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Author: Guru Satyaram

कार्तिक पूर्णिमा 2024 (Hindi & English)

कार्तिक पूर्णिमा 2024 (Hindi & English)

कार्तिक पूर्णिमा का महात्म्य

Om-Shiva
साल में कुल 12 पूर्णिमाएं होती हैं। जिसमे कार्तिक पूर्णिमा को श्रेष्ठ माना गया है। भविष्य पुराण के अनुसार मासों में कार्तिक माह, और पूर्णिमाओं में कार्तिक पूर्णिमा को सर्वोत्तम माना जाता है। क्योंकि ये पूरा माह भगवान विष्णु को समर्पित है। कहा जाता है कि इस दिन पवित्र नदियों और कुंडों में स्नान करके भगवान श्रीहरि का जप, तप, ध्यान, दान, पूजन आदि किया जाता है तो अन्य तिथियों से अधिक पुण्यफलों की प्राप्ति होती है। इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से सभी पापों का क्षय होकर, अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन गंगा स्नान करने से ग्रह दोषों की भी शांति होती है। इस दिन सिक्खों के प्रथम गुरु, गुरुनानकदेव जी का अवतरण दिवस भी मनाया जाता है। गुरूद्वारों में दिनभर शब्द-कीर्तन और लंगर-भंडारे चलते हैं।

क्यों मनाते हैं कार्तिक पूर्णिमा और देव दीपावली?

उत्तर भारत मे कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव-दीपावली मनाई जाती है। क्योंकि इसी दिन भगवान शिव ने अत्याचारी त्रिपुरासुर का वध करके तीनों लोकों को भयमुक्त किया था। तब भगवान विष्णु ने भगवान शिव को “त्रिपुरारी” नाम दिया था। और देवताओं ने प्रसन्न होकर स्वर्ग में दीपावली मनाई थी। तब से पृथ्वी पर भी देव दीपावली मनाने की प्रथा शुरू हुई। इस दिन नदियों में घी के दिये जलाकर प्रवाहित करना सर्वथा शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि इससे पार्वती और शिव पुत्र कुमार कार्तिकेय की देखभाल करने वाली छः कृत्तिकाएं प्रसन्न होती हैं और दुर्भाग्य दूर करती हैं।

इसके अतिरिक्त कहा जाता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने प्रथम अवतार मत्स्य अवतार लिया था। पुराणों के अनुसार इसी दिन गंगा-गण्डकी के संगम पर हाथी और मगरमच्छ में युद्ध हुआ था, तब विष्णुभक्त गज यानि हाथी की करुण पुकार सुनकर मगरमच्छ का वध करके भगवान विष्णु ने गज के जीवन की रक्षा की थी। इस दिन पितरों की शांति के लिए पूजा-उपासना भी शुभ होती है। महाभारत युध्द के पश्चात पांडवों ने मारे गए योद्धाओं की आत्माओं की शांति के लिए पूजन किया था।

कार्तिक पूर्णिमा तिथि

इस बार कार्तिक पूर्णिमा का व्रत, पूजन, स्नान और दान आदि 15 नवम्बर, दिन शुक्रवार को होगा। स्नान-दान का शुभ मुहूर्त प्रातः 05:00 बजे से 06:02 मिनट तक रहेगा।

सत्यनारायण पूजन मुहूर्त

प्रातः 06:45 से प्रातः 10:45 तक होगा। देव दीपावली और दीपदान सायंकाल 04:45 से 06:05 मिनट तक रहेगा।

पूजन विधि-विधान

कार्तिक पूर्णिमा के दिन सुबह गंगाजल डालकर स्नान करें। फिर भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र के आगे शुध्द घी का दीपक जलाएं। कलश में गंगाजल रखें। पीले फूल, पीले फल, पीली मिठाई, पीला चन्दन और तुलसी दल चढ़ाएं। विधिवत पूजन करें।“ॐ नमो नारायणा” मंत्र का यथा शक्ति जाप करें। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। सत्यनारायण भगवान की कथा का आयोजन करें। नवग्रहों और पितरों सहित सभी देवी-देवताओं का ध्यान करें। विधिवत पूजन के बाद श्रीविष्णु, श्रीराम या श्रीकृष्ण मंदिर के वृद्ध ब्राह्मण को दान दें। शाम को भगवान शिव का कच्चे दूध से अभिषेक कर पूजन-अर्चन करें। शाम को नदी या तालाब में देशी घी का दिया प्रवाहित करें। घर और मन्दिर को दीप मालाओं से सजाएं। चंद्रोदय के बाद चन्द्रमा को अर्घ्य दें और खीर का भोग लगाकर पूजा करें । इस प्रकार पूजन-अर्चन करने से कुंडली के सूर्य तथा चन्द्र बलवान होते हैं। राहु-केतु जनित दोषों का शमन होता है और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। अतः यह पूर्णिमा अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।

कार्तिक पूर्णिमा का पौराणिक संदर्भ

पुराणों में मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा की तिथि पर शिवजी ने त्रिपुरा नामक एक भयंकर राक्षस को मारा था। एक बार त्रिपुरा नामक राक्षस ने प्रयागराज में एक लाख वर्ष तक घोर तप किया। इस तपस्या के प्रभाव से सभी चराचर और देवतागण भयभीत हो उठे। सभी देवताओं ने विभिन्न अप्सराओं को भेजकर उसका तप भंग करने का प्रयास किया लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिल सकी। यह देखकर ब्रह्माजी स्वयं उसके पास गए और वर मांगने के लिए कहा। तब त्रिपुर ने अंतरिक्ष में तीन अलग-अलग नगर बसाए और वह अति शक्तिशाली होकर देवताओं और मनुष्यों को प्रताड़ित करने लगा। सभी देवताओं ने मिलकर भगवान शिव से त्रिपुरा और उसके नगरों का नाश करने की प्रार्थना की। जब कार्तिक पूर्णिमा के दिन अभिजीत मुहूर्त में त्रिपुरा और उसके तीनों नगर परिक्रमा करते हुए एक सीध में आए तब भगवान शिव ने अपने दिव्य अस्त्रों से त्रिपुरा सहित उसके तीनों नगरों का सर्वनाश कर दिया। त्रिपुरा के वध के पश्चात सभी देवता अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने भगवान शिव को त्रिपुरारि और त्रिपुरान्तक का नाम दिया। उस दिन देवताओं ने तीनों लोकों में दीप जलाकर दीपावली मनाई। तब से इस दिन का महत्व बहुत बढ़ गया। और इसे देव दीपोत्सव के रूप में भी मनाए जाने लगा। पूर्णिमा तिथि सभी पापों का नाश करके अक्षय पुण्य प्रदान करने की एक अत्यंत महत्वपूर्ण तिथि है। इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव सहित सभी ग्रह नक्षत्र और देवी-देवताओं के पूजन का विशिष्ट फल मिलता है।

उपर्युक्त आलेख में मैंने कार्तिक पूर्णिमा के बारे में कुछ विशेष जानकारी देने का प्रयास किया है। आशा करती हूं कि आप सुधी पाठकों को मेरा यह प्रयास पसंद आया होगा। कृपया कमेंट के जरिए अपनी राय अवश्य दें।

धन्यवाद और आभार।

एस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव(ज्योतिष केसरी)

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Kartik Purnima 2024 (Hindi & English)

Significance of Kartik Purnima

Om-Shiva

There are a total of 12 full moons in a year. In which Kartik Purnima is considered the best. According to Bhavishya Purana, Kartik month is considered the best among the months and Kartik Purnima is considered the best among the full moons. Because this whole month is dedicated to Lord Vishnu. It is said that on this day, if one takes a bath in holy rivers and ponds and chants, meditates, donates, worships Lord Shri Hari, then one gets more virtuous results than on other dates. Ganga bath has special significance on this day. It is believed that by taking a bath in the Ganga on this day, all sins are destroyed and one attains Akshaya Punya. Taking a bath in the Ganga on this day also brings peace from planetary defects. On this day, the incarnation day of the first Guru of the Sikhs, Guru Nanak Dev Ji is also celebrated. Shabad-Kirtan and Langar-Bhandaras go on in the gurudwaras throughout the day.

Why do we celebrate Kartik Purnima and Dev Deepawali?

In North India, Dev-Deepawali is celebrated on the day of Kartik Purnima. Because on this day Lord Shiva freed the three worlds from fear by killing the tyrant Tripurasur. Then Lord Vishnu named Lord Shiva as “Tripurari”. And the Gods were happy and celebrated Deepawali in heaven. Since then, the practice of celebrating Dev Deepawali started on earth as well. On this day, lighting ghee lamps and floating them in the rivers is considered auspicious. It is said that this pleases the six Krittikas who take care of Parvati and Shiva’s son Kumar Kartikeya and removes misfortune.

Apart from this, it is said that on this day Lord Vishnu took the first incarnation Matsya Avatar. According to the Puranas, on this day, there was a war between an elephant and a crocodile at the confluence of Ganga-Gandaki, then on hearing the pathetic cry of Vishnu devotee Gaj i.e. elephant, Lord Vishnu killed the crocodile and saved the life of Gaj. On this day, worship is also auspicious for the peace of ancestors. After the Mahabharata war, the Pandavas performed Puja for the peace of the souls of the slain warriors.

Kartik Purnima Tithi

This time the fast, Puja, bath and donation of Kartik Purnima will be on 15 November, Friday. The auspicious time for bath and donation will be from 05:00 am to 06:02 am.

Satyanarayan Pujan Muhurta

Will be from 06:45 am to 10:45 am. Dev Deepawali and Deepdaan will be from 04:45 to 06:05 pm.

Worship Method

On the day of Kartik Purnima, take a bath by adding Gangajal in the morning. Then light a lamp of pure ghee in front of the idol or picture of Lord Vishnu. Keep Gangajal in the Kalash. Offer yellow flowers, yellow fruits, yellow sweets, yellow sandalwood and Tulsi leaves. Perform worship as per the rituals. Chant the mantra “Om Namo Narayana” as per your capacity. Recite Vishnu Sahasranama. Organise the story of Lord Satyanarayan. Meditate on all the deities including the nine planets and ancestors. After proper worship, donate to an old Brahmin of Shri Vishnu, Shri Ram or Shri Krishna temple. In the evening, worship Lord Shiva by anointing him with raw milk. In the evening, float a lamp of pure ghee in a river or pond. Decorate the house and temple with garlands of lamps. After moonrise, offer water to the moon and worship it by offering kheer. By worshipping in this way, the Sun and Moon in the horoscope become strong. The defects caused by Rahu-Ketu are mitigated and the blessings of ancestors are received. Therefore, this Purnima is considered very important.

Mythological reference of Kartik Purnima

It is believed in the Puranas that on the date of Kartik Purnima, Lord Shiva killed a fierce demon named Tripura. Once a demon named Tripura performed severe penance for one lakh years in Prayagraj. Due to the effect of this penance, all living beings and gods became afraid. All the gods tried to break his penance by sending various Apsaras but they could not succeed. Seeing this, Brahma himself went to him and asked him to ask for a boon. Then Tripura established three different cities in the space and he became very powerful and started torturing the gods and humans. All the gods together prayed to Lord Shiva to destroy Tripura and its cities. When Tripura and its three cities came in a straight line while doing Parikrama in Abhijit Muhurta on the day of Kartik Purnima, then Lord Shiva destroyed Tripura and its three cities with his divine weapons. After the killing of Tripura, all the gods were very happy and they named Lord Shiva as Tripurari and Tripurantak. On that day, the gods celebrated Diwali by lighting lamps in all the three worlds. Since then the importance of this day has increased a lot. And it also started being celebrated as Dev Deepotsav. Purnima Tithi is a very important date for destroying all sins and providing Akshay Punya. On this day, worshiping all the planets, stars and gods and goddesses including Lord Vishnu and Lord Shiva gives special results.

In the above article, I have tried to give some special information about Kartik Purnima. I hope you, the wise readers, liked my effort. Please give your opinion through comments.

Thanks and gratitude.

Astro Richa Srivastava (Jyotish Kesari)

ऐसा करेंगे तो सूर्य ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

ऐसा करेंगे तो सूर्य ग्रह आजीवन हेतु खराब हो सकते हैं (Hindi & English)

Om-Shiva

हमारे सनातन हिन्दू पौराणिक ग्रंथों में सूर्यग्रह को देवता माना गया है जिसके अनुसार, सूर्यदेव समस्त जीवों और संपूर्ण संसार के लिए आत्मा स्वरूप हैं। सूर्यदेव के द्वारा जातक को जीवन का आधार, संचालित ऊर्जा एवं शारीरिक बल की प्राप्ति होती है। प्रचलित मान्यता के अनुसार सूर्यदेव महान ऋषि महर्षि श्रीकश्यप के पुत्र हैं। इनकी माताश्री का नाम अदिति होने के कारण सूर्यदेव को आदित्य नाम से भी पुकारा जाता है। ज्योतिष विद्या में सूर्यग्रह को आत्मा का कारक माना गया है। सूर्यग्रह के चिकित्सीय और आध्यात्मिक लाभ को पाने के लिए लोग प्रातः जल्दी उठकर सूर्य नमस्कार करते हैं। हमारे हिन्दू पंचांग के अनुसार रविवार का दिन सूर्यग्रह के लिए समर्पित किया गया है जोकि पूर्ण सप्ताह का एक महत्वपूर्ण दिन माना जाता है।

सनातन हिन्दू ज्योतिष में सूर्यग्रह जब मकर राशि(10) में प्रवेश करते हैं तो वह प्रवेश धार्मिक कार्यों के लिए बहुत ही शुभ समय होता है। इस दौरान सभी सनातनी आत्मशांति की प्राप्ति हेतु धार्मिक कार्यों का आयोजन कराते हैं तथा सूर्यदेव की उपासना भी करते हैं। विभिन्न चंद्र राशियों में सूर्यग्रह की चाल के आधार पर ही हिन्दू पंचांग की गणना संभव हो पाती है। जब सूर्यग्रह एक राशि से दूसरी राशि में गोचर करते हैं तो उसे एक सौरमाह कहा जाता है। पूर्ण राशिचक्र में 12 राशियाँ होती हैं। अतः राशिचक्र को पूरा करने में सूर्यग्रह को एक वर्ष लगता है। अन्य ग्रहों की तरह सूर्यग्रह वक्री स्वभाव को कभी धारण नहीं करते हैं। सूर्यदेव हमारे जीवन में से अंधकार को नष्ट करके उसे प्रकाशित करते हैं। यह एकमात्र ऐसे ग्रह हैं जो हमें सदैव सकारात्मक चीज़ों की ओर प्रेरित करते रहते हैं। इनकी किरणें सभी मनुष्यों के लिए जीवनदायिनी और आशा की किरणें होती हैं। साथ ही सूर्यग्रह हमें सदैव ऊर्जावान बने रहने की प्रेरणा देते हैं। जिससे हम अपने सभी लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु सदैव अनवरत रूप से कार्य करते ही रहें।

