आपकी रसोई में छिपा है लक्ष्मी का खजाना (Hindi & English)
आज के वर्तमान युग में हमारी रसोई बहुत ही ज्यादा मॉर्डन होती जा रही है। हम हमारी रसोई को आधुनिक गैजेट्स से परिपूर्ण बनाकर रखते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा की रसोई भी हमारे लाइफस्टाइल का एक अहम हिस्सा बन चुकी है। रसोई पूर्णतः राहुग्रह को संकेत करती है। पहले के घरों में रसोई इतनी बड़ी होती थी कि घर का प्रत्येक सदस्य वहीं बैठकर गर्मागर्म भोजन का आनंद लिया करता था। परंतु आज की वर्तमान परिस्थितियों में हमारी प्यारी रसोई पहले की अपेक्षा काफी छोटी होती जा रही है। ऐसा कहा जाता है कि रसोई में बैठकर भोजन करने से हमारा राहुग्रह अच्छा रहता है। और राहुग्रह इस कलयुग का राजा ग्रह माना जाता है जो जातक को बहुत ही तीव्र गति से धन प्रदान करने की क्षमता रखता है। अर्थात अगर आप आगे बताई गई बातों का ध्यान अपनी रसोई में बनाकर रखते हैं तो आपके ऊपर लक्ष्मीजी की कृपा स्थाई रूप से बनी रहेगी।
किचन में इन 09 बातों का ध्यान रखकर आप भी धनवान बन पाएंगे
1. नमक, हल्दी, दूध, आंटा, चावल, सरसों का तेल कभी भी पुर्णरूप से खत्म नहीं होने चाहिएं तथा जब भी इन्हें लाएं तो हमेशा दुगनी मात्र में ही लेकर आएं।
2. अपनी गृहस्थी के शुरुआती समय के तवे को कभी भी किचन से बाहर नहीं करें। अगर संभव हो तो समयानुसार उसको प्रयोग में लाते रहें।
3. प्रातः समय पहली रोटी बनाने से पहले “मां अन्नपूर्णा” के मंत्र से पूर्ण गरम तवे पर दूध की छीटें मारकर ही रसोई पकाएं।
4. रसोई में प्रयोग होने वाले नमक ओर चीनी को 11 लौंग डालकर सिर्फ और सिर्फ कांच के मर्तबान में ही रखें।
5. रसोई में हमेशा स्नान उपरांत या हाथ जोड़कर ही प्रवेश करें और सर्वप्रथम चूल्हे की अग्नि को प्रज्वलित कर प्रणाम करके ही दूसरा कार्य शुरू करें।
6. किचन में प्रयोग होने वाले चकले, बेलन, परांत और तवे को कभी भी अन्य झूठे बर्तनों के साथ नहीं रखें।
7. किचन में कभी भी मंदिर नहीं होना चाहिए और रात्रि को कभी भी झूठे बर्तन नहीं छोड़ने चाहिएं।
8. तवा, चकला, बेलन, परांत और चिमटे को घर की स्त्री स्वयं साफ करें। किसी भी सफाई कर्मचारी से ये 5 चीजें ना साफ करवाएं।
9. किचन की दीवारों पर हमेशा सफेद या कोई भी हल्का रंग ही होना चाहिए तथा रात्रि को किचन के कार्यों के समापन पर एक मिट्टी के दीए में 1 कपूर और लौंग का 1 जोड़ा जलाकर हाथ जोड़ लिया करें।
– गुरु सत्यराम
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Lakshmi’s treasure is hidden in your kitchen (Hindi & English)
In today’s era, our kitchen is becoming very modern. We keep our kitchen full of modern gadgets. It would not be wrong to say that the kitchen has also become an important part of our lifestyle. The kitchen completely indicates Rahu. In earlier houses, the kitchen was so big that every member of the house used to sit there and enjoy hot food. But in today’s current circumstances, our beloved kitchen is becoming much smaller than before. It is said that eating food while sitting in the kitchen keeps our Rahu planet good. And Rahu planet is considered to be the king planet of this Kaliyug, which has the ability to provide wealth to the person at a very fast pace. That is, if you keep the things mentioned below in mind in your kitchen, then the blessings of Lakshmiji will remain on you permanently.
By keeping these 9 things in mind in the kitchen, you will also be able to become rich
1. Salt, turmeric, milk, flour, rice, mustard oil should never be finished completely and whenever you bring them, always bring double the quantity.
2. Never take out the pan from the kitchen from the beginning of your household. If possible, keep using it according to the time.
3. Before making the first roti in the morning, sprinkle milk on the hot pan and cook with the mantra of “Maa Annapurna”.
4. Add 11 cloves to the salt and sugar used in the kitchen and keep it only in a glass jar.
5. Always enter the kitchen after taking a bath or with folded hands and first of all light the fire of the stove and bow down before starting any other work.
6. Never keep the chakla, belan, paraant and tawa used in the kitchen with other dirty utensils.
7. There should never be a temple in the kitchen and dirty utensils should never be left at night.
8. The woman of the house should clean the tawa, chakla, belan, paraant and tongs herself. Do not get these 5 things cleaned by any cleaning staff.
9. The walls of the kitchen should always be white or any light colour and at the end of the kitchen work at night, light 1 camphor and 1 pair of cloves in an earthen lamp and fold your hands.
एक दाम्पत्य जीवन में क्यों आती है दरार?(Hindi & English)
Om-Shiva
हमारे भारतीय समाज में विवाह को सात जन्मों का बंधन माना जाता है और विवाह केवल शारीरिक ही नहीं अपितु एक स्थाई मानसिक मिलन का भी द्योतक माना जाता है। यह भी कहा जाता है कि विवाह की जोड़ियां स्वर्ग में बनती हैं, फिर धरती पर ईश्वर के आशीर्वाद से विवाह के बंधन में बंधती हैं। यदि भारतीय समाज मे विवाह एक पवित्र बंधन है, तो क्यों अधिकांश पति-पत्नी अपने दाम्पत्य जीवन में सुखी नहीं रह पाते हैं? आखिर क्यों इतनी कड़वाहट घुल जाती है कि बात अलगाव से लेकर तलाक तक पहुंच जाती है?
आइए हम इसका सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलू खोजने का प्रयास करते हैं।
01. पति-पत्नी के बीच किसी तीसरे का हस्तक्षेप होना
एक सुखी विवाहित जोड़े के बीच किसी तीसरे का अत्यधिक हस्तक्षेप एक प्रमुख सामाजिक मुद्दा है। स्त्री के ससुराल में यदि उसकी सास, ससुर, ननद या अन्य कोई भी सदस्य अगर बहुत अधिक हावी रहता है और पति या पत्नी को बहुत अधिक कंट्रोल करता है, तब दाम्पत्य जीवन में प्रेम की मिठास खत्म होकर कड़वाहट आने लगती है। यही बात पत्नी के मायके की तरफ से भी लागू होती है। पति या पत्नी स्वच्छन्द होकर कोई निर्णय नही ले पाते हैं, और ना ही अपने मन का कुछ कार्य कर पाते हैं। जिससे दोनों के मन में असन्तुष्टि का भाव उत्तपन्न हो जाता है तथा टकराव की स्थिति पैदा होने लग जाती है।
02. पति या पत्नी के विवाहेत्तर संबंधों का होना
आजकल दाम्पत्य जीवन को लगभग समाप्त कर तलाक की दहलीज पर पहुंचा देने वाला यह एक प्रमुख कारण है। बढ़ती आधुनिकता, स्त्रियों की सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता, सोशल मीडिया आदि के कारण अपने घर से बाहर स्त्री-पुरुषों को आपस में घुलने मिलने के अनेक अवसर मिलते हैं। आजकल घर के पर्दे से बाहर निकल कर स्त्रियां नौकरी कर रहीं हैं तथा अन्य सामाजिक कार्य भी कर रहीं हैं। ऐसे में उनका किसी पुरुष सहकर्मी के साथ अत्यंत घनिष्ठ हो जाना थोड़ा लाजिमी है। पुरुष भी घर से बाहर, आधुनिक और सजी संवरी महिलाओं को देखकर सहज ही आकर्षित हो जाते हैं। इस तरह उनमें सम्बन्ध स्थापित हो जाते हैं। जब ऐसे सम्बन्धों की भनक पति या पत्नी को लगती है तब दाम्पत्य जीवन विषैला हो उठता है।
03. लगातार एक दूसरे की उपेक्षा करते रहना
यह दाम्पत्य जीवन के लिए बड़ी खतरनाक स्थिति है। कहते हैं कि जो दम्पति एक दूसरे से लड़ झगड़ लेते हैं, अपनी बातें एक दूसरे को सुनाकर हल्के हो लेते हैं, उनमें फिर भी प्रेम बना रहता है। लेकिन अपने पार्टनर से उपेक्षित पति या पत्नी को अपना पूरा जीवन ही बोझ लगने लगता है। उनमें कम्युनिकेशन और तालमेल की कमी के कारण आपसी समझ नहीं बन पाती है, और वें एक ही छत के नीचे अजनबियों की तरह अपना नीरस जीवन व्यतीत करते हैं। यह परिस्थिति कई कारणों से उत्तपन्न हो सकती है। जैसे मनपसंद जीवनसाथी का नहीं मिलना, जीवनसाथी का उम्मीदों पर खरा नहीं उतरना, जीवनसाथी का दिल दूसरों के प्रति असंवेदनशील होना। जब उपेक्षा की स्थिति बनी रहेगी तो पति पत्नी के बीच प्रेम या स्नेह का रिश्ता पनप ही नहीं सकता है। एक निर्जीव वस्तु भी उपेक्षित होकर पड़े-पड़े सड़ जाती है या बिगड़ जाती है, तो फिर इंसानों का कहना ही क्या? अपने पार्टनर द्वारा करी जाने वाली सतत उपेक्षा जीवनसाथी को मनोवैज्ञानिक रूप से तोड़ देती है। वें बस पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने के लिए एक ही छत के नीचे दिखावे के लिए एकसाथ जीवन व्यतीत करते हैं।
04. अविश्वास और अनादर का रिश्तों में बढ़ना
कुछ पति या पत्नी स्वभावतः शक्की होते हैं। वें कुछ भी कार्य करें लेकिन एक दूसरे के ऊपर छोटी-छोटी बातों पर शक करते ही रहते हैं। एक दूसरे के मोबाइल को चेक करते रहना या सोशल मीडिया पर ताक झांक करते रहना एक आम सी बात हो गई है। आजकल तो फेसबुक और इंस्टाग्राम के पोस्ट के कारण पति-पत्नी में भयंकर झगड़े होना बिल्कुल आम बात हो गई है। इसके अलावा पति या पत्नी द्वारा छोटी-छोटी बातों पर एक दूसरे को नीचा दिखाना, एक दूसरे के मनोबल को तोड़ देता है। ऐसा अनेक बार देखा गया है कि पत्नी यदि अधिक प्रतिभाशाली हो और घर से बाहर जाकर अपनी पहचान बनाती है तो यह बात उसके पति को हजम नहीं हो पाती है। वह अपनी पत्नी को अनेक प्रतिबंध में बांधने की कोशिश करके उसे आगे नही बढ़ने देने की कोशिश में लगा रहता है। इसके पीछे असुरक्षा और ईर्ष्या की भावना भी छुपी हो सकती है। लेकिन यह बात पत्नी को चुभती रहती है, और वह अपने दाम्पत्य जीवन में कभी संतुष्ट नहीं हो पाती है। इसी प्रकार से पत्नी भी अपने पति की महिला मित्रों या महिला सह-कर्मियों को लेकर सदैव आशंकित बनी रहती है। पति के साथ गलत सम्बन्धों की कल्पना करके परेशान होती रहती है। यही परेशानी उसके व्यवहार में भी झलकती है। इस कारण से पति-पत्नी में क्लेश बना रहता है।
05. जीवन में काम के चलते अति व्यस्तता का होना
आज के आधुनिक युग में व्यक्ति अति महत्वाकांक्षी स्वभाव के चलते अपने व्यवसाय या नौकरी में इतना अधिक व्यस्त हो जाता है कि अपने घर-परिवार और पत्नी के साथ एक क्वालिटी टाइम बिताने के लिए उसके पास वक्त ही नहीं हो पाता है। नौकरी हो या बिजनेस, पुरुष उत्तरोत्तर तरक्की करने की चाह में अपना सारा ध्यान उसी में लगा देता है। यह अति व्यस्तता घर के वातावरण को असंतुलित करके, घर के माहौल को ख़राब कर देती है। दिनभर का थका-हारा पति जब घर लौटता है तो घर में शांति और आराम को खोजता है। उसे पत्नी की साधारण बातें भी तंग करने वाली लगती हैं। जबकि दिनभर घर गृहस्थी के कार्यों में उलझी हुई पत्नी, अपने पति के साथ बैठकर प्रेम भरी बातें करना चाहती है।
इसके विपरीत हम देखें तो आजकल की आधुनिक नारियां घर से बाहर निकल कर कार्य कर रहीं हैं। आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने की चाह में वें नौकरी और व्यवसाय को प्राथमिकता देती हैं। जबकि आज “औरत के घर संभालने और पुरुष को कमाने” की हमारी प्राचीन व्यवस्था टूटती जा रही है। नतीज़तन घरेलू व्यवस्था में असंतुलन पैदा हो रहा है। यहां मैं यह नहीं कह रही हूं कि स्त्रियों का घर के बाहर निकलकर काम काज करना अनुचित है, लेकिन यदि पति-पत्नी दोनों ही अति व्यस्त रहते हैं तो कहीं ना कहीं दोनों में मानसिक और शारीरिक दूरी बढ़नी शुरू हो जाती है। तब महत्वकांक्षा सर्वोपरि होने के कारण दाम्पत्य में दरार पड़नी शुरू हो जाती है।
06. झूठा फेमिनिज़्म और सोशल मीडिया का विस्तार होना
आजकल समाज में नारी सशक्तिकरण की आड़ में एक झूठे नारीवाद या फेमिनिज़्म की बाढ़ आई हुई है। हमारे क़ानून नें भी स्त्रियों को अनेक संवैधानिक अधिकार दे रखे हैं। आज की नारी अपने हक, अधिकारों के प्रति बहुत जागरूक हो गयी है। हालांकि हमारे भारतीय समाज में स्त्रियां त्याग, ममता और समझौते की मूर्ति कही जातीं हैं। उनको अधिकार देकर सशक्त बनाया गया, यह बिल्कुल सही बात है, क्योंकि अधिकांश मामलो में औरतें ही प्रताड़ित होती हैं और घरेलू हिंसा की शिकार होतीं हैं। लेकिन इस जागरूकता की आड़ में कुछ औरतें अपने प्रेम और समझौते वाले मूल स्वभाव को लगातार खोती जा रहीं हैं। वह पति और घर-परिवार की ज़रूरतों के बजाय अपने अधिकारों को अधिक प्राथमिकता देती हैं। छोटे-मोटे घरेलू बातों में भी लड़ने लगती हैं और अपने अधिकारों की मांग करती हैं। ऐसे में पति के साथ उनकी पटरी नहीं बैठ पाती और टकराव की स्थिति उतपन्न होती है।
आजकल यह भी देखा जाता है कि पति-पत्नी एक साथ बैठे रहने का बावजूद हाथ में पकड़े मोबाईल में ही मसरूफ रहते हैं। वें आपस में बातचीत करने के बजाय सोशल मीडिया की एक्टिविटी देखने में ही मशगूल रहते हैं। एक सर्वे के अनुसार आजकल मोबाइल फोन भी पति-पत्नी के बीच दूरियां पैदा करने में अहम भूमिका निभा रहा है।
उपर्युक्त आलेख में मैनें दाम्पत्य जीवन में आने वाली कड़वाहट और दरार के कुछ सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलू को उजागर करने की कोशिश करी है। में आशा करती हूँ कि मेरा यह आलेख आप सभी पाठकों को पसन्द आएगा। सुधी पाठक जन भी कमेंट के ज़रिए अपने विचार प्रकट कर सकतें हैं।
आभार एवम धन्यवाद।
-ऐस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव
