in the native’s Lagna Kundali, then the person is very beautiful, highly imaginative, deeply emotional, highly sensitive and permanently courageous.

Only if the Moon planet is strong in the horoscope of a person, then the person remains mentally very strong and permanently happy. Such a person is very close to his mother. Instead, if the Moon planet is weak in the horoscope of a person, then that person is mentally very weak and his memory power also remains very weak. Due to the weak Moon planet, the person can even try to commit suicide in his difficult and struggle-filled time. If the Moon planet is afflicted by any other sinful planet in the horoscope of any person, then negative effects can be seen on the health of the person, especially on his abdomen.

7 mistakes that will spoil your moon forever

1. Bathing or touching the flowing water of any pilgrimage without performing daily purification rituals and without paying obeisance.

2. Bathing in the flowing water of any pilgrimage wearing old clothes and cleaning the worn clothes.

3. Urinating in the flowing water of any pilgrimage, seeing a woman and praying for the destruction of the enemy.

4. Using abusive language to any elderly widow woman, especially on the full moon day and during the sun’s light on the new moon day.

5. Using abusive language to handicapped children, especially mentally retarded children suffering from mental disorders, either in front of them or behind their back.

6. Consuming food without offering it to the water god while eating daily.

7. Hurting the heart of your mother who gave birth to you only on the basis of religion or hurting her heart while doing penance of Maa Shakti in the path of devotion.

Guru SatyaRam
Guru SatyaRam

– Guru Satyaram