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Author: Guru Satyaram

ऐसा करेंगे तो केतू ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

ऐसा करेंगे तो केतू ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

भारतीय वैदिक सनातन ज्योतिष में केतुग्रह को एक अशुभ ग्रह माना जाता है। लेकिन ऐसा भी कहना सही नहीं है कि केतुदेव के द्वारा जातक को हमेशा ही बुरे फल प्राप्त होते हैं। केतुग्रह के द्वारा जातक को अत्यधिक शुभ फल भी प्राप्त होते हैं। यह एकमात्र ग्रह आध्यात्म मार्ग, वैराग्य प्रणाली, मोक्ष निष्ठा, सात्विक तांत्रिक क्रियाओं आदि का कारक होता है। ज्योतिष विद्या में केतुग्रह को किसी भी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है। लेकिन धनु(9) राशि केतुदेव की उच्च राशि होती है, जबकि मिथनु(3) राशि में यह ग्रह नीच भाव को प्राप्त होता है। वहीं 27 नक्षत्रों में केतुग्रह अश्विनी नक्षत्र, मघा नक्षत्र और मूल नक्षत्र के स्वामी होते हैं। राहुग्रह की भांति यह भी एक छाया ग्रह है। वैदिक शास्त्रों के अनुसार केतुग्रह स्वरभानु राक्षस का धड़ है। जबकि इसके सिर वाले भाग को राहु कहा जाता है।

सनातन ज्योतिष विद्या के अनुसार केतुग्रह व्यक्ति के जीवन क्षेत्र तथा समस्त सृष्टि को भी प्रभावित करता है। राहुदेव और केतुदेव दोनों लग्न जन्म कुण्डली में कालसर्प नामक दोष का निर्माण करते हैं। वहीं आकाश मंडल में केतुदेव का प्रभाव वायव्य कोण नामक दिशा में माना गया है। कुछ अनुभवी ज्योतिष विद्वानों का ऐसा मानना है कि केतुग्रह की कुछ विशेष परिस्थितियों के कारण जातक अपने जीवन में यश के शिखर तक अवश्य पहुँच सकता है। राहुदेव और केतुदेव के कारण सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण होता है।

जैसा की स्पष्ट है कि जब केतुग्रह की कोई निश्चित राशि नहीं होती इसलिए केतुग्रह जिस भी राशि में बैठता है वह उसी के अनुरूप फल देता है। इसलिए केतुग्रह का प्रथम भाव अथवा लग्न में फल को वहाँ स्थित राशि पूर्णतः प्रभावित करती है। कुछ ज्योतिष विद्वानों का ऐसा भी मानना है कि कुंडली में प्रथम भाव का केतुग्रह जातक को साधू बना देता है। यह जातकों को कलयुग के समस्त भौतिक सुखों से बहुत दूर ले जाता है। इसके विषम प्रभाव से जातक केवल अकेले रहना ही पसंद करता है। वहीं दूसरी तरफ यदि लग्न(प्रथम) भाव में वृश्चिक(8) राशि हो तो जातक को इसके सम और सकारात्मक प्रभाव एवम परिणाम भी देखने को मिलते हैं।

केतुग्रह के अत्यधिक पीड़ित होने से जातक को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जातक के सामने अचानक कोई न कोई बाधा अवश्य आ ही जाती है। जातक किसी भी कार्य के लिए जो निर्णय लेता है तो उसमें उसे अपने स्वयं के निर्णयों के प्रति ही असफलता का सामना करना पड़ता है। केतुग्रह के कमज़ोर होने पर जातकों के पैरों में कमज़ोरी अवश्य आती है। पीड़ित केतुग्रह के कारण जातक को अपने नाना और मामा का प्यार नहीं मिल पाता है अर्थात, या तो मनमुटाव हो जाते हैं या शारीरिक दूरियां बढ़ जाती हैं। आइए अब जानते हैं वह 07 गलतियां जो आपके केतुग्रह को हमेशा के लिए खराब कर देंगी।

07 गलतियां जो आपके केतू ग्रह को हमेशा के लिए खराब कर देंगी

01. बहुत लंबे समय तक व्यर्थ में किसी भी व्यक्ति को लेकर उनके पीठ पीछे उनकी बुराई करते रहना।

02. आचार, खट्टी – मीठी नमकीन या किसी भी तरह के खट्टे खाद्य पदार्थों को उपहार रूप में भेंट करना।

03. बहुत लंबे समय तक छाती के बल रात्रि शयन करना या रात्रि शयन से पूर्व व्यर्थ में विलाप करना।

04. घर में या घर से बाहर कुत्तों को कष्ट देना। घर के पालतू कुत्ते का स्थान घर की छत पर बना देना।

05. उत्तम गुरु के मार्गदर्शन के अभाव में अपनी इच्छा से किसी भी मंत्र को जपना शुरू कर देना, हवन करना या नवग्रहों के उपाय करना।

06. गुरु मार्गदर्शन के अभाव में या बगैर ग्रहों की जांच करवाए निः संतान व्यक्ति की जमीन खरीदना, मकान खरीदना या किसी भी प्रकार की प्रॉपर्टी का लेन देन करना।

07. बहुत लंबे समय तक घर की खाट को उल्टा खड़ा करना। गौमाता को झूठा, बासी, बचा हुआ या उतारे की सामग्री खिलाते रहना।

-गुरु सत्यराम

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If you do this, Ketu Graha can be bad for life (Hindi & English)

In Indian Vedic Sanatan Astrology, Ketu Graha is considered an inauspicious planet. But it is not right to say that the native always gets bad results from Ketu Dev. The native also gets extremely auspicious results from Ketu Graha. This is the only planet that is a factor of spiritual path, asceticism system, Moksha devotion, Satvik Tantric activities etc. In astrology, Ketu Graha does not have ownership of any zodiac sign. But Sagittarius (9) is the high zodiac sign of Ketu Dev, while this planet gets the low house in Gemini (3) zodiac. At the same time, among the 27 constellations, Ketu Graha is the lord of Ashwini constellation, Magha constellation and Mool constellation. Like Rahu Graha, it is also a shadow planet. According to Vedic scriptures, Ketu Graha is the torso of Swarbhanu demon. While its head part is called Rahu.

According to Sanatan Jyotish Vidya, Ketu Graha affects the life sphere of a person and the entire universe. Both Rahu and Ketu create a defect called Kalsarp in the Lagna Janam Kundali. Whereas in the sky, the effect of Ketu is considered to be in the direction called Vayavya Kon. Some experienced astrology scholars believe that due to some special circumstances of Ketu Graha, the native can definitely reach the peak of fame in his life. Solar eclipse and lunar eclipse occur due to Rahu and Ketu.

As it is clear that when Ketu Graha does not have any fixed zodiac sign, so whatever zodiac Ketu Graha sits in, it gives results according to that. Therefore, the results of Ketu Graha in the first house or Lagna are completely affected by the zodiac sign present there. Some astrology scholars also believe that Ketu Graha in the first house in the horoscope makes the native a sadhu. It takes the natives far away from all the material pleasures of Kaliyug. Due to its adverse effect, the native only likes to stay alone. On the other hand, if Scorpio (8) is in the Lagna (1st) Bhav, then the native gets to see its equal and positive effects and results.

Due to the extreme affliction of Ketu Graha, the native has to face many types of problems. Suddenly some obstacle definitely comes in front of the native. Whatever decision the native takes for any work, he has to face failure in his own decisions. When Ketu Graha is weak, the native definitely gets weakness in his legs. Due to the afflicted Ketu Graha, the native does not get the love of his maternal grandfather and maternal uncle, that is, either there are differences or physical distances increase. Let us now know those 07 mistakes which will spoil your Ketu Graha forever.

07 Mistakes which will spoil your Ketu Graha forever

01. Talking ill about any person behind their back for a very long time in vain.

02. Presenting pickles, sweet-sour namkeen or any sour food items as gifts.

03. Sleeping on the chest for a very long time at night or lamenting in vain before going to sleep at night.

04. Hurting dogs inside or outside the house. Make the place of the pet dog on the roof of the house.

05. In the absence of the guidance of a good Guru, starting to chant any mantra of your own will, performing havan or doing remedies for the nine planets.

06. Buying land, buying a house or any kind of property transaction of a childless person in the absence of Guru’s guidance or without getting the planets checked.

07. Standing the cot of the house upside down for a very long time. Feeding leftover, stale, leftover or udara material to the cow.

-Guru Satyaram

ऐसा करेंगे तो राहु ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

ऐसा करेंगे तो राहु ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

वैदिक सनातन ज्योतिष में राहुग्रह को एक पापी ग्रह जाना जाता है। वैदिक ज्योतिष में राहुग्रह को कारक के आधार पर अत्यंत कठोर वाणी, सट्टा/जुआ, निरर्थक यात्राएँ, चोरी की दुषभावना, पापकर्म/दुष्टकर्म, गंभीर त्वचा के रोग, लंबी धार्मिक यात्राएँ आदि का सीधा कारक समझा जाता है। जिस भी जातक की लग्न कुंडली में राहुग्रह अशुभ स्थान पर बैठे हुए हों, या किसी भी अवस्था में पीड़ित हो गए हों तो जातक को इस कारण से अपने पूर्ण जीवन में राहुग्रह के नकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं। ज्योतिष विद्या के अनुसार राहुग्रह को किसी भी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है। लेकिन गोचर और लग्न कुंडली में मिथुन राशि(3) में यह उच्च प्रभावी हो जाता है और धनु राशि(9) में यह नीच प्रभावी हो जाता है।

27 नक्षत्रों में राहुदेव आद्रा नक्षत्र, स्वाति नक्षत्र और शतभिषा नक्षत्रों के स्वामी जाने जाते हैं। ज्योतिष विद्या के अनुसार राहुग्रह को एक छाया ग्रह कहा जाता है क्योंकि यह एक छलावा है। ऐसा इसलिए क्योंकि जब सूर्यदेव और पृथ्वी के बीच जब चंद्रदेव आ जाते हैं और चंद्रदेव का मुख सूर्यदेवकी तरफ होता है तो पृथ्वी पर पड़ने वाली चंद्रमा की छाया राहुग्रह का प्रतिनिधित्व करती है। अर्थात चंद्रमा के कारण ही राहुग्रह को अस्तित्व प्राप्त है लेकिन केवल छाया के रूप में।

