loading

Tag: ऐस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव

  • Home
  • Tag: ऐस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव

जन्मकुंडली में कालसर्प दोष (Hindi & English)

जन्मकुंडली में कालसर्प दोष (Hindi & English)

आजकल सोशल मीडिया और पत्र-पत्रिकाओं में कालसर्प दोष या योग की बहुत चर्चा है। अनेक ज्योतिषियों द्वारा इस योग की चर्चा करते और इसके विभिन्न उपायों को बताते देखा-सुना जा रहा है। आइए हम जानते हैं कि कालसर्प दोष की मूलभूत जानकारी क्या है?

क्या है कुंडली में कालसर्प दोष का अर्थ?

कालसर्प दो शब्दों से मिलकर बना है, काल और सर्प। काल अर्थात राहु और सर्प अर्थात केतु।

हमारे ग्रन्थों में कहा जाता है कि-

“राहुतः केतुमध्ये आगच्छन्ति यदा ग्रहा:।
कालसर्पस्तु योगोयं कथितम पूर्वसुरभि:।।

अर्थात – यदि किसी व्यक्ति के जन्मकाल के समय समस्त ग्रह राहु तथा केतु के मध्य आ जाते हैं तो कालसर्प योग का निर्माण होता है। इस योग को सर्वाधिक अशुभ योगों में से एक माना जाता है। जिनकी कुंडली में यह योग बनता है, उनके जीवन में काफी उतार-चढ़ाव और संघर्ष आता है। इस योग से पीड़ित जातकों के जीवन में कष्टों का आधिक्य, रोग, संघर्ष, संतानहीनता, धन की कमी, असफलता आदि अशुभ प्रभाव इस योग के फलस्वरूप देखने में आते हैं। लेकिन यदि कुंडली में कालसर्प योग के अतिरिक्त सकारात्मक ग्रह अधिक हों तो व्यक्ति उच्च पदाधिकारी भी बनता है लेकिन परिश्रम और संघर्ष के बाद। और यदि नकारात्मक ग्रह अधिक प्रभावशाली हों तो जीवन अत्यंत कठिन और संघर्षमय बन जाता है।

कालसर्प दोष के कितने प्रकार होते हैं?

कालसर्प दोष 288 प्रकार के होते हैं। क्योंकि 12 राशियों में 12 प्रकार के कालसर्प दोष (12×12=144) तथा 12 लग्नों में 12 प्रकार के कालसर्प दोष (12×12=144)। दोनों का कुल योग अर्थात 288 प्रकार के कालसर्प दोष हुए।

उपर्युक्त 288 प्रकार के कालसर्प दोषों में भी 12 प्रमुख प्रकार के दोष इस प्रकार से हैं।

01. अनन्त कालसर्प दोष

जब कुंडली के प्रथम भाव में राहु हों और सप्तम भाव में केतु हों तब इस योग का निर्माण होता है। इस योग से प्रभावित होने वाले जातक को शारीरिक और मानसिक परेशानी उठानी पड़ती है। कभी-कभी सरकारी और अदालती मामलों में भी फंसना पड़ता है। इस योग की सकारात्मक बात यह है कि इस योग वाला जातक साहसी, निडर, स्वाभिमानी और स्वतंत्र विचारों वाला होता है।

02. कुलिक कालसर्प दोष

जब कुंडली के दूसरे भाव में राहु हों और आठवें भाव में केतु हों तब कुलिक नाम का कालसर्प दोष का निर्माण होता है। इस योग से पीड़ित व्यक्ति को आर्थिक कष्ट भोगना पड़ता है। उसकी पारिवारिक स्थिति कलहपूर्ण और संघर्षपूर्ण होती है। सामाजिक तौर पर भी जातक की स्थिति इतनी अच्छी नही रहती है।