सनातन वैदिक ज्योतिष में सूर्यग्रह जन्म कुंडली में हमारे पिताश्री का प्रतिनिधित्व करते हैं। सेवाक्षेत्र की बात करी जाए तो सूर्यग्रह सरकारी या अर्धसरकारी उच्च संबंधों एवम प्रशासनिक पदों तथा हमारे समाज में मान-सम्मान को दर्शाते हैं। यह साहस से आगे बढ़कर नेतृत्व करने वाले को भी दर्शाते हैं। यदि कुंडली में सूर्यग्रह शुभता के साथ बैठे हुए हों और इनकी महादशा चल रही हो तो रविवार के दिन जातकों को अच्छे फल देखने को मिलते हैं। सूर्यग्रह एकमात्र सिंह राशि(5) के स्वामी हैं। सूर्यदेव अपने मित्र मंगलदेव की मेष राशि(1) में यह उच्च प्रभावी होते हैं तथा शत्रु शुक्रदेव की तुला राशि(7) में यह नीच प्रभावी हो जाते हैं। आइए अब जानते हैं उन 07 गलतियों के बारे में जिनके कारण आपके सूर्यग्रह हमेशा के लिए खराब भी हो सकते हैं।

07 गलतियां जो आपके सूर्य ग्रह को हमेशा के लिए खराब कर देंगी

01. बहुत लंबे समय तक बगैर नित्य शुद्धि कर्म के अभाव में सुबह उठते ही बिस्तर पर ही अन्न ग्रहण करते रहना।

02. पति-पत्नी द्वारा गृहस्थी धर्म में रहते हुए भगवान सूर्यदेव का प्रकाश रहते हुए पूर्ण ब्रह्मचर्य की पालना नहीं करना।

03. अपने माता-पिता की सेवा की अवहेलना करते हुए जन्म स्थान से दक्षिण दिशा की तरफ या विदेश में जाकर स्थायी रूप से अपना निवास स्थान बना लेना।

04. राहु ग्रह की खराब दशा के चलते और आंखों की दृष्टि कमज़ोर होने के फलस्वरूप मकान या दुकान का निर्माण करवाना या पूर्वमुखी मकान या दुकान में शिफ्ट होना।

05. बहुत लंबे समय तक आसक्ति के आधार पर मृत व्यक्ति को हर क्षण याद करते हुए विलाप करना।

06. गला व मुख अधिक प्रभावित रहने पर या इनके रोग होने की दशा में अहंकारी, क्रोधी, घमंडी और जिद्दी स्वभाव को हमेशा ग्रहण करके रहना।

07. उत्तम गृहस्थी सुख की प्राप्ति के बावजूद दूसरा विवाह करना, घर में कलह करना या जर, जोरू और ज़मीन के झगड़ों में पड़ना या उनका फैसला करवाना।

– गुरु सत्यराम

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If you do this, the Sun can be damaged for life (Hindi & English)

Om-Shiva

In our Sanatan Hindu mythology, the Sun is considered a deity, according to which, the Sun is the soul of all living beings and the entire world. The Sun provides the basis of life, energy and physical strength to the person. According to popular belief, the Sun is the son of the great sage Maharshi Sri Kashyap. His mother’s name is Aditi, so the Sun is also called Aditya. In astrology, the Sun is considered the factor of the soul. To get the medical and spiritual benefits of the Sun, people wake up early in the morning and do Surya Namaskar. According to our Hindu calendar, Sunday is dedicated to the Sun, which is considered an important day of the whole week.

In Hindu astrology, when the Sun enters Capricorn (10), that entry is a very auspicious time for religious activities. During this time, all Sanatanis organize religious activities to attain inner peace and also worship the Sun. The calculation of Hindu Panchang is possible only on the basis of the movement of Sun in different lunar signs. When Sun transits from one sign to another, it is called a solar month. There are 12 signs in the complete zodiac cycle. Hence, Sun takes one year to complete the zodiac cycle. Like other planets, Sun never adopts retrograde nature. Sun God removes darkness from our life and illuminates it. It is the only planet that always inspires us towards positive things. Its rays are life-giving and rays of hope for all human beings. Also, Sun inspires us to always remain energetic. So that we always keep working continuously to achieve all our goals.

In Sanatan Vedic Astrology, Sun represents our father in the birth chart. If we talk about the service sector, then Sun represents high relations and administrative posts in government or semi-government and respect in our society. It also represents the one who leads with courage. If Suryagrah is placed auspiciously in the Kundali and its Mahadasha is going on, then the natives get to see good results on Sunday. Suryagrah is the lord of only Leo sign (5). Suryadev is highly influential in his friend Mangaldev’s Aries sign (1) and becomes lowly influential in enemy Shukradev’s Libra sign (7). Let us now know about those 07 mistakes due to which your Suryagrah can be spoiled forever.

07 mistakes that will spoil your Suryagrah forever

01. Eating food on the bed as soon as you wake up in the morning without performing daily purification rituals for a very long time.

02. Husband and wife not following complete celibacy while living in the household Dharma while Lord Suryadev is in the light.

03. Ignoring the service of your parents, going from the birthplace towards the south or abroad and making your permanent residence.

04. Due to bad condition of Rahu planet and weak eye sight, getting a house or shop constructed or shifting to an east facing house or shop.

05. Lamenting remembering the dead person every moment for a very long time on the basis of attachment.

06. If the throat and mouth are more affected or in case of their disease, then always adopting an egoistic, short-tempered, proud and stubborn nature.

07. Despite getting good domestic happiness, getting married for the second time, creating quarrels in the house or getting involved in disputes related to money, wife and land or getting them decided.

– Guru Satyaram

ज्योतिष में पंच महापुरुष योग (Hindi & English)

ज्योतिष में पंच महापुरुष योग (Hindi & English)

Om-Shiva

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी व्यक्ति की कुंडली में बनने वाले राज योगों में से “पंच महापुरुष योग” एक प्रमुख योग है। इसे पंच महापुरुष योग इसलिए कहते हैं क्योंकि यह योग पांच प्रमुख ग्रह मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि से निर्मित होता है। राहु और केतु को छाया ग्रह माना जाता है, अतः इन ग्रहों को इस योग में सम्मिलित नहीं किया गया है। क्योंकि नवग्रह और राशि चक्र में उपर्युक्त पांचो ग्रह को दो-दो राशियों का स्वामित्व दिया गया है, जबकि सूर्य और चंद्र को केवल एक-एक राशि का ही स्वामित्व दिया गया है। इसलिए पंच महापुरुष योग में सूर्य और चंद्रमा को भी शामिल नहीं किया गया है।

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है पंच महापुरुष योग में पांच प्रमुख योग हैं, जिनका विवरण आगे दिया गया है।

01. रूचक योग

यह योग मंगल से बनता है। अगर मंगल जन्म पत्रिका में स्वक्षेत्रीय या उच्च का होकर लग्न में या लग्न से केंद्र भावों में उपस्थित हो, अर्थात लग्न से चौथे, सातवें, दसवें या स्वयं लग्न में उपस्थित हो, तो रूचक योग का निर्माण होता है। यदि कुंडली में रूचक योग हो तो व्यक्ति के अंदर साहस, कार्य सिद्ध करने की क्षमता, थोड़ी सी लड़ाकू प्रवृत्ति, शत्रुओं का दमन करने वाला, ब्राह्मण और गुरुजनों का सम्मान करने वाला, अभिमानी, और किसी से भी ना दबने वाला होता है। प्रायः इस प्रकार के योग व्यक्ति को शारीरिक रूप से पुष्ट बनाते हैं, अपने पराक्रम से वह विख्यात होता है। अक्सर सेनापति, उच्च स्तर के पदाधिकारी, प्रशासनिक व्यक्ति, और एक बड़े उद्योगपति की जन्म पत्रिका में यह योग पाया जाता है।

02. भद्र योग

यह योग बुध ग्रह द्वारा निर्मित होता है। यदि बुध स्वक्षेत्री या उच्च का होकर लग्न में या लग्न से केंद्र के भावों में स्थित हो तो भद्र योग बनता है। ऐसा जातक पुष्ट शरीर वाला, बुद्धिमान, रिश्तेदारों की मदद करने वाला, सौम्य व्यक्तित्व वाला और दीर्घायु होता है। प्राय: अभिनय, मीडिया और व्यापार आदि के क्षेत्र में ऐसे योग वाले व्यक्ति प्रतिष्ठित और प्रख्यात होते हैं। यह अत्यंत चतुर, बुद्धिमान, विवेकशील, और मीठी वाणी का प्रयोग करने वाले होते हैं। अपनी वाकपटुता से यह अपने सभी कार्य सिद्ध कर लेते हैं। और अपने कर्मक्षेत्र में सफल होते हैं। ऐसे योग वाले जातक अपने कुल का नाम रोशन करते हैं।

03. हंस योग

यह योग बृहस्पति ग्रह द्वारा निर्मित होता है। जब बृहस्पति कुंडली में अपने घर का या उच्च का होकर लग्न में या लग्न से केंद्र भाव में स्थित हो, तो हंस योग बनता है। ऐसे योग वाले जातक के हथेली पर शंख, कमल, मछली और अंकुश का चिन्ह होता है। इनके मुख पर लाल रंग की आभा होती है। गोरा रंग होता है और आंखें प्रायः भूरी होती हैं। ऐसे योग वाले जातक अक्सर उच्चकोटि के लेखक, उपदेशक, और धार्मिक गुरु, न्यायाधीश, शिक्षक या किसी संस्थान के उच्च पदाधिकारी होते हैं। ऐसे जातक समाज में अपनी शिक्षा और विद्या के द्वारा उच्च प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं, और अक्सर सरकार द्वारा सम्मानित होते हैं।

04. मालव्य योग

मालव्य योग का निर्माण शुक्र ग्रह द्वारा होता है। अन्य ग्रहों की भांति यह योग भी शुक्र के अपने घर में होकर या उच्च का होकर लग्न में या लग्न से केंद्र भावों में स्थित होने पर बनता है। ऐसे योग वाला जातक अच्छे स्वास्थ्य वाला, दृढ़ मानसिकता संपन्न, धनवान, ऐश्वर्यशाली, तथा पत्नी और संतान से सुखी होता है। यह एक सुशिक्षित और समाज में प्रतिष्ठित व्यक्ति होता है। ऐसे योग से प्रभावित जातक चमकदार आंखों वाला, सुंदर और आकर्षक चेहरे वाला, प्रभावशाली व्यक्तित्व वाला होता है। ऐसे योग के जातक भीड़ में भी अपनी अलग पहचान बनाते हैं। अक्सर ऐसे योग वाले जातक उच्चकोटि के कलाकार, नृत्य संगीत में पारखी, शिल्पकला में दक्ष, कवि अथवा कवियत्री भी होते हैं। सज्जन और सौम्य स्वभाव उनकी विशिष्टता होती है।

05. शश योग

शश योग शनिदेव द्वारा कुंडली में निर्मित होता है। जब लग्न से केंद्र भावों में या स्वयं लग्न में शनि स्वक्षेत्रीय होकर, अथवा उच्च का होकर विराजमान होते हैं तब शश नामक योग का निर्माण होता है। ऐसे योग वाले जातक नौकर चाकर से युक्त, समाज में प्रतिष्ठित व्यक्ति होते हैं। अक्सर किसी गांव या नगर अथवा किसी संस्थान के मुखिया होते हैं। ऐसे जातकों के भीतर सेवा भाव होता है, जनता का सेवक अथवा नेता, जनप्रतिनिधि भी होता है। ऐसे जातक विवेकशील और न्याय प्रिय होते हैं, गलत बात बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करते हैं। अपनी माता के भक्त होते हैं और बहुमुखी प्रतिभा के धनी होते हैं। विरासत में संपत्ति का सुख इनको प्राप्त होता है। अपनी न्यायप्रियता के कारण जनता में लोकप्रिय होते हैं।

प्रसिद्ध ज्योतिष ग्रंथ सागर के अनुसार जन्म कुंडली में पंच महापुरुष योग की उपस्थिति रहते हुए भी यदि योग कारक ग्रहों की युति चंद्रमा अथवा सूर्य से होती है तो जातक को पंच महापुरुष योग का पूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पता है। किंतु योग कारक ग्रहों की दशा और अंतर्दशा में, जातक उस योग का शुभ फल कुछ हद तक प्राप्त कर लेता है। पंच महापुरुष के योग कारक ग्रह अपने दशा-अंतर्दशा में ही पूर्ण परिणाम देते हैं। कुछ परिणाम ग्रहण के गोचर में भी प्राप्त होते हैं।

उपर्युक्त आलेख में मैंने ज्योतिष के मुख्य राजयोगों में से एक पंच महापुरुष राजयोग की संक्षिप्त जानकारी देने की कोशिश की है। आशा है पाठकों को मेरा यह प्रयास पसंद आया होगा। कृपया कमेंट के जरिए मुझे अपनी राय अवश्य दें।

धन्यवाद और आभार।

-एस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव (ज्योतिष केसरी)

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Panch Mahapurush Yoga in Astrology (Hindi & English)

Om-Shiva

According to Jyotish Shastra, Panch Mahapurush Yoga is one of the Raj Yogas formed in a person’s horoscope. It is called Panch Mahapurush Yoga because this yoga is formed by the five major planets Mars, Mercury, Jupiter, Venus and Saturn. Rahu and Ketu are considered shadow planets, so these planets are not included in this yoga. Because in Navgrah and Zodiac cycle, the above five planets have been given ownership of two zodiac signs each, while Sun and Moon have been given ownership of only one zodiac sign each. Therefore, Sun and Moon are also not included in Panch Mahapurush Yoga.

As the name suggests, there are five major yogas in Panch Mahapurush Yoga, the details of which are given below.

01. Ruchak Yoga

This yoga is formed by Mars. If Mars is in its own house or exalted in the birth chart and is present in the Lagna or in the Kendra Bhaavs from the Lagna, i.e., present in the fourth, seventh, tenth house from the Lagna or in the Lagna itself, then Ruchak Yoga is formed. If there is Ruchak Yoga in the horoscope, then the person has courage, ability to accomplish tasks, a little fighting nature, suppresses enemies, respects Brahmins and elders, is arrogant, and does not get suppressed by anyone. Usually, such yogas make a person physically strong, he is famous for his valor. Often this yoga is found in the birth chart of a commander, high level officer, administrative person, and a big industrialist.

02. Bhadra Yoga

This yoga is formed by the planet Mercury. If Mercury is in its own house or exalted and is situated in the Lagna or in the Kendra Bhaavs from the Lagna, then Bhadra Yoga is formed. Such a person is strong, intelligent, helps relatives, has a gentle personality and is long-lived. Usually, people with such yoga are reputed and famous in the field of acting, media and business etc. They are very smart, intelligent, prudent and use sweet words. They accomplish all their tasks with their eloquence and are successful in their field of work. People with such yoga bring glory to their family.

03. Hans Yoga

This yoga is formed by the planet Jupiter. When Jupiter is in its own house or in high position in the horoscope and is placed in the Lagna or in the Kendra Bhava from the Lagna, then Hans Yoga is formed. People with such yoga have the signs of conch, lotus, fish and goad on their palm. There is a red aura on their face. They have a fair complexion and eyes are usually brown. People with such yoga are often high class writers, preachers, religious gurus, judges, teachers or high officials of any institution. Such people achieve high prestige in the society through their education and knowledge and are often honored by the government.