वैदिक ज्योतिष के अनुसार जिस भी जातक की लग्न जन्म कुंडली में प्रथम(लग्न) भाव में राहु बैठा होता है तो प्रभाव अनुसार वह जातक सुंदर छवि और आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी होता है। ऐसा जातक कभी भी साहसिक कार्यों से पीछे नहीं हटता है लेकिन कभी कभार अत्यंत डरपोक भी बन जाता है। अगर सामने मजबूत लग्न और लग्न में ही तकतवार मंगल बैठा हुआ हो तो फिर राहु वाला जातक उससे भय भी रखता है। लग्न का राहु व्यक्ति को समाज में प्रभावशाली तो बनाता है लेकिन, सीधे मार्गों से धन कम ही दिलवाता है। हालाँकि इसके प्रभाव बहुत हद तक लग्न में स्थित राशि पर भी निर्भर करते हैं। हालाँकि ज्योतिष परंपरा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि लग्न का राहु व्यक्ति के वैवाहिक जीवन के लिए बिलकुल भी अच्छा नहीं होता है क्योंकि उसकी सीधी दृष्टि सीधे तौर पर सातवें भाव को प्रभावित करती रहती है।

किसी भी जातक की जन्म कुंडली अगर राहुग्रह के द्वारा पीड़ित बनी हुई हो तो जातक को इसके भयंकर नकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं। यह ग्रह जातक के अंदर बुरी एवम पापी भावनाओं और आदतों को पैदा करता है। पापी राहुग्रह के प्रभाव से जातक केवल अपने बारे में ही सोचता है, वह किसी का भी सगा नही होता और सभी के साथ छल, कपट और धोखा करता है और स्वयं को भगवान समझने लग जाता है। ऐसा जातक बेशर्म होकर सभी से पैसे और वस्तुएं मांगता है और धन वापिस करने के समय सभी को केवल परेशानी ही वापिस करता है।

ऐसा व्यक्ति मांस, शराब तथा अन्य मादक पदार्थों का भी सेवन करता है और चरित्रहीन होकर घर से बाहर कई अवैध संबंध भी रखता है। राहुग्रह द्वारा पीड़ित जातक अपनी संगत में आने वाले सभी मित्रजनों को भी अधर्मी बनाने का प्रयास करता रहता है। लेकिन जब कोई सच्चा जातक ऐसे अधर्मी के द्वारा पीड़ित होकर अपने इष्ट के सम्मुख जाकर रो देता है तो फिर इस राहु वाले जातक को अपने पूर्ण जीवन में केवल दरिद्रता ही भोगनी पड़ती है। आइए अब जानते हैं वह 07 गलतियां जो आपके राहु ग्रह को हमेशा के लिए खराब कर देंगी।

07 गलतियां जो आपके राहु ग्रह को हमेशा के लिए खराब कर देंगी।

01. समाज में मौजूद अति गरीब वर्ग के अधिकारों को अपने अहंकार के कदमों तले दबाते रहना। इसमें भी मुख्य विषय रोटी, कपड़ा, मकान ही है।

02. सामर्थ्य होने के बाद भी हमेशा उधार में सभी सामान लेते रहना तथा झूठ का सहारा लेते हुए गरीब मजदूर वर्ग के पैसों को दबाए रखना।

03. हमेशा भोजन जल्दबाजी में ही ग्रहण करते रहना। बहुत अधिक गर्म भोजन को पानी के सहारे से निगलकर ही खाते रहना।

04. बहुत ही छोटी उम्र में अपनी पुत्री का विवाह कर देना तथा केवल व्यर्थ में बोझ मानते हुए बगैर जांच पड़ताल करे पुत्री का विवाह कर देना।

05. केवल आनंद के लिए गर्भपात करवाना। अपनी सामर्थ्य होने के पश्चात भी अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु ससुराल पक्ष में ही रहना या उन पर निर्भर बने रहना।

06. आवश्यकता से अधिक मात्रा में या अधिक लंबे समय तक नींद आने के लिए, सिरदर्द के लिए, पीठ दर्द के लिए, सर्दगर्म के लिए या किसी भी तरह की पेन किलर दवाइयों का सेवन करते रहना।

07. नित्य सूर्य अस्त के पश्चात घर में बहुत अधिक धुआं करना घर की रसोई में अधिक मात्रा में तले हुए भोजन को पकाना।

-गुरु सत्यराम

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If you do this, Rahu can be bad for your whole life (Hindi & English)

In Vedic Sanatan Jyotish, Rahu is known as a sinful planet. In Vedic astrology, Rahu is considered to be a direct factor of harsh speech, speculation/gambling, useless travels, ill intentions of theft, sinful acts/evil deeds, serious skin diseases, long religious journeys etc. on the basis of factors. In the Lagna Kundli of any person, Rahu is sitting in an inauspicious place, or is afflicted in any condition, then due to this reason, the person gets negative results of Rahu in his entire life. According to Jyotish Vidya, Rahu does not have ownership of any zodiac sign. But in the transit and Lagna Kundli, it becomes highly influential in Gemini (3) and lowly influential in Sagittarius (9).

Out of the 27 nakshatras, Rahu is known to be the lord of Adra, Swati and Shatabhisha nakshatras. According to astrology, Rahu is called a shadow planet because it is an illusion. This is because when Chandradev comes between the Sun and the Earth and Chandradev faces the Sun, then the shadow of the Moon falling on the Earth represents Rahu. That is, Rahu exists because of the Moon but only in the form of a shadow.

According to Vedic astrology, the native whose Lagna (ascendant) horoscope has Rahu in the first (ascendant) house, then according to the effect, that native has a beautiful image and an attractive personality. Such a native never backs away from adventurous activities but sometimes becomes very timid. If there is a strong Lagna in front and the powerful Mars is sitting in the Lagna itself, then the native with Rahu is also afraid of it. Rahu in the Ascendant makes a person influential in the society but, it rarely brings wealth through direct means. However, its effects depend to a great extent on the zodiac sign in the Ascendant. However, according to the astrological tradition, it is believed that Rahu in the Ascendant is not good at all for the married life of a person because its direct sight directly affects the seventh house.

If the birth chart of any native is afflicted by Rahu, then the native gets terrible negative results. This planet creates bad and sinful feelings and habits in the native. Due to the influence of sinful Rahu, the native thinks only about himself, he is not related to anyone and cheats, deceives and deceives everyone and starts considering himself as God. Such a native shamelessly asks for money and goods from everyone and at the time of returning the money, he returns only troubles to everyone.

Such a person also consumes meat, alcohol and other intoxicants and being characterless, also has many illegal relationships outside the house. A person suffering from Rahu keeps trying to make all his friends unrighteous. But when a true person gets afflicted by such unrighteous and cries in front of his deity, then this person with Rahu has to suffer only poverty in his entire life. Now let us know those 07 mistakes which will spoil your Rahu planet forever.

07 mistakes which will spoil your Rahu planet forever.

01. Keep suppressing the rights of the very poor class in the society under the feet of your ego. The main topic in this is also roti, kapda, makaan.

02. Always taking all the things on credit despite having the capability and suppressing the money of the poor working class by taking the help of lies.

03. Always eating food in a hurry. Keep eating very hot food by swallowing it with the help of water.

04. Marrying your daughter at a very young age and marrying her off without any investigation, considering it a burden.

05. Getting an abortion done just for pleasure. Living with the in-laws or being dependent on them for fulfilling your daily needs even when you are capable.

06. Consuming medicines in excess or for a longer duration than required for sleep, headache, backache, cold and any kind of painkiller.

07. Making a lot of smoke in the house after sunset every day and cooking fried food in large quantities in the kitchen.

-Guru Satyaram

करवा चौथ पर्व 2024 (Hindi & English)

करवा चौथ पर्व 2024 (Hindi & English)

करवा चौथ का पर्व पतिदेव के सुख और अखंड सौभाग्य हेतु सभी सुहागिन स्त्रियां बड़ी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाती हैं। इस दिन सभी विवाहित स्त्रियां निराहार रहकर अपने पति के दीर्घायु और समृद्धिशाली होने की कामना करते हुए उपवास करतीं हैं और शिव परिवार सहित चन्द्रदेव की पूजा करती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से पतिसुख, सन्तान सुख, धन-धान्य और सौभाग्य में वृद्धि होती है।

01. कब मनाया जाता है करवा चौथ?

करवा चौथ कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन मिट्टी के करवों में गेहूं, दूध, शक्कर, जल, तांबे या चांदी का सिक्का डालते हैं और भगवान का पूजन करते हैं, इसलिए इसे करवा चौथ कहते हैं। वर्ष 2024 में करवा चौथ का व्रत दिन रविवार, 20 अक्टूबर को है। चंद्रोदय मुहूर्त सांय लगभग 07 बजकर 40 मिनट पर होगा।

02. करवा चौथ की धार्मिक मान्यता

नारद पुराण में वर्णन है कि कार्तिक कृष्णपक्ष की चतुर्थी को “करका चतुर्थी” व्रत करने का विधान है। यहां “करका” का अर्थ मिट्टी का एक छोटा पात्र होता है। यह सात्विक व्रत केवल स्त्रियों के लिए है। इसमें स्त्री को स्नानादि के बाद सुंदर वस्त्र और आभूषणों से सुसज्जित होकर भगवान गणेश, शिव और गौरी की पूजा करने का निर्देश दिया गया है।

कहा जाता है कि देवों और असुरों के बीच हुए युद्ध के समय अपने अपने पतियों की रक्षा के लिए सभी देवियों नें ब्रह्माजी से इस व्रत का उपदेश लिया था। वैसे, इस व्रत की परंपरा माता पार्वती ने प्रारंभ की थी। इसके अतिरिक्त महाभारत काल में माता कुंती ने इस व्रत अनुष्ठान को द्रौपदी को सौंपा था। अतः इस व्रत में सुहागिन महिलाएं अपनी सास का आशीर्वाद ज़रूर लेती हैं।

03. पूजन का विधि-विधान

व्रत रखने वाली स्त्री प्रातः काल नित्यकर्मों से निवृत्त होकर, स्नान आदि करके आचमन के बाद व्रत का संकल्प लेती हैं। यह व्रत निराहार ही नहीं बल्कि निर्जला के रूप में करना अधिक फलप्रद माना जाता है। कई स्थानों पर प्रातः व्रत से पहले भोर में सरगी करने का प्रचलन है। यह सरगी सास अपनी बहू को देतीं हैं।। सरगी में फलाहारी खाद्यान्न दिया जाता है।

इस व्रत में शिव दरबार और चन्द्र देव की पूजा करने का विधान है। इनका षोडशोपचार पूजन किया जाता है और मिट्टी के करवों में मिष्ठान, धान्य, दूध, शर्करा आदि भरकर सुहाग की सामग्री की पिटारी रखी जाती है। फिर दिनभर निर्जला व्रत रखकर शाम को चंद्रोदय के समय सभी व्रती महिलाएं व्रत की कथा सुनती हैं और छलनी से चन्द्र दर्शन करके चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं। फिर पूजन आरती करके पति के हाथों अपना व्रत खोलती हैं। फिर अंत में अपनी सास को भेंट देकर उनके पांव छूती है और उनसे अखंड सौभाग्य प्राप्ति का आशीर्वाद लेती हैं।

