सूर्य उपासना का महापर्व छठ पूजन (Hindi & English)
Om-Shiva
हमारे हिंदू धर्म में हर त्यौहार का अपना विशेष महत्व है। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण त्यौहार छठ पूजा है, जिसे प्रत्येक वर्ष बहुत धूमधाम से ना केवल भारत में बल्कि विदेशों में बसे भारतीय, विशेष तौर पर बिहार मूल के भारतीय बड़े हर्ष और उल्लास से मनाते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की छठी तिथि से छठ के महापर्व की शुरुआत होती है। इसे “सूर्य षष्ठी” के नाम से भी जाना जाता है। छठ पूजा में चार दिनों तक सूर्यदेव की विशेष पूजा और अर्चना करने का विधान है। यह व्रत चार दिनों तक चलने वाला अत्यंत कठिन अनुष्ठान है। इसमें स्वच्छता और शुचिता का कठोरता से पालन किया जाता है। व्रत करने वाला व्यक्ति मुख्य पूजन के 05 दिन पूर्व से ही सात्विक भोजन ग्रहण करता है। लहसुन और प्याज आदि का 07 दिनों तक के लिए त्याग कर देते हैं। भूमि पर शयन और दो दिनों तक निर्जला व्रत इस अनुष्ठान की कठोरता में वृद्धि करता है।
01. क्या होता है छठ पर्व?
भारत पर छठ सूर्य उपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है। मुख्य रूप से सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा जाता है। ऐसे तो यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को चैती छठ कहते हैं। और कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ अथवा डाला छठ कहते हैं। इस पर्व में बांस, कुश और सरकंडे से बने डलिया या टोकरी का ही प्रयोग पूजन, अर्ध्य और भोग प्रदान करने में किया जाता है। इसलिए कार्तिक शुक्लपक्ष के छठ को डाला छठ कहते हैं।
यह पर्व मुख्यतः बिहार का राजकीय और प्रमुख लोक सांस्कृतिक त्यौहार है। इस पर्व में सामाजिक समरसता परिलक्षित होती है, क्योंकि बिना किसी जाति-पाति अथवा अमीर-गरीब के भेदभाव के सभी स्त्री-पुरुष नदी अथवा तालाब के घाट पर एकत्रित होकर पूर्ण श्रद्धा और आस्था के साथ सूर्य और षष्ठी माता का पूजन, उपासना, दीपदान, अर्घ्य आदि से पूजन करते हैं।
02. सूर्य पूजन के साथ षष्ठी देवी का पूजन क्यों होता है?
छठ में भले ही सूर्य देवता की पूजा होती हो, लेकिन छठ पर्व को मैया कहकर संबोधित किया जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि लोकभाषा में छठी मैया वस्तुत ऋषि कश्यप और माता अदिति की मानस पुत्री हैं। इन्हें देवसेना के नाम से भी जाना जाता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार कात्यायन ऋषि की पुत्री कात्यायनी देवी को ही छठी मैया कहा जाता है। क्योंकि नवरात्रों में छठे दिन में कात्यायनी देवी की पूजा की जाती है। छठी मैया अथवा माँ देवसेना भगवान सूर्य की बहन तथा भगवान कार्तिकेय की पत्नी हैं। पौराणिक मान्यता है कि शिशु के जन्म से लेकर अगले 06 दिनों तक देवी कात्यायनी और माँ देवसेना नवजात शिशु की रक्षा करती हैं। इसलिए भी भारतीय सनातन पद्धति में शिशुओं के जन्म के बाद छठे दिन षष्ठी पूजन का विशेष आयोजन किया जाता है।
