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Author: Guru Satyaram

यह नवरत्न हैं बड़े अनमोल(Hindi & English) 

यह नवरत्न हैं बड़े अनमोल(Hindi & English)

Om-Shiva

औषधि मणि मंत्राणाम्, ग्रह-नक्षत्र तारिका।
भाग्यकाले भवेत् सिद्धिः,अभाग्यं निष्फलं भवेत ।।

अर्थात, औषधि, मणि(रत्न) एवं मन्त्र, ग्रह-नक्षत्र जनित रोगों को दूर करते हैं। यदि समय सही है तो शुभ फल प्राप्त होते हैं, जबकि विपरीत समय में ये सभी निष्फल हो जाते हैं। हमारे ज्योतिष विज्ञान में ग्रहों के रत्नों का वही महत्व है जो आधुनिक मेडिकल साइंस में दवाइयों का है। दरअसल ग्रहों के रत्न हमारे शरीर में ग्रहों से आ रही दिव्य किरणों को सोखकर हमारे शरीर में ऊर्जा को बढाते हैं। उस ग्रह से सम्बंधित शुभ फलों में बढ़ोतरी करते हैं। अतः आपकी कुंडली में जो ग्रह शुभ फलदायी हों मगर निर्बल हों, उनका रत्न धारण करके उन्हें बलशाली बनाया जा सकता है। यही कारण भी है कि अशुभ ग्रहों के रत्न सर्वथा त्याज्य ही होते हैं।

अनेक ज्योतिष ग्रंथों में जहाँ इसी प्रकार जातक की कुंडली में दुःस्थिति के कारण कुफलदायी सूर्य आदि ग्रहों को प्रसन्न के लिए भिन्न-भिन्न से सम्बंधित रत्नों के साथ ही अन्य पदार्थों को दान करने का निर्देश दिया है, वहीं शुभ फल की प्राप्ति के लिए रत्न धारण का भी निर्देश दिया गया है। “ज्योतिषतत्व सुधाणव” का यह वाक्य भी स्पष्ट कहता है कि जब सूर्यादि ग्रह कुफलप्रद हो, तब इनकी शांति के लिए क्रमशः माणिक्य,पन्ना, मूँगा, पुखराज, मोती, हीरा, नीलम, गोमेद,और मरकत (लहसुनिया) धारण करने चाहिए :

माणिक्यं विगुणे सूर्ये वैदूर्यम शशलाच्छने।
प्रवालं भूमिपुत्रे च पद्मरागम शशांकजे।।
गुरौ मुक्ताम भृगौ व्रजं इंद्रानीलं शनैश्चरे।
राहो गोमेदकं धार्यं केतौ मर्कतम तथा ।।

इसी प्रकार श्रीकश्यप मुनि और श्रीपति भी अशुभ ग्रहों के प्रकोप को शांत करने के लिए इनके अपने अपने रत्न धारण करने का सुझाव देते हैं।

अब सवाल ये उठता है कि नवग्रहों के रत्नों को किस प्रकार धारण किये जाएं कि हमारी सोई हुई किस्मत पुनः जाग उठे। इस सम्बंध में विभिन्न ज्योतिर्विदों के अपने अलग-अलग सिद्धांत हैं। कोई भाग्येश का रत्न पहनाता है, तो कोई प्रचलित वर्तमान दशा का रत्न पहनाता है। कोई जन्म चंद्र राशि के स्वामी का रत्न पहनाता है तो कोई सूर्य की सायन राशि के अनुसार रत्न धारण करने का सुझाव देता है। यहाँ हम आपको उम्र की अवस्था अनुसार किस्मत जगाने वाले रत्नों को धारण करने का सुझाव दे रहे हैं। जिसके लिए हमने जीवन काल को 3 खण्डों में विभाजित किया है।

 

प्रथम खण्ड-

इसमें पहला खण्ड है प्राथमिक व उच्चशिक्षा का काल खंड। इसमें विभिन्न जन्म चंद्र राशि एवम लग्न वाले व्यक्तियों को निम्नानुसार रत्न पहनना चाहिए-