04. व्रत की कथा

एकं साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। सेठानी सहित उसकी बेटी और बहुओं नें करवा चौथ का व्रत रखा था। रात्रि को साहूकार के लड़के भोजन करने लगे तो उन्होंने अपने बहन से भोजन के करने लिए कहा। बहन ने कहा भाई अभी चांद नहीं निकला है। चांद के निकलने पर अर्घ्य देकर ही भोजन करूंगी। बहन की बात सुनकर भाइयों ने एक काम किया कि नगर से बाहर जाकर अग्नि जला दी और छलनी ले जाकर उसमें से प्रकाश दिखाते हुए उन्होंने बहन से कहा कि देखो बहन, चांद निकल आया है। अर्घ्य देकर के भोजन कर लो।

यह सुनकर उसने अपने भाभियों से कहा की आओ तुम भी चंद्रमा को अर्घ्य दे दो। भाभियों को अपने पतियों की चालाकी का पता था। वह अर्घ्य देने नहीं आई। उन्होंने अपनी ननद को बता दिया कि तेरे भाई तेरे से धोखा करके छलनी से प्रकाश दिखा रहे हैं। फिर भी बहन ने कुछ भी ध्यान ना दिया और छलनी से प्रकाश देखकर अर्घ्य दे दिया। इस प्रकार व्रत भंग करने से गणेशजी बहुत अप्रसन्न हो गए। इसके बाद उसका पति बहुत अधिक बीमार हो गया और उसकी सारी संपत्ति बीमारी में खर्च हो गई।

बाद में जब साहूकार की लड़की को अपने किए हुए दोषों का पता चला तो उसने बहुत पश्चात्ताप किया। फिर गणेशजी से प्रार्थना करते हुए पूर्ण विधि-विधान से पुनः चतुर्थी का व्रत किया और दान-दक्षिणा आदि प्रदान करी। श्रद्धाभक्ति सहित कर्म को देखकर भगवान गणेश उस पर प्रसन्न हुए और पुनः उसके पति को जीवनदान देकर उसे आरोग्य और धन संपत्ति वापस प्रदान कर दी।

प्रस्तुत आलेख में मैनें करवा चौथ के व्रत का एक संक्षिप्त विवरण देने का प्रयास किया है। आशा करती हूँ आप पाठकजनों को यह आलेख पसन्द आया होगा। कृपया कमेंट के ज़रिए अपनी राय अवश्य दें।

आभार और धन्यवाद।

-ऐस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव

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Karva Chauth Festival 2024 (Hindi & English)

All married women celebrate the festival of Karva Chauth with great devotion and faith for the happiness and unbroken good fortune of their husband. On this day, all married women fast by staying without food and wishing for the long life and prosperity of their husband and worship Chandradev along with the Shiva family. It is believed that by observing this fast, there is an increase in husband’s happiness, child happiness, wealth and good fortune.

01. When is Karva Chauth celebrated?

Karva Chauth is celebrated on the Chaturthi Tithi of Krishna Paksha of Kartik month. On this day, wheat, milk, sugar, water, copper or silver coin are put in clay pots and God is worshipped, hence it is called Karva Chauth. In the year 2024, the fasting day of Karva Chauth is on Sunday, October 20. Chandraodaya Muhurta will be at around 07:40 pm.

02. Religious belief of Karva Chauth

It is mentioned in Narada Purana that on the fourth day of Kartik Krishna Paksha, it is prescribed to observe “Karka Chaturthi” fast. Here “Karka” means a small earthen pot. This Satvik fast is only for women. In this, the woman is instructed to worship Lord Ganesha, Shiva and Gauri after bathing and then wearing beautiful clothes and ornaments.

It is said that during the war between the gods and the demons, all the goddesses took the advice of this fast from Brahmaji to protect their husbands. By the way, the tradition of this fast was started by Mother Parvati. Apart from this, during the Mahabharata period, Mother Kunti handed over this fast ritual to Draupadi. ​​Therefore, in this fast, married women definitely take the blessings of their mother-in-law.

03. Method of worship

The woman observing the fast takes a vow of fasting after finishing her daily chores in the morning, taking a bath etc. and sipping water. It is considered more fruitful to observe this fast not only without food but also without water. In many places, there is a practice of having Sargi in the morning before the fast. This Sargi is given by the mother-in-law to her daughter-in-law. Fruit food is given in Sargi.

In this fast, there is a ritual of worshipping Shiv Darbar and Chandra Dev. Their Shodashopachar worship is done and a box of Suhaag items is kept in clay pots filled with sweets, grains, milk, sugar etc. Then after observing Nirjala fast throughout the day, in the evening at the time of moonrise, all the fasting women listen to the story of the fast and after seeing the moon through a sieve, offer Arghya to the moon. Then after performing Puja Aarti, they break their fast in the hands of their husband. Then in the end, after giving gifts to their mother-in-law, they touch her feet and take blessings from her for attaining unbroken good fortune.

04. Story of the fast

A moneylender had seven sons and a daughter. The Seth’s wife, her daughter and daughter-in-laws had kept the fast of Karva Chauth. At night, when the sons of the moneylender started eating, they asked their sister to have food. The sister said, “Brother, the moon has not yet come out. I will eat only after offering Arghya to the moon.” On hearing the words of the sister, the brothers did one thing – they went out of the city and lit a fire and taking a sieve, showing the light through it, they told the sister, “Look sister, the moon has come out. Offer Arghya and have your food.”

On hearing this, she told her sisters-in-law to come and offer Arghya to the moon. The sisters-in-law knew about the cunningness of their husbands. They did not come to offer Arghya. They told their sister-in-law that your brothers are cheating you and showing light through the sieve. Still, the sister did not pay any attention and offered Arghya after seeing the light through the sieve. Ganeshji became very unhappy by breaking the fast in this way. After this, her husband became very ill and all his wealth was spent on his illness.

Later, when the moneylender’s daughter realized her mistakes, she repented a lot. Then, praying to Lord Ganesha, she again observed the Chaturthi fast with full rituals and offered donations etc. Seeing her act with devotion, Lord Ganesha was pleased with her and gave life to her husband and gave her health and wealth back.

In this article, I have tried to give a brief description of the fast of Karva Chauth. I hope you readers liked this article. Please give your opinion through comments.

Gratitude and thanks.

-Astro Richa Srivastava

शरद पूर्णिमा 2024 (Hindi & English)

शरद पूर्णिमा 2024 (Hindi & English)

Om-Shiva

01. परिचय

वर्ष की सभी बारह पूर्णिमाओं में शरद पूर्णिमा का एक विशेष महत्व है। कहा जाता है कि केवल इसी दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण सोलह कलाओं से युक्त होता है और पूर्ण बलशाली भी होता है। यह पूर्णिमा वर्षा ऋतु के समापन और शरद ऋतु के प्रारम्भ का संकेत देती है। इसे रास पूर्णिमा और कोजागरी पूनम भी कहते हैं। बंगाल, असम और उड़ीसा प्रान्तों में इस दिन लक्ष्मीजी की विशेष पूजा करते हैं और रात्रि जागरण भी करते हैं।

02. कब होती है शरद पूर्णिमा?

आश्विन मास में नवदुर्गा पर्व के बाद आने वाली पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है।

03. शरद पूर्णिमा का महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन चंद्रदेव अत्यंत बलशाली होते हैं, और पूर्ण सोलह कलाओं से युक्त होते हैं। कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की चांदनी में अमृत तुल्य औषधीय गुण होता है। अतः शरद पूर्णिमा की रात्रि को चन्द्रदेव का पूजन करने के बाद, चावल की खीर को रात भर चांदनी रात में खुले आकाश के नीचे रखा जाता है, फिर दूसरे दिन उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।

ये पूर्णिमा ऐसी है, जो तन, मन और धन तीनों के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। इस पूर्णिमा में चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है, वहीं देवी महालक्ष्मी अपने भक्तों को धन-धान्य से भरपूर करती हैं। दरअसल शरद पूर्णिमा का एक नाम कोजागरी पूर्णिमा इसलिए भी है क्योंकि, इस दिन रात्रिकाल में भगवती लक्ष्मीजी(कोजागरी) अपने भाई चंद्रदेव के साथ धरती पर आती हैं और पूछती हैं कि, कौन जाग रहा है? अश्विनी महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा अश्विनी नक्षत्र में होता है। इसलिए इस महीने का नाम अश्विनी पड़ा है। अश्विनी नक्षत्र के देवता अश्विनी कुमार हैं जोकि देवताओं के वैद्य या डॉक्टर माने जातें हैं। अतः इस नक्षत्र पर भ्रमण करने पर चंद्रमा में स्वाभाविक रूप से औषधीय बल आ जाता है। अतः इस दिन चांदनी का सेवन करने से तन और मन दोनों स्वस्थ बने रहते हैं।

04. भगवान श्रीकृष्ण नें रचाया रास

भागवत पुराण के अनुसार त्रेतायुग में अनेक गोपियों नें भगवान श्रीकृष्ण को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए देवी जगदम्बा का पूजन किया था। जिसके कारण देवी ने उन्हें कृष्ण का सान्निध्य पाने का वरदान दिया। तब आश्विन मास की शरद पूर्णिमा के दिन ही भगवान श्रीकृष्ण नें गोपियों संग महारास रचाया था।

05. कुमार कार्तिकेय का जन्म

ऐसा कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन ही शिव और पार्वती के तेज से कुमार कार्तिकेय का जन्म हुआ था। अतः इस तिथि को शैव सम्प्रदाय के लोग भी बड़ी श्रध्दा से मनाते हैं। इस प्रकार से शरद पूर्णिमा के दिन शिवभक्त और विष्णुभक्त दोनों ही चंद्रमा, माता लक्ष्मी, श्रीहरि विष्णु और भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते हैं।

06. वर्ष 2024 में कब है शरद पूर्णिमा?