03. वासुकि कालसर्प दोष

जब तीसरे भाव में राहु हों और नवम भाव में केतु हों तब वासुकि नामक कालसर्प दोष बनता है। इस योग में पीड़ित व्यक्ति के जीवन में लगातार संघर्ष बना रहता है। प्रायः भाई बहनों से सम्बंध खराब रहते हैं और यात्राओं में भी कष्ट उठाना पड़ता है। नौकरी व्यवसाय में भी परेशानी बनी रहती है।

04. शंखपाल कालसर्प दोष

जब कुंडली के चतुर्थ भाव में राहु हों और दशम भाव में केतु हों तब यह शंखपाल नाम का योग बनता है। इस दोष से पीड़ित होने पर व्यक्ति को घर के सुखों में कमी होती है। व्यक्ति को आर्थिक तंगी होना, मानसिक तनाव रहना, माता के सुखों में कमी रहना तथा जमीन-जायदाद आदि मामलों में कष्ट भोगना पड़ता है।

05. पदम् कालसर्प दोष

जब कुंडली के पंचम भाव में राहु हों और एकादश भाव में केतु हों तब यह कालसर्प दोष बनता है। प्रायः इस दोष में जातक को अपयश, लाभों में कमी, शिक्षा में बाधा और सन्तान सुखों में कमी आदि की समस्या बनी रहती है। अक्सर वृद्धावस्था में सन्यास की ओर प्रवित्त होना भी इस योग के प्रभाव से देखा जा सकता है।

06. महापद्म कालसर्प दोष

जब कुंडली के छठे भाव में राहु हों और द्वादश भाव में केतु हों तब इस योग का निर्माण होता है। इस योग के कारण व्यक्ति को मामा की तरफ से कष्ट, रोग और ऋण से परेशानी, निराशा के कारण दुर्व्यसनों का शिकार हो जाना आदि समस्याएं होतीं हैं। इन्हें काफी समय तक शारीरिक कष्ट भोगना पड़ता है।

07. तक्षक कालसर्प दोष

जब कुंडली के सप्तम भाव में राहु हों और प्रथम भाव में केतु हों तो तक्षक नाम का दोष उतपन्न होता है। इस योग में वैवाहिक जीवन उथल-पुथल भरा होता है। कारोबार, व्यवसाय में साझेदारी लाभप्रद नहीं होती और यह मानसिक परेशानी देती है। ऐसे जातकों का प्रेम जीवन प्रायः असफल ही रहता है।

08. कर्कोटक कालसर्प दोष

जब कुंडली के आठवें भाव में राहु हों और दूसरे भाव में केतु हों तो इस प्रकार का योग बन जाता है। इस योग में व्यक्ति को कुटुंब सम्बंधित अनेक परेशानी उठानी पड़ती है। ऐसे कुंडली वाले लोगों का धन स्थिर नहीं रह पाता और गलत कार्यों में धन खर्च होता है।

09. शंखचूड़ कालसर्प दोष

जब कुंडली के नवम भाव में राहु हों और तृतीय भाव में केतु हों तब इस दोष का निर्माण होता है। इस योग से प्रभावित व्यक्ति को भाग्य का साथ कम मिलता है। उसे सुखों की प्राप्ति काफी कम होती है। इन्हें पिता से प्राप्त सुखों में भी बाधा आती है तथा इनकी धार्मिक प्रवृत्ति कम होती है।

10. घातक कालसर्प दोष

जब कुंडली के दशम भाव में राहु हों और चतुर्थ भाव में केतु हों तो यह घातक नामक कालसर्प दोष बनता है। प्रायः कहा जाता है कि व्यक्ति अपने पूर्व जन्म का कोई श्राप भोग रहा होता है। इस योग से परिवार और रोजगार में लगातार परेशानी बनी रहती है और व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित बना रहता है।

11. विषधर कालसर्प दोष

जब कुंडली के एकादश भाव में राहु हों और पंचम भाव में केतु हों तब इस योग का निर्माण होता है। इस योग से प्रभावित व्यक्ति को सन्तान सम्बन्धी कष्ट बना रहता है। इनकी स्मरणशक्ति अच्छी नहीं होती और विवेक की भी कमी रहती है। शिक्षा में रुकावट, मान सम्मान में कमी इस योग के प्रमुख लक्षण हैं।

