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Author: Guru Satyaram

व्यापार क्षेत्र की मजबूती कैसे करें? (Hindi & English)

व्यापार क्षेत्र की मजबूती कैसे करें? (Hindi & English)

आपकी जन्म कुंडली में व्यापार या नौकरी अर्थात कर्मक्षेत्र को दसवें स्थान से देखा जाता है। दशम भाव के स्वामी को दशमेश या कर्मेश या कार्येश कहा जाता है। दसवें भाव से यह देखा जाता है कि, जातक सरकारी नौकरी करेगा या प्राइवेट? अगर व्यापार करेगा तो कौन सा व्यापार उसे फलित होगा? और उसे आने वाले भविष्य में किस कर्मक्षेत्र में अधिक सफलता मिल पाएगी? कुंडली का सातवां स्थान आपसी भागीदारी का होता है। इस भाव में अगर मित्र ग्रह विराजमान हों तो पार्टनरशिप से लाभ मिलना अटल रहता है। और अगर शत्रु ग्रह विराजे हुए हैं तो आपसी साझेदारी अधिकांश नुकसान ही देती है। स्वाभाविक मित्र ग्रह सूर्य, चंद्र, बुध, गुरु होते हैं। शनि, मंगल, राहु, केतु यह चारों ग्रह भी आपस में मित्र स्वभाव धारण करते हैं। सूर्य, बुध, गुरु और शनि दशम भाव के कारक ग्रह हैं। अर्थात कुंडली में दशम स्थान की गणना से पूर्व इनकी पक्की जांच भी अति आवश्यक हो जाती है।

ऐसा भी कहा जाता है कि मन और अवचेतन मन के स्वामी चंद्रमां ग्रह जिस भी राशि में बैठे हुए हों, उस अमुक राशि के स्वामी ग्रह की प्रकृति के आधार पर या चंद्रमां से उसकी युति अथवा दृष्टि संबंध के आधार पर ही कोई भी जातक अपनी आजीविका या कर्मक्षेत्र के कार्य का चयन करता है। शक्तिशाली चंद्रमां से दशम भाव में अगर बृहस्पति ग्रह विराजे हुए हों तो गजकेसरी/राजकेसरी नामक राजयोग का निर्माण होता है। परंतु ऐसा भी माना जाता है कि अगर बृहस्पति उच्च प्रभावी हों या फिर स्वगगृही होकर बैठे हुए हों तो ही अधिक लाभ प्राप्ति संभव बनी रहती है। ऐसा जातक जन्म से यशस्वी, परोपकारी स्वभाव, प्रकृति से धर्मात्मा, अध्ययन में मेधावी, अति गुणवान और भाग्य से राजपूज्य होता है। यदि जन्म लग्न, सूर्यग्रह और दसवां स्थान बलवान हों तथा पाप ग्रहों के प्रभाव में नहीं आते हैं तो जातक शाहीकार्यों से धन कमाता है और आजीवन सर्वसुख एवम सर्वलाभ अवश्य प्राप्त करता है।

अगर लग्न कुंडली के दसवें स्थान में केवल शुभ ग्रह बैठे हुए हों तो अमल कीर्ति नामक शुभ योग निर्मित होता है। परंतु उसके अशुभ भावेश नहीं होने तथा अपनी नीच राशि में नहीं विराजने की स्थिति में ही इस योग का पूर्ण लाभ मिल पाता है। दसवें स्थान के स्वामी ग्रह के शक्तिशाली होने से जीविका की वृद्धि होती है और निर्बल हो जाने की स्तिथि में लगातार हानि पर हानि होती रहती है। लग्न से द्वितीय और एकादश भाव में बली एवं शुभ ग्रह हों तो जातक केवल व्यापार से ही अधिक धन कमा पाता है। धन भाव के स्वामी और लाभ भाव के स्वामी का आपसी परस्पर संबंध कुंडली में धनयोग का निर्माण कर देता है। दसवें स्थान का कारक ग्रह यदि उसी भाव में ही स्थित हो जाए या दसवें स्थान को सीधी दृष्टि से देख रहा हो तो जातक कभी भी खाली नहीं बैठ सकता है। जातक को कोई ना कोई रोजगार की प्राप्ति अवश्यमेव होती है।

आपके व्यापार को 10 गुना बढ़ाने के लिए 5 सरल उपाय

01. बृहस्पतिवार को सवा किलो साबुत उड़द को एक काले कपड़े में डालकर एक पोटली बना लें। अब पोटली को सीधे हाथ में लेकर 1008 बार “शनि” बोलें और पोटली को ऑफिस में ही पवित्र स्थान पर रख दें या लटका दें।

02. शनिवार को सवा किलो चावल लें अब उसमे से थोड़ा चावल सीधी मुट्ठी में लेकर 108 बार गायत्री मंत्र का जाप करें। अब मुट्ठी वाले चावल को बाकी चावलों के साथ मिलाकर किसी भी पीपल वृक्ष पर अर्पण कर आएं।

03. बुधवार के दिन पंचमुखी भगवान श्रीगणेशजी की बैठी हुई तस्वीर को अपने कार्यस्थल के अंदर स्थान दीजिए और 1 कपूर और 1 लौंग के जोड़े से उन्हें दीप दान कीजिए।

04. मंगलवार के दिन लाल बैल के पैरों की मिट्टी, 4 हल्दी की गांठे, एक मुट्ठी खुशबूदार चावल, एक मुट्ठी सेंधा नमक को एक पीले कपडे में डालकर उसकी पोटली बनाकर अपने ऑफिस में ही पवित्र स्थान पर रख दें या लटका दें।

05. लाल बछड़ी के पैरों की मिट्टी को एक लाल कपड़े में डालकर उसकी पोटली बना लें। अब उस पोटली को ऑफिस के मंदिर में चावल के आसान पर रख लें और नित्य लक्ष्मीजी की स्तुति करा करें।

– गुरु सत्यराम

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How to strengthen business sector? (Hindi & English)

In your birth chart, business or job, i.e., the field of work is seen from the tenth house. The lord of the tenth house is called Dashmesh or Karmesh or Karyesh. It is seen from the tenth house whether the person will do a government job or a private job? If he does business, then which business will be fruitful for him? And in which field of work will he get more success in the future? The seventh house of the horoscope is of mutual partnership. If friendly planets are present in this house, then getting profit from partnership is certain. And if enemy planets are present, then mutual partnership mostly gives losses. Natural friendly planets are Sun, Moon, Mercury, Jupiter. Saturn, Mars, Rahu, Ketu, these four planets also have a friendly nature among themselves. Sun, Mercury, Jupiter and Saturn are the causative planets of the tenth house. That is, before calculating the tenth house in the horoscope, their thorough investigation also becomes very important.

It is also said that the person chooses his livelihood or work field based on the nature of the planet lord of the zodiac sign in which the Moon, the lord of the mind and subconscious mind, is placed or based on its conjunction or aspect with the Moon. If Jupiter is placed in the tenth house from the powerful Moon, then a Rajyoga named Gajkesari/Rajkesari is formed. But it is also believed that if Jupiter is highly influential or is placed in heaven, then only more benefits are possible. Such a person is famous by birth, charitable by nature, religious by nature, brilliant in studies, highly talented and revered by the king by luck. If the birth ascendant, Sun and the tenth house are strong and do not come under the influence of evil planets, then the person earns money from royal works and definitely gets all the happiness and benefits throughout life.

If only auspicious planets are placed in the tenth house of the ascendant horoscope, then an auspicious yoga named Amal Kirti is formed. But the full benefit of this yoga is obtained only when it is not an inauspicious Bhavesh and is not situated in its low zodiac sign. If the lord of the tenth house is strong, the livelihood increases and if it becomes weak, there is continuous loss after loss. If there are strong and auspicious planets in the second and eleventh house from the lagna, then the person is able to earn more money only from business. The mutual relationship between the lord of the wealth house and the lord of the profit house creates Dhanyoga in the horoscope. If the planet responsible for the tenth house is situated in the same house or is looking at the tenth house directly, then the person can never sit idle. The person definitely gets some kind of employment.

5 simple ways to increase your business 10 times

01. On Thursday, put 1.25 kg of whole urad in a black cloth and make a bundle. Now take the bundle in the right hand and say “Shani” 1008 times and keep or hang the bundle in a sacred place in the office itself.

02. Take 1.25 kg rice on Saturday. Now take some rice in your right fist and chant Gayatri Mantra 108 times. Now mix the rice in the fist with the rest of the rice and offer it to any Peepal tree.

03. On Wednesday, place a sitting picture of Panchmukhi Lord Shri Ganeshji in your workplace and donate a lamp to him with 1 camphor and a pair of cloves.

04. On Tuesday, put the soil from the feet of a red bull, 4 turmeric knots, a handful of fragrant rice, a handful of rock salt in a yellow cloth and make a bundle of it and keep it in a sacred place in your office or hang it.

05. Put the soil from the feet of a red calf in a red cloth and make a bundle of it. Now keep that bundle on a seat of rice in the temple of the office and offer prayers to Goddess Lakshmi daily.

– Guru Satyaram

शारदीय नवरात्रि उत्सव 2024 (Hindi & English)

शारदीय नवरात्रि उत्सव 2024 (Hindi & English)

Om-Shiva
नवरात्रि पर्व आद्या शक्ति भगवती माँ दुर्गा के प्रति आस्था और विश्वास प्रकट करने वाला पर्व है। नवरात्रि यूँ तो वर्ष में चार बार आती है, लेकिन चैत्र और शारदीय नवरात्रि का अपना विशेष ही महत्व है। शारदीय नवरात्रि अश्विन शुक्ल प्रतिपदा से प्रारम्भ होती है। शारदीय नवरात्रि को मुख्यतः मां दुर्गा द्वारा महिषासुर के वध और श्रीराम द्वारा रावण के वध से जोड़कर देखा जाता है। नवरात्रि के बाद दसवें दिन विजयादशमी का पर्व पूरे भारतवर्ष में धूमधाम से मनाया जाता है।

वर्ष 2024 में कब है शारदीय नवरात्रि?

इस वर्ष नवरात्रि का शुभारंभ दिनांक 03 अक्टूबर 2024 को हो रहा है। और नवरात्रि का समापन शनिवार 12 अक्टूबर को होगा।

शारदीय नवरात्रि घट स्थापना मुहूर्त कब है?

नवरात्रि में कलश या घट स्थापना का विशेष महत्व है। यह मंगलकलश नकारात्मकता दूर करके सकारात्मक ऊर्जा और शुभता लाता है। इस बार घट स्थापना का मुहूर्त गुरुवार 03 अक्टूबर को प्रातः 06:17 मिनट से प्रातः 07:24 मिनट तक रहेगा। वैसे कई लोग अभिजीत मुहूर्त में भी घट स्थापना कर सकते हैं, जिसका मुहूर्त सुबह 11 बजकर 46 मिनट से लेकर दोपहर 12:33 मिनट तक रहेगा।

भगवती देवी का आगमन और वाहन

देवी भागवत, मार्कण्डेय पुराण और भागवत पुराण में उल्लेख है कि, महालया के दिन जब पितृगण वापस अपने लोक चले जाते हैं तब माँ दुर्गा अपने परिवार और गणों के साथ पृथ्वी लोक पर आतीं हैं। प्रत्येक वर्ष जिस दिन नवरात्रि प्रारम्भ होती है, उस दिन के अनुसार हर बार माता अलग-अलग वाहनों पर आतीं हैं। माता का वाहन पूरे वर्ष के भविष्य की शुभता या अशुभता बताता है। इस वर्ष माता का वाहन डोली या पालकी है। इसे इतना शुभ नहीं माना जाता है। इससे देश दुनियां में अव्यवस्था, मन्दी, हिंसा, और महामारी के संकेत मिलते हैं।

माँ दुर्गा के नौ रूप और नवग्रहों का जुड़ाव

नवरात्रि में 09 अलग-अलग तिथियों में माँ के 09 अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि किसी भी पूजन अनुष्ठान में रंगों और नवग्रहों का विशेष महत्व होता है। देवी भागवत में उल्लेख है कि सम्पूर्ण सृष्टि की जननी, और पूरे ब्रह्मांड में संचारित ऊर्जा के केंद्र में यही माँ आद्या शक्ति ही हैं। और हमारे नवग्रह भी इन्ही शक्ति के 09 रूपों से संचालित होते हैं। आइये, हम जानते हैं कि देवी के विभिन्न रूपों की पूजा किस रंग के वस्त्र पहनकर की जाती है? और देवी के कौन से रूप के पूजन से किस ग्रह को अनुकूल बनाया जा सकता है?