भारतीय पंचांग के अनुसार, आश्विन महीने के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा 16 अक्टूबर को रात 08 बजकर 45 मिनट पर शुरू होगी और 17 अक्टूबर शाम 04 बजकर 50 मिनट पर खत्म होगी। शरद पूर्णिमा का व्रत जो लोग रखते हैं वह व्रत 16 अक्‍टूबर को रखा जाएगा और रात को खीर भी 16 अक्टूबर को ही रखी जाएगी। शरद पूर्णिमा के दिन रात्रि में चंद्रदेव की पूजा का विधान है। इस दिन चंद्रोदय शाम 05 बजकर 10 मिनट पर होगा।

07. पूजन विधि-विधान

पूर्णमासी के दिन प्रातः काल में नित्य स्नानादि दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर लकड़ी के एक पाटे पर भगवान लक्ष्मी-नारायण और शिव-परिवार की तस्वीरों को स्थापित किया जाता है। एक कलश में शुद्ध जल और एक कलश में गेहूं के दाने भरकर रखा जाता है। फिर धूप-दीप, पुष्प, नैवेद्य आदि से पंचोपचार पूजन किया जाता है। फिर गेहूं के दाने हाँथ में रखकर पूर्णिमा की कथा सुनी जाती है। फिर दिन भर व्रत-उपवास रखकर रात्रिकाल में चन्द्रदेव को अर्घ्य देकर खीर का भोग लगाते हैं और पूजन करते हैं। फिर रातभर खीर को चांदनी में रखकर सुबह प्रसाद के तौर पर ग्रहण किया जाता है और व्रत का पारण किया जाता है।

08. शरद पूर्णिमा व्रत कथा

प्राचीन काल में एक साहूकार की दो पुत्रियाँ थीं। दोनों पुत्रियां शरद पूर्णिमा का व्रत और पूजन किया करती थीं। परन्तु एक पूरे विधि-विधान और निष्ठा से व्रत किया करती थी जबकि दूसरी अधूरे मन से अधूरी पूजा किया करती थी। बड़ी पुत्री के तो कई संतानें हुईं और वें फलने फूलने लगीं, जबकि छोटी पुत्री की संतानें पैदा होते ही मर जाया करती थीं। जब छोटी पुत्री ने इसका उपाय ज्योतिषियों और पंडितों से पूछा तो उन्होंने उसे पूरी निष्ठा और श्रद्धा-भक्ति के साथ शरद पूर्णिमा का व्रत करने का मार्ग बताया। उसके बाद छोटी पुत्री की संतानें भी जीवित रहने लगीं और उन्हें सुख-सौभाग्य प्राप्त हुआ।

उपर्युक्त आलेख में मैंने शरद पूर्णिमा की विस्तृत जानकारी देने का प्रयास किया है। आशा करती हूँ आपको यह आलेख अवश्य पसन्द आएगा। कृपया कमेंट के ज़रिए अपनी राय दीजिए।

आभार और धन्यवाद।

-ऐस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव

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Sharad Purnima 2024 (Hindi & English)

Om-Shiva

01. Introduction

Sharad Purnima has a special significance among all the twelve full moons of the year. It is said that only on this day the moon is in its full sixteen phases and is also very powerful. This full moon indicates the end of the rainy season and the beginning of the autumn season. It is also called Raas Purnima and Kojagari Poonam. In Bengal, Assam and Orissa provinces, special worship of Lakshmiji is done on this day and night vigil is also done.

02. When is Sharad Purnima?

The full moon that comes after Navdurga festival in the month of Ashwin is called Sharad Purnima.

03. Importance of Sharad Purnima

According to mythological beliefs, on this day Chandradev is very powerful, and is full of sixteen phases. It is said that the moonlight of Sharad Purnima has medicinal properties like nectar. So, after worshipping Chandradev on the night of Sharad Purnima, rice pudding is kept under the open sky in the moonlight for the whole night, then it is consumed as prasad the next day.

This Purnima is such that it is the best for body, mind and wealth. In this Purnima, Amrit (nectar) rains from the rays of the moon, while Goddess Mahalakshmi blesses her devotees with wealth and grains. Actually, one of the names of Sharad Purnima is Kojagari Purnima because, on this day, Goddess Lakshmi (Kojagari) comes to earth with her brother Chandradev and asks who is awake? On the full moon day of Ashwini month, the moon is in Ashwini constellation. That is why this month is named Ashwini. The deity of Ashwini constellation is Ashwini Kumar who is considered to be the Vaidya or doctor of the gods. Therefore, on roaming on this constellation, the moon naturally gets medicinal power. Therefore, by consuming moonlight on this day, both body and mind remain healthy.

04. Lord Krishna performed Raas

According to the Bhagavata Purana, in Treta Yuga, many gopis worshipped Goddess Jagadamba to get Lord Krishna as their husband. Due to which the Goddess blessed them to get the proximity of Krishna. Then on the day of Sharad Purnima in the month of Ashwin, Lord Krishna performed Maharas with the gopis.

05. Birth of Kumar Kartikeya

It is said that Kumar Kartikeya was born on the day of Sharad Purnima from the brilliance of Shiva and Parvati. Therefore, people of Shaiv ​​sect also celebrate this date with great devotion. In this way, on the day of Sharad Purnima, both Shiva devotees and Vishnu devotees worship the Moon, Mother Lakshmi, Shri Hari Vishnu and Lord Shiva.

06. When is Sharad Purnima in the year 2024?

According to the Indian calendar, the full moon of the Shukla Paksha of Ashwin month will start on October 16 at 08:45 pm and will end on October 17 at 04:50 pm. Those who keep the fast of Sharad Purnima will keep the fast on October 16 and Kheer will also be kept on October 16 at night. There is a law of worshiping Chandradev at night on the day of Sharad Purnima. On this day, the moonrise will be at 05:10 pm.

07. Worship Method

On the day of Purnima, after retiring from daily tasks like bathing etc. in the morning, the pictures of Lord Lakshmi-Narayan and Shiv-family are installed on a wooden plank. Pure water is kept in a pot and wheat grains in another pot. Then Panchopchara worship is done with incense, lamp, flowers, offerings etc. Then the story of Purnima is heard by keeping wheat grains in the hand. Then after observing fast the whole day, they offer arghya to the moon god at night and offer kheer and worship him. Then after keeping the kheer in the moonlight the whole night, it is consumed as prasad in the morning and the fast is broken.

08. Sharad Purnima Vrat Katha

In ancient times, a moneylender had two daughters. Both the daughters used to observe fast and worship on Sharad Purnima. But one used to observe the fast with complete rituals and devotion while the other used to do incomplete worship with half-heartedness. The elder daughter had many children and they started flourishing, while the children of the younger daughter used to die as soon as they were born. When the younger daughter asked the astrologers and pandits for a solution to this, they told her the way to observe the fast of Sharad Purnima with full devotion and faith. After that, the children of the younger daughter also started living and they got happiness and good fortune.

In the above article, I have tried to give detailed information about Sharad Purnima. I hope you will definitely like this article. Please give your opinion through comments.

Thanks and gratitude.

-Astro Richa Srivastava

शनि और राहु आपकी गृहस्थी को निगलने वाले ग्रह (Hindi & English)

शनि और राहु आपकी गृहस्थी को निगलने वाले ग्रह (Hindi & English)

हमारे कुंडली स्कैनिंग विद्या के अनुभव अनुसार सभी नवग्रहों में से शनिदेव और राहुदेव, यह दो ऐसे प्रमुख ग्रह हैं जिनके किसी भी प्रकार के ऊर्जा टकराव से बृहस्पति ग्रह के कारक फलों को क्षति अवश्य पहुंचती है। आपकी लग्न कुंडली के किसी भी भाव में शनि और राहु एकसाथ बैठ जाएं, कहीं पर भी बैठकर एक दूसरे पर सीधी दृष्टि डाल रहे हों, एक दूसरे के नक्षत्रों में बैठ जाएं तो गृहस्थी दोष नामक अशुभ योग निर्मित होता है जो उपायों के अति अभाव में पति और पत्नी के मध्य विच्छेद करवा सकता है। अगर शनि और राहु की यही सब स्तिथियां जातक के नवमांश में आ जाएं या वार्षिक गोचर में बन जाएं तो भी इस अशुभ योग की नकरात्मक ऊर्जा का प्रभाव देखने को मिलता है।

सर्वप्रथम यह जांचना होगा कि शनि और राहु के ऊपर क्या किसी भी शुभ ग्रह जैसे – चंद्रमा, बुध, गुरु या शुक्र की सीधी दृष्टि पड़ रही है? अगर ऐसा है तो साधारण उपायों द्वारा इस अशुभ योग की ऊर्जा को हटाया जा सकता है। अगर इससे ठीक विपरीत प्रभाव अर्थात शनि और राहु की दृष्टि शुभ ग्रहों पर पड़ रही हो तो अत्यधिक उपायों के परिश्रम पश्चात ही गृहस्थी सुख की प्राप्ति संभव हो सकती है। यह अशुभ योग जिस किसी भी जातक की लग्न कुंडली में बनता है तो वह जातक प्राकृतिक रूप से आकाश और पाताल मार्ग से ब्रह्माण्ड में स्तिथ नकरात्मक और पिशाचीय ऊर्जाओं को खींचता रहता है। ऐसी स्तिथि में उपायों द्वारा पहले इन दोनों ग्रहों (शनि+राहु) को हमारी स्कैनिंग विद्या में हमेशा के लिए अलग कर दिया जाता है फिर कुंडली में, आपके घर में तथा आपके शरीर में उपस्तिथ बृहस्पति ग्रह के ऊर्जा केंद्र की ताकत बढ़ाई जाती है।

इन सभी स्कैनिंग के उपायों पश्चात लगभग 06 से 08 माह पश्चात ही सकारात्मक ऊर्जा का आगमन संभव हो पाता है। मैं आपको यहां बुध ग्रह से संबंधित उपाय दे रहा हूं। जिनके प्रयोग से आपको धीरे-धीरे उत्तम गृहस्थी सुख की प्राप्ति संभव हो पायेगी। क्योंकि जितना अधिक बृहस्पति मजबूत होगा उतना अधिक बुध आंतरिक तौर पर शक्ति प्राप्त करते हुए बृहस्पति के आदेश की पालना में सभी ग्रहों में सबसे आगे बना रहेगा। हमेशा स्मरण रखिए कि अनावश्यक नकरात्मक ऊर्जा को सोखने की ताकत केवल बुध ग्रह को ही प्राप्त है।

शनि+राहु। पति-पत्नी को अलग करने वाला एक मनहूस योग।

01. प्रातः समय जब कड़ी धूप ना निकली हुई हो, उस समय पति-पत्नी दोनों जने एक साथ किसी भी पार्क में जहां चारों तरफ हरियाली ही हरियाली हो वहां रोज़ 20 मिनट अवश्य घुमा करें।

02. अवश्य ध्यान रखें कि घर की छत पर और घर के ईशान कोण पर बाथरूम नहीं होना चाहिए। इन्हें तुरंत ठीक करवाइए। विपरीत स्तिथि में घर में एक मीठा नीम (कड़ी पत्ता) का पौधा या छत पर दोनों जने मिलकर खूब सारी सब्जियां लगा दें।

03. हफ्ते में एक दिन समय निकालकर दोनों जने सब्जी खरीदने या कुछ भी घर के उपयोगी सामान खरीदने के लिए एक साथ बाहर अवश्य जाया करें।

04. रविवार के दिन अपने समार्थ्य अनुसार दोनों जने एक साथ अन्नदान की सेवा करा करें या भारतीय गौमाता के माथे को स्पर्श करते हुए उनकी अन्नसेवा करा करें।

-गुरु सत्यराम

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Saturn and Rahu, the planets that swallow your household (Hindi & English)

According to our experience of Kundli Scanning Vidya, out of all the nine planets, Shani Dev and Rahu Dev are the two main planets whose energy clash of any kind definitely damages the results of Jupiter. If Saturn and Rahu sit together in any house of your Lagna Kundli, sit anywhere and look directly at each other, sit in each other’s constellations, then an inauspicious yoga called Grihasthi Dosh is formed, which can cause separation between husband and wife in the absence of extreme remedies. If all these situations of Saturn and Rahu come in the Navmansh of the native or are formed in the annual transit, then also the effect of the negative energy of this inauspicious yoga can be seen.