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Why does a marital life fall apart? (Hindi & English)
Om-Shiva
In our Indian society, marriage is considered a bond of seven lives and marriage is not only considered a physical union but also a symbol of a permanent mental union. It is also said that marriage couples are made in heaven and then they get married on earth with the blessings of God. If marriage is a sacred bond in Indian society, then why most of the husbands and wives are not able to remain happy in their married life? Why does so much bitterness grow that the matter reaches from separation to divorce?
Let us try to find its social and psychological aspect.
01. Interference of a third person between husband and wife
Excessive interference of a third person between a happily married couple is a major social issue. If the mother-in-law, father-in-law, sister-in-law or any other member of the woman’s in-laws’ house dominates too much and controls the husband or wife too much, then the sweetness of love in married life ends and bitterness starts coming. The same thing applies to the wife’s parents’ side as well. The husband or wife are not able to take any decision freely, nor are they able to do anything of their choice. Due to which a feeling of dissatisfaction arises in the mind of both and a situation of conflict starts arising.
02. Husband or wife having extramarital affairs
Nowadays this is a major reason that almost ends the married life and brings it to the threshold of divorce. Due to increasing modernity, social and economic independence of women, social media etc., men and women get many opportunities to mingle with each other outside their homes. Nowadays women are working and doing other social work outside the curtain of the house. In such a situation, it is a bit natural for them to become very close to a male colleague. Men also get easily attracted to modern and well-dressed women outside the home. In this way, relationships are established between them. When the husband or wife gets a hint of such relationships, then the married life becomes poisonous.
03. Constantly ignoring each other
This is a very dangerous situation for married life. It is said that couples who fight with each other, lighten their minds by sharing their stories with each other, still love remains in them. But the husband or wife who is neglected by their partner starts feeling their whole life as a burden. Due to lack of communication and coordination, mutual understanding is not formed between them, and they live their monotonous life like strangers under the same roof. This situation can arise due to many reasons. Like not getting a life partner of your choice, the life partner not meeting expectations, the heart of the life partner being insensitive towards others. When the situation of neglect continues, the relationship of love or affection between husband and wife cannot flourish. Even an inanimate object rots or gets spoiled by being neglected, then what to say about humans? Constant neglect by one’s partner breaks the life partner psychologically. They live together under the same roof just for the sake of show to fulfill family responsibilities.
04. Mistrust and disrespect growing in relationships
Some husbands and wives are naturally suspicious. Whatever they do, they keep doubting each other on small matters. Checking each other’s mobile or peeping on social media has become a common thing. Nowadays, fierce fights between husband and wife have become quite common due to Facebook and Instagram posts. Apart from this, husband or wife belittling each other on small matters breaks each other’s morale. It has been seen many times that if the wife is more talented and goes out of the house and makes her mark, then her husband is unable to digest this. He keeps trying to bind his wife with many restrictions and does not let her move forward. Feelings of insecurity and jealousy may also be hidden behind this. But this thing keeps pricking the wife, and she is never satisfied in her married life. Similarly, a wife is always apprehensive about her husband’s female friends or female co-workers. She remains troubled by imagining wrong relations with her husband. This worry is reflected in her behaviour as well. Due to this, there is always a conflict between husband and wife.
05. Being overly busy in life due to work
In today’s modern era, a person becomes so busy in his business or job due to his overly ambitious nature that he does not have time to spend quality time with his family and wife. Be it a job or business, a man puts all his attention in it in the desire to progress. This overly busyness spoils the atmosphere of the house by making it unbalanced. When a husband returns home tired after a long day, he searches for peace and comfort in the house. He finds even the simple talks of his wife annoying. Whereas a wife, who is busy in household chores all day, wants to sit with her husband and have a loving conversation.
On the contrary, if we look at it, today’s modern women are working outside the house. In the desire to be financially independent, they give priority to job and business. Whereas today our ancient system of “woman managing the house and man earning” is breaking down. As a result, there is an imbalance in the domestic system. Here I am not saying that it is wrong for women to go out and work, but if both the husband and wife are very busy, then somewhere the mental and physical distance between them starts increasing. Then due to ambition being paramount, cracks start appearing in the marital life.
06. False feminism and expansion of social media
Nowadays, there is a flood of false feminism in the society under the guise of women empowerment. Our laws have also given many constitutional rights to women. Today’s women have become very aware of their rights. Although in our Indian society women are considered the epitome of sacrifice, affection and compromise. It is absolutely correct that they were empowered by giving them rights, because in most cases women are harassed and become victims of domestic violence. But under the guise of this awareness, some women are continuously losing their basic nature of love and compromise. They give more priority to their rights instead of the needs of their husband and family. They start fighting even on small domestic issues and demand their rights. In such a situation, they do not get along with their husband and a situation of conflict arises.
Nowadays it is also seen that despite sitting together, husband and wife are busy with the mobile in their hands. Instead of talking to each other, they are busy watching social media activities. According to a survey, nowadays mobile phone is also playing an important role in creating distance between husband and wife.
In the above article, I have tried to highlight some social and psychological aspects of bitterness and rift in married life. I hope that all of you readers will like this article of mine. Intelligent readers can also express their views through comments.
ऐसा करेंगे तो मंगल ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं(Hindi & English)
हमारे संतान वैदिक ज्योतिष ग्रंथों में समस्त 09 ग्रहों में से मंगल ग्रह को ही ग्रहों का सेनापति कहा जाता है। मंगल ग्रह को मेष(1) और वृश्चिक(8) चंद्र राशियों का स्वामी कहा जाता है। मंगल ग्रह व्यक्ति के शारीरिक पराक्रम, उत्तम साहस, भरपूर शक्ति एवम असीम ऊर्जा का कारक माना जाता है। किसी भी जातक व्यक्ति की लग्न कुंडली में अगर मंगल ग्रह शुभ अवस्था में होता है तो वह जातक अपने प्राकृतिक स्वभाव से निडर और साहसी होता है। ऐसा जातक किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना निडर होकर करता है। इन शुभ प्रभावों के अलावा मंगल ग्रह जातक के पूर्ण जीवन पर कई शुभाशुभ प्रभाव भीडालता है। चलिए समझते हैं कि मंगल ग्रह का क्या आंतरिक महत्व है?
मंगल ग्रह, शनिदेव की मकर(10) राशि में उच्च प्रभावी हो जाते हैं। वहीं दूसरी तरह चंद्रदेव की एकमात्र कर्क(4) राशि में मंगल ग्रह नीच प्रभावी हो जाते हैं। अगर 27नक्षत्रों की बात करी जाए तो मंगल ग्रह मृगशिरा नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र तथा धनिष्ठा नक्षत्र नक्षत्र के स्वामी होते हैं। ज्ञानियों के अनुभव अनुसार सुर्ख लाल रंग को मंगल ग्रह से सीधा जोड़कर देखा जाता रहा है। जातक जीवन में मंगल ग्रह के पूर्ण शुभ प्रभाव को बढ़ाने हेतु लाल रंग की वस्तुओं को शामिल किया जाता है।
अगर मंगल के शुभ प्रभावों की बात करें तो मंगल ग्रह के पूर्ण शुभ प्रभाव आ जाने से जातक निडर और साहसी बनता ही है तथा उसमें विशाल जनसमूह के नेतृत्व क्षमता बहुत ही तेज़ी से विकसित होनी प्रारंभ हो जाती है। एक अच्छी बात यह होती है कि ऐसा जातक सभी लोगों को अपने साथ लेकर चलने की शुद्ध भावना अपने हृदय में धारण किए रहता है। मंगल ग्रह के नकारात्मक प्रभावों की चर्चा करी जाए तो ऐसा जातक अपना पूर्ण जीवन ही एक अनावश्यक भय के साए में वयतित करता है। मंगल ग्रह के और भी अधिक अशुभ हो जाने पर जातक को हमेशा एक व्यर्थ(काल्पनिक) सा डर परेशान करना शुरू कर देता है। आगे चलकर ऐसा जातक अपना आत्मविश्वास खोने लग जाता है। उपायों के अभाव में वह कार्य तो शुरू कर लेता है परंतु उसे अपने ही कार्य के प्रति शंका उत्पन्न होने लग जाती है। मंगल ग्रह के सबसे अधिक अशुभ प्रभावों में हमेशा अंहकार बने रहना भी शामिल है। प्रभावित जातक अंहकार में अंधा सा हो जाता है तथा अपने ही परिवार में अपनी कर्कश वाणी के चलते कलह एवम अलगाव की अत्यंत दुखद स्थिति पैदा कर लेता है।
7 गलतियां जो आपके मंगल ग्रह को हमेशा के लिए खराब कर देंगी
1. दैनिक भोजन में बहुत अधिक नमकीन, बहुत अधिक मीठा और बहुत अधिक खट्टा भोजन बहुत लंबे समय तक ग्रहण करते रहना।
2. अपने ही बड़े भाई-भाभी की लिखित भूमि पर धोखे से अपना अधिकार जमाकर किसी भी प्रकार का निर्माण करना या किसी भी तरह की छेड़खानी करके उस भूमि या संपत्ति से धन लाभ कमाना।
3. बहुत लंबे समय तक बैठी हुई अवस्था में नित्य दूध के साथ सूखे मेवे जैसे बादाम, काजू, अखरोट, मखाने इत्यादि ग्रहण करते रहना।
4. पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाले पारिवारिक या आशीर्वाद रूप में प्राप्त हुए अस्र-शस्र का विधिवत वार्षिक पूजन ना करना।
5. नियमित रूप से अपने-अपने धर्म व परिवार एवम् कुल अनुसार तीज-त्यौहारों को विधि पूर्वक ना मनाना। अपने धर्म का सम्मान ना करना और अपनी परम्पराओं को हमेशा विनोद की दृष्टि से ही देखना।
6. अपने जन्मस्थान से संबंधित भूमि को अपशब्द कहना। स्वयं के देश के किसानों और जवानों का उचित सम्मान ना करना। 14 वर्ष से 32 वर्ष की आयु के मध्य अपने बल का प्रयोग बड़ों का अपमान करने में करना।
7. धरती मां का सम्मान नहीं करना। जैसे मकान निर्माण से पूर्व उत्तम भूमि पूजन नहीं करना। भाग्य और मेहनत से प्राप्त हुई भूमि को कोसना। व्यर्थ में थूकते रहना और क्षमा प्रार्थना भी नहीं करना।
– गुरु सत्यराम
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If you do this, Mars can be bad for your whole life(Hindi & English)
In our Vedic astrology texts, out of all the 9 planets, Mars is called the commander of the planets. Mars is called the lord of Aries (1) and Scorpio (8) moon signs. Mars is considered to be the factor of physical prowess, great courage, abundant power and infinite energy of a person. If Mars is in auspicious state in the ascendant horoscope of any person, then that person is fearless and courageous by his natural nature. Such a person faces any kind of trouble fearlessly. Apart from these auspicious effects, Mars also has many auspicious and inauspicious effects on the entire life of the person. Let us understand what is the internal importance of Mars?