12. शेषनाग कालसर्प दोष

जब कुंडली के द्वादश भाव में राहु हों और छठे भाव में केतु उपस्थित हों तो इस दोष का निर्माण होता है। इस योग में व्यक्ति के कई गुप्त शत्रु रहते हैं और उसके खिलाफ षड्यंत्र रचते रहते हैं। मुकदमें, जेलयात्रा, सरकारी दंड, अनर्गल खर्चे, मानसिक अशांति और बदनामी भी इस योग में झेलनी पड़ सकती है। लेकिन अक्सर ऐसे जातकों को मृत्यु के बाद ख्याति मिलती है।

इस प्रकार से देखा जाए तो कालसर्प दोष व्यक्ति के जीवन में भाग्य को बाधित कर देते हैं, जिसके कारण जातक के जीवन में इस जन्म के तथा पूर्व जन्म में किये गए पाप कर्मों का प्रभाव बढ़ जाता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को कालसर्प दोष निवारण साधना, मन्त्र जाप, अनुष्ठान, तर्पण, दान और पितृ मुक्ति क्रिया अवश्य करानी चाहिए।

आपको मेरा यह आलेख कैसा लगा? कृपया टिप्पणी के माध्यम से ज़रूर बताएं।

धन्यवाद और आभार।

– ऐस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव

++++++++++++++++++++++++++++++++++++++

Kaal Sarp Dosh in Birth Chart (Hindi & English)

Nowadays there is a lot of discussion about Kaal Sarp Dosh or Yog in social media and newspapers. Many astrologers are seen discussing this Yog and giving various remedies for it. Let us know what is the basic information about Kaal Sarp Dosh?

What is the meaning of Kaal Sarp Dosh in Kundali?

Kaal Sarp is made up of two words, Kaal and Sarp. Kaal means Rahu and Sarp means Ketu.

It is said in our scriptures that-

“Rahut Ketu madhye aagchanti yada graha.

Kaalsarpastu yogayam chhattam purvasurbhi.

Meaning – If at the time of birth of a person all the planets come between Rahu and Ketu then Kaalsarpa Yog is formed. This Yog is considered to be one of the most inauspicious Yog. Those in whose kundali this Yog is formed, their life faces a lot of ups and downs and struggle. The inauspicious effects of this Yog are seen in the lives of the people suffering from this Yog like excess of sufferings, diseases, struggles, childlessness, lack of money, failure etc. But if there are more positive planets in the kundali apart from Kaalsarpa Yog then the person also becomes a high official but after hard work and struggle. And if the negative planets are more influential then life becomes extremely difficult and full of struggle.

How many types of Kalsarp Dosh are there?

There are 288 types of Kalsarp Dosh. Because there are 12 types of Kalsarp Dosh in 12 zodiac signs (12×12=144) and 12 types of Kalsarp Dosh in 12 ascendants (12×12=144). The total of both means 288 types of Kalsarp Dosh.

Among the above 288 types of Kalsarp Dosh, the 12 main types of dosh are as follows.

01. Anant Kalsarp Dosh

When Rahu is in the first house of the horoscope and Ketu is in the seventh house, then this yoga is formed. The person affected by this yoga has to face physical and mental problems. Sometimes he has to get stuck in government and court cases also. The positive thing about this yoga is that the person with this yoga is courageous, fearless, self-respecting and has independent thoughts.

02. Kulik Kaal Sarp Dosh

When Rahu is in the second house of the horoscope and Ketu is in the eighth house, then a Kaal Sarp Dosh named Kulik is formed. The person suffering from this Yog has to suffer financial difficulties. His family situation is quarrelsome and full of conflict. Socially also the person’s condition is not so good.

03. Vasuki Kaal Sarp Dosh

When Rahu is in the third house and Ketu is in the ninth house, then a Kaal Sarp Dosh named Vasuki is formed. In this Yog, there is constant struggle in the life of the affected person. Usually, relations with siblings are bad and one has to face troubles in travels. There are also problems in job and business.