01. शैलपुत्री- पर्वत राज हिमावन की पुत्री माँ पार्वती का यह मूल स्वरूप है। माँ के दाएं हांथ में त्रिशूल और बाएं हांथ में कमल पुष्प है। इनकी सवारी सिंह है। माँ शैलपुत्री की पूजा पीले रंग के वस्त्रों को पहनकर की जानी चाहिए। इनकी पूजा से मन के कारक चन्द्रमा को मजबूती मिलती है व चन्द्र जनित दोषों से मुक्ति मिलती है।

02. ब्रह्मचारिणी- माँ का द्वितीय स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। माँ के दाएं हांथ में माला और बाएं हाँथ में कमण्डल है। इनका पूजन हरे रंग के वस्त्र पहनकर करना चाहिए। ग्रहों के सेनापति मंगल पर इनका शासन होता है। अतः माता मंगल जनित दोषों का शमन करती हैं।

03. चन्द्रघण्टा- अति कांतिमय माँ चन्द्रघण्टा के गले मे घण्टे के आकार का चन्द्रमा सुशोभित होता है। इनकी ग्रे रंग के कपड़े पहनकर पूजा करनी चाहिए। माँ के पूजन से शुक्र सम्बन्धी दोष समाप्त होते हैं और परिवार में प्रेम, ऐश्वर्य, सुख-शान्ति वास करती है।

04. कूष्मांडा- माँ कूष्माण्डा को समस्त ब्रह्मांड की अधिष्ठात्री देवी कहा गया है। माँ की आठ भुजाओं में अस्त्र, शस्त्र, अमृत कलश और कमल सुशोभित होता है। नारंगी रंग के कपड़े धारण करके पूजा करने से माँ प्रसन्न होती हैं और ग्रहों के राजा सूर्य को बल प्रदान करती हैं, समाज मे मान, प्रतिष्ठा प्रदान करती हैं।

05. स्कंदमाता- शिव और पार्वती पुत्र स्कंद या भगवान कार्तिकेय की माता के रूप में इनका पूजन होता है। माँ की पूजा सफेद रंग के वस्त्र पहनकर की जानी चाहिए। स्कंदमाता के पूजन से ज्ञान और विवेक के ग्रह बुध को बल मिलता है।

06. कात्यायनी- महिषासुर का वध करने हेतु माँ दुर्गा ने ऋषि कात्यायन के घर कात्यायनी के रूप में जन्म लिया था। अष्ट भुजाओं वाली यें माता महिषासुरमर्दिनी कहलाती हैं। इनकी पूजा लाल रंग के वस्त्र पहनकर करनी चाहिए। अमृत स्वरूप गुरू ग्रह माँ के पूजन से प्रसन्न और शांत होते हैं।

07. कालरात्रि- माँ कालरात्रि का घोररूप सभी दुष्टों का सर्वनाश करने वाला है। इनके स्मरण मात्र से मनुष्य भयमुक्त होकर अभय और मोक्ष प्राप्त करता है। देवी का पूजन नीले रंग के वस्त्र पहनकर करना चाहिए। माँ कालरात्रि शनिग्रह की अधिष्ठात्री देवी हैं। इनके पूजन से शनिग्रह प्रसन्न होकर अपनी पीड़ा से मुक्त करते हैं।

08. महागौरी- कपूर के समान उज्ज्वल रंग वाली महागौरी का सुंदर एवम शांत रूप मनुष्यो के समस्त कष्टों को हरने वाला है। गुलाबी रंग के वस्त्र धारण करके गुलाबी पुष्पों से पूजन करने पर माँ प्रसन्न होती हैं। इनकी पूजा से राहुग्रह शांत होकर जीवन में उन्नति प्रदान करते हैं।

09. सिद्धिदात्री- समस्त सिद्धियो की अधिष्ठात्री देवी माँ सिद्धिदात्री हैं। 04 भुजाओं वाली माँ कमल के आसन पर विराजती हैं। इन देवी का पूजन बैंगनी रंग के वस्त्र पहनकर करना चाहिए। अध्यात्म और मोक्ष प्रदान करने वाले केतुग्रह माँ सिद्धिदात्री की पूजन से प्रसन्न होते हैं।

उपर्युक्त आलेख में मैंने विशेष तौर पर नवग्रह और उनसे सम्बन्धित रंगों को देवी के नौ रूपों से जोड़कर विवेचन किया है। आशा करती हूँ आपको यह आलेख पसन्द आया होगा। कृपया कमेंट के ज़रिए अपनी राय अवश्य दें।

हार्दिक धन्यवाद और आभार। जय माता दी।

-एस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव

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Sharadiya Navratri Festival 2024 (Hindi & English)

Om-Shiva
Navratri festival is a festival expressing faith and belief in Aadya Shakti Bhagwati Maa Durga. Although Navratri comes four times a year, Chaitra and Sharadiya Navratri have their own special significance. Sharadiya Navratri starts from Ashwin Shukla Pratipada. Sharadiya Navratri is mainly associated with the killing of Mahishasura by Maa Durga and the killing of Ravana by Shri Ram. The festival of Vijayadashami is celebrated with great pomp all over India on the tenth day after Navratri.

When is Sharadiya Navratri in the year 2024?

This year Navratri is starting on 03 October 2024. And Navratri will end on Saturday 12 October.

When is Sharadiya Navratri Ghat Sthapana Muhurta?

Kalash or Ghat Sthapana has special significance in Navratri. This Mangalkalasha removes negativity and brings positive energy and auspiciousness. This time the auspicious time for Ghat establishment will be from 06:17 am to 07:24 am on Thursday, 03 October. However, many people can also do Ghat establishment in Abhijeet Muhurta, whose auspicious time will be from 11:46 am to 12:33 pm.

Arrival and vehicle of Bhagwati Devi

It is mentioned in Devi Bhagwat, Markandeya Purana and Bhagwat Purana that, on the day of Mahalaya, when the ancestors go back to their world, then Mother Durga comes to Earth with her family and Ganas. Every year, according to the day on which Navratri starts, Mother comes on different vehicles every time. Mother’s vehicle tells the auspiciousness or inauspiciousness of the future of the whole year. This year the vehicle of the Mother is Doli or Palki. It is not considered so auspicious. This indicates chaos, recession, violence, and epidemic in the country and the world.

Nine forms of Maa Durga and connection with Navgrahas

In Navratri, 9 different forms of Maa are worshipped on 9 different dates. It is said that colors and Navgrahas have special importance in any worship ritual. It is mentioned in Devi Bhagwat that this Maa Aadya Shakti is the mother of the whole creation, and the center of energy transmitted in the entire universe. And our Navgrahas are also operated by these 9 forms of Shakti. Come, let us know which color clothes are worn while worshipping different forms of the Goddess? And which planet can be made favorable by worshipping which form of the Goddess?

01. Shailputri- This is the original form of Maa Parvati, daughter of mountain king Himavan. Maa has a trident in her right hand and a lotus flower in her left hand. She rides a lion. Maa Shailputri should be worshipped wearing yellow clothes. Worshipping her strengthens the moon, the factor of mind, and liberates one from the defects caused by the moon.

02. Brahmacharini- The second form of the mother is Brahmacharini. The mother has a rosary in her right hand and a kamandalu in her left hand. She should be worshipped wearing green clothes. She rules over Mars, the commander of the planets. Hence, the mother removes the defects caused by Mars.

03. Chandraghanta- The bell-shaped moon adorns the neck of the extremely radiant mother Chandraghanta. She should be worshipped wearing grey clothes. Worshipping the mother ends the defects related to Venus and love, prosperity, happiness and peace reside in the family.

04. Kushmanda- Mother Kushmanda is said to be the presiding goddess of the entire universe. The eight arms of the mother are adorned with weapons, arms, Amrit Kalash and lotus. Wearing orange clothes pleases the Goddess and she gives strength to the Sun, the king of planets, and gives respect and prestige in the society.

05. Skandamata- She is worshipped as the mother of Shiva and Parvati’s son Skanda or Lord Kartikeya. The Goddess should be worshipped wearing white clothes. Worshipping Skandamata strengthens Mercury, the planet of knowledge and wisdom.

06. Katyayani- To kill Mahishasura, Goddess Durga was born as Katyayani in the house of sage Katyayan. She has eight arms and is known as Mahishasuramardini. She should be worshipped wearing red clothes. The planet Guru, which is the form of Amrit, becomes happy and calm by worshipping the Goddess.

07. Kaalratri- The fierce form of Goddess Kaalratri destroys all evildoers. Just by remembering her, a person becomes free from fear and attains abhay (fearlessness) and moksha (salvation). The Goddess should be worshipped wearing blue clothes. Maa Kalratri is the presiding goddess of Saturn. Saturn is pleased by worshipping her and relieves the person from his pain.

08. Mahagauri- The beautiful and calm form of Mahagauri, whose colour is as bright as camphor, removes all the troubles of human beings. The mother is pleased by wearing pink coloured clothes and worshipping with pink flowers. By worshipping her, Rahu becomes calm and gives progress in life.

09. Siddhidatri- The presiding goddess of all Siddhis is Maa Siddhidatri. The four-armed mother sits on a lotus seat. This goddess should be worshipped wearing purple coloured clothes. Ketu, which provides spirituality and salvation, is pleased by worshipping Maa Siddhidatri.

In the above article, I have specially discussed the nine planets and their related colours by connecting them with the nine forms of the goddess. I hope you liked this article. Please give your opinion through comments.

Heartfelt thanks and gratitude. Jai Mata Di.

-Astro Richa Shrivastava

सर्वपितृ अमावस्या 2024(Hindi & English)

सर्वपितृ अमावस्या 2024(Hindi & English)

Om-Shiva
हमारे हिन्दू पंचांग में भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से आश्विन माह की अमावस्या तिथि तक 16 दिनों के पक्ष को हम पितृपक्ष कहते हैं। इन 16 दिनों में हम अपने पूर्वजों और पितरों के सम्मान में विभिन्न कर्म यथा- तर्पण, श्राद्ध, पिंडदान इत्यादि करते हैं। जिन लोगों को अपने गुजरे हुए माता, पिता, दादी, बाबा अथवा भाई बहनों की मृत्यु की तिथि ज्ञात होती है, वें तिथि के दिन पितृ कर्म करते हैं। जिन लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती, उनके लिए पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध आदि कर्म के लिए अमावस्या तिथि का विधान रखा गया है। इस अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या इसीलिए कहा जाता है कि जिनमे सभी सोलह दिनों तक पितृकर्म करने का सामर्थ्य नहीं है, वें एक अमावस्या वाले दिन ही पितृकर्म कर सकते हैं।

इसके अतिरिक्त जिन्हें अपने मृत परिजनों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं है वें भी सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों के निमित्त श्राद्ध, दान, और तर्पण कर सकते हैं। वस्तुतः सर्वपितृ अमावस्या पितरों की विदाई का दिन है। उनका विसर्जन कर उन्हें वापस उनके लोक भेजने का दिन है। अतः इस तिथि का महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है। इस दिन को महालय भी कहते हैं। पितरों की विदाई के बाद माँ भगवती दुर्गा के धरती पर आगमन का उत्सव शुरू हो जाता है।

01. कैसे करें पितृ विसर्जन?

अमावस्या वाले दिन प्रातःकाल उठकर दैनिक कार्यो से निवृत्त होकर घर की सफाई करें। फिर घर की दहलीज पर गंगाजल से छिड़काव कर सुगन्ध मिश्रित चंदन का लेप करें। घर की महिलाएं स्नान के बाद रसोई में आपके घर मे पसन्द किये जाने वाले पकवान बनाएं। पकवानों में खीर और पूड़ी अवश्य शामिल करें। फिर योग्य ब्राह्मण को घर पर आमंत्रित करके पितरों के निमित्त हवन, पूजन, पिंड, तर्पण इत्यादि करवाएं। उसके बाद पंच बलि निकालें। गाय, कुत्ता, कौवा, चींटी और देव के लिए निकाला गया भोज्य प्रसाद पंचबलि कहलाता है। उसके बाद आपके पूर्वजो की तस्वीरों के सामने धूपबत्ती, पुष्प, दीपक आदि रखकर थोड़ा सा भोज्य प्रसाद रख दें। हाँथ जोड़कर उनकी सदगति और ईश्वर के शरण में जाने की प्रार्थना करें। फिर ब्राह्मण को भोजन कराकर वस्त्र, अनाज, दक्षिणा आदि दान देकर विदा करें।

संध्या काल में पितरों के लिए पंच दीपों का दान करें। घर के पूजा स्थल, तुलसी के पास, रसोई के जल स्थान के पास, घर की दक्षिण दिशा और पश्चिम दिशा पर एक घी या तेल का दीपक रखें। शिवालय जाकर शिवलिंग पर काले तिल मिश्रित जल से अभिषेक करें। संध्याकाल में यदि मन्दिर के पास पीपल वृक्ष हो तो वहां भी एक दीपक जलाएं। पितरों की सदगति, मुक्ति और ऊर्ध्वगति के लिए प्रार्थना करें। इस प्रकार सर्वपितृ अमावस्या पर श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण करने से पितरों का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।

02. वर्ष 2024 में कब है सर्वपितृ अमावस्या?