Mars becomes highly influential in Saturn’s Capricorn (10) sign. On the other hand, Mars becomes lowly influential in Chandra’s only Cancer (4) sign. If we talk about 27 constellations, Mars is the lord of Mrigasira constellation, Chitra constellation and Dhanishta constellation. According to the experience of the wise, the scarlet red color has been directly associated with Mars. Red colored objects are included to increase the full auspicious effect of Mars in the life of the native.
If we talk about the auspicious effects of Mars, then with the full auspicious effect of Mars, the native becomes fearless and courageous and the leadership ability of a large group of people starts developing very fast in him. One good thing is that such a native keeps the pure feeling of taking everyone along with him in his heart. If we talk about the negative effects of Mars, then such a native spends his entire life under the shadow of unnecessary fear. When Mars becomes even more inauspicious, a useless (imaginary) fear always starts troubling the native. Later on, such a native starts losing his self-confidence. In the absence of solutions, he starts the work but he starts having doubts about his own work. Always being arrogant is also one of the most inauspicious effects of Mars. The affected native becomes blind in arrogance and due to his harsh speech, he creates a very sad situation of discord and separation in his own family.
7 mistakes that will spoil your Mars forever
1. Consuming too much salty, too much sweet and too much sour food for a very long time in your daily diet.
2. Fraudulently establishing your right on the written land of your elder brother or sister-in-law and making any kind of construction or any kind of tampering to earn money from that land or property.
3. Consuming dry fruits like almonds, cashews, walnuts, lotus seeds etc. with milk every day in a sitting position for a very long time.
4. Not performing the annual worship of the family weapon or weapon received as a blessing from generations.
5. Not celebrating festivals regularly according to your religion, family and clan. Not respecting your religion and always looking at your traditions with a sense of humor.
6. Using abusive language for the land related to your birthplace. Not giving due respect to the farmers and soldiers of one’s own country. Using one’s strength to insult elders between the ages of 14 and 32.
7. Not respecting Mother Earth. Like not performing Uttam Bhoomi Pujan before building a house. Cursing the land obtained by luck and hard work. Spitting in vain and not even asking for forgiveness.
हमारे सनातन धर्म में पितरों की मुक्ति, उनकी प्रसन्नता हेतु किये जाने वाले कर्मों का एक बहुत ही लंबा विधान है। हमारे भारतीय वांग्मय में पितरों के प्रति सम्मान, उनकी मुक्ति और उनकी प्रसन्नता के लिए किए जाने वाले कार्य हमारे दैनिक जीवन की दिनचर्या में शामिल रहते हैं।
हमारे सभी संस्कारों में पितरों हेतु किये गए सभी विधानों को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। हमारी भारतीय संस्कृति में पितरों को देवताओं के ही समकक्ष रखा गया है। लगभग सभी पुराणों, विशेषकर गरुण पुराण में पितरों की महिमा का वर्णन है, पूरा पुराण उन्हें ही समर्पित है। सूक्ष्म जगत में एक पूरा लोक यानी पितृलोक ही उनके लिए मौजूद है।
हम सभी मनुष्यों पर अपने पितरों का ऋण होता है, उससे मुक्ति के लिए प्रत्येक मनुष्य का पितरों का श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण करना बहुत आवश्यक होता है। पितरों के आशीर्वाद के अभाव में इहलोक में हमें सुख-सम्पन्नता और शांति नहीं प्राप्त हो सकती है। यहां तक कि स्वयं भगवान श्रीहरि विष्णुजी के अवतारों में भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण तक नें अपने पूर्वजों और पितरों के लिए पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध आदि किये हैं। इसके महात्म्य को देखते हुए हमारे मनीषियों ने वर्ष के 15 दिनो के पक्ष को पितरों के निमित्त समर्पित कर दिया।
वर्ष 2024 में कब है पितृपक्ष?
हिन्दू पञ्चाङ्ग के अनुसार इस वर्ष पितृपक्ष बुधवार, दिनांक 18 सितंबर, पूर्णिमा तिथि से प्रारम्भ हो रहा है, जोकि दिनांक 02 अक्टूबर, दिन सोमवार, अमावस्या तिथि तक चलेगा। कुछ विद्वान ज्योतिषियों के अनुसार चूंकि पूर्णिमा तिथि का प्रारम्भ 17 सितंबर, दोपहर से हो रहा है, और सूर्य की कन्या राशि में संक्रांति भी 17 सितम्बर को हो रही है तो पितृपक्ष की शुरुआत 17 सितंबर को ही मानी जायेगी। लेकिन उदया तिथि के अनुसार 18 सितंबर को ही पितृ पक्ष की शुरुआत सर्वमान्य है। हालांकि जिनके परिजन पूर्णिमा तिथि को स्वर्गलोक सिधारे, वे 17 और 18 दोनों दिन पिंडदान, तर्पण, विसर्जन कर सकते हैं।
क्या होता है पितृपक्ष?
श्रीमदभागवत पुराण, ब्रह्मपुराण और गरुड़ पुराण के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि से लेकर अमावस्या तिथि तक जो 16 दिनों का पक्ष होता है उसे पितृपक्ष या श्राद्धपक्ष बोला जाता है।
शास्त्रों के अनुसार इस समय सूर्य कन्या राशि में होते हैं इसलिए इस समय को कनागत भी बोला जाता है। कहा जाता है कि इन दिनों में मृत परिजन अपने सूक्ष्म रूप में मृत्यु लोक में अपने वंशजों से मिलने के लिए आते हैं। और जब उनके वंशज उनके निमित्त कोई दान, पुण्य, पूजन और तर्पण करते हैं तो वह बहुत प्रसन्न हो जाते हैं और उनको आशीर्वाद देकर अमावस्या के दिन वापस अपने लोक को लौट जाते हैं।
क्या होता है तर्पण?
जल जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है, चाहे वह स्थूल जगत हो या सूक्ष्म जगत, जल से ही मुक्ति का मार्ग खुलता है। ऐसे में पितृपक्ष में प्रतिदिन पितरों को काला तिल मिश्रित जल अर्पित किया जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जल से पितरों को तृप्ति मिलती है। जल अर्पण की भी एक विशेष विधि होती है।
श्राद्ध क्या होता है?
हमारे पूर्वज किसी भी महीने की जिस तिथि को मृत्यु को प्राप्त होते हैं, उसी तिथि को पितृपक्ष में अपनी श्रद्धानुसार उनके निमित्त दान पुण्य और हवन किये जाते हैं, और खास रूप में उन पूर्वजो के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान किया जाता है। श्राद्ध का उद्देश्य पितरों को उनके प्रति अपनी श्रद्धा और सम्मान प्रकट करके, उनसे आशीर्वाद प्राप्त करना है।
क्या हैं पितृ पक्ष के सरल उपाय?
पत्रिकाओं और सोशल मिडिया में पढ़ने में आता है कि लोग अपने जीते जागते अपने माता पिता का, घर के बड़े बुजुर्गों का अनादर और तिरस्कार करते हैं, मगर उनके मरणोपरांत पूरे आडम्बर से पितृ पूजन और भोज आदि आयोजित करवाते हैं। सच पूछा जाए तो कुछ हद तक बात सही भी है। मगर दूसरा पक्ष ये भी है श्राद्ध और तर्पण को क्यों न हम एक प्रायश्चित समझकर करें, हमारे उन पूर्वजों के प्रति, जिनका हम ऋण चुकता ना कर सके और जाने अनजाने में हमने उनकी उपेक्षा और तिरस्कार किया। एक तरह से यह हमारा आभार प्रकटी करण भी है, हमारे उन पूर्वजों के प्रति, जिनके आज हम वंशज हैं। देखा जाय तो श्राद्ध शब्द श्रद्धा से उपजा है, अतः हम अधिक आडम्बर न करते हुए, श्रद्धा स्वरुप पितरों का ध्यान करते हुए सामर्थ्य अनुसार जो कुछ भी दान-भोज तर्पण करें तो उसका भी पूर्ण फल प्राप्त होगा।
क्या है उत्तम विधि?
01. प्रतिदिन किसी साफ़ लोटे से, दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके जल में काले तिल डालकर अपने पितरों का ध्यान करते हुए, सिर के ऊपर तक लोटा उठाते हुए अर्घ्य दें।
02. प्रतिदिन अपने भोजन की थाली में से खाने से पूर्व प्रत्येक पदार्थ का थोडा सा हिस्सा अलग प्लेट में निकाल लें। और छत या बारजे पर रख दें।
03. यदि घर के एक पीढ़ी पूर्व के मृतक की मृत्यु की तारीख याद है तो कैलेण्डर से उस दिन की हिन्दू तिथि ज्ञात कर लें फिर पितृपक्ष में उक्त तिथि किस दिनांक को पड़ रही है यह ज्ञात कर लें। फिर पितरों को जल अर्घ्य देने के बाद गाय, कुत्ता व कौवा के लिए रोटी, बिस्कुट या ब्रेड रख लें। उस दिन थोडा कष्ट उठाते हुए उन्हें ढूंढ कर खिलाएं। कौवा के लिए खाना छत या बारजे पर रख दें। कोई आवश्यक नहीं कि कौआ ही खाद्य सामग्री ग्रहण करे, कौवे के स्थान पर कोई भी पक्षी हो सकता है। यदि आपको तिथि ज्ञात नहीं है तो यह उपाय सर्व पितृ अमावस्या के दिन करें।
04. पुण्य तिथि या अमावस्या वाले दिन किसी एक गरीब, ज़रूरत मंद व्यक्ति को यथाशक्ति भोजन या भोजन सामग्री ज़रूर प्रदान करें। साथ में पानी की एक बोतल देना अनिवार्य है। गरीब मजदूर, या भिखारी को भी दान, भोजन आदि दिया जा सकता है।
05. श्रीमद्भागवत गीताजी का 07वां अध्याय पूरी तरह से पितरों की मुक्ति, उनकी प्रसन्नता से सम्बंध रखता है। जो लोग पूरी व्यवस्था से श्राद्ध आदि नहीं कर सकते हैं, वह कम से कम 16 दिनों तक गीताजी के सातवें अध्याय का पाठन संकल्प के साथ करें।
क्या है ज्योतिषीय उपचार?