04. Malavya Yoga

Malavya Yoga is formed by the planet Venus. Like other planets, this yoga is also formed when Venus is in its own house or exalted and is situated in the Lagna or in the Kendra houses from the Lagna. A person with such a yoga is healthy, has a strong mentality, is wealthy, opulent, and is happy with his wife and children. He is a well-educated person and has a reputation in the society. A person affected by such a yoga has bright eyes, a beautiful and attractive face, and an impressive personality. People with such a yoga make their own identity even in the crowd. Often, people with such a yoga are high-class artists, connoisseurs of dance and music, skilled in craftsmanship, poets or poetesses. Gentle and mild nature is their specialty.

05. Shasha Yoga

Shasha Yoga is formed in the horoscope by Lord Shani. When Saturn is in its own house or exalted and is situated in the Kendra houses from the Lagna or in the Lagna itself, then a yoga called Shasha is formed. The natives with such yoga are respected people in the society, have servants. Often they are the head of a village or a city or an institution. Such natives have a sense of service, they are public servants or leaders, public representatives too. Such natives are prudent and love justice, do not tolerate wrongdoing at all. They are devotees of their mother and are multi-talented. They get the happiness of property as inheritance. They are popular among the public due to their love for justice.

According to the famous Jyotish Granth Sagar, even if Panch Mahapurush yoga is present in the birth chart, if the yoga-causing planets are conjoined with the moon or the sun, then the native does not get the full benefits of Panch Mahapurush yoga. But in the dasha and antardasha of the yoga-causing planets, the native gets the auspicious results of that yoga to some extent. The yoga-causing planets of Panch Mahapurush give full results only in their dasha and antardasha. Some results are also obtained during the transit of the eclipse.

In the above article, I have tried to give a brief information about Panch Mahapurush Rajyoga, one of the main Rajyogas of astrology. I hope the readers liked my effort. Please give me your opinion through comments.

Thanks and gratitude.

-Astro Richa Srivastava (Jyotish Kesari)

श्री तुलसी विवाह 2024 (Hindi & English)

श्री तुलसी विवाह 2024 (Hindi & English)

Om-Shiva

परिचय

तुलसी विवाह सनातन धर्म में विशेष महत्व रखता है। इसे देव उठानी एकादशी भी कहा जाता है। यह प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन माता तुलसी और शालिग्राम रूपी भगवान विष्णु का विवाह कराया जाता है। इस दिन सभी लोग तुलसी को सौभाग्यदायिनी मानकर उनकी पूजा और व्रत अनुष्ठान करते हैं। तुलसी विवाह का उत्सव यूं तो सारे भारतवर्ष में प्रचलित है, लेकिन उत्तर भारत में इसे विशेष तौर पर मनाया जाता है।

माता तुलसी के दर्शन, स्पर्श, ध्यान, पूजन, आरोपण और सिंचन से अनेक युगों के पाप नष्ट हो जाते हैं। माता तुलसी को गंगा के समान ही पवित्र, पाप नाशिनी, सौभाग्य दायिनी, और आधि-व्याधि को मिटाने का वरदान प्राप्त है।

तुलसी विवाह का महत्व

मान्यता है कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के एकादशी तिथि के दिन भगवान विष्णु अपनी चार महीने की योग निद्रा से जागते हैं। इसलिए इसे देवउठनी एकादशी अथवा प्रबोधिनी एकादशी के रूप में जाना जाता है। इस एकादशी का वर्ष की सभी एकादशियों में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। क्योंकि हिंदू शास्त्रों के अनुसार, वर्षा के चातुर्मास में किसी भी प्रकार का शुभ और मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है। अतः इस दिन तुलसी विवाह से ही समस्त मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है। ऐसी मान्यता है कि जो अपने घर में तुलसी विवाह एवं पूजा का आयोजन करता है, उसके घर से क्लेश और विपत्तियां दूर हो जाती हैं। धन संपदा और समृद्धि बढ़ती है, और माता लक्ष्मी का स्थाई निवास हो जाता है।

तुलसी विवाह पूजन का समय एवम विधि विधान

वर्ष 2024 में तुलसी विवाह दिनांक 12 नवम्बर 2024, मंगलवार को सांय प्रदोष काल में संपन्न कराया जायेगा। तुलसी विवाह में उपवास रखने का नियम है जिसमें अन्न का सेवन नहीं करके केवल फलाहार किया जाता है। आमतौर पर वैष्णो संप्रदाय के लोग तुलसी तथा शालिग्राम का विवाह करते हैं। नए कपड़े, श्रृंगार की वस्तुएं, जनेऊ, आभूषण आदि तुलसी के गमले और शालिग्राम पर चढ़ाया जाता है।

भगवान विष्णु की प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा करके उसे वस्त्र और आभूषण से सजाकर, पूरे सम्मान और श्रद्धा से गाजे-बाजे के साथ तुलसीजी के चौबारे पर लेकर जाया जाता है। फिर उस स्थान पर विधिपूर्वक पूजन करने के बाद विवाह रचाया जाता है। इस अवसर पर स्त्रियां विवाह के मंगल गीत गाती हैं। पूजन और आरती आदि करती हैं। उसके बाद भोग लगाकर व्रत की समाप्ति करती हैं। अनेक लोग तुलसीजी और शालिग्रामजी की 108 परिक्रमाएं भी करते हैं। ऐसा माना जाता है की दोनों का विवाह रचा करके अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।

व्रत पूजन की कथा

प्राचीन काल में भगवान शिव के तेज से उत्पन्न जालंधर नाम का एक अत्यंत पराक्रमी असुर था। उसकी पत्नी वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त थी और अखंड पतिव्रता थी। उसके पातिव्रत के तेज से जालंधर अजय हो गया था और अत्यंत अभिमानी हो गया था। उसने अपने अहंकार और अत्याचार से तीनों लोकों को त्रस्त कर रखा था तथा स्त्रियों और कन्याओं को परेशान करता था। दुःखी होकर सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में गए और जालंधर के आतंक को समाप्त करने की प्रार्थना करने लगे। भगवान विष्णु ने माया से जालंधर का रूप धारण कर लिया और छल से वृंदा के पातिव्रत धर्म को नष्ट कर दिया। इससे जालंधर की शक्ति क्षीण हो गई और वह युद्ध में मारा गया।

जब वृंदा को भगवान विष्णु के छल का पता चला, तो उसने अत्यंत क्रोधित होकर भगवान विष्णु को पत्थर का बन जाने और पत्नी वियोग से पीड़ित हो जाने का श्राप दे दिया। देवताओं की प्रार्थना पर वृंदा ने अपना श्राप वापस ले लिया, लेकिन भगवान विष्णु वृंदा के साथ किए हुए छल पर लज्जित थे, अतः वृंदा के शाप को जीवित रखने के लिए भगवान विष्णु ने अपना एक रूप पत्थर में प्रकट किया जो की शालिग्राम कहलाया।

भगवान विष्णु को दिए श्राप को वापस लेने के बाद वृंदा जालंधर के साथ सती हो गई। वृंदा के मृत शरीर की राख से तुलसी का पौधा निकला। फिर वृंदा की मर्यादा और पवित्रता को बनाए रखने के लिए देवताओं ने भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप का विवाह तुलसी से कराया। और तुलसी को वरदान दिया कि भगवान विष्णु और उनके अवतारों के पूजन भोग में तुलसी दल अनिवार्य रहेगी। और तुलसी की पवित्रता गंगा के समान पुण्यदायी मानी जायेगी। इसी दिन की याद में प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि को तुलसी का विवाह शालिग्राम के साथ कराया जाता है।

उपर्युक्त आलेख में मैंने तुलसी विवाह एकादशी के बारे में एक संक्षिप्त जानकारी देने का प्रयास किया है। आशा करती हूं कि आपको मेरा प्रयास पसंद आया होगा। कृपया कमेंट के जरिए अपनी राय मुझे अवश्य दें।

धन्यवाद और आभार।

– एस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव (ज्योतिष केसरी)

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Shri Tulsi Vivah 2024 (Hindi & English)

Om-Shiva

Introduction

Tulsi Vivah holds special significance in Sanatan Dharma. It is also called Dev Uthani Ekadashi. It is celebrated every year on the Ekadashi date of Shukla Paksha of Kartik month. On this day, the marriage of Mother Tulsi and Lord Vishnu in the form of Shaligram is performed. On this day, all the people consider Tulsi as a giver of good fortune and worship her and perform fasting rituals. The festival of Tulsi Vivah is prevalent all over India, but it is especially celebrated in North India.

The sins of many ages are destroyed by the sight, touch, meditation, worship, application and irrigation of Mother Tulsi. Mother Tulsi is blessed with the blessings of being as pure as the Ganges, destroyer of sins, giver of good fortune, and eradicating diseases.

Importance of Tulsi Vivah

It is believed that on the Ekadashi date of Shukla Paksha of Kartik month, Lord Vishnu wakes up from his four-month yogic sleep. Therefore, it is known as Devuthani Ekadashi or Prabodhini Ekadashi. This Ekadashi has a very important place among all the Ekadashis of the year. Because according to Hindu scriptures, no auspicious or mangal work is done during the Chaturmas of the rainy season. Therefore, all the mangal works start with Tulsi Vivah on this day. It is believed that whoever organizes Tulsi Vivah and worship in his house, all the troubles and troubles go away from his house. Wealth and prosperity increase, and Mother Lakshmi becomes a permanent abode.

Time and method of Tulsi marriage worship

In the year 2024, Tulsi marriage will be solemnized on 12th November 2024, Tuesday, during the evening Pradosh period. There is a rule of fasting in Tulsi Vivah, in which food is not consumed and only fruits are eaten. Usually, people of Vaishno sect perform the marriage of Tulsi and Shaligram. New clothes, makeup items, sacred thread, jewelry etc. are offered to Tulsi pot and Shaligram.

After consecration of the idol of Lord Vishnu, it is decorated with clothes and jewellery and taken to the Tulsi Chaubara with full respect and reverence with music and dance. Then after worshipping the place in a proper manner, the marriage is solemnized. On this occasion, women sing auspicious songs of marriage. They do puja and aarti etc. After that, they end the fast by offering food. Many people also do 108 parikramas of Tulsi and Shaligram. It is believed that by marrying both, one gets eternal virtue.

Story of fast worship

In ancient times, there was a very powerful demon named Jalandhar born from the radiance of Lord Shiva. His wife Vrinda was an ardent devotee of Lord Vishnu and was a devoted wife. Jalandhar had become invincible and very arrogant due to the radiance of her devotion to her husband. He had troubled the three worlds with his arrogance and atrocities and used to harass women and girls. Saddened, all the gods went to Lord Vishnu and prayed to end Jalandhar’s terror. Lord Vishnu took the form of Jalandhar through Maya and destroyed Vrinda’s chastity. This weakened Jalandhar’s power and he was killed in the war.

When Vrinda came to know about Lord Vishnu’s deceit, she became very angry and cursed Lord Vishnu to turn into stone and suffer from the separation from his wife. On the prayers of the gods, Vrinda took back her curse, but Lord Vishnu was ashamed of the deceit done with Vrinda, so to keep Vrinda’s curse alive, Lord Vishnu manifested one of his forms in stone which was called Shaligram.

After taking back the curse given to Lord Vishnu, Vrinda became Sati with Jalandhar. Tulsi plant emerged from the ashes of Vrinda’s dead body. Then to maintain the dignity and purity of Vrinda, the gods got Lord Vishnu’s Shaligram form married to Tulsi. And gave a boon to Tulsi that Tulsi leaves will be mandatory in the worship of Lord Vishnu and his incarnations. And the purity of Tulsi will be considered as virtuous as Ganga. In memory of this day, every year on Kartik Shukla Ekadashi, Tulsi is married to Shaligram.

In the above article, I have tried to give a brief information about Tulsi Vivah Ekadashi. I hope you liked my effort. Please give me your opinion through comments.

Thanks and gratitude.

– Astro Richa Srivastava (Jyotish Kesari)

सूर्य उपासना का महापर्व छठ पूजन (Hindi & English)

सूर्य उपासना का महापर्व छठ पूजन (Hindi & English)

Om-Shiva
हमारे हिंदू धर्म में हर त्यौहार का अपना विशेष महत्व है। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण त्यौहार छठ पूजा है, जिसे प्रत्येक वर्ष बहुत धूमधाम से ना केवल भारत में बल्कि विदेशों में बसे भारतीय, विशेष तौर पर बिहार मूल के भारतीय बड़े हर्ष और उल्लास से मनाते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की छठी तिथि से छठ के महापर्व की शुरुआत होती है। इसे “सूर्य षष्ठी” के नाम से भी जाना जाता है। छठ पूजा में चार दिनों तक सूर्यदेव की विशेष पूजा और अर्चना करने का विधान है। यह व्रत चार दिनों तक चलने वाला अत्यंत कठिन अनुष्ठान है। इसमें स्वच्छता और शुचिता का कठोरता से पालन किया जाता है। व्रत करने वाला व्यक्ति मुख्य पूजन के 05 दिन पूर्व से ही सात्विक भोजन ग्रहण करता है। लहसुन और प्याज आदि का 07 दिनों तक के लिए त्याग कर देते हैं। भूमि पर शयन और दो दिनों तक निर्जला व्रत इस अनुष्ठान की कठोरता में वृद्धि करता है।

01. क्या होता है छठ पर्व?

भारत पर छठ सूर्य उपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है। मुख्य रूप से सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा जाता है। ऐसे तो यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को चैती छठ कहते हैं। और कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ अथवा डाला छठ कहते हैं। इस पर्व में बांस, कुश और सरकंडे से बने डलिया या टोकरी का ही प्रयोग पूजन, अर्ध्य और भोग प्रदान करने में किया जाता है। इसलिए कार्तिक शुक्लपक्ष के छठ को डाला छठ कहते हैं।

यह पर्व मुख्यतः बिहार का राजकीय और प्रमुख लोक सांस्कृतिक त्यौहार है। इस पर्व में सामाजिक समरसता परिलक्षित होती है, क्योंकि बिना किसी जाति-पाति अथवा अमीर-गरीब के भेदभाव के सभी स्त्री-पुरुष नदी अथवा तालाब के घाट पर एकत्रित होकर पूर्ण श्रद्धा और आस्था के साथ सूर्य और षष्ठी माता का पूजन, उपासना, दीपदान, अर्घ्य आदि से पूजन करते हैं।

02. सूर्य पूजन के साथ षष्ठी देवी का पूजन क्यों होता है?