हमारे पंचांगों के अनुसार अश्विन मास की अमावस्या तिथि दिनांक 01 अक्टूबर 2024 को रात 09 बजकर 39 मिनट पर प्रारम्भ होगी, जो 03 अक्टूबर 2024 को सुबह 12 बजकर 18 मिनट पर समाप्त होगी। इस कारण उदयातिथि के अनुसार अमावस्या का कर्म दिनांक 02 अक्टूबर 2024 को होगा।

03. पूजन का मुहूर्त कब है?

कुतुप मुहूर्त- 11:45 प्रातः से दोपहर 12:24 मिनट तक।
रौहिण मुहूर्त- 12:34 दोपहर से 01:34 दोपहर तक।
अपराह्न काल- 01:21 दोपहर से 03:43 दोपहर तक।

अमावस्या और सूर्यग्रहण का संबंध

इस वर्ष पितृ अमावस्या पर सूर्यग्रहण का साया मंडरा रहा है। सूर्य ग्रहण 01 अक्टूबर को रात में 09:40 से 02 अक्टूबर की मध्य रात्रि 03:17 मिनट तक रहेगा। हालांकि यह सूर्य ग्रहण रात में लगेगा इसलिए भारत में यह दिखाई नहीं देगा। अतः सूतक आदि मान्य नहीं होगा। ऐसे में सर्व पितृ अमावस्या पर सूर्य ग्रहण के कारण तर्पण और श्राद्ध कर्म में कोई निषेध नहीं होगा।

आशा करती हूँ कि पाठकों को जानकारी उपयोगी लगी होगी। कृपया कमेंट के ज़रिए अपनी महत्वपूर्ण राय दें।

धन्यवाद और आभार।

-ऐस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव

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Sarvapitri Amavasya 2024 (Hindi & English)

In our Hindu calendar, the period of 16 days from the full moon date of Bhadrapada month to the new moon date of Ashwin month is called Pitru Paksha. In these 16 days, we perform various rituals such as Tarpan, Shradh, Pinddaan etc. in honor of our ancestors and forefathers. Those who know the date of death of their deceased mother, father, grandmother, grandfather or siblings, perform Pitru Karma on that day. For those who do not know the date of death of their relatives, the Amavasya date has been prescribed for Pinddaan, Tarpan, Shradh etc. This Amavasya is called Sarvapitri Amavasya because those who do not have the ability to perform Pitru Karma for all sixteen days, can perform Pitru Karma only on one Amavasya day.

Apart from this, those who do not know the date of death of their dead relatives can also perform Shradh, donation and tarpan for their ancestors on the day of Sarvapitre Amavasya. In fact, Sarvapitre Amavasya is the day of farewell of ancestors. It is the day of immersing them and sending them back to their world. Therefore, the importance of this date increases a lot. This day is also called Mahalaya. After the farewell of ancestors, the celebration of the arrival of Mother Bhagwati Durga on earth begins.

01. How to do Pitru Visarjan?

On the day of Amavasya, wake up early in the morning, finish your daily chores and clean the house. Then sprinkle Gangajal on the threshold of the house and apply a paste of sandalwood mixed with fragrance. After bathing, the women of the house should prepare the dishes liked in your house in the kitchen. Include kheer and puri in the dishes. Then invite a qualified Brahmin to the house and get havan, pujan, pind, tarpan etc. done for the ancestors. After that, take out Panch Bali. The food prasad offered to cow, dog, crow, ant and god is called Panch Bali. After that, keep incense sticks, flowers, lamps etc. in front of the pictures of your ancestors and keep some food prasad. With folded hands, pray for their salvation and going to the shelter of God. Then feed the Brahmin and send him off by donating clothes, grains, dakshina etc.

In the evening, donate Panch Deeps for the ancestors. Place a ghee or oil lamp at the place of worship in the house, near Tulsi, near the water place in the kitchen, in the south and west direction of the house. Go to the Shiva temple and perform Abhisheka on the Shivling with water mixed with black sesame seeds. In the evening, if there is a Peepal tree near the temple, then light a lamp there as well. Pray for the salvation, liberation and upward movement of the ancestors. In this way, by performing Shradh, Pinddaan and Tarpan on Sarvapitri Amavasya, one gets the special blessings of the ancestors.

02. When is Sarvapitri Amavasya in the year 2024?

According to our Panchangs, the Amavasya date of Ashwin month will start on 01 October 2024 at 09:39 pm, which will end on 03 October 2024 at 12:18 am. Therefore, according to Udayatithi, the Amavasya ritual will be performed on 02 October 2024.

03. When is the auspicious time for worship?

Kutup Muhurta- 11:45 am to 12:24 pm.
Rohin Muhurta- 12:34 pm to 01:34 pm.
Afternoon Kaal- 01:21 pm to 03:43 pm.

 

Relation between Amavasya and Solar Eclipse

This year, the shadow of solar eclipse is looming on Pitru Amavasya. The solar eclipse will last from 09:40 pm on October 01 to 03:17 midnight on October 02. Although this solar eclipse will occur at night, it will not be visible in India. Therefore, Sutak etc. will not be valid. In such a situation, there will be no prohibition in Tarpan and Shradh rituals due to solar eclipse on Sarva Pitru Amavasya.

I hope the readers found the information useful. Please give your important opinion through comments.

Thanks and gratitude.

-Astro Richa Srivastava

श्री गणेशजी का पूजन क्यों अनिवार्य है? (Hindi & English)

श्री गणेशजी का पूजन क्यों अनिवार्य है? (Hindi & English)

01. हमारे प्रथम आराध्य श्री गणेशजी

हमारे सनातन धर्म में भगवान श्री गणेशजी को प्रथम पूजनीय कहा जाता है। हमारे यहां कोई भी शुभ मांगलिक कार्य बिना गणेशजी के पूजन किए नहीं किया जाता है। हमारे हिन्दू धर्म में “श्री गणेश” करना ही किसी भी कार्य का शुभारंभ करने का द्योतक माना गया है।

02. क्यों हैं श्री गणेशजी प्रथम पूजनीय?

गणेश जी को ब्रह्मा, विष्णु, महेश इत्यादि त्रिदेवों के अलावा समस्त देवी-देवताओं द्वारा अग्र पूजनीय होने का वरदान मिला है। इसका जिक्र विभिन्न पुराणों और धर्म ग्रन्थों में आता है। वेदों में भी यज्ञ-हवनादि से पूर्व गणेशजी का आह्वान करने का विधान है। और हवन यज्ञादि को निर्विघ्न सफल बनाने के लिए सर्व प्रथम गणेशजी का पूजन करना ही अनिवार्य बताया गया है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में उल्लेख है कि सर्वप्रथम भगवान विष्णु ने गणेशजी को अग्रपूज्य और सर्वपूज्य होने का वरदान दिया था।भगवान ने कहा था कि जबतक गणेशजी की पूजा नहीं होगी, अन्य सभी देवी-देवताओं का पूजन भी स्वीकार्य नहीं होगा। पुराणों में उन्हें “विघ्नहर्ता” भी कहा गया है।

03. क्या हमारे पुराणों में भी है उल्लेख?

स्कन्दपुराण में उल्लेख है कि समुद्रमंथन के पूर्व देवताओं ने गणेशजी का पूजन नहीं किया था, तब कालकूट नामक हलाहल विष निकला। और मंथन कार्य में बहुत बड़ा विघ्न उत्पन्न हो गया। तब भगवान शिव ने उस विष को ग्रहण करते समय सभी देवताओं को निर्देश दिया कि जब भी गणेश पूजन के बिना कोई शुभ कार्य किया जायेगा तो विघ्न उत्पन्न अवश्य होगा।

ब्रह्मांड पुराण के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने भी गणेशजी को समस्त देवताओं में अग्रपूज्य होने का वरदान दिया था।
गणेश पुराण और लिंग पुराण में उल्लेख है कि जब त्रिपुर नामक राक्षस के वध के समय विघ्न उत्तपन्न होने लगा तो गणेश जी ने समस्त विघ्नों को हरकर त्रिपुर विजय दिलवाई। तब त्रिदेवों नें उन्हें विघ्नहर्ता और अग्रपूज्य होने का वरदान दिया।

ब्रह्मांड पुराण, लिंग पुराण, और स्कन्दपुराण आदि में उल्लेख है कि विवाह, मुंडन, आदि सोलह संस्कारों, यात्रा, व्यापार, गृह प्रवेश, कृषि कर्म, युद्ध, देवता पूजन, यज्ञ और अनुष्ठानों में जो व्यक्ति भक्तिपूर्वक सर्वप्रथम श्री गणेशजी का पूजन करता है तो उसकी समस्त मनोकामनाएं सिद्ध होती हैं।

04. क्यों लगाते हैं श्री गणेशजी को सिंदूर?

भगवान गणेशजी को सिंदूर अवश्य चढ़ाया जाता है। उनकी मूर्तियों पर सिंदूर का लेपन किया जाता है। शिवपुराण के अनुसार जब शिवजी के द्वारा गणेशजी का सर काटे जाने के पश्चात हाथी का सर लगाया गया, तब उसमें पहले से ही सिंदूर का लेपन हो रखा था। माता पार्वती ने जब देखा तो वरदान दिया कि पुत्र! तुम्हारे मुख पर सिंदूर का विलेपन हो रहा है, अतः मनुष्यों द्वारा तुम सिंदूर से पूजे जाओगे। गणेश पुराण में भी एक कथा है कि एक बार बाल्यावस्था में ही गणेशजी ने सिंदूर नाम के दैत्य का वध करके उसके रक्त का अपने शरीर पर लेपन कर लिया था। तब से भगवान गणेश सिंदूर वदन एवम सिन्दूरप्रिय के नाम से विख्यात हुए और भक्त उन्हें सिंदूर लगाने लगे।

05. क्यों चढ़ाते हैं श्रीगणेश को दूब?

इस घटना के बारे गणेश पुराण में ही विभिन्न उल्लेख मिलते हैं। गणेश पुराण की एक कथा के अनुसार एक चांडाली, एक गधा और एक बैल गणेश मंदिर में जाते हैं। अनजाने में ही उनके हाथों से दुर्वा घास गणेशजी की प्रतिमा पर गिर जाती है। जिससे प्रसन्न होकर गणेशजी विमान से उन्हें अपने लोक बुला लेते हैं। एक अन्य कथा के अनुसार गणेशजी ने बालक रूप में अनलासुर को अपने कंठ में धारण कर लिया था, इससे उनके गले मे तेज जलन होने लगी। तब उस ताप की शांति मुनियों द्वारा इक्कीस दूर्वांकुरों को अर्पण करने पर हुई थी।

गणेश पुराण के उपासना खण्ड में वर्णन है कि मिथिला नरेश जनक के नगर का सम्पूर्ण अन्न भक्षण करने के बाद भी एक कुष्ठ रोगी वेषधारी गणेशजी तृप्त नहीं हो रहे थे। तब त्रिशिरा की चतुर पत्नी विरोचना ने एक दूर्वा में धरती के समस्त व्यंजनों की कल्पना करके गणेशजी को भक्तिपूर्वक भेंट किया। तब कहीं जाकर गणेशजी तृप्त और प्रसन्न हुए थे। इसी प्रकार कौण्डिन्य की पत्नी आश्रया नें भी दूर्वांकुरों द्वारा भगवान गणेशजी को प्रसन्न करने की कथा मिलती है। इस प्रकार से उपर्युक्त कथाएं दूर्वांकुरों के महत्व को बताती हैं। इसीलिए गणेशजी को प्रसन्न करने के लिए दूब चढ़ाने का विधान बना।

उपर्युक्त आलेख में मैंने भगवान श्री गणेशजी के विषय में एक संक्षिप्त जानकारी प्रदान की है। आप को आलेख कैसा लगा? सुधी पाठक जन कृपया कमेंट के ज़रिए ज़रूर बताएं।

धन्यवाद और आभार !

– ऐस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव

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Why is it mandatory to worship Shri Ganesh Ji? (Hindi & English)

01. Our first deity Shri Ganesh Ji

In our Sanatan Dharma, Lord Shri Ganesh Ji is said to be the first to be worshipped. No auspicious work is done here without worshipping Ganesh Ji. In our Hindu religion, chanting “Shri Ganesh” is considered to be the symbol of starting any work.