First of all, it has to be checked whether any auspicious planet like Moon, Mercury, Guru or Venus is looking directly at Saturn and Rahu? If this is the case, then the energy of this inauspicious yoga can be removed by simple remedies. If the effect is just opposite to this, that is, Saturn and Rahu are aspecting the auspicious planets, then only after a lot of hard work and measures can domestic happiness be achieved. If this inauspicious yoga is formed in the ascendant horoscope of any person, then that person naturally keeps drawing the negative and demonic energies present in the universe through the sky and underworld. In such a situation, through the measures, first these two planets (Saturn + Rahu) are separated forever in our scanning vidya, then the strength of the energy center of Jupiter present in the horoscope, in your house and in your body is increased.

After all these scanning measures, the arrival of positive energy is possible only after about 06 to 08 months. Here I am giving you the measures related to Mercury planet. By using which you will gradually be able to achieve excellent domestic happiness. Because the stronger Jupiter becomes, the more Mercury will gain internal power and will remain at the forefront of all the planets in following the orders of Jupiter. Always remember that only Mercury has the power to absorb unnecessary negative energy.

Saturn + Rahu. An inauspicious combination that separates husband and wife.

01. In the morning when the sun is not shining brightly, both husband and wife should go for a walk together in any park where there is greenery all around for 20 minutes.

02. Make sure that there should not be a bathroom on the roof of the house or in the northeast corner of the house. Get these fixed immediately. In the opposite situation, plant a sweet neem (curry leaf) plant in the house or both should plant a lot of vegetables together on the roof.

03. Take out time once a week and both should go out together to buy vegetables or any household useful items.

04. On Sunday, according to your capacity, both should together do the service of Annadaan or do the service of food to the Indian cow by touching its forehead.

-Guru Satyaram

पापांकुशा एकादशी एक विस्तृत परिचय (Hindi & English)

पापांकुशा एकादशी एक विस्तृत परिचय (Hindi & English)

Om-Shiva

01. क्या होती है पापांकुशा एकादशी?

वर्षभर की सभी एकादशियों में से एक पापांकुशा एकादशी बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है। जैसा की नाम से ही स्पष्ट है, यह एकादशी व्यक्ति के समस्त पाप कर्मों पर अंकुश लगाकर उन्हें पापों से मुक्त करती है। इस एकादशी का वर्णन श्रीभागवत पुराण, श्री ब्रह्मवैवर्त पुराण और पवित्र महाभारत ग्रन्थ में भी आता है। इस एकादशी में भगवान श्रीहरि विष्णुजी के पाप मोचन रूप की पूजा और उपासना की जाती है तथा उपवास भी रखा जाता है।

02. कब मनाई जाती है पापांकुशा एकादशी?

यह एकादशी आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस वर्ष 2024 में यह दिनांक 13 अक्टूबर, रविवार को मनाई जायेगी। वैष्णव सम्प्रदाय के लोग दिनांक 14 अक्टूबर को यह एकादशी मनाएंगे।

03. पापांकुशा एकादशी का महात्म्य क्या है?

इस व्रत की गाथा भगवान श्रीकृष्ण के मुख से युधिष्ठिर को सुनाई गई है। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि, हजारों वर्ष की तपस्या से भी जो पुण्य और फल नहीं मिलता वहनामष्ट पुण्यफल मात्र यह एकादशी व्रत को करने से मिल जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। पापांकुशा एकादशी का व्रत हज़ार अश्वमेघ और सौ सूर्य यज्ञों को करने के समान फल देने वाली बताई गई है। जो भी यह व्रत, उपवास, पूजन और जागरण इत्यादि करता है वह सभी पाप कर्मों से मोक्ष प्राप्त करके बैकुंठ लोक को जाता है और उसे श्रीहरि विष्णुजी अपनी शरण में ले लेते हैं। एकादशी जीवों के जीवन के परम लक्ष्य अर्थात भगवत प्राप्ति में बहुत ही सहायक होती है।

04. पापांकुशा एकादशी पूजन का विधि-विधान क्या है?

एकादशी तिथि के दिन प्रातः जल्दी उठकर, नित्य कर्मों से निवृत होकर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर रखकर कलश की स्थापना करें तथा पूजन और व्रत का संकल्प लें। फिर धूप, दीप, पुष्प, पीले अक्षत, फल, नारियल और नैवेद्य आदि से पूजन करें। भगवान की झांकी के निकट भजन, कीर्तन, रात्रि जागरण आदि करके श्रीहरि के पावन नाम का जप करें। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना भी अति शुभ फलदायी होता है। पूजन के पश्चात योग्य कर्मकांडी ब्राह्मण को सामर्थ्य अनुसार दान, दक्षिणा, भोजन, भेंट आदि अवश्य देना चाहिए। भगवान के उपवास में अन्न और नमक का प्रयोग निषेध रहता है। जो लोग पूर्ण उपवास नहीं रख सकते वें एक समय का फलाहार करके भी पूजन कर सकते हैं।

05. पापांकुशा एकादशी व्रत की कथा क्या है?

पौराणिक काल में विंध्य पर्वत पर क्रोधन नाम का एक महाक्रूर बहेलिया रहता था। जो बहुत निर्दयता पूर्वक पशु-पक्षियों का शिकार करता था। जब उसके जीवन का अंत समय आया तो यमराज ने यमदूतों को उसे लाने की आज्ञा दी। यमदूतों नें उसे यह बात उसकी मृत्यु से बहुत पहले ही बता दी थी। तब बहेलिए को अपने पाप कर्मों का अहसास हुआ और नर्क में जाने के भय से वह कांपने लगा। मृत्यु के डर से वह भटकते हुए अंगिरा ऋषि के आश्रम में जा पहुंचा। उसे यमलोक में नर्क नहीं भुगतना पड़े, इससे रक्षा के लिए वह अंगिरा ऋषि से प्रार्थना करने लगा। तब अंगिरा ऋषि ने उसे आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु के पूजन और उपवास का मार्ग दिया। उनके अनुसार बताए व्रत और पूजन करने से वह अपने सभी पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को चला गया।

प्रिय पाठकों, उपर्युक्त आलेख में मैंने आपको पापांकुशा एकादशी की संक्षिप्त जानकारी दी है। आशा करती हूँ कि आपको यह जानकारी पसन्द आई होगी। कृपया एक कमेंट के ज़रिए अपनी राय अवश्य दें।

आभार और धन्यवाद।

-ऐस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव

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Papankusha Ekadashi: A detailed introduction (Hindi & English)

Om-Shiva

01. What is Papankusha Ekadashi?

Among all the Ekadashis of the year, Papankusha Ekadashi is considered very important. As the name suggests, this Ekadashi curbs all the sins of a person and frees them from sins. This Ekadashi is also described in Shri Bhagwat Purana, Shri Brahmavaivarta Purana and the holy Mahabharata Granth. In this Ekadashi, the sin-free form of Lord Shri Hari Vishnu is worshiped and fasting is also observed.

02. When is Papankusha Ekadashi celebrated?

This Ekadashi is celebrated on the Ekadashi date of Shukla Paksha of Ashwin month. This year in 2024, it will be celebrated on 13 October, Sunday. People of Vaishnav sect will celebrate this Ekadashi on 14th October.

03. What is the significance of Papankusha Ekadashi?

The story of this fast has been narrated to Yudhishthira by Lord Krishna. Lord Krishna says that the virtue and fruit that cannot be obtained even by thousands of years of penance, can be obtained by merely observing this Ekadashi fast. Lord Vishnu is worshipped on this day. The fast of Papankusha Ekadashi is said to give the same fruit as performing thousand Ashvamedha and hundred Surya Yagyas. Whoever observes this fast, fasting, worship and vigil etc., attains salvation from all sinful deeds and goes to Vaikunth Lok and Shri Hari Vishnuji takes him under his shelter. Ekadashi is very helpful in attaining the ultimate goal of the life of the living beings i.e. Bhagwat.

04. What is the ritual of Papankusha Ekadashi worship?

On the day of Ekadashi, wake up early in the morning, finish your daily chores, place an idol or picture of Lord Vishnu, install a Kalash and take a pledge to worship and fast. Then worship with incense, lamp, flowers, yellow rice, fruits, coconut and offerings etc. Chant the holy name of Shri Hari by doing bhajan, kirtan, night vigil etc. near the tableau of the Lord. Reciting Vishnu Sahasranama is also very auspicious and fruitful. After worship, one must give donations, dakshina, food, gifts etc. to a capable ritualistic Brahmin according to one’s ability. The use of food and salt is prohibited in the fast of God. Those who cannot keep a complete fast can also worship by eating fruits once a day.

05. What is the story of Papankusha Ekadashi fast?

In ancient times, a very cruel hunter named Krodhan lived on Vindhya mountain. He used to hunt animals and birds very mercilessly. When the end of his life came, Yamraj ordered the messengers of Yamraj to bring him. The messengers of Yamraj had told him this much before his death. Then the hunter realized his sins and started trembling in fear of going to hell. Out of fear of death, he wandered and reached the ashram of sage Angira. He started praying to sage Angira to protect him so that he does not have to suffer hell in Yamalok. Then sage Angira gave him the way to worship and fast for Lord Vishnu on Ekadashi Tithi of Shukla Paksha of Ashwin month. By fasting and worshiping as per his instructions, he got free from all his sins and went to Vishnu Lok.

Dear readers, in the above article I have given you a brief information about Papankusha Ekadashi. I hope you liked this information. Please give your opinion by commenting.

Gratitude and thanks.