छठ में भले ही सूर्य देवता की पूजा होती हो, लेकिन छठ पर्व को मैया कहकर संबोधित किया जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि लोकभाषा में छठी मैया वस्तुत ऋषि कश्यप और माता अदिति की मानस पुत्री हैं। इन्हें देवसेना के नाम से भी जाना जाता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार कात्यायन ऋषि की पुत्री कात्यायनी देवी को ही छठी मैया कहा जाता है। क्योंकि नवरात्रों में छठे दिन में कात्यायनी देवी की पूजा की जाती है। छठी मैया अथवा माँ देवसेना भगवान सूर्य की बहन तथा भगवान कार्तिकेय की पत्नी हैं। पौराणिक मान्यता है कि शिशु के जन्म से लेकर अगले 06 दिनों तक देवी कात्यायनी और माँ देवसेना नवजात शिशु की रक्षा करती हैं। इसलिए भी भारतीय सनातन पद्धति में शिशुओं के जन्म के बाद छठे दिन षष्ठी पूजन का विशेष आयोजन किया जाता है।

03. छठ पूजा का पौराणिक महत्व

वैदिककाल में पहले एकमात्र व्रत पयोव्रत का विवरण मिलता है। यह व्रत ऋषि कश्यप के कहने पर माता अदिति ने किया था और केवल दूध का सेवन किया था। इस व्रत के उपरांत ही माता अदिति के गर्भ से वामन भगवान ने अवतार लिया था। छठ पर्व का उल्लेख श्रीमद्भागवत पुराण और स्कंदपुराण में भी मिलता है। स्कंदपुराण में तो छठी मैया की महिमा का वर्णन एक कथा के रूप में विस्तार से किया गया है। इस पूजन का संबंध संतान के दीर्घायु और उत्तम स्वास्थ्य की कामना से है। अनेक लोग संतान प्राप्ति की कामना से भी इस व्रत को रखते हैं।

04. छठ पर्व के व्रत की कथा

छठ पर्व को लेकर कई पौराणिक कथाएं हैं। इसमें से प्रमुख कथा है सूर्यवंशी राजा परिवार और उनकी पत्नी मालिनी की। प्राचीन समय में सूर्यवंशी राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी मालिनी ने संतान प्राप्ति के लिए अनेक धार्मिक अनुष्ठान किया, लेकिन उन्हें कोई संतान प्राप्त नहीं हुई। इस कारण राजा बहुत दुखी रहने लगे थे। संतान प्राप्ति हेतु ऋषि कश्यप के आदेश के अनुसार उन्होंने एक यज्ञ का आयोजन किया। इसके परिणाम स्वरूप रानी मालिनी गर्भवती हुई लेकिन उन्हें मृत संतान पैदा हुई। इससे राजा और रानी को अत्यंत दुःख हुआ और वह शोकाकुल होकर आत्महत्या करने के लिए चल पड़े। उनके विलाप को सुनकर सिंहासन पर सवार एक देवी उनके पास आईं। और उनके आशीर्वाद से मृत शिशु जीवित हो उठा। इस पर राजा प्रियव्रत ने दोनों हाथ जोड़कर देवी की आराधना करी और पूछा कि आप कौन हैं? तब उत्तर में उन देवी ने कहा मैं छठ माता हूं, मैं निःसंतान दंपति को संतान होने का आशीर्वाद देती हूँ। और जिनके संतान हैं उनकी रक्षा करती हूं। इस प्रकार से छठ पूजन प्रारंभ हुआ।

इसके अलावा महाभारत काल में भी छठ पूजन का उल्लेख आता है। कहा जाता है कि माता कुंती और द्रौपदी अपने वनवास काल के दौरान प्रत्येक वर्ष षष्ठी पूजन पूरी आस्था और भक्ति से करती थी। जिसके परिणाम स्वरूप उन्हें खोया हुआ राजपाट वापस मिला। इसी प्रकार से कहा जाता है कि महाभारत के योद्धा कर्ण प्रतिदिन घंटों तक जल में खड़े होकर सूर्यदेव की पूजा और उपासना करते थे। वह सूर्यदेव के परम भक्त थे। सूर्यदेव की कृपा से ही वह महान योद्धा बने और उन्हें अत्यधिक शक्तिशाली कवच और कुंडल प्राप्त हुआ और महान पराक्रमी बने। कहते हैं कि कर्ण ने ही सूर्यदेव की आराधना के रूप में छठ पूजन की शुरुआत की थी।

05. वर्ष 2024 में कब है छठ पर्व?

इस वर्ष छठ महापर्व की शुरुआत 05 नवंबर 2024 को दिन मंगलवार से नहाए-खाए की क्रिया के साथ 08 नवंबर 2024 के दिन शुक्रवार को उगते हुए सूर्यदेव को अर्घ्य देने के साथ समाप्त होगा।

06. सूर्य को अर्घ्य देने का समय

07 नवंबर- संध्या अर्घ्य- सूर्यास्त का समय- शाम 05:31 पर।
08 नवंबर- उषा अर्घ्य- सूर्योदय का समय- सुबह 06:38 पर। उसके उपरांत पारण।

07. छठ पर्व का विधि विधान?

छठ पूजा में बहुत ही कठिन और पवित्र नियमों का पालन किया जाता है क्योंकि इसमें शुद्धता, संयम और अनुशासन का विशेष महत्व है। इस पर भोजन में सात्विकता रहती है, केले के पत्तों, मिट्टी के चूल्हों, पत्तलों, और मिट्टी के पात्रों का उपयोग भोजन निर्माण और सेवन में किया जाता है। पहले दिन नहाए खाए , फिर दूसरे दिन खरना प्रसाद के बाद तीसरे दिन संध्याकाल में व्रतधारी कमर तक जल में खड़े होकर, सूप में फल, फूल, मिष्ठान और दीपक रखकर, मिट्टी, पीतल अथवा तांबे के पात्र से कच्चे दूध और गंगाजल से डूबते सूर्यदेव को अर्घ्य देते हैं। नदी किनारे सभी लोग एकत्र होकर ईख या गन्ने के डंडों से मंडप बनाते हैं। उसके नीचे गोबर का लेपन करके, अल्पना आदि बनाकर, कलश स्थापित करते हैं और दीप मालाएं लगाते हैं। सूर्यदेव को अर्घ्य देने के उपरांत लोग घर वापस आते हैं, रात्रि जागरण करते हैं और छठी मैया के गीत गाते हैं। दूसरे दिन प्रातःकाल इसी प्रकार से उगते सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है, और व्रत का पारण किया जाता है।

छठ पूजन में बांस की टोकरी यानी सूप या डलिया, गुड और आटे से बना विशेष प्रसाद ठेकुआ, प्रत्येक प्रकार के मौसमी
फल, गंगाजल, कच्चा नारियल, हल्दी, सिंदूर, मिट्टी के दीपक, घी, धूप, अगरबत्ती आदि विशेष सामग्री का प्रयोग किया जाता है। इस व्रत का पालन पूरा परिवार एक साथ मिलकर करता है। यह व्रत परिवार और समाज के बीच आपसी लगाव और सद्भाव को बढ़ाता है। सब लोग मिलजुलकर इस पर्व को मनाते हैं जिससे लोगों में स्नेह, प्रेम और सहयोग की भावना प्रबल होती है।

उपर्युक्त आलेख में मैंने महापर्व छठ के बारे में कुछ जानकारी देने का प्रयास किया है। आशा करती हूं सभी पाठकों को मेरा यह प्रयास पसंद आया होगा। कृपया कमेंट के जरिए अपना परामर्श दें।

धन्यवाद और आभार।

– एस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव (ज्योतिष केसरी)

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Chhath Puja, the great festival of Surya Upasana (Hindi & English)

Om-Shiva

Every festival has its own special significance in our Hindu religion. One of these important festivals is Chhath Puja, which is celebrated every year with great pomp and show not only in India but also by Indians living abroad, especially Indians of Bihar origin, with great joy and enthusiasm. According to the Hindu calendar, the great festival of Chhath begins from the sixth day of the Shukla Paksha of the month of Kartik. It is also known as “Surya Shashthi”. In Chhath Puja, there is a ritual of special worship and prayer of Sun God for four days. This fast is a very difficult ritual that lasts for four days. Cleanliness and purity are strictly followed in this. The person observing the fast consumes satvik food from 05 days before the main worship. Garlic and onion etc. are given up for 07 days. Sleeping on the ground and fasting without water for two days increases the rigor of this ritual.

01. What is Chhath festival?

Chhath is a famous festival of sun worship in India. It is called Chhath mainly because it is a Surya Shashthi fast. This festival is celebrated twice a year. The festival celebrated on Chaitra Shukla Paksha Shashthi is called Chaiti Chhath. And the festival celebrated on Kartik Shukla Paksha Shashthi is called Kartiki Chhath or Daala Chhath. In this festival, baskets or baskets made of bamboo, kush and reeds are used for worship, offering and prasad. Therefore, Chhath of Kartik Shukla Paksha is called Daala Chhath.

This festival is mainly a state and major folk cultural festival of Bihar. Social harmony is reflected in this festival, because without any discrimination of caste or rich-poor, all men and women gather at the river or pond bank and worship the Sun and Shashthi Mata with full devotion and faith, by worshipping, lighting lamps, offering arghya etc.

02. Why is Shashthi Devi worshipped along with Surya Puja?

Even though Sun God is worshipped in Chhath, Chhath festival is addressed as Maiya. This is because in the local language Chhathi Maiya is actually the Manas Putri of Sage Kashyap and Mother Aditi. She is also known as Devsena. According to Brahmavaivart Purana, Katyayani Devi, daughter of Sage Katyayan, is called Chhathi Maiya. Because Katyayani Devi is worshipped on the sixth day of Navratri. Chhathi Maiya or Maa Devsena is the sister of Lord Sun and wife of Lord Kartikeya. There is a mythological belief that from the birth of the child till the next 06 days, Goddess Katyayani and Mother Devsena protect the newborn child. That is why in the Indian Sanatan system, a special event of Shashthi Puja is organized on the sixth day after the birth of the child.

03. Mythological importance of Chhath Puja

In the Vedic period, the description of the only fast is found, Payovrat. This fast was observed by Mother Aditi on the advice of sage Kashyap and she consumed only milk. It was after this fast that Lord Vamana took incarnation from the womb of Mother Aditi. Chhath festival is also mentioned in Shrimad Bhagwat Purana and Skanda Purana. In Skanda Purana, the glory of Chhathi Maiya has been described in detail in the form of a story. This worship is related to the wish for the long life and good health of the child. Many people also observe this fast with the wish to have children.

04. The story of the fast of Chhath festival

There are many mythological stories about Chhath festival. The main story among these is of the Suryavanshi king family and his wife Malini. In ancient times, Suryavanshi King Priyavrat and his wife Malini performed many religious rituals to have children, but they did not get any children. Due to this, the king started being very sad. As per the order of Sage Kashyap, they organized a Yagya to get a child. As a result, Queen Malini became pregnant but she gave birth to a dead child. This made the king and queen very sad and they were grief-stricken and decided to commit suicide. Hearing their wailing, a goddess riding on the throne came to them. And with her blessings, the dead child came alive. On this, King Priyavrat prayed to the goddess with folded hands and asked who are you? Then in response, the goddess said I am Chhath Mata, I bless childless couples to have children. And I protect those who have children. In this way, Chhath Puja started.

Apart from this, Chhath Puja is also mentioned in the Mahabharata period. It is said that Mother Kunti and Draupadi used to perform Shashthi Puja every year with full faith and devotion during their exile period. As a result of which they got back their lost kingdom. Similarly, it is said that Mahabharata warrior Karna used to stand in water for hours every day and worship Sun God. He was an ardent devotee of Sun God. It was by the grace of Sun God that he became a great warrior and he got extremely powerful armor and earrings and became very valiant. It is said that Karna started Chhath Puja as a form of worship of Sun God.

05. When is Chhath festival in the year 2024?

This year Chhath Mahaparva will start on 05 November 2024, Tuesday with the ritual of Nahaye-Khaye and will end on 08 November 2024, Friday with offering Arghya to the rising Sun God.

06. Time to offer Arghya to the Sun

07 November- Sandhya Arghya- Sunset time- at 05:31 pm.

08 November- Usha Arghya- Sunrise time- 06:38 am. After that Parana.

07. Rituals of Chhath festival?

Very difficult and sacred rules are followed in Chhath Puja because purity, restraint and discipline have special importance in it. The food on this is sattvik, banana leaves, earthen stoves, leaves and earthen pots are used for food preparation and consumption. On the first day, people bathe and eat, then on the second day after Kharna Prasad, on the third day in the evening, the fasting people stand waist deep in water, put fruits, flowers, sweets and lamps in a bowl, and offer arghya to the setting Sun God with raw milk and Ganga water in an earthen, brass or copper pot. All the people gather on the river bank and make a pavilion with reed or sugarcane sticks. They apply cow dung on its bottom, make alpana etc., install the urn and put lamps in garlands. After offering arghya to the Sun God, people return home, do night vigil and sing songs of Chhathi Maiya. On the second day, in the morning, in the same way, arghya is offered to the rising Sun God, and the fast is broken.

In Chhath Puja, bamboo basket i.e. soup or Daliya, special Prasad Thekua made of jaggery and flour, every type of seasonal fruit, Gangajal, raw coconut, turmeric, vermilion, earthen lamps, ghee, incense, agarbatti etc. are used. This fast is observed by the whole family together. This fast increases mutual attachment and harmony between the family and the society. Everyone celebrates this festival together, due to which the feeling of affection, love and cooperation is strengthened among the people.

In the above article, I have tried to give some information about the great festival Chhath. I hope all the readers would have liked my effort. Please give your advice through comments.

Thanks and gratitude.

– Astro Richa Srivastava (Jyotish Kesari)

गोवर्धन पूजन पर्व 2024 (Hindi & English)

गोवर्धन पूजन पर्व 2024 (Hindi & English)

Om-Shiva

अन्नकूट अथवा गोवर्धन पूजन पर्व हमारी लोक संस्कृति का प्रमुख हिस्सा है। इस पर्व को मनाने का उद्देश्य गऊ यानि पृथ्वी और गऊ यानि गाय वंश की उन्नति और उनके संवर्धन से जुड़ा हुआ है। अन्नकूट का महोत्सव और गोवर्धन पूजा दोनों ही कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को मनाए जाते हैं। बृजवासियों के लिए यह मुख्य त्यौहार है। अन्नकूट या गोवर्धन पूजा का पर्व यूं तो अति प्राचीन काल से मनाया जाता रहा है। लेकिन आज जो विधान मौजूद है वह भगवान श्रीकृष्ण के इस धरा पर अवतरित होने के बाद द्वापरयुग से आरंभ हुआ है।

क्यों मनाते हैं अन्नकूट और गोवर्धन पर्व?