02. Why is Shri Ganesh Ji the first to be worshipped?

Ganesh Ji has got the blessing of being worshipped first by all the gods and goddesses apart from the Tridevas like Brahma, Vishnu, Mahesh etc. This is mentioned in various Puranas and religious texts. In the Vedas also, there is a rule to invoke Ganesh Ji before Yagya-Havana etc. And to make Havan Yagya etc. successful without any hindrance, it is said to be mandatory to worship Ganesh Ji first. It is mentioned in Brahmavaivart Purana that first of all Lord Vishnu blessed Ganeshji to be the foremost and the most revered. God had said that till Ganeshji is not worshipped, the worship of all other gods and goddesses will also not be accepted. He is also called “Vighnaharta” in Puranas.

03. Is it mentioned in our Puranas too?

It is mentioned in Skanda Purana that before Samudra Manthan, the gods did not worship Ganeshji, then the poison named Kalakut came out. And a great obstacle arose in the churning work. Then Lord Shiva, while consuming that poison, instructed all the gods that whenever any auspicious work is done without Ganesh worship, then an obstacle will definitely arise.

According to Brahmanda Purana, Lord Krishna also blessed Ganeshji to be the foremost revered among all the gods. It is mentioned in Ganesha Purana and Linga Purana that when obstacles arose while killing a demon named Tripura, Ganesha defeated all the obstacles and helped Tripura win. Then the Tridevas gave him the boon of being the destroyer of obstacles and the first to be worshipped.

It is mentioned in Brahmanda Purana, Linga Purana and Skanda Purana that if a person worships Lord Ganesha first with devotion in sixteen rites like marriage, tonsure, etc., travel, business, housewarming, agricultural work, war, deity worship, yagya and rituals, then all his wishes are fulfilled.

04. Why do we apply sindoor to Shri Ganesh Ji?

Sindoor is definitely offered to Lord Ganesh Ji. Sindoor is applied on his idols. According to Shiv Puran, when Ganesh Ji’s head was cut off by Lord Shiva and an elephant’s head was put on it, it was already coated with sindoor. When Mother Parvati saw this, she blessed him that son! Sindoor is being applied on your face, so you will be worshipped by humans with sindoor. There is also a story in Ganesh Puran that once in his childhood, Ganesh Ji killed a demon named Sindoor and applied his blood on his body. Since then, Lord Ganesh became famous by the name of Sindoor Vadan and Sindoorpriya and devotees started applying sindoor to him.

05. Why do we offer grass to Shri Ganesh?

Various references are found about this incident in Ganesh Puran itself. According to a story in Ganesha Purana, a Chandali, a donkey and a bull go to the Ganesha temple. Unknowingly, Durva grass falls from their hands on the idol of Ganesha. Pleased with this, Ganesha calls them to his world in his plane. According to another story, Ganesha in the form of a child had put Analasur around his neck, due to which he started having severe burning sensation in his throat. Then that heat was relieved when the sages offered twenty-one Durva shoots.

It is described in the Upasana section of Ganesha Purana that even after eating all the food of the city of King Janak of Mithila, Ganesha disguised as a leper was not getting satiated. Then Trishira’s clever wife Virochana imagined all the delicacies of the earth in a Durva and offered it to Ganesha with devotion. Then Ganesha became satisfied and happy. Similarly, there is a story of Kaundinya’s wife Aashraya pleasing Lord Ganesha with Durva shoots. In this way, the above stories tell the importance of Durva shoots. That is why the tradition of offering grass to please Lord Ganesha was made.

In the above article, I have provided a brief information about Lord Shri Ganesha. How did you like the article? Dear readers, please do let us know through comments.

Thanks and gratitude!

– Astro Richa Srivastava

ऐसा करेंगे तो बृहस्पति ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

ऐसा करेंगे तो बृहस्पति ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

जन्मकुंडली में देव गुरु बृहस्पति गुरुदेव के रूप में हमारा प्रतिनिधित्व करते हैं। बृहस्पति ग्रह के शुभ प्रभाव अनुसार जातक दयालु, धार्मिक, धैर्यवान, बुद्धिमान और चंचल स्वभाव को धारण किए ही रहता है। इन्हीं विशिष्ट सद्गुणों के चलते बृहस्पति ग्रह को आंतरिक बल प्राप्त होता है तथा ग्रह से आने वाली रश्मियां कुंडली के शुभ प्रभावों में और भी अधिक वृद्धि करते हुए जातक के जीवन को सुखमय बना देती है। बृहस्पति ग्रह, जिसे हम गुरू ग्रह भी कहते हैं, यह शुभ ग्रह हमारे नवग्रहों में अति महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। ज्योतिष शास्त्र में भी बृहस्पति ग्रह को देवगुरू, ज्ञान का कारक और समृद्धि का कारक कहकर परिभाषित एवम शोभित किया गया है।

जातक की लग्न कुण्डली में बृहस्पति ग्रह बलवान होने की स्तिथि में जातक ज्ञानवान एवं सद्गुणों से सम्पन्न बना ही रहता है। क्योंकि हमारे सभी नवग्रहों में केवल बृहस्पति ग्रह ही सर्वाधिक शुभ ग्रह आते हुए। अगर किसी कन्या जातक की लग्न कुण्डली में बृहस्पति ग्रह कमजोर अवस्था में हो, वक्री अवस्था में हो, पाप ग्रह द्वारा पीड़ित अवस्था में हो या फिर नीच गति को प्राप्त हों तो उसके विवाह में अति विलम्ब देखने को मिलता है। ज्योतिषीय उपायों के माध्यम से बृहस्पति ग्रह को बलवान करने मात्र से ही कन्या जातक को सुहाग एवं सन्तान का सुख सहज ही प्राप्त होना संभव जाता है। बृहस्पति ग्रह संतान का भी कारक होता है। अगर आप सरल माध्यम से गुरू ग्रह को बल देना चाहते हैं तो आप पुखराज रत्न को स्वर्ण धातु की अंगूठी में जड़वाकर गुरूवार के दिन राहुकाल का ध्यान रखते हुए, सूर्यदेव का प्रकाश रहते हुए अपनी तर्जनी (प्रथम) उंगली में धारण करना चाहिए।

अगर आपको पुखराज रत्न थोड़ा सा महंगा लगता है तो आप इसके स्थान पर गुरु ग्रह का उपरत्न सुनहला भी धारण कर सकते हैं। बृहस्पति ग्रह के सर्वाधिक शुभ ग्रह होने के कारण ही इनकी सीधी दृष्टि अति शुभ एवम कल्याणकारी मानी जाती है। वैदिक ज्योतिष के नियमों अनुसार भी अगर किसी भी जातक की लग्न कुण्डली में केन्द्र स्थान पर बृहस्पति ग्रह बैठे हुए हैं तो अन्य ग्रहों से उत्पन्न दोषों की शून्यता स्वतः ही होनी प्रारंभ हो जाती है। कुंडली में केन्द्र स्थान पर विराजमान बृहस्पति ग्रह की प्रशंसा करते हुए ऋषि-महर्षियों का कथन है कि जिसके केन्द्र स्थान पर में बृहस्पति ग्रह विराजे हुए हैं तो कुंडली के अन्य ग्रह अगर एकसाथ होकर भी जातक का विरोध करें तो भी जातक का कुछ नहीं बिगड़ सकता है। आइए अब हम समझते हैं कि उन 07 गलतियों के बारे में जिनके कारण हमारा बृहस्पति ग्रह हमेशा के लिए खराब हो सकता है।

7 गलतियां जो आपके बृहस्पति ग्रह को हमेशा के लिए खराब कर देंगी

1. किसी भी उन्नत पीपल के वृक्ष को मूल जड़ सहित अकारण कटवा देना।

2. अपनी पाठयक्रम की पुस्तकों को पैर लगाना या धर्म ग्रंथों को हमेशा बंद करके ही रखना।

3. नित्य शुद्धि कर्म के नियमों के अभाव में किसी भी पूज्य माला या रुद्राक्ष की माला को धारण करे ही रहना।

4. अपने पितरों और पूर्वजों की उचित एवम् उत्तम सेवा जैसे भोजन, वस्त्र और दक्षिणा उनके नाम से नहीं निकालना।

5. घर आने वाले अतिथि का सामर्थ्य अनुसार उचित सम्मान नहीं करना और घर पर मांगने वालों के आने पर हमेशा ही उन्हें खाली हाथ लौटाना।

6. उत्तम गृहस्थी सुख की प्राप्ति के बावजूद घर की स्त्री का सम्मान नहीं करना और परस्त्री से किसी भी प्रकार का संपर्क रखना।

7. किन्हीं भी गुरुजन, टीचर्स एवम् बुजुर्गों का अपमान करना। उन्हें अपशब्द कहना और उनका आशीर्वाद लिए बगैर कुछ भी शुभ कार्य शुरु करना।

– गुरु सत्यराम

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If you do this, Jupiter can be bad for your entire life (Hindi & English)

In the birth chart, Dev Guru Brihaspati represents us in the form of Gurudev. According to the auspicious effects of Jupiter, the native remains kind, religious, patient, intelligent and playful in nature. Due to these special virtues, Jupiter gets internal strength and the rays coming from the planet increase the auspicious effects of the horoscope even more and make the life of the native happy. Jupiter, which we also call Guru Graha, this auspicious planet holds a very important place among our nine planets. In astrology also, Jupiter has been defined and adorned by calling it Devguru, the factor of knowledge and the factor of prosperity.

In the condition of Jupiter being strong in the ascendant horoscope of the native, the native remains knowledgeable and endowed with virtues. Because among all our nine planets, only Jupiter is the most auspicious planet. If the Jupiter planet is weak in the Lagna Kundali of a girl, is in a retrograde state, is afflicted by the malefic planets or is in a low state, then a lot of delay is seen in her marriage. By merely strengthening the Jupiter planet through astrological remedies, it is possible for the girl to get the happiness of marital bliss and children easily. Jupiter is also a factor for children. If you want to strengthen the Guru planet through simple means, then you should get the Pukhraj gemstone embedded in a gold metal ring and wear it on your index (first) finger on Thursday, keeping in mind the Rahu Kaal, while the sunlight is there.

If you find the topaz gemstone a bit expensive, then you can also wear the golden sub-gemstone of Jupiter in its place. Jupiter being the most auspicious planet, its direct sight is considered to be extremely auspicious and beneficial. According to the rules of Vedic astrology, if Jupiter is placed in the center position in the Lagna Kundali of any native, then the defects caused by other planets start vanishing automatically. Praising the Jupiter placed in the center position in the Kundali, the sages and seers have said that if Jupiter is placed in the center position, then even if the other planets of the Kundali come together and oppose the native, then also nothing can go wrong for the native. Let us now understand about those 07 mistakes due to which our Jupiter can be spoiled forever.

7 mistakes that will spoil your Jupiter forever

1. Getting any grown Peepal tree cut along with its roots without any reason.

2. Touching your textbooks with your feet or always keeping religious texts closed.

3. In the absence of rules of daily purification rituals, wearing any venerated rosary or Rudraksha rosary.

4. Not providing proper and best service to your forefathers and forefathers like giving food, clothes and dakshina in their name.

5. Not giving proper respect to the guests who come to the house according to your capacity and always sending back empty handed when people come to the house to beg.

6. Despite having great domestic happiness, not respecting the woman of the house and having any kind of contact with another woman.

7. Insulting any Guru, teachers and elders. Using abusive language against them and starting any auspicious work without taking their blessings.