04. Shankhpal Kaal Sarp Dosh

When Rahu is in the fourth house of the horoscope and Ketu is in the tenth house, then this Yog named Shankhpal is formed. When a person is suffering from this Dosh, there is a decrease in the happiness of the house. The person has to face financial crisis, mental stress, lack of happiness from the mother and has to suffer in matters related to land and property etc.

05. Padma Kaal Sarp Dosh

When Rahu is in the fifth house of the horoscope and Ketu is in the eleventh house, then this Kaal Sarp Dosh is formed. Usually, the native of this dosha faces problems like infamy, reduction in profits, hindrance in education and reduction in happiness of children etc. Often, turning towards sanyaas in old age can also be seen due to the effect of this yoga.

06. Mahapadma Kaal Sarp Dosh

When Rahu is in the sixth house of the horoscope and Ketu is in the twelfth house, then this yoga is formed. Due to this yoga, the person has to face problems like trouble from maternal uncle’s side, disease and debt, falling prey to bad habits due to despair, etc. They have to suffer physical pain for a long time.

07. Takshak Kaal Sarp Dosh

When Rahu is in the seventh house of the horoscope and Ketu is in the first house, then a dosha named Takshak arises. In this yoga, married life is full of turmoil. Partnership in business is not beneficial and it causes mental troubles. The love life of such people is often unsuccessful.

08. Karkotak Kaal Sarp Dosh

When Rahu is in the eighth house of the horoscope and Ketu is in the second house, then this type of yoga is formed. In this yoga, the person has to face many problems related to the family. The wealth of people with such horoscope does not remain stable and the money gets spent in wrong works.

09. Shankhachud Kaal Sarp Dosh

This dosh is formed when Rahu is in the ninth house of the horoscope and Ketu is in the third house. The person affected by this yoga gets less support from luck. He gets very less pleasures. They also face obstacles in the pleasures received from their father and their religious tendency is less.

10. Ghatak Kaal Sarp Dosh

When Rahu is in the tenth house of the horoscope and Ketu is in the fourth house, then this Ghatak Kaal Sarp Dosh is formed. It is often said that the person is suffering from some curse of his previous birth. Due to this yoga, there is constant trouble in family and employment and the mental health of the person also remains affected.

11. Vishdhar Kaal Sarp Dosh

This yoga is formed when Rahu is in the eleventh house of the horoscope and Ketu is in the fifth house. The person affected by this yoga has problems related to children. Their memory power is not good and there is also lack of discretion. Obstacles in education, lack of respect are the main symptoms of this yoga.

12. Sheshnag Kaal Sarp Dosh

When Rahu is present in the 12th house of the horoscope and Ketu is present in the 6th house, then this dosh is formed. In this yoga, the person has many secret enemies and they keep plotting against him. In this yoga, one may have to face lawsuits, jail, government punishment, unnecessary expenses, mental unrest and defamation. But often such people get fame after death.

In this way, Kaal Sarp Dosh obstructs the luck in a person’s life, due to which the effect of sins done in this birth and previous birth increases in the life of the person. Therefore, every person must do Kaal Sarp Dosh Nivaran Sadhna, Mantra Jaap, Anushthan, Tarpan, Daan and Pitru Mukti Kriya.

How did you like this article of mine? Please do tell through comments.

Thanks and gratitude.

– Astro Richa Srivastava

एक दाम्पत्य जीवन में क्यों आती है दरार?(Hindi & English)

एक दाम्पत्य जीवन में क्यों आती है दरार?(Hindi & English)

Om-Shiva
हमारे भारतीय समाज में विवाह को सात जन्मों का बंधन माना जाता है और विवाह केवल शारीरिक ही नहीं अपितु एक स्थाई मानसिक मिलन का भी द्योतक माना जाता है। यह भी कहा जाता है कि विवाह की जोड़ियां स्वर्ग में बनती हैं, फिर धरती पर ईश्वर के आशीर्वाद से विवाह के बंधन में बंधती हैं। यदि भारतीय समाज मे विवाह एक पवित्र बंधन है, तो क्यों अधिकांश पति-पत्नी अपने दाम्पत्य जीवन में सुखी नहीं रह पाते हैं? आखिर क्यों इतनी कड़वाहट घुल जाती है कि बात अलगाव से लेकर तलाक तक पहुंच जाती है?