उल्लेखनीय है कि यह पूजन पशुधन व अन्य आदि के भंडार की वृद्धि के लिए मनाया जाता है। पुराणों में इस दिन इंद्र, वरुण, अग्नि, वायु, गणपति आदि देवताओं की पूजा करने का उल्लेख मिलता है। ऋषि मुनियों के अनुसार अन्नकूट और गोवर्धन उत्सव भगवान श्री हरि विष्णुजी की प्रसन्नता के लिए मनाना चाहिए। इस पूजन से गऊवंश का कल्याण होता है और पुत्र, पौत्रादि संततियों में वृद्धि होती है, ऐश्वर्य सुख एवम भोग की प्राप्ति होती है। कार्तिक महीने में जो कुछ भी होम, जप, पूजन-अर्चन किया जाता है, इन सब के पूर्ण फल प्राप्ति हेतु गोवर्धन पूजन अवश्य करना चाहिए। उल्लेखनीय है कि गोवर्धन पूजा के दिन भगवान विश्वकर्माजी की भी पूजा की जाती है। सभी कारखानों और उद्योगों में मशीनों और कृषि यंत्रों की भी पूजा की जाती है।

पूजन का विधि-विधान

यह पर्व दीपावली के ठीक दूसरे दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि को मनाया जाता है। इस दिन प्रातः काल शरीर पर तेल और उबटन आदि लगाकर स्नान करना चाहिए। फिर घर के द्वार पर गऊ के गोबरधन से गोवर्धन बनाना चाहिए। गोवर्धन गोबरधन से एक लेटे हुए पुरुष की आकृति के रूप में बनाए जाते हैं। नाभि के स्थान पर मिट्टी का दीपक रख दिया जाता है। इस मिट्टी के दीपक में दूध, दही, गंगाजल, शहद, बताशे आदि पूजा करते समय डाल दिए जाते हैं और बाद में प्रसाद के रूप में बांट दिए जाते हैं। पूजन करते समय धूप, दीप, नैवेद्य, जल, फल आदि चढ़ाए जाने चाहिएं।

गोवर्धन पूजा सुबह अथवा शाम को करनी चाहिए। इस दिन गाय, बैल और कृषि के काम में आने वाले पशुओं की पूजा की जाती है। पूजन के पश्चात सब में प्रसाद वितरण किया जाता है और पुरोहित को दान-दक्षिणा आदि देकर विदा किया जाता है। गोवर्धन पूजा के दिन देशभर के मंदिरों में धार्मिक आयोजन और अन्नकूट के भंडारे होते हैं। पूजन के बाद लोगों में भोजन प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। गोवर्धन पूजा के दिन गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा लगाने का बड़ा महत्व है। मान्यता है कि गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

वर्ष 2024 गोवर्धन/अन्नकूट पूजन तिथि और मुहूर्त

वर्ष 2024 में गोवर्धन पूजा 02 नवंबर दिन शनिवार को मनाया जाएगा। गोवर्धन पूजा का प्रातःकाल का मुहूर्त सुबह 06:34 से सुबह 08:46 तक होगा। गोवर्धन पूजा का सायंकाल का मुहूर्त दोपहर 02:30 से शाम 05:34 तक होगा।

गोवर्धन पूजन का पौराणिक सन्दर्भ

वैदिक काल में इंद्र सर्वश्रेष्ठ देवता थे। ऐसी मान्यता थी कि उनकी ही कृपा से वर्षा होती है जिसके कारण धरती पर अन्न पैदा होता है। द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण के समय में भी ब्रज के लोग इंद्र की पूजा करते थे। इंद्र को अपनी शक्ति पर अत्यंत अभिमान हो गया था। श्रीकृष्ण ने इंद्र को सबक सिखाने के लिए यह पूजा बंद कर दी और ब्रज में स्थित गोवर्धन पर्वत पर चले गए। वहां पर श्रीकृष्ण ने गोवर्धन का रूप धरकर पूरे बृजवासियों को विभिन्न प्रकार के अन्नों का मिश्रण बनाकर भोजन कराया और सबकी भूख मिटाकर संतुष्ट किया। इससे इंद्र बहुत रुष्ट हो गए और ब्रजमंडल में इतनी वर्षा करी की चारों तरफ पानी-पानी हो गया। तब श्रीकृष्ण ने अपनी कनिष्ठ उंगली से गोवर्धन पहाड़ को उठा लिया और उसके नीचे सभी गोपियों, गाय और बछड़ों को रखकर वर्षा से सबकी रक्षा करी। यह देखकर इंद्र का अभिमान टूट गया और उन्हें अपनी हार माननी पड़ी। वर्षा समाप्त हो जाने पर भगवान श्रीकृष्ण सबको लेकर ब्रज में लौटे तभी से अन्नकूट और गोवर्धन की यह पूजा होने लगी।

इस पर्व का नाम गोवर्धन क्यों पड़ा?

जब गोवर्धन पर्वत पर बहुत सारे गऊ और बछड़े इकट्ठे हो गए थे। तब सब जगह गोबर ही गोबर हो गया था। गोवर्धन पर्वत भी गोबर के एक बहुत बड़े पहाड़ जैसा दिखने लगा था। इसलिए इस दिन गोबर से पहाड़ की आकृति बनाकर गोवर्धन का रूप बनाया जाता है और गोधूलि के समय इसकी पूजा की जाती है और परिक्रमा करी जाती है।

उपर्युक्त आलेख में मैंने गोवर्धन पूजा अथवा अन्नकूट पूजन के विषय में कुछ जानकारी देने का प्रयास किया है। आशा करती हूं कि, मेरा यह प्रयास आप पाठकों को पसंद आएगा। कृपया कमेंट के जरिए अपनी राय अवश्य बताएं।

धन्यवाद और आभार।

एस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव (ज्योतिष केसरी)

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Govardhan Pujan Festival 2024 (Hindi & English)

Om-Shiva

Annakoot or Govardhan Pujan festival is an important part of our folk culture. The purpose of celebrating this festival is related to the progress and promotion of Gau i.e. Earth and Gau i.e. Cow clan. Both Annakoot Festival and Govardhan Puja are celebrated on Kartik Shukla Pratipada. This is the main festival for the people of Brij. The festival of Annakoot or Govardhan Puja has been celebrated since ancient times. But the law that exists today started from Dwaparyuga after Lord Krishna descended on this earth.

Why do we celebrate Annakoot and Govardhan festival?

It is noteworthy that this worship is celebrated to increase the stock of livestock and others. In the Puranas, there is a mention of worshiping gods like Indra, Varun, Agni, Vayu, Ganapati etc. on this day. According to the sages and saints, Annakoot and Govardhan festival should be celebrated for the happiness of Lord Shri Hari Vishnuji. This worship brings welfare to the cow family and increases the number of sons, grandsons, progeny, attainment of wealth, happiness and enjoyment. Whatever hom, jaap, worship and prayer is done in the month of Kartik, Govardhan Puja must be done to get the full fruits of all these. It is worth mentioning that Lord Vishwakarma is also worshipped on the day of Govardhan Puja. Machines and agricultural equipment are also worshipped in all factories and industries.

Procedure of worship

This festival is celebrated on the first day of Shukla Paksha of Kartik month, the day after Diwali. On this day, one should take a bath in the morning after applying oil and ubtan on the body. Then Govardhan should be made from cow dung at the door of the house. Govardhan is made from cow dung in the form of a lying man’s figure. An earthen lamp is placed at the place of the navel. Milk, curd, Ganga water, honey, batasha etc. are put in this earthen lamp while performing the worship and later distributed as prasad. While performing the puja, incense, lamps, offerings, water, fruits etc. should be offered.

Govardhan Puja should be performed in the morning or evening. On this day, cows, bulls and animals used in agriculture are worshipped. After the puja, prasad is distributed among all and the priest is bid farewell by giving donations etc. On the day of Govardhan Puja, religious events and Annakoot Bhandara are held in temples across the country. After the puja, food is distributed among the people as prasad. On the day of Govardhan Puja, circumambulating the Govardhan mountain has great significance. It is believed that by circumambulating the Govardhan mountain, one gets the blessings of Lord Krishna.

Year 2024 Govardhan/Annakoot Puja Date and Muhurta

In the year 2024, Govardhan Puja will be celebrated on 02 November, Saturday. The morning muhurta of Govardhan Puja will be from 06:34 am to 08:46 am. The evening muhurat of Govardhan Puja will be from 02:30 pm to 05:34 pm.

Mythological reference of Govardhan Puja

In the Vedic period, Indra was the best god. It was believed that it is due to his grace that it rains, due to which food grains are produced on earth. In Dwaparyug, even during the time of Lord Krishna, the people of Braj used to worship Indra. Indra had become very proud of his power. To teach Indra a lesson, Shri Krishna stopped this worship and went to Govardhan mountain located in Braj. There, Shri Krishna took the form of Govardhan and fed the entire Brajvasis by making a mixture of different types of grains and satisfied everyone by satiating their hunger. This made Indra very angry and he rained so much in Braj Mandal that there was water all around. Then Shri Krishna lifted the Govardhan mountain with his little finger and kept all the gopis, cows and calves under it and protected everyone from the rain. Seeing this, Indra’s pride broke and he had to accept his defeat. When the rains ended, Lord Krishna returned to Braj with everyone, since then this worship of Annakoot and Govardhan started.

Why was this festival named Govardhan?

When many cows and calves gathered on Govardhan mountain. Then there was cow dung everywhere. Govardhan mountain also started looking like a very big mountain of cow dung. Therefore, on this day, Govardhan is made by making a mountain shape with cow dung and it is worshipped at dusk and circumambulation is done.

In the above article, I have tried to give some information about Govardhan Puja or Annakoot Puja. I hope that you readers will like my effort. Please tell your opinion through comments.

Thanks and gratitude.

Astro Richa Srivastava (Jyotish Kesari)

दीपोत्सव का पर्व दीपावली 2024 (Hindi & English)

दीपोत्सव का पर्व दीपावली 2024 (Hindi & English)

Om-Shiva

दीपावली हिंदू सनातन धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह त्यौहार प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्ण की अमावस्या तिथि को पूरे हर्षोल्लास के साथ न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी मनाया जाता है। यह त्यौहार मुख्यतः भगवती लक्ष्मी देवी को समर्पित है। किंतु इस दिन भगवान गणेश, माँ सरस्वती और और देवी महाकाली की भी पूजा की जाती है।

01. कैसे मनाते हैं दीपावली?

संपूर्ण दीपावली पर्व असल में पांच दिवसीय त्यौहार है। इसमें प्रथम दिन धनतेरस मनाया जाता है जिसमें देवों के वैद्य भगवान धनवंतरी जी की पूजा की जाती है। दूसरे दिन रूप चतुर्दशी अथवा नरक चतुर्दशी मनाई जाती है जिसमें यम देवता और धन के देवता कुबेर की पूजा की जाती है। तीसरे दिन मुख्य त्योहार दीपावली मनाई जाती है। इस दिन घर को बिजली के सुंदर बल्ब की लड़ियों, मोमबत्तियों, और मिट्टी के दीपक जलाकर घर को प्रकाशित किया जाता है। इसके अलावा, सुंदर रंगोली, रंग बिरंगे तोरण, तथा सुंदर पुष्प मालाओं से घर को सजाया जाता है और लक्ष्मी जी के स्वागत की तैयारी की जाती है। संध्याकाल में लक्ष्मी पूजन के उपरांत मिठाई एवम पकवान बांटे जाते हैं और खाये जाते हैं। रात्रिकाल में पटाखे छोड़े जाते हैं और रात्रि जागरण करके लक्ष्मीजी का पूजन करते हैं। इस दिन लक्ष्मीजी के साथ गणेशजी और ज्ञान की देवी भगवती सरस्वतीजी के भी पूजन की परंपरा है।

क्योंकि ऐसा माना जाता है लक्ष्मी यानी कि धन के साथ बुद्धि, विवेक और ज्ञान यानि कि गणेशजी और सरस्वतीजी की भी आवश्यकता होती है। दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा की जाती है। इसमें गोवर्धन पर्वत के साथ भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। फिर धनतेरस के पांचवें दिन भैया दूज बनाने की प्रथा है, जिसमें बहनें अपने भाई की लंबी आयु और उत्तम स्वास्थ्य के लिए व्रत रखती हैं और पूजन करती हैं। इस दिन देश विदेश के असंख्य लोग विशेषतः कायस्थ समाज के लोग धर्मराज चित्रगुप्त जी की पूजा करते हैं। जिसे कलम दवात की पूजा भी करी जाती है। पूर्वोत्तर हिस्सों में विशेष तौर पर बंगाली समाज के लोग अमावस्या के दिन महा निशाकाल में भगवती महाकाली की पूजा और आराधना करते हैं। इसके अलावा अमावस्या को पितरों की तिथि भी कहा जाता है। अतः इस दिन पितरों का पूजन भी करते हैं। उनके निमित्त दान पुण्य भी किया जाता है। सायंकाल और रात्रिकाल में आकाश में आकाशदीप भी छोड़े जाते हैं। ऐसा माना जाता है रोशनी से भरें यह आकाशदीप हमारे पितरों को विष्णुलोक का मार्ग दिखाते हैं।

02. क्यों मनाते हैं दीपावली

दीपावली का त्योहार मनाने की पीछे कुछ पौराणिक संदर्भ हैं। कहा जाता है कि इस दिन भगवान श्रीराम लंका विजय करके अयोध्या वापस लौटे थे। उनके स्वागत में अयोध्या वासियों ने पूरी अयोध्या को दीप मालाओं से सजाया था। तब से प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्ण अमावस्या को दीपावली मनाने का प्रचलन प्रारंभ हुआ। इसके अलावा कार्तिक कृष्ण की चतुर्दशी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध करके उसके चंगुल से 16,100 युवतियों को छुड़ाया था। उनकी याद में इस दिन नरक चतुर्दशी मनाई जाती है और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। दीपावली की अमावस्या का अपना विशेष महत्व है। इस दिन व्यापारी वर्ग अपने नए बही-खातों का शुभारंभ करते हैं। वहीं अर्द्धरात्रि का मुहूर्त तांत्रिकों और साधकों के लिए विशेष महत्व रखता है।

03. दीपावली का मुख्य पौराणिक संदर्भ

एक बार सनत कुमार ने शौनकादि ऋषि-मुनियों से पूछा कि, दीपावली के त्योहार पर लक्ष्मीजी के अलावा अन्य देवी-देवताओं का पूजन क्यों किया जाता है? तब ऋषियों ने बताया की लक्ष्मी ऐश्वर्या और भोग की अधिष्ठात्री देवी हैं। जहां पर इनका वास होता है वहां सुख-समृद्धि एवं आनंद मिलता है। इसकी कथा यह है कि, एक बार दैत्य राज बलि ने अपने बाहुबल से अनेक देवी-देवताओं सहित लक्ष्मीजी को बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया था। तब कार्तिक की अमावस्या को श्रीहरि भगवान विष्णुजी ने वामन का अवतार लेकर राजा बलि से आकाश और पाताल सब वापस ले लिया था। और लक्ष्मीजी सहित सभी देवी-देवताओं को राजा बलि के कारागार से मुक्त कराया था। उसके बाद विष्णुजी लक्ष्मीजी के साथ शयन के लिए क्षीरसागर में चले गए। इसलिए अन्य देवी-देवताओं के साथ लक्ष्मीजी के पूजन का विधान बनाया गया है। जो भी व्यक्ति उनका स्वागत उत्साहपूर्वक करके स्वच्छ कमल शय्या प्रदान करता है, पूजन करता है, उनके घर में लक्ष्मीजी का स्थाई वास हो जाता है।

04. दीपावली 2024 के पूजन की तिथि और मुहूर्त

इस वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर को 03:52 से शुरू होगी। और तिथि का समापन 01 नवंबर की शाम 06:16 पर होगा। शास्त्रों के अनुसार अमावस्या पर रात्रि पूजन का विधान है। यानी 31 अक्टूबर को पूरी रात अमावस्या तिथि रहेगी, लेकिन 01 नवंबर की रात से पहले वह समाप्त हो जाएगी। 01 नवंबर की रात्रि को प्रतिपदा तिथि होगी । इसलिए रात्रि व्यापिनी अमावस्या 31 अक्टूबर को ही होगी और दीपावली लक्ष्मी पूजन 31 अक्टूबर को ही होगा।

पूजन का मुहूर्त

31 अक्टूबर का पहला मुहूर्त प्रदोष काल पूजन मुहूर्त में शाम 05:36 से रात्रि 08:15 तक रहेगा। लक्ष्मी पूजन सदैव स्थिर लग्न में किया जाता है इसलिए वृषभ लग्न में लक्ष्मी पूजन होगा। इस दौरान स्थिर लग्न वृषभ रहेगा। लक्ष्मी पूजन का महा निशीथ मुहूर्त 31 अक्टूबर को रात 11:39 मिनट से लेकर देर रात 12:31 तक है। इस समय महाकाली, महासरस्वती और महालक्ष्मी पूजन किया जाएगा।

उपर्युक्त आलेख में मैंने दीपावली संबंधित अधिकांश जानकारी देने का प्रयास किया है। आशा करती हूं कि सभी पाठकों को मेरा प्रयास पसंद आएगा।

धन्यवाद और आभार।

-एस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव (ज्योतिष केसरी)

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Diwali 2024 the festival of lights (Hindi & English)

Om-Shiva

Diwali is one of the major festivals of Hindu Sanatan Dharma. This festival is celebrated every year on the new moon day of Kartik Krishna with great enthusiasm not only in the country but also abroad. This festival is mainly dedicated to Goddess Lakshmi. But on this day Lord Ganesha, Mother Saraswati and Goddess Mahakali are also worshiped.