-Astro Richa Srivastava

ऐसा करेंगे तो शनि ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

ऐसा करेंगे तो शनि ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

न्याय के स्वामी कहे जाने वाले शनिदेव जातक की लग्न कुंडली में मौजूद बारह भावों पर बहुत ही सटीक लेकिन काफी धीमा प्रभाव डालते हैं। शनिदेव कुंडली में जहां बैठते हैं और जहां पर अपनी सीधी दृष्टि डालते हैं उसका बहुत ही सटीक प्रभाव हमारे प्रत्यक्ष जीवन पर अवश्य पड़ता है। वैदिक ज्योतिष में शनि ग्रह को एक क्रूर ग्रह के तौर पर देखा जाता है। यदि जातक की लग्न कुंडली में शनि ग्रह की स्तिथि मजबूत होती है तो जातक को इसके काफी अच्छे और सुखद प्रभाव स्थिरता के साथ में देखने को मिलते हैं। और दूसरी तरफ अगर का जातक की लग्न कुंडली में शनिदेव थोड़े भी टेढ़े होकर बैठ जायेंगे तो जातक अपनी पूर्ण जिंदगी में संघर्ष भी देखता है तथा भाग्य भी उसका साथ नहीं देता है। इसलिए हर प्रकार से शनिदेव का विराजना और दृष्टि सभी जातकों के जीवन पर अपना गहरा प्रभाव बनाकर रखती है।

सनातन वैदिक ज्योतिष में शनि ग्रह का बहुत ही बड़ा महत्व है। ज्योतिष विद्या में शनि ग्रह को लंबी आयु, स्थाई दुःख, लंबी चलने वाली बीमारियां, मानसिक पीड़ाएं, सूक्ष्म विज्ञान, तकनीकी मस्तिष्क, लोहा धातु, कच्चा खनिज तेल, हर प्रकार के कर्मचारी, हर प्रकार की सेवा देने वाले सेवक, जेल यात्रा आदि का स्थाई कारक माना जाता है। शनिदेव को मकर राशि(10) और कुंभ राशि(11) का स्वामित्व प्राप्त है। शुक्रदेव की तुला राशि(7) शनिदेव की उच्च राशि है तथा मंगलदेव की मेष राशि(1) में जाते ही यह नीच प्रभावी हो जाते हैं। क्योंकि शनिदेव की चाल सभी ग्रहों में सर्वाधिक धीमी है इसलिए शनि ग्रह का गोचर किसी भी राशि में ढ़ाई वर्ष तक बना रहता है। ज्योतिष विद्या में शनिदेव की ढाई वर्ष की ढैया और साढ़े सात वर्ष की साढ़ेसाती बहुत चर्चित है। शनिदेव की टेढ़ी दृष्टि और ढैया एवम साढ़ेसाती का भय अधिकांश जातकों में अक्सर देखा जाता है। जबकि ज्ञान आधार पर शनिदेव सर्वाधिक कल्याण करने वाले ग्रह हैं। वह तो बस का कर्मों का सीधा फल प्रदान करते हैं।

नक्षत्रों में शनिदेव पुष्य नक्षत्र, अनुराधा नक्षत्र और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के स्वामी होते हैं। शनिदेव जब भी साढ़ेसाती के रूप में किसी जातक के जीवन में प्रवेश करते हैं तो आने वाली तिथि से 06 माह पूर्व ही अपना प्रभाव दिखाना प्रारंभ कर देते हैं। तथा जाने वाली तिथि के 06 माह पश्चात ही अपना पूर्ण प्रभाव उस स्थान से छोड़ते हैं। शनिदेव को समझना हैं और उनकी कृपा का रसपान करते रहना है तो केवल अपने कर्मों पर ध्यान देना शुरू कर दो। जहां तुम्हारें अंदर अहंकार ने बीजारोपण किया तो तुरंत ही शनिदेव की न्याय प्रक्रिया तुम पर लागू होनी शुरू हो जाएगी। यह बात अच्छे से समझ लीजिए कि शनिदेव केवल कर्मों का फल प्रदान करने वाले ग्रह हैं। अर्थात जैसे कर्मों का जमावड़ा रहेगा वैसे फलों का आना भी अटल है। आइए अब जानते हैं कि वो कौन सी गलतियां हैं जिसके कारण आपके शनि ग्रह हमेशा के लिए खराब भी हो सकते हैं।

7 गलतियां जो आपके शनि ग्रह को हमेशा के लिए खराब कर देंगी

01. शयन करने वाले कमरे में और सोने वाले बिस्तर पर बैठकर बहुत लंबे समय तक अन्न ग्रहण करते रहना।

02. अगर विवाह अग्नि को साक्षी मानकर किया गया है और इसको ध्यान में रखते हुए परस्त्री से संबंध रखना।

03. बहुत अधिक बाल झड़ने पर तथा बहुत अधिक आंखो की दृष्टि कमजोर होने पर लगातार खड़े होकर स्नान करते रहना।

04. स्वयं का मकान बनवाते समय अपने ही मजदूरों पर हाथ उठाना और अपशब्द कहना और उनकी मजदूरी समय पर नहीं देना।

05. किसी भी शुभ तिथि या भगवान के जन्मोत्सव पर या किसी भी तीज-त्यौहार के समय पति-पत्नी द्वारा पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य की पालना नहीं करना।

06. चोरी करना, ईमानदारी का अभाव, दूसरों के विपरीत समय का मजाक उड़ाना, ईश्वर के धन स्थान, समाज के धन स्थान का प्रयोग अपने निजी स्वार्थ के लिए करना।

07. अपनी धर्म पत्नी, संतान, माता-पिता की सेवा और संतुष्टि के अभाव में हमेशा घर से बाहर व्यर्थ में लोगों की दिखावटी सेवा में लगे रहना।

-गुरु सत्यराम

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If you do this, Saturn can be bad for your entire life (Hindi & English)

Shani Dev, who is called the lord of justice, has a very precise but very slow effect on the twelve houses present in the native’s Lagna Kundali. Wherever Shani Dev sits in the Kundali and wherever he casts his direct gaze, it definitely has a very precise effect on our direct life. In Vedic astrology, Saturn is seen as a cruel planet. If the position of Saturn is strong in the native’s Lagna Kundali, then the native gets to see its very good and pleasant effects with stability. And on the other hand, if Shani Dev sits even slightly crookedly in the native’s Lagna Kundali, then the native sees struggle in his entire life and luck also does not support him. Therefore, in every way, the sitting and sight of Shani Dev keeps its deep effect on the life of all the natives.

Saturn has a very big importance in Sanatan Vedic astrology. In astrology, Saturn is considered to be the permanent factor of long life, permanent sorrow, long lasting diseases, mental pains, subtle science, technical brain, iron metal, crude mineral oil, all types of employees, servants providing all types of services, jail visits etc. Shani Dev has ownership of Capricorn (10) and Aquarius (11). Venus’s Libra sign (7) is Shani Dev’s exalted sign and as soon as Mars goes to Aries sign (1), it becomes lowly influential. Because Shani Dev’s speed is the slowest among all planets, therefore, Saturn’s transit remains in any sign for two and a half years. In astrology, Shani Dev’s two and a half years of Dhaiya and seven and a half years of Sadesati are very famous. Shani Dev’s crooked vision and fear of Dhaiya and Sadesati is often seen in most of the people. Whereas on the basis of knowledge, Shani Dev is the most beneficial planet. He simply provides direct results of deeds.

Among the nakshatras, Shanidev is the lord of Pushya nakshatra, Anuradha nakshatra and Uttarabhadrapada nakshatra. Whenever Shanidev enters the life of a person in the form of Sadhesati, he starts showing his effect 6 months before the coming date. And he leaves his full effect from that place only 6 months after the leaving date. If you want to understand Shanidev and keep enjoying his blessings, then start focusing on your deeds. Wherever ego sows seeds inside you, the justice process of Shanidev will immediately start getting applied on you. Understand this thing well that Shanidev is only the planet that gives the fruits of deeds. That is, as the deeds keep piling up, the fruits are also inevitable. Let us now know what are those mistakes due to which your Saturn can get spoiled forever.

7 mistakes that will spoil your Saturn forever

01. Eating food for a long time while sitting in the bedroom and on the bed.

02. If the marriage has been done with fire as a witness, then keeping this in mind, having relations with another woman.

03. If there is excessive hair fall and eyesight is very weak, then continuously taking bath while standing.

04. While building one’s own house, raising hands on one’s own workers and using abusive language and not paying their wages on time.

05. Husband and wife not observing celibacy completely on any auspicious date or on the birthday of God or on any festival.

06. Stealing, lack of honesty, making fun of others’ adverse times, using God’s wealth place, society’s wealth place for personal gain.

07. Always being engaged in useless service to people outside the home in a superficial manner due to lack of service and satisfaction to one’s wife, children, parents.

-Guru Satyaram

घर बैठे भगवान शिव को प्रसन्न करें (Hindi & English)

घर बैठे भगवान शिव को प्रसन्न करें (Hindi & English)

Om-Shiva

देवों के देव महादेव – ईश्वरीय कृपा प्राप्ति का वह मार्ग जिस पर चलने वाला साधक सदैव प्रसन्न बना रहता है। क्योंकि जब कोई नहीं था तब भी शिव थे, और जब कोई नहीं रहेगा तब भी शिव रहेंगे। महादेव जिनका ना आदि है और ना अंत। वैसे तो महादेव को प्रसन्न करने के लिए बहुत अधिक उपायों की आवश्यकता नहीं पड़ती है, लेकिन महादेव की प्रसन्नता प्राप्ति में भक्त की शुद्ध भावना ही सब उपायों में आवश्यक एवम श्रेष्ठ मानी जाती है। शिवलिंग पर मात्र जल अर्पण करने से ही महादेव कृपा बरसाने लग जाते हैं।

अपने साधना काल के आरंभिक दौर में मैने यह जाना कि श्रीमद भगवत गीताजी के 18 अध्यायों का नित्य पाठ करना भी महादेव की कृपा प्राप्ति का एक सरल मार्ग है। और जब एक साधक महात्म्य के साथ 18 अध्यायों का अध्ययन करता है तो भक्त के बहुत सारे कष्ट महादेव काट देते हैं। मेरे निजी अनुभव में श्री गीताजी के 18 अध्यायों में से 10वें अध्याय का जो महात्म्य है उसमे एक पक्षी के द्वारा महादेव की स्तुति का बहुत ही सुंदर वर्णन किया गया है। अनुभव अनुसार इस स्तुति को जो भी भक्त अपने नित्य पूजन में शामिल कर लेता है तो वह महादेव का कृपापात्र बना रहता है। आप भी इस सरल स्तुति के द्वारा महादेव का पूजन अवश्य कीजियेगा।