– Guru Satyaram

हमारे पितर कौन हैं? एक परिचय (Hindi & English)

हमारे पितर कौन हैं? एक परिचय (Hindi & English)

Om-Shiva

परिभाषा-

अक्सर हम अपने पूर्वजों या घर-परिवार के गुजर गए लोगों को “पितर” मान लेते हैं। लेकिन “पितरों” का परिचय एक विस्तृत विषय है। वस्तुतः पितर समस्त लोकों की चौरासी लाख योनियों में से एक योनि है। पितर विभिन्न लोकों में रहने वाली वें दिव्य आत्माएं और सामान्य जीवात्माएं हैं, जिनसे देवता और मनुष्य की उतपत्ति हुई है। पितर देवताओं की तरह ही शक्तिशाली और पुण्यफलदायी होते हैं। संतुष्ट और प्रसन्न होने पर अपने कुल को सुख, समृद्धि, सन्तति, धन और यश प्रदान करते हैं। जबकि अप्रसन्न होने पर सभी प्रकार के सुख छीन भी लेते हैं। इनकी प्रसन्नता के बिना हमें देवताओं और नवग्रहों का भी आशीर्वाद नहीं प्राप्त हो सकता। एक सम्पूर्ण लोक ही पितरों के लिए समर्पित किया गया है।

परिचय-

मनुस्मृति में पितरों के सम्बंध में कहा गया है कि पितर ब्रह्मा जी के पुत्र मनु हैं और मनु के जो अत्रि, मरीचि, पुलत्स्य आदि ऋषि पुत्र हैं, उनके सभी संतानें ही पितृगण कहे गए हैं।

मनुस्मृति में श्लोक है कि-

“ऋषिभ्यः पितरो जाता: पितृभे देवमानवा:।
देवेभ्यस्तु जगत्सर्वे चरं स्थाण्वनुपूर्वश:।।”

अर्थात् , ऋषियों से पितर उत्पन्न हुए हैं। पितरों से देवता और मनुष्य उत्तपन्न हुए हैं। देवताओं से ये सम्पूर्ण जगत निर्मित हुआ है।

पितरों के प्रकार-

मनुस्मृति, पद्मपुराण, मत्स्यपुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण आदि में पितरों की कई श्रेणियां बताई गई हैं। पर मूलतः हम पितरों को दो श्रेणियों में विभक्त कर सकते हैं।

(अ) दिव्य पितर
(ब) पूर्वज पितर

(अ) दिव्य पितर-

दिव्य पितर वें पितर हैं जिनसे देवताओं और मनुष्यों की उत्पत्ति हुई है। ये सभी बहुत तेजस्वी और देवताओं के समान ही शक्तिशाली होते हैं। देवता भी इनका पूजन करते हैं। ये योगियों के योग को बढ़ाते है और आध्यात्मिक उन्नति देते हैं। इनके लिए विशेष रूप से श्राद्ध कर्म किया जाता है।

दिव्य पितरों के भी सात प्रकार कहे गए हैं-

01. अग्निष्वात- इनकी उत्पत्ति मनु के पुत्र महर्षि मरीचि से हुई है। ये अत्यंत दिव्य और पूज्य हैं। ये देवताओं के पितर माने जाते हैं।

02. बहिर्षद- इनकी उत्पत्ति महर्षि अत्रि से हुई है। ये देव, दानव, यक्ष, गन्धर्व, किन्नरों, सर्प, राक्षस, गरुड़ आदि के पितर हैं।

03. सोमसद- सोमसद महर्षि विराट के वंशज हैं। ये साधुओं और साधकों के पितर माने जाते हैं।

04. सोमपा- ये पितर महर्षि भृगु से उत्तपन्न हुए हैं। ये ब्राह्मणों के पितर माने जाते हैं।

05. हविष्मान- ये महर्षि अंगिरा के पुत्र हैं। इन्हें हविर्भुज भी कहते हैं। इन्हें क्षत्रियों का पितर कहा जाता है।

06. आज्यपा- यह महर्षि पुलत्स्य से उत्तपन्न हुए हैं। इन्हे वैश्यों का पितर कहा जाता है।

07. सुकालि- सुकालि महर्षि वसिष्ठ के पुत्र कहे गए हैं। यह शूद्रों के पितर कहे गए हैं।

उपर्युक्त सात प्रमुख दिव्य पितरों के अतिरिक्त और भी दिव्य पितर हैं। उदाहरण के लिए- “अग्निदग्ध”, “अनाग्निदग्ध”, “काव्य”, “सौम्य” इत्यादि।

(ब) पूर्वज पितर

इस श्रेणी में वें पितर शामिल होते हैं जो किसी परिवार या कुल के पूर्वज हैं, जिनसे कुल या कोई वंश उत्तपन्न हुआ हो। इन्हीं का एकोदिष्ट श्राद्ध, पिंड या तर्पण इत्यादि होता है।

इनकी भी मुख्यतः 2 श्रेणियां हैं।

01. सपिंड पितर
02. लेपभाग भोजी पितर

01. सपिंड पितर-

मृत पिता, दादा, परदादा ये तीन पीढ़ी तक के पूर्वज सपिण्ड पितर कहलाते हैं। ये पितर पिण्डभागी होते हैं।

02. लेपभाग भोजी पितर-

ये सपिण्ड पितरों से ऊपर तीन पीढ़ी तक के पितर होते हैं। जिनका निवास चंद्रलोक से ऊपर पितृलोक में होता है।

उपर्युक्त वर्गीकरण के अलावा “संतुष्ट और असंतुष्ट”, “उग्र और सौम्य पितर”, “ऊर्ध्वगति और अधोगति” वाले पितरों की श्रेणियां भी होती हैं।

उपर्युक्त आलेख में मैनें अपने ज्ञान अनुसार पितरों के बारे में जानकारी दी है। अन्य विद्वानों की राय की भी अपेक्षा है। कृपया कमेंट के ज़रिए अपना दृष्टिकोण अवश्य दें।

धन्यवाद और आभार!

-ऐस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव

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Who are our ancestors? An introduction (Hindi & English)

Om-Shiva

Definition-

Often we consider our ancestors or the deceased members of our family as “ancestors”. But the introduction of “ancestors” is a vast subject. Actually, ancestors are one of the 84 lakh species of all the worlds. The ancestors are those divine souls and ordinary living souls living in different worlds, from which gods and humans have originated. The ancestors are as powerful and virtuous as the gods. When satisfied and happy, they provide happiness, prosperity, progeny, wealth and fame to their clan. Whereas when unhappy, they snatch away all kinds of happiness. Without their happiness, we cannot get the blessings of the gods and the nine planets. An entire world has been dedicated to the ancestors.

Introduction-

In Manusmriti, it is said about Pitras that Manu is the son of Brahma and all the children of Manu like Atri, Marichi, Pulatsya etc. are called Pitragan.

Manusmriti has a verse that-

“Rishibhyah Pitaro Jaata: Pitrbhe Devamanava:|

Devebhyastu Jagatsarve Charam Sthaanvanu Purvasha:||”

That is, Pitras are born from Rishis. Gods and humans are born from Pitras.

This entire world is created from Gods.

Types of Pitras-

Many categories of Pitras have been mentioned in Manusmriti, Padmapuran, Matsyapuran, Brahmavaivart Purana etc. But basically we can divide Pitras into two categories.

(A) Divine Pitras

(B) Ancestor Pitras

(A) Divine Pitras-

Divya Pitras are those Pitras from whom Gods and Humans originated. All of them are very radiant and powerful like Gods. Gods also worship them. They increase the yoga of Yogis and give spiritual progress. Shraddha Karma is specially performed for them.

There are seven types of Divine Pitras-

01. Agnishwat- They originated from Maharishi Marichi, son of Manu. They are extremely divine and worshipable. They are considered to be the Pitras of Gods.

02. Bahishad- They originated from Maharishi Atri. These are the ancestors of Devas, Danavas, Yakshas, ​​Gandharvas, Kinnars, snakes, demons, Garuda etc.

03. Somasad- Somasad is the descendant of Maharishi Virat. He is considered to be the ancestors of sadhus and sadhaks.

04. Sompa- These ancestors are born from Maharishi Bhrigu. They are considered to be the ancestors of Brahmins.

05. Havisman- He is the son of Maharishi Angira. He is also called Havirbhuj. He is called the ancestor of Kshatriyas.

06. Ajyapa- He is born from Maharishi Pulatsya. He is called the ancestor of Vaishyas.

07. Sukali- Sukali is said to be the son of Maharishi Vasishtha. He is said to be the ancestor of Shudras.

Apart from the above mentioned seven major divine ancestors, there are other divine ancestors too. For example- “Agnidagdh”, “Anaagnidagdh”, “Kavya”, “Saumya” etc.

(b) Ancestor Pitras

This category includes those Pitras who are the ancestors of a family or clan, from whom a clan or a lineage has originated. It is for them that Ekodishta Shraddha, Pind or Tarpan etc. is performed.

There are mainly 2 categories of these too.

01. Sapinda Pitras

02. Lepbhag Bhoji Pitras

01. Sapinda Pitras

The ancestors up to three generations like dead father, grandfather, great grandfather are called Sapinda Pitras. These Pitras are Pindbhagi.

02. Lepbhag Bhoji Pitras

These are the ancestors up to three generations above Sapinda Pitras. Whose residence is in Pitralok above Chandralok.

Apart from the above classification, there are also categories of Pitras with “satisfied and dissatisfied”, “fierce and gentle Pitras”, “upward and downward movement”.

In the above article, I have given information about Pitras according to my knowledge. Opinion of other scholars is also expected. Please give your viewpoint through comments.

Thanks and gratitude!

-Astro Richa Srivastava

क्या घर के मुख्य दरवाज़े पर गणेश-लक्ष्मी को स्थान देना चाहिए? (Hindi & English)

क्या घर के मुख्य दरवाज़े पर गणेश-लक्ष्मी को स्थान देना चाहिए? (Hindi & English)

हमारे घरों में प्रायः अनेकों ऊर्जाओं का आना जाना लगा रहता है। जिनमें अच्छी और बुरी दोनों ऊर्जाएं शामिल रहती है। हम सभी यही चाहते हैं कि हमारे घरों में केवल सकारात्मक ऊर्जाएं ही आनी चाहिएं। इसके लिए हम पूर्ण रूप से हमारे घर के मुख्य दरवाज़े पर निर्भर बने रहते हैं क्योंकि मुख्य प्रवेश द्वार एक प्रकार से हमारा रक्षक होता है। इसलिए हम हमेशा ऐसे उपायों को प्रयोग में लाते हैं जिससे हमारे मुख्य दरवाज़े को अत्यधिक मजबूती प्राप्त हो पाए।

मुख्य लकड़ी वाले दरवाज़े की मजबूती के संदर्भ में चोखट का एक अहम योगदान रहता है। चोखट में इतनी अधिक ताकत होती है कि परिवार का कोई भी सदस्य जब उसे लांघता है तो नकरात्मक ऊर्जा बाहर ही रह जाती है। लेकिन यह पहले के घरों में अधिक देखने को मिलती थी। आज के वर्तमान निर्माण को देखा जाए तो घरों में चोखट लगभग गायब हो चुकी है। अब चोखट के नाम पर केवल तिखट रह गई है। अब इसके स्थान पर लोगों ने चांदी की तार लगानी शुरू कर दी है। यह ठीक भी है क्योंकि चांदी धातु की प्रकृति ऐसी है कि कोई भी नकरात्मक ऊर्जा को वह तुरंत ही काट देती है।

अब वर्तमान युग में लोग अपने घर के मुख्य दरवाज़े के बाहर गणेश-लक्ष्मी को स्थान देते हैं। उनकी भावना बहुत ही पवित्र होती है लेकिन हमें यहां यह भी समझना होगा कि अगर मुख्य दरवाज़े के बाहर आपने किन्हीं भी देवी-देवता को स्थान दिया है तो आपको यह अच्छे से पता होना चाहिए कि उन अमुक देवी-देवता का द्वारपाल होना अति आवश्यक है। अब ना तो लक्ष्मीजी द्वारपाल हैं और ना ही गणेशजी। गणेशजी का सिर कटने से पूर्व वें अवश्य द्वारपाल थें परंतु जब शिवकृपा से उनको नया सिर प्राप्त हुआ तो उनका यह रूप कहीं पर भी द्वारपाल नही बना। आइए कुछ प्रश्नों के माध्यम से इस विषय को और भी अधिक गहराई से समझने का प्रयास करते हैं।

01. क्या घर के मुख्य दरवाजे पर गणेश-लक्ष्मी लगाने चाहिएं?

भगवान श्रीगणेश और माता महालक्ष्मी जी को मुख्य द्वार जो बाहर की तरफ खुलता हो वहां पर स्थान कभी भी नहीं देना चाहिए।

02. क्या भगवान श्रीगणेश और माता महालक्ष्मी जी को घर के अंदर स्थान दे सकते हैं?

जी हां आप भगवान श्रीगणेश और माता महालक्ष्मी जी को मुख्य द्वार जो अंदर की तरफ खुलता हो वहां पर स्थान दे सकते हैं।

03. क्या भगवान श्रीगणेश और माता महालक्ष्मी जी के साथ किसी विशिष्ट दिशा का कोई महत्व है?

भगवान कभी भी किसी भी दिशा से बंधे हुए नहीं होते हैं। बस आप हमेशा यही ध्यान रखें कि भगवान श्रीगणेश आपके साम भाग में ही होने चाहिएं और माता महालक्ष्मी जी आपके वाम भाग में ही होनी चाहिएं।

04. घर के मुख्य दरवाजे पर किन्हें स्थान देना उचित और उत्तम रहता है?