लग्न/राशि और उत्तम रत्न

01. मेष – माणिक्य
02. वृषभ – पन्ना
03. मिथुन – हीरा/ओपल
04. कर्क – मूंगा
05. सिंह – पुखराज
06. कन्या – नीलम
07. तुला – नीलम
08. वृश्चिक – पुखराज
09. धनु – मूंगा
10. मकर – हीरा
11. कुम्भ – पन्ना
12. मीन – मोती

द्वितीय खण्ड-

जब प्रतियोगिता परीक्षा एवम उसके बाद कैरियर में उन्नति का अवसर हो, तब उक्त रत्न के साथ निम्नलिखित रत्न भी धारण करना चाहिए-

 

लग्न/राशि और उत्तम रत्न

मेष – पुखराज
वृष – नीलम
मिथुन – नीलम
कर्क – पुखराज
सिंह – मूँगा
तुला – पन्ना
वृश्चिक – मोती
धनु – माणिक
मकर – पन्ना
कुम्भ – हीरा
मीन – मूँगा

तीसरा खण्ड-

जीवन के तीसरे खण्ड में जब हमारे उत्तरदायित्वों में जब वृद्धि होने लगती है तो प्रायः सभी क्षेत्रो में अनुकूलता की आवश्यकता महसूस होती है। ऐसी स्थिति में उपर्युक्त रत्नों के साथ निम्नलिखित रत्न भी धारण करना चाहिए-

 

लग्न/राशि और उत्तम रत्न

मेष – मूँगा
वृष – हीरा/ओपल
मिथुन – पन्ना
कर्क – मोती
सिंह – माणिक्य
कन्या – पन्ना
तुला – हीरा/ओपल
वृश्चिक – मूँगा
धनु – पुखराज
मकर – नीलम
कुम्भ – नीलम
मीन – पुखराज

 

राहु और केतु यह दोनों आकस्मिक परिणाम देने वाले ग्रह हैं।उनके रत्न भी उनकी दशा/ महादशा में धारण किये जा सकते हैं। राहु ग्रह का रत्न गोमेद और केतु ग्रह का रत्न लहसुनिया है। यदि राहु केतु लग्न, द्वितीय, पंचम, नवम, दशम, या एकादश स्थान/भाव में हैं और उनकी दशा भी चल रही हो तो इन रत्नों को धारण कर आकस्मिक शुभ फलों की प्राप्ति की जा सकती है, और अपनी सोई हुई किस्मत को जगाया जा सकता है।

यहाँ एक बात् महत्वपूर्ण है कि रत्न योग्य एवम अनुभवी ज्योतिषी के दिशानिर्देश के अनुसार ही धारण करना चाहिए,अन्यथा इनका नकारात्मक असर भी पड़ सकता है। ग्रहों के रत्नों को सदैव उनके लिए निर्धारित धातुओं में ही धारण करना चाहिए।

ग्रहों के रत्न और उत्तम धातु-

माणिक्य को सोना या तांबा, मोती को चाँदी, मूँगा को सोना या तांबा, पन्ना को सोना या त्रिधातु, पुखराज को सोना या चाँदी, हीरा को प्लेटिनम और चाँदी में, नीलम को त्रिलोह,पंचधातु और अष्टधातु में, गोमेद को पँचधातु या अष्टधातु में और लहसुनिया को भी पँचधातु या अष्टधातु में बनवाना चाहिए।

रत्न और अँगुली-

माणिक्य, मोती, मूँगा अनामिका अँगुली में, पन्ना कनिष्ठिका में, पुखराज को तर्जनी में धारण करना चाहिए। जबकि हीरा, नीलम, गोमेद,लहसुनिया को मध्यमा अंगुली में धारण करना चाहिए। तभी रत्नों का सही असर प्राप्त होता है।

रत्न का वजन-

प्रायः रत्न का धारण सवाई ईकाई में किया जाता है। जैसे- सवा 7 रत्ती, सवा पांच रत्ती आदि।