आइए हम इसका सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलू खोजने का प्रयास करते हैं।

01. पति-पत्नी के बीच किसी तीसरे का हस्तक्षेप होना

एक सुखी विवाहित जोड़े के बीच किसी तीसरे का अत्यधिक हस्तक्षेप एक प्रमुख सामाजिक मुद्दा है। स्त्री के ससुराल में यदि उसकी सास, ससुर, ननद या अन्य कोई भी सदस्य अगर बहुत अधिक हावी रहता है और पति या पत्नी को बहुत अधिक कंट्रोल करता है, तब दाम्पत्य जीवन में प्रेम की मिठास खत्म होकर कड़वाहट आने लगती है। यही बात पत्नी के मायके की तरफ से भी लागू होती है। पति या पत्नी स्वच्छन्द होकर कोई निर्णय नही ले पाते हैं, और ना ही अपने मन का कुछ कार्य कर पाते हैं। जिससे दोनों के मन में असन्तुष्टि का भाव उत्तपन्न हो जाता है तथा टकराव की स्थिति पैदा होने लग जाती है।

02. पति या पत्नी के विवाहेत्तर संबंधों का होना

आजकल दाम्पत्य जीवन को लगभग समाप्त कर तलाक की दहलीज पर पहुंचा देने वाला यह एक प्रमुख कारण है। बढ़ती आधुनिकता, स्त्रियों की सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता, सोशल मीडिया आदि के कारण अपने घर से बाहर स्त्री-पुरुषों को आपस में घुलने मिलने के अनेक अवसर मिलते हैं। आजकल घर के पर्दे से बाहर निकल कर स्त्रियां नौकरी कर रहीं हैं तथा अन्य सामाजिक कार्य भी कर रहीं हैं। ऐसे में उनका किसी पुरुष सहकर्मी के साथ अत्यंत घनिष्ठ हो जाना थोड़ा लाजिमी है। पुरुष भी घर से बाहर, आधुनिक और सजी संवरी महिलाओं को देखकर सहज ही आकर्षित हो जाते हैं। इस तरह उनमें सम्बन्ध स्थापित हो जाते हैं। जब ऐसे सम्बन्धों की भनक पति या पत्नी को लगती है तब दाम्पत्य जीवन विषैला हो उठता है।

03. लगातार एक दूसरे की उपेक्षा करते रहना

यह दाम्पत्य जीवन के लिए बड़ी खतरनाक स्थिति है। कहते हैं कि जो दम्पति एक दूसरे से लड़ झगड़ लेते हैं, अपनी बातें एक दूसरे को सुनाकर हल्के हो लेते हैं, उनमें फिर भी प्रेम बना रहता है। लेकिन अपने पार्टनर से उपेक्षित पति या पत्नी को अपना पूरा जीवन ही बोझ लगने लगता है। उनमें कम्युनिकेशन और तालमेल की कमी के कारण आपसी समझ नहीं बन पाती है, और वें एक ही छत के नीचे अजनबियों की तरह अपना नीरस जीवन व्यतीत करते हैं। यह परिस्थिति कई कारणों से उत्तपन्न हो सकती है। जैसे मनपसंद जीवनसाथी का नहीं मिलना, जीवनसाथी का उम्मीदों पर खरा नहीं उतरना, जीवनसाथी का दिल दूसरों के प्रति असंवेदनशील होना। जब उपेक्षा की स्थिति बनी रहेगी तो पति पत्नी के बीच प्रेम या स्नेह का रिश्ता पनप ही नहीं सकता है। एक निर्जीव वस्तु भी उपेक्षित होकर पड़े-पड़े सड़ जाती है या बिगड़ जाती है, तो फिर इंसानों का कहना ही क्या? अपने पार्टनर द्वारा करी जाने वाली सतत उपेक्षा जीवनसाथी को मनोवैज्ञानिक रूप से तोड़ देती है। वें बस पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने के लिए एक ही छत के नीचे दिखावे के लिए एकसाथ जीवन व्यतीत करते हैं।