01. How is Diwali celebrated?

The entire Diwali festival is actually a five-day festival. In this, Dhanteras is celebrated on the first day in which Lord Dhanvantari, the physician of the gods, is worshiped. On the second day, Roop Chaturdashi or Narak Chaturdashi is celebrated in which Yama Devta and Kubera, the god of wealth, are worshiped. The main festival of Diwali is celebrated on the third day. On this day, the house is illuminated by lighting beautiful electric bulb strings, candles, and earthen lamps. Apart from this, the house is decorated with beautiful rangoli, colourful arches, and beautiful floral garlands and preparations are made to welcome Lakshmi ji. After Lakshmi pujan in the evening, sweets and delicacies are distributed and eaten. Crackers are burst at night and Lakshmi ji is worshipped by staying awake all night. On this day, there is a tradition of worshipping Ganesh ji and Goddess of knowledge, Bhagwati Saraswati ji, along with Lakshmi ji.

Because it is believed that along with Lakshmi i.e. wealth, intelligence, discretion and knowledge i.e. Ganesh ji and Saraswati ji are also required. Govardhan puja is performed after Diwali. In this, Lord Krishna is worshipped along with Govardhan mountain. Then on the fifth day of Dhanteras, there is a tradition of celebrating Bhaiya Dooj, in which sisters observe fast and worship for their brother’s long life and good health. On this day, countless people from the country and abroad, especially the people of Kayastha community, worship Dharmaraj Chitragupta ji. Pen and ink pot are also worshipped. In the northeastern parts, especially the Bengali community, people worship and adore Bhagwati Mahakali during the Maha Nishakal on the day of Amavasya. Apart from this, Amavasya is also called the date of ancestors. Therefore, on this day, ancestors are also worshipped. Charity is also done for them. Sky lamps are also released in the sky in the evening and night. It is believed that these sky lamps filled with light show our ancestors the path to Vishnulok.

02. Why do we celebrate Deepawali

There are some mythological references behind celebrating the festival of Deepawali. It is said that on this day Lord Shri Ram returned to Ayodhya after conquering Lanka. To welcome him, the people of Ayodhya decorated the entire Ayodhya with garlands of lamps. Since then, the practice of celebrating Deepawali on Kartik Krishna Amavasya started every year. Apart from this, on the Chaturdashi date of Kartik Krishna, Lord Krishna killed Narakasura and freed 16,100 girls from his clutches. In his memory, Narak Chaturdashi is celebrated on this day and Lord Krishna is worshipped. The new moon day of Diwali has its own importance. On this day, the business class starts their new account books. The midnight muhurta holds special importance for tantriks and sadhaks.

03. Main mythological reference of Diwali

Once Sanat Kumar asked Shaunakadi Rishis that why other gods and goddesses are worshipped apart from Lakshmi on the festival of Diwali? Then the sages told that Lakshmi is the presiding goddess of wealth and enjoyment. Wherever she lives, there is happiness, prosperity and joy. Its story is that, once the demon king Bali had imprisoned Lakshmi along with many other gods and goddesses with his strength. Then on the new moon day of Kartik, Shri Hari Lord Vishnu took the form of Vaman and took back the sky and the underworld from King Bali. And all the gods and goddesses including Lakshmi ji were freed from the prison of King Bali. After that Vishnu ji went to Kshirsagar to sleep with Lakshmi ji. Therefore, the law of worshiping Lakshmi ji along with other gods and goddesses has been made. Whoever welcomes her enthusiastically and offers a clean lotus bed, worships, Lakshmi ji resides permanently in his house.

04. Date and Muhurta of worship of Diwali 2024

This year the Amavasya date of Kartik month will start from 03:52 on October 31. And the date will end on the evening of November 01 at 06:16. According to the scriptures, there is a law of night worship on Amavasya. That is, Amavasya Tithi will remain throughout the night on October 31, but it will end before the night of November 01. Pratipada Tithi will be on the night of November 01. Therefore, Ratri Vyapini Amavasya will be on 31st October and Deepawali Lakshmi Pujan will be on 31st October only.

Pujan Muhurta

The first Muhurta of 31st October will be from 05:36 pm to 08:15 pm in Pradosh Kaal Pujan Muhurta. Lakshmi Pujan is always done in Sthir Lagna, so Lakshmi Pujan will be done in Vrishabha Lagna. During this time, Sthir Lagna will be Vrishabha. Maha Nishith Muhurta of Lakshmi Pujan is from 11:39 pm to 12:31 late night on 31st October. During this time Mahakali, Mahasaraswati and Mahalakshmi Pujan will be done.

In the above article, I have tried to give most of the information related to Deepawali. I hope that all readers will like my effort.

Thanks and gratitude.

-Astro Richa Srivastava (Jyotish Kesari)

नवंबर 2024 मासिक राशिफल 12 राशियां (Hindi & English)

नवंबर 2024 मासिक राशिफल 12 राशियां (Hindi & English)

नवंबर माह के राशिफल जानने से पहले इस महीने ग्रहों के गोचर की स्थिति समझ लेते हैं।

सूर्य 16 नवंबर तक तुला राशि में रहेंगे उसके बाद वृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे। मंगल पूरे महीने अपनी नीच राशि कर्क में स्थित रहेंगे। बुध वृश्चिक राशि पर स्थित रहेंगे। बृहस्पति वृष राशि पर वक्री अवस्था में गोचर करेंगे। शुक्र 07 नवंबर 2024 तक वृश्चिक राशि में रहेंगे, उसके बाद धनु राशि में प्रवेश करेंगे। शनि शुक्रवार 15 नवंबर 2024 तक कुंभ राशि में वक्री अवस्था में रहेंगे तत्पश्चात मार्गी हो जाएंगे। राहु मीन राशि में और केतु कन्या राशि में स्थित रहेंगे।

01. मेष राशि-

मेष राशि वाले माह के पूर्वार्ध में माता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। अपने कामकाज पर नजर बनाकर रखें। अपने मानसिक स्वास्थ्य के लिए सूर्य को जल चढ़ाएं और चंद्रमा की आराधना करें। मीडिया और आर्ट से जुड़े लोगों को लाभ मिलेगा। माह के उत्तरार्ध में धन का आगमन होगा। किसी नए कार्य का शुभारंभ हो सकता है। नई नौकरी भी मिल सकती है। आपको भाग्य का साथ मिलेगा। माह के शुरुआत में पैसों के लेनदेन में सतर्कता रखें और गृह क्लेश से यथा संभव बचें।

02. वृष राशि-

वृष राशि वालों के लिए माह का पूर्वार्ध अच्छा रहेगा। आपके कामकाज बनते नजर आ रहे हैं। विवाहित जीवन में मधुरता और प्रेम बढ़ेगा। पार्टनर के सहयोग से कामकाज में तेजी आएगी। किंतु किसी तरह के विवाद या लड़ाई झगड़े से बचें। अति उत्साही होकर निर्णय नहीं लें। महीने के उत्तरार्ध में मान सम्मान या पुरस्कार आदि प्राप्त होंगे। बुध आदित्य योग के कारण कई कार्य बनेंगे। 03, 04, 07, 10, 11 नवंबर को पैसों के लेनदेन में सतर्कता बरतें।

03. मिथुन राशि-

मिथुन राशि वालों के लिए पुराने समय से चली आ रही मानसिक चिताओं से छुटकारा मिलेगा। स्वास्थ्य में सुधार होता दिख रहा। संतान संबंधी शुभ कार्य संपन्न होंगे। नई नौकरी मिलने के योग बनेंगे। मीडिया और विदेश से संबंधित लोगों के कार्य बनने की अच्छी संभावनाएं हैं। माह के उत्तरार्ध में शनि मार्गी होते ही कार्य बनते चले जाएंगे। 3,4,7,10, और 11 तारीख को सतर्कता रखें। कुल मिलाकर नवंबर महीना आपके लिए अत्यंत शुभ है।

04. कर्क राशि-

कर्क राशि वालों के लिए भी नवंबर महीना बहुत अच्छा जाने वाला है। कार्य करने में नया उत्साह रहेगा। प्रेम और दांपत्य जीवन में नई मधुरता और प्रगाढता आएगी। मीडिया और आर्ट से जुड़े लोगों को कार्यों में सफलता मिलेगी। पैतृक संपत्ति से संबंधित कार्यों में लाभ मिलेगा। सरकार से धन लाभ, नौकरी में तरक्की और पद-प्रतिष्ठा में वृद्धि होने के योग हैं। माह के प्रारंभिक 10 दिनों में कामकाज और धन संबंधी व्यवहार में सावधानी रखें।

05. सिंह राशि-

माह के पूर्वार्ध में मन अशांत रह सकता है। गायत्री मंत्र का जाप और आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ से कुछ शांति मिलेगी। घर की साज सज्जा में कुछ परिवर्तन कर सकते हैं या घर में निर्माण कार्य करवा सकते हैं। छोटी-मोटी यात्राओं से लाभ होगा और छुटपुट कार्य बनते नजर आएंगे। माह के दूसरे पक्ष में कार्यों में सफलता मिलेगी। दांपत्य और प्रेम जीवन में सकारात्मकता आएगी। राहु का उपाय लाभ प्रदान करेगा। महीने के प्रारंभिक 10 दिनों में कारोबारी व्यवहार में सतर्कता रखें। ध्यान, जप और योगा आदि से मन शांत रहेगा।

06. कन्या राशि-

कन्या राशि वालों के लिए महीने के प्रारंभिक दिनों में धन लाभ होते दिख रहा है। कोर्ट कचहरी, केस विवाद आदि में राहत मिलती दिख रही है। लेकिन क्रोध और जल्दबाजी से बचना पड़ेगा। छोटी-मोटी दुर्घटनाएं हो सकती हैं, बचकर रहें। घर के निर्माण या लग्जरी वस्तुओं के खरीदारी पर अनाप-शनाप खर्च नहीं करें। अपने धन संचय को बचाकर रखें। परिवार में शांति बनाकर रखें। महीने के द्वितीय पक्ष में समय सकारात्मक पक्ष की ओर जा रहा है। नई नौकरी के भी योग है। संतान के शिक्षा संबंधी कार्य में सफलता मिलेगी और पैसों के लेनदेन में सतर्कता रखें। भगवान श्रीगणेश की आराधना से लाभ होगा।

07. तुला राशि-

तुला राशि के जातकों के लिए नवंबर का महीना बहुत शुभ है। महीने की शुरुआत में ही धन का आगमन होने लगेगा। सरकारी नौकरी वालों, मेडिकल, प्रतिरक्षा, सेना और प्रशासनिक अधिकारियों को पद प्रतिष्ठा और मान सम्मान की प्राप्ति होगी। वैवाहिक जीवन में मधुरता बढ़ेगी। स्वास्थ्य में सुधार होगा और मानसिक शांति की प्राप्ति होगी। परिवार से सहयोग प्राप्त करने के लिए कलह और विवाद से दूर रहे। नवंबर के शुरुआती 10 दिनों मे वित्तीय लेनदेन में सावधानी रखें। कुल मिलाकर यह महीना बहुत शुभ होने वाला है।

08. वृश्चिक राशि-

वृश्चिक राशि वालों के लिए नवंबर महीने की शुरुआत में मानसिक अशांति रहेगी, स्वास्थ्य भी गिरावट रहेगी, लेकिन कार्य बनते रहेंगे। कार्यकाज और व्यापार संबंधी यात्राएं सफल होगी। बेकार के खर्चों पर नियंत्रण रखने की आवश्यकता है। अपने व्यक्तिगत संबंधों में सतर्कता रखें, प्रेम या दांपत्य जीवन में तनाव हो सकता है। महीने के द्वितीय पक्ष में कामकाज भी सुभिता मिलेगी। सहकर्मियों और अधिकारियों का सहयोग मिलेगा। लक्ष्मीजी की आराधना और मेडिटेशन करने से लाभ होगा। धन के लेनदेन में सावधानी रखें। धैर्य से काम लें।

09. धनु राशि-

धनु राशि वालों के लिए पिछले महीने से चली आ रही परेशानियां अब समाप्त होंगी। मानसिक शांति प्राप्त होगी। लेकिन कार्यों की अधिकता से स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है। संतुलन बनाकर चलें। अटके हुए धन की प्राप्ति होगी यात्राओं से लाभ होगा और धन संचय की दिशा में कार्य करेंगे। भविष्य की बड़ी योजनाओं पर गंभीरता से विचार करेंगे। प्रेम संबंधों में प्रगाढता बढ़ेगी। किंतु दांपत्य जीवन में कलह और विवाद से बचें। कुल मिलाकर यह महीना शुभ रहने वाला है।

10. मकर राशि-

मकर राशि वालों को महीने के प्रथम पक्ष में कार्य, धन और परिवार को लेकर चिंताएं बनी रहेगी। लेकिन माह के द्वितीय पक्ष में समस्याओं का समाधान होने लगेगा। धन संचय की स्थिति बनेगी। महीने की शुरुआती दौर में सरकारी नौकरी पेशा वालों के लिए कुछ अड़चनें हो सकती हैं। पिता के स्वास्थ्य में गिरावट आ सकती है। पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें और घर के खर्चों पर नियंत्रण रखें। माता दुर्गाजी की आराधना करें आपको लाभ होगा। दांपत्य जीवन में मधुरता बनाए रखें। नवंबर के अंतिम हफ्तों में आपको मानसिक शांति पुनः प्राप्त होगी और अड़चनें दूर होकर कार्य बनेंगे।

11. कुंभ राशि-

कुंभ राशि वालों के लिए शनि मार्गी होने के कारण आपके जीवन में थोड़ी राहत मिलेगी। विरोधियों और शत्रुओं से छुटकारा मिलेगा। धन से संबंधित रुके हुए कार्य बनने प्रारंभ हो जाएंगे। फिर भी साढ़ेसाती का दौर चल रहा है अतः कार्यों में सतर्कता रखें। वाणी पर नियंत्रण रखें। परिश्रम से आपके बड़े-बड़े कार्य बनेंगे। कर्ज लेना टालें, और आपके प्रयासों से मार्केट में फंसा हुआ धन आपके पास वापस आ सकता है। 03, 04 ,07 10 और 11 तारीख को विशेष सावधानी रखने की आवश्यकता है। वाहन सावधानीपूर्वक चलाएं और संतान के कार्यों की पूर्ति करें। इस माह आपको शनिदेव की आराधना करनी चाहिए और सुंदरकांड या हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए।

12. मीन राशि-

इस महीने आप शनि की साढ़े साती के पूर्ण प्रभाव में रहेंगे। महीने के प्रारंभ में बड़े-बड़े खर्चों का सामना करना पड़ सकता है। सर में पीड़ा, दांत, हड्डियों, और मांसपेशियों संबंधी तकलीफों का सामना करना पड़ सकता है। माह के दूसरे पक्ष में शनि मार्गी होने के बाद थोड़ी राहत मिलेगी। आपके अटके हुए कार्य बनेंगे। मानसिक शांति मिलेगी। संपत्ति में वृद्धि और प्रेम जीवन में नजदीकी बढ़ेगी। संतान पक्ष से भी सहयोग प्राप्त होगा। धन संचय पर ध्यान दें। धैर्य का साथ नहीं छोड़ें। महादेव शिव जी की आराधना से आपको लाभ होगा।

-ऐस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव (ज्योतिष केसरी)

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November 2024 Monthly Horoscope 12 Zodiac Signs (Hindi & English)

Before knowing the horoscope for the month of November, let us understand the transit of planets this month.