आपकी लग्न कुंडली में शनि अथवा राहू-केतु भाव अनुसार पितृदोष उत्पन्न करते हैं। कौआ, कुत्ता, गरीब मजदूरों और भिखारी के ये तीनों ग्रह कारक या प्रतिनिधि ग्रह हैं। अतः पितृपक्ष में इन उपायों को करने से पितृदोष की शान्ति होती है। (दोष दूर नहीं होते) यहाँ एक आवश्यक बात भी बताना चाहूंगी कि अक्सर लोग सोचते हैं कि यदि हमारे माता-पिता जीवित हैं तो हम पितृपक्ष क्यों मनाएं?? जबकि यह एक भ्रान्ति है। दूसरी भ्रान्ति यह है कि लडकियाँ श्राद्ध नहीं कर सकतीं हैं। मेरे नज़रिए से सभी श्राद्ध कर सकते हैं क्योंकि यह तो हमारा अपने पूर्वजों के लिए श्रद्धा का एक विषय है।
जिनके माता-पिता जीवित हों, वह ददिहाल पक्ष और ननिहाल पक्ष के पूर्वजों के लिए श्राद्ध सम्बन्धी उपर्युक्त उपाय करें। अविवाहित लडकियाँ अपने पिता के पूर्वजों के लिए उपर्युक्त उपाय करें। जबकि विवाहिताएं अपने श्वसुर कुल और मायके दोनों पक्ष के पूर्वजों के लिए कर सकतीं हैं।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण से देखा जाए तो, गेहूं की रोटी सूर्य ग्रह कारक, पीली दाल, हल्दी, कढ़ी गुरु ग्रह कारक, हरी सब्जी बुध ग्रह कारक, मिठाई मंगल ग्रह कारक, खीर और दही शुक्र ग्रह कारक, उड़द के बड़े शनि ग्रह कारक, जल चन्द्रमा ग्रह के कारक हैं। इन सबका उत्तम दान सभी नवग्रहों का भी आशीष दिलवाता है। अतः आप सभी इन सरल उपायों को अपनाएँ और अपने पितरों का आशीष प्राप्त करके अपने जीवन को सुखी बनाएं।
– ज्योतिषाचार्य ऋचा श्रीवास्तव
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Pitru Paksha 2024 (Hindi & English)
In our Sanatan Dharma, there is a very long law of the deeds done for the liberation of ancestors, their happiness. In our Indian literature, respect for ancestors, their liberation and the deeds done for their happiness are included in the routine of our daily life.
In all our rituals, all the rules done for ancestors have been considered very important. In our Indian culture, ancestors have been kept at par with gods. The glory of ancestors is described in almost all the Puranas, especially Garun Purana, the entire Purana is dedicated to them. In the subtle world, a whole world i.e. Pitralok exists for them.
All of us humans have a debt to our ancestors, for liberation from that, it is very important for every human being to perform Shradh, Pinddaan and Tarpan of ancestors. In the absence of the blessings of ancestors, we cannot get happiness, prosperity and peace in this world. Even Lord Shri Ram and Shri Krishna, the incarnations of Lord Vishnu, have performed Pinddaan, Tarpan, Shradh etc. for their forefathers and forefathers. Keeping in view its significance, our sages have dedicated 15 days of the year to the ancestors.
When is Pitru Paksha in the year 2024?
According to the Hindu calendar, this year Pitru Paksha is starting from Wednesday, September 18, Purnima Tithi, which will continue till October 02, Monday, Amavasya Tithi. According to some learned astrologers, since the Purnima Tithi is starting from September 17, afternoon, and the Sun’s Sankranti in Virgo is also happening on September 17, so the beginning of Pitru Paksha will be considered on September 17 itself. But according to Udaya Tithi, the beginning of Pitru Paksha on September 18 is universally accepted.
However, those whose relatives went to heaven on Purnima Tithi, they can do Pinddaan, Tarpan, Visarjan on both 17 and 18 days.
What is Pitru Paksha?
According to Shrimad Bhagwat Purana, Brahma Purana and Garuda Purana, the 16-day period from the full moon date of Ashwin month to the new moon date is called Pitru Paksha or Shradh Paksha.
According to the scriptures, at this time the Sun is in Virgo, so this time is also called Kanagat. It is said that during these days the dead relatives come in their subtle form to meet their descendants in the mortal world. And when their descendants do any charity, good deeds, worship and tarpan on their behalf, they become very happy and after blessing them, they return to their world on the day of Amavasya.
What is Tarpan?
Water is very important for life, whether it is the gross world or the subtle world, the path to salvation opens with water. In such a situation, water mixed with black sesame is offered to the ancestors every day in Pitru Paksha, because it is believed that the ancestors get satisfaction from water. There is a special method of offering water.
What is Shradh?
On the date of our ancestors in any month, on the same date in Pitru Paksha, charity and havan are performed for them according to our faith, and especially charity is done by feeding Brahmins for those ancestors. The purpose of Shradh is to express our faith and respect towards the ancestors and to get their blessings.
What are the simple remedies for Pitru Paksha?
It is read in magazines and social media that people disrespect and despise their parents and elders of the house while they are alive, but after their death they organize Pitru Poojan and feast etc. with great pomp. If truth be told, this is true to some extent. But the other side is also that why don’t we consider Shradh and Tarpan as a penance for those ancestors whose debt we could not repay and knowingly or unknowingly we ignored and despised them. In a way, this is also our expression of gratitude towards our ancestors, whose descendants we are today. If we see, the word Shraddha has originated from Shraddha, so without much pomp, if we meditate on our ancestors with devotion and offer whatever donations, food and tarpan as per our capacity, we will get the full benefit of that too.
What is the best method?
01. Every day, facing south, put black sesame seeds in water from a clean pot and meditate on your ancestors, lifting the pot up to your head and offer water.
02. Every day, before eating, take out a little portion of each item from your plate of food in a separate plate. And keep it on the roof or balcony.
03. If you remember the date of death of a person who died a generation ago, then find out the Hindu date of that day from the calendar, then find out on which date the said date is falling in Pitru Paksha. Then after offering water to the ancestors, keep roti, biscuit or bread for cow, dog and crow. On that day, take some trouble and find them and feed them. Keep food for the crow on the roof or balcony. It is not necessary that only the crow should eat the food, any bird can be in place of the crow. If you do not know the date, then do this remedy on the day of Sarva Pitru Amavasya.
04. On Punya Tithi or Amavasya day, provide food or food material to a poor, needy person as per your capability. It is mandatory to give a bottle of water along with it. Donation, food etc. can also be given to a poor labourer or a beggar.
05. The 7th chapter of Shrimadbhagwat Geeta is completely related to the salvation of ancestors and their happiness. Those who cannot perform Shraadh etc. with complete rituals, should read the 7th chapter of Geeta for at least 16 days with determination.
What is the astrological remedy?
In your Lagna Kundali, Saturn or Rahu-Ketu creates Pitra Dosh according to the house. These three planets are the causative or representative planets of crow, dog, poor labourers and beggars. Hence, by doing these remedies in Pitra Paksha, Pitra Dosh is pacified. (Doshas are not removed) Here I would like to tell one important thing that often people think that if our parents are alive then why should we celebrate Pitra Paksha?? Whereas this is a misconception. The second misconception is that girls cannot perform Shradh. From my point of view, everyone can perform Shradh because it is a matter of our reverence for our ancestors.
Those whose parents are alive, should perform the above remedies related to Shradh for the ancestors of Dadihal side and Nanihal side. Unmarried girls should perform the above remedies for their father’s ancestors. Whereas married women can do it for the ancestors of both their father-in-law’s family and maternal side.
If seen from the astrological point of view, wheat roti is a factor of Sun, yellow dal, turmeric, curry is a factor of Jupiter, green vegetables are a factor of Mercury, sweets are a factor of Mars, kheer and curd are a factor of Venus, urad dal is a factor of Saturn, water is a factor of Moon. The good donation of all these gets you the blessings of all the Navgrahas as well. So all of you should adopt these simple remedies and make your life happy by getting the blessings of your ancestors.
अनन्त चतुर्दशी का व्रत और महात्म्य(Hindi & English)
हमारे देश में विशेष तौर पर उत्तर भारत में अनन्त चतुर्दशी का त्यौहार पूरी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह त्यौहार मूलतः भगवान श्रीहरि विष्णुजी को समर्पित है। इस दिन लोग सुख, सौभाग्य और स्वास्थ्य की रक्षा और जीवन में शान्ति के लिए भगवान अनन्त यानि श्रीहरि विष्णुजी का व्रत और पूजन करते हैं। इस दिन प्रातः काल के समय ही व्रत का संकल्प लिया जाता है। फिर इस पर्व का पूजन दोपहर में किया जाता है। इसमें भगवान श्री हरी विष्णुजी की पीले फूल, फल, मिठाई, पीले अक्षत, धूप-दीप और नैवेद्य द्वारा पंचोपचार पूजन करके, उनके समक्ष 14 ग्रंथि युक्त अनन्त सूत्र जो कि बाजार में पीले धागे या चांदी के रूप में मिलता है, वह रखा जाता है। फिर भगवान से सुख, समृद्धि और शान्ति की कामना की जाती है। लोग पूजन के बाद कथा का श्रवण करते हैं और अनन्त सूत्र को अपनी बाँह में बांधते हैं। फिर ब्राह्मणदेव को उत्तम दान-दक्षिणा देकर स्वयं बिना नमक का भोजन करते हैं।
01. कब मनाई जाती है अनन्त चतुर्दशी?
प्रत्येक वर्ष के भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनन्त चतुर्दशी मनाई जाती है। इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णुजी के अनन्त रूप की पूजा की जाती है।
02. क्यों मनाई जाती है अनन्त चतुर्दशी?
अग्नि पुराण में अनन्त चतुर्दशी व्रत के महत्व का वर्णन किया गया है। इसे भगवान श्रीहरि विष्णुजी के अनन्त अवतरण के रूप में भी देखा जाता है। सृष्टि के प्रारम्भ में जब ब्रह्माजी ने पृथ्वी सहित 14 लोकों की रचना की तब उन लोकों का पालन करने के लिए विष्णु भगवान ने 14 रूपों का विस्तार लिया था, जिसके कारण उनके आदि-अंत का ज्ञान नहीं हो पा रहा था और वह अनन्त रूप में दिख रहे थे। उस दिन भाद्रपद मास की चतुर्दशी तिथि थी। इसलिए इस दिन का नाम अनन्त चतुर्दशी पड़ा।
03. अनन्त चतुर्दशी पर्व की शुरुआत हुई कब से हुई?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महाभारत काल से अनन्त चतुर्दशी व्रत करने की शुरुआत हुई। ऐसा कहा जाता है कि जब पांडव जुए में अपना सर्वस्व हारकर जंगलो और वनों में भटक रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण उनसे मिलने आये। पांडवों की दुर्दशा देखकर भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें भगवान श्रीहरी विष्णुजी के अनन्त रूप की पूजा करने की सलाह दी। तब युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा कि अनन्त भगवान कौन हैं ? तब श्रीकृष्ण ने बताया कि यह भगवान श्रीहरि विष्णुजी के ही रूप हैं। चतुर्मास में भगवान श्रीहरि विष्णुजी शेषनाग की शैय्या पर अनन्त शयन में रहते हैं। अनन्त भगवान ने ही वामन अवतार में 2 पग में 3 लोक नाप लिए थे, जिनके ना आदि का पता चलता है और ना अंत का। यह सुनकर पांडवों ने सपरिवार पूरे विधि-विधान से व्रत पूजन किया। जिसके परिणाम स्वरूप वे लोग महाभारत युद्ध में विजय को प्राप्त हुए और उन्हें उनका राजपाट वापस मिला। इसलिए यह पर्व भगवान श्रीहरि विष्णुजी को प्रसन्न करने और अनन्त फल देने वाला माना गया है। इस दिन व्रत रखकर श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करने से अनन्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। सुख, सम्पदा, धन-धान्य, सन्तान आदि में वृद्धि होती है।
04. वर्ष 2024 में कब है अनन्त चतुर्दशी का व्रत?
वर्ष 2024 में अनन्त चतुर्दशी का व्रत शुभ दिन मंगलवार, दिनांक 17 सितंबर को है। तथा पूजन मुहूर्त प्रातः 06 बजकर 07 मिनट से दिन में 11:46 मिनट तक रहेगा।
05. क्या है अनन्त चतुर्दशी व्रत की कथा?