इसके पीछे यह धार्मिक मान्यता है कि सवाया होने पर वृद्धि होती है। इसी प्रकार से पौना वजन का रत्न नहीं धारण किया जाता है। इसके पीछे यह मान्यता है कि पौना कमतर का प्रतीक है। ध्यान रहे कि सवाया का अर्थ 0.10 से लेकर 0.40 माना जाता है। इसी प्रकार पौना का अर्थ 0.7 से 0.9 तक माना जाता है। इस प्रकार 5.1 से लेकर 5.4 रत्ती तक का रत्न 5.25 रत्ती में माना जाता है।

-ज्योतिषाचार्य ऋचा श्रीवास्तव

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These nine gems are very precious(Hindi & English)

Om-Shiva 

Aushadhi Mani Mantranam, Graha-Nakshatra Taarika.

Bhagyakaale Bhavet Siddhih, Abhagyam Nisphalam Bhavet.

That is, medicine, gem and mantra cure the diseases caused by planets and stars. If the time is right, then auspicious results are obtained, whereas in adverse times, all these become ineffective. In our astrology science, the gems of planets have the same importance as medicines have in modern medical science. Actually, the gems of planets increase the energy in our body by absorbing the divine rays coming from the planets in our body. They increase the auspicious results related to that planet. Therefore, the planets in your horoscope which are auspicious but weak, can be made strong by wearing their gems. This is also the reason that the gems of inauspicious planets are completely discarded.
Similarly, in many astrological texts, instructions have been given to donate gems and other things along with various related gems to appease the malefic planets like Sun etc. due to bad position in the horoscope of the person, while instructions have also been given to wear gems to get auspicious results. This sentence of “Jyotishatattva Sudhanava” also clearly says that when Suryaadi planet is inauspicious, then for their peace one should wear Ruby, Emerald, Coral, Topaz, Pearl, Diamond, Sapphire, Onyx, and Emerald (Lahsuniya) respectively:

Manikyaam Vigune Suryaye Vaiduryaam Shashlacchane.

Pravalam Bhoomiputre Cha Padmaragam Shashankje.

Guru Muktam Bhrigau Vrajam Indranilam Shanaishchare.

Raho Gomedkan Dharyam Ketau Marktam Tath..

Similarly, Shri Kashyap Muni and Shripati also suggest wearing their respective gems to calm the wrath of inauspicious planets.
Now the question arises that how should the gems of the nine planets be worn so that our sleeping luck wakes up again. Different astrologers have their own different theories in this regard. Some make us wear the gem of Bhagyesh, some make us wear the gem of the current condition. Some make us wear the gem of the lord of the birth moon sign, while some suggest wearing the gem according to the Sun’s side sign. Here we are suggesting you to wear the gems that awaken luck according to the age. For which we have divided the life span into 3 parts.

First part-

The first part in this is the period of primary and higher education. In this, people with different birth moon signs and ascendants should wear the gems as follows-

Ascendant/Zodiac sign and best gemstone

01. Aries – Ruby
02. Taurus – Emerald
03. Gemini – Diamond/Opal
04. Cancer – Coral
05. Leo – Topaz
06. Virgo – Blue Sapphire
07. Libra – Blue Sapphire
08. Scorpio – Topaz
09. Sagittarius – Coral
10. Capricorn – Diamond
11. Aquarius – Emerald
12. Pisces – Pearl

Second Part –

When there is an opportunity for competitive examination and career advancement thereafter, then the following gems should also be worn along with the above gems-

Ascendant/Zodiac Sign and Best Gemstones

Aries – Topaz
Taurus – Blue Sapphire
Gemini – Blue Sapphire
Cancer – Topaz
Leo – Coral
Libra – Emerald
Scorpio – Pearl
Sagittarius – Ruby
Capricorn – Emerald
Aquarius – Diamond
Pisces – Coral

Third Part –

In the third part of life, when our responsibilities start increasing, then the need for compatibility is felt in almost all areas. In such a situation, the following gems should also be worn along with the above gems.