घर बैठे भगवान शिव को प्रसन्न करें इस सरल प्रार्थना द्वारा

।।ॐ नमः शिवाय।।

महादेव! आपकी जय हो। आप चिदानंदमयी सुधा के सागर तथा जगत के पालक हैं। सदा सद्भावना से युक्त एवम् अनासक्ति की लहरों से उल्लसित हैं। आपके वैभव का कहीं अंत नहीं है। आपकी जय हो। अद्वैत वासना से परिपूर्ण बुद्धि के द्वारा आप त्रिविध मलों से रहित हैं। आप जितेंद्रिय भक्तों के अधीन रहते हैं तथा ध्यान में आपके स्वरूप का साक्षात्कार होता है। आप अविद्यामय उपाधि से रहित, नित्यमुक्त, निराकार, निरामय, असीम, अहंकार शून्य, आवरण रहित और निर्गुण हैं।

आपके चरणकमल शरणागत भक्तों की रक्षा करने में प्रवीण हैं। अपने भयंकर ललाट रूपी महासर्प की विष ज्वाला से आपने कामदेव को भस्म किया है। आपकी जय हो। आप प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों से दूर होते हुए भी प्रामाणय स्वरूप हैं। आपको बार-बार नमस्कार है। चैतन्य के स्वामी तथा त्रिभुवनरूपधारी आपको प्रणाम है। मैं श्रेष्ठ योगियों द्वारा चुंबित आपके उन चरण-कमलों की वंदना करता हूं, जो अपार भव-पाप के समुद्र से पार उतारने में अद्भुत शक्तिशाली हैं। महादेव! साक्षात बृहस्पति भी आपकी स्तुति करने की धृष्टता नहीं कर सकते। सहस्त्र मुखों वाले नागराज शेष में भी इतनी चातुरी नहीं है कि वे आपके गुणों का वर्णन कर सकें। फिर मेरे-जैसे छोटी बुद्धि वाले पक्षी की तो बिसात ही क्या है।

।।ॐ नमः शिवाय।।

– गुरु सत्यराम

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Make Lord Shiva happy at home (Hindi & English)

Om-Shiva

Mahadev, the God of Gods – the path of attaining divine grace on which the devotee remains happy always. Because when there was no one, Shiva was there, and when there will be no one, Shiva will remain there. Mahadev has no beginning and no end. Although, many measures are not required to please Mahadev, but the pure feelings of the devotee are considered essential and best among all measures to please Mahadev. Mahadev starts showering his blessings just by offering water on Shivling.

In the initial phase of my Sadhana period, I came to know that daily recitation of 18 chapters of Shrimad Bhagwat Geeta is also an easy way to attain the grace of Mahadev. And when a devotee studies 18 chapters along with Mahatmya, then Mahadev removes many of the troubles of the devotee. In my personal experience, the greatness of the 10th chapter out of the 18 chapters of Shri Geeta Ji, has a very beautiful description of the praise of Mahadev by a bird. According to experience, any devotee who includes this praise in his daily worship remains blessed by Mahadev. You too must worship Mahadev with this simple praise.

Please Lord Shiva at home with this simple prayer

।।Om Namah Shivaya।।

Mahadev! Victory to you. You are the ocean of nectar of bliss and the protector of the world. You are always filled with good will and are delighted with the waves of detachment. There is no end to your glory. Victory to you. With a mind full of non-dual desires, you are free from the three types of impurities. You remain under the control of the devotees who have controlled their senses and your form is realized in meditation. You are devoid of the title of ignorance, eternally free, formless, disease-free, infinite, devoid of ego, without cover and without attributes.

Your feet are expert in protecting the devotees who surrender to you. You have destroyed Kamadeva with the poisonous flame of the great serpent in the form of your fierce forehead. Victory to you. Even though you are far from direct evidence etc., you are the embodiment of authenticity. Salutations to you again and again. Salutations to you, the master of consciousness and the form of the three worlds. I worship your feet kissed by the best yogis, which are amazingly powerful in helping one cross the infinite ocean of worldly sins. Mahadev! Even Brihaspati himself cannot dare to praise you. Even the thousand-headed serpent king Shesh does not have the intelligence to describe your qualities. Then what is the status of a bird with a small intellect like me.

।।Om Namah Shivay।।

– Guru Satyaram

विजय का पर्व- विजयादशमी(दशहरा) 2024 (Hindi & English)

विजय का पर्व- विजयादशमी(दशहरा) 2024 (Hindi & English)

विजयादशमी या दशहरा का पर्व शारदीय नवरात्रि के ठीक बाद आश्विन मास की दशमी तिथि को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इसे विजयादशमी इसलिए कहते हैं क्योंकि पौराणिक काल में भगवती दुर्गाजी ने नौ दिनों तक लगातार भीषण युद्ध करके महिषासुर का वध दशमी तिथि को किया था। साथ ही त्रेतायुग में भगवान श्रीराम ने भी भीषण संग्राम के बाद महाबली रावण का वध करके लंका पर विजय प्राप्त की थी। इसलिए इस तिथि को विजयादशमी कहते हैं। वैसे मुख्यतः विजयादशमी को श्रीरामजी की विजय से ही जोड़कर देखते हैं। भगवान श्रीराम को धर्म, सत्य, ज्ञान, और देवत्व का प्रतीक माना जाता है, जबकि रावण को अधर्म, असत्य, अहंकार और दानवत्व का प्रतीक माना जाता है।

इस प्रकार यह त्यौहार ज्ञान की अहंकार पर, सत्य की असत्य पर और धर्म की अधर्म पर विजय का प्रतीक माना जाता है। अपने कार्यों में सफलता की कामना रखने वाले लोगों को इस दिन दसों दिशाओं का पूजन करना चाहिए। इससे उनके मनोवांछित कार्य पूरे होते हैं।

वर्ष 2024 में कब है विजयादशमी?

इस वर्ष 2024 में विजयादशमी का त्यौहार दिन शनिवार, 12 अक्टूबर को मनाया जाएगा।

कब है पूजन का मुहूर्त?

विजया पूजन मुहूर्त- 14:05 से 14:50 तक (दोपहर)

अपरान्ह मुहूर्त- 13:16 से 15:25 तक (दोपहर)

दशमी तिथि के दिन किनका पूजन होता है?

इस दिन भगवती अपराजिता के साथ ही भगवती जया और विजया का पूजन किया जाता है। दशमी तिथि वाले दिन जब सूर्यास्त होने लगता है और आसमान में कुछ तारे दिखने लगते हैं, तो यह अवधि विजय मुहूर्त कहलाती है। इसी मुहूर्त में भगवान श्रीराम ने विजया माता की आराधना कर दुष्ट रावण का वध किया था।

महाभारत काल में इसी मुहूर्त में अर्जुन ने शमी वृक्ष से गांडीव धनुष और अस्त्र-शस्त्र उतारकर अपने शरीर पर धारण किये थे और शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी। इस पावन दिन पर आयुध या अस्त्र-शस्त्रों के साथ ही शमी वृक्ष के पूजन का भी विधान है। शमी वृक्ष को तेजस्विता और दृढ़ता का प्रतीक भी माना गया है। भविष्य पुराण में लिखा है कि यदि दशहरे के दिन व्यक्ति गंगाजल में खड़ा होकर गंगाजी की पूजा करता है और गंगा स्तोत्र को पढ़ता है तो उसके सभी पापकर्म मिट जाते हैं।

क्या है शमी वृक्ष के पूजन की पौराणिक कथा?

एक बार माता पार्वती ने शिवजी से विजयादशमी के दिन शमी वृक्ष के पूजन के विधान का संदर्भ जानना चाहा। तब शिवजी ने बताया कि पांडवों द्वारा जुए में राजपाट हार जाने के बाद दुर्योधन ने पांडवों के साथ 12 वर्ष तक वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास की शर्त रखी थी। यदि तेरहवें वर्ष उनका पता चल जाएगा तो उन्हें पुनः 12 वर्ष का वनवास भुगतना पड़ेगा। इस कारण अर्जुन ने क्षत्रिय वेश त्यागकर अपने अस्त्र-शस्त्र शमी के पेड़ पर टांग दिए। और राजा विराट के राज्य में सेवाकार्य के लिए आ गए। जब उनके राज्य के गौवंश को हड़पने के लिए कुरु राजकुमारों नें हमला किया तो विराट नरेश के पुत्र उत्तर के साथ मिलकर उन्होंने शमी वृक्ष से गांडीव धनुष सहित अन्य अस्त्र-शस्त्र उतारकर पुनः धारण किये और युद्ध में विजयी हुए। उस दिन दशमी तिथि थी। उस एक वर्ष के अज्ञातवास के दौरान शमी के वृक्ष ने अर्जुन के अस्त्र-शस्त्रों की रक्षा की थी। तब उसे पूजनीय वृक्ष होने का वरदान मिला था। तब से दशमी के दिन शमी वृक्ष के पूजन का प्रचलन शुरू हुआ।

उपर्युक्त आलेख में मैंने विजयादशमी पर्व के विषय में एक संक्षिप्त जानकारी देने का प्रयास किया है। आशा करती हूँ आप सभी पाठको को मेरा ये प्रयास पसन्द आएगा।

धन्यवाद और आभार।

– ऐस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव

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Festival of Victory – Vijayadashami (Dussehra) 2024 (Hindi & English)

The festival of Vijayadashami or Dussehra is celebrated with great pomp on the Dashami date of the month of Ashwin, just after Sharadiya Navratri. It is called Vijayadashami because in the ancient times, Bhagwati Durgaji killed Mahishasura on the Dashami date after a fierce battle for nine days. Also, in Treta Yuga, Lord Shri Ram also conquered Lanka by killing the mighty Ravana after a fierce battle. Therefore, this date is called Vijayadashami. By the way, Vijayadashami is mainly associated with the victory of Shri Ram. Lord Shri Ram is considered a symbol of religion, truth, knowledge, and divinity, while Ravana is considered a symbol of irreligion, untruth, ego and demonism.

Thus this festival is considered a symbol of the victory of knowledge over ego, truth over untruth and religion over unrighteousness. People who wish for success in their work should worship the ten directions on this day. This fulfills their desired tasks.

When is Vijayadashami in the year 2024?

This year in 2024, the festival of Vijayadashami will be celebrated on Saturday, October 12.

When is the auspicious time for worship?

Vijaya Pujan Muhurta – 14:05 to 14:50 (afternoon)

Afternoon Muhurta – 13:16 to 15:25 (afternoon)

Who is worshipped on Dashami Tithi?

On this day, along with Bhagwati Aparajita, Bhagwati Jaya and Vijaya are worshipped. On the day of Dashami Tithi, when the sun starts setting and some stars start appearing in the sky, then this period is called Vijay Muhurta. In this Muhurta, Lord Shri Ram killed the evil Ravana by worshiping Vijaya Mata.