04. अविश्वास और अनादर का रिश्तों में बढ़ना

कुछ पति या पत्नी स्वभावतः शक्की होते हैं। वें कुछ भी कार्य करें लेकिन एक दूसरे के ऊपर छोटी-छोटी बातों पर शक करते ही रहते हैं। एक दूसरे के मोबाइल को चेक करते रहना या सोशल मीडिया पर ताक झांक करते रहना एक आम सी बात हो गई है। आजकल तो फेसबुक और इंस्टाग्राम के पोस्ट के कारण पति-पत्नी में भयंकर झगड़े होना बिल्कुल आम बात हो गई है। इसके अलावा पति या पत्नी द्वारा छोटी-छोटी बातों पर एक दूसरे को नीचा दिखाना, एक दूसरे के मनोबल को तोड़ देता है। ऐसा अनेक बार देखा गया है कि पत्नी यदि अधिक प्रतिभाशाली हो और घर से बाहर जाकर अपनी पहचान बनाती है तो यह बात उसके पति को हजम नहीं हो पाती है। वह अपनी पत्नी को अनेक प्रतिबंध में बांधने की कोशिश करके उसे आगे नही बढ़ने देने की कोशिश में लगा रहता है। इसके पीछे असुरक्षा और ईर्ष्या की भावना भी छुपी हो सकती है। लेकिन यह बात पत्नी को चुभती रहती है, और वह अपने दाम्पत्य जीवन में कभी संतुष्ट नहीं हो पाती है। इसी प्रकार से पत्नी भी अपने पति की महिला मित्रों या महिला सह-कर्मियों को लेकर सदैव आशंकित बनी रहती है। पति के साथ गलत सम्बन्धों की कल्पना करके परेशान होती रहती है। यही परेशानी उसके व्यवहार में भी झलकती है। इस कारण से पति-पत्नी में क्लेश बना रहता है।

05. जीवन में काम के चलते अति व्यस्तता का होना

आज के आधुनिक युग में व्यक्ति अति महत्वाकांक्षी स्वभाव के चलते अपने व्यवसाय या नौकरी में इतना अधिक व्यस्त हो जाता है कि अपने घर-परिवार और पत्नी के साथ एक क्वालिटी टाइम बिताने के लिए उसके पास वक्त ही नहीं हो पाता है। नौकरी हो या बिजनेस, पुरुष उत्तरोत्तर तरक्की करने की चाह में अपना सारा ध्यान उसी में लगा देता है। यह अति व्यस्तता घर के वातावरण को असंतुलित करके, घर के माहौल को ख़राब कर देती है। दिनभर का थका-हारा पति जब घर लौटता है तो घर में शांति और आराम को खोजता है। उसे पत्नी की साधारण बातें भी तंग करने वाली लगती हैं। जबकि दिनभर घर गृहस्थी के कार्यों में उलझी हुई पत्नी, अपने पति के साथ बैठकर प्रेम भरी बातें करना चाहती है।

इसके विपरीत हम देखें तो आजकल की आधुनिक नारियां घर से बाहर निकल कर कार्य कर रहीं हैं। आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने की चाह में वें नौकरी और व्यवसाय को प्राथमिकता देती हैं। जबकि आज “औरत के घर संभालने और पुरुष को कमाने” की हमारी प्राचीन व्यवस्था टूटती जा रही है। नतीज़तन घरेलू व्यवस्था में असंतुलन पैदा हो रहा है। यहां मैं यह नहीं कह रही हूं कि स्त्रियों का घर के बाहर निकलकर काम काज करना अनुचित है, लेकिन यदि पति-पत्नी दोनों ही अति व्यस्त रहते हैं तो कहीं ना कहीं दोनों में मानसिक और शारीरिक दूरी बढ़नी शुरू हो जाती है। तब महत्वकांक्षा सर्वोपरि होने के कारण दाम्पत्य में दरार पड़नी शुरू हो जाती है।