प्राचीन काल में सुमन्तु नामक ऋषि हुए थे जिनकी अत्यंत गुणवती शीला नाम की पुत्री थी जो की परम् श्रीहरि विष्णुजी की भक्त थी। उसका विवाह भी भगवान विष्णु भक्त कौण्डिन्य मुनि से हुआ। शीला सदैव भाद्र पद की चतुर्दशी को भगवान अनन्त नारायण का पूजन कर उनके 14 रूपों के प्रतीक के रूप में पीले रंग के धागे में 14 गांठें लगाकर अपने हाथ में पहन लेती थी। इससे उसके घर में सुख सौभाग्य की वृद्धि होने लगी और उनका जीवन सुखमय हो गया। एक बार क्रोधवश ऋषि कौण्डिन्य ने अपनी धर्मपत्नी शीला के हाथ का मंगलसूत्र तोड़कर फेंक दिया था। उस दिन के बाद से उनके घर में दुःख और दुर्भाग्य ने अपना डेरा डाल लिया। एक बार अत्यंत दुःख और विपन्नावस्था में ऋषि कौण्डिन्य वन में गए और भगवान श्रीहरि विष्णुजी की तपस्या करने लगे। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान प्रकट हुए और अनन्त चतुर्दशी की व्रत उपासना का महात्म्य समझाकर पूजन पुनः शुरू करने का आदेश दिया। घर लौटकर ऋषि कौण्डिन्य ने पत्नी शीला के साथ भली भांति पूजन किया, और खोये हुए सुख सौभाग्य की प्राप्ति की। अनन्त चतुर्दशी के दिन ही गणेश मूर्ति विसर्जन किया जाता है, इसलिए भी इस पर्व का महत्व और भी बढ़ जाता है।
– ज्योतिषाचार्य ऋचा श्रीवास्तव
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Anant Chaturdashi Vrat and Significance (Hindi & English)
In our country, especially in North India, the festival of Anant Chaturdashi is celebrated with full devotion. This festival is basically dedicated to Lord Shri Hari Vishnu. On this day, people observe fast and worship Lord Anant i.e. Shri Hari Vishnu for happiness, good fortune, protection of health and peace in life. On this day, the resolution of fasting is taken in the morning itself. Then the worship of this festival is done in the afternoon. In this, Panchopchar worship of Lord Shri Hari Vishnu is done with yellow flowers, fruits, sweets, yellow rice, incense sticks and offerings, and in front of him, the Anant Sutra with 14 knots, which is available in the market in the form of yellow thread or silver, is kept. Then the Lord is prayed for happiness, prosperity and peace. After the worship, people listen to the story and tie the Anant Sutra on their arm. Then after giving excellent donations to the Brahmin, they themselves eat food without salt.
01. When is Anant Chaturdashi celebrated?
Anant Chaturdashi is celebrated on the Chaturdashi date of Shukla Paksha of Bhadrapada month every year. On this day, the Anant form of Lord Shri Hari Vishnu is worshipped.
02. Why is Anant Chaturdashi celebrated?
The importance of Anant Chaturdashi fast has been described in Agni Purana. It is also seen as the infinite incarnation of Lord Shri Hari Vishnu. In the beginning of creation, when Brahmaji created 14 worlds including the earth, then Lord Vishnu took 14 forms to look after those worlds, due to which his beginning and end could not be known and he was seen in infinite form. That day was Chaturdashi Tithi of Bhadrapada month. Therefore, this day was named Anant Chaturdashi.
03. When did the Anant Chaturdashi festival begin?
According to mythological beliefs, the Anant Chaturdashi fast started from the Mahabharata period. It is said that when the Pandavas were wandering in the jungles and forests after losing everything in gambling, Lord Krishna came to meet them. Seeing the plight of the Pandavas, Lord Krishna advised them to worship the Anant form of Lord Vishnu. Then Yudhishthira asked Lord Krishna who is Anant Bhagwan? Then Lord Krishna told that this is the form of Lord Vishnu. In Chaturmas, Lord Vishnu rests in Anant Shayyan on the bed of Sheshnag. Anant Bhagwan had measured 3 worlds in 2 steps in the Vamana avatar, whose beginning and end are not known. Hearing this, the Pandavas along with their families performed the fast and worship with full rituals. As a result, they won the Mahabharata war and got their kingdom back. Therefore, this festival is considered to please Lord Vishnu and give infinite fruits. By fasting on this day and reciting Shri Vishnu Sahasranama Stotra, infinite desires are fulfilled. There is an increase in happiness, wealth, money, children etc.
04. When is Anant Chaturdashi fast in the year 2024?
In the year 2024, the auspicious day for Anant Chaturdashi fast is Tuesday, 17 September. And the puja muhurta will be from 06:07 am to 11:46 pm.
05. What is the story of Anant Chaturdashi Vrat?
In ancient times, there was a sage named Sumantu who had a very talented daughter named Sheela who was a devotee of Param Shri Hari Vishnu. She was also married to Lord Vishnu devotee Koundinya Muni. Sheela always worshipped Lord Anant Narayan on the Chaturdashi of Bhadrapad and used to wear a yellow thread with 14 knots as a symbol of his 14 forms on her hand. Due to this, happiness and good fortune started increasing in her house and their life became happy. Once, in anger, Sage Koundinya broke the mangalsutra from the hand of his wife Sheela and threw it away. From that day onwards, sorrow and misfortune camped in their house. Once in great sorrow and misery, Sage Koundinya went to the forest and started doing penance of Lord Shri Hari Vishnu. Pleased with his penance, God appeared and explained the significance of fasting and worship on Anant Chaturdashi and ordered him to restart the worship. Returning home, Sage Kaundinya performed the worship properly with his wife Sheela, and regained the lost happiness and good fortune. Ganesh idol is immersed on the day of Anant Chaturdashi, hence the importance of this festival increases even more.
इसे समझ लीजिए वास्तु दोष खत्म हो जाएंगे।(Hindi & English)
01. वास्तु शब्द की उत्पत्ति कहां से हुई?
वास्तु कोई सामान्य शब्द नहीं है अपितु यह देव वाणी संस्कृत का एक अनमोल तकनीकी शब्द है जिसका सामान्य अर्थ निवास होता है। देव भाषा संस्कृत के वास्तु शब्द का अर्थ है कि हमारा आवास/निवास या हमारा स्वयं का घर। वास्तु का अर्थ है घर की आंतरिक ऊर्जा, हमारे निवास स्थल की अंदरूनी ऊर्जा, हमारी भूमि की या जिस भूमि पर हमारा आश्रय है उसके अनाहत की ऊर्जा, हमारे पूर्ण भवन या निवास स्थान की आंतरिक ऊर्जा। अर्थात हमारे निर्माण और स्थल की आंतरिक ऊर्जा वास्तु ऊर्जा कहलाएगी। यहां वास शब्द भी है जिसका अर्थ है कि जहां भी आश्रय प्राप्त करते हैं, कुछ समय के लिए ठहरते हैं या अपना पूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं। हमारे पूर्ण दैनिक जीवन में जिन भी वस्तुओं का उपयोग होता है या हमारे द्वारा जिनका प्रयोग किया जाता है, तो उन्हें रखने और स्थान देना का विज्ञान ही वास्तु कहलाता है।
02. वास्तु दोष क्या होता है?
प्राचीन सनातन वास्तु शास्त्र हमें यह सिखाता है कि हमारे आसपास पंच तत्वों, नवग्रहों, देव पदों, आंतरिक/बाह्य ऊर्जाओं का समावेश बना रहता है। अगर उसके अनुरूप नहीं चला जाता है तो हमारे दैनिक जीवन में तथा हमारे पूर्ण भाग्य पर भी व्यर्थ का संघर्ष जो हमें झेलना पड़ता है उसे ही यहां वास्तु दोष कहा गया है। अर्थात एक ऐसा अनमोल शास्त्र जिसमें यह समझाया गया कि हमें निवास स्थान का निर्माण भी ध्यान रखना है और वस्तुओं को कहां पर रखना है? अगर वस्तु या तत्व को सही स्थान दिया जायेगा तो हमारा पूर्ण जीवन संतुलित बना रहेगा।
03. क्यों आवश्यक है निर्माण में वास्तु को प्रयोग करना?
सनातन वास्तु का ज्ञान आपके घर को ब्रह्माण्ड से आने वाली सकारात्मक एवम प्राकृतिक शक्तियों के साथ जोड़ देता है। जिसका सीधा प्रभाव आपके शरीर और घर की आंतरिक ऊर्जा पर पड़ता है और आप अपने घर तथा जीवन में असीम शांति को अनुभव कर पाते हैं। आपके निवास स्थान पर उत्तम वेंटिलेशन का बने रहना, अधिक से अधिक सूर्य की प्राकृतिक रोशनी का आते रहना और घर के प्रत्येक स्थान का निर्माण केवल आंतरिक ऊर्जा के नियम को ध्यान में रखते हुए करना ही वास्तु शास्त्र के मुख्य नियमों में से एक हैं।
उदाहरण के लिए, दक्षिण-पूर्व दिशा अर्थात आग्नेय कोण में अगर आपकी रसोई है तो लाभ के तौर पर आपको बेहतर स्वास्थ्य उत्तम पाचन की शक्ति प्राप्त होगी। अपने निवास स्थान पर निर्माण से पूर्व अगर पूर्ण वास्तु शास्त्र के नियमों का ध्यान रखा जाता है तो यही सकारात्मक ऊर्जाएं आपके जीवन में आपके रोजगार और वित्तीय स्थिरता को अत्यधिक मजबूती प्रदान करती हैं। ऐसा अनुभव रहा है कि आपके निवास स्थान या रोजगार स्थान पर उत्तर दिशा जितनी अधिक व्यवस्था से पूर्ण रहेगी उतना अधिक आप अपने जीवन में उत्तम धन ऊर्जा को आकर्षित कर पाओगे। आपके परिवार की आपसी प्रेम एवम आपसी एकता भी उत्तम वास्तु ऊर्जा का ही शुभ फल है।
सभी प्रकार के वास्तु दोषों को खत्म करने के लिए 9 सरल उपाय
1. नित्य सुबह और शाम की संध्या के समय घर के वास्तु भगवान के नाम से देसी घी का दीपक अपने घर के ईशान कोण में जलाएं।
2. घर के मुख्य दरवाजे की दहलीज पर एक लकड़ी के टुकड़े को पूर्ण चौखट के रूप में स्थापित कर दें। इस चौथी लकड़ी पर अपनी सामर्थ्य अनुसार चांदी या तांबा भी आप लगवा सकते हैं।
3. घर के सभी सदस्यों के साथ घर की एक फोटो को घर के अंदर उस स्थान पर लगा दीजिए जहां सभी सदस्य एक साथ बैठकर भोजन करते हों तथा सभी की नजर उस फोटो पर पड़ती हो।
4. नित्य संध्या पूजन के समय शंखनाद, ॐ नाद, बांसुरी नाद या ईश्वर के नाम का जयकारा या भगवान की आरती को तेज वैखारी मुद्रा में उच्चारण करना।
5. घर में नित्य झाड़ू लगाया करें तथा नित्य के पौंछे में थोड़ा सा गौमूत्र अर्क या सेंधा नमक मिलाकर ही लगाया करें।
6. अपने घर के मध्य में श्रीराम तुलसी जी को या दिव्य अशोक वृक्ष के पौधे को रखा करें तथा उनका दीप पूजन भी नित्य करा करें।
7. घर में 9 वर्ष तक की कन्याओं को पायल अवश्य पहनाएं तथा उन पायलों को हमेशा अपने धन स्थान या किसी भी पवित्र स्थान में संभाल कर रखें।
8. घर के मुख्य दरवाज़े के ऊपर बैठे हुए पंचमुखी श्री हनुमान भगवान जी का या पंचमुखी श्री गणेश भगवान जी चित्र फ्रेम करा कर उत्तम 9 मोरपंखों के आधार पर स्थापित करें।
9. घर की मुख्य छत पर कूड़ा बिल्कुल इकट्ठा नहीं होना चाहिए। अगर छत पर बाथरूम है तो उसे वहां से हटा दें या प्रयोग बिल्कुल शून्य कर दें। यह बात घर के ईशान कोण पर भी हमेशा मान्य रहेगी।
– गुरु सत्यराम
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Understand this and the Vastu defects will be eliminated. (Hindi & English)
01. Where did the word Vastu originate from?
Vastu is not a common word but it is a precious technical word of Dev Vaani Sanskrit, which generally means residence. The word Vastu in Dev Bhasha Sanskrit means our residence/residence or our own house. Vastu means the internal energy of the house, the internal energy of our place of residence, the energy of the Anahat of our land or the land on which we have shelter, the internal energy of our complete building or place of residence. That is, the internal energy of our construction and place will be called Vastu energy. Here there is also the word Vaas, which means wherever we take shelter, stay for some time or spend our entire life. Whatever things are used in our complete daily life or are used by us, the science of keeping and giving them a place is called Vastu.