03. छठ पूजा का पौराणिक महत्व
वैदिककाल में पहले एकमात्र व्रत पयोव्रत का विवरण मिलता है। यह व्रत ऋषि कश्यप के कहने पर माता अदिति ने किया था और केवल दूध का सेवन किया था। इस व्रत के उपरांत ही माता अदिति के गर्भ से वामन भगवान ने अवतार लिया था। छठ पर्व का उल्लेख श्रीमद्भागवत पुराण और स्कंदपुराण में भी मिलता है। स्कंदपुराण में तो छठी मैया की महिमा का वर्णन एक कथा के रूप में विस्तार से किया गया है। इस पूजन का संबंध संतान के दीर्घायु और उत्तम स्वास्थ्य की कामना से है। अनेक लोग संतान प्राप्ति की कामना से भी इस व्रत को रखते हैं।
04. छठ पर्व के व्रत की कथा
छठ पर्व को लेकर कई पौराणिक कथाएं हैं। इसमें से प्रमुख कथा है सूर्यवंशी राजा परिवार और उनकी पत्नी मालिनी की। प्राचीन समय में सूर्यवंशी राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी मालिनी ने संतान प्राप्ति के लिए अनेक धार्मिक अनुष्ठान किया, लेकिन उन्हें कोई संतान प्राप्त नहीं हुई। इस कारण राजा बहुत दुखी रहने लगे थे। संतान प्राप्ति हेतु ऋषि कश्यप के आदेश के अनुसार उन्होंने एक यज्ञ का आयोजन किया। इसके परिणाम स्वरूप रानी मालिनी गर्भवती हुई लेकिन उन्हें मृत संतान पैदा हुई। इससे राजा और रानी को अत्यंत दुःख हुआ और वह शोकाकुल होकर आत्महत्या करने के लिए चल पड़े। उनके विलाप को सुनकर सिंहासन पर सवार एक देवी उनके पास आईं। और उनके आशीर्वाद से मृत शिशु जीवित हो उठा। इस पर राजा प्रियव्रत ने दोनों हाथ जोड़कर देवी की आराधना करी और पूछा कि आप कौन हैं? तब उत्तर में उन देवी ने कहा मैं छठ माता हूं, मैं निःसंतान दंपति को संतान होने का आशीर्वाद देती हूँ। और जिनके संतान हैं उनकी रक्षा करती हूं। इस प्रकार से छठ पूजन प्रारंभ हुआ।
इसके अलावा महाभारत काल में भी छठ पूजन का उल्लेख आता है। कहा जाता है कि माता कुंती और द्रौपदी अपने वनवास काल के दौरान प्रत्येक वर्ष षष्ठी पूजन पूरी आस्था और भक्ति से करती थी। जिसके परिणाम स्वरूप उन्हें खोया हुआ राजपाट वापस मिला। इसी प्रकार से कहा जाता है कि महाभारत के योद्धा कर्ण प्रतिदिन घंटों तक जल में खड़े होकर सूर्यदेव की पूजा और उपासना करते थे। वह सूर्यदेव के परम भक्त थे। सूर्यदेव की कृपा से ही वह महान योद्धा बने और उन्हें अत्यधिक शक्तिशाली कवच और कुंडल प्राप्त हुआ और महान पराक्रमी बने। कहते हैं कि कर्ण ने ही सूर्यदेव की आराधना के रूप में छठ पूजन की शुरुआत की थी।
05. वर्ष 2024 में कब है छठ पर्व?
इस वर्ष छठ महापर्व की शुरुआत 05 नवंबर 2024 को दिन मंगलवार से नहाए-खाए की क्रिया के साथ 08 नवंबर 2024 के दिन शुक्रवार को उगते हुए सूर्यदेव को अर्घ्य देने के साथ समाप्त होगा।
06. सूर्य को अर्घ्य देने का समय
07 नवंबर- संध्या अर्घ्य- सूर्यास्त का समय- शाम 05:31 पर।
08 नवंबर- उषा अर्घ्य- सूर्योदय का समय- सुबह 06:38 पर। उसके उपरांत पारण।
07. छठ पर्व का विधि विधान?