Lagna/Zodiac Sign and Best Gemstones

Aries – Coral
Taurus – Diamond/Opal
Gemini – Emerald
Cancer – Pearl
Leo – Ruby
Virgo – Emerald
Libra – Diamond/Opal
Scorpio – Coral
Sagittarius – Topaz
Capricorn – Blue Sapphire
Aquarius – Blue Sapphire
Pisces – Topaz
Rahu and Ketu are both planets that give unexpected results. Their gemstones can also be worn in their Dasha/Mahadasha. The gemstone of Rahu is Onyx and the gemstone of Ketu is Cat’s Eye. If Rahu and Ketu are in the Lagna, second, fifth, ninth, tenth or eleventh house and their Dasha is also going on, then by wearing these gemstones, unexpected auspicious results can be obtained and one can awaken one’s sleeping luck.
One important thing here is that gems should be worn only under the guidance of a qualified and experienced astrologer, otherwise they can have negative effects. The gems of planets should always be worn in the metals prescribed for them.

Gems of planets and best metals-

Ruby should be made in gold or copper, pearl in silver, coral in gold or copper, emerald in gold or tri-metal, topaz in gold or silver, diamond in platinum and silver, blue sapphire in tri-metal, panchdhatu and ashtadhatu, onyx in panchdhatu or ashtadhatu and cat’s eye should also be made in panchdhatu or ashtadhatu.

Gems and finger-

Ruby, pearl, coral should be worn in ring finger, emerald in little finger, topaz in index finger. Whereas diamond, sapphire, onyx, cat’s eye should be worn in the middle finger. Only then the gems give the right effect.

Weight of gems-

Usually gems are worn in savaai units. Like- 7 and a quarter ratti, 5 and a quarter ratti etc.
The religious belief behind this is that there is an increase in the weight of savaai. Similarly, gems of paunna weight are not worn. The belief behind this is that paunna is a symbol of less. Keep in mind that savaai means 0.10 to 0.40. Similarly paunna means 0.7 to 0.9. Thus a gem of 5.1 to 5.4 ratti is considered to be 5.25 ratti.
-Astrologer Richa Shrivastava

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी एक परिचय(Hindi & English)

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी एक परिचय(Hindi & English)

Om-Shiva

हर वर्ष भगवान श्री कृष्णजी का जन्म भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की शुभ अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। क्योंकि इस दिन भगवान श्री विष्णुजी के 16 कलाओं से युक्त पूर्णावतार ,भगवान श्री कृष्णजी ने धर्म की संस्थापना हेतु माता श्रीदेवकीजी के गर्भ से मथुरा नामक पावन नगरी में मानव रूप में अवतार लिया था। भगवान विष्णुजी के आठवें अवतार योगेश्वर भगवान श्री कृष्णजी का जन्म द्वापर युग के अंत में भाद्रपद मास की शुभ अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में एक भयानक राक्षस कंस के अत्याचारों से धरती माता को मुक्त कराने के लिए हुआ था। इसी उपलक्ष्य में हमारे सनातन धर्म में श्री कृष्ण जन्माष्टमी को एक प्रमुख त्योहार की दृष्टि से देखा जाता है, और सम्पूर्ण देश-दुनियां में बड़े हर्षोल्लास से इस त्यौहार को मनाया जाता है।

इस दिन समस्त मंदिरों में बड़ी मनमोहक सजावट की जाती है और लोग अपने घरों में भी झांकियां आदि सजाकर भगवान श्रीकृष्ण जी का जन्म कराते हैं और छप्पन भोग लगाकर अपनी पूजा उपासना करते हैं। तुलसी दल युक्त माखन, मिश्री, दूध दही, पंजीरी और रामदाने के लड्डू, फल इत्यादि भगवान श्री कृष्णजी के प्रिय भोग है।

इस वर्ष किस दिन है जन्माष्टमी?