02. What is Vastu Dosh?
The ancient Sanatan Vastu Shastra teaches us that there are Panch Tatvas, Navgrahas, Deva Padas, internal/external energies around us. If we do not follow them, then we have to face a useless struggle in our daily life and even on our complete destiny, which is called Vastu Dosh here. That is, such a precious scripture in which it is explained that we have to take care of the construction of the living place and where to keep the things? If the object or element is given the right place, then our complete life will remain balanced.
03. Why is it necessary to use Vastu in construction?
The knowledge of Sanatan Vastu connects your house with the positive and natural forces coming from the universe. Which has a direct effect on the internal energy of your body and house and you are able to experience immense peace in your home and life. Maintaining good ventilation in your residence, maximum natural sunlight and constructing every place in the house keeping in mind only the law of internal energy are some of the main rules of Vastu Shastra.
For example, if your kitchen is in the south-east direction, then as a benefit you will get better health and better digestion power. If the rules of Vastu Shastra are followed before construction of your residence, then these positive energies provide great strength to your employment and financial stability in your life. It has been experienced that the more orderly the north direction of your residence or place of employment is, the more you will be able to attract good wealth energy in your life. The mutual love and unity of your family is also the auspicious result of good Vastu energy.
9 simple remedies to eliminate all types of Vastu defects
1. Every morning and evening, light a lamp of desi ghee in the name of the Vastu God of the house in the northeast corner of your house.
2. Install a piece of wood on the threshold of the main door of the house in the form of a complete door frame. You can also get silver or copper installed on this fourth piece of wood according to your capacity.
3. Put a photo of the house with all the members of the house at a place inside the house where all the members sit together and eat and everyone’s eyes fall on that photo.
4. During daily evening worship, blow Shankhnaad, Om Naad, flute Naad or chant God’s name or recite God’s Aarti in a loud Vaikhari Mudra.
5. Sweep the house daily and mop the floor with a little cow urine extract or rock salt.
6. Keep Shri Ram Tulsi Ji or divine Ashok tree in the middle of your house and worship it with a lamp every day.
7. Girls up to 9 years of age should wear anklets in the house and always keep those anklets safely in your wealth place or any holy place.
8. Get a framed picture of Panchmukhi Shri Hanuman Ji or Panchmukhi Shri Ganesh Ji sitting above the main door of the house or place it on the base of 9 excellent peacock feathers.
9. Garbage should not accumulate on the main roof of the house at all. If there is a bathroom on the roof, then remove it from there or reduce its use to zero. This thing will always be valid even in the north-east corner of the house.
ऐसा करेंगे तो चंद्रमा ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं(Hindi & English)
हमारे समस्त नवग्रहों में केवल चंद्रमा ग्रह ही एक ऐसेंग्रह हैं जिनकी गोचर की गति सबसे तीव्र होती है. इसी कारण से चंद्रमा ग्रह किसी भी राशि में सबसे कम समय के लिए ही गोचर करते हैं। चंद्रमा ग्रह लगभग सवा दो दिनों में ही एक राशि से दूसरी राशि में अपनी यात्रा को पूर्ण कर लेते हैं। वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मासिक, साप्ताहिक राशिफल की गणना करने के लिए अमुक जातक की चंद्र राशि को ही आधार बनाकर गणना की जाती है। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि नाम से कभी भी कोई राशि नहीं होती है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार चंद्रमा ग्रह को एक शुभ ग्रह माना जाता है। ज्योतिष विद्या में जहां सूर्य ग्रह को पिता का मूल कारक माना जाता है तो वहीं चंद्रमा ग्रह को माता का मूल कारक ग्रह माना जाता है। चंद्रमा ग्रह कर्क राशि के स्वामी हैं। इसके साथ में रोहिणी नक्षत्र, हस्त नक्षत्र और श्रावण नक्षत्र के स्वामी भी होते हैं। वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा ग्रह जातक के मन, उसके मनोबल, बांयी आंख और छाती के कारक ग्रह आने जाते हैं। जातक की लग्न कुंडली में चंद्रमा ग्रह अगर प्रथम भाव में होते हैं तो व्यक्ति देखने में बहुत ही रूपवान, अत्यंत कल्पनाशील, गहराई से भावुक, अत्यधिक संवेदनशील और स्थाई रूप से साहसी होता है।
जातक की कुंडली में केवल चंद्रमा ग्रह के मजबूत होने से ही जातक मानसिक रूप से अत्यंत मजबूत और स्थाई रूप से सुखी बना रहता है। ऐसा जातक अपनी माताश्री के बेहद करीब होता है। इसके स्थान पर अगर जातक की कुंडली में चंद्रमा ग्रह कमजोर होता है तो वह जातक मानसिक रूप से अत्यधिक कमजोर होता है तथा उसकी स्मरण शक्ति भी काफी क्षीण बनी रहती है। चंद्रमा ग्रह के कमजोर होने से जातक अपने मुश्किल और संघर्ष से पूर्ण समय में आत्महत्या तक करने की कोशिश भी कर सकता है। अगर किसी भी व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा ग्रह अन्य किसी भी पापी ग्रह से पीड़ित रहते हैं तो व्यक्ति के स्वास्थ्य विशेषतः उसके उदर स्थान पर नकारात्मक प्रभाव देखने को मिल सकता है।
7 गलतियां जो आपके चन्द्रमा ग्रह को हमेशा के लिए खराब कर देंगी
1. किसी भी तीर्थ के बहते हुए जल में बगैर नित्य शुद्धि कर्म किए और बगैर प्रणाम किए स्नान या स्पर्श करना।
2. किसी भी तीर्थ के बहते हुए जल में पुराने वस्त्रों को पहने हुए स्नान करना तथा पहने हुए कपड़ों को साफ करना।
3. किसी भी तीर्थ के बहते हुए जल में लघुशंका करना, स्त्री दर्शन करना और शत्रु विनाश की प्रार्थना करना।
4. किसी भी बुजुर्ग विधवा स्त्री को विशेषतः पूर्णमासी तिथि में तिथि रहते और अमावस्या तिथि में सूर्य प्रकाश रहते अपशब्द कहना।
5. दिव्यांग बच्चों विशेषतः मानसिक विकार से पीड़ित मंदबुद्धि बच्चों को कुछ भी अपशब्द सामने या पीठ पीछे भी कहना।
6. नित्य भोजन करते समय जल देवता के अभाव में बगैर भोग लगाए अन्न को ग्रहण करते रहना।
7. अपनी जन्म देने वाली माता का केवल धर्म आधार पर उनका हृदय दुखाना या भक्ति मार्ग में मां शक्ति की तपस्या करते समय उनका हृदय दुखाना।
– गुरु सत्यराम
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If you do this, the Moon can be ruined for your entire life (Hindi & English)
Among all our nine planets, the Moon is the only planet whose transit speed is the fastest. For this reason, the Moon transits in any zodiac sign for the shortest time. The Moon completes its journey from one zodiac sign to another in about two and a quarter days. According to Vedic astrology, to calculate monthly and weekly horoscopes, the Moon sign of a particular person is taken as the basis. It should also be kept in mind that there is never a zodiac sign by name.
According to Vedic astrology, Moon is considered an auspicious planet. In astrology, while Sun is considered the basic factor of father, Moon is considered the basic factor of mother. Moon is the Lord of Cancer zodiac. Along with this, it is also the Lord of Rohini Nakshatra, Hasta Nakshatra and Shravan Nakshatra. In Vedic astrology, Moon is considered the factor of person’s mind, morale, left eye and chest. If Moon is in the first house in the native’s Lagna Kundali, then the person is very beautiful, highly imaginative, deeply emotional, highly sensitive and permanently courageous.
Only if the Moon planet is strong in the horoscope of a person, then the person remains mentally very strong and permanently happy. Such a person is very close to his mother. Instead, if the Moon planet is weak in the horoscope of a person, then that person is mentally very weak and his memory power also remains very weak. Due to the weak Moon planet, the person can even try to commit suicide in his difficult and struggle-filled time. If the Moon planet is afflicted by any other sinful planet in the horoscope of any person, then negative effects can be seen on the health of the person, especially on his abdomen.
7 mistakes that will spoil your moon forever
1. Bathing or touching the flowing water of any pilgrimage without performing daily purification rituals and without paying obeisance.
2. Bathing in the flowing water of any pilgrimage wearing old clothes and cleaning the worn clothes.
3. Urinating in the flowing water of any pilgrimage, seeing a woman and praying for the destruction of the enemy.
4. Using abusive language to any elderly widow woman, especially on the full moon day and during the sun’s light on the new moon day.
5. Using abusive language to handicapped children, especially mentally retarded children suffering from mental disorders, either in front of them or behind their back.
6. Consuming food without offering it to the water god while eating daily.
7. Hurting the heart of your mother who gave birth to you only on the basis of religion or hurting her heart while doing penance of Maa Shakti in the path of devotion.