घर के मुख्य दरवाजे जोकि बाहर की तरफ खुलता है उसकी उपरी दीवार पर आप अपनी श्रद्धा अनुसार बैठी हुई अवस्था में पंचमुखी हनुमानजी या पंचमुखी गणेशजी को ही स्थान दीजिए।

05. घर के मुख्य दरवाजे पर कैसा रंग होना चाहिए और मुख्य दरवाजे और अंदर की दीवारों की ऊंचाई कितनी होनी चाहिए?

घर के मुख्य दरवाजे पर सफेद या कोई भी हल्का रंग होना ही उत्तम रहता है। घर के मुख्य दरवाजे की ऊंचाई कम से कम 7 फुट और अंदर की दीवारों की ऊंचाई कम से कम 11 फुट तक होनी ही चाहिए।

06. अपने घर को अनावश्यक नेगेटिव ऊर्जा या बुरी नजरों से कैसे बचाएं?

अपने घर के मुख्य दरवाजे जोकि बाहर की तरफ खुलता है उस पर एक मध्यम आकार का चौकोर दर्पण आप लगा लीजिए और अशोक वृक्ष के पत्तों का तोरण भी आप लगाकर रखिए।

– गुरु सत्यराम

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Should Ganesha and Lakshmi be placed on the main door of the house? (Hindi & English)

Many energies keep coming and going in our homes. These include both good and bad energies. We all want that only positive energies should enter our homes. For this, we completely depend on the main door of our house because the main entrance is our protector in a way. That is why we always use such measures which can make our main door very strong.

Door frames play an important role in strengthening the main wooden door. Door frames have so much strength that when any member of the family crosses it, the negative energy remains outside. But this was seen more in earlier houses. If we look at today’s construction, door frames have almost disappeared from the houses. Now only door frames are left in the name of door frames. Now people have started using silver wire in its place. This is also correct because the nature of silver metal is such that it cuts off any negative energy immediately.

Now in the present era, people give place to Ganesh-Lakshmi outside the main door of their house. Their sentiments are very pure but we also have to understand here that if you have given place to any deity outside the main door, then you should know very well that it is very important for that particular deity to be the doorkeeper. Now neither Lakshmiji is the doorkeeper nor Ganeshji. Before Ganeshji’s head was cut off, he was definitely a gatekeeper, but when he got a new head by the grace of Shiva, this form of his did not become a gatekeeper anywhere. Let us try to understand this topic more deeply through some questions.

01. Should Ganesha-Lakshmi be placed on the main door of the house?

Lord Ganesha and Goddess Mahalakshmi should never be placed on the main door which opens outside.

02. Can Lord Ganesha and Goddess Mahalakshmi be placed inside the house?

Yes, you can place Lord Ganesha and Goddess Mahalakshmi on the main door which opens inside.

03. Is there any significance of any specific direction with Lord Ganesha and Goddess Mahalakshmi?

Gods are never tied to any direction. Just keep in mind that Lord Ganesha should be on your right side and Goddess Mahalakshmi should be on your left side.

04. Whom is it appropriate and best to place on the main door of the house?

On the upper wall of the main door of the house which opens towards outside, place Panchmukhi Hanumanji or Panchmukhi Ganeshji in a sitting position according to your faith.

05. What color should be on the main door of the house and what should be the height of the main door and the inner walls?

It is best to have white or any light color on the main door of the house. The height of the main door of the house should be at least 7 feet and the height of the inner walls should be at least 11 feet.

06. How to protect your house from unnecessary negative energy or evil eyes?

Put a medium-sized square mirror on the main door of your house which opens towards outside and also keep a garland of Ashoka tree leaves.

– Guru Satyaram

साधारण व्यक्ति को सफल राजनेता बनाने वाले ग्रह (Hindi & English)

साधारण व्यक्ति को सफल राजनेता बनाने वाले ग्रह (Hindi & English)

Om-Shiva
हममें से अनेक लोगों की राजनीति में जाने और एक सफल राजनेता बनने की प्रबल इच्छा होती है। इसके पीछे भी व्यक्ति के जन्मपत्री के ग्रह जिम्मेदार होते हैं। आइए, हम जानने की कोशिश करते हैं कि कौन से प्रमुख ग्रह व्यक्ति को राजनीति में ले जाते हैं और उसे सफल राजनेता बनाते हैं। राजनीति में जाने के लिए व्यक्ति को प्रेरित करने में यूं तो लगभग सभी ग्रह अपनी-अपनी भूमिका निभाते हैं। लेकिन मुख्य रूप से सूर्य, बुध ,शनि, राहु, गुरू और मंगल का विचार किया जाता है। साथ ही लग्नेश और भाग्येश की भी बड़ी भूमिका रहती है।

01. सूर्य- पहले के राजाओं के युग में सूर्य ग्रह को राजसत्ता का कारक या राजा यानी सर्वोच्च सत्ता का प्रतीक माना जाता था। परंतु आज के वर्तमान युग में जो स्थान राजा का होता है वही स्थान राजनेता, सरकार या सत्ता का हो गया है। अतः इसके लिए सर्वप्रथम विचार सूर्य का ही किया जाता है। राजनीति में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, पार्टी प्रमुख और सरकार में जो सर्वोच्च पद होते हैं, उनका प्रमुख कारक ग्रह सूर्य ही होता है। इस प्रकार से ग्रहों के राजा की धरती पर राज चलाने में भी प्रमुख भूमिका है।

02. शनि- सूर्य ग्रह के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण स्थान है शनिदेव का। शनि ग्रह को जनतंत्र या जनता का प्रतीक माना जाता है। वर्तमान युग में अधिकांश देशों में जनतंत्र या लोकतंत्र मौजूद है, अतः इस कारणवश शनि ग्रह की भूमिका भी बढ़ जाती है। इसके अलावा शनि पार्टी से जुड़े सेवकों, अधीनस्थ कर्मचारियों, पार्टी कार्यकर्ताओं तथा जनता में लोकप्रियता का भी कारक ग्रह होता है। यदि शनि ग्रह बलवान होकर जन्म पत्रिका में शुभ स्थिति में हो तो व्यक्ति जनता के समर्थन से चुनाव जीतकर सत्ता में आ जाता है।

03. राहु- राहु ग्रह भी राजनीति में ले जाने वाला एक प्रमुख ग्रह है। राहु व्यक्ति को दाँव-पेंच और पैंतरे सिखाता है साथ में एक अच्छा कूटनीतिज्ञ भी बनाता है। राजनीति एक ऐसा क्षेत्र है, जहाँ व्यक्ति को व्यवहारिक होने के साथ शातिर और तिकड़मी होना पड़ता है। राजनीति में साम, दाम, दण्ड और भेद सभी नीतियां काम करती हैं। जहाँ अन्य नीतियां असफल हो जातीं हैं, वहाँ भेदनीति ही कार्य करती है। राहु ग्रह गहरी भेदनीति और कूटनीति की बुद्धि प्रदान करता है।

04. मंगल- एक राजनीतिज्ञ के भीतर साहस और जोखिम लेने की क्षमता होनी चाहिए। इस क्षेत्र में कई बार ऐसे निर्णय लेने पड़ते हैं जिसमें कई ख़तरे और जोखिम छुपे होते है। मंगल ग्रह व्यक्ति में दृढ़ आत्मविश्वास और निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करता है। राजनीति में दण्ड देने और साहस से सरकार चलाने वाला कारक ग्रह मंगल ही है। अगर अन्य ग्रह साथ दें तो मंगल प्रबल होकर व्यक्ति को राजनीति के क्षेत्र में ज़रूर लेकर जाता है।

05. लग्नेश- लग्नेश या लग्न का स्वामी किसी भी कुंडली का आधारस्तम्भ होता है। अगर लग्नेश बली हों तो सभी राजयोग फलित होते हैं। यद्यपि सीधे तौर पर लग्नेश राजनीति में ले जाने वाला ग्रह नहीं है, तथापि यह राजनीति के लिए बनने वाले ग्रह योग को सफल बनाने में महत्वपूर्ण घटक होता है। जब तक लग्नेश बली नहीं होगा तबतक व्यक्ति का संकल्प भी दृढ़ नहीं होगा। वह राजनीति जैसे जोखिम भरे क्षेत्र में जाने से हिचकेगा।

06. भाग्येश- भाग्य के बिना कुछ भी नहीं फलता। यदि कुंडली में भाग्य का स्वामी कमजोर है, तो लाख ग्रह के योग बने हों, वें कभी भी फलित नहीं होंगे। जब भाग्य कमजोर हो तो व्यक्ति कितना भी प्रयास कर ले, राजनीति में नहीं जा पायेगा। और यदि गया भी तो सफलता हासिल नहीं होगी। अतः लग्नेश की तरह भाग्येश का भी मजबूत होना अति आवश्यक है।

07. गुरू बृहस्पति- गुरू ज्ञान और विवेक का कारक ग्रह है। गुरू व्यक्ति को प्रतिष्ठा, सम्मान, गरिमा और सौम्यता देता है। यह व्यक्ति को जिम्मेदार और विश्वसनीय बनाता है। राजनीति में सिर्फ सत्ता हासिल करने से कुछ नहीं होता, बल्कि सत्ता का कुशल संचालन भी उतना ही आवश्यक है। यह कार्य देवगुरू बृहस्पति के आशीर्वाद के बिना सम्भव नहीं है। अतः सफल राजनेता बनने के लिए देवगुरु बृहस्पति का भी प्रबल होना अत्यंत आवश्यक है।

08. बुध- एक सफल राजनेता के लिए बुध ग्रह का भी मजबूत होना आवश्यक है। बुध तीक्ष्ण बुध्दि, विवेक और कम्युनिकेशन का कारक ग्रह है। जब तक बुध बली नहीं होगा, व्यक्ति जनता के बीच अपनी आवाज़ नहीं पहुंचा सकेगा। अच्छा बुध एक अच्छा वक्ता भी बनाता है। राजनीति में सफल होने के लिए उचित समय पर सही निर्णय लेना, अपनी बात को जनता तक पहुंचाना, सूझबूझ और समझदारी से कठिन परिस्थितियों से लड़ने की क्षमता बुध ग्रह के अच्छा होने से ही प्राप्त होती है। अतः एक अच्छा बुध ग्रह भी राजनीति के लिए आवश्यक है।

उपर्युक्त आलेख में मैंने राजनीति के लिए विचारणीय ग्रहों का विश्लेषण किया है। अन्य विद्वान ज्योतिषियों का विमर्श मुझसे भिन्न हो सकता है। कृपया कमेंट के ज़रिए अपने सुझाव अवश्य दें।

धन्यवाद और आभार।

– ऐस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव

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Planets that make an ordinary person a successful politician (Hindi & English)

Om-Shiva
Many of us have a strong desire to go into politics and become a successful politician. The planets in the person’s birth chart are also responsible for this. Let us try to know which major planets take a person into politics and make him a successful politician. Almost all planets play their role in motivating a person to go into politics. But mainly Sun, Mercury, Saturn, Rahu, Jupiter and Mars are considered. Along with this, Lagnesh and Bhagyesh also play a big role.

01. Sun – In the era of earlier kings, the Sun planet was considered to be the factor of royal power or the symbol of the king i.e. the supreme power. But in today’s current era, the place which is of the king has become the place of the politician, government or power. Therefore, the Sun is considered first for this. In politics, the main factor of the President, Prime Minister, Chief Minister, Party Chief and the highest posts in the government is the Sun. In this way the King of the planets also has a major role in ruling the Earth.

02. Saturn- After the Sun, the second most important place is of Lord Saturn. Saturn is considered to be the symbol of democracy. In the present era, democracy is present in most countries, so due to this reason the role of Saturn also increases. Apart from this, Saturn is also a factor of popularity among the servants, subordinates, party workers and the public associated with the party. If Saturn is strong and in an auspicious position in the birth chart, then the person wins the election with the support of the public and comes to power.

03. Rahu- Rahu is also a major planet that takes one to politics. Rahu teaches a person tricks and tactics and also makes him a good diplomat. Politics is a field where a person has to be cunning and cunning along with being practical. In politics, all the policies of Sam, Daam, Dand and Bhed work. Where other policies fail, only the policy of deception works. Rahu provides the wisdom of deep deception and diplomacy.

04. Mars- A politician should have the courage and ability to take risks. In this field, many times decisions have to be taken which have many dangers and risks hidden in them. Mars gives a person strong self-confidence and the ability to take decisions. In politics, Mars is the planet that punishes and runs the government with courage. If other planets support, Mars becomes strong and definitely takes the person to the field of politics.