वर्तमान वर्ष 2024 में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की शुभ तिथि दिनांक 26 अगस्त, दिन सोमवार को पड़ रही है। साथ में एक अत्यंत शुभ योग, जयंती योग एवं सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा। इस समय यदि भगवान श्री कृष्ण की पूजा उपासना की जायेगी तो अक्षय पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

पूजन का मुहूर्त?

इस बार 26 अगस्त को सुबह 3 बजकर 40 मिनट से अष्टमी तिथि शुरू होगी और 27 अगस्त को सुबह 02 बजकर 19 मिनट पर समाप्त होगी। दिनांक 26 अगस्त के सूर्योदय काल से ही व्रत का प्रारम्भ होगा और व्रत का पारण 27 अगस्त को सुबह 06 बजे के बाद होगा।

रात्रि पूजन मुहूर्त?

रात्रि 12:00 बजे से रात्रि 12:45 बजे तक।

अपनी जन्म चंद्र राशि अनुसार क्या भोग लगाएं?

यदि उपासक इस विशिष्ट दिन अपनी जन्म चंद्र राशि अनुसार भगवान को भोग लगाकर उनकी उपासना करते हैं तो उन्हें भगवान का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त होगा।

01. मेष राशि- मेवे और तुलसी दल सहित आटा की पंजीरी का भोग लगाएं।

02. वृष राशि- शुद्ध दूध से बनी मिठाई , खीर का तुलसी पत्र डालकर भोग लगाएं।

03. मिथुन राशि- इस राशि के जातक शुद्ध घी में बने हरे मूंग के तुलसी दल युक्त लड्डू या हलवे का भोग लगाएं।

04. कर्क राशि- कर्क राशि के जातक भोग में बेसन की पंजीरी, श्री खण्ड अर्पित करें।

05. सिंह राशि- इस राशि के जातक भगवान को अन्य द्रव्यों के साथ धनिया की पंजीरी अवश्य अर्पित करें।

06. कन्या राशि- कन्या राशि के जातक भोग में दही और बेसन के लड्डू अर्पित करें।

07. तुला राशि- इस राशि के जातक माखन, मिश्री और चावल के खीर का भोग अर्पित करें।

08. वृश्चिक राशि- वृश्चिक राशि वाले लाल पेड़े और नारियल की बर्फी अर्पित करें।

09. धनु राशि- इस राशि के जातक केसर युक्त मेवे और खोए की मिठाई का भोग अर्पित करें।

10. मकर राशि- मकर राशि के जातक भगवान को नारियल युक्त मखाने की खीर का भोग लगाएं।

11. कुम्भ राशि- इस राशि के जातक अन्य प्रसादों के साथ ताजे नारियल के लड्डू, और पँचमेवे युक्त आटे के लड्डूओ का भोग लगाएं।

12. मीन राशि- इस राशि के जातक केसर युक्त पीले बेसन के लड्डू या बेसन का हलुवा अर्पित करें।

इस प्रकार से भोग अर्पित करते हुए जातक पूजन करें और प्रभु से कल्याण की कामना करें। ध्यान रहे, प्रत्येक भोग-प्रसाद में तुलसी दल अत्यंत आवश्यक है।

– ज्योतिषाचार्य ऋचा श्रीवास्तव

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Sri Krishna Janmashtami – An Introduction(Hindi & English)

Om-Shiva

Every year, Lord Shri Krishna’s birth is celebrated on the auspicious Ashtami Tithi of Krishna Paksha of Bhadrapada month. Because on this day, Lord Shri Krishna, the complete incarnation of Lord Vishnu with 16 arts, took human form in the holy city of Mathura from the womb of Mother Shri Devki to establish religion. Lord Vishnu’s eighth incarnation, Yogeshwar Lord Shri Krishna was born at the end of Dwapar Yug on the auspicious Ashtami Tithi of Bhadrapada month in Rohini Nakshatra to free Mother Earth from the atrocities of a terrible demon Kansa. On this occasion, Shri Krishna Janmashtami is seen as a major festival in our Sanatan Dharma, and this festival is celebrated with great joy in the entire country and the world.