एक स्त्री किन कारणों से अपने पति के लिए भाग्यशाली साबित होती हैं?(Hindi & English)
हमारे भारतीय सनातन परंपरा में स्त्री को “लक्ष्मी” का दर्जा दिया गया है। लक्ष्मी को सुख, ऐश्वर्य और सौभाग्य की देवी कहा जाता है। हमारे यहाँ यह भी कहा जाता है कि स्त्री ही एक “मकान” को “घर” बनाती है। यह भी स्त्रियों के ही हाथ में होता है कि वह घर को “स्वर्ग” बना दें या “नर्क”। साथ ही, हमारे यहां यह भी प्रचलित है कि एक पुरूष की सफलता के पीछे एक औरत का ही हाथ होता है। यदि स्त्री घर का माहौल सुंदर और सुकून वाला बनाकर रखे तो पुरूष घर के प्रति निश्चिंत रहता है और वह आसानी से अपनी नौकरी या व्यापार की जिम्मेदारियों का पूर्ण कौशल से निर्वाह कर सकता है, और अपने जीवन में सफलता की ऊंचाई को प्राप्त कर सकता है। तो आइए , हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि वे कौन से कारण हैं जो एक स्त्री के माध्यम से उसके पति के लिए सौभाग्य का द्वार खोलते हैं।
01. त्याग
सबसे पहला और महत्वपूर्ण पॉइंट है स्त्री द्वारा किया जाने वाला त्याग। विवाह के बाद स्त्री अपने मायके से जब विदा होती है तो माता, पिता, भाई, बहन आदि रिश्ते-नातों को वह पीछे छोड़ देती है। और बड़ी ही सहजता एवम सरलता से अपने पति के पूरे परिवार को अपना लेती है। अपने परिवार और पति के लिए निजी जीवन में वह कितने छोटे-बड़े त्याग करती है, इसकी गिनती की जाय तो शायद सभी संख्याएं छोटी पड़ जाएंगी।अनेक बार वह अपने पति और परिवार के लिए, अपनी भूख, प्यास, नींद, आराम सबको त्याग करके सभी को सुख पहुंचाने का प्रयास करती है। कई बार महिलाओं को अपने परिवार, पति और बच्चों के लिए अपना अच्छा खासा कैरियर और मोटी तनख्वाह वाली नौकरी भी छोड़ते देखा गया है। पति-परिवार को आर्थिक संकटों से बचाने के लिए अपने स्त्री धन के गहने तक गिरवी रखने या बेचने के अनेक उदाहरण हैं।
02. समर्पण-
एक औरत अपने पति को पूरे हृदय से प्रेम करती है, उसकी सम्पूर्ण दुनियां उसके पति के इर्द गिर्द ही घूमती है। घर की साज सज्जा हो या खुद का बनाव श्रृंगार, वह अपने पति के चॉइस को ही महत्व देती है। यहां तक कि घर मे भोजन, नाश्ता भी अपने पति के पसन्द का ही बनाती है। वह अपने पति की खुशी में ही स्वयं की खुशी समझती है। वह घर का वातावरण ऐसा बनाने का प्रयास करती रहती है कि दिनभर का थका हारा पति घर लौटे तो उसे पूरा आराम मिले और मन प्रसन्न हो जाय। रात्रि में पति की सहचरी बनकर उसके शय्या सुख में भी पूरी तरह से समर्पित होकर उसका साथ देती है, और पति को संतुष्ट करती है।
03. देखभाल-
सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन कोई पुरूष कितना ही कठोर क्यों न हो, उसके भीतर एक नन्हा सा शिशु सदैव छुपा होता है। उसे हमेशा उसी तरह के स्नेह और देखभाल की ज़रूरत होती है जैसे एक माँ अपने बच्चे की करती है। एक समझदार स्त्री अपने पति की हर इच्छा को समझती है और वह उसी तरह से व्यवहार करती है। उसके दुःख तकलीफों में उसका पूरा साथ देती है। रोज़मर्रा के कार्यों में घर की देखभाल के साथ पति के लिए भोजन से लेकर कपड़े, जूते, मोजे, तक की एक दुरुस्त व्यवस्था बनाए रखती है। जब पति बीमार होता है तो वह एक माँ बनकर उसकी दवाइयों और जरूरतों का ख्याल रखती है, यहां तक कि उसके हाँथ-पांव भी दबाती है ताकि पति को सुकून मिले।
04. सहयोग और साथ-
एक सुलझी हुई स्त्री अपने पति के हर कार्य में सहयोग करती है और उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर उसके संघर्ष में उसका साथ देती है। जब कठिन फैसले लेने हों तो एक सच्चे मित्र की तरह उसे सलाह मशवरा देती है। जो पुरूष अपने हर फैसलों में अपनी पत्नी का परामर्श लेते हैं, उन्हें प्रायः सफलता की सीढ़ियों पर आसानी से चढ़ते देखा जा सकता है। एक पुरुष के लिए उसकी पत्नी उसकी वामंगी होती है, पत्नी के सलाह को लिए बगैर उसके निर्णय पूर्ण नहीं होते और तब उसे सफलता भी अधूरी ही मिलती है। वैसे तो स्त्रियां अपने घर गृहस्थी को ही अधिक महत्व देती हैं और उसी में खुश रहती हैं, लेकिन जब कभी घर में आर्थिक संकट आता है तो घर से बाहर जाकर नौकरी या व्यापार करने से भी नहीं झिझकतीं हैं। कई स्त्रियां अपने हुनर का इस्तेमाल करके घर बैठे ही कमाई करती हैं और पति को आर्थिक सहयोग भी देतीं हैं।
इस प्रकार से हम देख सकते हैं कि एक समझदार नारी अपने वैवाहिक जीवन की जिम्मेदारी को कुशलता पूर्वक निभाती हुए पुरुष को घर की कई समस्याओं से फ्री रखती है, ताकि पुरुष घर से बाहर निकलकर अपने व्यवसाय, या कैरियर को पूरी तरह से एकाग्र चित्त होकर उड़ान दे सके और सफल हो सके।
हमारे समाज की यह बड़ी विडम्बना रही है कि अनेक पुरुष अपने घर की लक्ष्मी की कद्र नहीं करते, अपनी पत्नी को अपने बराबरी का दर्जा नहीं देते, उसे मूर्ख और खुद से कमतर समझते हैं, जीवन में एक तरफा फैसले लेते हैं। ऐसे लोग अक्सर असफल और लक्ष्मी विहीन ही रहते हैं।
यद्यपि एक सफल पुरुष के जीवन में उसकी पत्नी की भूमिका को मैंने कुछ बिंदुओं में समेटने का प्रयास किया है, लेकिन सुधी पाठक जन कमेंट के ज़रिए अपना नज़रिया भी रख सकते हैं।
आशा करती हूँ मेरा यह प्रयास आपको पसन्द आया होगा।
आभार एवम धन्यवाद।
-एस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव
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What are the reasons why a woman proves to be lucky for her husband?(Hindi & English)
In our Indian Sanatan tradition, a woman has been given the status of “Lakshmi”. Lakshmi is called the goddess of happiness, prosperity and good fortune. It is also said here that a woman makes a “house” a “home”. It is also in the hands of women to make the house “heaven” or “hell”. Also, it is also popular here that a woman is behind the success of a man. If a woman keeps the atmosphere of the house beautiful and peaceful, then the man remains relaxed about the house and he can easily perform the responsibilities of his job or business with full skill, and can achieve the heights of success in his life. So let us try to know what are those reasons which open the door of good fortune for her husband through a woman.
01. Sacrifice
The first and most important point is the sacrifice made by a woman. When a woman leaves her maternal home after marriage, she leaves behind her mother, father, brother, sister and other relations. And with great ease and simplicity, she accepts her husband’s entire family. If we count the number of small and big sacrifices she makes in her personal life for her family and husband, then perhaps all the numbers will fall short. Many times, for her husband and family, she sacrifices her hunger, thirst, sleep, comfort and tries to bring happiness to everyone. Many times, women have been seen giving up their good career and high paying job for their family, husband and children. There are many examples of mortgaging or selling the jewellery of their Stridhan to save their husband and family from financial crises.
02. Dedication-
A woman loves her husband with all her heart, her whole world revolves around her husband. Whether it is decorating the house or her own makeup, she gives importance to her husband’s choice. Even the food and breakfast at home is prepared according to her husband’s choice. She finds her happiness in her husband’s happiness. She tries to create such an atmosphere in the house that when her husband returns home tired after a long day, he gets complete rest and is happy. At night, she becomes her husband’s companion and supports him in his bed pleasures by devoting herself completely, and satisfies her husband.
03. Care-
It may sound strange, but no matter how tough a man is, there is always a little child hidden inside him. He always needs the same kind of affection and care as a mother does for her child. An intelligent woman understands every wish of her husband and behaves accordingly. She supports him completely in his sorrows and troubles. Along with taking care of the house in the daily chores, she maintains a proper system for her husband from food to clothes, shoes, socks. When the husband is sick, she takes care of his medicines and needs like a mother, she even massages his hands and feet so that the husband gets relief.
04. Cooperation and companionship-
A mature woman cooperates with her husband in every task and stands shoulder to shoulder with him in his struggle. When difficult decisions have to be taken, she advises him like a true friend. Men who consult their wives in every decision can often be seen climbing the ladder of success easily. For a man, his wife is his left hand, without taking advice from his wife, his decisions are not complete and then he gets incomplete success. Although women give more importance to their household and remain happy in it, but whenever there is a financial crisis at home, they do not hesitate to go out of the house and do a job or business. Many women earn money sitting at home by using their skills and also provide financial support to their husbands.
In this way we can see that a wise woman, while efficiently fulfilling the responsibility of her married life, keeps the man free from many problems of the house, so that the man can go out of the house and give full concentration to his business or career and become successful.
It has been a big irony of our society that many men do not respect the Lakshmi of their house, do not give their wife equal status, consider her foolish and inferior to themselves, take one-sided decisions in life. Such people often remain unsuccessful and Lakshmi-less.
Although I have tried to summarise the role of a wife in the life of a successful man in a few points, but the intelligent readers can also give their views through comments.
सौभाग्य और लक्ष्मी की प्राप्ति कैसे करें?(Hindi & English)
हमेशा ही कर्मों से उत्तम भाग्य का निर्माण होता है और उत्तम भाग्य के आधार पर ही उत्तम लक्ष्मी अर्थात धन का आगमन आपके जीवन में होता है। नियम बहुत ही सरल है या तो पूर्व जन्मों के पुण्यों से भाग्य की प्राप्ति होगी या फिर वर्तमान जन्म में पूर्ण संकल्पित कर्मों से भाग्य जागेगा। इसके साथ में कभी ऐसा भी देखना संभव रह सकता है कि सभी कुछ उत्तम किया जाता है परंतु घर चलाना भी मुश्किल बना रहता है। अब जब बात घर और परिवार पर आ जायेगी तो हमें भीड़ से थोड़ा हटते हुए कुछ विशिष्ट उपायों की शरण में अवश्य जाना चाहिए। इन उपायों के माध्यम से बस हमें वह दिखना प्रारंभ हो जाता है जो होता तो ठीक हमारे सामने ही है लेकिन हमारे बुरे प्रारब्ध के कारण अपना प्रकाश नहीं बिखेर पाता। आपकी सुविधा हेतु मैं आपको 09 सरल उपाय अपने अनुभव के आधार पर बता रहा हूं, जिनकी पालना करते रहने से आपको सौभाग्य और श्रीलक्ष्मी की सरल प्राप्ति संभव रहेगी।
सौभाग्य और लक्ष्मी प्राप्ति के लिए 9 सरल उपाय
1. किसी भी बुधवार या शुक्रवार को किन्नरों को उनके स्थान पर जाकर 1 हरी साड़ी, 1 किलो हरी मिठाई और श्रद्धा अनुसार दक्षिणा दें और उनसे प्रार्थना करें कि आपके सिर पर हाथ रखकर आपको आशीर्वाद दें और आशीर्वाद रूप में उनसे कुछ रुपए मांगे। मिलने वाले रुपयों के बदले में आप फिर से कुछ दक्षिणा उन्हें अर्पण करें। मिले हुए रुपयों को हमेशा संभाल कर रखें।
2. अपनी बड़ी बहन को किसी भी बुधवार वाले दिन उनकी पसंद अनुसार कुछ भी वस्त्र और मीठा भेंट करें और अपने सामर्थ्य अनुसार उन्हें कुछ रुपए भेंट करें। अब उनके चरण स्पर्श करते हुए अपनी समस्या कहें और आशीर्वाद रूप में उनसे कुछ रुपए मांगे। मिले हुए रुपयों को अपने धन स्थान में रखें।
3. किसी भी शनिवार को अपनी सामर्थ्य अनुसार 9 वर्ष तक की 11 कन्याओं को उनके पसंद अनुसार कुछ भी चप्पल या जूते भेंट करें।
4. 1 वर्ष तक लगातार किसी भी गुरुवार से शुरू करते हुए प्रत्येक गुरुवार किसी भी कर्मकांडी ब्राह्मणदेव को आदरपूर्वक निमंत्रण देकर घर पर आमंत्रित करें। उनकी रुचि अनुसार उन्हें भोजन कराएं और सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा देकर और आशीर्वाद लेकर उन्हें विदा करें।
5. नित्य अपने घर में और पड़ोस एवम् समाज में मौजूद बुजुर्गों के चरण स्पर्श करा करें। उन्हें अपनी समस्याएं बताते रहा करें और उनकी भी सेवा कर आशीर्वाद प्राप्त करते रहा करें।
6. किसी भी पूर्णिमा को तिथि रहते हुए बुजुर्ग विधवा माता की अपने सामर्थ्य अनुसार उनकी सेवा करें। कुछ देर उनके पास बैठें अपनी समस्याएं उन्हें बताएं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते रहें।
7. किसी भी दिन और किसी भी समय सड़क पर रहने वाली गर्भवती कुत्तिया को मूंग की दाल का हलवा खिलाया करें।
8. किसी भी गर्भवती स्त्री की गोदभराई के शुभ अवसर पर जोड़े से उनकी पसंद अनुसार लाल साड़ी भेंट करें और उनकी प्रसन्नता का आशीर्वाद प्राप्त करें।
9. नित्य काली या लाल गौमाता के माथे को स्पर्श करके अपने कंठ पर लगाया करें और गौमाता की पीठ पर 11 बार हाथ फेरा करें।
– गुरु सत्यराम
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How to attain good luck and Lakshmi? (Hindi & English)
Good luck is always created by actions and on the basis of good luck, good Lakshmi i.e. wealth comes into your life. The rule is very simple, either you will get luck from the virtues of previous births or luck will awaken in the present birth with fully determined actions. Along with this, it may be possible to see sometimes that everything is done well but running the house also remains difficult. Now when it comes to home and family, we must move away from the crowd and take refuge in some special measures. Through these measures, we start seeing what is right in front of us but is not able to spread its light due to our bad destiny. For your convenience, I am telling you 09 simple measures based on my experience, by following which you will be able to easily attain good luck and Shri Lakshmi.
9 simple remedies for getting good luck and Lakshmi
1. On any Wednesday or Friday, go to the place of eunuchs and give them 1 green sari, 1 kg of green sweets and dakshina as per your faith and pray to them to bless you by placing their hand on your head and ask for some money from them as blessings. In return for the money you get, offer them some dakshina again. Always keep the money you get safely.
2. On any Wednesday, gift your elder sister some clothes and sweets as per her choice and gift her some money as per your capacity. Now touch her feet and tell her your problem and ask for some money from her as blessings. Keep the money you get in your money place.