In the Mahabharata period, in this Muhurta, Arjuna took down the Gandiva bow and weapons from the Shami tree and wore them on his body and conquered his enemies. On this holy day, there is a ritual of worshipping the Shami tree along with the weapons. The Shami tree is also considered a symbol of brilliance and perseverance. It is written in the Bhavishya Purana that if a person stands in the Ganga water on the day of Dussehra and worships Gangaji and reads the Ganga Stotra, then all his sins are erased.

What is the mythological story of worshipping the Shami tree?

Once Mother Parvati wanted to know the context of the ritual of worshipping the Shami tree on the day of Vijayadashami from Lord Shiva. Then Lord Shiva told that after the Pandavas lost the kingdom in gambling, Duryodhan had put a condition of 12 years of exile and one year of incognito with the Pandavas. If their whereabouts are known in the thirteenth year, then they will have to undergo 12 years of exile again. For this reason, Arjuna abandoned his Kshatriya attire and hung his weapons on a Shami tree. And came to serve in the kingdom of King Virat. When the Kuru princes attacked to usurp the cattle of his kingdom, then along with the son of King Virat, Uttara, he took down the Gandiva bow and other weapons from the Shami tree and wore them again and won the war. That day was Dashami Tithi. During that one year of exile, the Shami tree had protected Arjuna’s weapons. Then it was blessed to be a revered tree. Since then, the practice of worshipping the Shami tree on Dashami day started.

In the above article, I have tried to give a brief information about the Vijayadashami festival. I hope all the readers will like my effort.

Thanks and gratitude.

– Astro Richa Srivastava

ऐसा करेंगे तो शुक्र ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

ऐसा करेंगे तो शुक्र ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

Om-Shiva

हमारे वैदिक ज्योतिष विज्ञान के अनुसार शुक्र ग्रह को एक शुभ ग्रह माना गया है। इसकी शुभता के प्रभाव से जातक को भौतिक, शारीरिक और वैवाहिक सुख की प्राप्ति होती है। इसलिए ज्योतिष विद्या में शुक्र ग्रह को भौतिक सुख, वैवाहिक सुख, भोग-विलास के सुख, समाज में शौहरत, कला में निपुणता, प्रतिभावान, सौन्दर्य से परिपूर्ण, रोमांस में रुचि, काम-वासना और फैशन-डिजाइनिंग जैसे क्षेत्रों का कारक माना जाता है। शुक्र वृषभ राशि(2) और तुला राशि(7) का स्वामी होते हैं, और मीन राशि(12) इनकी उच्च राशि है, जबकि कन्या राशि(6)इसकी नीच राशि कही गई है। शुक्र ग्रह को 27 नक्षत्रों में से भरणी नक्षत्र, पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र और पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र का स्वामित्व प्राप्त है। नवग्रहों में बुध ग्रह और शनि ग्रह शुक्र ग्रह के परम मित्र ग्रह माने जाते हैं तथा सूर्य ग्रह और चंद्रमा ग्रह शुक्र ग्रह के परम शत्रु ग्रह माने जाते हैं। शुक्र ग्रह का गोचर 23 दिन की अवधि का होता है। अर्थात शुक्र ग्रह एक राशि में क़रीब 23 दिन तक विराजमान बने रहते हैं।

आइए अब सबसे पहले बात करते हैं कि, शुक्र ग्रह का एक सामान्य मानव शरीर की संरचना पर क्या प्रभाव पड़ता है? ज्योतिष विद्या के विज्ञान अनुसार शुक्र ग्रह जिस किसी जातक की कुंडली में लग्न भाव(प्रथम) में विराजमान होते हैं वह जातक रूप-रंग से बेहद सुंदर व आकर्षक दिखता है। जातक का व्यक्तित्व कुछ ऐसा बना रहता है कि वह विपरीत लिंग के जातकों को अपनी तरफ आकर्षित करता रहता है। अच्छी बात यह रहती है कि जातक का स्वभाव मृदुभाषी बना रहता है। कुंडली के लग्न स्थान पर शुक्रदेव का विराजना अर्थात जातक का मन कला के क्षेत्र के प्रति रूचिवान बना रहता है।

 

वैदिक ज्योतिष विद्या के अनुसार यदि शुक्र ग्रह लग्न कुंडली में प्रभावी एवम मजबूत स्थिति में बना हुआ है तो जातक का वैवाहिक जीवन प्रेम से पूर्ण एवम सुखमयी बना रहता है। यदि आपकी कुंडली में शुक्र ग्रह मजबूत हैं तो आपको भी यह अनुभव अवश्य हुआ होगा कि आपका भी प्रेमपक्ष काफी उत्तम बना रहता है। शुक्र ग्रह पति और पत्नी के बीच प्रेम की भावना को बढ़ाता है तथा प्रेम करने वाले जातकों के जीवन में रोमांस की ऊर्जा में वृद्धि करता है। जातक भौतिक जीवन में उच्च की रूचि रखता है तथा उच्च के भोगों का सुख भी प्राप्त करता है।

यदि जातक की कुंडली में शुक्र ग्रह बलहीन स्थिति में हो या किसी क्रूर ग्रह के साथ प्रतिकूल स्थिति में बैठा हो या किसी पाप ग्रह की सीधी दृष्टि शुक्र ग्रह पर पड़ रही हो या शुक्र ग्रह नीच प्रभावी हो गए हों तो ऐसी स्तिथि में जातक को परिवार व प्रेम के क्षेत्र में काफी सारी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। शुक्र ग्रह के अति कमजोर होने पर जातक बहुत ज्यादा प्रैक्टिकल और काफी कम रोमांटिक हो सकता है। इसके साथ ही जातक प्रेम और वैवाहिक जीवन में भी काफी ज्यादा उतार-चढ़ाव से गुजरता है तथा इसी के चलते पति और पत्नी के मध्य मतभेद होते ही रहते हैं। अकारण ही विवाद उत्पन्न होना या कुछ भी ऐसा होना जिसके कारण जातक का वैवाहिक सुख भी क्षीण बना रहता है तथा जातक इतना अधिक परेशान बना रहता है कि वह भौतिक सुखों को भी भोग नहीं पाता है। आइए अब जानते हैं कि वो कौन सी गलतियां हैं जिसके कारण आपके शुक्र ग्रह आजीवन हेतु खराब भी हो सकते हैं।

7 गलतियां जो आपके शुक्र ग्रह को हमेशा के लिए खराब कर देंगी

01. पूर्ण ब्रह्मचर्य की पालना के अभाव में लक्ष्मीजी से संबंधित संकल्पित भक्ति मार्ग में आगे बढ़ना।

02. स्त्रीवर्ग का उचित सम्मान नहीं करना। व्यर्थ में घर की स्त्रियों को कोसना तथा अपशब्द कहते रहना और धर्म पत्नी पर हाथ उठाना।

03. घर की स्त्रियों का हमेशा कर्कश वाणी में ही बात करना। सांझ की संध्या पश्चात या रात्रि के समय घर की स्त्री का निरर्थक शिकायतें करना या कलह करते ही रहना।

04. माता-पिता की आत्मा दुखाकर विवाह करना या विवाह पश्चात किसी भी रूप में माता-पिता की अवहेलना करना।

05. घर की स्त्री का बहुत लंबे समय तक जमीन पर नंगे पांव चलते रहना और पूर्ण एवम् उत्तम श्रृंगार नहीं करना।

06. गृहस्थी में रहते हुए धर्म से संबंधित कार्यों में धर्मपत्नी का हाथ नहीं लगवाना और जीवन के महत्वपूर्ण निर्णयों में धर्मपत्नी की सलाह नहीं लेना।

07. नवविवाहित जोड़े के कमरे में मंदिर का होना, भगवान और गुरुदेव का कोई भी चित्र या पेंटिंग का होना और जिस भी कमरे में गुरुदेव या भगवान का चित्र हो वहां पर स्त्रियों का कपड़े बदलना।

-Guru SatyaRam

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If you do this, Venus can be bad for your whole life (Hindi & English)

Om-Shiva

According to our Vedic astrology, Venus is considered an auspicious planet. Due to its auspiciousness, the native gets material, physical and marital happiness. Therefore, in astrology, Venus is considered to be the factor of material happiness, marital happiness, pleasure of pleasure, fame in society, proficiency in art, talent, beauty, interest in romance, lust and fashion designing. Venus is the lord of Taurus (2) and Libra (7), and Pisces (12) is its exalted sign, while Virgo (6) is said to be its debilitated sign. Out of the 27 constellations, Venus owns Bharani constellation, Purva Phaguni constellation and Purvashada constellation. Among the nine planets, Mercury and Saturn are considered to be the best friends of Venus, while the Sun and Moon are considered to be the worst enemies of Venus. The transit of Venus lasts for a period of 23 days. That is, Venus remains in one zodiac sign for about 23 days.

Now let us first talk about what effect Venus has on the structure of a normal human body? According to the science of astrology, the person in whose horoscope Venus is situated in the ascendant house (first) looks very beautiful and attractive in appearance. The personality of the person remains such that he keeps attracting people of the opposite sex. The good thing is that the nature of the person remains soft-spoken. The presence of Shukradev in the ascendant place of the horoscope means that the mind of the person remains interested in the field of art.

According to Vedic astrology, if Venus is in an effective and strong position in the ascendant horoscope, then the married life of the person remains full of love and happiness. If Venus is strong in your horoscope, then you must have also experienced that your love side also remains very good. Venus increases the feeling of love between husband and wife and increases the energy of romance in the life of the natives in love. The native has a high interest in material life and also enjoys the pleasures of high pleasures.

If Venus is weak in the native’s horoscope or is sitting in an unfavorable position with a cruel planet or a sinful planet is directly looking at Venus or Venus has become lowly influential, then in such a situation the native may have to face many problems in the field of family and love. If Venus is very weak, the native may be very practical and very less romantic. Along with this, the native also goes through a lot of ups and downs in love and married life and due to this, differences keep occurring between husband and wife. Disputes arising without any reason or anything due to which the marital happiness of the native also remains weak and the native remains so troubled that he is not able to enjoy even material pleasures. Let us now know what are those mistakes due to which your Venus can get spoiled for life.

7 mistakes that will spoil your Venus forever

01. Moving forward on the path of devotion related to Lakshmiji without following complete celibacy.

02. Not giving proper respect to women. Cursing and using foul language against the women of the house for no reason and raising hand on the wife.

03. The women of the house always talking in a harsh voice. The woman of the house making useless complaints or quarreling after dusk or at night.

04. Getting married by hurting the spirit of the parents or ignoring the parents in any form after marriage.

05. The woman of the house walking barefoot on the ground for a very long time and not doing complete and perfect makeup.

06. While living in the household, the wife should not be involved in religious activities and the wife should not be consulted in important decisions of life.

07. There should not be a temple in the room of the newly married couple, any picture or painting of God and Gurudev and women should change clothes in the room where there is a picture of Gurudev or God.

-Guru SatyaRam