छठ पूजा में बहुत ही कठिन और पवित्र नियमों का पालन किया जाता है क्योंकि इसमें शुद्धता, संयम और अनुशासन का विशेष महत्व है। इस पर भोजन में सात्विकता रहती है, केले के पत्तों, मिट्टी के चूल्हों, पत्तलों, और मिट्टी के पात्रों का उपयोग भोजन निर्माण और सेवन में किया जाता है। पहले दिन नहाए खाए , फिर दूसरे दिन खरना प्रसाद के बाद तीसरे दिन संध्याकाल में व्रतधारी कमर तक जल में खड़े होकर, सूप में फल, फूल, मिष्ठान और दीपक रखकर, मिट्टी, पीतल अथवा तांबे के पात्र से कच्चे दूध और गंगाजल से डूबते सूर्यदेव को अर्घ्य देते हैं। नदी किनारे सभी लोग एकत्र होकर ईख या गन्ने के डंडों से मंडप बनाते हैं। उसके नीचे गोबर का लेपन करके, अल्पना आदि बनाकर, कलश स्थापित करते हैं और दीप मालाएं लगाते हैं। सूर्यदेव को अर्घ्य देने के उपरांत लोग घर वापस आते हैं, रात्रि जागरण करते हैं और छठी मैया के गीत गाते हैं। दूसरे दिन प्रातःकाल इसी प्रकार से उगते सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है, और व्रत का पारण किया जाता है।
छठ पूजन में बांस की टोकरी यानी सूप या डलिया, गुड और आटे से बना विशेष प्रसाद ठेकुआ, प्रत्येक प्रकार के मौसमी
फल, गंगाजल, कच्चा नारियल, हल्दी, सिंदूर, मिट्टी के दीपक, घी, धूप, अगरबत्ती आदि विशेष सामग्री का प्रयोग किया जाता है। इस व्रत का पालन पूरा परिवार एक साथ मिलकर करता है। यह व्रत परिवार और समाज के बीच आपसी लगाव और सद्भाव को बढ़ाता है। सब लोग मिलजुलकर इस पर्व को मनाते हैं जिससे लोगों में स्नेह, प्रेम और सहयोग की भावना प्रबल होती है।
उपर्युक्त आलेख में मैंने महापर्व छठ के बारे में कुछ जानकारी देने का प्रयास किया है। आशा करती हूं सभी पाठकों को मेरा यह प्रयास पसंद आया होगा। कृपया कमेंट के जरिए अपना परामर्श दें।
धन्यवाद और आभार।
– एस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव (ज्योतिष केसरी)
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Chhath Puja, the great festival of Surya Upasana (Hindi & English)
Om-Shiva
Every festival has its own special significance in our Hindu religion. One of these important festivals is Chhath Puja, which is celebrated every year with great pomp and show not only in India but also by Indians living abroad, especially Indians of Bihar origin, with great joy and enthusiasm. According to the Hindu calendar, the great festival of Chhath begins from the sixth day of the Shukla Paksha of the month of Kartik. It is also known as “Surya Shashthi”. In Chhath Puja, there is a ritual of special worship and prayer of Sun God for four days. This fast is a very difficult ritual that lasts for four days. Cleanliness and purity are strictly followed in this. The person observing the fast consumes satvik food from 05 days before the main worship. Garlic and onion etc. are given up for 07 days. Sleeping on the ground and fasting without water for two days increases the rigor of this ritual.
01. What is Chhath festival?
Chhath is a famous festival of sun worship in India. It is called Chhath mainly because it is a Surya Shashthi fast. This festival is celebrated twice a year. The festival celebrated on Chaitra Shukla Paksha Shashthi is called Chaiti Chhath. And the festival celebrated on Kartik Shukla Paksha Shashthi is called Kartiki Chhath or Daala Chhath. In this festival, baskets or baskets made of bamboo, kush and reeds are used for worship, offering and prasad. Therefore, Chhath of Kartik Shukla Paksha is called Daala Chhath.
This festival is mainly a state and major folk cultural festival of Bihar. Social harmony is reflected in this festival, because without any discrimination of caste or rich-poor, all men and women gather at the river or pond bank and worship the Sun and Shashthi Mata with full devotion and faith, by worshipping, lighting lamps, offering arghya etc.
02. Why is Shashthi Devi worshipped along with Surya Puja?
Even though Sun God is worshipped in Chhath, Chhath festival is addressed as Maiya. This is because in the local language Chhathi Maiya is actually the Manas Putri of Sage Kashyap and Mother Aditi. She is also known as Devsena. According to Brahmavaivart Purana, Katyayani Devi, daughter of Sage Katyayan, is called Chhathi Maiya. Because Katyayani Devi is worshipped on the sixth day of Navratri. Chhathi Maiya or Maa Devsena is the sister of Lord Sun and wife of Lord Kartikeya. There is a mythological belief that from the birth of the child till the next 06 days, Goddess Katyayani and Mother Devsena protect the newborn child. That is why in the Indian Sanatan system, a special event of Shashthi Puja is organized on the sixth day after the birth of the child.