The Sun will remain in Libra till November 16, after which it will enter Scorpio. Mars will remain in its lowest sign Cancer throughout the month. Mercury will remain in Scorpio. Jupiter will transit in Taurus in a retrograde state. Venus will remain in Scorpio till November 07, 2024, after which it will enter Sagittarius. Saturn will remain in retrograde state in Aquarius till Friday, November 15, 2024, after which it will become direct. Rahu will remain in Pisces and Ketu will remain in Virgo.

01. Aries-

Aries people should take care of their mother’s health in the first half of the month. Keep an eye on your work. For your mental health, offer water to the Sun and worship the Moon. People associated with media and art will benefit. Money will arrive in the latter half of the month. A new work can be started. You may also get a new job. You will get luck. Be cautious in money transactions in the beginning of the month and avoid domestic troubles as much as possible.

02. Taurus-

The first half of the month will be good for Taurus people. Your work seems to be getting done. Sweetness and love will increase in married life. Work will gain momentum with the help of your partner. But avoid any kind of dispute or fight. Do not take decisions by being overly enthusiastic. You will get respect or awards etc. in the latter half of the month. Many works will get done due to Mercury Aditya Yoga. Be cautious in money transactions on 03, 04, 07, 10, 11 November.

03. Gemini-

Gemini people will get relief from mental worries going on since a long time. Health seems to be improving. Auspicious works related to children will be completed. There will be chances of getting a new job. There are good chances of work getting done for people related to media and abroad. Work will keep getting done as soon as Saturn becomes direct in the latter half of the month. Be cautious on 3,4,7,10, and 11th. Overall, the month of November is very auspicious for you.

04. Cancer-

The month of November is going to be very good for Cancerians as well. There will be new enthusiasm in work. Love and married life will become sweeter and stronger. People associated with media and art will get success in work. You will get benefits in works related to ancestral property. There are chances of monetary benefits from the government, promotion in job and increase in position and prestige. Be careful in work and money related dealings in the first 10 days of the month.

05. Leo-

The mind may remain restless in the first half of the month. Chanting Gayatri Mantra and reading Aditya Hridya Stotra will bring some peace. You can make some changes in the decoration of the house or get construction work done in the house. You will benefit from short trips and minor works will be seen getting done. You will get success in work in the second half of the month. Positivity will come in married and love life. Rahu’s remedy will give benefits. Be cautious in business dealings in the first 10 days of the month. Mind will remain calm with meditation, chanting and yoga etc.

06. Virgo-

Virgo people are seen to gain money in the initial days of the month. Relief is seen in court cases, disputes etc. But anger and haste will have to be avoided. Small accidents can happen, be careful. Do not spend unnecessarily on house construction or purchase of luxury items. Save your savings. Maintain peace in the family. In the second half of the month, time is moving towards positive side. There are also chances of a new job. You will get success in the work related to the education of children and be cautious in money transactions. You will benefit from the worship of Lord Shri Ganesha.

07. Libra-

The month of November is very auspicious for the people of Libra. Money will start coming in at the beginning of the month itself. Government servants, medical, defense, army and administrative officers will get position, prestige and honor. Sweetness will increase in married life. Health will improve and mental peace will be attained. To get support from family, stay away from quarrels and disputes. Be careful in financial transactions in the first 10 days of November. Overall, this month is going to be very auspicious.

08. Scorpio-

For Scorpio people, there will be mental unrest in the beginning of November, health will also decline, but work will keep getting done. Work and business related travels will be successful. There is a need to control unnecessary expenses. Be cautious in your personal relationships, there can be tension in love or married life. Work will also be smooth in the second half of the month. You will get support from colleagues and officers. Worshiping Lakshmi ji and meditating will be beneficial. Be careful in money transactions. Work with patience.

09. Sagittarius-

For Sagittarius people, the problems going on since last month will end now. Mental peace will be attained. But excess of work can affect your health. Maintain balance. Stuck money will be recovered, travels will be beneficial and you will work towards saving money. You will seriously think about big plans for the future. Love relationships will become stronger. But avoid quarrels and disputes in married life. Overall, this month is going to be auspicious.

10. Capricorn-

Capricorn people will remain worried about work, money and family in the first half of the month. But in the second half of the month, problems will start getting resolved. Situation of wealth accumulation will be created. In the beginning of the month, there may be some obstacles for those in government jobs. Father’s health may decline. Take care of father’s health and control household expenses. Worship Goddess Durga, you will benefit. Maintain sweetness in married life. In the last weeks of November, you will regain mental peace and the obstacles will be removed and work will be done.

11. Aquarius-

For Aquarius people, due to Saturn being direct, you will get some relief in your life. You will get rid of opponents and enemies. The stalled work related to money will start getting done. Still, the period of Sadhesati is going on, so be cautious in work. Control your speech. Your big works will be done with hard work. Avoid taking loans, and with your efforts, the money stuck in the market can come back to you. There is a need to be extra careful on 03, 04, 07, 10 and 11. Drive carefully and complete the tasks of children. This month you should worship Lord Shani and recite Sunderkand or Hanuman Chalisa.

12. Pisces-

This month you will be under the full effect of Saturn’s Sade Sati. You may have to face big expenses in the beginning of the month. You may have to face headache, teeth, bones and muscle problems. You will get some relief after Saturn becomes direct in the second half of the month. Your pending tasks will be completed. You will get mental peace. There will be increase in property and closeness in love life. You will also get support from children. Focus on saving money. Do not lose patience. You will benefit from the worship of Mahadev Shiva.

-Astro Richa Shrivastava (Jyotish Kesari)

भाग्य प्रदायक स्वास्तिक चिन्ह (Hindi & English)

भाग्य प्रदायक स्वास्तिक चिन्ह (Hindi & English)

Om-Shiva

01. स्वास्तिक चिन्ह का महत्व और परिचय?

सनातन हिंदू धर्म में स्वास्तिक का बहुत ही बड़ा महत्व माना जाता है। सनातनी हिंदूजन किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने से पहले शुभ स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर उसकी पूजा करते हैं। क्योंकि ऐसी हमारी प्राचीन वैदिक मान्यता है कि ऐसा करने मात्र से कार्य सफल हो जाता है। स्वास्तिक के चिन्ह को मंगल का प्रतीक माना जाता है। स्वास्तिक शब्द को ‘सु’ और ‘अस्ति’ का मिश्रण योग माना गया है। ‘सु’ का अर्थ है शुभ और ‘अस्ति’ का अर्थ है होना। इसका मतलब स्वास्तिक का मौलिक अर्थ है ‘शुभ हो’ या ‘कल्याण हो’। आइए अब हम जानते हैं कि, आखिर क्या है स्वास्तिक की कहानी? और कैसे शिव-पार्वती के पुत्र भगवान श्री गणेशजी से जुड़ा है इसका रहस्य?

02. स्वास्तिक का अर्थ?

स्वास्तिक का अर्थ होता है कल्याण या मंगल। इसी प्रकार स्वास्तिक चिन्ह का अर्थ हो जाता है कल्याण या मंगल करने वाला। स्वास्तिक अपने आप में एक विशेष तरह की आकृति है, जिसे किसी भी कार्य को आरंभ करने से पहले बनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह शुभ चिन्ह दसों दिशाओं से शुभता और मंगलता से पूर्ण चीजों को अपनी तरफ आकर्षित करता है। जिससे सर्वकल्याण एवम सर्वलाभ होता है। चूंकि स्वास्तिक को कार्य की शुरुआत और मंगल कार्य में रखते हैं, अतः यह भगवान् श्रीगणेश का रूप भी माना जाता है। ऐसा दृढ़तापूर्वक माना जाता है कि इसका प्रयोग करने से जातक को सम्पन्नता, समृद्धि, शुभता और एकाग्रता की प्राप्ति होती है। इतना ही नहीं जिस किसी पूजा उपासना में स्वास्तिक का प्रयोग नहीं किया जाता है वह पूजा लम्बे समय तक अपना प्रभाव नहीं रख पाती है। क्योंकि हमारी संस्कृति में अगर शुरुआत ही शुभ होगी तो कार्य भी जल्दी पूर्ण होगा और अपनी पूर्णता पश्चात कार्य समृद्धि भी प्रदान करेगा।

03. स्वास्तिक चिन्ह का वैज्ञानिक महत्व?

01. यदि आपने स्वास्तिक के चिन्ह को पूर्ण श्रद्धा एवम सही ढंग से बनाया हुआ है तो उसमें से ढेर सारी सकारात्मक उर्जा हर क्षण निकलती रहती है।

02. यह पवित्र उर्जा वस्तु या व्यक्ति की रक्षा करने में मददगार सिद्ध होती है, जिससे जातक को अपने कार्य के सिद्ध होने में कोई संशय नहीं रहता है।

03. स्वास्तिक की शुभ उर्जा को अगर घर, अस्पताल या दैनिक जीवन में प्रयोग किया जाएगा तो व्यक्ति रोगमुक्त और चिंता मुक्त रह सकता है। क्योंकि एक सही विद्धिबाई बनाया गया स्वास्तिक हर प्रकार की नकरात्मक ऊर्जा को हराने की क्षमता रखता है।

04. गलत तरीके से बनाया गया या प्रयोग किया गया स्वास्तिक चिन्ह भयंकर समस्याएं भी पैदा कर सकता है। क्योंकि एक सही विधि से बनाया गया स्वास्तिक ही शुभ ऊर्जा प्रदान करता है। इसलिए अज्ञानता से बनाया गया यही शुभ चिन्ह विषम परिणाम भी से सकता है। आइए अब जानते हैं सुख-समृद्धि हेतु स्वास्तिक चिन्ह के 07 दिव्य प्रयोग।

सुख-समृद्धि हेतु स्वास्तिक चिन्ह के 07 दिव्य प्रयोग।

01. पूर्ण परिवार की बरकत हेतु 21 पीपल के पत्तों पर कपूर के तेल और हल्दी से स्वास्तिक बनाइए और लाल मोली से सभी पत्तों को जोड़ते हुए उसका तोरण बनाकर घर के मुख्य लकड़ी वाले दरवाज़े पर लगाएं। यह उपाय प्रत्येक पूर्णमासी को ही शुरू करना है और नया तोरण भी पूर्णमासी तिथि को ही लगाना है।

02. अगर आपके घर/ऑफिस के उत्तर-पूर्वी(ईशान कोण) कोने में मंदिर है तो उत्तर और पूर्वी दीवार पर गंगाजल छिडक़ कर हल्दी, कुमकुम और गुड़ मिलाकर से 11 गुरुवार लगातार स्वास्तिक बनाएं। यह उपाय घर/ऑफिस में धन प्रवाह उत्तम रखेगा। यह उपाय किसी भी गुरुवार से शुरू करें और पहले गुरुवार बनाए हुए स्वास्तिकों पर ही दूसरा बनाते रहें।

03. कार्यों में किसी भी प्रकार से विलंब आ रहा है तो प्रसन्न भारतीय देशी गौमाता जिसका स्वस्थ बछड़ा हो उनके गोबर धन में चंदन का चूरा मिलाकर घर के मुख्य लोहे+लकड़ी वाले द्वार के दोनों तरफ स्वास्तिक का निर्माण करें। अगर कोई गंभीर समस्या भी चल रही है तो इन्हीं गौमाता के बछड़े को गुड़ खिलाएं और गौमाता के सीधे कान में अपनी परेशानी बताते हुए उनका आशीर्वाद ग्रहण करें।

04. लक्ष्मीजी के उत्तम आगमन हेतु घर/ऑफिस के ठीक सामने या देहलीज के दोनों तरफ जहां किसी के भी पैर नहीं पड़ते हों वहां प्रसन्न भारतीय देशी गौमाता जिसका स्वस्थ बछड़ा हो उनके गोबर धन में हल्दी मिलाकर दो स्वास्तिक बनाएं। इन स्वास्तिक देव को अक्षत, सुपारी, मौली और दक्षिणा अर्पण करें। नित्य इन्हें प्रणाम करें। यह उपाय पूर्णमासी से ही शुरू करें और आजीवन पूर्णमासी करते ही रहें। पुराने स्वास्तिक की सफाई हेतु केवल स्वच्छ अवस्था में अपने हाथों का ही प्रयोग करें।

05. पति-पत्नी के आपसी प्रेम और एकता हेतु घर के मंदिर में पीतल की एक प्लेट पर कुमकुम+हल्दी से एक स्वास्तिक का निर्माण करें। इन स्वास्तिक देव पर शिव-परिवार या शिवलिंग को स्थान दें। नित्य देशी खांड मिश्रित जल से इन्हें स्नान कराएं और अक्षत अर्पण करें। स्नान वाले जल को किसी भी पौधे में अर्पण करें। यह उपाय सोमवार से शुरू करें और प्रत्येक सोमवार को नया स्वास्तिक बनाया करें।

06. धन-धान्य एवम् संपन्नता हेतु हर पूर्णमासी से पहले अपनी रसोई की पूर्ण सफाई अवश्य करें। पूर्णमासी की तिथि में प्रातः समय अपनी रसोई में हल्दी से मां अन्नपूर्णा का ध्यान करते हुए स्वास्तिक का निर्माण करें। स्वास्तिक के बीच में एक मिट्टी का देशी घी का दीपक जलाएं और साबुत हल्दी+अक्षत+गेहूं+दाल+गुड़ अर्पण करें। यह उपाय जितना अधिक करेंगे उतना ही अधिक लाभ होगा।

07. जीवन को एक दिशा प्रदान करने के लिए घर के ईशान कोण के मंदिर में एक पीतल के कलश मे गंगाजल भरकर रखिए। इस पीतल के कलश पर कुमकुम/हल्दी से चौतरफा स्वास्तिक बनाएं। इस पीतल के कलश पर पीतल की ही प्लेट/ढक्कन लगा कर रखें रहें। यह कलश आजीवन रखा ही रहेगा।

-गुरु सत्यराम

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Swastik symbol that provides luck (Hindi & English)

Om-Shiva

01. Importance and introduction of Swastik symbol?

Swastik is considered to be of great importance in Sanatan Hindu religion. Before starting any auspicious work, Sanatani Hindus make a sign of auspicious Swastik and worship it. Because it is our ancient Vedic belief that by doing this, the work becomes successful. Swastik symbol is considered to be a symbol of auspiciousness. The word Swastik is considered to be a mixture of ‘Su’ and ‘Asti’. ‘Su’ means auspicious and ‘Asti’ means to be. This means that the basic meaning of Swastik is ‘May it be auspicious’ or ‘May it be good’. Let us now know, what is the story of Swastik? And how is its mystery connected to Lord Shri Ganeshji, son of Shiva-Parvati?