On this day, all the temples are decorated very attractively and people also decorate tableaux etc. in their homes to celebrate the birth of Lord Krishna and offer fifty-six offerings. Butter with Tulsi leaves, sugar candy, milk, curd, panjiri and Ramdana laddus, fruits etc. are the favorite offerings of Lord Krishna.

On which day is Janmashtami this year?

In the current year 2024, the auspicious date of Shri Krishna Janmashtami is falling on 26 August, Monday. Along with this, a very auspicious yoga, Jayanti yoga and Sarvartha Siddhi yoga are also being formed. If Lord Krishna is worshipped at this time, then one gets Akshay Punya fruit.

Muhurta of worship?

This time Ashtami Tithi will start from 3:40 am on 26 August and will end at 02:19 am on 27 August. The fast will start from sunrise on 26th August and the fast will end after 6 am on 27th August.

Night worship time?

From 12:00 pm to 12:45 pm.

What should be offered as per your birth moon sign?

If the worshipper worships God by offering him food as per his birth moon sign on this special day, then he will definitely receive the blessings of God.

01. Aries- Offer flour panjiri with dry fruits and basil leaves.

02. Taurus- Offer sweets made from pure milk, kheer with basil leaves.

03. Gemini- People of this zodiac should offer green moong laddu or halwa made in pure ghee with basil leaves.

04. Cancer- People of Cancer zodiac should offer gram flour panjiri, Shri Khand as bhog.

05. Leo- People of this zodiac sign must offer coriander panjiri to God along with other things.

06. Virgo- People of Virgo zodiac sign must offer curd and gram flour laddus as bhog.

07. Libra- People of this zodiac sign must offer butter, sugar candy and rice pudding.

08. Scorpio- People of Scorpio zodiac sign must offer red peda and coconut barfi.

09. Sagittarius- People of this zodiac sign must offer saffron-infused dry fruits and khoya sweets.

10. Capricorn- People of Capricorn zodiac sign must offer coconut-infused makhana kheer to God.

11. Aquarius- People of this zodiac sign must offer fresh coconut laddus and flour laddus with panchmewa along with other prasads.

12. Pisces- People of this zodiac sign must offer saffron-infused yellow gram flour laddus or gram flour halwa.

In this way, the person should worship by offering bhog and pray to the Lord for his welfare. Remember, Tulsi leaves are very essential in every bhog and prasad.

– Astrologer Richa Shrivastava

गुरुतत्व और गुरु शरीर में क्या अंतर होता है?(Hindi & English)

गुरुतत्व और गुरु शरीर में क्या अंतर होता है?(Hindi & English)

 

01. गुरुतत्व का मूल अर्थ क्या है?
02. गुरु शरीर के माध्यम से गुरुतत्व की कृपा कैसे प्राप्त करें?
03. घर पर रहकर ही गुरुतत्व से कैसे जुडें?
04. गुरुतत्व से जुड़कर मन्त्र दीक्षा कैसे प्राप्त करें?
05. गुरु का शरीर समाधि धारण कर लें तो आगे शिष्य का क्या धर्म है?

01. गुरुतत्व का मूल अर्थ क्या है?

इस सम्पूर्ण सृष्टि में जो ईश्वरीय तत्व व्याप्त है जब वही परम तत्व हमें किसी शरीर, भावना, घटना, स्मृति या शरीर के माध्यम से हमें कुछ भी सिखाने का प्रयास करता है तो वहां पर गुरुतत्व का ही भाव किया जाता है। अर्थात आप जो कुछ भी सीख रहें हैं उसको सिखाना वाला गुरु का शरीर कहलायेगा और जो उस शरीर के माध्यम से आपको ज्ञान दे रहा है वह गुरुतत्व कहलायेगा।

02. गुरु शरीर के माध्यम से गुरुतत्व की कृपा कैसे प्राप्त करें?