03. Mythological importance of Chhath Puja
In the Vedic period, the description of the only fast is found, Payovrat. This fast was observed by Mother Aditi on the advice of sage Kashyap and she consumed only milk. It was after this fast that Lord Vamana took incarnation from the womb of Mother Aditi. Chhath festival is also mentioned in Shrimad Bhagwat Purana and Skanda Purana. In Skanda Purana, the glory of Chhathi Maiya has been described in detail in the form of a story. This worship is related to the wish for the long life and good health of the child. Many people also observe this fast with the wish to have children.
04. The story of the fast of Chhath festival
There are many mythological stories about Chhath festival. The main story among these is of the Suryavanshi king family and his wife Malini. In ancient times, Suryavanshi King Priyavrat and his wife Malini performed many religious rituals to have children, but they did not get any children. Due to this, the king started being very sad. As per the order of Sage Kashyap, they organized a Yagya to get a child. As a result, Queen Malini became pregnant but she gave birth to a dead child. This made the king and queen very sad and they were grief-stricken and decided to commit suicide. Hearing their wailing, a goddess riding on the throne came to them. And with her blessings, the dead child came alive. On this, King Priyavrat prayed to the goddess with folded hands and asked who are you? Then in response, the goddess said I am Chhath Mata, I bless childless couples to have children. And I protect those who have children. In this way, Chhath Puja started.
Apart from this, Chhath Puja is also mentioned in the Mahabharata period. It is said that Mother Kunti and Draupadi used to perform Shashthi Puja every year with full faith and devotion during their exile period. As a result of which they got back their lost kingdom. Similarly, it is said that Mahabharata warrior Karna used to stand in water for hours every day and worship Sun God. He was an ardent devotee of Sun God. It was by the grace of Sun God that he became a great warrior and he got extremely powerful armor and earrings and became very valiant. It is said that Karna started Chhath Puja as a form of worship of Sun God.
05. When is Chhath festival in the year 2024?
This year Chhath Mahaparva will start on 05 November 2024, Tuesday with the ritual of Nahaye-Khaye and will end on 08 November 2024, Friday with offering Arghya to the rising Sun God.
06. Time to offer Arghya to the Sun
07 November- Sandhya Arghya- Sunset time- at 05:31 pm.
08 November- Usha Arghya- Sunrise time- 06:38 am. After that Parana.
07. Rituals of Chhath festival?
Very difficult and sacred rules are followed in Chhath Puja because purity, restraint and discipline have special importance in it. The food on this is sattvik, banana leaves, earthen stoves, leaves and earthen pots are used for food preparation and consumption. On the first day, people bathe and eat, then on the second day after Kharna Prasad, on the third day in the evening, the fasting people stand waist deep in water, put fruits, flowers, sweets and lamps in a bowl, and offer arghya to the setting Sun God with raw milk and Ganga water in an earthen, brass or copper pot. All the people gather on the river bank and make a pavilion with reed or sugarcane sticks. They apply cow dung on its bottom, make alpana etc., install the urn and put lamps in garlands. After offering arghya to the Sun God, people return home, do night vigil and sing songs of Chhathi Maiya. On the second day, in the morning, in the same way, arghya is offered to the rising Sun God, and the fast is broken.
In Chhath Puja, bamboo basket i.e. soup or Daliya, special Prasad Thekua made of jaggery and flour, every type of seasonal fruit, Gangajal, raw coconut, turmeric, vermilion, earthen lamps, ghee, incense, agarbatti etc. are used. This fast is observed by the whole family together. This fast increases mutual attachment and harmony between the family and the society. Everyone celebrates this festival together, due to which the feeling of affection, love and cooperation is strengthened among the people.
In the above article, I have tried to give some information about the great festival Chhath. I hope all the readers would have liked my effort. Please give your advice through comments.
Thanks and gratitude.
– Astro Richa Srivastava (Jyotish Kesari)
Richa Srivastava
November 6, 2024 at 1:44 pm
उत्तम चित्र संयोजन से सुसज्जित एक उपयोगी आलेख। धन्यवाद गुरुजी 🙏🌹
Guru Satyaram
November 7, 2024 at 7:01 pm
Thnx. Om-Shiva