02. Meaning of Swastik?

Swastik means welfare or auspiciousness. Similarly, the Swastik symbol means welfare or auspiciousness. Swastik is a special kind of figure in itself, which is made before starting any work. It is believed that this auspicious symbol attracts auspicious and auspicious things from all the ten directions. Which leads to welfare and benefit for all. Since Swastik is kept at the beginning of work and auspicious work, it is also considered to be a form of Lord Shri Ganesha. It is strongly believed that by using it, the person gets prosperity, prosperity, auspiciousness and concentration. Not only this, the worship in which Swastik is not used, that worship is not able to keep its effect for a long time. Because in our culture, if the beginning is auspicious, then the work will also be completed quickly and after its completion, the work will also provide prosperity.

03. Scientific importance of Swastik symbol?

01. If you have made the Swastik symbol with full faith and in the right way, then a lot of positive energy keeps coming out of it every moment.

02. This holy energy proves to be helpful in protecting the object or person, due to which the person does not have any doubt in the accomplishment of his work.

03. If the auspicious energy of Swastik is used in home, hospital or daily life, then the person can remain disease free and worry free. Because a Swastik made correctly has the ability to defeat all types of negative energy.

04. Swastik symbol made or used in the wrong way can also create terrible problems. Because only a Swastik made in the right way provides auspicious energy. Therefore, this auspicious symbol made out of ignorance can also give adverse results. Let us now know 07 divine uses of Swastik symbol for happiness and prosperity.

07 divine uses of Swastik symbol for happiness and prosperity.

01. For the prosperity of the entire family, make a Swastik on 21 Peepal leaves with camphor oil and turmeric and join all the leaves with red moli to make a toran and place it on the main wooden door of the house. This remedy has to be started on every Poornamasi (full moon day) and a new toran should also be placed on the Poornamasi (full moon day) date.

02. If there is a temple in the north-eastern (Ishaan Kon) corner of your house/office, then sprinkle Gangajal on the north and eastern wall and make a Swastik by mixing turmeric, kumkum and jaggery for 11 consecutive Thursdays. This remedy will keep the money flow in the house/office good. Start this remedy from any Thursday and keep making the second Swastik on the same lines as the one made on the first Thursday.

03. If there is any kind of delay in work, then mix sandalwood powder in the dung of a happy Indian cow who has a healthy calf and make a Swastik on both sides of the main iron + wooden door of the house. If there is any serious problem, then feed jaggery to the calf of this cow and tell your problem in the right ear of the cow and take her blessings.

04. For the good arrival of Goddess Lakshmi, mix turmeric in the dung of a happy Indian cow who has a healthy calf and make two Swastiks right in front of the house / office or on both sides of the threshold where no one’s feet fall. Offer rice, betel nut, mauli and dakshina to this Swastik Dev. Salute him daily. Start this remedy from the full moon day and keep doing it on full moon day throughout the life. Use only your hands in clean state for cleaning the old Swastik.

05. For mutual love and unity between husband and wife, make a Swastika with Kumkum + Turmeric on a brass plate in the temple of the house. Place Shiv-family or Shivling on this Swastik Dev. Bathe them with water mixed with pure sugar candy every day and offer rice. Offer the bathing water to any plant. Start this remedy from Monday and make a new Swastika every Monday.

06. For wealth and prosperity, clean your kitchen completely before every full moon day. On the full moon day, make a Swastika with turmeric in your kitchen in the morning while meditating on Mother Annapurna. Light an earthen lamp of pure ghee in the middle of the Swastik and offer whole turmeric + rice + wheat + lentils + jaggery. The more you do this remedy, the more benefits you will get.

07. To give direction to life, keep a brass urn filled with Gangajal in the temple in the northeast corner of the house. Make a four-sided Swastika on this brass urn with kumkum/turmeric. Keep a brass plate/lid on this brass urn. This urn will be kept for life.

-Guru Satyaram

धनतेरस 2024 (Hindi & English)

धनतेरस 2024 (Hindi & English)

Om-Shiva

01. परिचय

धनतेरस का त्यौहार दीपावली आने की पूर्व सूचना देता है। इस दिन भगवान धन्वंतरि क्षीरसागर से अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए थे। धनतेरस के दिन दीर्घायु और स्वस्थ जीवन की कामना से भगवान धन्वंतरि का पूजन पूरे हर्षोल्लास से किया जाता है। जब देवताओं के वैद्य भगवान धन्वंतरि समुद्र मंथन के पश्चात प्रकट हुए थे, तब उनके हाथ में अमृत से भरा कलश था। तब से ही धनतेरस के दिन बर्तन खरीदने की परंपरा शुरू हुई

धनतेरस के दिन बर्तनों के अलावा सोने और चांदी के गहने तथा महंगी धातुओं के समान भी खरीदे जाते हैं। धनतेरस को धन त्रयोदशी व धनवंतरी जयंती के नाम से भी जाना जाता है। इसी दिन से दीपावली के पंच दिवसीय पंचपर्व की शुरुआत होती है। माना जाता है कि इस दिन से ही माता लक्ष्मीजी और कुबेरजी का वास हमारे घरों में हो जाता है। इस दिन यमदेव की भी पूजा की जाती है और यमराज को दीपदान भी किया जाता है।

02. धनतेरस पूजन की तिथि और मुहूर्त

इस वर्ष 2024 में धनतेरस 29 अक्टूबर दिन मंगलवार को मनाया जाएगा। पूजन का मुहूर्त शाम 06:33 से रात्रि 08:45 तक है। इसी बीच खरीदारी और पूजन करना चाहिए।

03. पूजन का विधि विधान

धनतेरस के दिन प्रातः समय में हल्दी, चंदन आदि का उबटन लगाकर स्नान करना चाहिए। उसके पश्चात संध्याकाल में भगवान धन्वंतरि का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। भगवान धन्वंतरि के साथ कुबेरजी एवं माता लक्ष्मीजी का भी पूजन करना चाहिए। शाम के समय घर के मुख्यद्वार और आंगन में दीप जलाने चाहिए। संध्या के पश्चात यम देवता के निमित्त दक्षिण दिशा में दीप का दान करना चाहिए। ऐसा करने से अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है।

04. धनतेरस के दिन क्या खरीदें?

धनतेरस के दिन नए बर्तन, पीतल के कलश, सोने चांदी के आभूषण, वैभव की वस्तुएं और नए वस्त्रों को खरीदना शुभ माना जाता है। इसके अलावा इस दिन विशेष तौर पर साबुत धनिया, फूलझाड़ू खरीदना शुभ रहता है। इस दिन काले और नीले रंग की वस्तुएं, चीनी मिट्टी के सामान, अल्युमिनियम और लोहे की धातु से बनी चीजों को नहीं खरीदना चाहिए। फूलझाड़ू को भी हमेशा विषम संख्या में ही खरीदना चाहिए। ऐसा कहते हैं कि हमारे घर की झाड़ू घर की सफाई करके नकारात्मकता दूर करती है और लक्ष्मीजी का स्वागत करने में सहायता करती है। इसलिए इस दिन झाड़ू विशेष तौर पर फूलझाड़ू खरीदने का विशेष प्रावधान है।

05. यमदेव के पूजन का पौराणिक सन्दर्भ

एक बार यमराज ने अपने यमदूतों से पूछा कि क्या कभी तुम्हें प्राणियों के प्राणों का हरण करते समय किसी पर दया उमड़ी है? तो वें संकोच में पड़कर बोले, नहीं महाराज! हमें दयाभाव से क्या मतलब? हम तो बस आपकी आज्ञा का पालन करने में लगे रहते हैं। जब यमराज ने उनसे बार-बार यही प्रश्न किया तब उन्होंने संकोच छोड़कर यह बताया कि एक बार ऐसी घटना घटी थी जिससे हमारा हृदय भी कांप उठा था। हिम नामक एक राजा की पत्नी ने जब एक पुत्र को जन्म दिया तब ज्योतिषियों ने नक्षत्र की गणना करके बताया कि यह बालक जब भी विवाह करेगा उसके चार दिन के बाद ही मर जाएगा।

यह जानकर राजा ने उस बालक को स्त्रियों की छाया तक से बचाने के लिए यमुना नदी के तट पर एक गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में पालकर बड़ा किया। संयोगवश, एक दिन जब महाराज हंस की पुत्री यमुना के तट पर घूम रही थी तो उस ब्रह्मचारी राजकुमार ने उस पर मोहित होकर उससे गंधर्व विवाह कर लिया। किंतु विवाह के चार दिन पूरे होते ही राजकुमार की मृत्यु हो गई। अपने पति की मृत्यु देखकर उसकी पत्नी बिलख-बिलखकर रोने लगी। उस नव विवाहता का गरुड़ विलाप सुनकर हमारा हृदय भी कांप उठा। हमने जीवन में कभी भी ऐसी सुंदर जोड़ी नहीं देखी थी। वे दोनों साक्षात कामदेव व रति के अवतार मालूम होते थे। उस राजकुमार के प्राण हरण करते समय हमारे आंसू नहीं रुक रहे थे।

यह सुनकर यमराज ने कहा, क्या करें विधि के विधान के अनुसार उसकी मर्यादा निभाकर हमें ऐसे अप्रिय कार्य करने ही पड़ते हैं। फिर एक यमदूत ने उत्सुकतावश यमराज से पूछा, महाराज क्या अकाल मृत्यु से बचने का कोई भी उपाय नहीं है? ।यमराज बोले, हां उपाय तो है। अकाल मृत्यु से छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति को धनतेरस के दिन पूजन और दीपदान विधिपूर्वक करना चाहिए इससे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। इस कथा के पश्चात धनतेरस के दिन यम को दीपदान करने और उनका पूजन करने का प्रचलन प्रारंभ हुआ।

उपर्युक्त आलेख में मैंने धनतेरस के विषय में एक संक्षिप्त जानकारी देने का प्रयास किया है। आशा करती हूं कि मेरा यह प्रयास आप पाठकों को पसंद आएगा।

धन्यवाद और आभार!

-एस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव

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Dhanteras 2024 (Hindi & English)

Om-Shiva

01. Introduction

The festival of Dhanteras gives advance information about the arrival of Diwali. On this day, Lord Dhanvantari appeared from Kshirsagar with a pot of nectar. On the day of Dhanteras, Lord Dhanvantari is worshipped with great joy with the wish of long life and healthy life. When Lord Dhanvantari, the physician of the gods, appeared after the churning of the ocean, he had a pot full of nectar in his hand. Since then the tradition of buying utensils on the day of Dhanteras started.

Apart from utensils, gold and silver jewelry and expensive metals are also purchased on the day of Dhanteras. Dhanteras is also known as Dhan Trayodashi and Dhanvantari Jayanti. From this day the five-day Panchparva of Diwali begins. It is believed that from this day onwards Mother Lakshmi and Kuberji reside in our homes. On this day, Yamdev is also worshiped and lamps are also donated to Yamraj.

02. Date and auspicious time of Dhanteras worship

This year in 2024, Dhanteras will be celebrated on Tuesday, October 29. The auspicious time for worship is from 06:33 pm to 08:45 pm. Shopping and worship should be done during this time.

03. Method of worship

On the day of Dhanteras, one should take a bath in the morning by applying a paste of turmeric, sandalwood etc. After that, Shodashopachar worship of Lord Dhanvantari should be done in the evening. Along with Lord Dhanvantari, Kuberji and Mother Lakshmi should also be worshipped. In the evening, lamps should be lit at the main entrance and courtyard of the house. After evening, a lamp should be donated in the south direction for Yam Devta. By doing this, one gets freedom from the fear of untimely death.

04. What to buy on Dhanteras?

On the day of Dhanteras, it is considered auspicious to buy new utensils, brass urns, gold and silver ornaments, luxury items and new clothes. Apart from this, it is especially auspicious to buy whole coriander and flower broom on this day. Black and blue colored items, porcelain items, aluminum and iron metal items should not be bought on this day. Flower brooms should also always be bought in odd numbers. It is said that the broom of our house cleans the house and removes negativity and helps in welcoming Goddess Lakshmi. Therefore, there is a special provision to buy brooms and especially flower brooms on this day.

05. Mythological reference of Yamdev’s worship

Once Yamraj asked his Yamdoots whether they ever felt pity for someone while taking away the lives of living beings? Then they said hesitantly, No Maharaj! What do we have to do with pity? We just keep on following your orders. When Yamraj asked him the same question again and again, he left his hesitation and told that once such an incident had happened which had made even our heart tremble. When the wife of a king named Him gave birth to a son, the astrologers calculated the stars and told that whenever this child would get married, he would die within four days.

Knowing this, the king raised that child as a brahmachari in a cave on the banks of river Yamuna to protect him from even the shadow of women. Coincidentally, one day when the daughter of Maharaj Hans was roaming on the banks of Yamuna, that celibate prince got attracted to her and married her in Gandharva style. But after four days of marriage, the prince died. Seeing her husband’s death, his wife started crying bitterly. Hearing the Garuda lamentation of that newly married woman, our heart also trembled. We had never seen such a beautiful couple in our life. Both of them looked like incarnations of Kaamdev and Rati. Our tears were not stopping while taking away the life of that prince.

Hearing this, Yamraj said, what to do, we have to do such unpleasant tasks by fulfilling the rules of the law. Then a Yamdoot asked Yamraj out of curiosity, Maharaj, is there no way to avoid untimely death? Yamraj said, yes there is a way. To get rid of untimely death, a person should worship and give lamps properly on the day of Dhanteras, this will not cause fear of untimely death. After this story, the practice of giving lamps to Yam and worshipping him on the day of Dhanteras started.

In the above article, I have tried to give a brief information about Dhanteras. I hope that you readers will like my effort.

Thanks and gratitude!

-Astro Richa Srivastava.