3. On any Saturday, gift slippers or shoes as per your capacity to 11 girls up to the age of 9 as per their choice.
4. Starting from any Thursday for 1 year, every Thursday invite any ritualistic Brahmin to your home with respect. Feed him food according to his liking and send him off after giving dakshina according to your capacity and taking his blessings.
5. Every day touch the feet of the elders present in your house, neighbourhood and society. Keep telling them your problems and keep serving them and getting their blessings.
6. On any full moon day, during the tithi, serve an elderly widowed mother according to your capacity. Sit near her for some time, tell her your problems and keep getting her blessings.
7. On any day and at any time, feed moong dal halwa to a pregnant dog living on the street.
8. On the auspicious occasion of any pregnant woman’s godh bharai, gift the couple a red saree of their choice and get the blessings of their happiness.
9. Touch the forehead of a black or red cow every day and place it on your throat and stroke the back of the cow 11 times.
स्त्रियाँ अपने पुरुष से क्या चाहती हैं?(Hindi & English)
Om-Shiva
ऐसा कहते हैं कि मानव का मन बड़ा जटिल है और उसे समझना बेहद कठिन है। उसपर से अगर किसी स्त्री के दिल की बात हो तो उसे समझना लगभग असम्भव है। क्योंकि कहा भी जाता है कि एक समुंदर की थाह तो ली जा सकती है, लेकिन एक स्त्री के मन की थाह नहीं ली जा सकती है। फिर भी स्त्री अपने पुरुष, चाहे वह पति हो या फिर उसका प्रेमी, उससे क्या अपेक्षा रखती है? इसे कुछ बिंदुओं से समझा जा सकता है।
01. क्यों स्त्री अपने प्रेम से चाहती है सराहना?
प्रत्येक औरत चाहे वह किसी भी उम्र की हो, हमेशा अपने सहचर के प्रेम भरे और तारीफ़ से पूर्ण कुछ शब्दों की लालसा रखती है। वह ये उम्मीद रखती है कि चाहे वह कुछ भी काम करे, उसका पति या प्रेमी उसके तारीफ़ में कुछ ना कुछ अवश्य कहे। वस्तुतः स्त्री चाहे घर के काम-काज करे, या सामाजिक कार्य करे, या फिर श्रृंगार ही क्यों न करे, वह यह सभी कार्य केवल अपने पार्टनर की सन्तुष्टि के लिए ही करती है। स्त्री मनोविज्ञान तो यह कहता है कि तारीफ के भारी भरकम शब्दों को छोड़िए, पार्टनर की तारीफ भरी एक नज़र ही उसे भीतर तक संतुष्ट कर देती है। सच पूछिए तो एक आम महिला अपने हर कार्य के लिए मन ही मन अपने पार्टनर का अप्रूवल चाहती है, चाहे उसे जीवन में कितनी ही स्वतंत्रता क्यों न मिली हो।
02. क्यों समर्पण और सहयोग स्त्री का मूल है?
एक औरत अपने पार्टनर के लिए खुद जितना समर्पित रहती है, उतने ही समर्पण की अभिलाषा अपने पति या प्रेमी से भी अपेक्षा रखती है। कई बार पुरूष अपने मेल ईगो के चलते अपना समर्पण प्रकट नहीं कर पाते हैं। उन्हें लगता है कि उनकी पत्नी या प्रेमिका सब खुद ही समझती होगी। लेकिन पुरुषों का समर्पण उनके बातों और व्यवहार में भी झलकना चाहिए। फिर चाहे बात पत्नी को सहयोग करने की हो या फिर शारीरिक सम्बन्धों की, है औरत यही आशा करती है कि उसका पार्टनर पूरी तरह से उसके प्रति समर्पित हो। हर स्त्री अपने पति या प्रेमी से हमेशा सहयोग भी चाहती है, चाहे शारीरिक सहयोग हो या मानसिक, यह उसके लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है। जब औरत को अपने सहचर के मजबूत सहयोग और साथ का सम्बल मिलता है तब वह दुनियां के तूफानों का डटकर सामना भी सरलता से कर लेती है।
03. क्यों सच्चा प्रेम और वफादारी एक स्त्री की नींव है?
देखा जाए तो हर औरत का दिल एक फूल की तरह बहुत ही कोमल होता है। भले ही दुनियां के लिए वह कितनी ही कठोर क्यों न हो, अपने पार्टनर के प्रेम की आंच में वह मोम की तरह से पिघल जाती है। सच पूछा जाय तो स्त्री सच्चे प्रेम की चाह में बड़े से बड़ा दुःसाहस का वो कार्य कर सकती है, जिसे पुरुष कभी भी नहीं कर सकते। स्त्री के दिल को सिर्फ सच्चे प्रेम से ही जीता जा सकता है। जब स्त्री को अपने पार्टनर की तरफ से सच्चे प्रेम की आंच महसूस होती है तो वह अपना सर्वस्व उसके उपर न्यौछावर कर देती है। यह एक कड़वी सच्चाई है कि पुरुष सिर्फ नारी के शरीर को भोगने के लिए ही प्यार को प्रकट करता है, जबकि औरत केवल अपने पुरुष का प्रेम पाने के लिए अपना शरीर समर्पित करती है। यहां सभी पुरुषों को यह समझना होगा कि स्त्री के भीतर प्रेम में छल को समझने का ईश्वर प्रदत्त गुण होता है। जब उसे लगता है कि प्रेम में उसके साथ धोखा हो रहा है, तो वह बुरी तरह से टूट जाती है। औरत खुद अपने पार्टनर के प्रति जितनी ईमानदार और वफ़ादार बनी रहती है, ठीक वही अपेक्षा और आशा वह अपने पार्टनर से भी रखती है। इसलिए जब भी कभी उसे अपने पार्टनर का पराई औरत से सम्बन्धों के बारे में पता चलता है, वह जीते जी मौत के मुंह मे चली जाती है।
04. क्यों देखभाल करने और पाने का गुण स्त्री में विद्यमान है?
औरत पूरी दुनियां से भले ही लड़ ले लेकिन उसके भीतर आजीवन एक छोटी सी बच्ची छुपी रहती है, जो अपने पार्टनर से प्रेम के साथ-साथ देखभाल की आकांक्षा भी रखती है। यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि किसी भी लड़की या बालिका के जीवन में आने वाला प्रथम पुरूष उसका पिता ही होता है। जिससे उसे लाड़, दुलार, स्नेह, सराहना, और सुरक्षा महसूस होती है। एक बालिका के लिए पूरी दुनियां में सबसे सुरक्षित जगह उसके पिता की गोद ही होती है। जहाँ वह निश्चिंत होकर सो जाती है। पिता रूपी पुरुष के इस स्नेह की छाप औरत के अवचेतन मन में सदा के लिए छप जाती है। युवावस्था में जब उसके जीवन में पति या प्रेमी के रूप में कोई पुरुष आता है तो स्त्री वही सुरक्षा, प्यार, लाड़-दुलार अपने पति या प्रेमी में भी खोजती है। वह रोज़मर्रा के जीवन में छोटे-छोटे देखभाल की लालसा रखती है। एक थकी हुई पत्नी को पति द्वारा दिया जाने वाली एक कप चाय का प्याला हो या चाहे एक गिलास पानी ही क्यों ना हो, वह उसे सभी लग्ज़री तोहफों से भी अधिक कीमती लगता है। पत्नी का जन्मदिन मनाना, सैर, पिकनिक या मूवी पे ले जाना, कभी-कभी छोटे छोटे गिफ्ट देते रहना, बीमारी में उसे दवा देना, प्यार से उसके सिर पर हाथ फेर देना, आदि ये सब छोटी-छोटी बातें हैं जो उसे ऊर्जावान और प्रसन्नचित्त बनाएं रखती हैं।
05. क्यों केवल सम्मान के द्वारा ही स्त्री को जीता जा सकता है?
हर स्त्री अपने पुरुष से प्रेम, समर्पण और वफ़ादारी के साथ-साथ उसके है क्षण सम्मान की भी अपेक्षा रखती है। हालांकि हमारे भारतीय समाज में पुरूष प्रधान मानसिकता होने के कारण एक पुरुष अपनी पत्नी या प्रेमिका को प्रेम तो कर लेता है, लेकिन प्रायः उसका सम्मान करना भूल जाता है। अपने पार्टनर द्वारा सम्मानित औरत में एक प्रबल आत्मविश्वास आ जाता है। उसके व्यक्तित्व में अलग सा आकर्षण होता है। औरत हमेशा यही उम्मीद करती है कि उसकी भावनाओं की कद्र की जाय और उसके इमोशन को समझा जाए। हालांकि स्त्री मनोविज्ञान एक लंबे रिसर्च का विषय है, फिर भी मैंनें कुछ आधारभूत पॉइंट्स को आप सभी के सम्मुख रखने की एक छोटी सी कोशिश की है। मुझे उम्मीद है कि आपको मेरा ये आलेख पसन्द आया होगा। आभार और धन्यवाद।
– एस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव
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What do women want from their men? (Hindi & English)
Om-Shiva
It is said that the human mind is very complex and it is very difficult to understand it. On top of that, if it is a woman’s heart, then it is almost impossible to understand it. Because it is also said that the depth of an ocean can be gauged, but the depth of a woman’s mind cannot be gauged. Still, what does a woman expect from her man, whether he is her husband or her lover? This can be understood from some points.
01. Why does a woman want appreciation from her lover?
Every woman, irrespective of her age, always craves for some loving and appreciative words from her partner. She expects that no matter what she does, her husband or lover must say something in her praise. In fact, whether a woman does household chores, or social work, or even makeup, she does all these things only for the satisfaction of her partner. Women’s psychology says that forget about heavy words of praise, just a glance of the partner filled with appreciation satisfies her from within. To be honest, a common woman secretly wants her partner’s approval for every work she does, no matter how much freedom she has got in life.
02. Why dedication and cooperation are the essence of a woman?
A woman expects the same dedication from her husband or lover as she herself is dedicated to her partner. Many times men are unable to express their dedication due to their male ego. They think that their wife or girlfriend will understand everything herself. But the dedication of men should also be reflected in their words and behavior. Whether it is about supporting the wife or physical relations, a woman expects that her partner is completely dedicated to her. Every woman always wants cooperation from her husband or lover, whether it is physical cooperation or mental, it is very important for her. When a woman gets the support of strong cooperation and companionship of her partner, then she can easily face the storms of the world.
03. Why true love and loyalty are the foundation of a woman?
If seen, every woman’s heart is as soft as a flower. No matter how harsh she may be for the world, she melts like wax in the heat of her partner’s love. To be honest, a woman can do the most daring act in the desire of true love, which men can never do. A woman’s heart can only be won by true love. When a woman feels the heat of true love from her partner, she sacrifices everything for him. It is a bitter truth that a man expresses love only to enjoy a woman’s body, while a woman surrenders her body only to get the love of her man. Here all men have to understand that a woman has a God-given quality of understanding deceit in love. When she feels that she is being cheated in love, she breaks down badly. The woman herself remains honest and loyal towards her partner, the same expectation and hope she keeps from her partner as well. That is why whenever she comes to know about her partner’s relationship with another woman, she goes to the mouth of death while she is still alive.
04. Why is the quality of giving and receiving care present in a woman?
A woman may fight with the whole world, but a little girl remains hidden inside her throughout her life, who desires love and care from her partner. It is a psychological fact that the first man in the life of any girl is her father. From whom she feels pampering, affection, appreciation, and security. The safest place in the world for a girl is her father’s lap. Where she sleeps without any worries. The impression of this affection of the man in the form of a father is forever imprinted in the subconscious mind of the woman. In her youth, when a man comes into her life as a husband or lover, then the woman seeks the same security, love, pampering in her husband or lover. She craves small cares in everyday life. A cup of tea or a glass of water given by a husband to a tired wife is more precious to her than all the luxurious gifts. Celebrating wife’s birthday, taking her outing, picnic or movie, giving small gifts sometimes, giving her medicine when she is sick, caressing her head lovingly, etc. are all small things that keep her energetic and happy.
05. Why can a woman be won only through respect?
Every woman expects love, dedication and loyalty from her man as well as respect from him at every moment. However, due to male-dominated mentality in our Indian society, a man loves his wife or girlfriend, but often forgets to respect her. A woman who is respected by her partner has a strong self-confidence. There is a different kind of attraction in her personality. A woman always expects that her feelings should be respected and her emotions should be understood. Although women psychology is a subject of long research, still I have made a small effort to put some basic points in front of you all. I hope you liked my article. Gratitude and thanks.