05. Lagnesh- Lagnesh or the lord of Lagna is the pillar of any horoscope. If Lagnesh is strong, all Rajyogas are fruitful. Although Lagnesh is not a planet that directly takes one to politics, it is an important factor in making the planetary yoga formed for politics successful. Until Lagnesh is strong, the resolve of the person will not be strong. He will hesitate to go into a risky field like politics.

06. Bhagyesh- Nothing is fruitful without luck. If the lord of luck is weak in the horoscope, then no matter how much effort is made by the planets, they will never be fruitful. When luck is weak, no matter how much effort a person makes, he will not be able to go into politics. And even if he goes, he will not achieve success. Therefore, like Lagnesh, it is very important for Bhagyesh to be strong.

07. Guru Jupiter- Guru is the planet of knowledge and wisdom. Guru gives prestige, respect, dignity and gentleness to a person. It makes a person responsible and trustworthy. In politics, nothing happens just by gaining power, but efficient management of power is also equally important. This work is not possible without the blessings of Devguru Jupiter. Therefore, to become a successful politician, it is very important for Devguru Jupiter to be strong.

08. Mercury- For a successful politician, it is necessary for Mercury to be strong. Mercury is the planet of sharp intelligence, discretion and communication. Unless Mercury is strong, a person will not be able to reach his voice among the public. A good Mercury also makes a good speaker. To be successful in politics, taking the right decision at the right time, reaching your point to the public, the ability to fight difficult situations with wisdom and understanding is achieved only when Mercury is good. Therefore, a good Mercury is also necessary for politics.

In the above article, I have analyzed the planets to be considered for politics. The discussion of other learned astrologers may be different from mine. Please give your suggestions through comments.

Thanks and gratitude.

– Astro Richa Srivastava

ऐसा करेंगे तो बुध ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

ऐसा करेंगे तो बुध ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हमारे नवग्रहों में सबसे छोटे ग्रह बुध हैं। ज्योतिष शास्त्र में बुध ग्रह को ग्रहों का राजकुमार माना गया है। बुध ग्रह सूर्य ग्रह के सर्वाधिक निकट हैं, इसलिए यह आधा गर्म और आधा ठंडा बने रहते हैं। इसी बीच के तापमान के कारण यहां जीवन संभव नहीं है। जो भी वस्तु बीच में अर्थात केंद्र में होगी वह बुध ग्रह को दर्शाती है। बुध ग्रह को बुद्धि का देवता भी कहा गया है। यह द्विस्वभाव वाला ग्रह है। काल पुरुष की कुंडली में चंद्र राशि मिथुन(3) एवम चंद्र राशि कन्या(6) पर बुध ग्रह का स्वामित्व होता है। बुध ग्रह कन्या राशि में उच्च स्वभाव को धारण करते हैं तथा मीन राशि(12) में नीच स्वभाव को धारण करते हैं। बुध ग्रह उत्तर दिशा के स्वामी माने जाते हैं। सूर्य ग्रह तथा शुक्र ग्रह इनके परम मित्र माने जाते हैं। मंगल ग्रह और चंद्रमा ग्रह से बुध ग्रह परम शत्रुता रखते हैं। बृहस्पति ग्रह और शनि ग्रह ना मित्रों की गणना में आते हैं और ना ही शत्रुओं की गणना में आते हैं। अर्थात यह दोनों ग्रह बुध ग्रह के लिए सम ग्रह आते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बुध ग्रह की महादशा 17 वर्षों तक चलायमान रहती है। यह हरित ऊर्जा से जन्मी खुशहाली के भी कारक बने रहते हैं। बुध ग्रह के ऊर्जा गुणों से प्रभावित जातक हर बात पर हंसना, सम्मुख जातक से स्वयं से ही बोलना तथा हर बात पर मजाक करते रहना दिल से पसंद करते हैं। हमारे शरीर में समस्त नसों के कारक भी बुध ग्रह ही होते हैं। बुध ग्रह व्यापार को भी दर्शाते हैं इसलिए यह एक सफल व्यापारी बनने की क्षमता भी प्रदान करते हैं। बुध ग्रह हमारे शरीर में त्वचा का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। बुध ग्रह जितने अच्छे होंगे उतना ही जातक में ज्ञान ग्रहण करने की क्षमता प्रबल होगी। बुध ग्रह एकमात्र ऐसे ग्रह हैं जो जातक को किसी भी परिस्थिति में ढलने की कला एवम क्षमता को प्रदान करते हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जातक का उत्तम व्यापार, उसकी छोटी और बड़ी बहनें, उसके परिवार में बुआ, उसके व्यापार से संबंधित अकाउंट, उसके जीवन में गणित विद्या की जानकारी, तथा ज्योतिष विद्या में गहरी गणनाएं बुध ग्रह की शक्ति में ही निहित होती हैं। ज्योतिष विद्या में बुध ग्रह अपने इन विशिष्ट गुणों के साथ में जिस भी ग्रह के साथ कुंडली में बैठता है तो उसके भी फल प्रदान करता रहता है। यह ग्रह तो छोटा सा ही है लेकिन इसका स्वभाव अति तेज और तर्रार है। ज्योतिष विद्या में 27 नक्षत्रों में से बुध ग्रह को आश्लेषा नक्षत्र, ज्येष्ठा नक्षत्र तथा रेवती नक्षत्र का स्वामि पद प्राप्त है। ऐसे जातक जिनका बुध ग्रह बली होता है वें संवाद तथा संचार के क्षेत्रों में निश्चित सफलता प्राप्त करते जाते हैं। बुध ग्रह से प्रभावित जातक हास्य और विनोद के वातावरण में अधिक अच्छा महसूस करते हैं। ऐसे जातक तीव्र बुद्धि के स्वामी, कूटनीतिज्ञ और राजनीति के क्षेत्रों में कुशल व्यवहार के स्वामी होते हैं। जातक के शरीर में नसों का दिखाई देना भी बुध ग्रह का ही प्रभाव है। बुध ग्रह की सौम्यता जातक को शिल्प कला के क्षेत्रों का हुनर भी प्रदान करती है। तथा आगे चलकर इन्हीं क्षेत्रों का पारखी भी बनाती है। आइए अब हम जानते हैं कि ऐसी कौन सी गलतियां हैं जिनके कारण से हमारा बुध ग्रह हमें अच्छे और शुभ प्रभाव नहीं देता है।

07 गलतियां जो आपके बुध ग्रह को हमेशा के लिए खराब कर देंगी

01. रसोई में मिट्टी के मटके को खाली रखना और 1 वर्ष पुराने मटके को पुनः प्रयोग में लाना।
02. अपनी पुत्री को केवल दूसरे घर की अमानत समझकर उसका लालन-पोषण करना।
03. बिना अर्थ के लगातार हमेशा झूठ बोलना और गूंगे दिव्यांग या जिनकी जुबान थथलाती हो और जो हकलाकर बोलते हों उनका मजाक बनाना।
04. भाई सामान मित्र से व्यर्थ का झगड़ा करना या उससे बुरी भावना रखते हुए पैसे मांगना और सामर्थ्य होते हुए भी उसके पैसे नहीं लौटाना।
05. बुधवार के दिन बिना जांच पड़ताल किए पैसे उधार देना और अकारण अधिक रात्रि के समय सिर धोना या सिर में तेल से मालिश करना।
06. किसी भी रूप में छोटी कन्याओं या किन्नर समाज को बहुत बुरे ढंग से अपशब्द कहना।
07. घर में तिज़ोरी या गुल्लक का ना होना। स्वयं की छोटी बहन पर हाथ उठाना या लात मारना।
– गुरु सत्यराम
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If you do this, mercury can be bad for your whole life (Hindi & English)

According to Jyotish Shastra, Mercury is the smallest planet among our nine planets. In Jyotish Shastra, Mercury is considered the prince of planets. Mercury is the closest to the Sun, so it remains half hot and half cold. Life is not possible here due to the temperature in between. Whatever object is in the middle, that is, in the center, represents Mercury. Mercury is also called the god of wisdom. It is a planet with dual nature. In the horoscope of Kaal Purush, Mercury owns the Moon sign Gemini (3) and the Moon sign Virgo (6). Mercury has a high nature in Virgo and a low nature in Pisces (12). Mercury is considered the lord of the north direction. Sun and Venus are considered its best friends. Mercury has extreme enmity with Mars and Moon. Jupiter and Saturn are neither counted as friends nor as enemies. That is, both these planets are equal planets for Mercury. According to astrology, the Mahadasha of Mercury lasts for 17 years. It also remains the factor of happiness born from green energy. The people influenced by the energy qualities of Mercury like to laugh at everything, talk to themselves and keep joking about everything. Mercury is also the factor of all the nerves in our body. Mercury also represents business, hence it also provides the ability to become a successful businessman. Mercury also represents the skin in our body. The better the Mercury is, the stronger will be the ability of the person to acquire knowledge. Mercury is the only planet that provides the person with the art and ability to adapt to any situation.
According to astrology, the native’s good business, his younger and elder sisters, his aunt in the family, accounts related to his business, his knowledge of mathematics in his life, and deep calculations in astrology are all inherent in the power of Mercury. In astrology, Mercury gives the results of the planet with which it sits in the horoscope with these special qualities. This planet is small but its nature is very sharp and agile. In astrology, out of the 27 constellations, Mercury is the lord of Ashlesha constellation, Jyeshtha constellation and Revati constellation. Such natives whose Mercury is strong, achieve definite success in the fields of dialogue and communication. Natives influenced by Mercury feel better in an environment of humor and humour. Such natives are the owners of sharp intellect, diplomats and are skilled in politics. The presence of veins in the body of the native is also the effect of Mercury. The gentleness of Mercury also provides the native with the skill of craftsmanship. And later on, it also makes him an expert in these fields. Let us now know what are the mistakes due to which our planet Mercury does not give us good and auspicious effects.

07 Mistakes that will spoil your Mercury forever

01. Keeping an empty earthen pot in the kitchen and reusing a 1 year old pot.
02. Raising your daughter as if she is a trust of another house.
03. Constantly lying without any reason and making fun of dumb disabled people or those whose tongue trembles and who speak with a stammer.
04. Fighting with a friend who is like a brother for no reason or asking for money from him with bad intentions and not returning the money despite having the ability.
05. Lending money on Wednesday without any investigation and washing your head or massaging your head with oil late at night without any reason.
06. Using very bad words against small girls or transgender community in any form.
07. Not having a safe or a piggy bank in the house. Raising hands or kicking your own younger sister.
– Guru Satyaram

जन्मकुंडली में कालसर्प दोष (Hindi & English)

जन्मकुंडली में कालसर्प दोष (Hindi & English)

आजकल सोशल मीडिया और पत्र-पत्रिकाओं में कालसर्प दोष या योग की बहुत चर्चा है। अनेक ज्योतिषियों द्वारा इस योग की चर्चा करते और इसके विभिन्न उपायों को बताते देखा-सुना जा रहा है। आइए हम जानते हैं कि कालसर्प दोष की मूलभूत जानकारी क्या है?

क्या है कुंडली में कालसर्प दोष का अर्थ?

कालसर्प दो शब्दों से मिलकर बना है, काल और सर्प। काल अर्थात राहु और सर्प अर्थात केतु।

हमारे ग्रन्थों में कहा जाता है कि-

“राहुतः केतुमध्ये आगच्छन्ति यदा ग्रहा:।
कालसर्पस्तु योगोयं कथितम पूर्वसुरभि:।।

अर्थात – यदि किसी व्यक्ति के जन्मकाल के समय समस्त ग्रह राहु तथा केतु के मध्य आ जाते हैं तो कालसर्प योग का निर्माण होता है। इस योग को सर्वाधिक अशुभ योगों में से एक माना जाता है। जिनकी कुंडली में यह योग बनता है, उनके जीवन में काफी उतार-चढ़ाव और संघर्ष आता है। इस योग से पीड़ित जातकों के जीवन में कष्टों का आधिक्य, रोग, संघर्ष, संतानहीनता, धन की कमी, असफलता आदि अशुभ प्रभाव इस योग के फलस्वरूप देखने में आते हैं। लेकिन यदि कुंडली में कालसर्प योग के अतिरिक्त सकारात्मक ग्रह अधिक हों तो व्यक्ति उच्च पदाधिकारी भी बनता है लेकिन परिश्रम और संघर्ष के बाद। और यदि नकारात्मक ग्रह अधिक प्रभावशाली हों तो जीवन अत्यंत कठिन और संघर्षमय बन जाता है।

कालसर्प दोष के कितने प्रकार होते हैं?