एक सामान्य जातक के लिए ज्ञान के अभाव में केवल गुरु का शरीर ही सबकुछ होता है। लेकिन जब गुरुतत्व की कृपा से साधक इस ब्रह्म ज्ञान से एकाकार हो जाता हैं कि शरीर तो केवल एक माध्यम है ईश्वर के ही दूसरे रूप अर्थात गुरुतत्व से जुड़ने का। आगे बढ़ते हुए जातक को सदैव यही स्मरण रखना चाहिए कि गुरुतत्व ही मुझे सम्मुख गुरु शरीर के माध्यम से माया रुपी अज्ञानता से बाहर लाने का प्रयास कर रहें हैं। इसलिए जातक को गुरु शरीर के माध्यम से जो भी सन्देश चाहे वह मंत्र के रूप में, डांट के रूप में, प्रसाद के रूप में, प्रवचनों के रूप में, या उर्जा रूप में प्राप्त हो उसे ईश्वरीय प्रसाद मानते हुए सदैव धारण करे ही रहना चाहिए। इसी आधार पर कोई भी साधक गुरु शरीर के माध्यम से परमब्रह्म गुरुतत्व से जुड़ा रहेगा।

03. घर पर रहकर ही गुरुतत्व से कैसे जुडें?

यहाँ गुरुतत्व से जुड़ना अर्थात सीधे अर्थों में गुरु धारण करना रहेगा। इसके लिए मैं आपको अपनी साधना के अनुभव आधार पर कुछ सरल विधि बताता हूँ। आप श्रीमद्भागवत गीताजी को लेकर आइये। गीताजी को प्रणाम कीजिये, उन्हें आसन दीजिये और ईश्वर रुपी गुरु तत्व का आह्वाहन करते हुए मानसिक रूप से प्रार्थना कीजिये कि हे परम तत्व मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि श्री गीताजी शास्त्र के माध्यम से आप मुझे साधक के रूप में स्वीकार कीजिये और श्री गीताजी के वचनों के माध्यम से मेरा मार्गदर्शन कीजिये। श्री गीताजी में 18 अध्याय हैं, अगर जातक नित्य एक अध्याय को पढ़ते हुए अपने दिन की शुरुआत करेगा तो धीरे-धीरे अपने गुरुतत्व की कृपा से साधक चेतना के स्तर आधार पर ऊँचा उठाना प्रारम्भ कर देगा। मात्र ऐसा करते रहने से ही जातक उतम ब्रह्मविद्या के मूल बीज को अपने अनाहत में स्थायी रूप से ग्रहण कर लेगा।

04. गुरु तत्व से जुड़कर मन्त्र दीक्षा कैसे प्राप्त करें?

जब एक साधक अपने गुरुतत्व से जुड़ना सीख जाता है तो उसके लिए गुरुतत्व से आने वाली प्रत्येक क्रिया ही उसके लिए एक मंत्र की भांति ही मूल्यवान बनी रहती है, अर्थात जो कुछ भी गुरुतत्व की क्रिया सम्मुख आती है तो जातक उसी क्रिया को मंत्र रुपी दीक्षा मानकर ग्रहण कर लेता है। उदाहरण समझिये की साधक सम्मुख गुरु शरीर में जब गुरु तत्व से जुड़ जाता है तो जो कुछ भी गुरु मुख से निकलेगा साधक उसे ही मंत्र रूप मानकर ग्रहण कर लेगा तथा उस आदेश या वचन रुपी मंत्री की पालना ही उसके लिए दीक्षा होगी। अर्थात यहाँ गुरुतत्व वचनों की पालना ही मंत्र दीक्षा कहलाएगी।

05. गुरु का शरीर समाधि धारण करलें तो आगे शिष्य का क्या धर्म है?