06. झूठा फेमिनिज़्म और सोशल मीडिया का विस्तार होना

आजकल समाज में नारी सशक्तिकरण की आड़ में एक झूठे नारीवाद या फेमिनिज़्म की बाढ़ आई हुई है। हमारे क़ानून नें भी स्त्रियों को अनेक संवैधानिक अधिकार दे रखे हैं। आज की नारी अपने हक, अधिकारों के प्रति बहुत जागरूक हो गयी है। हालांकि हमारे भारतीय समाज में स्त्रियां त्याग, ममता और समझौते की मूर्ति कही जातीं हैं। उनको अधिकार देकर सशक्त बनाया गया, यह बिल्कुल सही बात है, क्योंकि अधिकांश मामलो में औरतें ही प्रताड़ित होती हैं और घरेलू हिंसा की शिकार होतीं हैं। लेकिन इस जागरूकता की आड़ में कुछ औरतें अपने प्रेम और समझौते वाले मूल स्वभाव को लगातार खोती जा रहीं हैं। वह पति और घर-परिवार की ज़रूरतों के बजाय अपने अधिकारों को अधिक प्राथमिकता देती हैं। छोटे-मोटे घरेलू बातों में भी लड़ने लगती हैं और अपने अधिकारों की मांग करती हैं। ऐसे में पति के साथ उनकी पटरी नहीं बैठ पाती और टकराव की स्थिति उतपन्न होती है।

आजकल यह भी देखा जाता है कि पति-पत्नी एक साथ बैठे रहने का बावजूद हाथ में पकड़े मोबाईल में ही मसरूफ रहते हैं। वें आपस में बातचीत करने के बजाय सोशल मीडिया की एक्टिविटी देखने में ही मशगूल रहते हैं। एक सर्वे के अनुसार आजकल मोबाइल फोन भी पति-पत्नी के बीच दूरियां पैदा करने में अहम भूमिका निभा रहा है।

उपर्युक्त आलेख में मैनें दाम्पत्य जीवन में आने वाली कड़वाहट और दरार के कुछ सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलू को उजागर करने की कोशिश करी है। में आशा करती हूँ कि मेरा यह आलेख आप सभी पाठकों को पसन्द आएगा। सुधी पाठक जन भी कमेंट के ज़रिए अपने विचार प्रकट कर सकतें हैं।

आभार एवम धन्यवाद।

-ऐस्ट्रो ऋचा श्रीवास्तव

++++++++++++++++++++++++++++++++++++++

Why does a marital life fall apart? (Hindi & English)

Om-Shiva
In our Indian society, marriage is considered a bond of seven lives and marriage is not only considered a physical union but also a symbol of a permanent mental union. It is also said that marriage couples are made in heaven and then they get married on earth with the blessings of God. If marriage is a sacred bond in Indian society, then why most of the husbands and wives are not able to remain happy in their married life? Why does so much bitterness grow that the matter reaches from separation to divorce?

Let us try to find its social and psychological aspect.

01. Interference of a third person between husband and wife

Excessive interference of a third person between a happily married couple is a major social issue. If the mother-in-law, father-in-law, sister-in-law or any other member of the woman’s in-laws’ house dominates too much and controls the husband or wife too much, then the sweetness of love in married life ends and bitterness starts coming. The same thing applies to the wife’s parents’ side as well. The husband or wife are not able to take any decision freely, nor are they able to do anything of their choice. Due to which a feeling of dissatisfaction arises in the mind of both and a situation of conflict starts arising.