कालसर्प दोष 288 प्रकार के होते हैं। क्योंकि 12 राशियों में 12 प्रकार के कालसर्प दोष (12×12=144) तथा 12 लग्नों में 12 प्रकार के कालसर्प दोष (12×12=144)। दोनों का कुल योग अर्थात 288 प्रकार के कालसर्प दोष हुए।

उपर्युक्त 288 प्रकार के कालसर्प दोषों में भी 12 प्रमुख प्रकार के दोष इस प्रकार से हैं।

01. अनन्त कालसर्प दोष

जब कुंडली के प्रथम भाव में राहु हों और सप्तम भाव में केतु हों तब इस योग का निर्माण होता है। इस योग से प्रभावित होने वाले जातक को शारीरिक और मानसिक परेशानी उठानी पड़ती है। कभी-कभी सरकारी और अदालती मामलों में भी फंसना पड़ता है। इस योग की सकारात्मक बात यह है कि इस योग वाला जातक साहसी, निडर, स्वाभिमानी और स्वतंत्र विचारों वाला होता है।

02. कुलिक कालसर्प दोष

जब कुंडली के दूसरे भाव में राहु हों और आठवें भाव में केतु हों तब कुलिक नाम का कालसर्प दोष का निर्माण होता है। इस योग से पीड़ित व्यक्ति को आर्थिक कष्ट भोगना पड़ता है। उसकी पारिवारिक स्थिति कलहपूर्ण और संघर्षपूर्ण होती है। सामाजिक तौर पर भी जातक की स्थिति इतनी अच्छी नही रहती है।

03. वासुकि कालसर्प दोष

जब तीसरे भाव में राहु हों और नवम भाव में केतु हों तब वासुकि नामक कालसर्प दोष बनता है। इस योग में पीड़ित व्यक्ति के जीवन में लगातार संघर्ष बना रहता है। प्रायः भाई बहनों से सम्बंध खराब रहते हैं और यात्राओं में भी कष्ट उठाना पड़ता है। नौकरी व्यवसाय में भी परेशानी बनी रहती है।

04. शंखपाल कालसर्प दोष

जब कुंडली के चतुर्थ भाव में राहु हों और दशम भाव में केतु हों तब यह शंखपाल नाम का योग बनता है। इस दोष से पीड़ित होने पर व्यक्ति को घर के सुखों में कमी होती है। व्यक्ति को आर्थिक तंगी होना, मानसिक तनाव रहना, माता के सुखों में कमी रहना तथा जमीन-जायदाद आदि मामलों में कष्ट भोगना पड़ता है।

05. पदम् कालसर्प दोष

जब कुंडली के पंचम भाव में राहु हों और एकादश भाव में केतु हों तब यह कालसर्प दोष बनता है। प्रायः इस दोष में जातक को अपयश, लाभों में कमी, शिक्षा में बाधा और सन्तान सुखों में कमी आदि की समस्या बनी रहती है। अक्सर वृद्धावस्था में सन्यास की ओर प्रवित्त होना भी इस योग के प्रभाव से देखा जा सकता है।

06. महापद्म कालसर्प दोष

जब कुंडली के छठे भाव में राहु हों और द्वादश भाव में केतु हों तब इस योग का निर्माण होता है। इस योग के कारण व्यक्ति को मामा की तरफ से कष्ट, रोग और ऋण से परेशानी, निराशा के कारण दुर्व्यसनों का शिकार हो जाना आदि समस्याएं होतीं हैं। इन्हें काफी समय तक शारीरिक कष्ट भोगना पड़ता है।

07. तक्षक कालसर्प दोष

जब कुंडली के सप्तम भाव में राहु हों और प्रथम भाव में केतु हों तो तक्षक नाम का दोष उतपन्न होता है। इस योग में वैवाहिक जीवन उथल-पुथल भरा होता है। कारोबार, व्यवसाय में साझेदारी लाभप्रद नहीं होती और यह मानसिक परेशानी देती है। ऐसे जातकों का प्रेम जीवन प्रायः असफल ही रहता है।

08. कर्कोटक कालसर्प दोष

जब कुंडली के आठवें भाव में राहु हों और दूसरे भाव में केतु हों तो इस प्रकार का योग बन जाता है। इस योग में व्यक्ति को कुटुंब सम्बंधित अनेक परेशानी उठानी पड़ती है। ऐसे कुंडली वाले लोगों का धन स्थिर नहीं रह पाता और गलत कार्यों में धन खर्च होता है।

09. शंखचूड़ कालसर्प दोष

जब कुंडली के नवम भाव में राहु हों और तृतीय भाव में केतु हों तब इस दोष का निर्माण होता है। इस योग से प्रभावित व्यक्ति को भाग्य का साथ कम मिलता है। उसे सुखों की प्राप्ति काफी कम होती है। इन्हें पिता से प्राप्त सुखों में भी बाधा आती है तथा इनकी धार्मिक प्रवृत्ति कम होती है।

10. घातक कालसर्प दोष

जब कुंडली के दशम भाव में राहु हों और चतुर्थ भाव में केतु हों तो यह घातक नामक कालसर्प दोष बनता है। प्रायः कहा जाता है कि व्यक्ति अपने पूर्व जन्म का कोई श्राप भोग रहा होता है। इस योग से परिवार और रोजगार में लगातार परेशानी बनी रहती है और व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित बना रहता है।

11. विषधर कालसर्प दोष

जब कुंडली के एकादश भाव में राहु हों और पंचम भाव में केतु हों तब इस योग का निर्माण होता है। इस योग से प्रभावित व्यक्ति को सन्तान सम्बन्धी कष्ट बना रहता है। इनकी स्मरणशक्ति अच्छी नहीं होती और विवेक की भी कमी रहती है। शिक्षा में रुकावट, मान सम्मान में कमी इस योग के प्रमुख लक्षण हैं।

12. शेषनाग कालसर्प दोष

जब कुंडली के द्वादश भाव में राहु हों और छठे भाव में केतु उपस्थित हों तो इस दोष का निर्माण होता है। इस योग में व्यक्ति के कई गुप्त शत्रु रहते हैं और उसके खिलाफ षड्यंत्र रचते रहते हैं। मुकदमें, जेलयात्रा, सरकारी दंड, अनर्गल खर्चे, मानसिक अशांति और बदनामी भी इस योग में झेलनी पड़ सकती है। लेकिन अक्सर ऐसे जातकों को मृत्यु के बाद ख्याति मिलती है।

इस प्रकार से देखा जाए तो कालसर्प दोष व्यक्ति के जीवन में भाग्य को बाधित कर देते हैं, जिसके कारण जातक के जीवन में इस जन्म के तथा पूर्व जन्म में किये गए पाप कर्मों का प्रभाव बढ़ जाता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को कालसर्प दोष निवारण साधना, मन्त्र जाप, अनुष्ठान, तर्पण, दान और पितृ मुक्ति क्रिया अवश्य करानी चाहिए।

आपको मेरा यह आलेख कैसा लगा? कृपया टिप्पणी के माध्यम से ज़रूर बताएं।

धन्यवाद और आभार।

– ऐस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव

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Kaal Sarp Dosh in Birth Chart (Hindi & English)

Nowadays there is a lot of discussion about Kaal Sarp Dosh or Yog in social media and newspapers. Many astrologers are seen discussing this Yog and giving various remedies for it. Let us know what is the basic information about Kaal Sarp Dosh?

What is the meaning of Kaal Sarp Dosh in Kundali?

Kaal Sarp is made up of two words, Kaal and Sarp. Kaal means Rahu and Sarp means Ketu.

It is said in our scriptures that-

“Rahut Ketu madhye aagchanti yada graha.

Kaalsarpastu yogayam chhattam purvasurbhi.

Meaning – If at the time of birth of a person all the planets come between Rahu and Ketu then Kaalsarpa Yog is formed. This Yog is considered to be one of the most inauspicious Yog. Those in whose kundali this Yog is formed, their life faces a lot of ups and downs and struggle. The inauspicious effects of this Yog are seen in the lives of the people suffering from this Yog like excess of sufferings, diseases, struggles, childlessness, lack of money, failure etc. But if there are more positive planets in the kundali apart from Kaalsarpa Yog then the person also becomes a high official but after hard work and struggle. And if the negative planets are more influential then life becomes extremely difficult and full of struggle.

How many types of Kalsarp Dosh are there?

There are 288 types of Kalsarp Dosh. Because there are 12 types of Kalsarp Dosh in 12 zodiac signs (12×12=144) and 12 types of Kalsarp Dosh in 12 ascendants (12×12=144). The total of both means 288 types of Kalsarp Dosh.

Among the above 288 types of Kalsarp Dosh, the 12 main types of dosh are as follows.

01. Anant Kalsarp Dosh

When Rahu is in the first house of the horoscope and Ketu is in the seventh house, then this yoga is formed. The person affected by this yoga has to face physical and mental problems. Sometimes he has to get stuck in government and court cases also. The positive thing about this yoga is that the person with this yoga is courageous, fearless, self-respecting and has independent thoughts.

02. Kulik Kaal Sarp Dosh

When Rahu is in the second house of the horoscope and Ketu is in the eighth house, then a Kaal Sarp Dosh named Kulik is formed. The person suffering from this Yog has to suffer financial difficulties. His family situation is quarrelsome and full of conflict. Socially also the person’s condition is not so good.

03. Vasuki Kaal Sarp Dosh

When Rahu is in the third house and Ketu is in the ninth house, then a Kaal Sarp Dosh named Vasuki is formed. In this Yog, there is constant struggle in the life of the affected person. Usually, relations with siblings are bad and one has to face troubles in travels. There are also problems in job and business.

04. Shankhpal Kaal Sarp Dosh

When Rahu is in the fourth house of the horoscope and Ketu is in the tenth house, then this Yog named Shankhpal is formed. When a person is suffering from this Dosh, there is a decrease in the happiness of the house. The person has to face financial crisis, mental stress, lack of happiness from the mother and has to suffer in matters related to land and property etc.

05. Padma Kaal Sarp Dosh

When Rahu is in the fifth house of the horoscope and Ketu is in the eleventh house, then this Kaal Sarp Dosh is formed. Usually, the native of this dosha faces problems like infamy, reduction in profits, hindrance in education and reduction in happiness of children etc. Often, turning towards sanyaas in old age can also be seen due to the effect of this yoga.

06. Mahapadma Kaal Sarp Dosh

When Rahu is in the sixth house of the horoscope and Ketu is in the twelfth house, then this yoga is formed. Due to this yoga, the person has to face problems like trouble from maternal uncle’s side, disease and debt, falling prey to bad habits due to despair, etc. They have to suffer physical pain for a long time.

07. Takshak Kaal Sarp Dosh

When Rahu is in the seventh house of the horoscope and Ketu is in the first house, then a dosha named Takshak arises. In this yoga, married life is full of turmoil. Partnership in business is not beneficial and it causes mental troubles. The love life of such people is often unsuccessful.

08. Karkotak Kaal Sarp Dosh

When Rahu is in the eighth house of the horoscope and Ketu is in the second house, then this type of yoga is formed. In this yoga, the person has to face many problems related to the family. The wealth of people with such horoscope does not remain stable and the money gets spent in wrong works.

09. Shankhachud Kaal Sarp Dosh

This dosh is formed when Rahu is in the ninth house of the horoscope and Ketu is in the third house. The person affected by this yoga gets less support from luck. He gets very less pleasures. They also face obstacles in the pleasures received from their father and their religious tendency is less.

10. Ghatak Kaal Sarp Dosh

When Rahu is in the tenth house of the horoscope and Ketu is in the fourth house, then this Ghatak Kaal Sarp Dosh is formed. It is often said that the person is suffering from some curse of his previous birth. Due to this yoga, there is constant trouble in family and employment and the mental health of the person also remains affected.

11. Vishdhar Kaal Sarp Dosh

This yoga is formed when Rahu is in the eleventh house of the horoscope and Ketu is in the fifth house. The person affected by this yoga has problems related to children. Their memory power is not good and there is also lack of discretion. Obstacles in education, lack of respect are the main symptoms of this yoga.

12. Sheshnag Kaal Sarp Dosh

When Rahu is present in the 12th house of the horoscope and Ketu is present in the 6th house, then this dosh is formed. In this yoga, the person has many secret enemies and they keep plotting against him. In this yoga, one may have to face lawsuits, jail, government punishment, unnecessary expenses, mental unrest and defamation. But often such people get fame after death.

In this way, Kaal Sarp Dosh obstructs the luck in a person’s life, due to which the effect of sins done in this birth and previous birth increases in the life of the person. Therefore, every person must do Kaal Sarp Dosh Nivaran Sadhna, Mantra Jaap, Anushthan, Tarpan, Daan and Pitru Mukti Kriya.

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– Astro Richa Srivastava