जब जातक अपने गुरुतत्व से जुड़ जाता है तो गुरु शरीर द्वारा दिखाए गए प्रकाश मार्ग पर ही अग्रसर बना रहता है। अर्थात अब ईश्वर इच्छा से गुरु का शरीर समाधि की अवस्था धारण कर लें तो अब साधक के लिए गुरुतत्व की कृपा से गुरु शरीर की नवीन अवस्था ही गुरु शरीर रहेगी, अर्थात अब गुरुतत्व गुरु शरीर से नहीं अपितु समाधि की अवस्था ही गुरु शरीर की स्मृति रूप में विद्यमान रहेगी। साधक जब अपने गुरुतत्व से जुड़ जाता है तो वह अपने गुरु से सदा के लिए एकाकार ही हो जाता है। गुरुतत्व ही परमतत्व का गुरुरूप है और तत्व सदैव विद्यमान रहता है।

Guru SatyaRam
Guru SatyaRam

-Guru SatyaRam

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What is the difference between Guru Element and Guru body?(Hindi & English)

01. What is the basic meaning of Guru Element(Guru Tattva)?

02. How to receive the grace of Guru Tattva through Guru body?

03. How to connect with Guru Tattva while staying at home?

04. How to attain Mantra initiation by connecting with Gurutattva?

05. If the Guru’s body attains Samadhi then what is the future religion of the disciple?

01. What is the basic meaning of Guru Element?

When the same supreme element which is prevalent in this entire creation tries to teach us anything through any body, emotion, event, memory or body, then the sense of gurutattva is expressed there. That is, whatever you are learning will be called the body of the Guru who is teaching you and the one who is giving you knowledge through that body will be called Gurutattva.

02. How to receive the grace of Guru Tattva through Guru body?

For an ordinary person, in the absence of knowledge, only the body of the Guru is everything. But when by the grace of Gurutattva, the seeker becomes united with this Brahma knowledge that the body is only a medium to connect with the other form of God i.e. Gurutattva. While moving forward, the person should always remember that Guru Tattva itself is trying to bring him out of the ignorance in the form of Maya through the Guru body in front of him. Therefore, whatever message the person receives through the Guru’s body in the form of mantra, in the form of scolding, in the form of prasad, in the form of discourses, or in the form of energy, he should always keep it as a divine offering, considering it as divine prasad. On this basis, any seeker will remain connected to the Supreme Brahman Guru Tattva through the Guru’s body.

03. How to connect with Guru Tattva while staying at home?

Here, connecting with Guru Tattva means adopting a Guru in the literal sense. For this, I will tell you some simple methods based on my experience of meditation. You bring Shrimad Bhagwat Geetaji. Salute Geetaji, give her seat and invoking the God-like Guru Tattva, mentally pray that O Supreme Tattva, I request you to accept me as a seeker through Shri Geetaji Shastra and receive the blessings of Shri Geetaji. Guide me through your words. There are 18 chapters in Shri Geetaji, if the person starts his day by reading one chapter daily, then gradually with the grace of his Guru Tatva, the seeker will start raising the level of consciousness.Only by doing this the person will permanently imbibe the basic seed of Uttam Brahmavidya in his Anahata.

04. How to get Mantra initiation by connecting with Guru element?

When a seeker learns to connect with his Guru Tattva, then for him every action coming from Guru Tattva remains valuable for him like a mantra, that is, whatever action of Guru Tattva comes in front of him, the person considers that action as initiation in the form of a mantra. Takes it for granted.For example, understand that when the seeker gets connected to the Guru element in his body in front of the Guru, then whatever comes out of the Guru’s mouth, the seeker will accept it as a mantra and following that order or word of the minister will be initiation for him. That is, here the observance of Gurutattva words will be called Mantra Diksha.

05. If the Guru’s body attains Samadhi then what is the future religion of the disciple?

When the person connects with his Guru Tattva, he continues to move forward on the path of light shown by the Guru body.That is, now if by God’s will the Guru’s body attains the state of Samadhi, then for the seeker, by the grace of the Guru Tattva, the new state of the Guru’s body will remain the Guru’s body, that is, now the Guru Tattva is not from the Guru’s body but the state of Samadhi itself is in the form of memory of the Guru’s body. Will exist in. When a seeker connects with his guru, he becomes one with his guru forever. Guru Tattva is the Guru form of Paramatattva and that Tattva always exists.

Guru SatyaRam
Guru SatyaRam

– Guru SatyaRam