02. Husband or wife having extramarital affairs

Nowadays this is a major reason that almost ends the married life and brings it to the threshold of divorce. Due to increasing modernity, social and economic independence of women, social media etc., men and women get many opportunities to mingle with each other outside their homes. Nowadays women are working and doing other social work outside the curtain of the house. In such a situation, it is a bit natural for them to become very close to a male colleague. Men also get easily attracted to modern and well-dressed women outside the home. In this way, relationships are established between them. When the husband or wife gets a hint of such relationships, then the married life becomes poisonous.

03. Constantly ignoring each other

This is a very dangerous situation for married life. It is said that couples who fight with each other, lighten their minds by sharing their stories with each other, still love remains in them. But the husband or wife who is neglected by their partner starts feeling their whole life as a burden. Due to lack of communication and coordination, mutual understanding is not formed between them, and they live their monotonous life like strangers under the same roof. This situation can arise due to many reasons. Like not getting a life partner of your choice, the life partner not meeting expectations, the heart of the life partner being insensitive towards others. When the situation of neglect continues, the relationship of love or affection between husband and wife cannot flourish. Even an inanimate object rots or gets spoiled by being neglected, then what to say about humans? Constant neglect by one’s partner breaks the life partner psychologically. They live together under the same roof just for the sake of show to fulfill family responsibilities.

04. Mistrust and disrespect growing in relationships

Some husbands and wives are naturally suspicious. Whatever they do, they keep doubting each other on small matters. Checking each other’s mobile or peeping on social media has become a common thing. Nowadays, fierce fights between husband and wife have become quite common due to Facebook and Instagram posts. Apart from this, husband or wife belittling each other on small matters breaks each other’s morale. It has been seen many times that if the wife is more talented and goes out of the house and makes her mark, then her husband is unable to digest this. He keeps trying to bind his wife with many restrictions and does not let her move forward. Feelings of insecurity and jealousy may also be hidden behind this. But this thing keeps pricking the wife, and she is never satisfied in her married life. Similarly, a wife is always apprehensive about her husband’s female friends or female co-workers. She remains troubled by imagining wrong relations with her husband. This worry is reflected in her behaviour as well. Due to this, there is always a conflict between husband and wife.

05. Being overly busy in life due to work

In today’s modern era, a person becomes so busy in his business or job due to his overly ambitious nature that he does not have time to spend quality time with his family and wife. Be it a job or business, a man puts all his attention in it in the desire to progress. This overly busyness spoils the atmosphere of the house by making it unbalanced. When a husband returns home tired after a long day, he searches for peace and comfort in the house. He finds even the simple talks of his wife annoying. Whereas a wife, who is busy in household chores all day, wants to sit with her husband and have a loving conversation.

On the contrary, if we look at it, today’s modern women are working outside the house. In the desire to be financially independent, they give priority to job and business. Whereas today our ancient system of “woman managing the house and man earning” is breaking down. As a result, there is an imbalance in the domestic system. Here I am not saying that it is wrong for women to go out and work, but if both the husband and wife are very busy, then somewhere the mental and physical distance between them starts increasing. Then due to ambition being paramount, cracks start appearing in the marital life.

06. False feminism and expansion of social media

Nowadays, there is a flood of false feminism in the society under the guise of women empowerment. Our laws have also given many constitutional rights to women. Today’s women have become very aware of their rights. Although in our Indian society women are considered the epitome of sacrifice, affection and compromise. It is absolutely correct that they were empowered by giving them rights, because in most cases women are harassed and become victims of domestic violence. But under the guise of this awareness, some women are continuously losing their basic nature of love and compromise. They give more priority to their rights instead of the needs of their husband and family. They start fighting even on small domestic issues and demand their rights. In such a situation, they do not get along with their husband and a situation of conflict arises.

Nowadays it is also seen that despite sitting together, husband and wife are busy with the mobile in their hands. Instead of talking to each other, they are busy watching social media activities. According to a survey, nowadays mobile phone is also playing an important role in creating distance between husband and wife.

In the above article, I have tried to highlight some social and psychological aspects of bitterness and rift in married life. I hope that all of you readers will like this article of mine. Intelligent readers can also express their views through comments.

Gratitude and thanks.

-Astro Richa Srivastav